प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका

विदेह नूतन अंक
वि दे ह विदेह Videha বিদেহ http://www.videha.co.in विदेह प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका Videha Ist Maithili Fortnightly ejournal विदेह प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका नव अंक देखबाक लेल पृष्ठ सभकेँ रिफ्रेश कए देखू। Always refresh the pages for viewing new issue of VIDEHA.

डा. योगानन्द झा

भैया अएलै अपन सोराज: विहगंम दृष्टि

आधुनिक साहित्य व्यक्तिगत ओ सामूहिक जीवनक चुनौतीसबहक प्रत्युत्तरक रुपमे सुस्थापित भेल अछि आ साहित्यिक परिकल्पना स्वपनलोकसँ क्रमशः दूर भेल जा रहल अछि। आजुक साहित्य शैली विशेषमे मानव जीवनक व्याख्या किंवा लोकरञ्जनक साधनाटाक रुपमे सीमित नहि अछि। अपितु ई निरनतर लोकजीवनक हितक हेतु नव नव विकल्प ओ दिशानिर्देशक प्रति प्रतिबद्ध अछि। तएँ आजुक साहित्यकार लोकजीवनक भविष्यक हेतु चिन्तनशील देखि पड़ैत छथि आ लोकजीवनमे व्याप्त मलिनता, असमानता, निष्ठूरता ओ अहङ्कारक उन्मुलनकेँ अपन हथियारक रुपमे प्रयोग करैत देखि पडैत छथि।

आधुनिक साहित्यक गतिविधिक ई चेतना अपन बहुआयामी स्वरुपमे श्री रामभरोस कापडि भ्रमर जीक "भैया अएलै अपन सोराज" पोथीमे सङ्कलित दसो एकाङ्की नाटकमे अत्यन्त प्रस्फूटित भेल अछि। एहिसबमे एकाङ्की नाटकक समस्त मर्यादाक पालना करैत लोकमङ्गलक जे चित्र रुपायित भेल अछि ताहिसँ ई स्पष्ट अछि जे नाटककार समाज, राष्ट्र ओ विश्वमानवक उन्नयनक हेतु प्रतिबद्ध लेखनसँ संपृक्त छथि तथा विभिन्न अमङ्गलकारी तत्वकेँ ताहि रुपमे उपस्थिति करवामे सक्षम छथि जाहिसँ दर्शक स्वयं ओकर निदानक मार्ग हेरि सकथि।

एहि संग्रहक दू टा नाटक लोकगाथापर आधारित अछि क्रमश : भैया, अएलै अपन सोराजलोक नाट्य जट जटिन। "भैया, अएलै अपन सोराज" मे दीना भद्रीक गाथाकेँ आधार रुपमे ग्रहण कएल गेल अछि। गाथाक अनुसार दीना भद्री नामक दुई गोट मुसहर भाई छलाह जे कनक धामि नामक सामन्तक एहि हेतुएँ विरोध कएने छलाह जे ओ लोकसभसँ बेगारी खटबैत छल। दीना   भद्री कनक धामिकेँ मारि कऽ बेगारी प्रथासँ लोककेँ उबारने छलाह आ जन   जनमे पुजित भेल छलाह। आइयो ओ मुसहर जातिक लोकदेवताक रुपमे पुजल जाइत छथि। कनकधामी तँ मारल गेल मुदा सामन्ती व्यवस्था एखनो कोनो रुपमे जीवन्त अछिए। सामन्तलोकनि नहि केवल दलित वर्गक श्रमक शोषण करैत रहलाह अछि अपितु एहि वर्गक नारीलोकनि यौनशोषणक हेतु सेहो बदनाम रहलाह अछि। क्रमशः युगचेतना बदललैक अछि आ शोषित वर्ग एहि अनीतिपूर्ण व्यवस्थाक प्रति असन्तोष, विरोध ओ विद्रोहक भावनासँ संवलित होईत गेलाह अछि। एकरे परिणाम थिक जे आब वेगारी प्रथा इतिहासक वस्तु भऽ गेल अछि। तथापि नाटककार एहि प्रसङगक पुनरावृति कऽ वस्तुत : शोषक ओ शोषित वर्गक ऐतिहासिक सघर्षक गाथाकेँ संरक्षित करैत समसामयिक जीवनमे पर्याप्त शोषण चक्रक अभिव्यजना ओ तकर निदानक मार्ग संकेत कऽ देलनि अछि।

