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देवेन्द्र मिश्र
एकता
नहर कातक एकटा चभच्चामे तीनटा सिंहेसरा पाड़ा, तीनूक नाङड़ि तीन दिस, मुह एक्के दिस । एकटाक सिंघ बड़का-बड़का, दाेसरके मझेलबा आ तेसर बिनु सिंघेके ।
-अपनासभक जीवन बेकार भ' गेल । लाेकसभ अपना स्वार्थे सिंहेसरा बना दैए आ अपनासभकेँ अपना-अपना भागपर छाेड़ि दैए ।
- हँ, देख ने ! लाेकके खेतमे जाइते देरी हल्ला जे करए लागैए ! स्वार्थीसभ !
-ओतबे कहाँ ! बड़का बरछी ल' दाैगैए आ कचबाबध क' दैए ।
सर्वसम्मत निर्णय हाेइत अछि आपसी एकताक आ अपनासबकेँ खेहारनिहारपर आक्रमण करबाक ।
तखनहिं दछिनबरिया टाेल दिससँ आवाज सुनाइत अछि -
एहैऽऽऽत, एहैऽऽऽऽऽऽत .............!! तीनूक कान ठाढ़ हाेइत अछि । बिनु सिंघबला ठाढ़ हाेइत आवाजकेँ अकानैत अछि । मझिलबा सिंघबला ठाढ़ हाेइत ओकरा धकिअाबैत अछि आ दरबर मारैत अछि ।
एहैत, एहैऽऽऽत ...... जाेरक आवाज ।
बड़का सिंघबला दाैड़िक' मझिलबा सिंघबलाकेँ मारैत अछि जाेरसँ पाँजरेमे । थुस्स द' बैसि गेल ओ ।
बिनु सिंहबला त' पहिनहि हारि मानि लेने अछि । बैसलाहा सेहाे अपन एकताक असफल याेजनापर नाेर चुबा रहल अछि ।
# देवेन्द्र मिश्र,राजविराज,नेपाल#
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