विनय भूषण
इजोतक आश जगबैत भ्रमरक गजल
साहित्यक कोनो विधक नव व्याकरणक निर्माणमे साहित्यकारक महत्वपूर्ण भूमिका रहैत अछि । समय, परिवेश आ स्थानसँ प्रत्येक रचनाकारक रचना बेस प्रभावित रहैत अछि । कविता, कथा, उपन्यास वा नाटकक स्वरूप पर कोनो कालखंडक प्रभाव पड़ब कोनो नव बात नहि । रचनाकारक रचना-प्रक्रियामे हुनका आगाँ ठाढ़ रहैत अछि विशाल पाठकगण । रचनाकार ई चाहैत अछि जे ओ जे बात कहऽ चाहैत अछि ओहि बातसँ पाठकगण बूझि सकय । पाठकगणसँ जे बात ओ कहय चाहैत अछि, ओहिमे सामाजिक सरोकार संगुंफित रहैत अछि । जखन रचनाकार अपन रचना-प्रक्रियासँ सामाजिक सरोकार सँ जोड़ैत अछि, तखन हुनक आँखिक आगू ठाढ़ रहैत अछि सामाजिक स्वरूपक विशाल, ताना-बाना । ओ समाजमे होइत सकारात्मक परिवर्तनसँ अपन सहमति अभिव्यक्त करैत अछि, संगहि समाजक किछु नकारात्मक परम्परासँ ओ अपन असहमतिसँ अभिव्यक्त करैत अछि । रचनाकारक अन्तरक जे भाव होइत अछि, से रचनामे स्वतः अभिव्यक्त भऽ जाइत अछि । अपन हृदयमे जनमैत अनेकानेक वैयक्तिक भावमे सार्वजनिक भाव भऽ जयबाक जे व्यग्रता रहैत अछि, यैह व्यग्रता कोनो साधरण लोकसँ विशिष्ट रचनाकार बना दैत अछि । मैथिलीक वरिष्ठ साहित्यकार श्रीरामभरोस कापड़ि 'भ्रमर' जीक रचना प्रक्रियामे उक्त भाव-बोध सँ सहजहि अनुभव कयल जा सकैत अछि । हम एकरा अपन दुर्भाग्य मानि रहल छी, जे हुनका द्वारा सृजित समस्त साहित्यिक कृतिसँ हम नहि पढ़ि सकलहुँ । पोथीक अनुपलब्ध्ता आ अपन जटिल जीवन-संघर्षसँ एकर कारण कहल जा सकैत अछि । मुदा, विभिन्न पत्र-पत्रिकामे छिड़िआयल हिनक अनेकानेक रचनासँ पढ़बाक सौभाग्य अवश्य प्राप्त होइत आबि रहल अछि । हुनक रचना सभमे मिथिलाक गौरवमय अतीतक भाव-विह्वल वर्णन, लोकक सुख-दुखक अभिव्यक्ति मनुकखताइक संरक्षणक कछमछी अलोपित होइत प्रेमसँ बचाऽ लेबाक छटपटाहटिसँ सहजहि अनुभव कयल जा सकैत अछि । एखन हुनक गजल संग्रह 'अन्हरियाक चान' हमर आँखिक सोझँा अछि । एहि संग्रहक अध्ययन-मनन हमरा अभिभूत कऽ रहल अछि । 'गजल'सँ शिल्प व शास्त्राीय-विधन पर चर्चा करबासँ पहिने हुनक एकटा उक्तिसँ उद्धृत करब हमरा आवश्यक बुझाइत अछि- 'हमरा गजल लिखबाक लेल कोनो सुध नहि रहए । स्वतः स्फूर्त लिखाइत रहल । हम शुरूएमे कहि दी जे हमर गजलसँ शास्त्रिाय तराजू पर तौलबाक काजो नहि हो जे हमरा नीक लागत । कारण मतला, रदीफ, काफियाक समन्वय जे जतेक भऽ सकल होेेइ ओ स्वतः आवेगमे आएल शब्दक बन्दसँ संभव भऽ सकल अछि ।''
