रमेश रञ्जन
एकटा आर वसन्त : तात्कालीन समय आ समाजक प्रतिनिधि नाटक
कइएक दशक पश्चात एकटा नाटकक संस्मरणकेँ शब्द देबाक प्रयत्न क' रहल छी। अतितमे प्रवेश आ ओहिकेँ तात्कालीन समयक सँग विवेचन थोड़ दुरुह कार्य मानल जाइत अछि। ओहूना संस्मरणात्मक निवन्धमे घटनात्मक विवरण आधिक्य भेलासँ निरश साहित्य रचनाक संभावना रहिते टा छै। हम ई बात बूझितो एहने प्रयत्न क' रहल छी।
बिक्रम सम्वतक पाँचम दशकमे नेपालक मैथिली क्षेक्रक सर्वाधिक सत्रिय लेखक, पत्रकार रामभरोस कापडि भ्रमर एकटा आर वसन्त नामक नाटक लिखलनि। नाटक विषय वस्तु रहै वालविवाह आ ताहिसँ उत्पन्न भयावह परिणति। विवाहसँ जोड़ल बिषय वस्तु होएबाक कारण ओहि नाटकमे प्रमुखतासँ दहेजक सामाजिक प्रभावकेँ लाओल गेल रहै। माने ई दुनू तात्कालीन अवस्थामे भिन्न विषयसँ बेसी एकदोसरकेँ परिपूरक विषय जकाँ भ' जाइक। तत्कालीन समय मिथिलाक सामाजिक संरचनाकेँ सभसँ बेसी प्रभावित कएने रहैक ई बिषय तें बहूत रास लेखक साहित्यक विभिन्न विधामे ओहि विषयमे साहित्य रचना केलनि।
एहि नाटकक लेखन आ प्रर्दशनसँ पूर्वहू नेपालक भूमिमे महेन्द्र मलंगिया अपन पहिल नाटकक रुपमे लक्ष्मण रेखा खण्डित लेखन कएने छलाह आ ओहि नाटककेँ नेपाल आ भारतक मैथिली क्षेत्रमे व्यापक प्रर्दशन भेल छलै। स्वभाविक छै जे जखन एकटा आर बसन्तक लेखन भेलै त नेपालक साहित्यिक परिवेशमे एहि नाटक प्रति पाठक र रङ्गकर्मी उत्सुक रहए।
ओहि कालखण्डमे हम स्वयं सेहो रङ्गकर्मसँ सक्रियतापूर्वक आवद्ध छलहुँ। हमर सम्वद्धता मिथिला नाट्यकला परिषदसँग छल। जनकपुर परिसरक सर्वाधिक प्रभावशाली ओ समूह एहि नाटकक मञ्चन दिस उत्सुक नइ भ' सकल। एकर कारण विवेचनमे नइ जाइ, मुदा एहि नाटकक पाठ हमरा पढ़बाक अवसर उपलब्ध भ' गेल रहए। हमरा तखनो लागल रहए जे एहि नाटकमे विषयवस्तुक समसामयिकता छै। पात्र आ परिवेश मौलिक छै, संवाद चोटगर आ पात्रोचित छै। मञ्चपर एहि नाटकक प्रर्दशन आवश्यक छै। किछुए दिनक अन्तरालमे एहि नाटकक प्रर्दशन कएल गेलै। जनकपुर आ काठमाण्डौंमे भेल प्रर्दशन अपेक्षाकृत तात्कालीन अवस्थामे नव मानल जाएबला नाट्यकर्मी सभक समूह आकृति एहि नाटकक प्रर्दशन कएने छल। स्वभाविक छै प्रर्दशनमे आवेश रहै मुदा प्रर्दशनमे परिपक्वताक आओर बेसी आवश्यकता रहै।
मूलतः हम ई कह' चाहलहुँ अछि जे एहि नाटकक प्रर्दशन देखबाक अवसर भेटल। आब नाटक प्रर्दशनक क्राफ्ट कतेक प्रभावशाली रहै, रङ्गमञ्चमे प्रयोग होमएबला विभिन्न अवयवसभ अर्थात लाइट, साउण्ड, प्रोप्स, अभिनेताक कार्य वा समग्रमे निर्देशकक कार्य कतेक प्रभावशाली छलै ताहि रुपकेँ विश्लेषण एखनुक दृष्टिए थोड़े जटिल छै। मिथिला क्षेत्रमे प्रभावशाली आ कार्यक स्तरपर व्यावसयिक रङ्गमञ्च क' रहल समूहसभ सेहो प्रविधि प्रयोगक दृष्टिए कमजोरे छल। अर्थात प्रविधिसँ बहुत परिचित नइ भ' पाएल छल।
