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डॉ. कैलाश कुमार मिश्र- संपर्क-8076208498

नारायण चौधरी आ जलकर संरक्षण केर सामाजिक सरोकार

नारायण चौधरी पर लिखब केर अर्थ भेल सामाजिक संदर्भ सँ सरोकार आ एक वचन सँ बहु-वचन केर यात्रा केर सहयात्री बनब। ताहिं जखन विदेह लेल श्री नारायण चौधरी पर लिखबाक लेल कहल गेल तँ अथर्ववेदक पृथ्वी सूक्त केर एक मंत्र स्मरण अबैत अछि: "माता भूमि: पुत्रो अहं पृथिव्या" उपरोक्त श्लोक मनुष्य मात्रकेँ पृथ्वीक रक्षा आ देखरेख करक सनेस दैत छैक। ई श्लोक कने आरो व्यापक भऽ जाइत छैक कारण ई पर्यावरण संरक्षण केर मूल भावनाकेँ प्रोत्साहित करैत छैक। से केना? एना जे सभ जीव जंतु, चर-चराचर अंततः तँ वाश करैत आबि रहल अछि एहि पृथ्वी पर ने!

 

प्रकृति आ मानवीय संस्कृति दुनू एक दोसर सँ सूई ताग जकाँ जुटल अछि। संस्कृति केर संरक्षण आ संवर्धन प्रकृति केर कोरामे होइत रहल छैक। सनातन संस्कृति तँ डेगे- डेगे प्रकृति सँ तारतम्य बैसबैत चलैत आबि रहल अछि। सनातन संस्कृति (स्पष्ट कँ दी जे धर्म सेहो संस्कृति केर एक सूक्ष्म स्वरुप अछि) काल, स्थान, आ जलवायु संग तारतम्य स्थापित करैत अछि । हमरा लोकनि जल, वायु, पृथ्वी, अग्नि, सूर्य, चंद्रमा, नाग, माछ, काछु, गाछ, वृक्ष सभमे देवताक भाव देखैत छी। सभक आराधना, पूजा, अर्चना करैत छी। सभक उपयोग टोटेम जकाँ करैत छी। मिथिलामे जिनका सभक गोत्र कश्यप छनि से सभ काछु नहि खाइत छथि। काश्यप गोत्री लोक काछूक संरक्षण करैत छथि। कतेक ठाम काछू अगर अभरि जाइत छनि तँ ओकरा पकरि ओकर पूजा अर्चना करैत छथि। स्त्रीगन काछुकेँ नव लाल वस्त्रक परिधान दैत छथि, सेनुर लगबैत छथि, प्रसाद प्रेषित करैत छथि, आ अंततः ओहि काछूकेँ कोनो सुरक्षित स्थान, विशेष रूप सँ पोखरि, इनार, नहरि, नदी आदिमे प्रवाहित करैत छथि। एहि प्रक्रिया अथवा अनुष्ठानकेँ मानवविज्ञानक दृष्टि सँ तीन तरहक अवधारणा स्पष्ट होइत अछि:

क. रक्षा केर अवधारणा

ख. परिहारक अथवा रोकक अवधारणा

ग. उत्पादन अथवा प्रजनन केर अवधारणा

एकरा कने स्पष्ट करब आवश्यक। देखू, जखन कियो कश्यप गोत्री कछुआकेँ देखैत छथि तँ अपन गोत्रक संकेत बुझैत ओकरा पकरि कि घर अनैत छथि। आब पूजा, पाठ, प्रसाद इत्यादिक भोग आ अंतमे सेनुर लगा एक सुरक्षित स्थान पर ओकरा राखि आबैत छथि। एहि प्रक्रियामे काछुक रक्षा, ओकर संरक्षण भऽ जाइत छैक। कियो कश्यप गोत्री काछु नहि मारत, ई नियम काछुक जनसंख्याकेँ छय होबासँ रोकैत छैक। आ जखन काछु सुरक्षित आ संरक्षित रहतैक तँ स्वाभाविक छैक जे काछुक प्रजनन बढ़तैक। ई भेल संस्कृति सँ प्रकृति केर अवयव केर रक्षा आ एक दोसरक हारमनी। जखन हम सभ इनारक पानि पिबैत रही (जे आब लॉस्ट मेमोरीक हिस्सा भँ चुकल अछि ) तँ इनारमे काछु देल जाइत छलैक। तकर प्रयोजन ई जे इनारक जलकेँ काछु साफ़ करैत रहतैक। विवाहमे कोहबर घरमे पेंटिंगमे काछुक आकृति उकेरल जाइत छैक, काछु केर खप्परमे तेल दऽ ओकर टेमी बारल जाइत छैक। तकर सभक प्रयोजन ई जे जेना काछु दीर्घायु होइत अछि तहिना बर-कनिया केर जोड़ी दीर्घायु रहत।

