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मुन्ना जी
बीचला लोक (कथा)

वाह!आइ त' जतरा सुफांटि निकलल! तीन दिन सं बौआ-टौआ कें खाली हाथ घर घुरि जाइ! लगैए आइ परोपट्टाक मए सब चिलका जन्म देनाइ बन्न क' देलकैए! अपन अन्न पानि खा कते दिन निमहब? पहिने जाहि गली, मोहल्ला मे पएर दी घोघतनिया बाली सब सेहो कहि दिए-"फल्लां गाम बाली के बेटा भेलैए! "जाउ ने धनगर आ समंगर दुनू छै! खोंइछा, झोरा-झपटा सब भरि देत! धिया पुता सेहो पछोड़ लागि सुना दिए -" ओकरा घर मे बेटा एलैए, चलू ओकरे दुरा पर जमघट जमतै! "यै मइयां आब जनी जाति के चिलका नै होइ छै?
धौर हेतै किए नै, ऐ तोर मे सबटा छौंड़ीए भफएल छलै!

बेटा सुनिते,हिजड़बा-हिजड़नीक झुण्ड ढोल, हरमुनिया ल' ढ़ूकि जाइ ओही अंगना! रहै त' सबटा हिजड़नीये साया, साड़ी आ ब्लौज पहिरने! कियो कियो सलवार समीज मे आ ओढ़नी ओढ़ने! ओही मे सं कियो कियो जिन्स, टीशर्ट पहिरने, बाबरी छंटेने हिजड़बा भ' जए! आ बांकी सबटा जनी जातिक भेष मे छाती बढ़ेने ऐन मेन मौगीए बुझू! सांच मे त' इ सब ने स्त्री ने पुरूष, बीचला लोक, भगवानक डांग देल! मुदा समाज मे रहै बसै लए कपड़ा लत्ता आ बोल सं पानिगर! देहगर आ दुधगर सेहो! पएरक घुंघरू सं लोकक मोन हरिया दान, धान आ पाइ ल' घर घुरए !

मिथिला मे बेटाक जन्म पर लोकक मोन हर्षित केनाइ पमरियाक काज छल! इ इस्लाम धर्म माननिहार ' पमार' जातिक एकटा वर्ग पेशाक रूप मे अपना लेने छल! इ सब झुण्ड बना गामे गामे पता करैत रहैत छल -' कोन घर बेटा जन्म लेलक! "एकरो रेवाज मे आने पौराणिक रेवाज सन कान्या बारल रहै छलै! कोनो घर कान्या जन्मक खबरि पाबि ओ घर बागि चलए. जखन की एकर पुरूष झुण्ड मोन बहटारै लए किछु सदस्य कें घघरी पहिरा स्त्री वेश मे नचबैए माने राज नर्तकी सं लोक नर्तकी धरि, पेशा मे सेहो स्त्री के नचएब समाज कें बेसी पसिन्न.मिथिला मे लौण्डा नाचक प्रथा नै रहलैए.कबुला पाती मे छठिक घाट पर आंचर पर नटुआ नचएब होइ कि विवाह दान छकरबाजी नाच करतै पुरूष आ स्वांंग स्त्रीक.आ ताहि समाज मे बेटी जन्म पर ओकरा मनहुस बुझत.गर्भहि जांच लग सं ओकर प्रताड़ना सं समाज एकभगाह सन भेल जाइछ.एक दिस बेटी जन्म पर बान्ह आ दोसर दिस जीवनक संपूर्णता आ कि मोन बहटारबाक प्रमुख साधन बेटीये, स्त्री.यांत्रिक विकासें परम्पराक होइत पतन सं सामाजिक सरोकार सेहो भारल सन. आकि लोक विकासक गति नव नव रूचि मे परिवर्तित भ' रहल. हिजड़ा नाच सेहो तहि रूचिक संकेत थिक.आ आब हिजड़ा समाज सेहो तेजी सं विकसित भ' रहल.

हय... हय तूं सब आङन मे कत' घूसल अबै छें?

बाबा ,तमसाइ किए छी? की भेल अहां कें धीरज धरू ने.हम सब कोनो मुजरा बाली नै जे मोन आ देहक मनोरंजन क' ढ़ेका,जेबी ढ़ील क' घर घुरा देब.

हय तों त' बताह जकां गप्प करै छें, हमरा की लालबत्ती बला बस्तीक गांहकि बुझै छें जे एना लोढ़िएने जाइ छें?

