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चंदना दत्त
रौद(बीहनि कथा)
भोरूका इस्कुल सं झटकल घ'र घुरैत रहि। तखन मोन पडल माताजी कहने रहथि एकजोड लहठी नेने
अबय लेल,
भोरे नैहर जेबाक छलनि
से मामी लेल।
हम सविता चुडी केन्द्र पर ठमकलहु।
सविता माय नजरि नहि आयल ,तहियो घमायल रही से पंखा के हवा लगबय लगलहु।
ता ओ हो हपसैत आयल।
कतय छलौ यय, एकजोड लहठी दिय कनि दामी, बड कडगर रौद अछि आय।
दीदी, आय गाडी ल'क नहि एल खिन्ह,भैया जी,
कि कहियन्ह तगादा मे गेल छली।
सौदा ले जाएत आ पाय दय घड़ी
दाँत निपोरै लागत सब।
आब हम कोनो धन्ना सेठ जी, जे तगादा नहि करू?
हम ओकर दुख बुझलहु, गामघरमे दोकानदारी कोनो हंसी खेल नहि,
मुदा छलय सबितियामाए बड उएहगर,
छोटछिन दोकान आ सिलाई फराय
से हो क लैत छल ,बचिया सबके सिलाई सीखेबो करैत छल।
ओ चुडी देखबय लागल तातक एकेटा जनानी आबि गेल दोकान पर ,
'हे अहां बलु सिलाई हमरा नहिये सीखा देलि जे किने से।'
मोन त रौदायल छलै ओकर ,
लोहैछक' बाजल ,
हम ऐहेन काज करय छी,
आय यय ,सबजे सीखिये लेत त हमर कसटम्मर के हैत?
-चंदना दत्त, रान्टी, मधुबनी
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