दिनेश यादव
लोक मैथिली केर विभूति 'भ्रमर'
नेपालक धनुषा जिल्ला बघचौडा गाममे ७२ वर्ष पहिने राम भरोस कापडि 'भ्रमर' के जन्म भेल छलनि। एकैहटा व्यक्तिके अनेक रुप कवि, कथाकार, नाटक लेखक, पत्रकार,सम्पादक आ प्राज्ञ। एकटा बहुआयम रहल लोक शायद 'भ्रमर' बाहेक आर कियौ नए भँ सकैत अछि। मैथिली साहित्यमे विभिन्न पुस्तक प्रकाशित कँ चुकल ओ नेपाल प्रज्ञा प्रतिष्ठानके प्राज्ञ परिषद् सदस्य आ साझा प्रकाशनके अध्यक्षके समेतके भूमिका निर्वाह करबाक अनुभव सेहो प्राप्त कएने छथि।
प्रारम्भिक शिक्षा गामे सँ पुरा केलाक बाद ओ उच्च शिक्षाक लेल जनकपुर पहूँचलाह। ओतैह संचालित त्रिभूवन विश्वविद्यालयक आंगिक क्याम्पस रामस्वरुप रामसागर बहुमुखि क्याम्पससँ ओ स्नातकोत्तर उत्तीर्ण कएलनि। बहुमुखी प्रतिभाके धनी कापडि कविता, कथा, प्रबन्ध, निवन्ध, नाटक, गीत, यात्रासंस्मरण आदि विविध क्षेत्रमे दशकौं सँ कलम चलबैत आइब रहल छथि। ओ मैथिली भाषा साहित्यमे सब सँ बेसी सक्रिय रहला अछि। तथापि हुनकर नेपाली, हिन्दीसहितके भाषा साहित्यमे सेहो ओतबे अतूलनीय योगदान छइन। मैथिली साहित्यमें बौद्धिकताके पैघ आ अविस्मरणीय पदचिन्ह छोड्वामें ओ कुनू कसैर शेष नहि रखला अछि। ओ नेपालक प्रज्ञा प्रतिष्ठानमें होए किंवा साझा प्रकाशनमे, जतह रहला सबठाम लोकमैथिली भाषा, साहित्य आ कला क्षेत्रमे अद्वितीय काज करैत रहला अछि। नेपालीय मैथिली भाषा क्षेत्रमे हुनक उचाई एकटा गरिमा कायम कँ चुलक अछि।
अपन मातृभाषामें सदखनि साहित्य साधना करैत रहला 'भ्रमर' मैथिली साहित्यकेर 'शेक्सपियर' छथि। ओ पत्रकार, साहित्यकार, लेखक आ सर्जक मात्र नए युगस्रष्टा सेहो छथि। आबाजविहिनके आबाज बनि ओ सदखनि अपन समाजके लेल ठाड रहला अछि। तईं हुनका युगस्रष्टा किंवा युगद्रष्टा कहबामे कुनू विमति किनको नहि होमाक चाहि। ओ ब्राह्मणेत्तर समाजक प्रतिनिधित्व करैत जहि रुपसँ अपन उपस्थिति मैथिली साहित्य क्षेत्रमे जनौने छथि ओ बहुतके लेल असंभव मात्र नै दूलर्भ सेहो भँ सकैत अछि। ओ मैथिली साहित्यकेर माध्यम सँ एकटा एहन युगक निर्माण केलथि जकर बर्णन करबा असंभव बुझाइछ।
क्रान्तिके गीत होए किंवा मैथिली साहित्यके बहुआयामिक संवद्र्धनक बात होए , सबमें ओ अपन कमल निरन्तर चलबैत अविछिन्न ताराके भूमिकामे रहला अछि। यथार्थवादी भावभूमि आ प्रगतिवादी चिन्तनक प्रतिष्ठापनमे हुनक विशिष्ट योगदानक चर्चा परिचर्चा केनाई नेपालक भूमिमे किनको बसके बात नहि भँ सकैत अछि। हमरा जनितब, मैथिली साहित्यके युगानुरुप आगा बढेबाक हुनक साधनाके सम्मान करबामे किनको कंजुसाई नहि होमाक चाहि। नेपाल पंचायतकालसँ गणतन्त्रमे आबि गेल अछि, अहि राजनीतिक परिवर्तन आ रुपान्तरणमे कापडिके योगदान प्रत्यक्ष आ अप्रत्यक्ष रुपमे ओतबे रहल अछि। हुनक जीवन्त मैथिली साहित्यिक रचनाके माध्यमसं अहिमे ऐतिहासिक भूमिका निर्वाह करबाक प्रमाणसब सेहो खुबे भेटयैक छैक।