एहि एकाङ्कीमे पुरुष १ आ पुरुष २ कृष मजदुर अछि जे जोरावर सिंह सामन्तक जमीन्दारीमे रहैत अछि। ई सभ बेगार सँ तँ अकछल अछिए, अपन बहु   बेटीक इज्जतक रक्षाक हेतु कोनो त्राताक बाट ताकिरहल अछि। जखन एकरा दुनूकँे विदीत होईत छैक जे दिना आ भद्री नामक दूटा पहलमान एकरे जातिक छैक आ ओ दुनू जोरावरक अत्याचारसँ लोककेँ त्राण दिएयवाक हेतु तत्पर भेलैक अछि तँ दूनु बेस प्रसन्न होईत अछि। जोरावरक लठैतसभ गाम गमतिमे अत्याचार करैत छैक। तत :पर दीना भद्रीक सँग जोरावरक मल्लयुद्ध होईत छैक आ ओ मारल जाइत अछि। एहन अनाचारीक मृत्युपर जनता   जर्नादन प्रसन्न होइत अछि। वस्तुत : ई एकाङ्की लोकपरम्पराक प्रति नाटककारक व्यामोहटाक निदर्शन थिक। एहिमे युगिन चेतनाक सम्यक उपस्थापन नहि देखि पडैत अछि।  जट   जटिन मिथिलाक प्रसिद्ध लोकनाटक थिक। ई लोकनाट्य महिलालोकनिद्वारा अभिनीत होइत छल। कहल जाइछ जे जखन वर्षा ऋतु समाप्त भेलाक बादो वर्षा नहि होइत छलैक, तँ ग्राम्य नारीलोकनि इन्द्र भगवानकेँ प्रसन्न करबाक हेतु टोना करैत छलीह। एहि टोनाक क्रममे जट   जटिन लोकनाट्य महिलालोकनि दू दलमे विभक्त भऽ खेलाइत छलीह। मान्यता ई रहैत छलनि जे कुटल जाइत बेङ्गक करुणापूर्ण आवाज सुनि इन्द्रदेवता पघलि जाइत छलाह।  आ वर्षा होमऽ लगैत छलैक। कुटल बेङ्गक अवशेष कोनो हडाहि माउगिक आङनमे फेकिदेल जाइत छलैक जे अपनासँग कएल गेल एहि व्यवहारक हेतु महिलालोकनिकेँं गारि   पढैत छलीह। ओ जतबेँं खौझा   खौझा कऽ गारि पढैत छलीह। लोक मान्यताक अनुसार वर्षा ताहि वेगसँ होइत छल।

कृषि कर्मक हेतु वर्षाक महत्ता जगजाहिर अछि आ ताहि हेतु जट   जटिनक लोकनाट्य खेलएबाक परम्परा अति प्राचीन कहल जाइत अछि। एहि नाट्यक दुनू पात्र जट आ जटिनक लोक जीवनक शुद्ध दम्पति अछि। जकर नोक झोँक एहि नाट्यमे युगल गीतक रुपमे प्रस्तुत भेल अछि। नाटककार मिथिलाक एहि लोकसाहित्यकेँ संरक्षित कऽ लेबाक दृष्टि जे एकर सङ्कलन कएलन्हि अछि आ एकर मूल रुपकेँ यथावत रखबाक प्रयास कएलनि अछि। एहि नाट्यमे नट   नटीन प्रायेग प्राचीन नाट्य परम्पराक अनुसरणमे भेल अछि। महिषासुर मुर्दाबाद एहि नाट्क संग्रहक एकल नाटक थिक। जाहिमे एकेटा युवक अपन आत्माक सँग गप्प करैत देखल जाइत अछि। नाट्य प्रयोगक दृष्टि जे ई एब्सर्ड प्रकृतिक एकाङ्की अछि। जाहिमे व्यङ्गय, आक्रोश ओ श्रव्यद्वारा युगीन यथार्थक चित्राङकन कएल गेल अछि। समसामयिक जीवनक ई यथार्थ थिक जे आइ समाजमे आनक बहु बेटीक इज्जति लुटनिहार, दहेजलोभी अभिभावक, गरीबक मखौल उडौनिहार, महाजनी वृत्तिसँ समाजक शोषण कएनिहार, अनाचारी भ्रष्टाचारीलोकनिक चलती छनि आ ओलोकनि कानुनकेँ अपना कब्जामे कऽ निद्वन्द्व विचरण करैत छथि, जखन कि अन्यायक विरोध कएनिहारकेँ इएह कानुन फाँसीक फन्दाधरि पहुँचा दैत छैक। नाटककार शोषण होइत वर्गपर शोषित वर्गक विजयक पक्षघाती छथि आ ई सङ्केत दैत छथि जे कोनो एकटा शोषककेँ हलाल कऽ देने शोषण समाप्त होमऽबाला नहि छैक किएक तँ एकटा शोषक मरैतदेरि दोसर  शोषक तैयार भऽ जाइत छैक। अवश्य, जँ शोषितलोकनिसभके सेहो समाप्त कएल जा सकैत छैक।

