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१.६.डा.विनयानन्द झा-पं.भवनाथ झाक पाण्डुलिपिसँ संपादित पोथीक अद्यतन सूचना

डा. विनयानन्द झा

(मधुबनी जिलाक इतिहासपर अनेक पोथी प्रकाशित, इतिहासकार, पंजी शास्त्रक ज्ञाता। संपर्क-8877374666)

पं. भवनाथ झाक पाण्डुलिपिसँ संपादित पोथीक अद्यतन सूचना

मधुबनीक रूपवल्ली (रूपौली) गामक निवासी आ महावीर मन्दिर, पटनाक प्रकाशन विभागक प्रभारी एवं सम्पादक पण्डितकुल नलिनी दिवाकर श्री भवनाथ झा संस्कृतक उच्च कोटिक विद्वाने टा नहि, अपितु विविध लिपियो (प्राचीन-अर्वाचीन)क ज्ञाता सेहो छथि। ई प्राचीन पाण्डुलिपि, शिलालेख आदिकेँ पढ़बामे पटु छथि। अनेक राज्य सरकार, केन्द्रीय सरकार आ विभिन्न शैक्षणिक संस्थान सभक द्वारा पाण्डुलिपि सभकेँ पढ़बा आ संपादन करबामे हिनक सहायता लेल जाइत अछि। हमरा सनक अधीर एहि बातसँ दुःखी रहैत छथि जे वाचस्पतिक भूमि एक्कैसम शताब्दीमे पण्डित शशिनाथ झाजीक बाद संस्कृत विद्या में वन्ध्या ने भए जाए। परन्तु जहियासँ हिनकासँ परिचय भेल, हम आश्वस्त भेलहुँ जे मिथिला मे भवनाथजी-सन विद्वान छथि।

पं. झा आइ लगभग 30 वर्षसँ सारस्वत सेवामे छथि आ हिनक एतेक दिनक सभ योगदानकेँ एकत्र करब कठिन समस्या छल। एहि समस्याक समाधान हमर पुतोहु सौ. अलका झा कए देलनि। ओ हुनक पुत्री छथि आ स्वयं विधि-शास्त्र (बी.ए., एल.एल.बी.)क अध्ययन कोलकाता विश्वविद्यालयसँ कएने छथि। ओ अपन पिताक सभटा रचनाक संबंधमे सूचना व्यवस्थित कए आलेखक आधार-सामग्री तैयार कए देलनि। ओकरे आधार पर  समस्त आलेख अछि।

पं. झाक महान् कृति (magnum opus) छनि बुद्धचरितम् के खण्डित अंशक पुनः प्रतिस्थापन। ई मूल रचना दोसर शताब्दीक प्रसिद्ध कवि अश्वघोषक थीक। मूलरूपमे 28 सर्गमे लिखल गेल छल। दुर्भाग्यवश प्रथम सर्गक लगभग 15 टा श्लोक आ 14म अध्यायक आगाँ सभ सर्ग नष्ट भए गेल। नेपालमे सेहो एक व्यापक अन्वेषण भेल, मुदा नहि भेटि सकल। एहि बुद्धचरितम्क सम्पूर्ण अनुवाद चीनी भाषामे पाँचम शतीमे धर्मरक्ष नामक बौद्ध विद्वान् कएने रहथि, जकर अंगरेजी अनुवाद सैम्युएल बील कएलनि, जे उपलब्ध अछि। एही बुद्धचरितम् के समग्र अंशक दोसर अनुवाद सातम शतीमे तिब्बती भाषामे भेल छल, जे सुरक्षित रहल आ ओकर अंगरेजी अनुवाद ई.एच. जॉन्स्टन कएलनि। एहि दूनू अनुवादकेँ सोझाँ राखि तिब्बती अनुवादक श्लोक संख्याक अनुसरण करैत अश्वघोषक छन्दोयोजना आ शाब्दिक प्रवृत्ति केँ ध्यानमे रखैत पं. झा संस्कृतमे एकर पद्यानुवाद प्रस्तुत कएलनि। ई एक प्रकारक प्रतिस्थापन (Restoration) थीक, जे अश्वघोषक मूल रचनाक आभास दिअबैत अछि। एकर प्रकाशन महावीर मन्दिरसँ 2013 ई.मे भेल अछि।

