अजय अनुरागी
मैथिली भाषाक साहित्यकार भ्रमर हरेक बिधामे पुस्तक प्रकाशन
राम भरोस कापडि़ भ्रमर मैथिली भाषा साहित्यके प्रसिद्ध साहित्यकार छथि। धनुषाके बाघचौडा गाम, जनकपुरधाम उपमहानगरपालिका वडा नम्बर १ आ हंसपुर नगरपालिका वडा नम्बर २ के ७० वर्षीय भ्रमर अखनो साहित्यिक रचना आ पुस्तक प्रकाशनमे सक्रिय छथि। ओ कहैत छथि, मैथिली भाषा साहित्यक क्षेत्रमे हम एकमात्र एहन व्यक्ति छी जे पूर्णकालिक छी।
मैथिली भाषा साहित्यके क्षेत्रमे बहुत लोक कलम चलबैत छथि मुदा हुनकर मुख्य पेशा अलग अछि। लेकिन हुनकर कहना छै जे हुनक प्राथमिक व्यवसाय मैथिली भाषा साहित्यके क्षेत्रमे लेखन छैन्ह।
डा. धीरेन्द्रक कारणें साहित्यकार बनि गेलाह
जहियासँ जनकपुरक सरस्वती हाई स्कूलमे पढ़ैत छलाह तहियासँ भारतमे प्रकाशित बाल पत्रिका पढ़बामे रुचि छलनि। भारतक पटना, कलकत्ता, दिल्ली, मुंबईसँ प्रकाशित साहित्यिक पत्रिका हुनक घरक समीप जनकपुर रेलवे स्टेशन पर पोथीक स्टा ल पर अबैत छल । हिन्दी भाषामे बाल साहित्य पत्रिका जेना भारतक मुंबईसँ प्रकाशित पराग पत्रिका आ दरभंगासँ प्रकाशित बालक पत्रिका पढ़ैत छलाह। पढैत मात्र नहि ,हुनक कतेको रचना बालक पत्रिकामे छपैत छल।
ओहि समय मे अपन घर लग जनकपुर स्थित राम स्वरूप राम सागर बहुउद्देशीय कालेजमे अध्यापन करयवला प्रोफेसर धीरेश्वर झा धीरेन्द्र के संपर्क मे आबि गेलाह। ओही कालेजक राजनीति विज्ञानक प्राध्यापक नारायण प्रसाद साह हुनके घरमे किराया लऽ कऽ रहैत छलाह। डा. धीरेन्द्र ओत्तहि नियमित अबैत रहथि। एही कारणे प्रोफेसर झासँ सम्पर्क भेलनि।
भ्रमर जखन क्लास ७ मे पढ़ैत छलाह तखन हिन्दी मे एकटा कथा लिखलनि जकर नाम छल इमान्दार बालक आ झा केँ देखौलनि। ओ कथा हिन्दी मे लिखल गेलाक कारणेँ नहि देखलनि। झा कहलखिन जे कथा अपन मातृभाषा मैथिलीमे आनब तखन मात्र देखब। तखन मैथिली मे अनुवाद क देख देलखिन। आ प्रोफेसर साहेब एकरा पाँति दर पाँति सुधारि देलनि। आ फाइनल लिखि कऽ आन कहलखिन्ह।
भ्रमर संपादित कथा दोसर पेपर पर लिखि अनलनि। तकरा बाद प्रा..झा मिथिला मिहिर नामक भारतसं प्रकाशित साहित्यिक पत्रिकाक संपादक सुधांश शेखर चौधरीकेँ पत्र लिखि कथा छपबाक आग्रह केलनि। किछु दिनक बाद पत्रिकाक नेना भुटकाक चौपाडि़ स्तम्भमे भ्रमरक कथा छपल। तकरा बाद भारतक कलकत्तासँ प्रकाशित आंखर नामक पत्रिका मे (१९६८ई.)नव हस्ताक्षरक रूप मे हुनक लिखल अनहरिया इजोरिया नामक कविता प्रकाशित भेल।
हिनका द्वारा लिखल गेल कविता आ कथा भारतक विभिन्न साहित्यिक पत्रिका मे प्रकाशित होइत रहल। जँ डा. धीरेन्द्र नहि रहितथि त हम सम्बभतः साहित्यकार नहि भ पबितहुँ भ्रमरक उक्ति छन्हि।