नै यौ बाबा, हम सब अहांक सनक देखि कें चौल करै छलौं.हम सब कि कोनो कोठा बाली छी जे इमान, देह, धरम सब बेचि क' पेट भरब.
हम सब अहीं सब सन माय बापक, इश्वरक डांग सं डेंगएल चिलका थिक. से इश्वरक गलती की हमर सबहक कर्तव्य दोष, नै जानि.एकहि कोखिक कियो सोझ कियो टेढ़ के त' परिवार, समाज राखिए लै छै. मुदा ओही कोखिक बीचला लोक माने नै बेटी ने बेटा के लोक मोन मारि बहटारि दैए.आ तहन हम सब मए बाप, सर समाजक निंहुछल एकटा नव समाजक अंग होइ छी.आ ओही तिरस्कृत समाजक हंसी ठठ्ठा मे समिलात भ' जीवन गुदस्त करैत रहै छी.

छी त' हमहुँ सब मनुक्खे, सकलि सुरति , देह गात सं अहीं सन एकरंगाहे. मुदा प्रकृति प्रदत्त जे सृजनधर्मिता तकरा सं वंचित.समाजक लेल अशपृश्य त' नै मुदा कुड़कुट सन. सेहो अयोग्यता त' प्रकृतियेक देल. कोनो बलात् व्यवहृत वस्तु जात त' नै ने हम सब. तहन बाबा एना हिज्जो किए ?

ऐ हिजड़ा जातिक एत' कोन खगता ?.हमरा घर त' पोती आयल, पोता नै ने! तहन कथीक हंसी खुशी. जो तों सब आन दुआरि,आन टोल, गाम. ताकुत कर गे नवजात बेटा आ घरन्दार घर. तों किन्नरवा सब हमरा बखसि दे,नेहोरा करै छीयौ. तों सब नाच गान कर तोहर सएह काज ने! जो धन संपति अरज पेट पोस!

बाबा, हम सब किन्नर नै, हिजड़ा छी, हिजड़ा. मुदा किन्नर जातिक गुण सेहो अंगेजने छी, पेट पोस' लेल. किन्नर त' सृष्टिक आदिये काल सं छल, वनवासीक रूप मे. जाहि मे नर नारी दुनू फराक छल. जे स्वर्ग लोक मे नर्तक नर्तकी ( नचनिया) रूप मे उपस्थित रहै छल. रामायण- महाभारत सब काल मे नचनिया निमित्त रहल. मुदा हिजड़ा प्रकृतिए सतएल एहेन जीवात्मा ऐछ जे ने नर छल आ ने नारी.कालान्तर मे लेखक सब किन्नर आ हिजड़ा के ओहिना मिझ्झर क' देलक जेना सबटा वनस्पति घी भेल डालडा आ सबटा वाशिंग पाउडर सर्फ कहए लागल.पौराणिक ग्रन्थ ज्योतिष शास्त्र फरिछौने ऐछ जे "- कोनो स्त्री मे चन्द्रमा, मंगल आ सूर्यक लग्ने गर्भधारण होइछ.शारीरिक संबंध मे वीर्यक अधिकाधिक उपस्थिति सं बेटा, रक्तक अधिकाधिक सं बेटी आ दुनूक समान उपस्थिति सं नपुंसक वा हिजड़ा चिलका जन्म लैछ.ओना विज्ञान तकरा नै मानैए.विज्ञानक अनुसार गर्भधारणक विकासक क्रम अवरुद्ध भेला सं मिलावटी जननांग (intersex) के संभावना बनैछ.एकर कारण मे संबंधक अनियमितता, दवाइ सेवनक उनटा प्रभाव, क्रोमोजोम मे एक्स- वाइक जग्गह एकाकी उपस्थिति आदि होइछ. बाबा, एकटा बात गिरह बान्हि लियय जे जन्मक समय सब बच्चा हिजड़ा नै रहैछ.सिरखारी सं सब पुरूषे सन रहैछ, मुदा अविकसीत जननांग रहैछ, टेस्टोरेनक अभाव सं छाती त' विकसीत होइछ मुदा अविकसीत लिंग उपस्थित रहैछ. करीब अस्सी प्रतिशत एहेन चिलका सर्जरीक पछाति कोनो एक रुप पबैछ. किछु सफल ऑपरेशन सं पूर्णत: पुरूष वा पूर्णत; स्त्री काय मे सेहो नवजीवन पौलक.