जनकपुरमे मिनापक बाद आकृतिमे युवा रङ्गकर्मी लोकनि आवद्ध भ' उत्साहक सँग कार्य क' रहल छलाह। मूलतः रङ्गमञ्च आवेश आ शौकक आधारपर सक्रिय छलै। हमरासभ अधिकांश मैथिल मिथिलाक ग्रामीण रङ्गमञ्चसँ परितिच छी। खासक' पर्व, त्योहार आ उत्सवमे गामसँ बाहर रहनिहारसभ ओहि अवसरपर नाटक करैत छलाह। जाहि नाटकक प्रर्दशन रुपकेँ थोड़बो स्मरण कएल जाए त भेटि जाएत, पारसी थिएटरक रुप। ओना त बहूत रास हिन्दी नाटक होइत छलै मुदा मैथिली नाटक सेहो प्रर्दशन शैलीगत स्तरपर आमरुपमे ताहिसँ भिन्न नइ छलै। ओहि चरणमे जनकपुर सन जगहपर सेहो गामसँ आएल युवा सभ छलाह, जिनक आधुनिक रङ्गमञ्चसँ खासे परिचिति नइ छलनि आ तें पारसी शैलीक नाटक करैत छलाह। एकटा आर बसन्तक पाठ याथार्थवादी नाटकक जकाँ रहितो प्रर्दशनमे आधुनिक रङ्गमञ्चक प्रविधिसँ वञ्चित रहल। या ई कही जे पारसीक प्रर्दशनात्मक शैलीक चपेटमे रहल नाटक।
एहि नाटकक पाठपर बात करी त विषय वस्तु समान्य रहितो नाटकक कथोपकथनमे विशिष्टता देखाई दैत छल। मिथिलाक समाज छलै ओहि नाटकमे, अर्थात समाजक जे विभिन्न रुप आ चित्र भेटै छै मिथिलाक एकटा गाममे ओ अत्यन्त प्रभावशाली आ सहजताक सँग उपस्थित छल। जेना अभिजात्य सामन्त परिवार जकरा लग अपना जीवनपद्धतिमे आडम्वर छलै, लालच छलै आ समयके अपना मुट्ठीमे नियन्त्रित रखबाक अनवरत प्रयत्न करैत देखल जाइ छलै। निर्धन आ कमजोर छलै जकर जीवन जटिल छलै। जीविकाक हेतु सङ्घर्ष क' रहल छल। वैवाहिक आ संस्कारिक कार्यकेँ निर्वहन पैघ चुनौतीक रुपमे छलै। ओ कहुना दायित्वमुक्त होएबाक विवशतामे रहैत छल। स्वभाविक छै जे एहिसँ सामाजिक त्रासदीक जन्म हेतै जे एहि नाटकमे जनमैत छै। एहि नाटकक कालखण्डसँ आओर अतितमे जाइ त वालविवाह, विधवाविवाह, अनमेल विवाह, बहुविवाह सन सामाजिक कुरुपताक ई रुपसभ आर भयावह देखाइत छै। एहन वैवाहिक प्रथासँ सामाजिक विकृतिक चरम निकृष्टता उत्पन्न भेलै मुदा एहनो वर्ग छलै जे एहन प्रथाकेँ महिमा मण्डन सेहो करैत छलाह। अभिजात्य वर्ग अपन अन्तर कुरुपताकेँ पर्दाक माध्यमसँ छेकने छलाह। मुदा श्रमिक वर्ग लाञ्छित होइत छल। अर्थात लाञ्छना मात्र नइ, एहि प्रकरणमे कतेको परिवारक विनाश भ' जाइत छलै। एहि नाटकक नाटककार एहि द्वन्द्वकेँ समधानिक' पकड़लनि अछि।
एकटा गरिब बाप अपना बेटीक ब्याहक हेतु व्याकूल अछि। मुदा ओकर व्याकूलता व्यक्तिगत व्याकूलता मात्र छै। बजारक दर भाउ अनुसार ओ दहेजक भुक्तान करबामे असर्मथ अछि तें ओ बेटीकेँ गराक घेघ बूझि साठि दैत अछि कोनो रोगी आ कि बेस उमेरगर पुरुषक वस्तु जातक रुपमे। नाटकीय घटना कोनो अप्रत्याशित नइ अछि। ओहि वीमार पुरुषक मृत्यु होइ छै आ ओ कान्या पुनः बापक गराक घेघक रुपमे नैहरमे रहबाक लेल वाध्य अछि।
