संतोष कुमार राय 'बटोही'
खण्ड-काव्य 'उर्मिलाक विद्रोह'
( तेसर खेप )
लखन केर प्रतिवाद
लखन हम पुत्र राजा दशरथ केर छी।
गामी भातृ-धर्म पहिले पथ केर छी ।
राजधर्म हम मानल अपन सुख छोड़ि कऽ।
वनवास हम भेलहुँ उर्मि सँ मुख मोड़ि कऽ।
कुन कोना मे छिपायब हम अपन प्रेम रे भँवर !
हे चिरैया ! लऽ अबिहें उड़ि कऽ उर्मि सँ खबर ।
बड़ अभागल सचहौं हम अवध सँ भेलहुँ दूर।
भाग्यक लेखा के मेटत हम भेलहुँ मजबूर ।
माय सुमित्रा पिता राजा दशरथ कोना होयत ?
बिगाड़ल अयोध्या केँ राज फेर ओना साजत ?
नगरक प्रजा रोकि पीछा नदी तट आयलाथि।
माय केकैयी एको बेर हमरो नहि रोकलाथि ।
हे जनककुमारी ! केलहुँ हम बड़ अन्याय ।
राजधर्म निहेबाक कारणे ऐलहुँ संग रघुराय।
नहि आकाश नहि पाताल बीचि फँसल छी।
अहाँ सँ हम अहाँ हमरा हिया मे धँसल छी।
एक विश्वास अहीं पर अहाँ हमर आँखिक नूर।
भयल हमर सभ संजोयल सपना चकनाचूर।
नहि विसैर जेबै अहाँ नेहिया केँ कसम अछि।
समय पर अपन वश नहि हमरो करम अछि ।
हे उर्मि ! रुसनै-खिझनै ई छोट गप्प,नहि सही ।
सिनेहियाक नोर बहि रहल, परञ्च उर मे अहीं।
राजा दशरथ केर पुत्रवधू अहाँ केर मान अछि ।
इतिहास साक्षी रहत इएहा मे सम्मान अछि ।
-संतोष कुमार राय 'बटोही', मंगरौना
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