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रबीन्द्र नारायण मिश्र

सीमाक ओहि पार (धारावाहिक उपन्यास)

हमर ससुर स्वर्गीय गणेश झा (पण्डौल डीहटोल)क स्मृतिमेसादर ससिनेह समर्पित!-रबीन्द्र नारायण मिश्र

 

-26-

 

गया आबि तँ गेलहुँ मुदा एहिठाम पिंडदान मोसकिल बुझा रहल छल । हमरा देखितहि जकरे देखू घर बंद कए लैत छल । फल्गुमे तँ लोकक मिस पड़ि रहल छल । तरह-तरहक लोक आ ततबे तरहक पंडासभ पितरसभकेँ पिंडदान करेबामे व्यस्त छलाह। जखन कोनो पंडा हमरा लग ठाढ़ हेबाक हेतु तैयार नहि भेल तँ थाकि कए हम एसगरे प्रेतशिलापर चढ़ि गेलहुँ । औ बाबू! एहिठाम पैर  धरितहि चारूकातसँ प्रेतसभ हमरा दिस दौड़ल । जेना कुकुरकेँ देखि कए दोसर कुकुर भुकए लगैत छल,सएह हाल हमर भए गेल। चारूकातसँ प्रेतसभ हमरा गोलिआ लेलक।

गजब हाल छल । गयामे नित्य एतेक पिण्डदान होइत रहैत अछि तथापि प्रेतसभ एतहि रने-बने बौआ रहल अछि । भूतक पथार लागल अछि । पंडासभ जे एतेक मंत्र -तंत्र करैत रहैत छैक तकर कोनो फएदा नहि बुझा रहल अछि । सभ भूत तँ ठामहि पड़ल अछि । प्रेतशिलापर कनीके आगू बढ़ले रही कि एकटा बेस सुन्नर,गोर-नारि स्त्रीकेँ जोरसँ मुड़ी झारैत देखलहुँ । चारूकातसँ पंडा ओकरा  घेरने मिरचाइक झोंका दए रहल छल । मंत्र पढ़ि रहल छल। तैओ ओ स्त्री काबूमे नहि आबि रहल छलैक ।

"बड़ जोरगर प्रेत पैसि गेल छैक ।"-पंडा बाजल ।

"किछु करिऔक, हमसभ बहुत परेसान छी ।"-ओहि स्त्रीक पति बाजल ।

"देखिए रहल छी जे मामिला कतेक कठिन अछि । अपना भरि प्रयास तँ कइए रहल छी। किछु अहूँ करिऔक ।"

"जे कही, से करबाक हेतु हमसभ तैयार छी । मुदा एकरा प्रेतवाधासँ मुक्त कराउ।"

पण्डासभ तरह-तरहसँ ओहि स्त्रीक भूत झाड़बाक व्योंतमे लागल छल । हम प्रेतशिलापर ऊपर चढ़ए लगलहुँ । कनीके आगू बढ़ल छलहुँ की सुग्गाक अबाज बुझाएल । सरदार पंडा बँचि गेलाह । संयोगसँ समयपर इलाज भए गेल । हम ओहीसभमे व्यस्त भए गेल रही ।-सुग्गा बाजल ।

" कतेक दिनपर एकटा नीक समाचार भेटल ।"

"आब अहाँ आइ रूकि जाउ । काल्हि हम हुनके पठा देबनि । ओ अहाँक काज करा देताह ।"

"ठीक छैक ।"

हम सुग्गाक बात मानि वापस होइत रही कि ओहि स्त्रीकेँ एकटा पण्डाक संगे जाइत देखलहुँ ।

 

-27-

 

दिनभरिक धमाचौकरीसँ हम बहुत थाकि गेल रही । पूर्वजकेँ मुक्ति करबाक जोगारमे कहीं हमही ने मुक्त भए जाइ। कनिको सक्क नहि लागि रहल छल । सौंसे गयामे हमर प्रचार भए गेल छल । केओ  हमरा अपना ओहिठाम रहए देबाक हेतु तैयार नहि छल । हारि कए हम पाकड़िक गाछक शरणमे चलि गेलहुँ ।

" अहाँ अनेरे बौआ रहल छी । सोझे हमरा लग आबि जएल करू ।"

"सोचने रही जे कोनो धर्मशालामे चलि जाइ मुदा सभ फटक बंद कए लैत अछि । सभकेँ हमरासँ डर होइत छैक ।"

"हम अहाँकेँ परेसान देखि सुग्गाकेँ पठओने रही ।"

"ओ तँ भेटल रहए । सरदार पंडाक हालचाल कहैत रहए।"

"आओर किछु नहि कहलक?"