हिनक एक लघु कृति भ्रूणपंचाशिका सेहो प्रकाशित अछि। कन्या भ्रूण हत्याक विरुद्ध ई 50 श्लोकक मार्मिक संस्कृत काव्य अछि, जकर अनुवाद सेहो प्रकाशित छैक। अगिला दिन जाहि कन्याक भ्रूणकेँ नष्ट कए देबाक योजना बनि चुलक छै, ओ रातिमे अपने मायकेँ व्यथा सुनबैत अछि, नारीक गरिमाक व्याख्या करैत अछि। एकर एक-एक श्लोक करुणामिश्रित आक्रोशसँ भरल अछि। एकरो प्रकाशन महावीर मन्दिरसँ 2013 ई.मे भेल अछि।

पं. झा मूल रूपसँ सम्पादक छथि। हिनका अप्रकाशित ज्ञान-परम्पराकेँ संपादित कए प्रकाशित करबाक प्रति विशेष रुचि छनि। आ इएह रुचि हुनका पाण्डुलिपि-विज्ञान दिस आगाँ बढ़एबाक काज कएलक अछि। हमरा लोकनिक पूर्वज जे लीखि गेल छथि ओ समग्र रूपसँ जा धरि उपलब्ध नहि होएत, ओकर अध्ययन नहि कएल जाएत ता धरि ओकर ज्ञानमय स्वरूपक निर्धारण सम्भव नहि अछि।

वास्तविकता ई अछि जे मिथिला सहित सम्पूर्ण भारतमे जतेक ग्रन्थ लिखल गेल ओकर अधिकांश भाग नष्ट भए चुकल अछि। मिथिलामे बाढ़ि आ अगिलग्गी दूनू एन पाण्डुलिपि सभकेँ बड़ हानि पहुँचौलक। नालंदाक अगिलग्गी आ उजाड़ विख्यात अछि, तैयो आइ बहुतो एहन ग्रन्थ अछि जकर लिखित प्रति ठाम-ठाम उपलब्ध अछि, मुदा ओकर प्रकाशन नहि भेल छै। प्राचीन लिपि होएबाक कारणें सभक लेल ओकरा पढ़ब सम्भव नहि छै, तेँ ओकरा आधुनिक लिपिमे लीखि ओकर प्रकाशनक आवश्यकता छै। एही आवश्यकताक पूर्ति पं. झा करबाक लेल उद्यत होइत छथि।

मिथिलाक जाहि ज्ञान-परम्पराक ई सम्पादन कएने छथि ताहिमे निम्नलिखित पोथीक चर्चा एक ठाम करब आवश्यक प्रतीत होइत अछि-

1. सुबोध- ई महामहोपाध्याय पक्षधरक रचना थीक। एकर प्रकाशन कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय, दरभंगासँ 2024ई. मे भेल अछि। एकर भूमिका संस्कृतमे लिखल गेल अछि, जाहिमे ओ एकरा म.म. बटेशक पुत्र पक्षधरक रचना मानने छथि। एकर मिथिलाक्षरक पाण्डुलिपिक छाया प्रति हुनका संस्कृत विश्वविद्यालयसँ उपलब्ध कराओल गेल रहनि। एकर संपादकीयमे ओ बहुत रास बात लिखने छथि जे भविष्यक शोधकर्ताक लेल उपयोगी अछि, जेना सुबोध ग्रन्थक चर्चा आन आन परवर्ती धर्मशास्त्रीय ग्रन्थमे कतए कतए भेल अछि तकर उल्लेख अछि। यद्यपि ओ उल्लेख एहि पक्षधरीय सुबोधक नहि थीक, मुदा एहि अन्वेषणसँ एतबा स्पष्ट होइत अछि जे सुबोधक नामसँ मिथिलासँ भिन्न प्रदेशमे सेहो ग्रन्थ लिखाएल अछि। संगहि पक्षधरीय सुबोधमे जाहि ग्रन्थसभक उद्धरण आएल अछि तकर परिचय लीखि संपादक एकर कालनिर्णय आ परम्पराक निर्णयकेँ पुष्ट स्थापित कएने छथि।

पं. झा कें मिथिलाक ज्ञान-परम्पराक देशव्यापी प्रसारक जतए कतहु प्रमाण भेटैत छनि ओतए मिथिलाकेँ महिमा-मण्डित करबासँ नहि चुकैत छथि। सुबोध ग्रन्थक भूमिकामे रामदत्तक विवाह पद्धतिक पंजाब प्रान्त धरि प्रसार आ ओकर श्रेय मिथिलाकेँ नहि भेटबाक सूचनाकेँ लिखबासँ नहि चुकैत छथि। मिथिलाक प्रति हिनक अनुराग आ अपनत्वक ई प्रमाण थीक। ई सुबोधकार पक्षधर म.म. बटेशक पुत्र, म.म. भवनाथ मिश्र प्रसिद्ध अयाचीक मामा छलाह आ हमरहि गाम मँगरौनीक निवासी रहथि।

