राम शंकर झा "मैथिल"
(स्मृति शेष)- यौ सुनैत छी/ चुकरी
१
(स्मृति शेष)- यौ सुनैत छी
यौउ सुनैत छि
कनेक कान दियौ न
दोसीमना वला भराठ
गेल रही कि नैय
यौउ सुनैत......!
से कि कि भेल
कि भेल! कि नै भेल
एतेक अनघोल
जेना कतहु मेघ गिरल
अन्हां कें एहीना
छन सँ लागि जाईत अछि
जानि नहिं कोन
वज्रखसूआ सँ
कनेक काल कलेमछे रहु न
कलेमछे अन्हां रहअ देलहुँ
यौउ सुनैत......!
हअमर दिन तअ
ताहि दिन वाम भेल
हअमर खुंट अन्हांक खुट
खुटम खुटा तअ बादो मे
एमहर आउ एमहर आउ न
देखियौउन सुगनबाबु कें
तान पअर तान दए
रहल छैथि
आहा कतेक सोहनगर
एक मिसिया जे अन्हां
मुसकिया देलियै
हे दैव हे उगलाहा!
कोन जन्मक कर्मक भोग
यौ सुनैत.....!
ज्यों आई भराठ सँ
तरकारी नहिं आएल
बुझि लिअ एक दू तीन
चूल्हा नहिं जरल
आई तअ अन्हि चन्ना सन
जरि रहल छि
किछु मअन पड़ल
एहिना तमतमाईत देखने रहि
अन्हां हअमर कथाक तेसर दिन
अन्हां केबाड़ मे सटल
बघुआईत विधकरी वाली
मामी पअर
यौ आई दिने मे भाँग
हुरि लेलहूँ आ कि
बताह भगेलहूँ
संसारक सबटा भाँग सँ बेसी
अन्हांक ओल सन बोल मे
अन्हांक सोन संन चमकैत
चंगेरा सनक मुखाकृति मे
किछु बेसी नहिं भए
रहल अछि
बेसी! हअमरा तअ कअम
बुझना जाअ रहल अछि
भटाक ठन ठन....
आँखि फुजि गेल
बिलाई दूधक बाटि गिरेलक
एकटा आँखि सं बिलाई
कें निहोरी
एकटा आँखि सँ भिता पअर
टांगल लटकल भीतिचित्र
कतेक स्नेह सँ
भरि राईत जागि जागि कें
बुनैत छलिह भीतिचित्र
सुग्गा मुँहमे गुलाबक फूल
यौ सुनैत.....!
बस आब स्मृति शेष
जानि नहिं केमहर दअ
नुकाएल जाअ रहल अछि
जीवनक माधुर्य जीवनक मौउद
यौ सुनैत छि...!!
बस आब तअ स्मृति शेष
२
चुकरी
कतेको माह कतेको दिन सँ
ताकैंत छलहूँ ऐय कोठी
ओय कोठी भन्सा घअर
कतेको माह कतेको ....!
भगलू काअ कें धनहारी
कनियाँ बा कें सोनपेटारी
कतह कतह नैय छानी मारलहूँ
मुदा जानि नहिं कतअ घुसल
केमहर कतअ ओ सुटिआ
पसीना चुवैत हाकल पियासल
बरेरी वला पाया सँ सटिकए
अँखि मुनने किछु स्मृति तरंग
कतेको माह कतेको....!
गोल गोल चुकरी कुम्हार
घुमैत चाक घुमावैत कुम्हार
सानल मैइंट ग्रहैईत कुम्हार
चाक कें गोल बाल साम्राज्य
हअमर ढ़कना हअमर सर्वा
अपन अपन सबहक मांग
घुमैत चाक घुमावैत....!
हअमर चुकरी हअमर चुकरी
आवा मे कथिसँ पाअकत
बारि-झारी गाछी-वृछी
तोरैत ओदारैत करची गौईठा
कतेको माह कतेक दिन...!
माइंट लेपल आवा लागि गैल
दुहाई हे कमला माअ
तौउला घईळ सङ्ग चुकरी
ज्यों सुन्नर सँ पाकि जाएत
चुकरी कें पहिल पाई तोरे
बाबा आ बरका काअ कें देल
मौउसी मामा नानी कें देल
कोना कोना केंचा-कौउरी
भरलहूँ लळका चुकरी
कतेको माह कतेको ...!
ओ चुकरी नहिं ओ जीवनक
प्रबंधनक एकटा पाठ छल
जीवन जीवाक् कला छल
बारिअ-बोह अन्हर-बिहायर
सङ्ग लड़बाक सोहनगर युक्ति
ओ बाबा कनियाँ बा कें
बढ़ पियरगर सनेश छल
कनियाँ बा कें मोउद सन बोल
वाउ वाउ कि भेल
ई रहल आन्हाक चुकरी
तखने चेहा उठलहूँ...!
आंखि फुजि गेल
बअस आब एकटा
स्मृति शेष बचल
हमर चुकरी हमर चुकरी!
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