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विनीत ठाकुर

बहुआयामी व्यक्तित्वक एकटा सुधर स्वरुप :  रामभरोस कापड़ि भ्रमर

एखन मैथिली भाषाकेँ मानक स्वरुपक सन्दर्भमे नीक बहन छिडिआएल छैक। एक दिश ई मत आबि रहल अछि जे मानक स्वरुपक नामपर मैथिलीकेँ नब्बे प्रतिशत बजनिहारसँ दुर कएल जा रहल छैक आ नेपालमे मगही एवं बज्जिका भाषाक प्रवेश आ विस्तार तकरे परिणाम थिक। एहिसँ लोक कटि रहल अछि। ठेठिया, देहाती कहैत कहैत आब मगही आ बज्जिकामे फेँटाए लागल अछि।

दोस मत छैक लोक जे बजैत अछि सएह मैथिली थिक। भाषा वैज्ञानिक लोकनि तकरा स्थापित करथु। एहिसँ नब्बे प्रतिशतक भाषा वितृष्णा सेहो कम हएतैक आ अनपेक्षित रुपें मगही आ बज्जिकाक प्रभाव विस्तारकेँ रोकल जा सकैत अछि।

आ एहि दुनू मतक विचमे विगत पचास वर्षसँ मैथिली भाषा, साहित्य, संस्कृतिक सेवामे लागल एकटा एहन नाम उभरि क आएल अछि जे सभ विवादकेँ कात करैत मैथिलीकेँ एकटा विराटफलक पर समावेशी भाषाक रुपमे स्थापित करबाक निरन्तर अभियानमे लागल अछि: रामभरोस कापड़ि भ्रमर।

नेपालीय मैथिली साहित्यक पुरोधा व्यक्तित्व भ्रमर चौसठि वसन्त पार क चुकल छथि। बारह वर्षक उमेरमे मिथिला मिहिरक नेनाभुटकाक चौपाडिमे इमानदार बालक कथाक प्रकाशनक संग साहित्यमे पदार्पण कएनिहार भ्रमर ब्राह्मण, कायस्तक भाषाक अनावश्यक विवादकेँ समाप्त करैत मैथिली वास्तविक रुपें मिथिलामे बजनिहार सभक भाषा थिक, एकर उन्नति, विकासक जिम्मेवारी सभक छैक तकर स्थापित उदाहरण बनल रहलाह अछि।

एखन धरि तीन दर्जनसँ उपर मौलिक, अनुवादित, सम्पादित पुस्तकक रचना क चुकल छथि। अर्चना (२०३० साल), अंजुली (नेपाली मासिक २०४२), आँजुर (२०४५ साल) आ गामघर साप्ताहिक (२०३९ साल)क सम्पादन प्रकाशन क पत्रकारिता क्षेत्रमे सेहो अपन वर्चश्व स्थापित क चुकल छथि। साहित्य आ पत्रकारिताक अद्भूत समागम हुनक व्यक्तित्वमे आकंठ लब लब भरल अछि आ दुनू क्षेत्रमे हुनक व्यक्तित्व स्थापित भ चुकल अछि। बरु लोक जखन भाषा, साहित्य आ पत्रकारिताक गप करैत अछि त उदाहरणक रुपमे भ्रमरजी आगाँमे ठाढ क देल जाइत छथि।

हिनक वचपन जन्म स्थान बघचौरामे वितलन्हि। २००८ साल श्रावणमे पिता स्व. रामगुलाम कापरी आ माता स्व. दुखनी देवीक दोसर सन्तानक रुपमे हिनक जन्म भेलनि। धन, वीत्तमे कमि नहि छलनि, मुदा जाहि वर्ग आ समाजसं आबद्ध छलाह, पढब लिखब कठिन मानल जाइत छलैक। तथापि पिता स्व. रामगुलाम कापरी ओइ परोपट्टामे पंच केँ रुपमे सम्मानित छलाह। कोनो झगडा नहि फरिछाइ त हुनके बजा लेल जाइत छलनि आ ओ समाधन करैत रहलाह। पढनाइक नाम पर ताहि समयक देहाती पढाइ विटगरहा आदिमे निपुण छलाह। रामायण नियमित पढथि, खेत, खरिहान आ जन बनक व्यवस्थापनमे कुशल छलाह। परोपट्टामे धान आ रुपैआक लगानी चलैत छलनि। स्वभाविक छैक नीक इज्जत छलनि।

