प्रणव झा
अम्मल
जे खाय अछि गुटका
भऽ जाय अछि गलचुटका।
जे खाय अछि पान
दै अछि सभ के ज्ञान।
जे पीबय अछि चाय
तरोताजा भऽ जाय।
रोज पिबय जे दारू
भऽ जाय अछि बीमारू।
जे पीबय अछि पानि
बनल रहय अछि जुआनि।
पैघ के करय जे आदर
पाबय नेहक चादर।
जे पोथी पढय अछि
ज्ञान ओकर बढ़य अछि।
भोरे करय जे ध्यान
होय ओकर कल्याण।
जे मेहनत करय अछि
आगा ओ बढ़य अछि।
नेह बढाबय अछि जे
नेहे पाबय अछि ओ।
ताकय जे मंच माला
बुझु दाल मे काला ।
चलु आब हम जाय छी
घुरि-फिरि के आबय छी।
- प्रणव झा [राष्ट्रीय परीक्षा बोर्ड]
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