2. जम्मूवर्णनम्- एकर प्रकाशन सेहो कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय, दरभंगासँ 2024मे भेल अछि। मधुबनी जिलाक झंझारपुर प्रखण्डक लालगंज गामक आधुनिक नैयायिक पं. कुमुदनाथ मिश्रक ई रचना थीक। एकर भूमिकासँ स्पष्ट होइत अछि जे रचनाकार पं. मिश्रक देहान्त भेलाक बाद हुनक बस्तामे राखल एहि काव्यक अस्तव्यस्त पन्ना सभकें समेटि ओकरा क्रमसँ लगाए भवनाथजी एकर पाण्डुलिपि तैयार कएलनि। ओ पन्ना सभ वास्तवमे रफ कापी छलनि जाहिमे शब्द आ चरणकें काटि-काटि अनेक बेर ओकरा परिवर्तित कएल गल छल, संकेत दए श्लोककेँ आगाँ-पाछाँ कएल गेल छल। पं. झा अपन संस्कत ज्ञानक उपयोग कए ओकरा व्यवस्थित कएलनि आ प्रेस कापी तैयार कए हुनक पुत्र पं. मोहन मिश्रजी कें देलनि। अन्ततः ओ विश्वविद्यालयसँ प्रकाशित भेल। एहि सम्पादनमे जम्मूवर्णनम् काव्यक अतिरिक्त 10 गोट समस्यापूर्ति, स्फुट श्लोकक 7 टा संकलन, आ मैथिलीक चारि कविता, हिन्दीमे समस्यापूर्ति, गीत आ अन्तमे पं. मिश्रक न्यायशास्तीरय ग्रन्थ स्यादवादमञ्जरीविद्युत् देहात्मवाद-खण्डनम् सेहो अछि। एहि ग्रन्थक सम्पादकीय विस्तारसँ अछि जाहिमे जम्मूवर्णनम् काव्यक विषयमे लिखैत काल संस्कृत काव्य परम्पराक प्राचीन आ आधुनिक यात्राकाव्यक परम्परा विस्तारसँ देल अछि आ एकर प्रतिपादन करैत संपादक एकरा यात्राकाव्य मानने छथि। विधाक निर्धारण सम्पादकक महत्त्वपूर्ण काज होइत अछि जकरा पं. झा निमाहने छथि।

3. नाह्निदत्तपञ्चविंशतिकाविवरणम्- म.म. रुचिपति कृत व्याख्याक संग ई सम्पादित लघु ग्रन्थ मिथिला संस्कृत स्नातकोत्तर अध्ययन एवं शोध संस्थान, दरभंगाक शोध पत्रिका शास्त्रार्थक वर्ष 2012-13क चतुर्थभाग में पृष्ठ संख्या 370सँ 392 धरि प्रकाशित अछि। पञ्चविंशतिका मिथिलाक परम्पराक ज्योतिष शास्त्रक महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ अछि, जाहिमे मात्र 25 टा श्लोकमे सामान्य व्यवहार-ज्योतिषक सभ बात सूत्र रूपमे कहि देल अछि। एकरा मान्यता आइयो धरि मिथिला सहित सम्पूर्ण भारतमे अछि। एतेक धरि जे राम भट्टक मुहूर्तचिन्तामणिमे सेहो एकर विवाह-विषयक श्लोक उद्धृत कएल गेल अछि। एकर एकटा विवरणनामक व्याख्याक एकटा पाण्डुलिपि पं. झा कें लालगंजक पं. भवनाथ झा दीपकक घरमे भेटलनि। पाण्डुलिपिक प्राप्तिस्थानक समग्र वर्णन ओ अपन भूमिकामे करैत छथि जे कोन परिस्थितिमे पं. भवनाथ झा दीपकक संग हिनक पिताक सम्पर्क रहनि आ हुनक मृत्युक बाद आन एनेक पाण्डुलिपिक संग ई अपन घर आनि लेलनि। केवल अनबे टा नहि कएलनि, ओहिमेसँ अप्रकाशित ग्रन्थक निर्धारण कए ओकर संपादन कए सर्वसुलभ कएलनि। एकर 12 पृष्ठक भूमिका विशिष्ट महत्त्व रखैत अछि। एहिमे ओ मैथिल दृष्टिकें रखने छथि जे नाह्निदत्त सभसँ पहिनेविवाहक उल्ख किएक कएलनि? आन ठामक परम्परामे गर्भाधानसँ 16 संस्कारक आरम्भ होइत अछि, मुदा नाह्निदत्त सभसँ पहिने विवाहक दिन तकैत छथि। आन सभ संस्कारक आरम्भ ओहि बच्चाक माता-पिताक विवाह कर्मसँ आरम्भ होएबाक बात लिखब समाजशास्त्रीय दृष्टिसँ महत्तवपूर्ण अछि। एकटा प्रश्न अछि जे कोनो स्त्री-पुरुषक संयोगसँ गर्भाधान भए सकैत छै, मुदा की ओ शास्त्र सम्मत होएत? मैथिलक दृष्टि अछि जे विवाह समाजक निर्माणमे आधार थीक तें एकर पहिल उल्लेख कएल गेल अछि। एहि बात कें पं. झा स्पष्ट कएने छथि। भूमिकामे पहिने संपादक पं. झा नाह्निदत्तक मूल ग्रन्थक विभिन्न पाण्डुलिपिक भारत भरिमे उपलब्धताक विवेचन कएने छथि , जाहिसँ स्पष्ट होइत अछि जे मिथिलाक ग्रन्थक अतीत मे सम्पूर्ण भारतमे अध्ययन होइत छल। संगहि एतए नाह्निदत्तक लेल प्रयुक्त विविध अशुद्ध नामक संकलन कए ओ सिद्ध कएने छथि जे मिथिलाक्षरक पाण्डुलिपिकेँ पढ़बामे आन स्थानक लोककें केना भ्रम होइत रहलनि अछि। एहि भूमिकामे नाह्निदत्तक कालनिर्धारण करबाक क्रममे ओ पंजीक उपयोगक लेल एकाट विशिष्ट सूत्र उपयोग कएलनि जे आनो संपादक लेल मार्गदर्शक अछि। ओ नाह्निदत्त कें करमहा मूलक म.म. हरिकेशक पुत्र लान्हि मानने छथि आ हुनकासँ छठम पीढ़ी पर उत्पन्न दिवाकरक संबंध घोसौत मूलक गोविन्द ठाकुरसँ देखाए, हुनक पुत्र देवनाथ ठाकुर, जनिक काल अन्य स्रोतसँ निर्धारित अछि, तकरा आधार पर लान्हिदत्तक समय निर्धारित कएने छथि। पंजीक ऐतिहासिक उपयोगक ई एकटा उदाहरण थीक, जकर प्रतिपादन पं. झा कएने छथि।