नाटकक कथा एकदमसँ सिनेमाई घटनाक्रम जकाँ आगा बढ़ैत अछि। एकटा अभिजात्य परिवारक युवा जे विवाह करबा योग्य उमेरक अछि आ ओहि युवाक विवाहे प्रसङ्गसँ एहि नाटकक प्रारम्भ होइत छै आ कि ई कही जे नाटकक अधिकांश समयावधि एहि विषयपर केन्द्रित रहैत अछि। ई युवक गामक सोच, परम्परासँ भिन्न प्रगतिशील आ परम्परा भंजककेँ रुपमे देखल जाइत अछि। जकरा ओहि नायिकसँगे वाल्यअवस्थाक प्रेमपूर्ण संस्मरणसभ छै, जे विधवा होएबामे ओकर दोष नइ देखैत अछि। जे ओहि लड़कीकेँ अपशगुन नइ मानैत अछि। पुनः ओएह दुनूक भेंट, दुनूमे पुनः अन्तरंगता, चर्चा, किछु नाटकीय घटनाक्रममे थ्रील, सस्पेंस आ पुनः युवाद्वारा युवतीकेँ स्वीकारोक्ति। इएह कथानक छै।
एहन विषयवस्तु जकरा प्रभावमे अधिकांश अछि, जकर साक्ष्य आ भोक्ता सम्पूर्ण समाज अछि आ जकर पक्ष आ विपक्ष परम्परा, संरचना आ समय अछि, तेहन विषयपर सिर्जना करब चुनौती त छै। अनेकों तरहक आरोपकेँ सामना कर' पड़ै छै। हमरा बुझने एकटा सर्जक एहन आरोपकेँ परबाह नइ करैए आ तें रचना करैए। भ्रमरजी एहन चिन्ता आ दुविधासँ दूर छथि तें निरन्तर रचनारत छथि। अहू नाटकमे ओ सामाजिक समस्याक विरुद्ध परिवर्तनक परिकल्पना करैत छथि। एकटा क्रान्तिकारी चेतना प्रवाहित करैत छथि। हुनक दृष्टिकोण छनि चिन्तनक जड़ता आ शासकीय दम्भक गर्भमे क्रान्तिक जन्म भ' सकैए। वर्ग चेतना छै। जे ओहि चेतनाकेँ ग्रहण करत ओएह परिवर्तनक कठिन मार्गपर आगा बढि सकैए। परिवर्तनक संवाहक बनबामे पारिवारिक पृष्ठभूमि वाधक होएबाक कथनमे जे सत्यता होइक मुदा एहि नाटकक माध्यमसँ भ्रमर एहि मान्यताकेँ स्थापित कर'मे सक्षम होइत छथि जे विचारकेँ ने त अतित, ने त पृष्ठभूमि छेक सकैए।
एहि नाटकक सन्दर्भमे जखन चर्चा आगा बढ़बैत छी त हमरा युरोपिय समाजक परिवर्तनक कालखण्डकेँ थोडे संस्मरण भ' अबैए। माकर््स जीबैत रहथि आ युरोपिय समाजक सामाजिक, राजनीतिक घटनापर बड़ तीक्ख नजरि रखने रहथि। बहुतरास लेखक साहित्यकार वा कलाकर्मी लोकनि सेहो अपन सिर्जन आ प्रर्दशनद्वारा युरोपक कठिनकालकेँ अझिव्यक्त क' रहल रहथि। ओहि त्रममे स्वयं माकर््स कहैत छथि जे युरोपमे पूँजीवाद आ पूँजीक नियन्त्रक कोना सत्ता नियन्त्रण क' लेलक अछि। गद्दीपर कियो अछि मुदा सत्ता त यर्थाथतः पूँजीपतिक हाथमे छै। एहि बातकेँ अतेक स्पष्ट आ प्रभावी ढंगसँ कोनो वैचारिक वा राजनीतिक अध्येता लोकनि अपनाकेँ सम्प्रेषित नइ क' सकलाह जतेक बाल्जाक अपना उपन्यासक माध्यमसँ करैत छथि। साहित्यमे तात्कालीन समयक इतिहासवोध रहैत छैक। तें इतिहास आ साहित्य एकदोसरक परिपूरककेँ रुपमे सँगसँग यात्रा सेहो करैत अछि। ओना