से अपन धीआपूताकेँ पढएबालेल ओ उत्सुक रहथि। मुदा दुनू बालक सुकुमार कापड़ि (जेठभाय)  आ भरोसी कापड़ि (तहिया इएह नाम रहनि) चटिया बनबाले तैयारे ने होथि। तखन घर पर बहादुर नामक एकटा पहाडी नोकर रहैक जे कान्हपर लादि दुनू भाइकेँ गुरुजीक चटिसारमे ल जाइनि आ तखन निचाँ माटिपर, तकरा बाद पाटी पर अ, , , ई सँ विटगरहा धरि सिखौन रहनि। चटिसारसँ नीकलि बेलही स्कूलमे तीन वर्ग धरि पढलाह आ तखन जनकपुरक सरस्वती मा.वि.मे ४ कक्षामे नाम लिखाओल गेलनि। ओत्तहिसँ एस.एल.सी.आ जनकपुरक रा.रा.ब. कैम्पससँ मैथिलीमे एम.ए.क पढाइ पुरा कएलनि।

एहि विच रा.रा.ब. क्याम्पसमे हिन्दी, मैथिली पढएबाक हेतु भारतसँ प्रो. धीरेन्द्र आबि गेल रहथि आ संयोगसँ ओ हिनके मकानकेँ बगलमे रहैत छलाह। सम्पर्क भेलनि। बच्चेसँ ई पत्र पत्रिका पढैत छलाह बालक, पराग, चन्दामामा, होइत होइत धर्मयुग, साप्ताहिक हिन्दुस्तान, सारिका आ मिथिला मिहिर। लिखबाक रुचि रहनि, भाषा निश्चय हिन्दी रहनि।

से एक दिन एकटा कथा लिखलनि इमान्दार वालक, हिन्दी मे। प्रो. धीरेन्द्र देखलकनि आ एउटा नमहर शिक्षा देलकनि- बाउ हम हिन्दी आ मैथिली दुनू विषयमे एम. ए. छी। मुदा हिन्दीकेँ पार नहि पाबि सकलहुँ अछि। अहाँक मातृभाषा मैथिली अछि, ताहीमे लिखू।

भ्रमरजी संस्मरण सुनबैत भावुक होइत कहैते छथि -हमरा नहि बुझना गेल छल मैथिली कोनो भाषा होइछ आ जे हम सभ बजैत छी। हम कहने रहियनि- सर हम केना लिखबै मैथिली। ओ कहलनि- जरुर लिखबै। अहाँ जे बजै छी सएह लिखू हम देखा देब कोना शुद्ध लिखल जाइछ।

तखन इमान्दार वालकक मैथिली अनुवाद कएलनि आ तकरा लाल कलमसँ प्रो. धीरेन्द्र जे रंगलनि से एक्को पंक्ति सदर नहि रहल। मुदा सएह रंगलहा करेक्सन हुनका मैथिली प्रति चुनैती बझएलनि जे हुनक वालमनपर कठोर प्रभाव छोडलक आ ओ तकरा बाद पाछा नहि देखलनि। मैथिलीक सर्वश्रेष्ठ पत्रिका मिहिरक नियमित लेखक बनलाह आ मैथिलीमे निकलैत कोनो पत्रिकामे हिनक रचना आदरसँ छापल जाए लागल। डा.मेघन प्रसाद अपन शोधग्रन्थ मैथिली कथा कोष(१९९६)मे सभसं बेसी कथा लिखनिहार(५८कथा)मे हुनको नाम सामेल कएने छन्हि।

अपन साहित्यिक जीवनक एहि पचास वर्षमे ओ सम्मानो कम नहि पौलनि। नेपाल प्रज्ञाप्रतिष्ठानसँ पहिल बेर मायादेवी प्रज्ञा पुरस्कार (२०५३ साल)मे रु. ५०,००० टकाक संग भेटलनि। विद्यापति सेवा संस्थान (१९९६ ई. ), मिथिाल विभूति सम्मान देलकनि तँ अन्तर्राष्टीय मैथिली सम्मेलन, मुम्वईमे मिथिला रत्नसँ सम्मानित कएल गेलाह। रायपुरमे मिथिला विभूति सम्मान, पटनाक चेतना समितिसँ यात्री चेतना पुरस्कार, शेखर प्रकाशनसँ शेखर सम्मान हिनक उपलब्धि रहलनि अछि।

