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रामभरोस कापड़ि 'भ्रमर'क उपन्यास 'घरमुँहा'

घरमुँहा उपन्यास २०१२ ई.मे प्रकाशित भेल अछि। २१म शताब्दीमे मैथिली उपन्यासक प्रकाशनमे गति आएल अछि। वर्ष २०१२मे गौरीनाथक 'दाग', प्रदीप बिहारीक 'शेष', हेतुकर झाक 'पराती', नीरजा रेणु केर 'इजोत', मधुकांत झा केर 'ममता जोगी', मनमोहन झाक 'कृष्ण सर्प' के संग भ्रमरक 'घरमुँहा' उपन्यास आएल। एहिसँ पहिने हिनक कोनो उपन्यास नहि आएल रहए। रामभरोस कापड़ि 'भ्रमर' नेपालमे मैथिलीक जानल-मानल साहित्यकार छथि। हिनक कविता,गीत,गजल केर संग्रह प्रकासित अछि। दू टा कथा संग्रह 'तोरा संगे जएबौ रे कुजबा' 'हुगली उपर बहेत गंगा' सेहो प्रकाशित छनि। नाटक आ शोध छनि। आलेख सभहक संग्रह छनि। पत्रिकाक संपादन लगातार कऽ रहल छथि। पोथी सभहक संपादन केने छथि।

घरमुँहा उपन्यास नेपालक मधेश आन्दोलनक पृष्ठभूमिमे पहाड़ी युवती आ मधेशी युवकक प्रेमकथापर आधारित अछि। कथा हो वा कविता प्रेम भ्रमरक स्थायी भाव रहल अछि। एहि उपन्यासक संबंधमे प्रसिद्ध साहित्यकार राजेन्द्र विमल भूमिकामे लिखने छथि जे "आख्यानकार भ्रमर आपना समयक प्रमाणिक खिस्सा आबए बला पीढ़ी दर पीढ़ी धरि सुनएबामे उत्सुक छथि। तें प्रस्तुत उपन्यास मूक इतिहासक मुखर सहोदर भए गेल अछि। राजनैतिक घटनाक्रमक धरातलपर कल्पनाक फट्ठा, मृतिका, सन्दी सन आदिसँ समकालीन मधेशक जीवन्त मूर्ति तैयार कऽ समाजिक संबंध-बंधक रागमयताक रंग ढेउरल गेल अछि जे हृद्यहारी अछि। उपन्यास ऐतिहासिक महत्वक दाबेदार एहू कारणे अछि जे ई पहिल नेपालीय मैथिली उपन्यास थिक जे समकालीन राजनैतिक घटनाक्रमपर आधारित अछि।"

मधेश क्षेत्रमे रहनिहार कतेको पहाड़ी परिवार ओहिठामक जीवन ओ संस्कृतिमे रचि-बसि गेल अछि। कतेको व्यक्ति ओ परिवारक बीच मित्रता ओ स्नेह कायम भऽ गेल छैक। मधेश आन्दोलन तीव्र भेलापर ओहिमे कतेको अराजक ओ हिंसक तत्व सक्रिय भऽ जाइत अछि। अपहरण, लूट आदिक धंधा करऽ लगैत अछि। एहि उपन्यासमे मधेश आन्दोलनक विस्तृत वर्णन अछि।

उपन्यासमे रमेश उपाध्याय एक शिक्षक छथि। ओ पहाड़ी मूल के छथि। एहन कतेको परिवार मधेशमे अछि। मधेश आन्दोलनकेँ ओकर सभहक समर्थन छै। आन्दोलनी ओ सरकारक बीच बहुत बेर समझौता होइत छैक। माँग सभ मुदा पूरा नहि भऽ पबैत अछि। किछु लोक आन्दोलनकेँ हिंसक बनबऽ चाहैत अछि। लोक सरकारी दमन ओ शोषणसँ त्रस्त भऽ गेल अछि। क्रमशः पहाड़ी आ मधेशीक बीच वैमनस्य पनपि जाइत अछि। हिंसक तत्व सभ आ लूट करबामे लागि जाइत अछि। अही क्रममे रमेश उपाध्याय केर बेटी किरणक अपहरण भऽ जाइत छैक।

किरण जे एक पहाड़ी मूलक अछि ओकरा मधेशी कामेश्वर सिंहक बेटा राजीवसँ प्रेम छैक। दूनू विवाह करऽ चाहैत अछि। दूनूक परिवारकेँ सेहो कोनो आपत्ति नै छैक। उपाध्याय के दस लाख फिरौती देबाक रहैत छनि। एहि लेल अपन मकान बेचि दैत छथि। राजीवकेँ ई ज्ञात होइत छैक जे एहि अपहरण उद्योगक सरगना ओकरे बाप छैक। ओ अपन माएसँ मीलि कामेश्वर सिंहक विवेककेँ जगबैत अछि। अन्ततः किरण मुक्त होइत अछि। राजीव संग ओकर विवाहक निर्णय दूनू परिवार करैत अछि। उपाध्याय जे पहाड़ दिस घूरि जेबाक निर्णय केने रहथि से पुनः ओहीठाम रहि जाइत छथि। एहिमे हुनक मित्र जगमोहन सहयोग करैत छथिन। मकान सेहो बिक्री नहि होइत छनि।

एहि उपन्यासमे पहाड़ी आ मधेशी लोक सभहक बीच एकठाम रहबाक कारणे आपसी मित्रता ओ भाइचाराक यथार्थ सेहो उभरि कऽ आएल अछि। संगहि क्षेत्रक स्वायत्ता आ विकास के समानान्तर विभिन्न क्षेत्रक मनुक्ख आ ओकर मनुक्खता सेहो उजागर भेल। उपन्यास कहैत अछि जे वस्तुतः मनुक्खे सर्वोपरि थिक।   

संघर्ष, आन्दोलन, अपहरण, लूट, प्रेम आदि घटनाक आधार लऽ कऽ बूनल ई उपन्यास रहस्य ओ रोंमांचसँ भरल अछि। संपूर्ण उपन्यासमे रोचकता बनल रहैत अछि। 'घरमुँहा' नाम केर संबंधमे उपन्यासकारक कहब छनि जे "घरमुँहा" नाम मैथिलीमे एहिसँ पूर्व कतौ आएल होइक से संभव, मुदा हमर एहि उपन्यासक केंद्रीय पात्रक मनःदशा, अपन जन्मधरतीसँ लगाव आ प्रम आ विस्थापनक बाबजूद अवसर भेटिते जन्मधरतीपर घुमबाक अद्भुत उत्साह, स्फूर्ति 'घरमुँहा' शब्दकेँ सार्थकता प्रदान करैत अछि। तँए एकरा ताही रूपमे ली से आग्रह"। वस्तुतः ई उपन्यास कहैत अछि जे जाति,वर्ण, पहिचान बहुत माने नहि रखैत अछि। माने रखैत अछि मानवीय स्नेह,व्यव्हार, प्रेम, सदाशयता, मित्रता, मानवीय संबंध, जुड़ाओ। एही जुड़ाओ आ लगाओ संग जतऽ लोक रहैत अछि सएह "घर" थिक। मुदा एहि घर लेल मनुक्ख आ मनुक्खता अपेक्षित अछि। एही ठाम आबि कऽ 'घरमुँहा' मनुक्ख अपनाकेँ सार्थक बना लैत अछि। 

 

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