नेपालक सबसँ बेसी बजैवाला लोकमैथिली भाषाके माध्यमसं मातृभाषीके जोडबाक काज ओ करैत रहला अछि। लोकमैथिली भाषामे अपन उज्जर प्रस्तुति आ शैलीके माध्यमसं सदखनि एकताक भावके संरक्षण र संवद्र्धन करैत रहला अछि। ई काज हुनका चिरस्मरणीय अछि आ नवतुरिया पीढीजनके लेल गौवान्वित होमाक विषय सेहो थिकैह। ओ नेपालीय लोकमैथिएटामें मात्र नय भारतीय मैथिलीमें सेहो ओतबे अपन प्रस्तुतिके जर्बदस्त बनौने छथि। तई नेपाल आ भारत दुनू कात हुनक योगदानक महिमामंडन खुबे होइत छइन। लोकमैथिलीमे बर्षौसँ जारी ब्राह्मणवादके बाबजूद एकटा ब्राह्मणेत्तर समूदायसँ जई तरहे ओ उपस्थिति जनौलथि अछि ओ अतूलीयन त अछिए, बेजोड सेहो ओतबे अछि। तईं कैह सकैत छि जे ओ सभहकले प्रेरणाके स्रोत थिकाह। कियैक त कापडि मैथिली साहित्यमे स्वच्छन्दतावादी काव्यधाराके एकगोट विशिष्ट प्रवर्तक, प्रजातन्त्र, लोकतन्त्र, राष्ट्रियता, स्वतन्त्रताके प्रतिमूर्ति सेहो छथि। तई लोकमैथिलीके इजोत करैमे ओ स्वयं कहियो प्रकाशक संपादकके रुपमे उपस्थित भँ जाइत छथि त कहियो गैर मैथिली भाषाके प्रत्रिकामे सेहो लोकमैथिलीके उत्थान, विकास आ प्रर्बधन हेतू अपन कमल चलबैथि रहैत छथि। ओ लेखक, विश्लेषक, संपादक, प्रधान संवादक, आलोचक मात्र नहि थिकाह , लोकमैथिलीके एकगोट पैघ, सम्मानित आ विभूति सेहो थिकाह।
भ्रमर लोकमैथिली साहित्यमे मात्र नय नेपाली साहित्यके श्रीवृद्धिमे सेहो ओतबे सक्रिय रहला अछि। नेपालीमें अपन गजलके माध्यमसँ गजल गायिकीके परिभाषित करैत भाव, अभिव्यक्ति, शब्द, मौन आ लोकक जीवन अविछिन्न चलि रहल जीत हार आ मनुख्कके चेहरामें लागल अनेक मुखडाके गजब शैलीमे परोसैत छथि
नेपाली गजल ः तरंग जिन्दगीको
गजल गायिकी हो तरंग जिन्दगीको
भाव वनिता हो तरंग जिन्दगीको
अभिव्यक्तिमा आउँछ धुन तालको सरगम
शब्द व्याख्या हो, तरंग जिन्दगीको
मौन बसेको हो वा उमंग टाढासम्म
त्यसैको उच्चछास हो, तरंग जिन्दगीको
जित हारको खेल चलिरहने हो सधैं
पचाउने सामथ्र्य हो तरंग जिन्दगकिो
मानिसको अनुहारमा टाँसिएका मकुन्डो अहा
'भ्रमर' को व्यापार हो तरंंग जिन्दगीको।
(स्रोत ः नेपाल प्रज्ञा प्रतिष्ठानके कविता प्रधान चौमासिक पत्रिका 'कविता', पुर्णांक ः ९६, आश्विन पुस, २०७०)
