प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका

विदेह नूतन अंक
वि दे ह विदेह Videha বিদেহ http://www.videha.co.in विदेह प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका Videha Ist Maithili Fortnightly ejournal विदेह प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका नव अंक देखबाक लेल पृष्ठ सभकेँ रिफ्रेश कए देखू। Always refresh the pages for viewing new issue of VIDEHA.

अश्विनी कुमार आलोक, संपर्क- 8789335785

रामभरोस कापड़ि भ्रमरः भारत-नेपालक सांस्कृतिक सेतु

 

करीब डेढ़ दशक पहिने हम नेपाल गेल छलौं।कुनू साहित्यिक कार्यक्रम मे देश सँ बहरा भाग लेबाक ई हमर पहिला अनुभव छल।एकरा पहिने एक बेर आरो नेपाल गेल छलौं अपन दादीक आँखिक ऑपरेशन करेबाक लेल।लहान जेबाक क्रमे त ई बुझना पड़ल , जे दोसर देश मे जेबाक लेल कम सँ कम दू दिन चाही।मुदा ई नहिं लागल , जे लहान नेपाल मे अछि आ कि हम भारतक बिहार सँ गेल छलहुँ। तेहने घर - दुआर ,तेहने रहन - सहन आ तेहने बात - विचार।जेहिना देश अहाँक , तेहिना हमर।हम एक - दोसर सँ कुनू सामरिक सीमा सँ सेहो विभक्त नहिं छी , कियेक त हमरा - अहाँक मध्य कुनू विवाद एहेन स्तर पर नहिं आएल।हमर संबंध बेटी - रोटीक संबंध छल , घर - परिवारक संबंध छल।

