नित्यानन्द मण्डल
अपने रङ्गमे रङ्गाएल रामभरोस सर
केहन सुदर्शन स्वरुप । अत्यन्त चमकैत ओजपूर्ण आभासँ लावालव भरल अप्रतिम आकर्षणयूक्त सौरभपूर्ण सौम्य नयनाभिराम मुस्किआइत मुखाकृति पर साटल नयनक उपनयन साहित्यसँ होइत छै जे निरन्तर अपना वेगक प्रवाहमे निश्छल सरिता जेकाँ बहैत रहैत छै विना रोकटोक अपन मणि जडित मस्तिष्कक आलम्ब पर अंकुरित बौद्धिकताक आयातनकेँ जीवन आ जगतक क्षितिजधरि आलोकित करव भागिरथी सत्प्रयाससँ समाज,साहित्य आ संस्कृतिक लेल अपन जीवनकेँ विषमे डुबाइयोक नीलकंठ जेकाँ विषपान कऽ श्रोता, पाठक आ दर्शककेँ अपन सृजनसँ अमृतपान, रसपान करौनिहार जनिक समकालिन समालोचक लोकनि सप्रेम, सस्मान, सस्नेह कहैत रहनि जे कापडिके चानि पर फुटनि खापडि, आइ वाहए कापडिसर मैथिली साहित्यकेँ श्रृवृद्धिमे महत्वपूर्ण योगदान दैत मिथिलावासीक माथ सगौरव उच्च क देलखिन्ह । कापडि सर माने रामभरोस कापडि सर ।
हुनक साहित्यिक आ सञ्चारक सुरभी सभ्यता आधारित मिथिला होइक वा अस्मिता अभिप्रेरित मधेसक कोन्ह-कोन्हधरि पसरिल छनि । हुनका पोरपोरमे मिथिला आ मधेश सजिव अछि । तैं नेपालमे संघियता अएलाक बाद मधेश प्रदेशमे गठित मधेश प्रज्ञा प्रतिष्ठानक पहिल अध्यक्षक कमान सम्हारने छथि । मधेशप्रदेशमे रहल विभिन्न भाषाभाषिक साहित्यअनुरागी, भाषाप्रेमी, कलापारखी लोकनि हिनका उपर साहित्यक सभविधामे नीक महत्वपूर्ण काज होइक से पलक विछओने अछि ।
वस्तुतः मैथिली साहित्यक एहन कोनो विधा नहि जे हिनकासँ बाम गेल होइक । कविता,गीत,गजल, लेख,आलेख,निबन्ध,शोध,रिपोर्ताज, समिक्षा, कथा, उपन्यास, नाटक,फिल्म, गीति क्यासेट आदि हिनक बेमिसाल कृतिसभ अछि । नहि आब नहि दीर्घ कविता, तोरे संगे जएबो रे कुजबा, हुगली उपर बहैत गंगा, एण्टी भाइरस कथा संग्रह, ठेकान पर आलेख संग्रह,सीता फिल्ममे प्रसिद्धगीतक लेखन ,जटजटिन,जानकीक महिमा, हमर गरीवीए हमरा वरदान लगैए,मेहनतिके रोटी पकवान लगैए आदि गीत, जनकपुरधाम र यस क्षेत्रका साँस्कृतिक सम्पदा आ एकर अँग्रेजी अनुवाद सेहो, राजकमल आ स्त्री पर शोध, मधेश आन्दोलनपर केन्द्रित घरमुँहा उपन्यास, आदि उल्लेखनीय कृति अछि । गामघर आ आँजुर मैथिली पत्रकारिताक एकटा एहन राजमार्ग बनल जाहिपर सयौंके संख्यामे एखनुका नामी हस्ताक्षर लोकनि ओहिठामसँ डेगाडेगी चलबाक सुरुआत कएने रहलबात ककरोसँ नुकाएल नहि अछि जाहिमे अपनेक शोणित आ रक्ततर्पणक सुफल थिक जे आइयो ओ दुनू पत्रिका पाठकक मनमस्तिष्कमे जीवित अछि, आ चलि रहल अछि । जनकपुरधामसँ कान्तिपुरक वास्ते पहिल व्यक्तित्वके रुपमे काज करब, मधुपर्क, गरिमा, गोरखापत्र, राजधानी, नागरिक, हिमाल खबर, अग्निीपथ, यूवा मञ्च आदिमे समाचार विचार प्रकाशित होएब अपनेक कलमक जादुगरी अछि । हिन्दुस्तान, आज,ईनकलाब, हिमालीनी, द