तहिना पेटक खातिर सडक नाटक किंवा नुक्कड नाटक थिक जे विना अधिक नाटकीय उपकरण ओ रङ्गशालाक सुनियोजित व्यवस्थाक कतहु खेलल जा सकैछ। आजुक व्यस्त जीवनमे नाटक आ रङ्गमञ्चके सामान्य दर्शकलग स्वयं पहुँचबाक चाही, ताहि दृष्टिसँ जे एहि कोटिक नाटक अभिनव प्रयोग थिक। एहि नाटकमे प्रजातन्त्रीय व्यवस्थामे भ्रष्टाचारक विभिन्न आयामपर कसगर चोट कएल गेल अछि आ दर्शकलोकनिकेँ समाज ओ राष्ट्रमे व्याप्त विसङ्गतिसँ परिचय करा ओकर निदान सोचबाक हेतु मार्ग प्रशस्त कएल गेल अछि। एहि नाटकमे ई दर्शाओल गेल अछि जे कोना तस्करीक माल तस्कर ओ नेतालोकनिबलेँ एक देशसँ दोसर देश पहुँचि जाइत अछि, कोना प्रशासकलोकनि भ्रष्टाचारक श्रृङखलासँ आबद्ध छथि आ जनसामान्यक शोषणमे लागल छथि, कोना नेता लोकनि टिकट पएबाक लेल कुत्सितसँ कुत्सित कर्म करबाक लेल तत्पर रहैत छथि। कोना जनताक रखबारलोकनि जनताक कल्याणक मददिक अंश अपने खा गेल करैत छथि आ शिक्षाजगतमे माफियालोकनि पाइक बलपर मेधावी छात्र लोकनिक स्थानपर कमजोरो छात्रकेँ मेघा सूचिमे आगाँ बढा देबाक धन्धामे लिप्त रहैत छथि।

