प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका

विदेह नूतन अंक
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आचार्य रामानंद मंडल

माय/ मेघ/ छठ परब

माय

 

माय तोहर प्रेम

प्रेम पीड़ बनैत हैय।

 

माय

माय तोहर प्रेम

प्रेम सपना बनैत हैय।

 

माय

माय तोहर प्रेम

प्रेम आंसू बनैत हैय।

 

माय

माय तोहर प्रेम

प्रेम भय बनैत हैय।

 

माय

माय तोहर प्रेम

प्रेम मुक्त करैत हैय।

 

माय

माय तोहर प्रेम

प्रेम चान तारो में दिखैत हैय।

 

माय

माय तोहर प्रेम

रामा प्रेम सपना में दिखैत हैय।

 

 

मेघ

 

मेघ तोहर केतेक रूप ?

तुलसी के घोड़ा,

कालिदास के दूत,

शास्त्री के नेता,

जे उपरे उपरे

पी जाइत छे !

मेघ तोहर केतेक रूप ?

मेघ छे कि बादल !

मेघ बईन के बरसईयत,

बादल बईन के गरजईत,

मोर के नचऔले,

श्याम वनसी बजबऔलए।

मेघ तोहर कतेक रूप ?

पागल परेमी तूं बईन के,

धरती के पिआसल देइख कए,

परबत जेना उरोजो के छूइ कए।

अपन बरसा बून्न से,

कएं दय छी ,

धरती के सस्य सामला !

मेघ रामा कतेक रूप।

 

 

छठ परब

 

प्रकृति परब हैय।

सूर्य के आराधना हैय।

 

छठ परब

नदी तालाब संग

सूर्य के आराधना हैय।

 

छठ परब

जल सूर्य के संबंध

बरखा चक्र बतबै हैय।

 

छठ परब

मंत्र पुजारी बिन

सूर्य के आराधना हैय।

 

छठ परब

सूर्य मंदिर में

सूर्य के पूजा हैय।

 

छठ परब

प्रकृति परब

आराधना पूजा हैय।

 

छठ परब

ठेकुआ भोग लागैय

प्रसादी में छूत मानैय।

 

छठ परब

प्रकृति परब के

रामा गरिमा बचनाइ हैय।

-आचार्य रामानंद मंडल, सीतामढ़ी।

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