प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका

विदेह नूतन अंक
वि दे ह विदेह Videha বিদেহ http://www.videha.co.in विदेह प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका Videha Ist Maithili Fortnightly ejournal विदेह प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका नव अंक देखबाक लेल पृष्ठ सभकेँ रिफ्रेश कए देखू। Always refresh the pages for viewing new issue of VIDEHA.

चंद्रेश-संपर्क-9430640883

रामभरोस कापड़ि 'भ्रमर' : विचार, संवेदना आ चेतना

तरबोरासँ प्रभावित, इन्द्रधनुषी सातो रंगक प्रतिच्छविकेँ अपनामे समेटने-बटोरने राम भरोस कापड़ि 'भ्रमर'क वैविध्य साहित्य जनसमाजसँ जुड़ल अछि। हिनक रचना जन-जनसँ प्रभावित ओ परिवेशगत समय आ समाजसँ सम्बन्ध बनबैत अछि। हिनक दृष्टि शोषित-पीड़ित समाज दिस टकटकी लगौने सत्यानुभूति करबैत अछि। जनसमाजक हृदयक करुणा, पीड़ा, दया, प्रेम आदिकेँ उभारिकऽ  जनसंवेदनाकेँ मानवीय मूल्यबोधक संवाहक भऽ  जगबैत अछि।

जीवन-संघर्षमे जूझैत चलैत चढ़ैत-बढ़ैत कोनो रचनाकारक आत्मसजगता जँ मौलिक विचारधरामे कलात्मक ढर्घैं स्वाभाविक यथार्थबोधक उपस्थितिबोध अपन रचनामे प्रस्पुफटितकऽ  करबा दैत अछि तँ ओहन रचनाकार युग आ समयक अतिक्रमण कऽ  अपन एकटा पूफट इतिहास रचि नवताबोधक सनेस बिलहि दैत अछि। अपने समय आ युगक अतिक्रमण कऽ  हवाक विरोध्मे चलिकऽ संकटापन्न स्थितिसँ जूझैत संघर्षपूर्ण चुनौतीकेँ स्वीकारब अबस्से सजग ओ सचढ़ रचनाकारक दायित्वबोध थिक। बहुआयामी व्यक्तित्व ओ कृतित्वक धनी भ्रमरक साहित्यिक अवदान विशेषे अछि। ओ सदाबहार लेखक छथि जे रचनाकेँ सदाजीवी बनाकऽ ओहिमे अपन कलात्मकताक संग अपन वैविध्यपूर्ण विवेककेँ झोंकि पझाइत चिनगीकेँ लहका दैत छथि। जें ओ सूक्ष्म दृष्टिक परिचायक छथि ते ँ ओ अपन सूक्ष्म दृष्टिक परिचायक भऽ साहित्यिक, राजनैतिक आ विचारधराकेँ एकसंग इंगित करैत छथि। देखब, परेखब आ स्पष्टतः इमानदारीपूर्वक काज करब अबस्से एकटा चुनौती ठाढ़ करैत छथि। रामभरोस कापड़ि 'भ्रमर' अबस्से एहि चुनौतीकेँ स्वीकारैत अपन कलमक लोहा मनबैत छथि। लोक चेतनाक रचनाकार भ्रमर पाठककेँ समय आ संस्कृतिकेँ बुझयबाक भरिसक प्रयास करैत छथि। एहि हेतु हिनक रचना अबस्से परम्पराकेँ नव रूपमे परिभाषित करैत वर्तमानक दुरुक्खा पर भविष्यसँ अन्तर्सम्बन्ध् बनबैत अछि। साहित्य आ संस्कृतिसँ सम्बन्ध् हिनका छात्रावस्थाहिसँ जागल। हिनक पहिल प्रकाशित रचना 'इमानदार बालक' जे 1964.मे मिथिला मिहिरक नेनाभुटकाक चौपाड़िमे आयल अछि। तकर बाद पीठियाठोक आठ गोट गीतक संकलन 'जवानीक दिन' 1965.मे प्रकाशित भेल।

राम भरोस कापड़ि 'भ्रमर'क जन्म 2008 साल साओन 22 गतेकऽ प्रमाणपत्राक अनुसारें बघचौड़ा, जिला- ध्नुषा, जनकपुर अंचल, गाबिस बघचौड़ा, वार्ड नं.-1 मे भेल। एहि गामक चौहद्दी अछि - उत्तर- मिथिलेश्वर मौआटी गा.वि.., दक्षिण- मानसिंह पट्टी गा.वि..। हिनक वंशावली अछि-

मनोरथी कापड़ि

मीठू लाल कापड़ि

रामगुलाम कापड़ि ;पत्नी दुःखनी देवी

दयावती देवी   सुकुमार कापड़ि रामभरोस कापड़ि 'भ्रमर' ;पत्नी- दलतीया देवी    सोनावती देवी

रामनारायण कापड़ि, प्रदीप कुमार कापड़ि, नगीना देवी, प्रमिला कुमारी देवी, संदीप कुमार