नेता जी आबिरहल छथि एकाङ्की सेहो प्रजातन्त्रीय शासनक विभिन्न विसङ्गतिक दिग्दर्शन करबैत अछि। एहि नाटकमे नाटककार जनताक समस्याक मूलकेँ स्पस्ट करबाक उदेश्यसँ कथा सूत्र जोडलनि अछि। नाट्यारम्भमे सूत्रधार ओ नटी कलाकारलोकनिक हड़तालसँ सीदित देखि पडैत छथि। ईलोकनि कथानक तकबाक प्रयासमे छथि। तावत् एकटा जुलुसक स्वर सुनि पडैछ। जाहिमे महँगीक समस्या अत्यन्त सामान्य बुझना जाइत छनि आ चुँकि लोक ऐकरा तेना कऽ कऽ अङेजि लेने अछि जे ई नाटकक विषय रुपमे ज्वलन्त नहिं बुझना जाइत छनि। तत :पर भ्रष्टाचारक विरुद्ध जुलुस देखि पडैत छनि। आ भ्रष्टाचारक समस्याकेँ कथानकमे लऽ नाटक खेलबाक मानसिकता बनबैत छथि। मुदा ईहो आब ज्वलन्त समस्या नहि बुझना जाइत छनि। कारण लोक कोनो प्रकारक सरकारी काजक हेतु घुसक लेन देनके अङजि कऽ एकटा स्विकृति दऽ चुकल छैक। ततःपर शान्ति सुरक्षाक हेतु प्रशासनक विरोधमे जुलुस देखि पडैत छनि। तखन ओ अपन नाटकक हेतु शान्ति सुरक्षाक समस्याकेँ कथानक रुपमेँ ग्रहण करऽ चाहैत छथि। किएक तँ इहो समस्या जडि़आएल बुझना जाइत छनि। मुदा तखने बेरोजगारलोकनिक एकटा जुलुस देखि ओ बेरोजगारीएकेँ ज्वलन्त समस्या मानि कथानकक सृजन करबाक ब्यौंत करऽ लगैत छथि। मुदा पुन : एकटा सरकारी जुलुसपर नजरि जाइत छनि। जाहिमे विरोधिसबहक विरोधक समस्या, कर्मचारीलोकनिक हडतालक समस्या, शान्ति   सुरक्षाक भङ्गक समस्या आदिक प्रतिरोधात्मक स्वर सुनि पडैछ आ एहि समस्यासबकेँ नाटकीय स्वरुप प्रदान करबाक मन बनबैत छथि। एहितरहेँ एहि एकाङ्कीक माध्यमे नाटककार प्रजातन्त्रीय व्यवस्थामे उत्पन्न विभिन्न समस्यासबहक सङोर कऽ ई प्रदर्शित करबाक प्रयास कएलनि अछि जे आइ ततेक समस्या अछि जे सबपर फूट   फूट कऽ नाटक खेलल जा सकैछ। कानो समस्या ककरोसँ कम नहिं अछि मुदा सबसँ बडका समस्या थिक जुलुस जे प्रजातान्त्रिक व्यवस्थाक देन थिक। एहि समस्याक कारणे लोकजीवन अस्त(व्यस्त रहैत अछि। मुदा ई कोनो समाधान प्रस्तुत नहि कऽ पबैत अछि। अवश्य जुलुश कएनिहारकेँ एकटा आत्मसन्तोष होइत छैक। जे ओ अपन अधिकारक प्रयोग कऽ पाबिरहल अछि। आ एहि जुलुशक समस्याक मूलमे छथि राजनेतालोकनि जे मूल समस्यासँ जनताकेँ भ्रमित कऽ अपन स्वार्थ साधनमे लागल छथि। तएँ प्रजातन्त्रमे जाहि एकमात्र चरित्रक चारुकात सबटा समस्या घुमैत अछि, से थिकाह नेता जीलोकनि। यावतधरि हिनकालोकनिक चरित्रमे सुधार नहि होयत , ताधरि प्रजातन्त्र लोककल्याणकारी नहि भऽ सकैछ आ ने कोनो समस्याक समाधान भऽ सकैछ। एहि तरहेँ एहि नाटकमेँ वास्तविक जीवनक उदघाटन कऽ अभिनव कलाक माध्यमे एकटा विशिष्ट विचारधाराक अभिव्यक्ति भेल अछि जे लोकजगतकेँ प्रेरित   प्रभावित करवाक दृष्टिए सफल अछि।