अपन मातृभाषामे सेहो गजल विद्यामे हुनक ओतबे ओजपूर्ण प्रस्तुति रहलैए। निचा हुनक एकगोट प्रतिनिधि गजल देलगेल अछि। अहि गजलमें ओ जीवन संघर्ष आ चुनौतिसं लडबाक लेल आश भरोसा देमामें कुनू कसैर बाँकी नहि रखने छथि
मैथिली गजल ः एखन बाँकी अछि
करिछौंह मेघके फाटब, एखन बाँकी अछि
चम्कैत बिजलैंकाके सैंतब, एखन बाँकी अछि
उठैत अछि बुलबुल्ला फूटि जाइछ व्यथा बनि
पानिके अडाबे से सागर, एखन बाँकी अछि
बहैत पानिआओ किनार कतौ खोजत ने
अगम अथाह सन्धान, एखन बाँकी अछि
फाटत जे छाती सराबोर हएत दुनियाँ 'भ्रमर'
ई झिसी आ बरखा प्रलय, एखन बाँकी अछि।
(स्रोत ः नेपाली गजल गुगल ग्रुप, २००९)
साहित्यकार भ्रमरके किछु काव्यसंग्रह
क्र.सं. पोथीके नाम विधा प्रकाशित वर्ष (विक्रम संवत्)
१. बन्न कोठरी औनाइत धुँवा कविता संग्रह २०२९
२. नहि, आब नहि दीर्घ कविता २०३६
३. मोमक पधलैत अधर गीत-गजल २०४७
४. अप्पन अनचिन्हार कविता संग्रह २०४७
५. भयो अब भयो अनुवाद (नेपाली) २०७०
६. बस अब नही अनुवाद (हिन्दी) २०७०
७. अन्हरियाक चान गजल संग्रह २०७०
८. युद्धभूमिक एसगर योद्धा कविता संग्रह २०७५
प्रतिनिधि कथा 'एंटीवायरस'
भाषा, साहित्य, संस्कृति राष्ट्रके निधि होइछ। एकर उत्थानस' राष्ट्र उत्थानक झलकके अनुभूति होइछ। समालोचनाक अर्थ सृर्जनाकृति (काव्य, गद्यसहित) के उपर सिद्धान्तपरक सृजनशील पठन होइछ। कियो स्वीकार करौंक वा नइ करौक, मुदा इ एकटा सत्य थिक शाक्तिशाली समालोचकीय पद्धति स्थापित नइ होमेधरि सृजनात्मक लेखन आ पठन अपेक्षित उचाइ प्राप्त नइ कए सकैछ।
एक दिसि हनुमान चालिसाक बिसैरजाइवाला स्तुतिगान आ दोसर दिसि अन्यायोचित क्षुद्र वाणीस' भरल निन्दापरक दुनू धारसं नेपाली साहित्यिमे आन मातृभाषा (मैथिलीसहित) समालोचना मुक्तिक चाहना रखने अइछ। मैथिली साहित्यिक समालोचनामें त भावुकतामय स्तुति आ आवेशमय निन्दाक प्रवृति बेसी भेटैक छै। मैथिलीमें सभस' पैघ दुर्भाग्य एहा छै। एक त कम साहित्यिक पोथीक प्रकाशन, ओहूमें सहि समालोचनाक अभावमे मैथिली पद्य आ गद्यसहितके आख्यान हक्कन कानि रहल अछि। मैथिली साहित्य मुलतः जीवनीपरक, प्रभावपरक, विवरणात्मक आ सूत्रपरक प्राध्यापकीय शैलीके हतोत्साहित करैत आगा बढबाक आवश्यकता संगैह सिद्धान्तपरक समालोचनाक अपरिहार्यता आब भए चुकल अछि।
मिसले फुकोक संकथनक सिद्धान्त अनुसार राज्यव्यवस्था आ समाजव्यवस्था विभिन्न पात्रसभके वशिभूत बनाके कोनाक किछू गोटा अपन साम्राज्य मैथिली साहित्यमे कायम कएने छइ, तक्कर तित अनुभव ई स्तम्भकार सेहो कएने अइछ। एकरा तोडबाक अनिवार्य अछि।