संगहि एतए पंचविंशतिकाक विभिन्न सम्पादन आ व्याख्याक उल्लेख करैत म.म. रुचिपतिक विवरणक महत्त्व आ ओकर ऐतिहासिकता प्रतिपादित करैत छथि। पाण्डुलिपिसँ कोनो ग्रन्थक केना संपादन कएल जाएत छै आ ओकर प्रामाणिकताक लेल कोन कोन विवरण देल जाइत अछि तकर ई एकटा मार्गदर्शक संपादन थीक। ई पोथी Google e-book क्रय हेतु सेहो उपलब्ध अछि।

4. व्यवहार-रत्नावली- उपर्युक्त शोध पत्रिकाक ओही अंकमे पृष्ठ संख्या 402सँ 430 धरि ई पोथी संपादित अछि। ई म.म. पशुपतिकृत व्यवहाररत्नावली थीक। ई पशुपति सेहो माण्डरवंशीय म.म. बटेशक पुत्र आ हमरहि गाम मँगरौनीक छलाह। तें सुबोधकार म.म. पक्षधरक भाइ सिद्ध होइत छथि। एकर पाण्डुलिपि संपादक पं. झाकें अपनहि घर मे भेटलनि। हिनक प्रपितामह पं. जनार्दन झाक हाथक लिखल जीर्ण पाण्डुलिपिसँ पाटोद्धार कए एकरा जेना-तेना सम्पादित कएलनि। सन् 2012ई.मे हम अपन घर पर म.म. गोकुलनाथ उपाध्यायक स्मृतिमे एकटा आयोजन कएने रही जाहिमे पं. झा एहि सम्पादनक सम्बन्धमे प्रथम सूचना देने रहथि आ प्रकाशित प्रतिमे सेहो मँगरौनीक सारस्वत साधना पर प्रकाशित हमर पोथीक चर्चा कएने छथि।

एहि संपादनक माध्यमसँ डाकवचन पर विशेष प्रकाश पड़ल अछि। एहि व्यवहाररत्नावलीमे चारि टा डाकवचन 15म शतीक लिखित स्रोतसँ प्राप्त भेल अछि। एहूमे मीन मेष तिन दंडा दीस आदि जे वचन अछि से छह आँगुर पलभा पर राश्युदय मानक गणित कएल अछि आ तें डाक मिथिलेक छलाह आ 15म शती धरि संस्कृत ग्रन्थकारक द्वारा मान्यताप्राप्त छलाह, एकर ऐतिहासिक साक्ष्य एतए भेटैत अछि। एहि ग्रन्थक भाषानुवादक संग स्वतंत्र प्रकाशनक आवश्यकता अछि।