"चर्चो नहि केलक ।"

"सएह कहू?"

"बात की रहैक?"

" बात की रहतैक । सरदार पंडाकेँ दलालसभ तत मारि मारलक जे ओकर अंतिम हालति भए गेल। संयोग एहन भेलैक जे महाकाल ओहि समयमे आएल रहथि । हम हुनका गोहरेलहुँ जे एकर किछु करिऔक । हमर बात मानि ओ सरदार पण्डाक जान बँचा तँ देलखिन मुदा ईहो कहलाह जे ई बेसीदिन नहि चलत । बहुत तँ छ मासमे एकर छुट्टी भए जेतैक।"

हम थाकल-ठेहिआएल पाकड़िक गाछ लग पहुँचलहुँ। ओ हमरा लेल चाह-पानक ओरिआन केने छलाह ।

"अहाँ ई सभ कोना केलिऐक?"

"ताहिसँ अहाँक कोन मतलब? चाह पीबू आ आराम करू। काल्हि देखल जेतैक ।"

सुग्गा अपन सासुर चलि गेल । रातिभरि हम आ पाकड़ि भाइ गप्प करैत रहि गेलहुँ ।

"सरदार पण्डा के छैक से बुझलहक?"

"हम कोना बुझबैक?"

"ई पूर्व जन्ममे श्याम छल । मरलाक बाद बहुत दिनधरि अंधलोकमे पड़ल रहल। ओहिठाम तिरपित भेटलखिन। ओएह जेना-ने-तेना एकरा पैरबी कए गया पठा देलखिन । मुदा चालि, प्रकृति बेमाए, ई तीनू संगे जाए । सएह एकरो संगे लागू होइत अछि। जेहने फँचाड़ि ई पहिने रहए, तेहने रहि गेल ।"

" सुग्गा कहि रहल छल जे सरदार पण्डा ओकर सासुरक लोक छैक ।"

से सुनि ओ हँसि कए कहैत छथि-

"एखन थाकल छह । सुति जाह । काल्हि गप्प करब ।

 

-28-

 

प्रातभेने हम फेर प्रेतशिला पहुँचलहुँ । ओतए  पहुँचितहि कतहुसँ मधुर ध्वनि सुनाएल। किछु देखा नहि रहल छल । किछु बुझेबे नहि करए जे बात की थिक? खैर! आगू बढ़लहुँ । जँ-जँ प्रेतशिलापर आगू बढ़ैत गेलहुँ मधुर ध्वनि ततेक स्पष्ट होइत गेल । हमरा आगू-पाछू केओ  कतहु नहि छलाह । मोनमे कनी-मनी डरो होइत छल कि सुग्गा देखाएल । हमरा जान-मे-जान आएल ।

"की बात छैक भाइ । परेसान लागि रहल छी ।"

"! कखनसँ मधुर ध्वनिक अबाज सुनि रहल छी मुदा केओ  देखा नहि रहल अछि। काल्हि तँ बहुत रास प्रेतसभ एहिठाम घुमि रहल छलाह । कहि नहि आइ ओ सभ कतए निपत्ता भए गेलाह?"

"सभ अंधलोक चलि गेलैक अछि । ओहिठाम सभक उपस्थिति हेतैक तकरबादे कतहु जा सकैत अछि । ऊपर जैओ ने सभटा अपने बुझा जाएत ।"

"कतेक ऊपर जइऔ । आब तँ डरो लागि रहल अछि।"

"डर कथीक लागि रहल अछि?"

"से हम अपनो नहि बुझि पाबि रहल छी तँ अहाँकेँ की जबाब देब ।"

हमसभ गप्पमे लागले छलहुँ की पाकड़िक गाछ सहटल प्रेतशिलाक लगीचमे आबि गेलाह । पाकड़ि गाछकेँ देखि मोन हल्लुक भेल मुदा ई नहि बुझि सकलिऐक जे ई गाछ होइतहु एना केना चलि फिरि रहल अछि?

" किछु सुनि रहल छी कि नहि?"-पाकड़िक गाछ बजलथि।

हम जौँ -जौँ उपर जाइ मधुर ध्वनिक अबाज बढ़िते गेल। लागल जेना बहुत दूर केओ  गाबि रहल अछि-" ओ जाने बाले हो सके तो लौट के आना...… सुग्गा ओहि गीतकेँ सुनि कए भाव विभोर भए गेलथि । मुदा हमरा चिंता होइत छल जे एहन करुणस्वरमे एहन एकांत स्थानपर के गाबि रहल अछि?