वरिष्ठ साहित्यकार रामभरोस कापडिके कथा संग्रह 'एंटीवायरस' के एतह प्रतिनिधि कथासंग्रहके रुपमें प्रस्तुत कयल गेल अछि। संग्रहमें सीमान्तकृत, किनाराकृत, अपहेलित, शोषित, अभिसप्त, सबाल्टर्न, मुहदूबरा आ सुधा लोकैनके विषयवस्तु भेटैछ। ई भ्रमरके तिसरका कथासंग अछि। नेपालीय मैथिली भाषी क्षेत्रमे सभसं बेसी पोथी निकालैवाला व्यक्तित्व ओहे छथि। एक संवादमे ओ कहने छलाह, 'सडचालिसटासं बेसी पोथी प्रकाशित अछि।' ओहिमेस' 'एंटीवायरस' एकटा अछि। मैथिलीमे राज्यद्वारा पेलैवाला प्रवृति अखनो अइछे। भ्रमरक साहित्यमे ओइ प्रवृतिके फराक शैलीले विरोध भाव देखल जाइछ ।
ताहिना मैथिलीक किछु लेखकक सामन्ती संस्कारवाला प्रतिनिधि पात्र आ शैली हुनकर लेखनीमे कम भेटैछ। एकर पुष्टि डा. मेघन प्रसादक 'मैथिली कथा कोष' सेहो करैत अछि। मैथिली भाषाक कथासभमे सामन्तवाद आ ग्रामीण मुखियावादक अवशेषसभ अखनो देखमामे अबैते अछि। आब अइ तरहे मानसिकताक विरोध सेहो होमे लागल अछि। 'एंटीवायरस' अइ आलोकमे नया स्वादसहित एकटा प्रतिनिधिमूलक उदाहरण भए सकैत अछि। अइ पोथीक कथासभमे एकटा कथाकारक मार्मिकता आ हार्दिकता स्पष्ट रुपसं अनुभव होइछ। अध्ययनक क्रममे मिथिलाक बहुत कथाकारक प्रस्तुति हेतुवाद (रेसनलिज्म) आ व्यक्तिगत बहुलठपन (इन्डिभिजूए इंस्यानिटी) देखमामे अबैत अछि। ओकरा तोडबामे 'एंटीवायरस' सफल भेल बुझाइछ। अई कथा संग्रहकक नाममे लिखल गेल 'एंटीवायरस' मे घरनीसं पीडित पतिक पीडा आ बेदनाके मार्मिक ढंगसं प्रस्तुत कएल गेलछ।
कथामे काम करैवाला लोक नइ राखब, राखबो करब त शंका उपशंका करब, अपनेसं कएलापर समय बहुत खर्च कएनिहार महिला पात्रक चरित्र गजब शैलीमे उजागर कएल गेलछ। भान्साघरक आबाज आ कम्प्युटरपर बैसैयवाला पतिके घरनीक रोषसं थकान मेटेबाक प्रयासमे अपन पीडाक डिलिट करैत अपने धूनमे मग्न रहैक बात बेजोड रुपसं आएलछ। कथा पढैवालाके थकान सेहो दूर होमाक सुखानूभूति भए सकैछ।
अई पोथीक दोसर कथाक विषय 'आइ.सि.यू.' के बनाओल गेलछ। अइमे एकगोटा बिमार लोकसं भेट करैक लेल पहुंचयवाला आफन्तजन आ नर्सबीचके संवादमे रोचकता अछि। लेखक बिमार भैयाप्रतिक अनुजक छटपटाहट कून तरहे होइत छैक, तकरा अदूभूत बड्ड मार्मिक शैलीमे चित्रण कएने छथि, कथामे। बुझाइछ, घटना अपने आइख आगा भए रहलैए। पाठकके स्तब्ध आ आतूर बनेबाक सामग्री अइमे पसरल पडल अछि। मुदा कथामे एकैहबेर आबैयवाला पात्रसभ 'लखना', 'नारायणजी'....