5. मांसपीयूषलता- ई म.म. मदन उपाध्याय कृतिथीक, जकर प्रथम संपादन पं. झा कएने छथि। सम्प्रति ई Google e-book क्रय हेतु उपलब्ध अछि। संयोगसँ इहो मदन उपाध्याय हमरे गाम मँगरौनीक छलाह। एहि पोथीक संपादनक अनेक विशेषता पबैत छी। मात्र 48 पृष्ठक एहि पोथीक संपादकीयमे म.म. मदन उपाध्यायक टा आरो ग्रन्थक सूचना देल गेल अछि, जकरा लेल संपादक अनेक हस्तलेख विवरणीक सहायता लेने छथि। हिनक श्राद्धप्रदीपक एकटा पाण्डुलिपि म.म. हरप्रसाद शास्त्री राजा राजेन्द्रलाल मित्रकेँ नदिया जिलाक उला नामक गाँवमे भेटल रहनि, तकर सूचना दए ऐतिहासिक विवेचनक लेल आधार प्रस्तुत कएने छथि। एहि विवेचनक क्रममे हमरो पोथीक यथास्थान नाम देने छथि। जाहि पाण्डुलिपिसँ एकर सम्पादन कएल गेल अछि तकर विस्तारसँ विवेचन कए पाण्डुलिपि-शास्त्रीय विवरण देने छथि। एहि संपादनमे भूमिका सेहो पृथक् अछि जाहिमे ग्रन्थक विषयकें प्रस्तुत कएल गेल अछि। एहिमे दैव आ पितृकर्ममे माछ-माँसक अर्पणक विषयमे अन्य स्थानीय ग्रन्थकारक अभिमत उल्लिखित अछि। एहि पोथीमे पाण्डुलिपिक समग्र पत्रक छाया प्रति सेहो अछि तें एकरा फैस्किमिली प्रकाशन कहि सकैत छी।

मूल ग्रन्थ बड़ छोट अछि। एकार एकटा आधुनिक कालक निबन्ध मानि सकैत छी, मुदा मीमांसा शास्त्रक ग्रन्थ होएबाक कारणें भाषा गूढ़ अछि जकरा संपादक विस्तारसँ व्याख्यायित कएने छथि। हिन्दी अनुवादक बाद विशेष विवेचनमे आनो आने ग्रन्थसँ उद्धरण लए व्याख्या कएल गेल अछि। छठम स्तबक मे वार्धीणस शब्दक व्याख्या करैत देवण भट्ट, गोविन्दानन्द आदिक मतकेँ उद्धृत करैत वार्धीणस छागड़ थीक वा पक्षिविशेष थीक तकर निर्णय करैत छथि। ग्रन्थकार एकरा भक्ष्य चिड़ैक संग रखने छथि तें ई कोनो विशेष चिड़ै थीक, मुदा आन-आन ग्रन्थसँ प्रतिपादित होइत अछि जे ई बधिया कएल खस्सी थीक। एतए विविध ग्रन्थक अवलोकन कए सभ मतक संकलन भेल अछि।

6. पुष्पमाला- ई म.म. रुद्रधरक सर्वथा अज्ञात ग्रन्थ थीक। कोन देवताकें कें कोन पूल प्रशस्त अछि आ निषिद्ध अछि तकर विवेचन एहि ग्रन्थमे भेल छैक। एकर प्रकाशन मैथिली अनुवादक संग कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालयक व्याकरण विभागक स्मारिकामे 2011 ई.मे भेल अछि।

7. सोमवारी व्रतकथा- ई कथा म.म. रुद्रधरक वर्षकृत्यमे सेहो अछि मुदा अनेक स्थल पर बीचसँ श्लोक खण्डित रहबाक कारणें अर्थ विसंगति रहि गेल अछि। सन् 1855ई.मे श्री बच्चू शर्माक हस्तलिखित मिथिलाक्षरक प्रति हिनका अपनहि घरमे भेटलनि तँ ओकर उपयोग कए एकर विस्तृत भूमिकाक संग महावीर मन्दिर, पटनासँ प्रकाशित धर्मायण पत्रिकाक अंक संख्या 78मे सन् 2009ई.मे प्रकाशित करौलनि। एहि संपादनमे ओ देखबैत छथि जे प्रकाशित प्रतिमे कुल 119 श्लोक अछि, जकरा कारणें अनेत स्थल पर कथाक प्रवाह रुकि जाइत अछि। हिनका लग उपलब्ध पाण्डुलिपिमे 132टा श्लोक छै। एहि प्रकारें एहि संपादनक द्वारा सोमवारी अमावस्याक मैथिल कथाक संशोधन पाण्डुलिपिक आधार पर कएल गेल अछि।