बघचौड़ा गामक नाम पड़ल हेतैक जे एतय बाघ चराउर करैत छलैक। एहि ठामक जमीन कोह-कहबैत छलैक जे अढ़ाइ-तीन किलोमीटर दूरी धरि छल। हिनक जन्म सुसम्पन्न परिवारमे भेल रहनि। गाम बघचौड़ा की कही, परोपट्टामे सभसँ धनीक घरमे। हिनक बाबूजीकेँ अग्गह-विग्गह जमीन, लाखक लाख लगानी, जमीन्दारोकेँ कर्ज दैत छलथिन। गामसँ बाहर सटले खेत रहनि। गोरहासँ लऽ कऽ कोह धरि। बड़द खड़कै छल तँ ओतहि उफपर होइत छल। एहि बीचमे आनक जमीन नहि छल। अपने खेतमे लीख। अपने खेतक आरिसँ पानि पटाओल जाइत छल। पटौनी प्रकृति पर निर्भर छल। चूरे पहाड़क पृष्ठभूमि जे पहाड़ 25-30 कि.मी.बेसी नहि होयत। पहिने 900 बीघा बाँधक छलैक। आब 300 बीघाक छैक जे बान्हिकऽ पटाओल जाइत छलैक। ओना आब बान्हक औचित्य समाप्त भऽ गेलैक। गहराइवला बोरिंग ध्ँसाओल गेल छैक, मुदा तैयो उपयुक्त तेना भऽ कऽ नहि छैक। आब ;पाइप गाड़िककऽ प्लग लगाकऽ मोटरसँ जल टानैत छैक। अर्थात् ढेकुलसँ एक बीघा धरि पटौनी कयल जाइत छैक जाहिमे एक समयमे 5000 सँ 6000 टाका धरि लगैत रहैक, आब हजार लागिए जाइत छैक। धन, गहूम, तोरी, सरिसो आदि मुख्य उपजा छैक। बघचौड़ाक पूब अरहरी नदी जकर चौड़ाइ 25सँ 30 पफीट आ गहराइ बेस छैक। गाममे हिनक पिताक स्थिति- पात जे ँ पूर्णतः सफल रहनि ते ँ अध्किरी नामसँ सेहो जानल जाइत छलाह। कोनो दोकान-दौरी एहन नहि जे हिनक नाम उचरला पर केओ पाइ माँगय। सभकेँ हिनक पिता पर भरोस छलनि। ओ बघचौड़ा गाम पञ्चायतक तीन खेप प्रधन रहलथि। ओना ओ गामक मुखिया आ तकर बाद वैह पद भऽ गेल प्रधन पञ्च। ओ गामक पञ्चैती करथि। हिनके बाबू राष्ट्रीय प्राथमिक विद्यालय बघचौड़ा खोललथि। ओ स्कूलमे अध्यक्ष भेलाह वा कही तँ सर्वेसर्वा यैह रहथि। एहीमे मैथिलीक नेपालक प्रतिष्ठित पत्राकार ओ साहित्यकार श्रीश्याम सुन्दर कापड़ि 'शशि' शिक्षक रहथि आ राजविराज कओलेजमे प्राध्यापक भेलथि। ओना वर्तमान समयमे आर.आर.कैम्पस, जनकपुरमे छथि। हिनक बाबूजीक बाद हिनक जेठ माय सुकुमार कापड़ि अध्यक्ष भेलाह आ तकर बाद राम भरोस कापड़ि 'भ्रमर' दस वर्ष लगभग एहि पदकेँ सम्हारलनि।

रामभरोस कापड़ि 'भ्रमर' घरैसी ;घरैया शिक्षा प्राप्त कयलनि। हिनक पहिल गुरु मध्ुकरही निवासी गणेश लाल जे ध्रती पर भट्ठासँ ककहरा लिखेने छलाह। अ आ सँ व्यावहारिक गणित धरि। तकर बाद निम्न माध्यमिक विद्यालय बेलहीमे वर्ग 1 सँ 3धरि पढ़लनि। ओहि विद्यालयक नाम एखन थिक माध्यमिक विद्यालय बेलही जे बघचौड़ासँ 2 कि.मी.अछि। पयरे आबाजाही। बहुत कठिनसँ गेनाइ-अयनाइ। बहादुर पकड़िकऽ लऽ जानि। पार्टी आ कचरा, करचीक कलम, बोड़ा ओछाकऽ बैसब आदि। वर्ग 4 सँ मैट्रिक अर्थात् एस.एल.सी.सरस्वती मा.बि.जनकपुर, साल  2025

एकटा बात स्पष्ट कऽ देब उचित होयत जे 12 वर्षक अवस्थामे भगवान पट्टी ;मानसिन्ह पट्टी, ग्राम वि..क अन्तर्गत दलतीया देवीक संग विवाह भेलनि। पाँचम सन्तानमे तीन गोट पुत्रा आ दूटा पुत्रा छनि। इहो कहब अनर्गल नहि होयत जे हिनक जन्म जाहि केओट परिवारमे भेल रहनि ताहिमे पढ़ाइ पर ओतेक जोर नहि छल। मुदा, भ्रमर आई..अर्थात् प्रवीणता प्रमाणपत्रासँ उत्तीर्ण कयलनि। ओ बघचौड़ामे जे पढ़ाइ प्रारम्भ कयने छलाह से कन्हाइ साहु नामक व्यक्तिसँ। ओएह सम्पन्न वर्गक ओहि ठाम पढ़बैत छलाह। ओ जनकपुर जे अयलाह से युगल किशोर लाल, ळण्ज्ण्व्ण्क प्रेरणासँ। वैह हिनक बाबूजीकेँ प्रेरित कऽ पढ़ौनीक लेल जनकपुर जेबाक हेतु कहलनि। जे ँ जनकपुरमे जगह-जमीन रहनि, एखनो छनि ते ँ जनकपुरमे पढ़लनि। दोसर, डा.ध्ीरेन्द्र सन अभिभावक भेटलनि आ हुनकेसँ प्रभावित भऽ अपन रचना-संसार बनौलनि।