हमर मोनक बात ओ बुझि गेलाह ।

"अहाँ अपन काजपर ध्यान दिअ । आओर बातसभ साँझमे गप्प करब ।"

"ई कहू जे हमरा ने देह अछि ने कोनो अंग, ताहि हालतिमे हम पिण्डदान कोना करबै?"

"ई बात जे आब फुरा रहल अछि से पहिने किएक ने सोचलहुँ । अहाँ जे छी से कोनो आइए तँ नहि भेलहुँ अछि ।"

"की बात छैक, आइ अहाँकेँ बहुत तामस भए रहल अछि?"

"तामस की होएत कपार । सासुर गेलहुँ जे कनी चैनसँ रहब । तीर्थो कए लेब । मुदा ओहिठाम तँ दोसरे लफड़ा भेल अछि। दलालसभ सरदार पण्डाकेँ पिटि देलकै, तहिआसँ ओ रहि-रहि कए बड़बड़ाइत रहैत छथि । ककरा-ककरा ठीक करबै ।"

"बात तँ सही कहैत छी । बेसी परेसानी कइओ कए की होइत छैक? जे हेबाक सएह होइत छैक ।"

कनीक आगू बढ़लहुँ तँ काल्हि बला मौगीकेँ फेर ओहिना देखलिऐक । ओ सभ रातिभरि मंत्र-तंत्रमे लागल छल तैओ भूतक छाया ओकरापरसँ नहि हटल रहैक । हम आगू बढ़ैत गेलहुँ। सुग्गा पाकड़िक गाछक संगे हमरा मदति हेतु चलैत रहलाह । कहुना-कहुना कए हम प्रेतशिलाक शिखर धरि पहुँचि गेलहुँ ।

 जेठक दुपहरिआ छलैक । टहाटही रौद छल । घामे-पसीने हम बेहाल रही । पाकड़िक गाछ अपन छाहरि चारूकात पसारि देलाह । सुग्गा सेहो गीत गाबए लागल-"पंछी जपए हरिनाम बिरिछ पर ।"

"हमरा नहि रहल गेल । भबा कए हँसी लागि गेल ।"

"की बात छैक भाइ! बहुत जोरसँ हँसि रहल छी ।"

"ई पराती गाबक समय छैक?"

"समयक हिसाब हमरा-अहाँपर थोड़े लागू होइत छैक?"

"से किएक?"

"जाबे हम अहाँ देहसँ बान्हल छलहुँ ताबे नेनासँ बूढ़ होइत रहलहुँ । सदिखन समयक प्रभावमे रहलहुँ । आब की होएत?"

"ई तँ अहाँ विचित्र बात कहि रहल छी, सुग्गा भाइ! "

"हमरा होइत छल जे अहाँकेँ अपन सीमा पता अछि।"

"आइ तँ अहाँ रहस्यात्मक बातसभ कए रहल छी ।"

"हदे भए गेल । हम तँ ओएह कहि रहल छी जे बस्तुतः हम-अहाँ छी । हमसभ समयक सीमाक ओहि पार छी । तेँ ने सौंसे गयामे केओ पिण्डदान करेबाक हेतु तैयार नहि भेल ।"

सुग्गाक बात सुनि-सुनि हमर माथ जोर-जोरसँ टन कए लागल । हम ठामहि बैसि गेलहुँ। हमरा अपसिआँत देखि सुग्गा हमर लगीचमे आबि गेलाह । पाकड़िक गाछक पातसभ जोर-जोरसँ हिलए लागल । हम किछु नहि बुझि रहल छलहुँ ।

-29-

 

रातिमे पाकड़िक गाछेपर रहि गेलहुँ । भोरे  निन्न टुटल तँ सुग्गा पाकड़िक गाछपर बैसल हरिस्मरण कए रहल छलाह। चारूकातक माहौल हुनकर मधुर ध्वनिसँ मनोरम भए रहल छल । सूर्य भगवानक तेज भोर होइतहि प्रखर भए गेल छल । सुग्गाक भजन सुनि पाकड़िक गाछक पात-पात आनंदमे झुमि रहल छल । एहन नीक भोर सभदिन होअए । हुनकर भजन समाप्त भेलनि । ताबे केओ  भफाइत चाह लए उपस्थित भेल ।

"चाह पिबि लिअ ।"-सुग्गा बजलाह ।

 चाहक संगे गप्प-सप्प सेहो शुरु भेल ।

"हमरा नहि बूझल छल जे अहाँ एतेक नीक गबैआ छी।"

"अहाँकेँ बुझले की अछि? " से कहि ओ भभा कए हँसि देलाह । हमरा लोकनिकेँ हँसी ठट्ठा करैत देखि पाकड़िक गाछ  सेहो लाड़ि देलथि।