8. रुद्रयामल सारोद्धारनामसँ दू खण्डित अंश- पं. झाक संपादनमे दूटा रचना सेहो हमरालोकनिकें भेटैत अछि जे पाण्डुलिपिसँ संपादित कएल गेल अछि। रुद्रयामलक नाम पर बहुतो परवर्ती रचना सभ लिखाएल अछि, जाहिमें तत्कालीन इतिहाल आ भूगोलक तत्त्व भेटैत अछि। जँ अंत आ बहिःसाक्ष्यसँ ओहि अंशक कालनिर्धारण भए जाए तँ बहुत किछु गजेटीयर सन सामग्रीक ओ स्रोत बनि जाइत अछि। पं. झा एहन दू टा स्रोतक संपादन सेहो कएने छथि। पहिल सामग्री अछि रुद्रयामलोक्त तीर्थविधिक खंडित पाण्डुलिपि। एकर पाठ मैथिली अनुवादक संग मिथिला भारती, शोध पत्रिका, पटनाक 2014क अंकमे मैथिली अनुवादक संग प्रकाशित अछि। एकर पाण्डुलिपि हुनका समस्तीपुरक कल्याणपुरक समीप लदौरा गाँवमे रस्ता कातमे 2013ई.मे छिड़िआएल भेटल रहनि, जतए ओ संस्कृत महाविद्यालयमे पूर्वमे अध्यापक रहथि। एहि अंशमे अयोध्याक जन्मस्थान मन्दिरक वला प्रसंग प्रमाणक रूपमे उच्चतम न्यायालयमे सेहो रखल गेल। दोसर अंश सेहो पूर्वोक्त स्थान पर भेटलनि जे मिथिलाक तीर्थसभक प्रसंग छल। ई अंश मूल रूप मे श्रीकृष्ण ठाकुरक रचना मिथिलातीर्थप्रकाशक भूमिकामे मिथिला शोध संस्थानसँ प्रकाशित अछि आ अनुवादक संग हिनक अपन वेबसाइट www.brahmipublication.com पर प्रसारित अछि। एकर किछु अंशकेँ हमहू अपन पोथीमधुबनी वर्तमान और अतीतमे कएने छी। एहि अंशमे मिथिलाक विभिन्न तीर्थस्थानक वर्णन दिशाक संग भेल अछि। एहिमे मिथिलाक सीमा, महिमा, नदी एवं ओहि तीर्थसभमे स्नानक महत्त्वपूर्ण तिथिक संग लोहिनी पीठ, लोहना ग्राम, गौरीशंकर, जमुथरि, छिन्नमस्ता, उजान एवं वनदुर्गा, खड़रख, सरिसब- सिद्धेश्वर शिव, सिद्धेश्वरी, गुरु हलेश्वर, लोहिनीस्थल, लोहनाक प्राथमिकता एवं मन्त्रविधि, कोइलखसँ पश्चिम- मङ्गला मठ तथा मङ्गलवन- मङरौनी, मङरौनीसँ पश्चिम- मधूकवन, मधुबनी, कपिलेश्वर स्थान, कपिलेश्वरसँ पश्चिम- पाण्डुपल्ली- भोजपड़ौल, दोसर पाण्डुपल्ली- पण्डौल, पाण्डुपल्लीक समीप शक्रपुरी- सकरी, सकरीसँ पश्चिम- वृद्धिग्राम- बढ़ियाम, वृद्धिग्रामक पश्चिम जीववत्सा नदी- जीबछ, जीववत्साक पश्चिम दर्भाङ्ग- दरभंगा, दर्भाङ्गसँ उत्तर- योगिवन, अहल्यापुरी- अहियारी, अहल्याक कथा, गौतमाश्रम एवं विश्वामित्राश्रम, विभाण्डक आश्रम, याज्ञवल्क्य आश्रम, दरभङ्गा से पश्चिम गोक्षुर तीर्थ- गायघाट, बेनीबाद आदि विवध स्थानक वर्णन आएल अछि। एहिमे चम्पारण्य, सीमाराम (सिमरौन), भीठ भगवानपुर, महिषीक तारापीठ आदि सेहो वर्णित भेल अछि। मिथिलाक तीर्थ-परिक्रमासँ सम्बन्धित ई पोथी सेहो दुर्बाग्यसँ खण्डिते भेटलनि, मुदा जे अंश अछि ओ बहुत किछु मिथिलाक भोगौलिक इतिहास केँ स्पष्ट करैत अछि।