कथाक अ रसगर बना दैत छैक। संक्षेपमे अइ तरहे पात्रक परिचय खडकैत अछि। कथाकार कियैक ओकरासभहक परिचय खोजबाक जिम्मा पाठकके देने छैथ ? ई पाठकक लेल अन्याय भेल अछि। जे जेना, अइ कथामे बिमार पात्रके विगत परिछाबैत कथाकार अपन शालिनता जइ तरहे चित्रण कएने छैथ, ओ खूद भावुक त बनले छथि, पाठकके सेहो भावुक बना दैत छथि। कथाकार अपन भैयाक विगत सम्झैत भावविह्ल होइछ आ आईसियूसं निकैलके हरियर गाउन कांटीमे टाङ्गलाक बाद हलका महशुस कएल गेल भाव प्रकट कएने छथि। अन्त्यमे पहुंचैत पहुंचैत 'मोन कतेक हल्लुक होइत अछि, चेम्बरसं बहरा जाइत छी' वाक्य कथाकारक कृर्तिम भाव प्रकट भेल महशुस होइछ। ओतेह आइसियुसं निकललाक बाद भावुक वा मोन भारी होमाक भाव एमाक चाहि। 'अमृत पान' कथा मौलिक अछि , प्रस्तुति अद्वितीय। अई कथामे बेटीके 'पटनावाली' कहल गेल अछि। अइ प्रस्तुतिमे रोचकतासंगै पाठकके जिज्ञासु बनेबाक प्रयास भेल अछि। अईसं पुरे कथा पढबाक चाहना होइछ। अई तरहे प्रस्तुति कथाक 'गुरुत्वाकर्षण' बढा दैत छै। मुदा कथा समुचा पढलाक बादो 'पटनावाली' बेटीक नाम नई भेटैक छै, नाम देलासं कथाका प्रसांगिकता अउर बैढ जाइछ। अईमे मधेस आन्दोलनक बात सेहो पडल अइछ। बन्दीक कारण मैथिली संस्कृति आ परम्परागत पर्व तिलासंक्रान्तीमे पडल प्रभावपर निक शैलीमे पढबामे मिलैत छै। बेटीके संक्रान्तिमे चुरा, तिल, मुरहीक लाय नइ पहुंचा सकल विषय जन जनके हियाके हिला दैवाला छैक।
कथामे मधेस आन्दोलनक चर्च होइते कथाकार बेसी भावुक बनल अनुभव होइछ। अइसं विषयान्तर भेल महशुस सेहो होइछ। चायवाला आ ग्राहकके संवादसंगैह मैथिली संस्कृतिसं जुडल विषय कथामे प्राण भइर दैछ। शुरुमे तिला संक्रान्तिमे तिल गुड खेबाक संस्कृतिके कोनाक बढैत सहरीकरणसं अतिक्रमित भए रहल अइछ, तक्कर शानदार प्रस्तुति अप्पन गुरुत्ववलके कायम रखमामे सफल अइछ, कथा। कथासंग्रहमे मौलिकताक स्वाद बेर बेर चखबाक अवसर भेटैछ। पात्रसभहक चयन सेहो निक जकां कएल गेल अछि। पोथीमे बीसटा कथा समेटल गेल अछि। सभटा समयसान्दर्भिकतासं भरल पुरल अछि। पोथीमे समटल गेल कथासभ शीर्षक अनूकूल त अइछे, कथाक शब्द सीमाके सेहो निक जका पालना कएल गेल अछि।
'द्वितीय श्रेणीक एकटा डिब्बा', 'क्वार्टन नं. एफ तीन', 'पराकम्पन', 'परिवर्तन' ,'मुनियां टी स्टल', 'अन्न धन लक्ष्मी', 'गंगाप्रसादक स्वायत्तता', 'प्रतीक्षामे', 'दहेज', 'उडान', 'आ आब होरी आबि गेलै', इजोरिया रातुक सपना', अन्ततः, 'भेलेन्टाइन डे आ गुलाब', 'मर्निग वाक', 'सीमापरक भूत' आ 'सपना' कालजयी कथावस्तुसभ अइछ (भ्रमर ः२०१९)। कहियो पुरान नई होमेवाला विषयवस्तुक उठान भ्रमर कथासंग्रहमे कएने छथि।
अइमे सं वैदेशिक रोजगारीक विकृतिपर लिखल 'अन्न धन लक्ष्मी' समस्या आ समाधान दूनूके साथ परोसल गेल अइछ। कतेको साहित्यकारक कथासभ खासकके नवसिखुवासभ पाठकके सन्देश दइसं पहिने अपन लेखनीके गला दबा दैत छथि। ओहूना समस्या आ समाधान संगसंगै एनाई कथाक विशेषता होइछ, एकरा निक पक्ष मानल गेल छइ। 'अन्न धन लक्ष्मी' एकर निक उदाहरण भए सकैत अछि। अइ कथाक नेपाली अनुवाद कान्तिपुर दैनिकमे सेहो प्रकाशित भए चुकल अइछ। 'एंटीवायरस' मे फराक फराक शीर्षकमे फराक फराक स्वाद मिलैत अछि।