ओ बच्चेसँ हिन्दी पढ़ैत छलाह। पत्रा-पत्रिका पढ़लोपरान्त हिनका भेलनि जे हमहुँ लिखि सकैत छी। खासकऽ लिखबाक अनुभूति ओहि समयक लोकप्रिय उपन्यासकार कुशवाहाकान्त, गुलशन नन्दा आ कर्नल रंजीतक जासूसी उपन्यास सभ पढ़िकऽ लगलनि। गोविन्दसिंहक 'पपिहरा बाजय आध्ी रात' विशेष नीक लगैत छलनि। बालक, पराग, साप्ताहिक हिन्दुस्तान, र्ध्मयुग, नर-नारी पत्रिका पटना आदिक पाठक ओ रहथि। हिनक लेखनमे विशेषकऽ यौनसँ सम्बन्ध्ति नर-नारी प्रभावित कयलक आ आयल। पूर्वक रचनाकेँ देखिकऽ हिनका नारी मनोभावक विशेषज्ञ कहल जा सकैत अछि।

ईहो कहि देब उचित होयत जे भ्रमर नेनावस्थेसँ चन्सगर रहथि। जहिना पढाइमे तहिना धैंस जगयबामे। कही तँ Heroअर्थात्Healthy, Educated rich and organisation कहब जे पढ़िते छलाह से अबस्से। जनकपुर अयलाक बाद ओ अपन भैयाक संग कोनो नव सिनेमाकेँ प्रथम पालीमे देखिते छलाह। डॉ.ध्ीरेन्द्रक नेपाल अयलाक बाद एक नम्बरक शिष्य भ्रमर रहथि। डॉ.ध्ीरेन्द्र जँ नहि रहितथि तँ भ्रमर नहि रहितथि। दुनू अगले-बगलमे रहैत छलाह। ओहुना डॉ.ध्ीरेन्द्रक जीवनमे शिष्योपशिष्य ढेर-ढाकी छनि मुदा, भ्रमर आ भुवनेश्वर पाथेय महत्वपूर्ण रहलनि। सर्वहारा वर्गक प्रतिनिध्त्विकेँ ओ चिन्हलनि।

मैथिली साहित्य परिषद्क गठन भेल तँ सचिव भेलाह राम भरोस कापड़ि 'भ्रमर'। विद्यापति पर्व समारोह जानकी मन्दिरक प्रांगणमे मनाओल गेल। मातृका प्रसाद कोइराला ;पूर्व प्रधनमंत्रा, नेपाल मुख्य अतिथि रहथि।

हिनका दहिना कपार पर चोटक चिर्िं छनि। आम ओ रखैत छलाह। सतघरा खेल खेलाइत छलाह। आम लूटबाक लेल दौगलनि तँ एहि क्रममे टाटमे लागिकऽ कपार पूफटलनि। ओ ओहि समयमे चतुर्थ वर्गक छात्रा छलाह। तत्क्षण ओ बुझबो ने कयलनि जे कपार पूफटि गेल अछि।

1968-69मे हिनका अपन जेठ भाय सुकुमार कापड़िक ध्नुष-तीरसँ हिनक आँखिमे तीर लागल। मायक मानता छठि माइक अर्ध्य छनि जे आइयो देल जा रहल अछि। सूपमे सभ वस्तु-जात दऽ कऽ । ओ आनो कतेको मानता केने रहथिन।

स्वास्थ्य तँ यैह रहनि जे बच्चामे बेस मोटगर-डटगर वा कहीं तँ भोकना बिलाड़ रहथि। भैंसक दूध, घीक आ मीठा छुच्छे खाथि। सन्नूकमे गूड़क चेकी आ सौंसे टारामे बरकायल घीक भेटनि से बेस पाबथि। डॉ.आर.एन.सिन्हा गणितक प्राध्यापक कहने रहनि हिनका जे आबऽ वला समयमे गाड़ी पर तोरा लादिकऽ लऽ जाय पड़त। हिनक बाबूक भट्ठी सुरक्षित रहनि आ खूब पीबथि। मुदा, हुनका निध्न 84 वर्षक अवस्थामे भेलनि। ओहि परिवेशमे रहितो भ्रमर कहियो मद्यकेँ हाथ नहि लगौलनि। ओना तेना भऽ कऽ चाह-पान वा कही तँ दू टुक सुपारियो ने पबैत छथि। एहि वातावरण आ परिवेशसँ अपनाकेँफराक रखने छथि।

हिनक प्रिय संगी केओ नहि रहनि। खासकऽ एहि स्तरक। ओना छात्राजीवनमे मुजफ्रफरपुरक कामेश्वर प्रसाद अबस्से दस-पन्द्रह वर्षक मीत रहनि।