"की बात छैक? आइ भोरे-भोर बहुत प्रसन्न लागि रहल छी। लगैत अछि सासुरमे बहुत मान-दान भेल अछि ।"

"संयोगसँ हमर सारि आबि गेल रहथि । गप्प-सप्पमे समय नीकसँ कटि गेल ।"

"आब खोललहुँ ने असली रहस्य । तैँ एतेक मधुर गीत निकलि रहल अछि । "

"अहाँकेँ तँ बुझले अछि ।"

ओ हँसि देलाह । फेर हमरा दिस इसारा करैत कहैत छथि-

अपन पिपही सम्हारू । हम एकरा कतेक दिन धरि धेने रहब?"

से कहि ओ दिव्यशक्तिसँ पूर्ण पिपही हमरा हाथमे पकड़ा देलाह । हम आश्चर्यचकित रही जे ओ एतेकदिन धरि ओकरा केना रखने रहलाह । हमरा तँ बिसरा गेल छल जे हमर पिपही हुनके लगमे अछि ।

प्रेतशिलाक शिखरपर पिपहीमे   गजबकेँ चमक लागि रहल छल । हमरा मोन भेल जे एकर कोड नम्बर पाँच दबा कए देखैत छी । एक-दू-तीन तँ कए बेर देखि चुकल छी । हम सएह करैत छी। से करितहि हमरा मुँहसँ निकलि गेल -"अद्भुत,आश्चर्य! चारूकात अनेकानेक ग्रह.नक्षत्र,तारा मंडल सभक शृंखला ओतए  निकलैत देखा रहल छल । दिव्यलोक,अंधलोक सहित तमाम ग्रह नक्षत्रसभ ज्योतिर्मय भए रहल छल । लगैत छल जेना समस्त सृष्टि एकाकार भए गेल अछि । एहन अद्भुत दृश्यक कल्पना हमरा नहि छल मुदा से हम सद्यः देखि रहल छी ।

तिरपित,शरद,श्याम,मंजुषा,रागिनी,निशा, ज्योतिषीजी, विमला, प्रभु,सभ एक-एक कए प्रेतशिलापर उपस्थित भए गेलाह। आगू-आगू महाकाल चलि रहल छलाह। सभ मुक्तिक कामनासँ प्रेतशिलापर हाकरोस कए रहल छलाह। से देखि महाकाल जोरसँ हँसलथि।

"ककरा-ककरा मुक्त करबह? " -से कहि ओ जोरसँ ठहाका देलाह । जाबे हम किछु बुझि सकितहुँ ओ निपत्ता भए गेलाह ।

हम बहुत परेसान भए गेलहुँ । पिपही  कोड नंबर ९ दबा देलिऐक । तुरंत कतहुँ सँ अबाज आबए लागल -

"ई अहाँक अंतिम प्रयास अछि । जँ फेर एना करब तँ ई पिपही स्वतः बंद भए जाएत।"

"हमरा पिपही नियमसभ बिसरा गेल छल । आब एहन गलती नहि होएत । "

लागल जेना एकाएक सभ किछु बिला गेल । हम पाकड़िक गाछ पर सुग्गा लग पहुँचि गेलहुँ ।

हमरा परेसान देखि पाकड़िक गाछ कहए लगलाह -

"हमरा बुझाइत अछि अहाँ बुते पिण्डदान नहि पार लागत।"

"हम अपनहुँ नहि बुझि पाबि रहल छी जे आब की करी, कोना करी? एतेक प्रयास कए प्रेतशिलाक शिखर धरि गेलहुँ । ओहिठाम तँ सौंसे सृष्टिए आगू आबि गेल । ककर- ककर पिण्डदान हम करब ।"

" अनकर गप्प छोड़ू । पहिने अपन पिण्डदान तँ करबा लिअ । "-हुनकर बात सुनि हम गुम्म पड़ि गेलहुँ ।

"पण्डोसभ सएह कहि रहल छथि ।"

"अच्छा जे हेतैक, से हेतेक । आब साँझ पड़ि रहल छैक। चाह-पान करू । आराम करू। काल्हि देखल जेतैक ।

ताबे  गरम-गरम चाह आबि गेल । हम सभ चाह पिनाइ शुरु केलहुँ । एकाएक सुग्गा भभा कए हँसए लगलाह ।

"की भेल?"

