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लालदेव कामत
मैथिली काव्य संग्रह : नहि रहतै आब गाम

कविवर श्री राजकिशोर मिश्र कृत मैथिली कविता संग्रह ' नहि रहतै आब गाम ' सद्य:प्रकाशित पोथीमे कुल १२२ पृष्ठ आ २९ गोट आधुनिक कविता अछि,जाहिक दाम २०० टाका राखल गेल छैक। एहि वर्ष २०२४ मेँ इ पोथी भारतमे प्रकाशित भेल अछि,जकर कविजी स्वयं प्रकाशको छथि। पहिल कविता 'क शिर्षक "नहि रहतै आब गाम" केए पोथिक नामाकरण करल गेल अछि। ऐ पोथीमे रचनाकार श्री राजकिशोर मिश्र जी आम जनमानजस लेल चिन्ता प्रकट करैत छैथ। भारतके आत्मा गाममे बसैत अछि आ तेँ एहि देश केँ कृषि प्रधान देश कहल जाइत छैक। गाम देहातके जे बसाबट अदौ सँ संरचनात्मक रहल ,से आब उजड़ि - उपटि रहलैक अछि। तकर कारण भेलैक जे गामक श्रीमन्त आ विद्वतजन तथा नोकरी पेशा लोक नगरमे जा बसैत अछि। देहातक लोक शहर पर भाड़ बढ़ेने छैक जे पलायन केने अछि से दूरस्थ रहितो गामक जुतिहार बनल रहबाक तिकड़म लगेने रहैत अछि। परंच गामोक किछु भजगर लोक अपन वैभव सँ बाहरी दखलंदाजी केर विचारधाराक काट कार्यमे पारंगत रहैछ। गामक अपेक्षा शहरमे लोक अधिक सुविधाभोगी बनैत छैक,तेँ गामोक जत्था खरका कय नगर- कस्वा कात जा बसैत अछि। ओतय डीह किनब सघन पॉस इलाकामे महाग मोशकिल रहैछ। कम टाका बला जँ जमीन कीनियों लैत छथि तँ एकतल्ला मुकाम पड़ोसक अपेक्षाकृत झुझुआन आ वायुमुक्त रहैत फरफड़ाइत रहैत छैक,तेँ स्वास्थ्यक लेल प्रतिकूल होइछ। शहर तँ कंक्रीटक टाल बनि गेल अछि। पैघ ईमारतके गरमी,पक्का सड़क गरमी, विजली- कारखानाक गरमी सं मानव जीवन सांसतमे उबडुब करैत छैक। तैयो लोक शुद्ध ग्राम्यजीवन सँ जेना उबिकय पड़ोसिक संत्रास सँ सेहो अक्रान्त भ' ग्रामभावना त्यागि पड़ाइत रहल अछि। ई जे नव समस्या संकट बनल जा रहल छैक , ताहि प्रसंग कविवर श्री मिश्रजी चिन्तित देखेलाह अछि। यथा, हुनक सीरजल रचनाक पाँति देखल जाए-: रहतै सहर ,रहतै नै गाम, भीड़, प्रदूषण, रहतै जाम। रेबाड़ि रहल छै नगर गाम के, की बाँचत? बस रहत नाम के, अस्तित्व मेटाबय पर छै लागल, सहर के पाछू लोक छै लागल। गामक रहवासी सुधंग लोकक जे धनगर खेती रहय ,ओहिमे विल्डर अपन प्रभुत्व जमाल लेलकैक आ बाड़ी- झाड़ीमे लोक डीहकात मकई , सागर, तरकारी उपजबै ,पशुके बथान बनेने छैक,से सब जगह छेकने छैक आई जेनरल स्टोरक साईनवोर्ड । रजमा ,रहरिया, राहैर दालि'क स्वयं उत्पादन करैत छल से आब हरसठे दोकान सँ दालिक पाकेट बेसाहय पड़ैत छैक। मोट अनाजमे जनेर महत्वपूर्ण स्थान रखैत छैक,से लोक जतय उबजाबैत रहय ,ताहिठाम तँ स्टेशनरीक' दोकान आ स्टूडियो - फोटोस्टेटके शोप देखल जाइछ। चर- चाँचर सँ अनेक तरहक माछ,श्रृगहार फल, मखान सौरकी,बिशांढ़ आ कोइचला आदि पबैत रहय ,जतय आब स्टेडियम बनि गेला सँ अपने गाम आब अन्चिनहार देखाईत छैक। गामो आब मिनिशहर बनि रहल छैक। एहि ज्वलंत समस्या बात कवि आर्त भावे गाबैत छथि-: .......... उजड़ि जेतै सब गाम , सहर नै देतै घरारी , हर्दिया लेतै बीत - बीत , बँचतै नहि बाड़ी ।............ कवि महोदय ग्राम्यजीवन मे जे देखलन्हि ,प्रदुषण सहर पसरि रहल छैक , देहाती गाढ़दुलार बाला सहिष्णु लगावके जगह चारुभर सँ गाम पर प्रहार देखल गेल छैक आ कल्पना करैत ई जे सन्निकट भविष्यमे गाम शहर-अहारमे परिणत देखाओत। जहिना नगरक लोकमे कूल वंश ,टोला बासीक, ग्रामीत भावना , सामाजिकता नहि रहैछ,तहिना गामोक जीवन ओही ढर्रापर आबि रहल छै। तेँ नक्शा - चौहद्दी मेँ लिखल भेटत गाम ,मुदा भविष्यमे ग्राम भावना उपटि गेल रहत आ एकांगी जीवन सँ लोक मतलब राखत। गामक मधुमय रहन - सहन प्रभावित भ' रहल अछि ,तकरा बचेबाक उपाय के करत? गामो देहातमे आब गीध ,देसीकौवा ,बगरा-फुदी ,खिखीर - नढ़िया नहिं देखा रहल अछि। ओकरो सभके सांस पर आफद केने रहल कार्वनमोनोआक्साइड गैस, उमेर आबै सँ पहिने लोक बुढ़ आ बेराम भ' जाइछ।जल जंगल हरियाली प्रकल्प क' मुँह दुसैत बेसीतर योजना कागते पर सुसम्पन भ' जाई य। सरकारी धनराशि 'क बनरबाँट केर खेलवेल चलल अछि। एकहि मैदानके भरयके नामपर माटिकरण तँ ओहि खेसरालम्बर पर तलाव(रजोखरि) निर्माण गजगज देखाएल छैक। कवि जी 'जूलुम भ' रहल छै' कवितामे अपन मन:स्थिति प्रकट कयलनि अछि -: ..…..... सोनीत पीब' खेलैत मलंगा कार्बनमोनोआक्साइड गैस, सांशों पर छै आफद केने, गिड़ने जाइ छै सभक वएस।........ दोसर पाँति द्रष्टवय :- घरे - घर छै ओकरे हकार , पचलो अन्न सँ धोनि - ढ़ेकार। प्रदुषण धाह सँ धीपर अम्बर, धरती के त' प्रथमहि नंवर । एहि तरहेँ कवि जीक कविता जेना-: खेती बिनु सभ सुन, मनोपीड़ा , आएल मधुमास, सज्जन जन सँ भेँट कठिन थीक, जीत, जिनगीक नव रीति , भ्रम, खेतक उपराग, स्वबल, भूतक नगरी, भ' गेलैक अछि भोर, जन्मभूमि, पुरान ओ आधुनिक, हम जिनगीके भरिया छी, माँटि- गाछ, बूझि, कापर, नव जुगक संबंध तरु, भारतक बात, किए पोसू अवसाद?, कलिजुग, सुन्ना, भारतवर्ष , ओ किछु ताकि रहल छथि, सिन्धु घाटी सभ्यता -प्रथम भाग, सिन्धु घाटी सभ्यता द्वितीय भाग, हम नहि बनब भाग्य केर चाकर, सारगर्भीत ओ प्रेरणादायक छैक। समाजमे ई पोथी एक नव चेतनाक संचार करैत अलख जगाएत। मुदा मैथिली पोथीक प्रति जन सरोकार कम देखाईछ,विशेषकय कविताक पोथी उपन्यासक अपेक्षा म पढ़ल जाईछ से एक पृथट समस्या छी। कवि श्री मिश्रजी विविध विषयपर नव- पुरान समस्याक समाधान लेल अपन कविताके हथियार बनौलाह अछि। हम हिनक कविता रूचि पूर्वक मनन कयल। हिनक पन्दरह गोट कविताक पोथी बहराएल छन्हि, जाहिमे एक खण्ड काव्य सेहो प्रकाशित भेल अछि।

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