ओ जहिया एम..कयलनि आ डा.ध्ीरेन्द्रक कृपापात्रा रहथि तँ ओ चाहितथि तँ गुरुक कृपा-फलसँ मैथिली विषयक प्राध्यापक रहितथि। मुदा, ओ एहि सेवाकेँ नकारलनि आ पत्राकारिता दिस ढुकलाह। तकर कारण छल जे आर्थिक सम्पन्नता। जे ँ कोनो अभाव नहि खटकलनि ते ँ नोकरीक विचार मोनमे नहि अयलनि। ओ मनमौजी प्रकृतिक रहथि ते ँ स्वतंत्रा जीवन-यापन करैत रहल छथि।

2026-27 सालमे ओ वैदेही साप्ताहिक कार्यालय प्रतिनिधि् रूपमे उभरलाह। 2049 सालसँ कान्तिपुर राष्ट्रीय दैनिक पत्राक जनकपुर, संवाददाता शुरूक 5 वर्ष धरि रहलाह। प्रकाशक-सम्पादक भऽ ओ मैथिली 'अर्चना' पत्रिका प्रकाशित कयल। तकर वाद 'अंजुली' नेपाली मासिक आ मैथिलीमे द्वैमासिक 'आंजुर' प्रकाशित कयल। 2039 साल कार्तिक 4 गतेसँ गामघर प्रकाशित भेल जे नेपालसँ प्रकाशित पहिल आ एकमात्रा, समाचारपत्रा साप्ताहिक अछि। जकर प्रकाशन आइयो भऽ रहल अछि। सुप्रभात जे नेपाली दैनिक तकर आरम्भिक सम्पादक यैह रहथि। 'जनकपुर एक्सप्रेस' दैनिक अखबारक सम्पादन-प्रकाशन 2055 सँ यैह करैत छथि।

पचास वर्षक इतिहासमे नेपाल सरकारक पहिल बेर साझा प्रकाशनक अध्यक्ष पद पर राजनीतिक नियुक्ति जे से नेपाल भरिमे 2021-22मे भेल अछि से रामभरोस कापड़ि भ्रमरकेँ बनाओल गेल। तहिना प्रज्ञा प्रतिष्ठानमे नेपाल सरकार द्वारा जे पहिल बेर मैथिली साहित्यकार भेल से हिनके नाम एहि खातामे दर्ज छनि।

नेपालमे 12 टा।ेचमबज मे भ्रमर पहिल छथि।

1.  पहिल बेर मायादेवी प्रज्ञा प्रतिष्ठान पुरस्कार 50,000 टाकाक हिनका देल गेलनि।

ओ एहि लेल 2052सँ पुरस्कृत छथि।

2.  'नहि आब नहि' हिनक पहिल प्रेम काव्य छनि जे त्रि् भाषामे प्रकाशित भेल अछि।

3.  मैथिली अकादमी, पटनासँ प्रकाशित नेपालक पहिल कथाकारक पोथी अछि 'तोरा संगे जेबौ रे कुजबा'।

4.  नेपाल राजकीय प्रतिष्ठान द्वारा आयोजित गोष्ठीमे 2048 सालक पुरस्कार पाँच हजार टाकाक 'शूली पर टार्घैंल इजोत'केँ भेटल अछि।

5.  कोनो नेपालीय नाटक 'एकटा आओर वसन्त' नेपाल राजकीय प्रज्ञा प्रतिष्ठानमे मंचित भेल अछि। एहि पोथीक तीनटा संस्करण भऽ चुकल अछि।

6.  अन्तर्राष्ट्रीय नाट्य समारोहमे एहि नाटककेँ द्वितीय पुरस्कारसँ प्रकाशित कयल गेल अछि।

7.  2067 सालमे हिनका 'पहिल लोक साझा संस्कृति' पुरुष मैथिली साहित्यकार केँ भेटल।

8.  यात्रा चेतना पुरस्कार चेतना समितिसँ भेटल।

9.  शेखर सम्मान भेटलनि। ई पुरस्कार शेखर प्रकाशनक देन थिक।

10. विद्यापति सेवा संस्थान, दरभंगा द्वारा 'मिथिला विभूति सम्मान' भेटल छनि।

11. अन्तर्राष्ट्रीय मैथिली सम्मेलन द्वारा मुम्बईमे 'मिथिला रत्न' सम्मानसँ सम्मानित छथि।