साहित्यके हर विधामे पुस्तक
पत्रकारिता पेशामे सेहो शुरुआत केलनि आ साहित्यक क्षेत्रमे सेहो लिखैत रहलाह। आब साहित्यक हरेक विधामे मैथिली भाषामे पोथी प्रकाशित क चुकल छथि। कथा, कविता, उपन्यास, आलोचना, नाटक, निबंध, यात्रा संस्मरण सहित सब विधामे पोथी लिखने छथि। आइके दिनमे ५०सं उपर पुस्तक प्रकाशित भ गेल छन्हि।
हिनक बन्न कोठारी औनाइत धुवा नामक काव्य संग्रह, नहि आब नहि नामक दीर्घ कविता, मोमक पघलैत अधर नामक गीत गजल संग्रह, अपन अनचिन्हार,युद्धभूमिक एसगर योद्धा नामक कविता संग्रह, अन्हरियाक चान गजल संग्रहक प्रकाशन भेल अछि। मैथिली भाषामे लिखल दीर्घ कविता नहि आब नहि के नेपाली भाषामे भयो, अब गयो शीर्षकसँ नेपाली भाषाक प्रसिद्ध साहित्यकार मनु बज्राकी द्वारा अनुवाद कयल गेल अछि । बाद मे ई दीर्घ कविता नेपाल प्रज्ञा प्रतिष्ठान द्वारा प्रकाशित प्रज्ञा पत्रिकामे प्रकाशित भेल छल।
तोरा संगे जयबौ रे कुजवा, हूगली ऊपर बहैत गंगा, एण्टी भायरस नामक कथा संग्रह प्रकाशित अछि। हुनक दावा छनि जे नेपालमे मैथिली भाषामे हुनक लिखल तोरा संग जेबौ रे कुजवा पहिल आधुनिक कथा संग्रह थिक। हुनक ईहो दावा छन्हि जे ई कथा संग्रह बिहार सरकारक सरकारी संस्था मैथिली अकादमी द्वारा प्रकाशित नेपालक पहिल आधुनिक मैथिली कथा संग्रह छैक।
हुनकर लिखल उपन्यास घरमुहाके भोजपुरीक बरिष्ट साहित्यकार उमाशंकर द्विवेदी भोजपुरी भाषामे आ भारतके चर्चित साहित्यकार डा.प्रफुल्ल कुमार सिंह मौन हिन्दी भाषामे अनुवाद कएने छथि।। भ्रमर स्वयं कहैत छथि जे मधेश आन्दोलनक समयमे वर्षोंसँ जनकपुरमे रहनिहार पहाड़ी समुदायकेँ कोना मधेश छोड़य पड़ल छल ताहि पर लिखल ई उपन्यास हुनक पसीनक कृति थिक।
कतेको नाटक लिखने छथि। मैथिली भाषामे रानी चन्द्रवती, एकटा आओर बसंत, महिषासुर मुरदावाद, भैया अएलै अपन सोराज, सुली पर इजोत नामक नाटकलगायत दर्जनो नाटक प्रकाशित छन्हि आ मंचित होइत रहैत छन्हि। धर्मेन्द्र झा विहवल हुनक लिखल नाटकक अनुवाद नेपाली भाषामे भ्रमरका सर्वश्रेष्ठ नाटकहरु नामसं कएने छथि।
एकर अतिरिक्त विभिन्न विचार संग्रह, निबंध संग्रह, यात्रा संस्मरण संग्रह सेहो प्रकाशित कएने छथि। समय समय पर कतेको पोथी आ रचनाक संपादन करैत आबि रहल छथि। भ्रमर कहैत छथि जे हुनका द्वारा लिखल गेल कविता, नाटक आ कथा नेपाल आ भारतमे स्कूल आ विश्वविद्यालय स्तरीय पाठ्यक्रममे शामिल कए पढ़ाओल जा रहल अछि।