"की कहू? हमर सारि तँ पछोड़ धए लेने छल । बहुत मोसकिलसँ एहिठाम आबि सकलहुँ।

"हम ई गप्प नहि बुझि पाबि रहल छी जे अहाँ सभ के छी? कखनो सुग्गा बनि जाइत छी। कखनो पाकड़िक गाछ भए जाइत छी । कखनो सासुर चलि जाइत छी । आखिर एकर रहस्य की छैक?"

हमर सभक छोड़ू । अहाँ अपने के छी से बुझल अछि? हाथ-पैर किछु छनि नहि आ चललाह अछि पिण्डदान करए?- सुग्गा चौल केलक ।

 

-30-

 

साँझमे हम ,सुग्गा आ पाकड़िक गाछ गप्प-सप्प करैत रही।

"अहाँ दुनू अपन रहस्य किछु खोलबै कि संगे लेने चलि जाएब?"-हम पुछलिऐक ।

"अच्छा सुनू । ई बात बहुत पुरान अछि । हमर नाम छल रूप राय । भैयारीमे हम जेठ रही । हमर सभक पिता मुकुंदपुर सहरमे मानल व्यापारी छलाह । सभ तरहेँ संपन्न रहथि। क्रमशः हम जबान भेलहुँ । हमर बिआह मुकुंदपुरक लगीचेमे एकटा बेस प्रतिष्ठित परिवारमे तय भेल । धूमधामसँ बिआह भए गेल । बरिआती बिआह करा कए वापस जाइत रहए ।  संगे कनिआ सेहो रहैक । मुकुंदपुरसँ कनीके फटकी सभ सुस्ता रहल छल । संयोगसँ एकटा महात्मा ओतए ध्यान करैत रहथि । बरिआती सभ किछु लफड़ा केलक । महात्माजीक ध्यान टूटि गेलनि । ओ बहुत क्रुद्ध भए गेलथि । क्रोधसँ हुनकर आँखि लाल-लाल भए रहल छल । ओ तामसे व्यग्र छलाह । हमसभ हुनका बहुत नेहोरा केलहुँ मुदा ओ शांत नहि भेलाह। आ तुरंत  हमरा श्राप दए देलाह

"तोरा लोकनिक दुष्टताक फल अवश्य भेटतौक ।"-महात्मा बजलाह । ओ कमण्डलसँ पानि निकालि कहैत छथि-

"आइ दिनसँ तूँ ठामहि पाकड़िक गाछ भए जेबह । "

ताबते कनिआ सामने आबि गेलि।

सरकार माफ कए दिऔक । धोखासँ गलती भए गेलेक। हमसभ अहाँकेँ नहि चिन्हि सकलहुँ । हमरा उपर दया करू । हम एतेकटा जिनगी कोना काटब?"- से कहि नवकनिआ जोर-सोरसँ कानए लगलीह । महात्माजीकेँ दया आबि गेलनि ।

"हमर श्राप तँ वापस नहि भए सकैत अछि। एकरा पाकड़ि गाछ बनए सँ आब केओ  नहि बचा सकैत अछि । तूँ दिव्यलोकमे राजनर्तकी भए ओतहि सुख करबह । कालान्तरमे तोहरसभक फेर भेंट होएत ।"

"हमरा सभसँ बहुत गलती भेल । हमर उद्धार कोना होएत?"-से कहि हम हुनकर पैर पर खसि पड़लहुँ।

तूँ इच्छाधारी भए जेबह, इच्छानुसार अपन देह बदलि लेबह। जतए चाहबह आबि जा सकैत छह। कालान्तरमे तोरे गामक एकटा बच्चा तोहरसभक उद्धार करत।"-से कहि ओ महात्मा लुप्त भए गेलाह ।

बरिआतीमे हाहाकार मचि गेल । ने ओतए बर छल ने कनिआ । बरक भाएक सेहो अता-पता नहि रहैक । देखिते-देखिते मुकुंदपुरमे एकटा पाकड़ि गाछक उदय भेल । तहिआसँ ओ गाछ गामक समस्त घटनाक जीवंत गबाह बनि अपन ऊद्धारक प्रतीक्षा कए रहल छल। ओकरा एहि बातक ध्यान नहि रहि गेल रहैक जे ओ बालक के अछि जे ओकर उद्धार करत । क्रमशः समय संगे रमि गेल । बात तँ विचित्र छलैके। पाकड़िक गाछ चलि-फिरि रहल छल। सुग्गामे सभटा चेतना छलैक । एहि हद धरि ओ बुझैत छल जे सासुर पहुँचितहि सभकेँ चिन्हि गेलैक । मुदा ओ तखन पकड़ा गेल जखन फेर सुग्गाक भेख धए सासुरसँ वापस होइत रहए ।

 

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