बात व्यक्ति विशेष श्री नारायण चौधरी पर कऽ रहल छी ताहिं प्रकृति आ संस्कृति केर समन्वय पर चिंतन करब केर औचित्य कम अछि मुदा ई समन्वय हुनक पर्यावरण संरक्षण केर एप्लाइड फॉर्मेटकेँ बुझबाक लेल हमरा हिसाबे आवश्यक अछि ताहिं अतेक बात लिखल। आब बात करी श्री नारायण चौधरी महोदयकेँ नारायण चौधरी आ पोखरि (अथवा कित्रिम जलाशय) केर संरक्षण जेना हम बुझि सकल छी आब एक सिक्का केर दू टा पहलु थिक। लिखब, पढ़ब, पढ़ाएब, नेतागिरी करब एक बात भेल मुदा बिना कोनो राजनितिक, आर्थिक, आ पदक लोभकेँ पर्यावरण एक लघु स्वरुपकेँ पकड़ी ओहि लेल धरना, आंदोलन, पोस्टर, बैनर, जागरूकता इत्यादि उत्पन्न केनाइ बहुत पैघ त्यागक काज भेल। ई पैघ काजक संपादन बहुत दिन सँ दरभंगा आ अगल-बगल केर मिथिला क्षेत्र लेल पोखरि आ जलाशय केर संरक्षण लेल कँ रहल छथि श्री नारायण चौधरी। चौधरी जी निश्चित रुपे एहि प्रशंसा केर पात्र छथि। हमरा लगैत अछि विदेह सेहो एहन व्यक्तित्व पर विशेषांक निकालि बहुत पैघ काज कँ रहल अछि आ ई प्रमाणित भऽ रहल अछि जे साहित्य केर पत्रिका पर्यावरण, लोकाचार, विज्ञान आदि दिस सेहो साकांक्ष अछि।

के छथि श्री नारायण चौधरी? हिनक नाम आब दरभंगा आ अगल-बगल केर क्षेत्र केर बच्चा जनैत अछि। आ ज नहि जनैत अछि तँ ई दुखक बात भेल। खैर कहल ई जाइत अछि जे करीब बारह-तेरह वर्ष पूर्व नारायण जी के अनुभव भेलनि जे पोखरि मिथिला केर लाइफलाइन रहल अछि मुदा आब नहुँ-नहुँ पोखरि ख़त्म भेल जा रहल अछि, सूखल जा रहल अछि अथवा लोक सभ अनेक कारणे पोखरिके खत्म कऽ ओहि जमीनके समतल बना ओकरा कब्ज़ा कऽ रहल छथि। दरभंगा शहरमे भू-माफिया आ प्रॉपर्टी डीलर सभ मेल-जोल सँ पोखरि केर जमीन पर घर बना बेच रहल अछि। लोक सभ अपन गंदगी, कचरा, इत्यादि पोखरिमे फेक रहल अछि। पोखरिमे लोक लघुशंका क' रहल अछि, सोच कऽ रहल अछि, पोखरि केर जल माछ, चिरई आदि लेल उपयुक्त नहि रहि गेल अछि, अनेक पोखरिमे प्रवासी चिरई आब नहि आबि रहल अछि। पोखरि पैघ हो वा छोट अपन स्वरुप लघु सँ लघुतर केने जा रहल अछि। बाहर सँ पोखरि वीभत्स भेल जा रहल अछि । पोखरि विभत्स आ कूड़ा केर गढ्ढा बनल जा रहल अछि। ऊपर सँ की शहर आ की गाम सभ ठाम पानि केर लेएर बहुत निचा जा रहल अछि। जतेक चापाकल सभ अछि या तँ सुखाएल जा रहल अछि अथवा लोक बेर-बेर ओकर लेवल नीचा लऽ जा रहल अछि। नारायण चौधरीके भेलनि जे एहि विषय पर तुरत काज करबाक दरकार अछि। फेर की ओ एक अभियान प्रारम्भ केलनि – तालाब बचाओ अभियान (TBA)। प्रारम्भ तँ ई एक आवेगमे केलाह मुदा नहुँ-नहुँ हिनक आवेग एक जन-आन्दोलन केर आकार लेमय लागल। आई पोखरि केर संरक्षण द्वारे पर्यावरण संतुलन आ पर्यावरणमे सुधार हिनकर जीवन केर मूल मंत्र बनल छनि।

