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अरुण लाल दास
दू टा बीहनि कथा
१
बीप्रेक
...धुर जाउ ,केहन हती ।
...केहन ।
...रसफट्टू आम जाँकित ।
...से की ।
...सैह कहली य ।टिकुले से अहाँ नजरि खिरबैत रहली । देख देख जाइत रहली य । हम आसा मे धिआन से रहली । अब तं आम पाकि के सिनुरिया गेल हय । अहाँ तं खेले बिगाड़ देली ।
मौसमी पैर के नह खोटैत मूरी झुकौने नहू नहू सोहन स बतिआइत अपन मनक भड़ास निकालि रहल छलै ।
दरअसल ओकर प्रेम मे दरक्का लागि गेल रहैक ।
...से त ठीके । हमरा सँ ओतेक रोकल नै गेलै ,मतलब प्रतीक्षा कैल नै भेलै ।आबे की भेलैए ।हम अखनो तैयार छिकियै ।ई पसिन छै हमरा एखिन्तो।
...हमर हिरदय काठ के हांरी जैसन हय ,जे आगि पर दू बेर नै चढि सकय हय ,बुझली ।
ई दोसर ताकि सकै हय ...त हम नै ।
सूरुज भगमान डुमि गेल छलाह।साँझ शिता गेल रहैक आ मौसमी अपन डेग झटकि देने छलै ।
२
परबतिया
परबतिया के हाक दैत झुंझुआइत ओकर माय बजलै ,"आइ तोहर बपहिया घरसूरक मइल छोड़ा देतौ ।भरि दिन ई ससुरी
मोबाइलक खेल मे घरक एक टा काज नै करैए ,जाने कोन माहटर सँ बतियाइत रहैए ।की पढैए भगमाने जानय ।
हम केमहर केमहर की की करु , थारी बाटी ,गाय गोरु ,गोबर करसी ,कलउ बेरहट आकि दुधपीबा बच्चा के सम्हारु । सामने फांइट पर परल परबतिया के देखिते ओ धुमधुमा देलकै ।
इस्कुल के टैम भ गेल रहैक ।
कनैत ,आँखि पोछैत तामसे पित्ते घोर परबतिया साइकिल उठा बिन खेने इस्कुल चलि देने रहैक ।
वार्षिक समारोह मे आइ सब अभिभावक केँ बजाओल गेल छलैक ।
डी.एम सैहेब द्वारा 400 मीटर ,100 मीटर एवं 90%उपस्थिति पर पार्वती कुमारी के नाम प्रथम पुरस्कार उद्घोषित होइत देखि क' परबतिया माय केर आँखि नोरा गेल रहैक ।
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