12. 2069 क विद्यापति पुरस्कार प्राप्त कयने छथि 2 लाख टाकाक।

13. 'पार्वती सम्मान' सिसोदिया सर्लाही द्वारा भेटल छनि।

एहिना आर कतिपय सम्मानसँ सम्मानित भेल अछि। सम्मानक बोझ तरओ स्वयं दबल छथि। हिनका आब जे सम्मान भेटैत छनि से हिनक उपलब्धि् अबस्से थिक। मुदा, हमरा लगैत अछि जे आब हिनका लेल सम्मान बोझ परक आँटी थिक। लेखकक संग हिनक सम्पादनमे रुचि रहलनि अछि। सम्पादकक सन्ध्विच्छेद अछि सम्$पदन्। यैह क्रिया सम्पादन कहबैत अछि। संस्कृत पदमे सम् उपसर्ग लागिकऽ सम्पादक शब्द बनैत अछि। कोनो लेखकक लिखल रचनाकेँ व्याकरणक दृष्टिसँ ठीक करब अर्थात् सभ पदकेँ सम् यानि ठाक करबाक किया सम्पादन थिक। कोनो काजकेँ पूराकऽ पाठकक सोझाँ आनव सम्पादकक काज थिक। ओना ओ 'गामघरकेँ समाचार पत्रा बनौने छथि आ 'आंजुर'केँ साहित्यिक। मुदा, 'गामघरमे सेहो साहित्यिक रचना प्रकाशित भऽ जाइत अछि। एकटा बात ई ध्यान रखबेक थिक जे साहित्यजँ पत्राकारितामे अबैत अछि तँ सोनमे सुगन्धि् होइत अछि। तहिना जँ साहित्यमे पत्राकारिताक तत्व बेसिए घोंसिया जाइत अछि तँ गूड़ गोबर होयबाक सम्भावना बेस बढ़ि जाइत अछि। कारण साहित्यमे पत्राकारिता आबिकऽ बेसी सूचनात्मक आ तात्कालिक बना दैत अछि जखन कि साहित्य पत्राकारितामे आबिकऽ अनुभूत सत्यकेँ जगगियारकऽ मानवीयगुण ओ दृष्टिकोणक आधर पर कही तँ पाठकक अन्तर्मनकेँ अबस्से बेसिए स्तर धरिकेँ झकझोरि दैत अछि।

भ्रमर कथा, कविता, उपन्यास, नाटक, लोकसाहित्यक आ लोकसंस्कृति, साक्षात्कार, यात्रा संस्करण, निबन्ध्, डायरी, शोध विषयक आदि लिखलनि। हमरा जनैत ओ मूलतः कवि आ तकर बाद कथाकार छथि। ओ बहुविध्वादी छथि तँ स्वाभाविक अछि जे विभिन्न विधमे हिनक रचना दम-खमक संग आयल अछि। हेनरी डेविड थोरो' कहने छथि- 'सभसँ पैघ कलाकार वैह होइत अछि जे अपन जिनगीकेँ कलाक विषय बना लैत अछि'। भ्रमर यैह काज कयने छथि। ओ स्पष्टतः लिखने छथि- जीवन एकटा गति छैक / गतिक संग मनुक्ख आगाँ बढ़ैत अछि। संकल्पित ठाम धरि जाएब ;नहि, आब नहि-अर्चना, वर्ष-8 कार्तिक 2087। हिनक पोथी नहि, आब नहि' पहिने कुमार अभिनन्दनक नामसँ 'अर्चना'क 24 पृष्ठमेप्रकाशित भेल। दीर्घ कविताक ई पोथी अछि। ओना हिनक पहिल पोथी कविता संग्रहक बन्न कोठरी औनाइत ध्ुआँ अछि जे 2021 सालमे आयल अछि।

हिनक वैविध्य विषयक लेखनक उद्देश्य रहल अछि :-

1.  विभिन्न विधकेँ सुपुष्ट करब।

2.  सामाजिक व्यवस्थाकेँ बदलबाक प्रयास करब।

3.  इमानदारीपूर्वक अपन बातकेँ राखब।

4.  ओ जे ँ अपन वर्गक विरल लोक छथि ते ँ सर्वहारा वर्गक बातकेँ ध्वनित करब। अर्थात मूल्यबोधक संवाहक बनब।

5.  तथाकथित वर्ग द्वारा जे चक्रव्यूहक घेरा बनाओल गेल अछि तकरा अपन लेखनीबलें तोड़ब। कही तँ कमजोर आ बेबस वर्गक बात उठायब।

6.  एहन पैघ लकीर घीचब जकरा केओ लेखनबले ँ छोट नहि कऽ सकय।

7.  दृश्य आ ध्वनिक सेहो एकटा अर्थ होइत अछि। एहि दिस ध्यान तेना भऽ कऽ नहि जाइत अछि। ते ँ एकर सार्थक महत्ता उपस्थापित करब।

8.  पठन, लेखन, प्रकाशन आ वितरण दिस सचेष्ट भऽ नव पीढ़ीकेँ भविष्यक बाट देखायब।

9.  लेखनक हेतु भाषा ओ शैलीमे नव-नव सम्भावनाकेँ खोजब।

10. नव पीढ़ीक निर्माण करब जे आत्म सजग भऽ जनसमाजमे नव चेतना-जगबय।

ओ प्रायः बेसिए विधमे हाथ अजमौलनि। एतेक दूर धरि जे समकालीन कविताक सशक्त हस्ताक्षर होइतो ओ गीत, गजल आदिक संग 'पिरामिड' जे नव विध थिक सेहो लिखलनि। कथा, उपन्यास, निबन्ध् आदि लिखितो ओ नाटक लिखबाक दिस अग्रसरित भेलाह। प्रज्ञा प्रतिष्ठानमे नाटक महोत्सवक बात उठल आ एकटा वरिष्ठ नाटककारक नाटक अस्वीकृत भऽ गेल तँ मात्रा सात दिनक अभ्यन्तर तत्कालीन उपकुलपति डा.ईश्वर बरालक आग्रह पर 'एकटा आर वसन्त' नाटक लिखायल आ मंचित भेल। एही नाटक पर पिफल्म बनि नेपाल टेलिविजनसँ प्रसारित भेल।