जे जानकारी उपलब्ध अछि ताहि अनुसारे बाढ़ि प्रभावित क्षेत्रक जनताकेँ जनसभा आ घरे-घर संपर्क सँ एहि कार्यमे सहभागिता लेल मनेनाइ प्रारम्भ केलनि। अनेक धरना, हस्ताक्षर अभियान, दुर्गापूजा, छठि पाबनिक समय पोस्टर आ बैनर प्रदर्शनी, पोरेस्ट मार्च, मीटिंग आदिकेँ द्वारा जन-जनमे जागरूकता शुरू केलनि। अतबे नहि, अपन मिशनमे नारायणजी स्कूल कॉलेज केर विद्यार्थी, शिक्षक, राजनितिक दल केर कार्यकर्त्ता आ नेता सभकेँ सहभागी बनक हेतु उत्साहित केलनि। हिनक योजना सफल होमय लगलनि। सभक संग भेटनाय प्रारम्भ भेलनि। आर तँ आर वैज्ञानिक, कृषि वैज्ञानिक, पर्यावरणविद, DRDO केर शोधकर्ता, डॉक्टर, इंजिनियर, विश्वविद्यालय केर शिक्षक सभ कियो हिनक सहयात्री होमय लागलथिन। लोक आब हिनका सँ कोना जलाशय केर रक्षा करी ताहि लेल संपर्क करैत छथिन्ह। दुर्भाग्य केर बात ई छैक जे मिथिला क्षेत्र जे गामे-गामे पोखरि आ इनार लेल प्रसिद्ध छल ओतय सँ इनार तँ लपत्ता भऽ गेल पोखरि सेहो ख़त्म भेल जा रहल अछि। सरकार एहि दिसामे रत्तियो भरि गंभीर नहि अछि। ई दुखद विषय अछि।