हिनक उक्त वक्तव्य आजुक 'गजल'क स्वरूप आ रचना-प्रक्रियासँ स्पष्ट करऽ मे पूर्ण समर्थ अछि। गजल पद्य-विद्या व काव्य-विधक एकटा विशिष्ट विध अछि । एहि मे छोट-छोट पाँतिक माध्यमसँ बहुत रास बातसँ अभिव्यक्त कयल जा सकैत अछि । एकटा गजल अनेकानेक कविताक संकलन होइत अछि । हिनक वक्तव्यक अनुसार आजुक गजलमे गजलक व्याकरणक न्यून्तम शर्तसँ सम्मिलित कयल जा सकैत अछि । 'न्यूनतम शर्तसँ हमर अभिप्राय ई अछि जे गजल-रचनाक क्रममे भावसँ सुरक्षित रखबाक लेल मात्रााक गणना आवश्यक नहि अछि । हुनक शब्दमे 'बहरक व्याकरणमे हम कहियो नहिगेलहुँआनहियेवर्णसँगनिकऽ शेरमे बैसएलहुँ' आइ जाहि तरहक गजल लिखा रहल अछि ओहि गजल सभसँ हिनक उक्त वक्तव्यक कसौटी पर कसल जा सकैत अछि ।
जे-से हमरा हिनक गजलमे अभिव्यक्त भाव आ विचारसँ अभिव्यक्त करब हमर मुख्य उद्देश्य अछि । हिनक एहि संग्रहमे भाव आ विचारक जे विविध्ता अछि से चमत्कृत करैत अछि । हिनक गजलमे शाश्वत प्रेम आ मनुक्खक जीवनक सुख-दुख नीक जकाँ शब्दब( भेल अछि । मिथिलाक संस्कृतिक प्रति हिनक अपार प्रेमसँ बहुत रास गजल सभमे अनुभव कयल जा सकैत अछि । विलुप्त होइत मनुक्खताइसँ हिनक असहमति सेहो अनेकानेक गजलक मुख्य विषय बनि पाओल अछि । सभ्यताक विकासक संग-संग लोकक जीवन-यापनक स्वरूप आ जीवनशैलीमे जाहि तरहे ँ आपकताक क्षरण भेल अछि ताहिसँ गजलकार बेस दुखी छथि । हिनक गजलमे जे मिथिलाक गौरवमय अतीत आ मिथिलाक गामक प्रति अनुराग अभिव्यक्त भेल अछि, तकरा एहि पाँतीमे बूझल जा सकैत अछि-
माटि अइ धरतीफेर लगा अपन माथसँ
मोक्ष भेटय जे इच्छित अपन गाम थिक ।
जाहि धरती केर कोरामे सीता पलए
अन्नपूर्णा हँसथि से अपन गाम थिक ।
जनक आ जानकीक चर्चा एक दिस मिथिलाक गौरवमय अतीत दिस संकेत करैत अछि । हिनका अपन गाममे मिथिलाक दर्शन होइत अछि । इहो कहल जा सकैत अछि । जे सम्पूर्ण मिथिला हिनका लेल अपन गाम अछि । एहि गजलमे मिथिलाक सांस्कृतिक इतिहासक सुगंध तँ अछिये संगहि मातृभूमि-प्रेमक प्रति समर्पणक भावसँ सेहो देखल जा सकैत अछि ।
एहि संग्रहमे गजलकार प्रेमक स्वरूप आ ओकर महत्वसँ रेखांकित करबामे पूर्णतः सफल भेल छथि । प्रेमसँ स्पष्ट करबाक लेल अनेकानेक पाँतीमे बिम्ब आ उपमाक उपयोग कयल गेल अछि । ई बात सत्य अछि जे आजुक वैश्वीकरणक युगमे मनुक्खक जीवनक अनेकानेक अनिवार्य तत्व सभक ह्रास भेल अछि । ओहि तत्वमे प्रेम एकटा एहन तत्व अछि जे लोकसँ लोकसँ जोड़ैत अछि । भ्रमरजीसँ बुझाइत अछि, विच्छिन्नताक एहि विकट परिस्थिति सामाजिक सौहार्दिक सरंक्षणक लेल प्रेमक संरक्षण आवश्यक अछि । ओ कहैत छथि-