ओ छोट-छोट नाटक प्रायः घंटा आध घंटा धरिक लिखैत छथि। 'नेताजी आबि रहल छथि', आ बौध्ू बाजि उठल' 'सूली पर इजोत' आदि बेस चर्चित-प्रशंसित भेल। लोकनाट्य जट-जटिन ;2064 साल, भैया अएलै अपन सोराज ;2067 साल आदि दरभंगाक विद्यापति सेवा संस्थानक मञ्च पर बेस जमल अछि। जनकपुरधम आ आनो ठाम जेना पटना आदिमे हिनक नाटक मंचित  भेल अछि। रंगमंचसँ जुड़ब आ रंगभाषा अर्जित करब श्रमसाध्य आ समय साध्य दुनू अछि।

ओ कैकटा पोथीक सम्पादन दक्षतापूर्वक कयने छथि। जेना लावाक धन ;2050 साल, गामघरक 2046क कार्तिक मासक आठम वार्षिक विशेषाघड्ढ मथुरानन्द चौध्री 'माथुर' लिखित 'त्रिशूली' सम्पूर्ण खण्डकाव्य जे 1876 पृष्ठमे आब( अछि। 'गाम घर'मे तँ कैकटा वार्षिक अघड्ढ संस्कृति विशेषाघड्ढ' वर्ष-4, अघड्ढ-1, कातिक 2042, अक्टू$नव. 1985, मू. 25 टाका, नेपालक मैथिली पत्राकारिता 2044 साल आदि अछि। महाकवि विद्यापति आ नेपाल', लोकनायक सहलेस' दू खण्ड, लोकगाथा नायक दीनाभद्री ;2070 साल आदि बेस चर्चित प्रशंसित अछि।

नाटक सम्बन्ध्मे एतेक तँ कहले जायत जे कथा, कविता, निबन्धदि जकाँ एके सुरमे कखनो नाटक नहि लिखल जाय तँ नीक। कारण, एहन नाटक लिखब नाटकक क्षमताक सौन्दर्यकेँ क्षति पहुँचायब थिक। कही तँ- 1. थियेटर एक्टिविस्ट 2. नियमित नाटक देखब 3. रंगमञ्चक आवश्यकतानुकूल नाटकक शिल्प, भाषा, पात्राक चरित्रा  चित्राण, संवाद अदायगी, विषय- वस्तु आ बुनावटि आदि पर ध्यान केन्द्रित करब थिक। 4. दृश्य संयोजनकेँ बुझब 5. पात्राक अन्तर्द्वन्द्व आ बाह्य चरित्रा-चित्राणकेँ ध्यान राखब 6. शब्दक मितव्ययिता 7. मंचीय प्रदर्शन आदि विश्ेष महत्व रखैत अछि। नाटककार भ्रमर एहि सभ बातकेँ नीक जकाँ जनैत-बुझैत नाटक लिखैत छथि। संगहि गीतक परिकल्पना सेहो करैत छथि। ओना तँ ओ प्रारम्भसँ नाटकक मंचन आ सिनेमा भरपूर देखथि। ओ एतिहासिक नाटक 'रानी चन्द्रावती' 2045 सालमे लिखलनि। मुदा, नाटक दिस हिनक बढ़ैत रूझान हिनका प्रगति आ प्रयोगपरक नाटक लिखबाक हेतु बेस आकृष्ट कयलक। ओ गौरसँ टेलीविजन पर होइत टेलीपिफल्म सभकेँ देखथि। अध्ुनातन दृष्टिएँ ओ नाटक लिखबा दिस प्रवृत्त भेलाह। कारण छलनि हिनक जिद्दपना ओ जिद्दपनाक फलस्वरूप कैकटा नाटक लिखने छथि। किएक तँ नेपालक मैथिली नाटककेँ नाटक बुझले नहि जाइक। दोसर, जे संस्था मिनाप नाटक करय ताहिमे कोनो एकटा खास व्यक्तिक मात्रा नाटक खेलायल जाइक। एही वर्चस्ववादी रीतिकेँ तोड़बाक आ मानसिकताकेँ जाग्रत करबाक उद्देश्यें ओ एक समयमे नाटक लिखबा पर जोर देलनि। ततबे नहि, मञ्चक खगताकेँ देखैत नाट्यमंचन हेतु अपन रुचि लैत कैकटा संस्थासँ सम्ब( भेलाह। एतेक दूर धरि जे एहि लेल ओ संघर्षपूर्ण चुनौतीकेँ स्वीकारलनि। अपने तँ नाटक लिखिकऽ प्रकाशित करबे करथि जे आनोकेँ नाटक लिखबाक हेतु प्रेरित कऽ  प्रकाशित कयलनि।

ओ प्रेमपरक अभिव्यक्ति विभिन्न विधमे बेस कयलनि। मुदा, ओ जखन काठमाण्डूमे पदासीन भेलाह तँ हिनक रचनामे एकटा नव स्तर आयल। ओ अभिव्यक्तिमे मात्रा करुणा आ दया-भाव उपजयबला प्रसंगे धरि सीमित नहि रहि मानवीय संवेदनाकेँ बेस जगजियार कयलनि। यैह ज्नतदपदह च्वपदज ;मोड़ जे समयानुकूल अनुभूत सत्यकेँ प्रतिपादित करबामे भेल। ओ जे बात अपन कथाक माध्यमे कहैयो चाहलनि, मुदा पूर्णतः कहि नहि सकलाह से मानवीय सरोकारकेँ आरो घनीभूत करैत, मानवताक पक्षमे ठाढ़, होइत, देश-दुनियाक आ खासकऽ नेपालक परिस्थितिगत परिवेशक उद्घाटन क्रममे मानवीय मूल्यवत्ताकेँ समक्ष रखैत 'घरमुहाँ' उपन्यास लऽ अयलाह। एकटा बात ईहो, कहब स्वयंसि( अछि जे रचना हिनका पियरगर लगलनि, लगबे कयलनि ताहि पर आनो विधमे कलम चलौलनि। 'शूली पर टांगल इजोत' निस्सन्देह अन्तर्राष्ट्रीय स्तरपरक नीक कवितामे परिगणित होयत तँ ताहि पर नाटक अछि।