हमरा लगैत अछि पर्यावरण सामाजिक सरोकारक विषय अछि। सभ कियोक एकरा सँ सम्बंधित छथि। पोखरि अथवा जलाशय केर कोनो परम्परागत अथवा परकृतिक स्रोत प्रदूषित अथवा खत्म होइत छैक तँ पूरा समाज ओहि सँ प्रभावित होइत अछि। ताहि एकर संरक्षण हेतु आइ आवश्यकता एहि बातक अछि जे समाज केर सभ वर्ग, समुदाय केर लोकक सहभागिता निश्चित हो। नारायण जीक काज पर, हुनक जनसरोकार पर शोध होबाक चाही। पानि पंचायत पर घर-घर चर्चा होबाक चाही। बैद्यनाथ मिश्र यात्री मल्लाह समाज केर लोकके “वरुण के बेटे” कहि संबोधित करैत छथि। मल्लाह केर प्रमुख देवता कारिख महराज जल केर देवता छथि, जाठक देवता छथि। हमरा सभक जीवन पानिक लोकज्ञान सँ संरक्षित अछि। मिथिला केर लोक आ ओकर जलक प्रति जीवनक प्रारम्भ सँ सिनेह आ संरक्षण भाव केर फोकलोर पर काज करक जरुरत छैक। वाटर कोस्मोलोजी पर काज करब आवश्यक अछि। स्त्री-पुरुष बच्चा सभकेँ एहि जागरूकता केर आन्दोलन सँ जोड़ए पड़त। हमरा सभकेँ नारायण चौधरी सनहक लोककेँ अपन क्षेत्र गौरव बना कऽ राखऽ पड़त। हुनका ओहने सम्मान देम पडत जेहन सम्मान सुन्दर लाल बहुगुणा, या बचपन बचाओ आन्दोलन केर नेता श्री कैलाश सत्यार्थीकेँ भेटल छनि। हमरा सभकेँ चिपको आन्दोलन जकाँ नारायण चौधरी केर आन्दोलन के घरे-घर लऽ जएबाक दरकार अछि। सभ सँ अधिक जरुरत एहि बातकेँ अछि जे सत्रीगनक मध्य ई आन्दोलनक स्वरुप पकड़ि सकय। नारायण चौधरी केर व्यक्तित्व आ कृतित्व पर अधिक सँ अधिक चर्च हो। स्कूल, कॉलेज आ अन्य समान्य पब्लिक स्पेस पर हुनक चर्च हो। प्रवासी मैथिल हुनका दिल्ली आ अन्य नगर एवं विश्वक अन्य भाग लग लऽ जाथि, हिनकर सम्मान करथि, हिनक कार्यक चर्च हो। हिनक कार्यक मोनोग्राफ छपक चाही। हिनका जतेक जल्द हो हमरा लोकनि पर्यत्न करी जे पद्मश्री अथवा अन्य पुरस्कार भेटनि। हरेक जिला, अनुमंडल, प्रखंड, पंचायतमे जल प्रबंधन आ जल संरक्षण पर काज हो, ओकर सोशल एकाउंटिंग हो, सभ कियोक ओहिकेर सञ्चालनमे अपन सहभागिता निश्चित करथि। स्थानीय अख़बार, पत्रिका (ऑफलाइन आ ऑनलाइन) नियमित एहि विषय पर नूतन काज, प्रयोग पर लेख छापे। मधुबनी चित्रकला, मैथिली लोकगीत, डाक्यूमेंट्री फिल्म, मैथिली साहित्य, समाजशास्त्र, पारिस्थितिकी विज्ञान, भूगोल आदि पर एहि विषय पर काज हो। एक ठाम नहि सभ ठाम अगर गंभीर रहब, साकांक्ष रहब आ एकरा समस्त समाजक थाती बुझब तखने ई आंदोलन सफल रहत।

समयाभाव केर कारण हम ई आलेख बहुत हड़बड़ीमे लिख रहल छी। कहियो नारायण चौधरी जी सँ हुनका संग किछु दिन रहि, हुनक काजक सहभागी बनि, हुनका संग सघन वार्तालापक पश्चात् एक विस्तृत आ प्रमाणिक आलेख हुनका पर शीघ्र लिखबाक चेष्टा करब। एखन एक बेर पुनः हुनक काजक प्रशंसा करैत लोक सभ सँ आग्रह जे हिनक अर्थात नारायण चौधरी केर स्वर, चिंतन आ जलाशय केर संरक्षण, संवर्धन एवं पर्यावरण संरक्षण केर स्वरकेँ एक वचन सँ बहुवचन दिस लऽ चली, सभक सरोकार बनाबी। तखन ओ अपना आपके सफल बुझताह आ मरैत पोखरि, जलकर आ समस्त जलाशय पुनः प्राणवान भऽ उठत। मिथिलाक भूमि फेरो हँसए लागत। प्रथ्वी केर समस्त अवयवमे सामंजस्य अथवा हारमनी स्थापित होयत। आ, तखन यजुर्वेदक पृथ्वी शांति मंत्र केर एक-एक शब्द शब्दब्रह्म बनत: “ॐ द्यौः शान्तिरन्तरिक्षं शान्तिः, पृथ्वी शान्तिरापः शान्तिरोषधयः शान्तिः। वनस्पतयः शान्तिर्विश्वे देवाः शान्तिर्ब्रह्म शान्तिः, सर्वं शान्तिः, शान्तिरेव शान्तिः, सा मा शान्तिरेधि॥ ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः॥“

“आकाशमे शांति हो, अंतरिक्षमे शांति हो, पृथ्वीमे शांति हो, जलमे शांति हो, औषधिमे शांति हो, वनस्पतिमे शांति हो, सभ देवी-देवतामे शांति हो, ब्रह्ममे शांति हो, सभमे शांति हो, आ यैह शांति बनल रहक चाही।"

 

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