हय ,सुन ! हम कोनो स्कूलक कक्षा मे नै बैसल छी. तों तहन सं इतिहास, भूगोल, विज्ञान पढ़ेने जा रहलें. तोहर सबहक इश्वरक डांग सं समाजिक आ मानसिक स्थिति दारूण छौ से बुझै छी. मुदा आब की अंग्रेजी शासकक सत्ता थोड़े छै जे तोरा सबकें उभयलिंगी दर्जा आ अधिकार छीनि कें नक्सली की अपराधीक श्रेणी मे द' देने छलै. तोहर एतेक भाषण सं जिज्ञासा भेल जे तों नाच गान मे मगन रहै बाली इ विशिष्ट ज्ञानी कोना भेलें?
बाबा! हम पूरे हाइ स्कूल पढ़ने छी, आ अपन हंजेड़क मेट छी.अपन आ समूह सदस्यक अधिकार आ ज्ञान प्राप्तिक वास्ते स्कूल, कॉलेज, कचहरी आ मंत्रालयक चक्कर कटैत रहै छी....! समाचार चैनलक पैनल सदस्य छी!

बाबाक जिज्ञासा शान्ति पछाति ओकर खून मे नव उर्जा प्रवाहित भेलै,आंशिक चमक बढ़िया गेलै.हलसैत बाजि उठल-" हं बाबा हं, अहूं के जेना हमर सबहक जिनगीक दुख दर्दक खिस्सा बुझले ऐछ! आब कहू जे हम सब सबहक सुख- दुख मे सहयोगीये , मुदा शायद अंग्रेजबा सब रहै उनटा खोपड़ीक . जहन अवसान अबै छै तहन अहंकार बढ़ै छै आ बुद्धि घटै छै. तें ने 1871 मे इ सब एकभगाह कानून पास क' हमरा सब कें अपराधिक जनजाति " जरायम "के श्रेणी मे द' देने छल. बुझू ओ सब हमर सोन चिड़ै सन भारत के कामधेनु गए बुझि दुहि दुहि खए, से भेल मालिक.जहन की हम सब मांगि चांगि खाइ. फेरो हंसाब' खेलाब' जाइ से भेलौं ओकरा नजरि मे अपराधी. धनि कहू सुभाष, खुदीराम आ गांधी बाबा ....सब कें जे ओइ कलमुहां सब सं देश के आजादी दियौलनि.तहन 1951 मे अपन सरकार हमरा सब कें से हो ' जरायम ' सं आजाद करा समाज मे रहि नाच- गान क' पेट भरि जीवाक अवसर देलक.

समाजक ओलवा दोलवा सं कहियो हम सब खिन्न नै होइ छी. जे समाज अपन संगतुरिया के नै बखसैए से हमर सबहक कोना हएत? हम सब त' प्रकृतिए बारल सन. बाबा एकटा बात ध्यान राखब, बरू हम सब बारले सही मुदा असमाजिक नै. देहक भूख बरू नै जगौ मुदा पेटक भूख त' लगबे करै छै. ताहि लए त' नाच गाने क' हम सब अहां सबहक नजरि मे रहै छी. अहींक समाज जकां हमरो समाज मे जहन संख्या वृद्धि होइत गेलै तहन कते लोक बधइये मांगितै? सुनने हेबै जे खगता आविष्कारक जननी होइछ.त' हमहूं सब गुरूक आदेशे बस, ट्रेन, रेडलाइट पर थपड़ी पारि अर्थक जुटान मे जुटि जाइ छी.