हम घुरी अयलहुँ मीत क्षेत्रवादसँ ग्रस्त नेपालक लोकजीवनक अन्तःकथापर आधारित अछि। क्षेत्रक आधारपर नेपालक लोक दू भागमे  बँटल अछि। पहाडी आ मधेशी। पहाडीलोकनी पहाडपर रहैत छथि आ मधेशीलोकनि तराइमे। पहाडीलोकनि, मधेशीलोकनि प्रति नीक भाव नहि रखैत छथि। जकर कारणे नेपाली मानस दू भागमे बाटि गेल अछि। स्वभावत : पहाडी ओ मधेशीक राष्टूीयता एक रहलाक बादो दुनूक बीच दुरी बढ़ल अछि। जे पारस्परिक सर्घषक रुप लऽ लेलक अछि। एहि संङघर्षक कारणे पहाडीलोकनि मधेशीलोकनिक बीच आ मधेशीलोकनि पहाडीलोकनिक बिच उत्पीडित होइत छथि। उत्पीडनक अतिरेक तखन होइछ जखन मधेशमे बसल कोनो पहाडीके अपन चल   अचल सम्पति अल्प मूल्यमे बेचि प्रव्रजन करबाक स्थिति बनैत छैक। रामेश्वर पहाडी अछि मुदा बहुत दिन सँ मधेशीलोकनिक बिच बसल अछि आ ओकरासभक सँग आत्मियता बनौने अछि। मुदा राजनितिक षडयन्त्रक कारणे ओकरा प्रव्रर्जित होएवाक स्थिति बनैत छैक। मुदा ओकर मधेशी मीतकेँ ई पसिन्न नहिँ छैक। दुनूके बीच अन्तरङ्ग सम्बन्ध छैक । अन्तत : ओ पहाडी अपन जन्मभूमिक परित्याग नहि कऽ पबैत अछि  आ पुन : अपन वासस्थलपर घुरि अबैत अछि। छहोछित राष्ट्रीयता बीच मानवीय संवेदनाक उपस्थान एहि नाटककेँ अत्यन्त स्तरीय बना देलक अछि।

सुलीपर ईजोत प्रतीक नाटक थिक। एहिमे इजोत प्रतिनिधित्व करैत अछि मानवक सुखी, सम्पन्न, सुन्दर ओ आकर्षक जीवन, अन्हार प्रतिनिधित्व करैत अछि ओहि समस्त विसङगतिक जे मानव जीवनकेँ  दुःखमय बना देने अछि। सुली थीक ओ स्थान जतऽ विसङगतिसभसँ संघर्षक कऽ सुलीधरि पहुँचबाक आवश्यकता छैक। आई गरीबी, बेरोजगारी, हत्या, भ्रष्टाचार, लूटि, बलातकार, चितकार, दहेज प्रथा, चोरी, डकैती, अनाचार आदि विभिन्न समस्या मानव जीवनकेँ दुभर कएने छैक। ई समस्यासब यावत दुर नहि हएत मानव नीकजकाँ जीबि नहि सकैछ। मुदा ई समस्यासब दूर हएत कोना, ताहिहेतु हाथपर हाथ धऽ बैसलासँ काज नहि चलि सकैत छैक। एकरालेल चाही कर्मण्यता आ साहस। ई साहस ने तऽ ओहि सुविधाभोगी समाजलग छैक जे कानमे तुर ठुसि अपनामे मस्त अछि आ ने क्रान्तिदर्शी  ओहन लोकलग जे समाजिक जड़ताँके तोडवाक स्वाङ्ग मात्र रचैत अछि। वस्तुत : जखन मजदूर आ किसान अपन आजीविकाक प्रति बफादार रहैत संघर्षशील हएत तखने समाजिक विदु्रपता सबपर विजय प्राप्त कऽ अन्हारकेँ परारास्त कऽ सकत आ सम्पन्न जीवन जीवि सकत। नाटककार श्रमिक वर्गाक प्रतिष्ठा करैत पुरुष २ सँ कहवैत छथि हर आ पालो सिढीक दुन ठाढ़ हैत। बड़का पैना पौदान। आ पालोमे जे बान्हल अछि ताहि जौरसँ पौदान बान्हल जाइत। एना कऽ चहरि पहुँचि जाएब इजोतधरि। वस्तुत ? इ नाटक समाजिक राजनितिक जगतमे प्याप्त विद्रुप्तसँ संघर्ष करवाक आवहन करैत  अछि। आ बौधु बाजु उठल ग्राम्य जीवनमे चलैत कूटनीतिक पर्दाफास करैत अछि। एकर नायकमे अछि बौधु जे एकटा चाहक दोकान चलबैत अछि। एहि दोकानक कारणे ओ गामक गतिविधिसँ परिचित होइत रहैत अछि। अयोधि चौधरी गा्रमप्रधान अछि। जकरा समयमे गाममे सुख ( शान्ति  व्याप्त छैक। मुदा किछु लोककेँ ओ नहि सोहाइत छैक। एहन स्वार्थी तत्व ग्रामक प्रधानविरुद्ध षडयन्त्र करैत अछि। ओसभ ग्रामप्रधानक एकटा मित्रकेँ ग्रामप्रधान बनबाक हेतु चुनावमे ठाढ़ करबा दैत अछि। परिणामत : दुनु मित्रक टोलमे वैमनस्य भऽ जाइत छैक। मुदा बौधु षडयन्त्रकारीसभक पोल खोली दैत अछि आ गाम पसाही लगबासँ बाचिँ जाइत अछि। एहितरहेँ  नाटकमे ग्राम्य जीवननक विद्रुपताविरुद्ध उभरैत जनचेतनाकेँ साकार कयल गेल अछि।