साहित्य इतिहासक सम्वन्धकेँ एतेक सहजताक सँग व्याख्या नए कएल जा सकैए। तथापि एहि प्रसङ्गकेँ एहिठाम उल्लेख करबाक इएह कारण अछि जे नाटककार भ्रमर एहि नाटकमे एहन उपकथासभकेँ सायास लओलनि अछि जे नेपालक तात्कालीन समयक एकटा ऐतिहासिक घटनाक्रमक समान्य रेखाचित्र भेटैत अछि। सामान्य कहबाक तात्पर्य ई जे एकर सघन रुप त इतिहासमे मात्र खोजल जा सकैए मुदा साहित्य कतेको स्तरपर समयकेँ मूखर रुपें अभिव्यक्त क' रहल रहै छै जकरा साहित्यक पाठककेँ चिन्हित कर' पड़तै।
एहि नाटकमे नेपालक राजनीतिक परिवर्तन आ ओहि परिवर्तनक प्रभावकेँ उपकथनद्वारा प्रभावी ढंगसँ उठाओल गेल छै। खासकए बिक्रम सम्वतक चालिस दशककेँ अन्तमे नेपालमे व्यापक परिवर्तन झेलै। सक्रिय राजतन्त्र सीमित शत्तिकसँग मात्र अपनाकेँ कहूना सुरक्षित कएलनि। एकटा देशक मूल सत्ताक परिवर्तन कोनो सामान्य घटना नइ होइ छै। स्वभाविके एकर प्रभाव राजतन्त्र संस्थाक पृष्ठपोषक शक्तिपर सेहो पड़लै, शक्तिविहिनताक अनुभूतिसँ ओहन शक्ति विचलित छल। परिवर्तनक अकांक्षी, समाजक श्रमिक, दलित, वञ्चित वर्ग किछु बेसिए उत्साहमे छल। राजनीतिक परिवर्तनक सामाजिक प्रभावकेँ एहि नाटकमे अत्यन्त कुशलताक सँग लाओल गेल अछि। नाटकक सामन्त पात्र बेरबेर एकटा बात उल्लेख करैत अछि जे जमिन्दारी चलाएब आब कठिन भ' गेलै। ओ गामक श्रमिक वर्ग जे कहियो जमिनदारक दयापर जीवन निर्वहन करैत छल आब ओहि मालिककेँ टेरनाई छोडि देलकैए। सक्ता आ शत्ति जकरा लग छै तकरा नइ गुदानब त विद्रोह छै। नाट्यकार राष्ट्रिय स्तरपर भेल राजनीतिक परिवर्तनकेँ प्रभाव आमजन कोना ग्रहण कएलक वा आमजन कतेक सचेत राजनीतिक स्कुलिङ क' लेलक अछि जे देशक शीर्ष सत्ताकेँ विस्थापित करबाक क्षमता प्राप्त क' लेलक से स्पष्ट र्कलनि अछि। एहि नाटकमे राप ताप विहिन सामन्त पात्र जेना वृद्ध बाघ सन स्थितिमे अछि जे अपना गुफामे कैद अछि आ ओत्तहिसँ हुमरि रहल अछि। विवश, कमजोर आ कातर बाघ।
नाट्यकार एहि द्वन्द्वकेँ मात्र नाट्यरुप नइ दैत छथि ओ वस्तुतः स्पष्ट नइ भ' पाबि रहल छथि जे परिवर्तन जनपक्षमे छैहो की नइ ! ओ नोकरशाहक गैरजिम्मेवार प्रवृतिक आलोचक छथि। नौकरशाह जनताप्रति विनम्र व्यवहार नइ रखैत अछि। ओ कामकेँ बदलामे अतिरिक्त रकमक असूली करैत अछि वा समग्र नौकरशाह अनियन्त्रित आ अराजक भ' गेल अछि, जकरा नियन्त्रण कएनिहार कियो देखाइ नइ दैत अछि। नौकारशाहक जनताप्रति अनउत्तरदायी व्यवहार आ गलत आर्थिक उगाहीक लेल नाट्यकार अमूर्त रुपमे राजनीतिक परिवर्तनकेँ जिम्मेवार मानैत छथि। माने पहिने सभकिछु ठिक छलै, सम्पूर्ण तन्त्र अनुशासित छलै। एखन सभकिछु अराजक छै, प्राकारान्तरसँ एहि भाष्यकेँ स्थापित करबाक प्रयत्न छै। एहन प्रयत्न मोटामोटी कएक