आम समाज सं बरू बारले मुदा हमर कतिएल बेरएल लोकक सेहो एकटा संगठित समाज त' ऐछिए. समाज की? इएह ने जे एक फरीकक,एक जीव वर्गक सामुदायिक जिनगी जीवाक समूह.त' हमहूं सब की एकरवा थोड़े रहै छी. जेना अहांक समाज जाति, धर्म, वर्ग मे बांटल मुखिया, सरपंच, माञिन्जन शासन त'र निमहैए तहिना हमहूं सब अपन देवीक समूह मे बांट बखरा भ' सामूहिक जिनगी जीवै छी यै ने यौ.हमर समूह चारि वर्ग मे संगठित ऐछ! सब वर्गक अपन अपन देवी छथिन.
पहिल बुचरा,ऐ वर्ग मे कने पिताह, पुरूषाह आ उग्र सदस्यक प्रवेश रहैछ.इ देवी सेहो काली माय जकां उग्र त' ओ ऐ समूहक शांति भंग नै होम' देथिन, इएह लोक मान्यता छैक.
दोसर नीलिमा, इ संयमित, संतुलित जीवन जीयय वाली देवीक समूह ऐछ.!ऐ मे स्त्रैण सदस्य सबहक प्रवेश देल जाइछ. जे राब दुआब नै, अपना कें दाबि राख' वाली सदस्य होइथ.तेसर समूह जाहि देवीक होइछ ओ कहबैछ मनसा, जाहि मे एहेन सदस्य कें राखल जाइछ जे जीवन सं अगुताइथ नै, अपन जीवन मे किछु नव करबाक आतुर होइथ.आ चारिम समूह होइछ हंसा देवीक.ऐ मे हुनकर प्रवेश होइछ जे सदस्य उडांत होइथ. जिनकर पोन, मोन आ जीह एक ठाम टिक कें नै रहि पाबए.एक समूहक सदस्य कें दोसर समूहक सदस्य सं कोनो राग द्वेष नै रहैछ.मुदा जे जाहि समूह वर्गक सदस्य तकर नियमक बन्हन मे बान्धल सन बुझू.अहीं सबहक पंचायतक मुखिया जकां हमरो समूहक प्रमुख नायक कहबैछ.सब समूहक नायक मिलि जुलि एकटा गुरूक चयन करैछ.हमर समाजक कियो सदस्य प्रतिभाशाली, बलशाली, मेधावी कि उजड्ड हो, गुरूक अपमान नै करैछ.हम सब खोपड़ी खपा कि थोपड़ी बजा जे धन अर्जित करै छियै ने बाबा ओ सबटा गुरूक चरण मे अर्पित क' दै छियै. से करियौ किए ने, उएह हमर सबहक पालक आ उएह अभिभावक.

ऐ फाल्गुन शुक्लपक्ष मे वार्षिकोत्सव ऐछ, ऐ अवसर पर सब समूहक सदस्य एक निर्धारित जगह पर उपस्थित होइछ.सब अपन लहंगा- चुनरी, जेवर सं सुसज्जित, सजि धजि , दुल्हिन बनि आयल ऐछ. गुरूक आदेशानुसार इ पर्व विवाह अनुष्ठानक पर्व थिक.ऐ दिन सबहक सामुहिक विवाहक स्वांग रचाओल जाइछ.सबहक एकहिटा वर होइत छथि ' अरवण'. गाम, शहर सं बहरी जग्गह, सुनसान सन, अरवण देवताक प्रतिमा लगाओल गेल ऐछ! शमियाना मे लाइट आ डी. जे सं चकमक आ गनगन करैत दृश्य!
सब हिजड़ा गण पतियानी बना, धुप दीप जरा ' अरवण' देवताक अराधना मे बैसि गेल. नायक द्वारा पूजन, हवनक संग सबहक सिनूरदानक रेवाज पूर्ण भेल.आब सब नाच गान करैत हर्षोल्लास मे रमि गेल ऐछ! इ त्योहार सांझ सं भोर धरिक होइछ. भोरूकवा मे गुरूक आज्ञा होइते ' अरवण' देवताक मूर्ति तोड़ि फोड़ि नष्ट क' देल जाइछ. तहि संग सब वधुगण अपन अपन चुड़ी फोइर,सेनुर मेटा, मंगल सूत्र तोड़ि वैधव्य धारण क' लैछ.रंग विरंगा साड़ी, ब्लाउजक जग्गह उजरा साड़ीक परिधान मे आबि जाइछ. मुदा विलापक प्रथा नै छै. कींवदन्ति ऐछ जे- महाभारत काल मे हिजड़ा गण वनवासी छल. ओइ ठाम एकरा सब कें राक्षसक उत्पात भेलै.जकरा सं संघर्ष क' अर्जुन पुत्र ' अरवण' आजाद करौलनि. तें इ सब रक्षक बुझि अपन पति स्वीकार क' लेलक.मुदा अरवण,युद्धभूमि मे लड़ैत ओही दिन मृत्यु गति के प्राप्ति क' लेलनि.ओइ दिन सं इ, एकदिना पावनि मनेवाक रेवाज आइ धरि निरन्तरता बनौने ऐछ!