पोलिटिक्स, विविध भारत लगायतमे हिन्दी भाषामे विचार आ समाचार सम्प्रेषण । सोनामाटि, देशकोस, घरबाहर, समयसाल, अंतिका, फुलपात, पल्लव, मिथिला टाईम्स, मिथिला दर्शन आदिमे छायल रहलाह । जनकपुरधामक दोसर अफसेट प्रविधिक पत्रिका सुप्रभात, जनकपुर एक्सप्रेस आइयो लोकक ठोर पर अछि । एकटा आओर बसन्त टेलिफिल्म लेखन, निर्माण,कार्यक्रमक आयोजन,ओरिआओन, व्यवस्थापन आ सम्पादक अद्भूत कला ओ सहजने छथि जेकर परिणाम छै जनकपुर फिल्म फेस्टीभल, अन्तराषर््िट्रय मैथिली सम्मेलन, साहित्य कला उत्सव आदि । नेपाल प्रज्ञा प्रतिष्ठानक प्राज्ञ मात्र नहि मैथिली विकास कोषक संस्थापक, रुपरंग आदि संस्थासभके सेहो गठन आ सञ्चालन करबामे हिनक योगदानक चर्चा नहि करब थोड़ हएत । नेपालक राष्ट्रिय अखवार मात्र नहि स्थानीय डेली एक्सप्रेसमे निरन्तर सत्य संवाद नामक स्तम्भपर कलम चलबैत आवि रहलाह अछि । इण्डोनेपाल राईर्टस मिट, ओहीपर आयोजन होबएबाला विद्यापति समारोह, लोकार्पण आ साँस्कृतिक मञ्च सभ पर हिनक उपस्थिति गरिमामय मानल जाइत अछि ।
वस्तुतः ओ एकटा एहन व्यक्ति, जे कहियो दार्शनिक चिन्तक जेकाँ, कहियो चमत्कारिक वक्ता जेकाँ, कहियो चुम्बकीय लेखक जेकाँ । कहियो पश्चिमी दर्शन, चिन्तन आ रोमान्टिसिज्मक एकटा पात्र जेकाँ । कहियो पूर्वीय धर्म, अध्यात्म, दर्शन आ अनुशासनक ज्ञाता जेकाँ । जीवैत रहलाह अछि । ओ जीवनक प्रत्येक क्षणमे हरेक रङ्ग सभक हिसाब किताबक आँकलन मात्र नहि कएलनि, ओही रङ्ग सभमे जीवाक उत्कट उत्कण्ठा जीजीविषा पोसलनि, आओर अपने रङ्गमे रंगा जाएबाला व्यक्तित्व । मुँह मिसरी बोल करैला, सुदर्शन स्वरुप,कला,साहित्य आ सञ्चारक संगम,अक्षर,आवाज आ अन्दाजक त्रिवेणी, बहुविधावादी सशक्त हस्ताक्षर आदरणीय रामभरोस कापडि़ भ्रमर सर ।
कहियो उमेरसँ उफनाएल,उमटाम मातल जे अक्सर मौकाक तलासमे रहैत अछि जे ककरा कोना अपन शब्दक वाणसँ धरती धरा दी । मुदा असलमे कहीँ त एकटा एहन अभिभावक जे साँचेके प्राध्यापक बनबाक कहियो लौल नहि कएलनि मुदा मैथिलीबाला नहि नेपालीबाला लोकनि सेहो हिनक कृतित्व आ व्यक्तित्व पर शोध करैत रहलाह । अर्थात् ज्ञान, चिन्तन, बोली आ लेखनमे लय भेल लोक । सार्वजनिक मञ्चसभक सम्बोद्धनमे एकदम प्रेमिल सम्बोधन, मुदा विचरण समाज, राजनीति, जीवन जगतक विशाल आ गहिरा समुद्रसभमे कल्पनाक सतरंगी पाँखि लगा उडान भरैत आ हेलैत डुबैत,नँखसिक होइत । अद्भुत फिचर लेखनशैली । चिन्तन आ तर्ककँे सरल रूपमे रेखांकन करबाक जादुगरी कुशलता । ताहिके बहुत ही उदारतापूर्वक राखबाक बेजोड़ कला ।