ओ मोनोड्रामा सेहो लिखलनि। टी स्टॉलवाली मुनियाँक व्यथा-कथा ओ दू गोट विधमे लिखलनि। ई सत्य अछि जे मनोभावकेँ अभिव्यक्ति करबाक हेतु जँ सम्पूर्ण आकार कोनो एकटा विधमे प्राप्त नहि भऽ सकैत छैक तँ आनो-आन विधमे रचनाकारक रचना होयब स्वभाविके अछि। ताहिमे भ्रमर ? ओ अपन रचनाकें चमकयबा हेतु आन विधमे तँ उपयोग करबे कयलनि जे प्रचार-प्रसारक दृष्टिएँ आन भाषाकेँ सेहो चुनलनि। कही तँ आनो भाषामे अपन मातृभाषा मैथिलीकेँ पचौलनि। बहुभाषाविद् भ्रमरक योगदान नेपाली, भोजपुरी आदिमे अछि।

हिनक अन्वेषणपरक दृष्टि जाहि कोनो कारणे ँ वन-प्रान्तर वा स्थल-विशेषकेँ देखि-सुनिकऽ लिखबाक हेतु बाध्य कयलकनि। ओ एहि लेल रने-बने बौआयल छथि। लुम्बिनीक गौतम बु(क स्थलसँ लऽ कऽ दीनाभद्री, सलहेस आदि लोकगाथापरक स्थल धरि घुरि आयल छथि। ओहिना मोन अछि जे राजा सलहेसक कुलवाड़ीमे पुफलाइत ओ हारम पूफल जे असमयमे देखने छलाह। ओना ई पूफल स्थानीय भाषामे हारम कहल जाइत अछि, मुदा ई थिक आकिड। ओहि पूफलकें देखिते ओ पहिने अचम्भित भेलाह आ तकर बाद लाकैत मनुहार पर अतिरिक्त प्रसन्ताक लहरि दौड़ि आयल छलनि। सहजता आ जिज्ञासा दुनू भाव देखायल छल जेना नेनपनक कोनो कल्पित वस्तु भेटि गेल होनि।

ओ चिक्कन फोटोग्राफर छथि। हुनका फोटोग्रापफी करबामे बेस रुचि छनि। नव-नव वस्तुकेँ देखब, नव-नव स्थानक परिभ्रमण करब, नव-नव विषय-वस्तुकेँ उठायब वा कही तँ नवताक पक्षध्र ओ जिज्ञासु रहल छथि। ठीकसँ बिटिआयब तँ हिनक रचनाकेँ पढ़िते बुझि जायब जँ आलेखक संगहि फोटो सभ-प्रामाणिक, यथार्थपरक आ विश्वसनीय थिक।

ओ ढेर-ढाकी किताब जहिना लिखैत छथि से लगभग पचास धरि होयबा पर हेतनि। तहिना ओ ढेर-ढाकी पोथी कीनैत छथि, संग्रहित करैत छथि, पढ़ैत छथि। ओ स्वयं मानक साहित्यकार छथि। मुदा, जँ कतहु कोनो सन्देह होइत छनि तँ कोनो ने कोनो प्रकारें ताकि-हेरिकऽ वा सुयोग्य आ तद्विषयक विद्वानगणसँ सम्पर्क कऽ अपन कलमकेँ साध्ैत छथि। प्रयास रहैत छनि जे शोध्परक प्रवृत्ति होअय। 'राजकमलक कथा साहित्यमे नारी' विषयक पोथी छनि। प्रायः ओ एहि पर शोध्ग्रन्थ लिखबाक प्रयास कयने छथि। जेंकि हिनका डाक्टरी उपाध्कि ततेक आवश्यकता नहि बुझयलनि, ओना ई मानद उपाधि् एकटा संस्थासँ भेटलो छनि जाहि संस्थाप्रदत पर कतिपय जन अपन नामक पाछाँमे डॉ.लगबितो छथि। ओ अपन शोध प्रबन्ध् नियमतः प्रस्तुत नहि कयलनि तेँ की ? कतिपय जन तँ हिनक नामक पाछाँ 'डाक्टर' लगबिते छथि।

एकटा ई बात कहि देब आवश्यक अछि जे किनको सुसकेमे गुणानुवाद करी वा भर्त्सना करी तँ ओहि व्यक्तिकेँ ने हित होइत अछि आ ने अहित। सवाल विश्वासनीयताक अछि। जे ँ भ्रमर कर्मरत छथि ते ँ ढेर-ढाकी हीत-मीत छनि तँ बेस शत्राकेँ सेहो पोसने छथि। मुदा, ओ अपन पथसँ अखनो टससँ मस नहि होइत छथि। ओ अपन कर्म करैत रहैत छथि। लेखन-कर्मकेँ साध्ना बुझि ओ अडिग छथि। ओ जनैत-बुझैत छथि जे लिखल आखर मूल्यवान होइते अछि। समय मूल्याघड्ढन करबे करत।

