१.१७.आशीष अनचिन्हार-भारतीय ज्ञान परंपरामे भवनाथ झाजीक महत्व

(मैथिली गजल विशेषज्ञ, मैथिली वेब पत्रकारिता विशेषज्ञ, ब्लॉगर, शोधकर्ता, आलोचक, संपादक। संपर्क-8134849022)
भारतीय ज्ञान परंपरामे भवनाथ झाजीक महत्व
एहि आलेखमे "भारतीय" शब्द दक्षिण-पूर्व एशियाक अधिकांश देश लेल प्रयोग भेल अछि कारण प्राचीन कालमे ओहि देश सभहक अधिकांश ज्ञान-विज्ञान-धर्म-दर्शन आदिक प्राथमिक स्रोत भारत छल। एहन नै जे सभ चीजक स्रोत भारते छलै, भारतोक लोक सभ उपरोक्त क्षेत्रसँ बहुत किछु सिखने छै।
विद्वान बहुत भेल छथि, बहुत छथि आ बहुते हेबो करता। तहिना धनवान, बलवान एवं आनो सार्थक "आन" युक्त लोक एहि धरतीपर होइत रहलाह अछि आ भविष्योमे हेबो करता। मुदा एहि लेखमे हमर अभिप्राय एहन "आन" युक्त लोक सभसँ अछि जिनका कारणे या तऽ "मिथिला" या तऽ "मैथिली" या "मैथिल"केँ फायदा भेलै। बहुत एहनो "आन" युक्त लोक सभ छथि जिनकासँ मिथिला-मैथिली वा मैथिलकेँ कोनो फायदा नहि भेलै, हमरा मोनमे एहन लोक सभ लेल कोनो अनादर नहि अछि मुदा एहन लोक सभ मात्र अपन जीवन-यापन लेल विद्वान, धनवान-बलवान छथि आ से हमरा लेल विवेच्य नहि। बहुतो एहन "आन" युक्त लोक सभ छथि जे मिथिला-मैथिली वा मैथिल लेल काज करबाक प्रयास करैत छथि संगहि ओ सभ एहि काजक प्रत्याशामे सेहो तुरंते लागि जाइत छथि आ जँ एक समय धरि हुनका प्रतिदान नहि भेटैत छनि तँ मिथिला-मैथिली वा मैथिलकेँ अवाच्य कहि अपनाकेँ मिथिला-मैथिली वा मैथिलसँ कात कऽ लैत छथि। हम मानैत छी जे हुनकर एहि क्षणिक काजसँ एक-दू प्रतिशत नीक काज मिथिला-मैथिली वा मैथिल लेल भऽ जाइत छै। आ जँ एहि बातक चर्चा कतहुँ हो से नीक आ किनको आपत्ति नहि हेतनि मुदा एहिठाम हमरा लेल ओहो विवेच्य नहि।
जँ उपरोक्त कसबट्टीपर हम भवनाथजीकेँ कसैत छी तऽ कहि सकैत छी जे भवनाथ जी एक नमहर समयसँ अपन विद्वतापूर्ण कार्य कऽ रहल छथि तँइ ई मानबामे दिक्कत नहि जे हिनकर काज क्षणिक नहि छनि। हिनकर काजसँ मैथिली आ मिथिला दूनूकेँ किछु फायदा भेल छै, ताहूमे मैथिलीकेँ कम आ मिथिलाकेँ बेसी।
मैथिलीक हिसाबसँ देखी तऽ हिनक किछु कथा ओ बीहनि कथा प्रकाशित भेल अछि आ मुदा क्रमशः हिनक साहित्यिक रचना खियाइत गेल। हिनकर साहित्यिक कर्मपर अही विशेषांकमे आन-आन लेखक द्वारा मूल्यांकन कएल गेल अछि।
मिथिलाक हिसाबसँ देखी तऽ बहुत रास पुरान पोथीक संपादन ई केलाह, बहुत रास पांडुलिपि उद्धार केलाह आ बहुत रास पोथीपर टीका-टिप्पणी-व्याख्या कऽ पाठक लेल सुबोध बनेलाह। मुदा ई काज सभ भवनाथजी एकटा नव दृष्टिकोणक संग केलाह। ई कोन दृष्टिकोण छै तकर चर्च कारबसँ पहिने हम प्राचीन कालमे संस्कृत भाषा ओकर लिपि आ प्राचीन भूभाग सभपर बात करी।