'उडान' कथाक संवाद रोचक अछि। जन जनसं जुडल यथार्थपरक विषयवस्तु अई कथासंग्रहके प्राण थिक, बेर बेर पढबाक लेल ककरो मोन ललाइत भए सकैत अछि। भ्रमरक नूतन अइ कथासंग्रहक कमजोरी जे ई जनबोली नइ बैन सकल। संस्कृतिभाषा जका जन जनके जिभसं उच्चारण करैमे कठीन होमवाला दरभंगिया आ मधुवनीक संभ्रान्त आ मानक मैथिलीक (जे अखन निर्धारण नइ भेल अइछ) शैली प्रयोग कतहू कतहू कएल गेल अछि। भाषाक शैली जनजिभहक बोली आ सरल भाषिका होमेके चाहि, कथाकार अईमे चुइक गेलाह से अनुभव होइत अछि।
साहित्यकार कापडिके किछु कथा संग्रह
क्र.सं. पोथीके नाम विधा प्रकाशित वर्ष (ईश्व संवत्)
१. तोरा संगे एजबौ रे कुजबा कथासंग्रह १९८४
२. हुगली उपर बैहत गंगा कथासंग्रह २००९
३. एंटीवायरस कथासंग्रह २०१९
साहित्यकार कापडि यात्रा संस्मरण, उपन्यास, डायरी लेखन, नाटक, शोधसहितके विद्यामे सेहो ओतबे कलम सशक्त कलम चलौने छथि। वि.स. २०६९ मे प्रकाशित हुनक 'घरमुहाँ' उपन्यास अत्यन्त चर्चित अछि। ताहिना जनकपुर ललितकला प्रतिष्ठानसंग वि.स २०७० मे प्रकाशित डायरी 'कोरोनाक संत्रासमे ओझराएल जिनगी (लकडाउन डायरी) पठनीय मात्र नए शिक्षाप्रद आ प्रेरणादायक सेहो ओतबे अछि। मैथिली साहित्यके एकगोट नक्षत्र कापडि द्वारा लिखल नाटकसब खुबे पढल गेल अछि आ मञ्चल सेहो ओतबे भेल अछि। हुनकर किछु चर्चित नाटकसबमें रानी चन्द्रवती, एकटा आओर बसन्त, महिषासुर मुर्दावाद आदि अछि। साहित्यकार कापडिके उत्कृष्ट नाटकसब नेपाली मे सेहो अनुवाद भेल अछि। शोध क्षेत्रमे सेहो हुनकर योगदान अतूलनीय छइन। जनकपुरधाम र यस क्षेत्रका सांस्कृतिक सम्पदाहरु, राजकमलक कथासाहित्यमे नारी, लोकनाट्य ः जट जटिन, मैथिली लोकसंस्कृति(आलेख संग्रह), तराईको फाँटदेखि हिमालको कांखसम्म (आलेख संग्रह), राजा सलहेस (जीवनी), मैथिली लोकसंस्कृति ः विविध आयाम आदि हुनक पठनीय आ संग्रहनीय शोध पोथीसब अछि।
संपादनमे सक्रियता
साहित्यकेर महत्वपूर्ण विद्यामेसँ संपादन सेहो एक अछि। अईमे साहित्यकारक संलग्नताके अनिवार्य मानल जाइछ। जे सर्जक, श्रष्टा अई विद्यामे निपूण अछि, हुनकर साहित्यिक रचना गहिगर, पुष्टकर, पठनीय आ उत्कृष्ट सेहो मानल जाइछ। अई विद्यामे सेहो मधेश प्रज्ञा प्रतिष्ठानक अध्यक्ष कापडि ओतबे निमुण आ प्रारंगत छइन। हुनक संपादनमें प्रकाशित कृति, ग्रन्थ आ पोथीसब उत्कृष्ट भेटैछ। मैथिली पदसंग्रह,लाबाक धान, त्रिशूली, नेपालक मैथिली पत्रकारिता, मैथिली लोकनृत्यःभावभंगिमा एवं स्वरुप, हम और तुम, मैथिली नाटक संग्रह, महाकवि विद्यापति आ नेपाल (निबन्ध संग्रह) , लोकनायक सलहेस (निबन्ध संग्रह), लोक गाथा नायक ः दीना भद्री (निबन्ध संग्रह) आदि हुनके संपादनमे प्रकाशित अछि। अईमेसँ अधिकांशके प्रकाशन नेपालक प्रज्ञा प्रतिष्ठान कएने अछि।