संग्रहक सर्वाधिक पैघ एकाङ्की अछि सुरज उगवासँ पहिने । ई सात दृश्यमे विभाजित अछि। ई एकगोट रोमानी अर्थात स्वच्छन्दवादी नाटक थिक। एहिमे प्रेमक स्वच्छन्दतापर बेस बल देलगेल अछि। आ ओकर मार्गमे उपस्थित होबऽबला विघ्न बाधाक सामाना अत्यन्त सहज ढङ्गसँ होइत देखाओल गेल अछि। एहि नाटकमे नायक ओ नायिका विवाहमे विघ्न(बाधा होइतो अत्यन्त हर्ष आ उल्लासक वातावरण प्रदर्शन भेल अछि।

एकर नायक अशोक पढि़   लिखि क नोकरी कऽलगैत अछि मुदा एहि हेतुएँ नोकरी छोडि़ दैत अछि जे ओकर मालिक अवैध व्यापारमे लागल रहैत छैक। आ तकरे ताकछेम करवाक लेल ओकरा नियुक्त कएने रहैत छैक। नोकरी छोड़लाक बाद ओ बेरोजगार भऽ गामक सङ्गीसभक कुसङ्गतिमे रहऽ लगैत अछि आ व्यक्तिगतरुपेँ स्वच्छ रहितो अपन नरेशि मित्रसभक कारणे बदनाम होइत चलिजाइत अछि जाहिसँ ओकर माता पिता दुःखी रहऽ लगैत छथिन। बेर(बेर कोशिश कएलाक बादो अशोककेँ नोकरी नहि भेटि पबैत छैक आ ओ अपन पेंशनधारी पितापर आश्रित रहऽ लगैत अछि।

अशोकक पिता अपन सकल अचल सम्पति अशोकक पढाइमे बिलहि देने छलाह। आ किछु कर्जा भऽ गेल छलनि जकर कारणे गोराइत हुनका आ हुनका पत्नीकसँग दुर्व्यवहारपर उरि जाइत अछि। अशोककेँ ई नहि नीक लगैत छैक आ ओ गोराइतसँ भीडि जाए चाहैत अछि। ओ मुलक कतोक गुणा सुदि जोडि़ कऽ ओकरा पैतृक घराडी हडपबापर तुलल छैक। युवा वर्ग एहि महाजनी वृतिक प्रतिरोध करऽ चाहैत अछि मुदा अन्धविश्वासमे जकडल ओकरासभक माता पिता अत्याचारी महाजनकेँ बेरपर ठाढ़ होएबाक कृपा करवाक कृतज्ञताक कारणसँ नहिँ करऽ दैत छैक। मुदा अशोककेँ अपन माता पिताक अपमान नहिँ सकल जाइत अछि। ओ गोराइतक डेउढ़ी जा जुमैत अछि। मुदा ओतऽ गोराइतक बेटी ओकरा गोराइतसँ भेट होबऽ दैत छैक। आ अपन गहनासब प्रदान कऽ ओकरा ऋणमुक्त भऽ जाए कहैत छैक। 

गोराइतक बेटी लक्ष्मीसँ अशोक गहना नहि लैत अछि। लक्ष्मी अशोककेँ अपन पिताक महाजनी वृत्तिक विरुद्ध संघर्ष करवाक हेतु सङ्गठित प्रयास करबाक मन्त्रणा दैत छैक आ ओहिमे आवश्यकता पड़लापर अपनो सहयोग देवाक वचन दैत छैक। अन्नत: अशोक लक्ष्मीसँ विवाह कऽ लेबाक निर्णय लैत अछि आ लक्ष्मीयो ताहिहेतु तैयार भऽ जाइत अछि। दुनुक विवाहमे गोराइत विघ्न बाधा उत्पन्न करऽ चाहैत अछि मुदा कन्याक बालिग रहबाक कारणे आ ओकर स्वीकृतिसँ विवाह होएबाक कारणे आ विवाह रोकि नहि पबैत अछि। आ एहिँतरहे महाजनक अन्यायी वृत्तिक अन्त होइत छक।