आइ सबहक जुटान एकठाम भेल ऐछ, पूरा चुप्पी मुदा मोन अशान्त सन! शान्तिक मृत्यु सं सब मोने मोन खुश भेल ऐछ,जए दहि एकरा त' मोक्ष हेतै.गै बिन्दा,ओना थोड़े पैट हेतौ चप्पल, जुत्ता ला ने.आ सब मिलि लहाश कें चप्पल, जुत्ता सं पीटैत कहैए- जो... जो गै फेर एम्हर नै अबिहें, जनमिहें त' मनुक्ख भ' कें! गै किरणिया तों किए नोर बहबै छें,पोछ! नै त' इ फेरो एम्हरे घुरि औतौ.पुन: शान्ति पसरि गेल ऐछ!अधरतिये मे लहाश कें खेत मे आनल गेल. हिन्दु धर्म मानितो लहास जरएब असगुन बुझल जाइछ. कियो बहरी बला लोकक दर्शन सं एकरा मोक्ष नै भेटतै तें चुपचाप खाधि मे द' झांपि चल. मना जे अगिला जन्म मे मनुक्ख होउ, नर- नारी किछो मुदा बीचला लोक नै.
आइ चारू भर खुशीक च'प उनार गप्प पसरल छै.सब हिजड़ाक करेजा सुप सन भेल बुझू.ओना निर्णय समाजक हो कि न्यायालयक सार्थके बुझू.इ निश्तुकि बुझू जे सब निर्णय सब पर लागू नै होइछ.आ कि एना कहू जे सब बात सं सब लाभान्वित नहि होइछ. मुदा तै सं कि आइ 15 अप्रैल 14 हमर सबहक जीवनक इतिहास स्वर्णक्षार सं लिखल सन! किए त' अझुके दिन सर्वोच्च न्यायालय हमरा सब कें पिछड़ी जातिक श्रेणीक बराबर आरक्षणक घोषणा कएलक! आब पढ़ल लिखल कें नोकरी मे जग्गह सुनिश्चित सन. ओना पहिनहियो सं हमर लोक सब शिक्षक, प्रोफेसर, पार्षद आदि त' भेले छै.मुदा आब अधिकार संग हेतै.हं अधिकारक बात पर मोन पड़ैए वर्ष-94. जहिया हम सब टी.एन. शेषण कें नाचि गाबि मोन बहटारने रही.उएह त' पहिल बेर हमरा सब कें विधिवत मताधिकार प्रयोगक अधिकार दियौलनि.ओइ सं पहिने हमरा सब कें मतदानक ने कोनो अधिकार छल आ ने कोनो सरोकार.आब.. आब हमहूं सब सरकार भ' सकै छी आ हमरो सबहक सरकार बनि सकैए जेना एखनहु धरि अहां सबहक ऐछ! बाबा ओंघाइ छीयै की?
ढ़ोल, हरमुनिया आ हाथ माइक नेने साड़ी ,समीज बालीक हंजेड़ अनचोके बुचकुन कक्काक आंगन में ढ़ूकि गेल।

कनिञां घोघ तनैत,बुच्ची सम्हारैत,नुकबैत कोठरी ध' लेलनि।काकी छाती पिटैत-रौ दैब रौ दैब पोता- पोता रटलौं त' एलीह भगवती। तै पर सं हिजड़ाक झुण्ड।।

क्षणहि मे सगरो टोल दलमलित!स्त्री गणक हेंज अंगना सं दुरा धरि सोहरि गेल छल।पमरियाक जग्ग्ह हिजड़ा देखि उत्सुकता दुन्ना।फरमाइस क' के गीत सुनै गेल।
नाच-गानक बीच कक्का काकी के एक हजार थम्हबैत लियय किछु कपड़ा लत्ता जोड़ि विदा करू।
यै मां इ लौथ एक हजार आओर मिला द' देथुन।

गै मए गै मए,जेना बेटा जनमल होइ!
मां,बेटा- बेटी नै,मए हेबाक सुख हर्षित केलक!

हिजड़बाक मुखिया आओर पांच सए लगा घुरबैतकहलक-"मइयां,हे इ आशीष।
" बेटीये से ने बेटा,बेटी सम्हारू त' जग चलतै।"

-मुन्ना जीक साहित्यिक यात्रा कथा लेखनसं प्रारम्भ भेल छल. पहिल कथा "मनियाडर" झंझारपुरक कथा गोष्ठी (1993) मे पाठक संग। पहिल प्रकाशनार्थ कथा "स्वीकार" कर्णामृत (1994), दोसर प्रदीप बिहारीक संपादन मे सझिया संगोर "भरि राति भोर’ मे (१९९७)। तकर अतिरिक्त विदेह, मिथिलांगन....मे. ओइ बीच बीहनि कथा विधा फरिछाब' मे लागल आब ओ पाटि धऽ लेलक तखन पुन: कथा दिस.... क्रमश: । अपन तेरहम आ हिजड़ा जीवन पर लिखल टटका कथा!

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