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मुन्नाजी
बीहनि कथा
करोट
यै कनिञा,सुनि के दुख हएत,मुदा कहिए देब उचित बुझै छी।
कहौथ ने मां,हिनकर सबहक बात के दुख किएक हएत।
बौआ लाजे नै कहैए,हम सब निर्णय केलौं जे ओकर दोसर विवाह करा दियै।
इस सब जे निर्णय करथिन से उचिते हेतै।मुदा तकर प्रयोजन की ?
वंश पसार लए।
बाबू जी," दवाई आ जांच सं निश्तुकी भेल जे दोष हुनके मे छनि।कहौथ जे कएटा बेटीक जीवन गार्त करथिन त' मोन भरतैन ?
कनिञा, हमरा माफ करैत अपन कपारक दोष बुझि संतोष करौथ।
नै बाबू जी,से कोना हेतै ?
की करब अहां ?
हम दोसर विवाह करब!
के करत अहां सं विवाह ?
कोनो निसंतान मर्द!आ कन्यादान हिनके पल्ला!
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