नेपालक जनकपुर मे ई कार्यक्रम भारत - नेपालक दूतावास कें आपसी संबंध सँ आयोजित कैल गेल छल। हम आदरणीय प्रफुल्ल कुमार सिंह ' मौन ' क संगे गेल छली।राति मे दरभंगाक संस्कृत शोध संस्थानक तत्कालीन निदेशक देवनारायण यादवक आतिथ्य स्वीकार कैल , सूर्योदय हेबाक पहिने बस सँ जयनगर गेलौं आ तकर बाद नेपालक बस सँ जनकपुर।जनकपुरक एक गोट विशिष्ट सभागार मे ओ कार्यक्रम दू दिनी आयोजित केल गेल छल , जकर मुख्य कर्ता - धर्ता रामभरोस कापड़ि ' भ्रमर ' रहथि।उद्घानटक बाद पाँच टा कवि कें काव्यपाठ सुनेबाक मुख्य अतिथि मादे इच्छा व्यक्त केल गेल छल।ओ पाँच गोट कवि मे एकटा कवि हमहुँ छली।ताहि दिन सँ रामभरोस कापड़ि ' भ्रमर ' सँ जुड़ल छी।हमरा मोन पड़ैत अछि , जे भारत मे कुनू महत्त्वपूर्ण मैथिली कार्यक्रम संभवतः नहिं भेल हुए , जाहि मे रामभरोसजीक भूमिका नहिं हुए।विशेषक' दरभंगाक कार्यक्रमे।ओ दरभंगा आ जयनगरक साहित्यिक धुरिएटा नहिं छथि, भारत आ नेपालक सांस्कृतिक संबंधक एकटा दायित्वसजग व्यक्तित्व छथि।जनकपुरक ओ कार्यक्रम सँ पहिने हुनक नाम बिहार सँ प्रकाशित हुए बला अनेक रास पत्र - पत्रिका मे पढ़ले छलहुँ। ओ मात्र कार्यक्रमक सूत्रधार नहिं छथि,सिद्धांत और व्यवहार सँ सेहो भारत आ नेपालक सांस्कृतिक समन्वयक हितचिंतक छथि।हमर आवास वैशाली जिलाक महनार मे अछि आ हमर आवास सँ कतोक दूर रहैत छलाह मैथिली आ नेपालीक प्रसिद्ध लोकसाहित्य विशेषज्ञ प्रफुल्ल कुमार सिंह ' मौन ' । मौन जी सँ हुनक बड्ड आत्मीयता छलनि,मौन जी ए त आबैत रहथि।मुदा मौन जी एत' भ्रमर जी सँ हमरा भेंट नहिं भेल। नेपालक ओहि कार्यक्रमक बाद हमर भेंट एक बेर चेतना समितिक कार्यक्रम मे भेल छल , तकर बाद हुनक बेटीक घर पटनाक बोरिंग कैनाल रोड मे। हुनक जमाय इंजीनिर छथि,ओ पटना मे बसि गेल छथि।मुदा एहेन नहिं , जे जमाय नेपालक छथि।हुनक घर ओम्हरे कतो मधेपुरा,मधुबनी दिस छैन।अर्थात् ओ मूल रूप सँ बिहारक निवासी छथि।रामभरोस कापड़िक घर धनुषा ।हम मौनजीक संगे ओहि कार्यक्रमक दौरान गेल छली। ओ विशुद्ध साहित्यजीवी छथि,भावुक मनुष्य आ सजग पत्रकार। हुनक विशेषता ई अछि , जे ओ संबंध बनेबा आ संबंध के विस्तार देबा मे विश्वास रखैत छथि।हुनक साहित्य मैथिली आ नेपाली मे अपन विशिष्ट स्थान रखैत अछि। ओ लोकसाहित्य के मर्मज्ञ विद्वान अछि। लोकवार्ता के संग्रह आ विश्लेषणक क्षेत्र मे ओ मान्य विद्वान छथि। हुनक विद्वता मात्र पोथीक पढ़ला सँ नहीं संपन्न भेल अछि,ओ क्षेत्र भ्रमण आ संगति - सहयोग सँ अपन ज्ञानक विस्तार के पुष्ट केने छथि।हुनक साहित्य नेपाली आ मैथिलीक समृद्धिक काज करैत अछि।ओ निश्शंक रूप सँ भारत आ नेपालक संबंधक समर्थन करैत अछि। जहिना भारत आ नेपालक आपसी संबंध कुनू राजनीतिक सीमारेखाक ऊपर अछि,तहिना भ्रमरजीक साहित्य भारत - नेपालक सांस्कृतिक परंपराक प्रदक्षिणा करैत बूझि पड़ैत अछि।हुनक साहित्य लेखनक आरंभ नेपाल सँ भेल ,कियेत ओ नेपालक धनुषा जिला अवस्थित बघचौड़ा गाम मे जन्म लेलनि।पढ़ाई नेपालक त्रिभुवन विश्वविद्याल मे केलनि। मुदा हुनक पहिल साहित्य रचना 1964 ई मे पटना सँ प्रकाशित हुए बला प्रसिद्ध मैथिली साप्ताहिक ' मिथिला मिहिर ' मे छपल।ओ रचनाक नाम छल ' ईमानदार बालक ' ।तकर बाद ओ साहित्य आ पत्रकारिता केँ अपन जीवन समर्पित क देने छलथिन।हुनक पहिल पोथी मैथिलीक कविताक छल ' बन्न कोठरी औनाइत धुँआ ' ।एहि पोथी मे रामभरोस कापड़ि ' भ्रमर ' ओ विसंगतिक चर्च कैने छथि , जाहि मे मनुक्खक जीवन औनाइत छल। मनुक्ख बुझैत अछि जे ओकर शोषण , दमन आ प्रताड़नाक जिम्मेदार लोक ताहि दिन धराशायी भ जायय,जाहि दिन प्रतिकार आ क्रांतिक मशाल जरि जायत। मुदा एहेन नहिं भ सकैत अछि। मनुक्खक आगि ओकरा मे कुलबुलाइत अछि,ओकरे जरबैत अछि आ ओकर देह कुनू बन्न कोठरी जकाँ विवश ठार अछि,ओकर धुँआ औनाक' ओकरे प्रताड़ित करैत अछि।एहिना शोषक वर्गक व्यवसाय शोषितक निष्प्राण जकाँ मनोदशा सँ आगाँ बढ़ैत अछि।' बन्न कोठरी औनाइत धुँआ ' मे रामभरोस जी जे परिस्थितिक वर्णन करैत छथि,तकरे विस्तार एक गोट पैघ कविता पोथी ' नहिं , आब नहिं ' मे ओ केने छथि।मनुक्ख अपन पराजित जीवन सँ व्यथित अछि,बेचैन अछि आ बेर बेर ओ संकल्प लैत अछि , अपन जीवनक एहि गति जिम्मेदार लोकक ओ खबर लेति,मुदा ई संकल्प कत' फुरैत अछि।एहेन मनोदशाक वर्णन करबाक पीछू रामभरोस जीक कवित्व समूचा शोषित - उत्पीड़ित समुदायकें प्रतिनिधित्व करैत छनि।हुनक आरो मैथिलीक कविताक पोथी एहि प्रकारें अपन विश्वसनीय आधार बनबैत अछि,जाहि मे जीवनक समरस समाजक निर्माण हुए आ सभ कें समान अवसर आ अधिकार भेंटै।हुनक दू टा मैथिली कविता पोथी हुनक कवित्वक विस्तार आ ओकर आवश्यक वर्ण्य विषयक उदाहरण लक' काव्यविश्लेषक लोकनिकेँ अपन महत्त्व बतेबा मे सर्वथा सक्षम अछि ' मोमक पघलैत अधर ' ' अपन अनचिन्हार ' ।तकर बाद ' युद्ध भूमिक एसगर योद्धा ' ' अन्हरियाक चान ' हुनक कविताक ओ पोथी छल,जाहि मे एक दिस मनुक्ख प्रेम आ शृंगारक भाव सहेजबाक लेल प्रयत्नशील छल , त दोसर दिस ओ जीवनक युद्ध भूमि मे अपन युद्ध एसगरे लड़ेबाक लेल विवश छल। रिश्ता,संबंध आ भावक ह्रास करैय नवका समय मनुक्ख कें एक दोसर सँ कतेक विलगवैत अछि,रामभरोसजीक कवित्व ओकर चिह्नित करैत अछि।