नेपालमे विद्यापति भाषा, साहित्य पुरस्कार (२ लाख टकाक संग) राष्टपति हाथे भेटलनि तँ नेवारी साहित्यक दू गोट महत्वपूर्ण संस्था नेपाल भाषा परिष्द आ गंकी धुस्वाँ वसुन्धरा प्रतिष्ठान क्रमशः केशवलाल वाख सिरपा पुरस्कार आ गंकी धुस्वाँ वसुन्धरा पुरस्कारसँ सम्मानित कएलकनि जे कोनो मैथिली भाषी साहित्यकारक हेतुु पहिल छल। ई सभ पुरस्कार, सम्मान हिनक कर्मठता, संघर्ष ओ साहित्य साधनामे निरन्तर प्रतिबद्धतापूर्वक समर्पणक कारणें भेटलनि। किछुए दिन पूर्व नेपालक श्रेष्ठ समाचारपत्र गोरखापत्र हिनक अन्तरवार्ता छपने छल तँ एकरे प्रकाशन युवामंच हिनक वचपनक प्रसंगकेँ विवरण सचित्र प्रकाशन कएलक। ई कोनो मैथिलक हेतु गौरवक विषय भ सकैछ।

अपन एकाकी लेखन यात्राक कारणें बाधा, व्यवधान नहि अएलनि से बात नहि। स्वाभिमानी स्वभावक कारणें ललो - चप्पोमे नहि लागि पढब आ लिखब धरिमे सिमित रहने किछु लोककेँ अखरैत रहलनि हिनक स्वभाव आ तएँ समय समय पर भाडाक दूत सभकेँ ठाढ क हिनक मान मर्दनक जोगाड भिडाओल जाइत रहल मुदा हिनक काजे एतेक विस्तृत आ गहिंर भ गेल छैक जे ओ सभ विपरीत विचारक लोक उडन छू भ जाइत रहल अछि आ भ्रमरजी अपन स्थानपर अडिगे नहि रहैत छथि बरु कद काठीक हिसाबेँ आर विस्तृत क्षेत्रमे स्थापित भ जाइत छथि।

कहबाक अर्थ विरोध आ गोलैसीक घेरामे पाडबाक काज कएनिहार तखन देखिते रहि जाइत अछि जखन नेपाल सरकार हिनका जनकपुरसँ उठा क एक्केबेर नेपालक सरकारी प्रकाशन संस्था साझा प्रकाशनक गरिमामय पद अध्यक्षक आसन पर आसीन क दैत छनि। कोनो मैथिल, कोनो मधेशी पहिल बेर एहि पद पर मनोनित होइत छथि। ततबे नहि ओ अध्यक्ष पद पर रहिते नेपाल प्रज्ञा प्रतिष्ठानमे परिषद सदस्य नियुक्ति क देल जाइत छथि नेपालक प्रधानमन्त्री द्धारा। ई दुनू पद कोनो भाषा प्रेमीक हेतु, शौभाग्यक पद थिकै, जाहिपर भ्रमर छः वर्षसँ उपर आसीन भ चुकलाह अछि। आ दुनू ठाम ओ मैथिलीक काज कएलनि। साझामे मैथिली भाषाक पुस्तक प्रकाशनक काज शुरु कएलनि, प्रज्ञामे आँगन पत्रिकाक शुरुआतक संग मैथिली लोक संस्कृतिसँ सम्बद्ध अनेकों महत्वपूर्ण गोष्ठी आ पुस्तक प्रकाशन कयलनि। जे सलहेस, दीनाभद्री, जट जटिनक रुपमे चर्चित प्रकाशन अछि। साझा प्रकाशनसँ वालकथा संग्रह बगियाक गाछ सँ मैथिली प्रकाशन शुरु भेल जे हिनके एकटा आओर वसन्त एवं अन्य नाटक, हिनकेँ सम्पादनमे विद्यापति आ नेपाल ग्रन्थक प्रकाशन भेल। तदनुरुप नेपालक मैथिली साहित्यक इतिहास, भगजोगनी, पैसा आदि मैथिली रचनासभ आएल।

भ्रमर जी निरन्तर सधानारत् छथि। पत्रकारिता करैत छथि, मैथिली पत्र पत्रिकाक अतिरिक्त एकटा दैनिक समाचारपत्र जनकपुर एक्सप्रेस डेढ दशकसं नेपालीमे सेहो निकालैत छथि। अपन पत्र पत्रिकाक हेतु निरन्तर लेखनक काज जारी रखितो वाहिरी लेखनक हेतु आएल आग्रहकेँ प्राथमिकताक संग पुरा करबाक हेतु निरन्तर लेखनमे जूटल रहैत छथि। ओ मैथिली पत्रपत्रिका भ सकैछ, ओ काठमाण्डूक नेपाली पत्रपत्रिका भ सकैछ, तहिना काठमाण्डूसँ प्रकाशित होइत द पब्लिक मासिक हिन्दीक पत्रिका भ सकैछ। हुनक लेखनी अविरल, चलैत रहैत अछि।

