प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका

विदेह नूतन अंक
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डॉ सुमंगला झा

अपन पीढ़ी

 

अपन पीढ़ी, साठ, पैंसठ सँ, 

पछत्तर-अस्सी के बीच छईथ I

अपना परिचित छथि लालटेन,

डिबिया,ढिबरी,टॉर्च इजोत सँ ।

 

भनसाक ईंधन जारन घर में, 

चिर-परिचित छल चिपड़ी-गोइठा I                   

संठी, भुस्सी, लकड़ी, चेरा,             

घास पात आओर टूटल टटिया ।

 

भोर स राति! अंगना-ओसार,

बरतन- बासन, झाड़न-बोहारन I

मूढ़ी, चूड़ा, चितुआ, सत्तू ,

भानस-भात स्त्रीगण श्रम सँ ।

 

शीत लहरी म संग-संग बैसइत,

घूड़, बोरसी, चूल्हि घेराइत I

गप शप फूसि साँच बतियाबैत,

अल्हुआ, अल्हू, ओढ़ा पकावैत।

 

हमजोली संग खेलैत खेलावैत, 

साँझक डिबिया में पढ़ैत-पढ़ावैत I

बड़-बुजुर्ग के धाख रहल छल,

हुनकर सहमति ! आवश्यक छल।

 

मान-सम्मान ! कार्य प्रति अनुमति,

मुँह तकैत रहुँ कखन प्रसन्नचित I

आग्रह कए अनुग्रहित होएत छलूँ   

स्वेच्छा सँ अनभिज्ञ रहैत छलूँ I

 

साझा परिवार एकाकी म बदलल,

सेहो अद्यावधि टूटल-बिखरल I

संघर्ष-वसात म धी-पूत बिछुड़ल,

भविष्य-चिंत म भ गेल असगर।

- डॉ सुमंगला झा, MA (Soc & Hin), PhD 

 

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