ओ कविता लेखन सँ अपन लेखकीय जीवन शुरु केलनि,मुदा हुनक लेखन खाली कवितेटा मे नहिं रुकल। साहित्यक अनेक रास विधा ओ समृद्ध केलनि , जाहि मे कथा,उपन्यास , नाटक आ यात्रावृत्तक क्षेत्र विस्तृत छल।

हुनक कथा संग्रह ' तोरा संग जैबो रे कुजबा ' क प्रकाशन बिहार सरकारक मैथिली अकादमी कैले छल।' हुगली ऊपर बहैत गंगा ' ' एंटी भाइरस ' नामक हुनक कथाक पोथी हुनक कथाशिल्प मे ग्राम्य संवेदना आ गामक बदलैत स्वरूप कें विस्तार सँ बन्हबा मे सफल भेल।हुनक उपन्यास ' घरमुँहा घर सँ निष्कासित आ संत्रस्त एक गोट जीवनक तेहेन त्रासदीक कथा अछि , जाहि मे व्यक्तिक घर सँ दैहिक निष्कासन भले भ गेल हुए , मुदा मन सँ ओ अपन घर सँ बन्हाएल रहैत अछि।असल मे ई नेपालक मधेश आन्दोलन पर आधारित अछि ।आ पहिल उपन्यास सेहो।

रामभरोस कापड़ि ' भ्रमर ' लोक संस्कृति मे सामाजिक चेतना हेरनिहार एकटा विश्वस्त लोक छथि।नेपाली आ मैथिली मे हुनक अनेक रास पोथी छपल अछि आ ताहि कारण सँ ओ अपन दृष्टि आ विवेचना सँ चमत्कृत करैत छलथिन।हुनक एहि प्रकांड विद्वताकें अनेक रास सम्मान भेंटल अछि।भ्रमर जी हिंदी , नेपाली आ मैथिली साहित्य कें अनुवाद क्षेत्र मे अपन विलक्षण योगदान दैत दैत रहलाह अइछ।  ओ भारत आ नेपालक सांस्कृतिक सेतु छथि।

 

अपन मंतव्य editorial.staff.videha@gmail.com पर पठाउ।