
लालदेव कामत
पौराणिक बालकथा- मौसरी धुपाधुप
हेमन्त रितुके सुआगतार्थ सब जोन अपना गिरहथके अरहेला पर भीठा बाध काज करय गेल रहैक। जोनमे सोझमतिये जेकाँ सब केओ अपना - अपना पाहि पर लागल धान फसिल हाँसु सँ काटय। दुपहरमे पूभर सँ कनुनियां बुढ़िया मुरही आ लाय बेचय आ सँगमे ओकर बेटा कलरा पान सुपारी डोलमे लेने खेत लग जुमैत छैक। चाल पारैत सोझमतिया सबसँ पहिले एक पाजा धानक शीस कतरिकेँ आदहा आरि पर मीर लेलक आ दू आहूल ओकरा दैत मीठा पान सब खेलक आ लाय - मुरही जेथगरकेँ बेसाहि लेलक। सब जन अपना - अपना धियापुता लऽ अगहनी सनेश बाध सँ गामपर मुन्हारि साँझधरि आनत गिरहत सँ नुकाके। ओनय सोमना, मंगला , बुधना, सुकना आ रविया केर बाऊ बैंगहा पर धानक' बोझ उगहय आ छोपय बाध विदाह होय सँ पहिनहि मालजाल फोलि बहटाबैत अपना - अपना छौंड़ाके चरवाही करय चहटी पर जंगल पठौलक। वृहस्पतिया आ शनियां जे बपटुअर छौरी रहय से ओकरो दूनू गोटेयके माय भगली आ सोझमतिया अपन गाए बाछी खोलि चराबय लेल गैवार सभक जेड़मे संग धरा देलीह। चहटी पर पहिले सँ ओतय अपन महिंस चराबैत मोहमुदबा रहय, बाल बेदरा सँ ओ चेष्टगर छलैक। चहटी पर माल - मवेशी केँ कनौ रोमबाक झंझटि नहिं रहैय। तेँ समय खेपय सातो चरवाह खेल - धुपमे लागि गेल। मनलगू 'बान्हक सुईया ताकू' म रमि जाइ गेल। ऐ खेलमे एक गोटाके विपरीत दिशामे घुमिके ठाढ़ हुअ पड़ैत छैक। जहन सब लोक महराए गबैत आ मूलगैन दू गिरहके कटकी'क सुइया बना , सबा हाथके माटिक बान्हमे भेँसके झाँपि दै तँ ओहि सूईया केँ खोजी करय ओकरा कहल जाय। जे नहिं ताकि सकै तँ ओकरा गाल फुलाकेँ हौफ बनल रहय पड़ैक। एहि खेलमे जहन दण्ड भोगैत शनियां ठाढ़े छलै तँ सब कियो " हे रौ झम्मा ,हेरौ झम्मा - तहूँ जे छिए बलेसरा " धुन गबैत वृहस्पतिया केर नाम पुकारैक सुईया घोंसियबै ले,तँ एतबेमे दूर्भावनावश रंगमे भंग भऽ गेलैक ! अजरा जबर्दस्ती मियां टोलक मोहमुद बाधा उपस्थित केलक। शनियां केर फुलल दूनू गाल पर मौसरी धुपाधुप करैत हलुक सँ करैत ओकर दूनू गाल मीर लाल क' देलकैक। शनिया किकिया उठल आ कनैत गाम पर पराएल चलि आयल। शनियांक माय बोझ उघि कऽ घर अयलीह तँ अपना दस बरखक धियाकेँ कननमुँह भेल बैसल कोनटे सँ देखलीह। जा ओ पुछारि करिते रहय ,आकि वृहस्पतिया दूनू मायधी ओकरा ओहिठाम झटकारि केँ आबि सब खेरहा प्रमाणिक रूपेँ कहय लगलैक। हे यै! हमरा सँ सब छोटे सँगी- साथी सब चहटी पर मिल बैठकेँ खेलाईत रहिऐ। जहन अहाँक शनियांक बारी चोर बनैक अयलैक तँ ओ बान्ह पर दूनू हाथक गहुआ सँ सुईया नहिं झांपि सकलै। तेँ गाल फुलाकय अस्थिर रहक छलैक बेशी कालधरि। हमरा सभ लग सहटि मोहमुद कका आबि खेल देखैत रहय; ओ अहाँक बेटीके गाल दूनू हाथे धुपसिन हलुक थापर चला, लगलैक गाल मिरकेँ लाल करय। से बड़ी जोर सँ शानियां दैया किकिया उठल छलैक। आ तेँ मौसरी धुपाधुप खेल उसरि गेल छलैक। आब झट दऽ चारू गोटय महमुदबा ओतय जाकय ओकरा अम्मी आओर बब्बाके उलहन दैत भगली सब करतुत बुझेलकैन। फुसराहटि सुनि आँगन सँ डेढ़िया पर महमुद केर बीबी कारिया बुरकामे समक्ष अयलीह आ अपना सौहरकेँ हटैत कहलखिन शनियां बुच्ची ढेड़बा सँ सियान भेल जा रहल छैक। से देखैत तों छौड़ी सबके संगहत बाला खेलमे कियेक शागिर्द भेलह! हियाँ पर कान पकड़ि घटी मानह, नहिं तँ हिन्नू टोलमे ऐ परिघटना मादे आइये बड़का शोर मचि जेतह।अनघोल होइतहिं शनियांक समांग सबुटा जुटि जेतह, हल्ला बोल उठि जेतह। तबे महिरम बुझबहक ' मसुरी धुपा धूप' केर!
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