प्राचीन कालमे संस्कृत भाषा तऽ छल मुदा ओकर लिपि स्थानीय रहैत छल जेना मिथिलामे संस्कृत तिरहुता लिपिमे लिखल गेल, बंगालमे बंगाली लिपिमे, उत्कल (ओड़ीसा)मे उड़िया लिपिमे तेनाहिते तमिलनाडुमे तमिल लिपिमे.... बल्कि आजादीक बादो धरि इएह भऽ रहल छै। स्थानीय तौरपर बंगालमे एखनो बंगाली लिपिमे संस्कृतक पोथी प्रकाशित भऽ रहल छै। किछु समय पूर्व UPSC परीक्षा लेल सर्वसम्मतिसँ निर्णय लेल गेलै जे संस्कृतक लिपि देवनागरी हेतै। तँइ आब जे कियो तमिलनाडु वासी वा आन प्रांत वासी UPSC परीक्षा देताह संस्कृत भाषासँ हुनका देवनागरिए सीखऽ-पढ़ऽ पड़तनि। सभकेँ.. पूरा भारतकेँ। मुदा एहिसँ पहिने जहिया संस्कृत लेल स्थानीय लिपि रहैत छल तहिया स्थानीय दृष्टिकोण, स्थानीय प्रथा सेहो समाहित भऽ जाइत छल, मने एकै ग्रंथ बंगालक पाठ अलग भऽ जाइत छै, ओड़िया पाठ अलग आ दक्षिण भारतीय पाठ अलग। स्थानीय प्रथा तऽ एखनो समाहित होइत छै। तेनाहितो मिथिलाक पाठ आ प्रथा सेहो अलग रहल हेतै मुदा मैथिल सभ दिनसँ सहिष्णु रहल अछि तँइ ओ मिथिला पाठ बिसरि आन-आन प्रकाशक जेना गीताप्रेस आदि बला पाठ केर प्रयोग करऽ लगलाह। आ अही चक्करमे प्राचीन शास्त्रक मिथिला पाठ विलुप्त भऽ गेल। मुदा जखन भवनाथजी शास्त्र सभकेँ संपादित करब शुरू केलनि तऽ ओकरा विलुप्त भेल मिथिला पाठ ओ प्रथाक संग पाठकक सोंझा आनऽ लगलाह। बहुत संभव जे भवनाथजीसँ पहिने एक-दू विद्वान मिथिला पाठ दिस धेआन देने हेताह मुदा ओ सभ ओहि बाटपर दूर धरि नहि चलि सकलाह। भवनाथजी एहि बाटपर बहुत दूर धरि एलाह।
मुदा सभ शास्त्रक मिथिला पाठ केर निर्धारण असगर भवनाथजी नै कऽ सकै छथि। स्वाभाविक छैक एतेक विशाल शास्त्रक संपादन-पाठ निर्धारण एकै आदमीक वशमे नहि छै। मुदा ईहो बात सत्य जे भवनाथजी एकर पैरोकार बनि एकटा अलग बाट बना चुकल छथि। ई एकटा नव दृष्टिकोण भेल आ हिनक पहिल महत्व सेहो। ई हिनकर काजक पहिल महत्व अछि मुदा अही एक महत्व लेल हुनका असीम मेहनति करऽ पड़ैत छनि। कोनो एक भाषाक पाठ ओ प्रथा केर संकलन करब, ओहि पाठ ओ प्रथामे समय-समयपर आएल अंतरकेँ अनाकब आ तकर बाद ओहि सभमेसँ छानि कऽ मैथिल पाठ ओ प्रथाकेँ समाने आनब श्रमसाध्य ओ समयसाध्य काज छै। तँइ एकटा जे हिनक महत्व छनि से यूनिक छनि।
भवनाथजीक दोसर महत्व ई अछि जे ई हल्लुक काज नहि करैत छथि। मात्र देखेबाक लेल काज नहि करैत छथि। एहन काज हाथमे लैत छथि जकरा पढ़लासँ बुझाइत छै जे ई काज एकदम अनिवार्य छलै आ समाज लेल उपयोगी छै आ ताहि लेल जतेक श्रम जतेक समय चाही से भवनाथजी दैत छथिन।
हिनक तेसर महत्व छनि जे ई अनावश्यक मंच-माला-माइक केर फेरमे नहि रहैत छथि। जे आवश्यक छै ताही ठाम उपस्थित रहैत छथि। एकरा एनाहितो कहल जा सकैए जे ई साहित्यिक गोलौसीसँ दूर छथि।
भवनाथजीक काजक आरो महत्व सभ छै मुदा एहि आलेखमे हम हुनक किछुए महत्वकेँ रेखांकित केलहुँ अछि। हिनकर आन-आन महत्वपर आरो लेखक सभ लिखने छथि तकरा पढ़ल जा सकैए।
नोट- एहि आलेखसँ पहिने भवनाथजीक काजक ऊपर हमर किछु विचार पूर्वप्रकाशित
अछि। ई विचार सहमति एवं असहमति दूनू तरहक अछि,
पाठक एकरा निच्चाक सूचनापर जा पढ़ि सकै छथि-
1)
सामा गीत "गाम के अधिकारी तोहें बड़का भैया हो" पर भवनाथ झाजीक विचार
फेसबुकपर आएल आ ताहिसँ हम असहमत भेलहुँ आ एक लेख लिखलहुँ जे
विदेहक अंक 195, 1 फरवरी
2016 मे प्रकाशित भेल छल।
2) भवनाथ झाजी तिरहुता लिपिक फाण्ट लेल जे किछु केलाह तकर विवरण हमर पोथी "मैथिली वेब पत्रकारिताक इतिहास" (शशि प्रकाशन, 2023) मे प्रकाशित भेल।
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