प्रसङ्गमे प्रयत्नपूर्वक करैत देखाइत छै। माने गाममे चोरक गतिविधि बढि गेलैए त ताहिके लेल राजनीतिक परिवर्तनमे खोट देखाईत छै। बूझब जरुरी ई छै जे नेपालक ओ परिवर्तन मात्र सत्ता परिवर्तन नइ रहै। ओ व्यवस्थाक परिवर्तन रहै। सयौं वर्ष स्थापित मान्यता, संरचना आ चेतनाकेँ एकटा परिधिक भितर लाएल गेल रहै। जे स्वतन्त्र स्वछन्द विचरण करैत अछि तकरा लेल सीमा निर्धारण असह्य होइते छै। तात्कालीन सत्ताक श्रेष्ठताक मान्यता रखनिहार मुखर विरोध करबासन अवस्थामे नइ अछि मुदा ओ शान्त विद्रोहक लेल किछु खास सरंजाम जुटा रहल अछि। माने साहित्यक माध्यमसँ एहन भाष्यक स्थापनाकेँ खतरनाक प्रयत्न मनल जा सकैए। वर्तमानकेँ कुरुप देखाएब माने अतित त सुन्दर छलै ताहि मान्यताकेँ स्वतः स्थापना होइत छै। साहित्यक माध्यमसँ विशिष्ट शस्त्र निर्माण जाहिसँ राजनीतिक, सामाजिक आ सांस्कृतिक पुनरुत्थानकेँ पुर्नजीवन देल जा सकै। प्रत्येक राजनीतिक परिवर्तनकेँ बाद लगभग सभ देशमे एहन विमर्श देखल जा सकैए। वौद्धिक आ सिर्जनात्मक रुपसँ सेहो पुर्नउत्थानक प्रयत्न आ अग्रगमनक प्रतिवादक स्वभाविक द्वन्द्व देखल जा सकैए।
एहि नाटकमे चोरक प्रसङ्ग बड़ प्रभावशाली ढंगसँ राखल गेलैए। चोरक गिरोह मात्र चोरी नइ करैत अछि। ओ एकटा वैचारिक द्वन्द्व सेहो ठाढ़ करैत अछि। गामक नाट्य अवस्थितिमे सामन्त आ अपराधी बिच सम्वन्धक प्रगाढ़ता एकटा नव नाट्य विडम्वनाक स्थापना करैत छै। एहि प्रसङ्गमे मध्यम वर्गक वर्गिय चरित्र सेहो बड़ा ढंगसँ मूखर भेलैए। ओ परिवर्तनकेँ आधारभूत शक्ति अछि मुदा ओ ततबे अवसरवादी सेहो अछि। ओ सङ्घर्ष बादक उपलब्धीक सभसँ पैघ हिस्सेदार अपनाकेँ मानैत अछि। एहिमे कोनो तरहक अवरोध नइ देख' चाहैए। ओ तत्काल लाभक हेतु परिवर्तनकेँ संस्थागत हुअ' देब'सँ पहिनहिं आलोचक बनि जाइत अछि। परिवर्तन प्रतिगमनक घेरामे फँसैत चलि जाइत छै। मध्यम वर्ग अपना अधैयर्ताक कारण समूचा परिवर्तनकेँ संकटग्रस्त बना दैत छै।
नाटकमे हरेक समस्याक कारक परिवर्तन दिश सङ्केत कएल जाइत छै ई नाटकक कथाक सहज विकासक्रम नइ छै। नाट्यकार अत्यन्त सजग रुपें उपकथाक माध्यमसँ मूल कथाक अङ्गक रुपमे एहन विषयकेँ दृश्याङ्कित करैत छथि। स्वभाविक छै जे एहन नाट्यअवस्थिति थोड़ेक अविश्सनीय बुझाइत छै। एकटा आर बसन्त सेहो एहन अवस्थासँ गुजरल अछि। नाटक नायिकापर स्वभाविक छै जे बहूतोक नजरि हेतै। ओकर रुप आ यौवन बहूतोकेँ आकर्षित करैत हेतै। कियो स्वयं भोगक इच्छा रखैत हएत कियो ओहि भोग्याक मध्यमसँ आर्थिक उपार्जनक प्रयत्नमे हएत। एहनसन नाटकीय घटनाक्रममे एकटा एहन अवस्थाक निर्माण होइत छै जत' चोर, अपराधी आ कथित भलादमी नाटकक नायिकाकेँ बेचक' आकर्षक रकम उगाहीक निष्कर्षपर पहुँचैत अछि आ ताहि हेतु आवश्यक प्रयत्न सेहो प्रयोग करैत अछि।