आबियौ ने छातीमे ठाम बड़ बाँकी छै ।
स्वागत मे रागक सचार लेनय ठाढ़ छी ।
गजलकार प्रेमक अभावमे स्वयंसँ बहुत बेसी असहज महसूस कऽ रहल छथि । प्रेममे विश्वासक बहुत बेसी महत्व अछि । हुनका बुझाइत छन्हि जे विश्वासक टांग टूटलाक बाद औनाइत जखन किओ ककरोसँ प्रेम करैत अछि, ओहिमे कोनो तरहक संदेहक स्थान नहि होइत अछि । हुनका बुझाइत छन्हि जे कोनो कठिन समयमे ओ सदिखन हुनकर मदति करबाक लेल सहर्ष तैयार रहताह। प्रेममे भाग्यसँ बेसी आपसी सौहार्दक महत्व होइत अछि । जँ कोनो क्षण प्रेमसँ असफल होइत देखल जाइत अछि, ओतय निश्चित रूपसँ कोनो ने कोनो धेखाक संभावना बनैत अछि । ई धेखा लोकसँ बेचैन कऽ दैत अछि । एहि परिस्थतिमे करुणाक धर निसृत होमऽ लगैत अछि । गजलक एहि पाँतीमे एहि भावसँ देखल जा सकैत अछि-
विश्वासे जँ टूटि गेल तँ आहत करेज ल
कत्त-कत्त रने-बने अबगाहब ई जिनगी ।
जखन एक बेर किओ प्रेम कऽ लैत अछि, तखन ओहि प्रेममे किछु बाध्क नहि भऽ सकैत अछि । जे सुच्चा प्रेम करैत अछि, ओ ओहि प्रेममे पूर्णतः एकाकार भऽ जाइत अछि । जखन मोन प्रेमक वीशभूत भऽ जाइत अछि तखन भाव आ शब्द गजलक स्वरूप लऽ लैत अछि । प्रेम शाश्वत होइत अछि । 'भ्रमर' जीक शब्दमे-
अहाँ आगाँ मे छी तन्तु जुड़ल रहैए
आह ! परोछो भेने ई क्रम टुटैए नहि
एहि ठाम एकटा आओर शेरसँ उद्धृत करब हमरा आवश्यक बुझाइत अछि-
आब तँ अपनोसँ ऐनामे चिन्हब कठिन भेल,
आन पर नजरि टिकए की खास अछि प्रिय ।
प्रेमसँ अभिव्यक्त करबाक लेल जाहि भाषा, शिल्प आ शब्दक चयन भ्रमर जी कयने छथि, से अचक्के पाठकसँ अचंभित कऽ सकैत अछि । लगैत अछि जेना प्रेम भ्रमरजीक हृदयक अभिन्न अंग भऽ गेल अछि सैह भाव हुनका अपन भाषा, संस्कृति, मैथिल आ आन दलित, पीड़ित आ उत्पीड़ित लोकक प्रति प्रेम करबाक लेल प्रेरित करैत छन्हि । हुनक गजलमे प्रयुक्त बोध्गम्य बिम्ब आ भावक संयोजनसँ बुझबाक लेल किछु पाँतीसँ उद्धृत कयल जा सकैत अछि । जेना-
समुद्रक ढाहीमे उबडुब करैत मोन
बोझ असगरिये छाती पर उघलियै कोना ।
पे्रमक समुद्रमे जखन-भावक ज्वार-भाटा आबैत अछि तँ मोन उद्वेलित भऽ जाइत अछि । 'छाती' पर 'बोझ' एकटा अद्भूत बिम्ब अछि । सिनेह गछपक्कु आम जँका होइत अछि । जहिना डमरस पाकल आम रसक वृद्धि होयबाक कारणे फाटि जाइत अछि तहिना प्रेमक पाकल आम फाटि गेल अछि आ ओहिसँ सिनेहक रस टभकि रहल अछि । एहि बिम्बमे उपमा अलंकारक अनुपम प्रयोगसँ अनुभव कयल जा सकैत अछि । हुनके शब्दमे-