इएह अटुट लेखनक प्रभाव छैक जे तीन दर्जन पोथी द मैथिलीक भण्डारकेँ भरलन्हि अछि। आ से विभिन्न विधामे। जे खगता देखलनि, ताहीमे भीडि गेलाह। उपन्यासक खगता रहैक त मधेश आन्दोलनकेँ आधारबना घरमुँहा मौलिक उपन्यास लिखलनि, जकरा हालेमे पचास हजार टकाक गंकी धुस्वां बसुन्धरा पुरस्कारसँ पुरस्कृत कएल गेल। लगभग तैतालिस वर्ष पूर्व नेपालक पहिल आधुनिक कविताक संग्रह बन्न कोठरी : औनाइत धुआँ (२०२९ साल) प्रकाशित कएलनि। तकरावाद कविता, गीत, गजल आदिक आनो संंग्रह समयक अन्तराल संग अवैत गेल-  मोमक पघलैत अधर, (गीत गजल), अप्पन अनचिन्हार (१९९० ई.), अन्हरियाक चान (गजल, २०१३ ई.) प्रकाशित भेल। विहारक मैथिली अकादमी हिनक पहिल कथा संग्रह तोरा संगे जयबौ रे कुजबा (१९८४ ई.) प्रकाशित कएलक जे कोनो नेपालीय मैथिली साहित्यकारक पहिल संग्रह छल। दोसर कथा संग्रह हुगली उपर बहैत गंगा (२०६५ साल) आएल। तेसर कथासंग्रह एण्टी भाइरस २०७६मे आएल।नाटकमे हिनक अपन फूट स्थान छन्हि। कतेको नाटक मंचित भेल, प्रशंसित भेल। रानी चन्द्रावती प्रारंभिक नाटक अछि तँ एकटा आओर वसन्त अत्यन्त चर्चित नाटक रहल जे वैदेही दरभंगाक एकटा पुरे अंकमे छपल १०९४ ई. मे। महिषासुर मुर्दावाद एवं अन्य नाटक (२०५४ साल), भैया अएलै अपन सोराज (२०६७ साल) आएल।

किछु सोधपरक पुस्तक सेहो अछि- राजकमलक कथा साहित्यमे नारी चरित्रक अध्ययन। ठेकान पर (विचार संकलन), विविधात्मक सामग्रीक संग समय सन्दर्भ, विदेश यात्रापर चीन यात्राक प्रथम पुस्तक लिखलनि चीन जे हम देखल (२०१४ ई.) सन सन विविध विषयक पोथी प्रकाशन क वहुतो नव नव तथ्यसँ अवगत करौलनि। साक्षात्कार संग्रह अहाँ जे कहलहुँ अनलाक बाद भ्रमरजी वहुतो मैथिली सेवकके एकठाम राखि हुनक चिंतन विचारसँ मैथिली पाठक सभकेँ अवगत करौलखिन्ह।

हिनक अन्य पुस्तक छन्हि मैथिली लोक नृत्य, भाव भंगिमा एवं स्वरुप (२०६१ साल), मैथिली पद्य संग्रह (२०५१), त्रिशूली (मथुरानन्द चौधरी माथुर (२०४९), नेपालक मैथिली पत्रिकारिता (२०४४), अन्तर्राष्टीय मैथिली सम्मेलन आ नेपाल (२०६५), मैथिली नाटक संग्रह (२०६७),लावाक धान(कविता संग्रह) सम्पादित पुस्तक सभ अछि। अन्यमे अंग्रेजीक त्जभ अगतिगचब िजभचष्तबनभ या लभउब ि (२०६२), आजको धुनषा (२०३९), समयको अन्तराल पछ्याउँदै नेपालीक रचना अछि।

