आशीष अनचिन्हार
दू टा गजल
1
पहिने मिठाइ फेर मिरचाइ भेलै
चीन्हल जानल लोक हरजाइ भेलै
पहिले दीनमे सजा सुना देलकै
तारीखसँ नीक जे सुनवाइ भेलै
जेहन मूँह देखै तेहने रचि दै
आब ओहो शब्दक हलुआइ भेलै
अपने घर आँगन अपने दुआरिपर
बहुत मस्ती बहुते पहुनाइ भेलै
चलि जाइत रहलै अनचिन्हार बनि कऽ
कहियौ एहन कोन अगुताइ भेलै
सभ पाँतिमे 22-22-22-22-22 मात्राक्रम अछि। दू अलग-अलग लघुकेँ दीर्घ मानबाक
छूट लेल गेल अछि। ई बहरे मीर अछि। दिन केर उच्चारण रूप दीन लेल गेल अछि।
वर्तनी रूपमे दिन सही छै।
2
भूमिपर अघोषित आपदा छै
आदमीसँ बेसी देवता छै
मोक्ष लेल साधल मोहमाया
साधनासँ बेसी वासना छै
मोन मरि कऽ एलै देह खातरि
जीबि जाइ अतबे कामना छै
रत्न सागरक मंथनसँ भेटल
ई उठा पटक संभावना छै
मोनमे बसल छै मोन हुनकर
संग लेल ई प्रस्तावना छै
सभ पाँतिमे 212-122-2122 मात्राक्रम अछि।
अपन
मंतव्य
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