रामभरोस कापडी मैथिली भाषा, साहित्य आ संस्कृतिके जगेर्ना कएनिहार महत्वपूर्ण व्यक्तित्वसभमे सँ एकगोट थिकाह , जे अपन माटिपानिके आबाजके साहित्य सिर्जनाके माध्यमसंग सदखनि उज्जर बनबैत रहलाए। प्रतिभाके अमिर ओ साहित्यके विविध विद्याके समानान्तर आ निरन्तर अग्रगति दैत रहलाए। तई मैथिली साहित्य आ आख्यान क्षेत्रमे अर्धशतक सँ बेसी पुस्तक प्रकाशन कए चुकल अछि। ओ कविता, नाटक, कथासहितके विषयमे निरन्तर रचनात्मक कार्य करैत मैथिली भाषासाहित्यमे सेवा दए रहला अछि।
स्वभावजन्य गुण
साहित्यकार एवं प्राज्ञ कापडि अपनाविरुद्ध भेल कोनो भी आक्रमणके ओ ठंडा मिजाससँ टैकल करैमें निमुण छथि। गुटबन्दीमे हुनक विश्वास किन्नौह नई देखल गेल छइन , मुदा ओ सदखनि एकर सिकार रहलाए। बहुत रास बेर ई स्तम्भकारसंग सेहो ओ अपन अई तरहे सिकारक जिक्र कए चुकल छथि। बहुत लोक अपन मोनक बात सत्य भेलाके बावजूदों बोलबाक साहस नई करैत छथि, कियैक त सत्य बोलबाकलेल व्याग्र छाति चाहि। अई तरहे छाति मैथिलीजनमें बहुत कम भेटैछ, ओ छाती कमोवेश साहित्यकार रामभरोसमे देखल गेल अछि। करियाके करिया आ उज्जरके उज्जर कैह देनाई हुनक स्वभाव देखल गेल अछि। मोनक बात ओ बेधडक कैह दैत छथि, तई बहुत रास लोक हुनकासँ खिसियाएल पिताएल रहैत छथि। अपन अई स्वभावजन्य गुणके कारण किछु लोक हुनका 'सामन्ती' के उपमा सेहो देबाक लेल पाछा नए रहैत छैक।
मैथिली भाषासाहित्यमें लेखक लोकइनके आक्षेपमूलक प्रभाव बहुत कम भेटैट छैक। खास ककें सहगोत्री, स्वजाति लोकन्हिमे ई प्रभाव त भेटते नई छै। जौ ब्राह्मण आ ब्राह्मणेत्तरके बात अबैत अछि त आक्षेपक प्रभाव मैथिली साहित्यमे वर्षौसं आब भेटैछ। मुदा किछु गोटके छोडि समालोचना विधाजन्य कार्य मैथिली साहित्यमे बड् कम छैक। बहुत रास लेखकगण स्तुतिगान आ प्रशंसागानके आत्मरति रमैत रहलाके कारण समालोचनात्मक पोथी नगन्य छैक। साहित्यकार रामभरोस सेहो अई क्षेत्रमे चुकल बुझाईछ। पचारटासँ बेसी पुस्तक प्रकाशन भेलाके बादों ई समालोचना विद्यामे हुनक उपस्थिति नय भेनाई नवतुरिया आ नवपिढीके लेल अन्याय अछि। शिरमौर्य साहित्यकारके आन विशिष्ट साहित्कार, समालोचक, कवि, निबन्धकार, नाटककार आदिप्रति हुनक धारणा नवपिढीसभ पढबाकलेल आतूर छथि।