अनुवादमे नहि आब नहि (मैथिलीक एक मात्र दीर्घ प्रेम काव्य)क हिन्दी में बस, अब नही क नामसँ गोपाल अश्क अनुवाद कएने छथि तँ नेपाली मे सुप्रसिद्ध गद्य- पद्य लेखक मनुब्राजाकीक अनुवाद भयो अव भयो (१९९० ई.) प्रकाशित अछि। तहिना भ्रमरका उत्कृष्ट नाटकहरु धर्मेन्द्र विह्वल द्धारा अनुवादित नाटक संग्रह अछि त घरमुहाँ  उपन्यासक भोजपुरीमे उमाशंकर द्धेवेदी द्धारा कएल अनुवाद प्रकाशित अछि। जनकपुरधाम र यस क्षेत्रका सांस्कृतिक सम्पदाहरु (२०५६) आ तराइको फाँट देखि हिमालको काँख सम्म (२०६७) नेपालीक मौलिक सांस्कृतिक एवं सामाजिक आलेख संग्रह अछि। हालेमे हिनक चर्चित निबन्ध संग्रह मिथिलाक लोक जीवनः लोक सन्दर्भ आएल अछि।

हुनक अरिपन नामसँ गीति कैसेट बहार भ गेल छन्हि, जाहिमे नव गोट गीत राखल गेल अछि। फिल्म बनओलनि एकटा आओर वसन्त। ई फिल्म नेपाल टेलिभिजनसँ प्रसारित भ चुकल अछि, होइत रहैत अछि।

ओ पूर्ण मौलिक लेखक छथि, पत्रकार छथि। पैतृक सम्पत्तिकेँ जोगा क रखलनि, अपन अरजल भव्य भवन बना साहित्य साधनामे रत् छथि। हिनक आवास भ्रमरकुञ्ज जनकपुरक रेलवे स्टेशनसँ उत्तर सहजहि नजरि पर आबि जाइछ, जत्त साहित्य मनिषी लोकनिक निरन्तर आवाजाही लागल रहैत अछि।

अपन लेखनीक बलपर पायाक एहि पार ओहिपार समान रुपें समादृत भ्रमर अपन इतिहास स्वयं रचलनि अछि। अपन प्रकाशनक माध्यमसँ आनो साहित्यकारकेँ सोझा आनि नेपालक मैथिली साहित्यक इतिहासके पुष्ट कएलनि अछि। हुनक मूल्यांकन जेना हएबाक चाही से संभव थिक नहि भेल हो, तकर कारण पुछलापर ओ महज मुस्किया दैत छथि, मुदा एकटा आरोप त लगिते छैक मैथिली मंच सभपर दश प्रतिशत लोकक कब्जा रहैत अछि, लर जर रहैत अछि आ भ्रमर सन सेवक साहित्यकार कतौ कात क देल जाइत छथि। मुदा भ्रमर स्वयंकेँ हरतरहें सन्तुष्ट मानैत छथि- हमर उपलब्धि कोनो तरहेँ कम नहि, ई त सुधी समाजक मूल्यांकनेक कारण भ सकल अछि ने तखन विभेद कथीक।

बहुत गोटे ई भ्रमर क बडप्पन मानैत छथि। सत्य ई अछि हुनका अपन स्थान बनएबामे खासे परेशानी आ अटुट परिश्रमक कर पडल छन्हि जे सम्भवतः आन पक्षकेँ सहज होइतैक। देखल इहो जा रहल छैक जे बहुत कम लिखि क सबसं बेसी प्राप्त कएनिहारो सभ अछि। किछु गोटे एम्हर अनेरे गुट खडा  क एकके विरुद्धमे दोसरके महिमामण्डित करबाक काज सभ सेहो शुरु क चुकल छथि जाहिसं समस्त मैथिली साहित्य प्रभावित भ रहलैक अछि। एहनमे भ्रमरसन एकाकी साधनालीन सभक हेतु त सेवे एकमात्र आधार छैक मूल्यांकनके जे देर सबेर भेवो क्एलैए।

तैयो अपन माटि पानिसँ जुडल, वाहिरी आडंबर आ चेला चाटी प्रथासँ दूर भ्रमरजी विविध व्यक्तित्वकेँ एकठाम जोडि क रखने छथि आ तकर प्रदर्शन हुनक व्यवहार आकृतिमे स्पष्ट रुपेँ परिलक्षित होइत अछि।

एखन ओ मधेश सरकार द्वारा गठित उभ्भस्तरीय मधेश प्रज्ञा प्रतिष्ठानक अध्यक्ष बनाओल गेलाह अछि आ भाषा,साहित्य,संस्कृतिक क्षेत्रमे काजके आगाा बढएबाक हेतु अपस्यांत छथि।

 

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