हुनक तोरा सँगे जएबो रे कुजबा, हुँगली उपर बहैत गंगा, एकटा आओर बसन्त, सुरुज उगवासँ पहिने, पेटक खातिर, महिषासुर मुर्दावाद, सुलीपर इजोत, बन्नः कोठरी औनाइत धुँवा, लकडाउन डायरी, नहि आव नहि, दीर्घकविता, हालहिँमे मिथिलाक लोकजीवनः लोक सन्दर्भ पोथी एकटा नव कीर्तिमान स्थापित करबामे सफल भेल अछि । हिनक रचना सबमे जीवन,जगत आ प्रेम व प्रणय लवालव भरल अछि जे सर्वाधिक रुचिकर अछि । जाहिँमे नायक नायिकाक हाउभाउ, स्पर्श, नृत्य आदिसँ द्रवित होएव, श्रवित होइव आ दु तीन दिनधरि मोन गुदगुदाएल रहव । पाठकक स्वाभाविक प्रतिक्रिया । हिनक कथासभमे जाँघ वा वक्षस्थलक बात मात्र नहि होइत अछि, ओहिमे लोभ, मोह, काम, क्रोध, समाज आ राजनीति उपर चोटगर प्रहार सेहो रहैत अछि । बुद्धक मन्त्रसभ, कुरान, वेद, उपनिषद्, बाइबल... की की नँई रहैत अछि ? लेखनमे विम्बसभक प्रयोग जादुगरी । तामझाम,हैसियतक प्रदर्शन, आडम्बरकसँग पूजापाठ करएबाला ढोँगी पण्डित पुरोहित,मौलाना,पादरी सभसँ लऽ कऽ समाजक अन्य पाखण्डी राजनीतिज्ञ आ स्कुल शिक्षकधरिक चर्तीकला उपर विलक्षण व्यंग्यवाण प्रहार करब हिनक मौलिक शिल्प छनि । हिनक सौन्दर्यचेत आ जीवनक खास रङ्ग रूपसभकेँ बेर बेर निघारबाक मोन होएव अस्वाभाविक नहि । हुनक बहुत चर्चित व्यंग्य आ विचारप्रधान श्रृंखला गामघर आ डेली एक्सप्रेसमे प्रकाशित रचना आदि बहतोकेँ ठोर पर शीर्षक आ गुदी कण्ठस्थ रहैत अछि । कहियोकाल अपना मुडमे रहलासँ अपन समकालीन सँगीसभ बीचक संवाद,चौल,नोकझोँक, झौल, बात कटौबलि आ ठट्टा गज्जवक होइत अछि । तखन एना लगैत रहैत अछि जेना जीवनक सभ रङ्गसभ ओहि ठाम पृथ्वीलोक पर उतरि आएल होइक । जेना दार्शनिक, आध्यात्मिक आ मानवीय चेतक बहस,विमर्श आ छलफल शानदार,वजनदार आ दमदार होइत जा रहल होइक । जनिक ठट्टामे सेहो अनन्त गहिराई होइत छैक, ओ परिहास आ विनोदप्रियता सेहो ! गहिर सौन्दर्यचेत आ मानवीय प्रेम । चेतनासँ भरल आ माजल एकटा प्राज्ञ पावरफुल चस्मा, बज्र दाँत आ अट्टाहासक मनकारी हँसनाई लाजबाब ।
पच्छिला समयमे अभिव्यक्तिक अन्तरिक्षमे अँखिगर,आसन्न जनगणना आ प्रदेशक भाषाक नामाकरण आ भाषाक जगेर्नाक लेल माहिर अभियन्ताक रुपमे सामाजिक सञ्जाल आ विभिन्न मिडियामे खुबे सक्रिय देखल गेलाह अछि । अंग्रेजीमे कहल जाइत अछि जे गिभ अ ड्याम ! मैथिलीमे बाल मतलब । विना रोकटोक, कहएबाला बात ठाहिँ प ठाहिँ कहवाक चाही, लिखबाक चाही । बात जानिसाफ,दु टप्पी, विना कोनो हिचकिचाहट गलत तत्वक विरुद्ध आवाज उठाएब । जाहिँसँ लोकके दुःख हएतनि तकर कोनो फिकिर,परवाह नहि । एहिसँ केओ गलत बुझ्mत वा अपन हित नहि होइत से कहियो नहि बुझि सकलनि । अर्थ अनर्थक किछु गप्प कथिला नहि होइ ताहिँपर डाईरेक्ट प्रहार करब जे जीवनकेँ रङ्ग सभमे भोगैत अछि बिना ढोंग, बिना घमण्ड, बिना तथाकथित सामाजिक भय ! सीधा अर्थ नहि भेटव, हिनक गहिँर आ गम्भीर रचनामे । तथापि लयमे बहएबाला स्वभाव हिनका 'पब्लिक इन्टेलेक्चुअल' अर्थात् कतौं कोनो विषयमे लगातार सूचनायुक्त प्रवचन देनिहार विद्वान् आ विद्वतायुक्त विद्वता, विचार आ चिन्तनमे हुनक उचाई आ आयातन अतुलनीय अछि । बौद्धिकता, चिन्तन आ विचारक तहमे(समानस्तर) बात नहि मिलला पर ककरोसँग अडि जाएब हिनक स्वाभाव सर्वजनिन भऽ गेल अछि ।