साहित्यमे योगदानके कारण नेपालक सरकारी संस्था तत्कालीन नेपाल राजकीय प्रज्ञा प्रतिष्ठान द्वारा प्रथम मायादेवी प्रज्ञा पुरस्कार(रु.५००००), विद्यापति सेवा संस्थान दरभंगा द्वारा मिथिला विभूति सम्मान, शेखर प्रकाशन पटना द्वारा शेखर सम्मान से सम्मानित कएल गेल छथि। तहिना मैथिली साहित्य परिषद जनकपुर द्वारा वैदेही प्रतिभा पुरस्कार, अंतर्राष्ट्रीय मैथिली सम्मेलन मुंबई द्वारा मिथिला रत्न सम्मान, मधुरीमा द्वारा देल गेल नेपाल मधुरीमा सम्मान, चेतना समिति पटनाके यात्री चेतना पुरस्कार स सम्मानित भेल छथि।
तहिना साझा प्रकाशनकेँ साझा लोक संस्कृति पुरस्कार, विद्यापति मैथिली भाषा साहित्य पुरस्कार, पार्वती प्रतिष्ठान सिसौटिया सर्लाही केँ पार्वती सम्मान सँ सम्मानित कयल गेल छथि।
भ्रमर नेपालक पहिल मैथिली भाषाक साहित्यकार छथि जे नेपाल प्रज्ञा प्रतिष्ठानक परिषद्क सभा सदस्य बनबामे सफल भेलाह आ बादमे परिषद्क सदस्य बनलाह। तहिना साझा प्रकाशनके अध्यक्षके रूपमे भ्रमर पहिल मधेशी व्यक्ति भेलाह। ओ अपन छोट कार्यकालमे नेपाली भाषाके अलावे मैथिली सहित अन्य भाषामे प्रकाशन शुरू केलनि। मैथिली बाल कथा संग्रह बगियाक गाछ हुनक कार्यकालमे पहिल बेर साझा प्रकाशन द्वारा प्रकाशित भेल। आ जे साझा प्रकाशनसं पुरस्कृत सेहो भृल छल।
एतबे नहि, काठमांडू आ जनकपुरमे ३ टा अन्तर्राष्ट्रीय मैथिली सम्मेलनके सफलतापूर्वक आयोजन कयलनि अछि।
हुनकऽ कहब छन्हि जे मैथिली भाषामे लिखी क समाजके बदलना या परिवर्तन करना बहुत कठिन काम छै। हुनक कहब छनि जे प्रकाशनक अभावमे मैथिली भाषाक साहित्य नहि फलल फूलल अछि, त प्रकाशक लोकनिक अभावसें पाठक धरि नहि पहंचि पबैत अछि।
भ्रमर कहैत छथि, "एहन स्थिति अछि जे स्वयं लिखनिहार लोक स्वयं पढ़ैत छथि वा अपन गोलक लोक पढ़ैत छन्हि, एकरा कीनि क पढ़बाक कोनो आदति नहि अछि। " मुफ्तमे बाँटबाक प्रवृत्ति अछि। मैथिली भाषाक जनसंख्या विशाल अछि, मुदा मैथिली भाषाक स्तरीयताक कारणेँ पाठक नहि अछि, भ्रमर कहैत छथि, "मैथिली भाषाक मानकके सहज बनाओल जाय आ जँ मैथिली भाषामे लिखल रचनाक अनुवाद नेपाली, अंग्रेजी आ हिन्दीमे कयल जाय" त आनोभाषा मे सेहो, एकरा बाजार भेटत।"
ओ टिप्पणी केलनि जे रचना मात्र पोथीक संख्या बढ़ेबाक लेल लिखल जा रहल हो त ताहिमे गुणवत्ता अभाव रहत। लिखबा लेल पहिने पढ़य पड़त। मुदा ओ कहैत छथि जे एतय पढ़बाक संस्कृति नहि अछि ताहि लेल समस्या अछि। साहित्य समाजक असली दर्पण थिक आ ओ दुख व्यक्त करैत छथि जे ई समाजक यथार्थक वर्णन करबाक लेल कम लिखल जारहल अछि।
ओ मैथिली भाषा सहित विभिन्न मातृभाषाके विकास लेल राज्य सरकारके आगा आबक चाही।
अपन मंतव्य editorial.staff.videha@gmail.com पर पठाउ।