ब्राह्मणेत्तर आ कायस्थ्येत्तरके कारण मैथिली साहित्यमे बहुतोंके दिल आ दिमागमे ईष्र्याभाव जगबैवाला उपस्थिति अछि। मैथिली साहित्यमे ब्राह्मणवादीसभहक दबदबा, सघन उपस्थिति आ सहभागिताके कारण आन समुदायके लोकसभके प्रभावशाली, गौरवशाली उपस्थिति आ सहभागिता गौण छै। ई एकटा यथार्थ अछि। मुदा अई यथार्थसं उपर छैथ , प्राज्ञ रामभरोस। मैथिली साहित्यमे किनाराकृत समुदाय, जाति आ वर्गसं प्रतिनिधि कएनिहार ओ ब्राह्मणेत्तर आ कायस्थ्येत्तरके एकगोट रोलमोडेल बनबाक चाहि, मुद्दा नइ बैन पाबि रहल छथि। एकर बहुत रास कारण भएसकैत अछि ,ओहिमे सँ एकगोट कारण ईहो भँ सकैत अद्धि जे ओ मैथिली साहित्यकारसभमे पाओल गेल पुरातन मानसिकता, मनोभवा, मनोविज्ञान जे अपनासँ पैघ आ आगा बनेबाक दिशि दोसर बढैए नै देनाई छैक ई संकिर्ण संस्कार मैथिली साहित्याकारसभमें गत्तर गत्तर भरल छैक, एकर अपवाद भेटनाई मुश्किल अछि। मुद्दा साहित्यकार रामभरोसमे आनके तुलनामे अई क्षेत्रमे किछु उदार देखल जाइछ। ई स्तम्भकारसहित बहुत नवतुतियाके मैथिली भाषा, साहित्यसँ जोडबाक काज ओ कएने छथि। ओ आनजनका अपन कीर्तनीयाँ, भजनीयाँके पक्षमे नए छथि।
अन्त्यमे, मधेशी, मैथिली किंवा बहुभाषिक समाजके नङ्गा आ कठीन सत्यके उजागार करबाक लेल आब अबेर भए रहल अछि। एकरा लेल प्राज्ञ रामभरोस कापडी के अग्रसर होमे बहुत जरुरी छै। ओ अखन मधेश प्रज्ञा प्रतिष्ठानके अध्यक्ष थिकाह, अई क्षेत्रमे हुनक योगदान अतूलनीय र सराहनीय होमाक अपेक्षा बहुत रास लोकके छै। समाजक यथार्थ आ सत्यके साहित्यके विभिन्न विद्या (व्यंग कविता, नाटक आदि) के माध्यमसँ आगा आनबाक मूल उद्देश्यक बनेकाब बेर भँ चुकल अछि।
मैथिली भाषामे प्रकाशकके अभाव छै , पोथी छापैवालाके अभाव छै, कोनो धरानी पोथी छैपके तयार भँ गेल वितरक आ विक्रेताके अभाव। पोथी खरिदकर्ताके अभाव। मैथिली पोथी खरिदके पढब आदत मैथिलीजनके विल्कुले नई छन्हि। मुक्तमे बाँटीयौं त पोथी लेबाक लेल हाथ प्रसारैवाला सभ बड बेसी भेटत। एहन अवस्थामा मे साहित्यकार रामभरोस ५० ६० टा पोथी प्रकाशित केलाहए, ई बहुतके अपन बसक बात नई छियैक।
राजनीतिकर्मीके भाषासाहित्यप्रति ओतेक इन्ट्रेस्ट नय रहैत छैक। तई ओकरासभके अपन कन्भिन्समे लकें ओ भाषासाहित्यके उन्नति, प्रगतिके अग्रगति आ अग्रदिशा देमाकले सदखनि अग्रमोर्चामे रहैत छथि। मधेश प्रज्ञा प्रतिष्ठानमे हुनक नियुक्ति बहुत पैघ महत्व रखैछ। ओना राजनीतिक नियुक्ति विभिन्न साहित्य संस्था सबमे होइते रहलैए, मुदा मधेश प्रज्ञा प्रतिष्ठानमे हुनक नियुक्ति साहित्य, भाषा, संस्कृति, कला, गीत संगीत क्षेत्र उन्नयन दिशि जाओत, बहुतमे आशा किरिण जगौलक अछि।