ओ कखनो अपनाकेँ कमतर कऽ नहि आँकैत छथि। पहिरन-ओढ़नसँ लऽ कऽ रहन-सहन ओ लेखन-कर्म धरिमे कतहुसँ कोनो समझौता नहि करैत छथि। ओ बोन-झाड़सँ गुलाबकेँ चुनि लैत छथि आ घास-पात, काँट धरिकेँ बेकछाकऽ फराक रखैत छथि। जाहि रचनाकारमे हिनका प्रतिभा बुझाइत छनि, किछु करबाक उफहि बुझाइत छनि तनिका भरपूर मदति करिते छथि।

ओ स्वयंमे एकटा आन्दोलन छथि। हिनक रचनाकाल जाहि राजशाही शासन-कालमे भेल, लिखबा पर संयमित रहय पड़ैत छल ताहि अवध्मि सेहो बेस लिखलनि। आइ नव प्रजातांत्रिक युगमे सेहो खूब लिखि रहल छथि। ढेर-ढाकी किताब लिखिये लेब कोनो खास विशेषता नहि रखैत अछि। जेंकि गुणात्मक दृष्टिएँ ओ किछु रचना देलनि अछि जाहि बलें ओ समादृत छथि, रहबे करताह। हमरो जे हिनक व्यक्तित्व-कृतित्वकेँ मूल्याघिड्ढत करबाक सुअवसर भेटल अछि से आब हिनक सद्यः प्रकाशित पोथी 'मिथिलाक लोकजीवनः लोक संदर्भ' पोथीक विमोचनक सुअवसर पर भेटल अछि। एहि तिथि 08.05.2022 कऽ वेलकम, जनकपुरधम ;नेपालमे ई आलेख पढ़ैत हम अपनाकेँ गौरवान्वित बुझैत छी। प्रभावशाली आ प्रासंगिक व्यक्तित्व ओ कृतित्वक धनी रामभरोस कापड़ि भ्रमरक सम्पूर्ण पचास वर्ष की, रचनाकाल 58 वर्षक परिदृश्यकेँ मूल्याघिड्ढत करब ततेक सहज नहि अछि। तें हिनक सम्पूर्ण सहित्यिक साध्ना ओ जीवन-कर्मसँ सै(ान्तिक आ व्यावहारिक ढर्घैं एकटा छोट-छीन आलेखमे गुम्पिफत कऽ लेब ततेक सोझ आ सरल नहि अछि। ई हम मानैत गछैत छी जे हिनक रचनाकर्म पर जाहि ढर्घैं ईमानदारी आ वास्तविकताक संग आलोचना-प्रत्यालोचना होयबाक थिक से नहि भऽ सकल अछि। जखन कि हिनक रचना-कर्म उपेक्षित रहल अछि सेहो नहि कहल जा सकैत अछि। पैघसँ पैघ साहित्यकार हिनक रचना पर वा कही तँ पोथी पर कलम चलौने छथि। किछु जनक नजरिमे ओ खटकितो छथि तँ कतिपय भद्रजनक आँखिमे बसलो छथि। साहित्य आ साहित्येतर दुनू कोटिक ओ रचना कयने छथि। किछु फरमाइशी रचना सेहो छनि। दवाबमे लिखल गेल फरमाइशी रचना जँ कखनो कऽ अपन मूल्यबोध निर्धरित करितो अछि तँ बेसिये एहन रचना हलुकबितो अछि। मुदा, मुक्त भऽ आत्मसात रचना जँ कागत पर उतरैत अछि तँ निस्सन्देह फलदायी बनैत अछि। हड़बड़ी-धड़फड़ीमे लेखक बनबाक लौलें पेफसबुकिया रचनाकारसभमे बेसिये साहित्यिक घातक बनैत अछि। जेंकि हिनक रचना मूल्याबोधक कसौटी पर सही उतरैत अछि तें आइयो हिनक रचनात्मक जड़ि आरो गहींर अछि आ जमीनसँ जुड़ल टिकल अछि। सहमति-असहमतिक सन्धिबिन्दु पर ठाढ़ भ्रमर अपन रचनाबलें कही तँ रचनात्मक परिदृश्यकेँ उभारबामे सक्षम छथि। कालान्तरमे हिनक कर्म-र्ध्म अबस्से भविष्यक पीढ़ीसँ आत्मीय सम्बन्ध् बनौने राखत आ समयक संग संवाद स्थापित करैत रहत। कतिपय जनकेँ भविष्यमे विश्वासो नहि होयत जे एहन सक्रिय रचनाकार एतेक काज कऽ क्रान्तिक लौ जगा देने छथि। ओ जे ँ जीवट छथि तें हिनक आत्मकथा देखबाक लिलसा हमरा जगले अछि। एहि विधक पोथी मैथिलीमे अत्यल्पे अछि आ हिनक एहि विधक छूटल पोथीसँ पाठक लाभान्वित होयत।

 

अपन मंतव्य editorial.staff.videha@gmail.com पर पठाउ।