एहि नाटकमे महाजनी वृत्तिक जतेक सुन्दर ओ सजीव उपस्थापन भेल अछि, ततेक ओकराविरुद्ध संघर्षक नहि आ ने फलदायी प्रेरक। लक्ष्मी आ अशोकक प्रेममे ततेक असहजता अछि जे वस्तु विन्यासेपर प्रश्न उठि सकैत अछि। तथापि रङ्गमञ्चीय दृष्टिसँ ई नाटक सिनेमा शैलीक सफ नाटक थिक।

मैथिली नाट्य साहित्यक इतिहास अत्यन्त प्राचीन अछि। संस्कृत नाटकमे मैथिलीक गेय पदावलीक सम्मिलनकेँ जँ मैथिली नाटकक इतिहास मानी तँ आठसओ वर्ष पुरान अछि। नेपाल मैथिली नाटक ओ रङ्गमञ्चक एकटा महत्वपूर्ण केन्द्रक रुपमे सत्रहम अठारहम ताब्दी धरि जानल जाइत रहल। मुदा परवर्ती कालमे ओहिठामसँ मैथिली नाटकक स्रोत जेना सुखा गेल छल। मुदा श्री भ्रमर जीक प्रयाससँ बुझना जाइत अछि जे आधुनिक मैथिली नाटक अपन सकल सम्भारक सँग नेपालमे पल्लवित   पुष्पित भऽ रहल अछि आ युगानुरुप अन्यान्य भाषाक समकक्ष लेखनक प्रतिस्पर्धामे लागल अछि। एहि नाटकसंग्रहसँ ई स्पष्ट प्रतीत होइत अछि जे भ्रमरजी प्रयोगधर्मी नाटककार छथि, नाट्यशैलीक विविध प्रयोगमे सिद्धहस्त छथि खाहे ओ पारम्पारिक शैली हो किंवा अत्याधुनिक। 

भ्रमर जीक एकाङ्की नाटकसबमे अधिकांश वस्तु विन्यास प्रासङ्गिक अछि। एहिसबमे वर्तमान जीवनक विभिन्न समस्यादिसि लोकक ध्यानाकृष्ट करबाक सामर्थ्य छैक। ईसबटा रङ्गमञ्चीय दृष्टि सफल एकाङ्की अछि। नाटककार रङ्ग प्रभावकेँ उत्कर्षधरि पहुँचएबाक हेतु रङ्गभाषाक प्रयोग कएलनि अछि, जे हुनक निर्देशकीयताकेँ स्फूट करैत अछि। पात्रोचित भाषाक प्रयोग कयलनि अछि जे हुनक निर्देशकियताकेँँ स्फूट करैत अछि। पात्रोचित भाषाक व्यवहारसँ एकाङ्कीमे कतहुँ असहजता ओ भारीपन बुझना जाइत छैक। लोकानुरञ्जनक अपेक्षा गम्भीर वैचारिक अभिव्यक्ति प्रदान कऽ भ्रमरजीक एकाङ्कीसब लोकजीवनक समस्त नाकारात्मक पक्षक विद्रु पताकेँ उद्घाटित करबामे सफल सिद्ध अछि तथा नव निर्माणक पक्षपाती अछि। अवश्ये हिनक ई साहित्य समाज आ देशक हेतु कल्याणकारी अछि जाहिमे सस्त लोकप्रियता आ बाजारुपनक अभाव तँ अछिए, प्रचार आ उपदेशकक थोपल बौद्धिकता नहि अपितु कलात्मक लोकोपदेश अछि। समग्रतामे हिनक संग्रह समाज ओ राष्ट्रक प्रति हिनक प्रतिबद्ध लेखनक  विशिष्ट नमुना थिक।

 

अपन मंतव्य editorial.staff.videha@gmail.com पर पठाउ।