एहिसभ बातक पुष्टि करबाक बेगरता नहि । लोक हिनक कृतित्व आ व्यक्तित्वसँ नीक जेकाँ परिचित अछि । कहवामे कोनो हर्जा नहि जे नाटक लेखन, टेलिफिल्म(एकटा आओर बसन्त), पत्रकारिता(गामघर,,कान्तिपुर,सुप्रभात, जनकपुर एक्सप्रेस, कथासँग्रह,कविता,निबन्ध सयपत्री,आँगन,संस्मरण आदि)क यात्रा,सार्वजनिक मञ्च आयोजन व सञ्चालन जनकपुर फिल्म फेस्टीभल, अन्तर्राट्रिय मैथिली सम्मेलन, जनकपुर साहित्य उत्सव) आदिमे सराबोरि डुबलासँ,रसास्वादन आ परेखलासँ सहजै भेटि सकैत अछि । बड सुअदगर लयमे हिनक मुखाकृतिक जादुटोना किनका नहि सम्मोहित करैत हएतनि । आओर की कहुँ ? माफ कएल जएतैक जे हिनक भागीरथी सत्प्रयाससँ साहित्य आ सञ्चारमे प्रवाहित अनेकानेक कृति आ रचनाक उल्लेख नहि कऽ सकल हएब, हमर छोट मस्तिष्क जे कैद कएने रहय तकर शब्दमे गढबाक चेष्टा कएल ।भ्रमरसरक प्रति हमर कहब इएह रहत अपनेक व्यक्तित्व आ कृतित्वक परिछाहीमे हमर ई शब्दचित्र स्वीकारल जाए ।
मैथिली भाषा एवं साहित्यमे अतूलनीय योगदानक कदर आ सम्मान स्वरूप परमादरणीय रामभरोस कापडि़ 'भ्रमर' सरके नेपालक महामहिम राष्ट्रपतिद्वारा 'सु प्रबल जनसेवा श्री तृतिय पदक' प्राप्त करबाक सौभाग्य प्राप्त भेलनि । वास्तवमे निरन्तर ५० वर्षधरि अपन जीवनक सर्वाधिक हिस्सा मैथिली, नेपाली, हिन्दी साहित्य, पत्रकारितामे व्यय कएनिहार व्यक्तित्वकँे सम्मान करब संस्था स्वयंमे सम्मनित होएब अछि ।
कहबाक कोनो बेगरता नहि जे ओ वर्ष हिनका लेल सुखद रहलनि आ मैथिलीक लेल हर्षक, एहिदुआरे जे नेपाल सरकारद्वारा सुप्रवल जनसेवाश्री तृतीयसँ सम्मानित होइतेदेरि लगालग फेर नेपाल सरकारक संस्कृति, पर्यटक एवं नागरिक उड्डयन मन्त्रालयद्वारा वर्ष २०७७ के 'महाकवि देवकोटा पुरस्कार'क लेल चयनित भेलाक समाद सुनि सगर मिथिला अत्यन्त हर्षित, आह्लादित आ विभोर भेल । तैं परमादरणीय वरिष्ठ पत्रकार आ साहित्यकार श्री रामभरोस कापडि़ 'भ्रमर' सरके नमन सहित हार्दिक बधाई एवं शुभकामना । छक्के पर चौकाक वर्षात । समय घुरैत छै, समय चिन्हैत छै आ समय एवं समाज लगानीकेँ मूल्यांकन सेहो करैत छै देर सवेर । सबुर करबाक चाही । देर है अन्धेर नँई चाहे हुरार कतबो नाँगरि फरफरबो ।
मधेश प्रज्ञा प्रतिष्ठानक सम्प्रति अध्यक्ष भेला पर फेरसँ अनेकानेक शुमकामना, अशेष मंगलकामना आ अपनेक जीवन सार्थक, सृजनमय आ सुखमय हुअए से असंख्य कामना ।
-नित्यानन्द मण्डल, जनकपुरधाम, नेपाल
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