पं. झाकेँ अप्रकाशित सामग्रीक प्रकाशनक अनुराग रखैत अछि आ अनेक छोट-छोट रचनाकेँ पाठक आ शोधकर्ता धरि प्रकाशित करैत रहैत छथि। धर्मायण पत्रिकाक सम्पादक होएबाक कारणें हिनक बहुत संपादन एहिठाम प्रकाशित अछि-

1. राममानस-पूजा पेन्सिल्वेनिया विश्वविद्यालयक संग्रहमे उपलब्ध पांडुलिपिसँ प्रथम बार संपादित। धर्मायण, खंड 84, महावीर मंदिर पटना, अक्टूबर-दिसंबर, 2014.

2. सनत्कुमार तंत्रसँ बालराम-स्तव। धर्मार्थ ट्रस्ट, जम्मूमे उपलब्ध देवनागरी पांडुलिपि पर आधारित।, धर्मायण, खंड 93, महावीर मंदिर पटना, मार्च, 2020.

3. चतुर्भुज दासक जगज्जीवन-चरितम्, रीवा राज पुस्तकालय में उपलब्ध देवनागरी पांडुलिपि पर आधारित, धर्मायण, खंड 108, महावीर मंदिर पटना, जुलाई, 2021.

4. मेघराज प्रधानक अनंत व्रत कथा (1660 ई.) संस्कृत अनंत व्रत कथाक काव्यात्मक भाषानुवाद थीक। एकरा देवनागरी पांडुलिपिसँ संपादित कएलगेल अछि। धर्मायण अंक. 123. महावीर मंदिर पटना.

5. रामानंद आचार्यक रामरक्षा-स्तोत्र, तीन देवनागरी पांडुलिपिक आधार पर संपित कएल गेल अछि। यद्यपि ई पूर्वप्रकाशित सेहो अछि, मुदा पूर्वप्रकाशन मे भ्रष्टपाठक कारणें एकरा रामचन्द्र शुक्ल धरि रामानंदाचार्यक रचना मानबाक लेल तैयार नहि भेलाह। मुदा एहि संपादनमे एकर अर्थ स्पष्ट अछि आ संपादक पं. झाक अभिमत अछि जे एकर प्रयोग बैष्णव समुदायमे  सन्धायवंदनक लेल होइत छल आ तें मौखिक परम्परासँ पाण्डुलिपि तैयार होएबाक कारणें क्रमशः पाठ भ्रष्ट होइत गेल। धर्मायण, अंक103. फरवरी, 2021.

6. संत जानकी दासक राम-जन्म बधाई। देवनागरी पांडुलिपिसँ रामजन्म एवं कृष्णलीलासँ संबंधित 20 पदक संपादन। धर्मायण, अंक105. अप्रैल, 2021.

पं. भवनाथ झा सतत सम्पादन कार्यमे लागल छथि। हिनक प्रथम संपादित पोथी म.म. परमेश्वर झाक पूर्वप्रकाशित ग्रन्थ यक्षसमागमम् के संस्कृत व्याख्या  हिन्दी अनुवाद थीक। ई पुस्तकाकारमे 1996ई.मे प्रकाशित अछि। एकरो भूमिका भाग विशिष्ट अछि। संस्कृत साहित्यक दूतकाव्यक परम्परामे मेघदूतक स्थापना आ ओकरे उत्तरकथा पर आधारित यक्षसमागमकेँ स्थापित कएल गेल अछि। कालिदाक मेघदूत जँ वियोग शृंगारक काव्य थीक तँ ई संयोग शृंगारक विशिष्ट काव्य मात्र 35 श्लोकमे अछि। मुद्रित किन्तु दुर्लभ ग्रन्थकें एहि संपादनक द्वारा सुलभ बनाओल गेल अछि।

हिनक संपादित विद्यापतिकृत भूपरिक्रमणम् हालहिमे प्रकाशमे आएल अछि। ई यद्यपि 1976ई.मे कलतत्ता संसाकृतिक परिषद् सँ छपल छल मुदा वर्तमान संपादक पं. झाक अनुसार स्थानक नामसभकेँ पढ़बामे प्रथम संपादककेँ भ्रम भेल रहनि। हरिभूमिकेँ हारभूमि’, ‘सूतपीठकेँ सूनपीठ’, ‘वाल्मीकिदेश कें वाल्मीकिडिच आदि रूपमे पढ़ि लेबाक कारणें एकर भौगोलिक आ ऐतिहासिक महत्त्व तिरोहित भए गेल छल। एकरा सभकेँ अपन पाण्डुलिपि-विज्ञानक अनुभवक आधार पर संशोधित कए गजेटीयर आदिक आधार पर स्थानक नामकेँ संशोधित कए एकरा एकटा गजेटीयरक दृष्टिसँ संपादित कए ओकर पठनीय हिन्दी व्याख्या कएलनि। एकर अंगरेजी अनुवाद सेहो एही पोथीमे विजयदेवजीक द्वारा कएल गेल अछि। एकर प्रकाशन हालहिमे इसमाद प्रकाशनसँ भेल अछि।