गछपक्कु आम जकाँ टभकै सिनेह जकर
जोड़ल नहि जा सकय, एहन बनल फाट ओ ।
प्रेम तँ सार्थक जीवनक महत्वपूर्ण तत्व अछिये, संगहि जीवनक अन्यान्य तत्व सभसँ सेहो 'अन्हरियाक चान' गजल संग्रहमे सफलतापूर्वक अभिव्यक्त कएल गेल अछि । हुनक विचार मे जिनगीक तरंगक गायन आ हृदयक भावक अभिव्यक्ति गजल थिक । प्रेम आ सिनेहक गीत जिनगीक महत्वपूर्ण गीते थिक । लोक चुपचाप समयसँ गुनैत हो वा अपन सुख-दुखसँ अभिव्यक्त करैत हो एहि अभिव्यक्तिमे जिनगीक सार सन्निहित अछि । सुख-दुख जीवनक अनिवार्य अंग अछि, तँ लोकसँ एहिसँ क्षुब्ध् नहि होयबाक चाही । हुनके शब्दमे-
नरमे गरम केर खेल चलैत रहत सदिखन
पचएबाक सामथ्र्ये थिक तरंग जिनगी केर ।
इमान मनुक्खताइक महत्वपूर्ण तत्व अछि । इएह इमान लोकसँ मनुक्ख बनबैत अछि । ई बिडम्बना अछि जे आइ लोक नैतिक मूल्य सँ बिसरि रहल अछि । स्वार्थ आ भोगक लिप्साक कारणे ँ लोकजीवन समस्त नैतिक मूल्यसँ तिलांजलि दऽ रहल अछि । आपसी सौहाद्र्र नष्ट भऽ रहल अछि । अविश्वास, धेखा आ लोकक स्वकेन्द्रित रहि जएबाक मानसिकतासँ भ्रमर जी बेस परेशान भऽ जाइत छथि । हुनका बुझाइत छन्हि जे सर-सम्बन्ध्ी आ हितमीतसँ जखन लोक अलग भऽ जाइत अछि तखन सत्य आ इमान सन नैतिक मूल्य लोकसँ जीवन जीवाक संबल दैत अछि । एक गोट गजलमे नैतिक मूल्यसँ सम्बन्ध्ति उक्त भाव बहुत नीक जकाँ अभिव्यक्त भेल अछि-
बाप माय हरदम नहि, इमान रहैछ संग मे
इमानदारीमे बट्टा लागल मीत ई नहि चाही ।
एकटा साहित्यकर्मीसँ अपन दायित्वक बोध रहैत अछि । भ्रमरजीसँ पता छन्हि जे लोकक मोनमे अनेकानेक भटकाव रहैत अछि । समय जहिना-जहिना करवट बदलैत अछि, तहिना-तहिना लोक अपन गौरवमय अतीतसँ बिसरऽ लगैत अछि । धेखा आ अविश्वासक अन्हार मे लोक औनाय लगैत अछि । जीवन-संघर्षसँ बाट पर चलैत लोकसँ किछु ने किछु गलती जरूरे भऽ जाइत अछि । एहि स्थितिमे लोकसँ बेसी परेशान नहि होयबाक चाही । अत्यंत आत्मविश्वासक संग गजलकार कहैत छथि-
सुतल अतीतसँ पुनि जगायब हम ।
भोतिआयल बटोही ठाम पर लागब हम ।
संघर्ष जीवनक सत्य अछि । जे प्रतिब( लोक छथि से एहि संघर्षसँ कखनहुँ विचलित नहि होइत छथि । कवि कहैत छथि जे जँ इजोत नहि भेटैत अछि, तखन अन्हारेमे इजोतक खोजक लेल प्रयास करबाक चाही । भोगलिप्सासँ बहुत-बहुत दूर रहि संघर्षशील लेाकसँ महल-अटारी, चानीक थारी, गद्दा, कृत्रिाम इजोतक भ्रम व अहंकार आकर्षित नहि करैत अछि । अपितु श्रम, फक्कर जीवन, टूटल एकचारी, रातिक अन्हार, अलमुनियाक पचकल-फूटल थारी आ स्वाभिामानसँ अंग्रेजि कऽ समाज आ समाजक, लोकक जीवनसँ सुन्दर बनयबाक लेल संघर्षरत रहैत अछि । एहि भावसँ एहि पाँतीमे देखल जा सकैत अछि-