नाटकक नायिका नाटकक प्रारम्भिसँ चरम यातना भोगिरहल अछि। नैहर, सासुर आ पुनः नैहरक दुखःपूर्ण यात्रामे ओहि पात्रप्रति दर्शक वा पाठकक साहानुभूति आर्जन करैत अछि। मुदा ओहि पात्रसँगे अप्रत्याशित घटना होइत छै। जे कि घटनाक्रमकेँ रहस्यमयी बनबैत छै। नायिकाक अपहरण आ बेचबाक प्रकरण आगू बढ़ैत छै। महिला बेचबिखनक विषय नेपालक पहाड़ी क्षेत्रक हेतु आम छै मुदा मिथिला क्षेत्रक हेतु ई अवस्था अत्यन्त अविश्वसनीय जकाँ लगै छै। नेपालमे राणा शासनक उदयसँगे ब्रीटिश शासकसँग ऐतिहासिक सम्वन्ध रहलै। भारतमे सिपाही विद्रोहकेँ दबएबाक लेल नेपालसँ सेना गेल रहै पश्चात नियमित रुपमे भारतीय सेनामे नेपालक गोर्खा रेजिमेन्टक रुपमे एखनो भर्ती कायम छै। तहिना नेपालक तात्कालीक शासक ब्रीटिश फौजक हेतु नेपालसँ यौनकर्मीक रुपमे लड़की भेजल जाइत छलै जे प्रथा पहाड़क खास क्षेत्रमे एखनो कायम छै मुदा मिथिला वा तराईक भूभागमे लड़की बेचबाक घटना प्रायः नइ देखाइत छै। एहि नाटकमे नायिकाकेँ बेचबाक सन्दर्भमे अरबक शेषकेँ हाथे बेचबाक बात उल्लेख छै जे कि नाट्यकारक अप्रत्याशित परिकल्पना जकाँ बुझाइत छै। तराईक भूभागसँ श्रम करबाक हेतु खाड़ी देशसभमे युवा त जाइत रहल अछि मुदा युवतीकेँ ल' जएबाक घटना खासे चर्चामे नइ छै। तखन प्रश्न उठै छै जे किएक नाट्यकार एहन परिकल्पना कएलनि। महिला ताहूमे कमजोर वर्गक महिलाक सँग यौन शोषणक भयावह चित्रसभ त एहिठामक शोषक सामन्त वर्गद्वारा होइत रहलैए। मैथिली साहित्यमे एहन घटनाक प्रधानताक कतेको साहित्य छै। संभवतः एहिसँ भिन्न नाट्य अवस्थिति निर्माण करबाक लेल एकटा भिन्न घटना नाटकक हेतु आवश्यक बुझने होएताह। मुदा नाटक जाहि परिवेश आ घटनाक्रमकेँ ल' क' बुनल जा रहल छलै ताहिमे ई घटना विश्वासक क्षयीकरण दिस ल' जाइत छै।
जे होइक मुदा समस्याक आ सन्दर्भ कोनो समाजक बदलैत रहै छै। कोन कथा कालजयी अर्थात समकालीनताकेँ जोगाक' राखत आ कोन घटना एकटा कालखण्ड प्रतिनिधि रचना भ' क' रहि जाएत तकरो निर्धारण नाटकक विषय, संरचना, शिल्प निर्धारण करैत छै। एहि नाटकक जँ निष्कर्षपर पहुचल जाए त बात इएह छै जे लेखक अपना समयक इतिहासक आवाजकेँ रचनामे लबैत अछि। रचनाकारक अपन निजता सेहो ओहिमे रहितै छै मुदा ओहि कथ्यक गूँज अनुगुँज होइत छै जकरा लेखक अपना भाषामे रुपान्तरित करैत अछि। वस्तुतः लेखक एकटा व्यक्ति अछि मुदा ओ ओही समाजसँ कोनो ने कोनो रुपमे शैली ग्रहण करैत अछि। भ्रमर जी सेहो तात्कालीन समाज, संस्कृति आ राजनीतिसँ अपन चेतना आ विचारधाराक आधारपर कथ्य आ शैली ग्रहण कएलनि आ एकटा नाटकक सिर्जना कएलनि। जे नाटक चारि दसकक बादो विमर्शक हेतु आकर्षित करैत अछि।