प्रमोद झा 'गोकुल'
नोटबंदी (कथा)
अधरतियामे रामधन एकाएक जोरसे चेहा उठल। बापरे बाप! फेनो अनर्थ भ'गेलै ।पजरा
लागिके सूतलि ओकर घरवाली खौझैत बजलै -मर,एना ई सुतली रातिमे किलोल किए कटै
छै?एनामे धियोपुताक निन्न उचैट जेतै!कोनो डरौन सपना तपना देखलकैये की?
- हँ !
-कथी?
-फेनो मोदी सरकार नोटबन्दी क'देलकैए ,सैह।
-शुभ शुभ बोलौ इहो! कहूं पहिले जाँकित भेलेते जुलुम भ'जेतै ।
-हमहूँते सपनेमे देखलियैए। आ, जँ कहूँ साँच भ'गेलै ते?
- हौ दैवा! तहनते अनर्थ भ'जेतै ।ऐगला बेरिया पेट दुख काटिके चालीसगो सजरिया
नोट जमा केने रहियै,जे महाजनक कर्जा सधा देबै।सभै परानी मिलके लाइनमे
लगलियैते जेना तेना तीसगो भजलै आ दसगो चुलहीक मूहँमे गेलै।ऐ बेरदाते आर
पचासगो दुहजरिया नोट छौंड़ीक बियाहले रखने छियै, की हेतै से नै जानि। कहै
छलियै एकर बंकमे जमा क दौ सबटा से मुरछी मारने छलैन।
- इहो कने थीर रहौने!यैह जँ एना करतै त' बल्लूग हम बताहे भ'जेबै ।
- त पूछौने ककरोसे!
-ककरासे पुछियौ? सब सूतल हेतै।विहान होमय दौ तहन देखल जेतै।
-विहानक भरोसे जँ रहतैते हमर परान निकैल जेतै।कने बाहर जाके देखौने! कियोने
कियो जागल हेबे करतै।
-बेसते देखै छियै! एतबा कहि रामधन अपन घर सं बाहर भेलते देखैये मजूर
मजुरनीक जमघट लागल बरहम थानक आगांमे। सबहक ठोर पर एकेटा आखर छलै जे फेनो ओही
साल जेना नै ते हेतै ।लालच बुरी बलाय।केहन बढ़ियाँ बंक मे जमा भ' गेल
रहितैते आइ ई फिरीसानी नै भोगय पड़िते,से चोरुक्का जमा करैक फेरमे अपने
करममे अपने आगि लगा बैसलै सब।जते मूहं ततेक बात सुनि एकटा पढ़ुवा छौंड़ा
सबके दैत बजलै -एना अशान्त नै होइ जाइ जाह।तोरा सब लग दस बीसटा नोट हेतह ,
से आसानीसे भजि जेतह।भोगत ओ जे करोड़क करोड़ दाबिके रखने छै। जल्दी से जल्दी
अपन अपन दुसजरियाके बेंकक अपन खातामे जमा कय लै जाह वा भजा लैह।
-बुरतै नै ने रौ?
-नैहौ!एखने समाचारमे खोंइचा छोड़ाके सबटा बात कहकैये।सब आरामसे सूतहगे एखन
हँ एतबा धैर अवस्स जे जल्दी सँ जल्दी अपन अपन दुहजरियाके जगह लगा लैजाह नै
ते भाड़ी फेरमे पड़ि जाइ जेबह। एखनुक सरकारके कोनो ठीक नहिं। कखन कोन दाउ
खेलतै ।
रामधनके जी मे जी एलै। घरवालीके सबटा खघिस्सा सुनाके चैनसे सूति रहल।
-प्रमोद झा 'गोकुल', दीप,मधुवनी (विहार), फोन-9871779851
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