प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका

विदेह नूतन अंक
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भुवनेश्वर चौरसिया 'भुनेश'
पानीक सदुपयोग / पानीक रंग


पानीक सदुपयोग

पड़ोसीक छत केर दीवार सेह जुड़ल पानीक पाइप सॅं‌ पानी टपकैत छल।
ओहि ठाम हम्मर दादी फुलक गमला सॅं घास निकालैत छलनि।
पानी टपकैत देखि जल्दी से एकटा पानी केर खराप मग उठैलनि आ टपकैत पानी ओहि से भरैत फूलक पौधा पटबै लगलनि।
हम कहलियनि ये दादी मां इ कि करैय छी ये?
इ पानी तऽ बड्ड गंदा अइच्छ।
दादी बजलनि पेड़ पौधाक लेल सभ पानी चिकन्ने अछि पेड़ पौधा मनुष्य नैन छल जकरा साफ पानी चाहि।
दादी जी बजलनि जों इ पुछलौं तऽ गंदा पानी केर अई से बढ़िया उपयोग हुमे सेह बताऊ।
हम ओहि ठाम से घिसैक लेलौंह कियेक हमरा संग कोनो जबाब ननि अइच्छ।


पानीक रंग

एक बेर केर बात अइच्छ। श्री बाबा हमर खेत जोतैत रहलिन।
ऐ हे माठा ठाम हे हे आ बैलक पीठ पर छड़ी बजबैत रहलिन।
गर्मीक दिन अइच्छ।
खेत केर बगले मे छोट सन नदी जकरा हम मोइन बजैत छलि। पानी तत गंदा जे कि कहौं कुत्ता बिलाय चिड़ैं चुनमुन्नी के अलावा केयो नै पीबैत हैत।
श्री बाबा खेत जोतनाय छोइड़क ओहि नदी मे ठेहुन भरि पानी मे घुसलाह आ पानी केर ऊपर जमल काई के पछाड़ैत कोबा मे पानी भरि कऽ गट गट पीअ लगलैन।
हम्म इ देखि स्तब्ध भ गेलि। पानी पिलाक बाद बाबा फेरूं स खेत जोतै लगलनि। हम पुछलियेन बाबा एतेक गंदा पानी कोना पीब गेलि यौ?
बाबा बजलाह बौआ प्यास के सामने पानीक रंग नै देखल जाइ छै।

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