ध््रुव सत्य थिक जे मंजिल पयबे अभिष्ट सदिखन
तँ सहज सुखद एकपेरियाक असबारी छनित के हमर ।
वर्तमानमे चारूकात संदेह आ अविश्वासक सामाज्य स्थापित भऽ गेल अछि । स्वार्थ मनुक्खसँ धेखा करबाक प्रवृतिसँ स्वीकार करबाक लेल बाध्य करैत अछि । मुँह पर प्रशंसा करब आ परोछ भेला उत्तर ओहि लोकक खिध्ंास करबाक प्रवृत्ति मनुष्यक हृदयमे जगह बना लेने अछि । सामाजिक जीवन जीअऽ बला लोक संघर्षक कारण अपन सभ किछु त्यागि दैत अछि । मुदा, कुलोकक कुदृष्टि भ्रमरजीसँ दुखित करैत अछि । जेना-
हम चली जतऽ जाहि बाटपर नित दिन
काँटक इत्र छीटय हमर अपन ।
समाजक श्रमजीवी लोकक जीवनमे दुखक अंबार रहैत अछि । हुनक जीवन-स्तरसँ सुधरबाक लेल प्रत्येक समाजसेवी आ बु(िजीवी प्रयासरत रहैत छथि । क्षुद्र सामाजिक कार्यकर्ता आ बु(िजीवी कविसँ क्षुब्ध् कऽ दैत अछि । गरीबक मसीहाक उपाध्सिँ विभूषित लोक सेवाक नाटक करैत अछि । यैह कारण अछि जे एखनो धरि समाजक गरीब लोक आओर बेसी गरीब भेल जा रहल अछि । धनिक आओर बेसी धनिक भेल जा रहल अछि । सत्य ई अछि जे एहि धरती पर जे लोक सुख ओ ऐश्वर्यक भोग करैत अछि, तकर आधर यैह श्रमजीवी मजूर अछि । कविक कलम प्रेरक मुद्रामे कहि उठैत अछि-
मजुरक मरखाह गरीबीसँ नाथि कऽ तँ देखू
अपन भरल बरबारी अन्न कने बाँटि कऽ तऽ देखू ।
इजोरियाक चान गजल संग्रहक प्रत्येक गजलक एक-एक पाँति उद्धृरणक योग्य अछि। एहि संग्रहक विभिन्न गजलमे मनुक्खक जीवनक सुख-दुख, बदलैत समाज, महत्व, दया-प्रेम-करुणाक भाव समाजक सर्वहारा वर्गक प्रति सहानुभूति, मिथिलाक गौरवमय अतीत, सांस्कृतिक अरिस्मताक संरक्षण आ अन्यान्य जीवन-मूल्य आ सांस्कृतिक चेतनाक संरक्षणक भावसँ अत्यंत सहज आ कलात्मक ढंग आभव्यक्त कयल गेल अछि। आइ जखन चारूकात घृणा, द्वेष, भ्रष्टाचार, धेखा, झूठ-फरेब, स्वार्थ आ अन्यायक अन्हारक साम्राज्य पसरल अछि, तखन भ्रमरजीक सार्थक गजलमे आशाक चानक उपस्थितिक अनुभव कयल जा सकैत अछि । ई समीक्षा आओर नमहर भऽ सकैत छल, मुदा समीक्षा-आलेखक सीमासँ देखैत एखन एहि समीक्षासँ विराम दऽ रहल छी । अन्तमे अपन अतृप्त मोनसँ संतोष देबाक लेल एहि पाँतीसँ उद्धृत करब आवश्यक बुझैत छी-
अन्हरियाक चान जकाँ लुक झुक करैत मन
छिटकल आभाक संग रभसैत उड़ैत मन ।
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