एम्हर पछिला वर्षसँ  पं. झा लगातार संस्कृत ग्रन्थक पाण्डुलिपिसँ सम्पादन आ अनुवादक परियोजनासँ जुडल छथि। ई पंक्ति लिखबा धरि हिनक दू टा संपादित कृति  दैवज्ञ दामोदरक  सभाविनोद आ वामोरि नारायणक  सभाकौमुदी राष्ट्रीय पाण्डुलिपि मिशन, संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार आ तत्वम् फाउण्डेशन, पुणेकसंयुक्त तत्त्वावधानमे क्रमश ज्ञान भारत सीरीज’ 1 3 के रूपमे प्रकाशित भए  चुकल छनि।

पं. भवनाथ झा सतत सम्पादन कार्यमे लागल छथि। हिनक प्रथम संपादित पोथी म.म. परमेश्वर झाक पूर्वप्रकाशित ग्रन्थ यक्षसमागमम् के संस्कृत व्याख्या हिन्दी अनुवाद थीक। ई पुस्तकाकारमे 1996ई.मे प्रकाशित अछि। एकरो भूमिका भाग विशिष्ट अछि। संस्कृत साहित्यक दूतकाव्यक परम्परामे मेघदूतक स्थापना आ ओकरे उत्तरकथा पर आधारित यक्षसमागमकेँ स्थापित कएल गेल अछि। कालिदाक मेघदूत जँ वियोग शृंगारक काव्य थीक तँ ई संयोग शृंगारक विशिष्ट काव्य मात्र 35 श्लोकमे अछि। मुद्रित किन्तु दुर्लभ ग्रन्थकें एहि संपादनक द्वारा सुलभ बनाओल गेल अछि।

हिनक संपादित विद्यापतिकृत भूपरिक्रमणम् हालहिमे प्रकाशमे आएल अछि। ई यद्यपि 1976ई.मे कलतत्ता संसाकृतिक परिषद् सँ छपल छल मुदा वर्तमान संपादक पं. झाक अनुसार स्थानक नाम सभकेँ पढ़बामे प्रथम संपादककेँ भ्रम भेल रहनि। हरिभूमिकेँ हारभूमि’, ‘सूतपीठकेँ सूनपीठ’, ‘वाल्मीकिदेश कें वाल्मीकिडिच आदि रूपमे पढ़ि लेबाक कारणें एकर भौगोलिक आ ऐतिहासिक महत्त्व तिरोहित भए गेल छल। एकरा सभकेँ अपन पाण्डुलिपि-विज्ञानक अनुभवक आधार पर संशोधित कए गजेटीयर आदिक आधार पर स्थानक नामकेँ संशोधित कए एकरा एकटा गजेटीयरक दृष्टिसँ संपादित कए ओकर पठनीय हिन्दी व्याख्या कएलनि। एकर अंगरेजी अनुवाद सेहो एही पोथीमे विजयदेवजीक द्वारा कएल गेल अछि। एकर प्रकाशन हालहिमे इसमाद प्रकाशनसँ भेल अछि।

एम्हर पछिला वर्षसँ पं. झा लगातार संस्कृत ग्रन्थक पाण्डुलिपिसँ सम्पादन आ अनुवादक परियोजनासँ जुडल छथि। ई पंक्ति लिखबा धरि हिनक दू टा संपादित कृति दैवज्ञ दामोदरक सभाविनोद आ वामोरि नारायणक सभाकौमुदी राष्ट्रीय पाण्डुलिपि मिशन, संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार आ तत्वम् फाउण्डेशन, पुणेकसंयुक्त तत्त्वावधानमे क्रमश ज्ञान भारत सीरीज 1 आ 3 के रूपमे प्रकाशित भए चुकल छनि।

एहि आलेखकेँ लिखबा काल हमरा गौरव भए रहल अछि आ अपन शुभकामना आ आशीर्वाद दैत छयनि जे एहिना आगाँ बढ़ैत रहथि आ मिथिला सहित भारत ज्ञान-परम्पराकेँ प्रकाशित करैत रहथि।

 

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