प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका

विदेह नूतन अंक
वि दे ह विदेह Videha বিদেহ http://www.videha.co.in विदेह प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका Videha Ist Maithili Fortnightly ejournal विदेह प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका नव अंक देखबाक लेल पृष्ठ सभकेँ रिफ्रेश कए देखू। Always refresh the pages for viewing new issue of VIDEHA.
 

परमानन्द लाल कर्ण                                                                         

बुढ़ापाक जिनगी  

जेठक दुपहरिया अपन क्रूरता सँ आगि उगलैत मौसम मे सुमनजी घरक ओसारा पर राखल खाट पर बैसल छलाह । हुनक बुढ शरीर पसीना सँ तर बतर छल । साँझ भेल तहन किछु राहत भेलनि मुदा आँखि सँ नींद गायव छलनि । नींद कोना आओत ? भोरे सँ अनाजक एकहु दाना हुनका पेट मे नहि गेल छलनि । भूख सँ पेट बैसल छल । राति मे आसमान दिश देखैत अपन पत्नी सरस्वतीजी कें यादि करैत आँखि सँ ढ़व-ढ़व नोर गिरैत छल । आखिरकार सुमन जी कें बर्दाश्त नहि भेलनि । ओ खाट पर सँ उठि भनसा घर मे  एहि आशा सँ गेलथि जे घर मे किछु राखल होयत तहन खा लेव, मुदा भनसा घर मे गेला पर देखलखिन जे घरक सव वर्तन खाली अछि । तकर बाद ओ फ्रिज खोलि देखलखिन जे किछु राखल होय मुदा फ्रिज मे सेहो किछु नहि छल । सुमन जी एक गिलास पानि पीव फेर खाट पर बैसि गेलाह । घर मे ओहि दिन भानस नहि बनल छल, किएक  तऽ बेटा आ पुतोहु कोनो शादी समारोह मे गेल छलाह । राति मे सुमनजीक लेल भिनसुरका वांचल दुई टा सोहारी भनसा घर मे राखल छल । शादी समारोह मे जायत खन हुनकर पुतोहु कहलखिन जे बाबुजी हम सव संगीक बेटीक विआह मे जा रहल छी । अहाँक लेल सोहारी राखि देलहुँ अछि, चाय बना कऽ ओहि संगे खा लेव । हम सव देर राति  लौटव ।मुदा जखन ओ भोजन करवाक लेल भनसा घर मे गेलाह तऽ देखैत छथिन जे सोहारी खराव भऽ गेल अछि ।

ई कोनो नव बात नहि छल । सरस्वती जी कें गुजरलाक बाद अक्सर एहिना होयत छल। रातिक खाना जे बचल खुचल रहैत छल ओ दिन मे आ दिनक खाना राति मे मिलैत छलनि । ई दिनचर्या भऽ गेल छल । सुमन जी सव बात मे हाँ कहि  अपन दिन गुजारि रहल छलाह ।ओ सोचैत छलाह जे घर मे बहस करला सँ कोनो फायदा नहि होयत । किछु बोलव तहन घर मे महाभारत भऽ जायत तें ओ चुपचाप रहैत छलाह । भूख सँ बिलबिलाइत ओ खाट पर पड़ि  रहलाह । थोड़ेक देर मे नीन आवि गेलनि । भिनसरे उठलाक बाद  देखलखिन जे पुतोहु भनसा घर मे चाय बना रहल छलीह । पुतोहु चाय-पानि देलखिन आ कहलखिन जे बाबुजी चाय पीव घरक सामान आनि  दीअऊ । नैहर सँ किछु लोकनि आवऽ वाला अछि । सुमन बाबू कहलखिन ,”कनिया घर मे बिस्कुट व नमकीन वगैरह होयत तऽ हमरा दऽ देतहुँ । राति हम अहाँक राखल सोहारी नहि खा सकलहुँ किएक तऽ सोहारी खराव भऽ गेल छल । ई सुनैत ओ आगि बबूला भऽ गेलीह आ सुमन जी पर टूटि पड़लीह जे अहाँ की कहऽ चाहैत छी जे हम अहाँ के बसिया रोटी देने छलहुँ । हे भगवान ! अहाँ हमरा पर इल्जाम लगा रहल छी । एहि उमिर मे सफेद झूठ वाजि रहल छी । पहिले बाजार सँ सब्जी सव लावि दिअऊ । भानस बनलाक बाद खाना मिलत । एहि पर सुमन जी कहलखिन ठीक अछि,हम बाजार सँ सामान लावि दैत छी । ई बात कहि ओ एकटा कटोरी मे बिस्कुट देलखिन । सुमनजी बिस्कुट खा के पानि पीव  चाय पीलाह । कप राखि पुतोहु सँ कहलखिन जे कनिया झोरा लावु हम बाजार सँ सामान लावि दैत छी । झोरा लऽ सुमनजी बाजार सँ सामान लऽ अनलाह । तहन हुनकर पुतोहु कहलखिन जे आव अहाँ अपन बाहर राखल जे कबाड़ सन सामान रखने छी तकरा अपना घर मे राखि लिअ आ ओहि ठाम आराम सँ रहव । हमरा नैहर सँ जे लोकनि आवि रहल अछि हुनकर नजरि एहि कबाड़ पर नहि पड़वाक चाही ।एक पल तऽ सुमनजी के भेलनि जे कही कनिया ई अहाँक  कबाड़ बुझना जायत अछि । ई  हमर जिनगी भरिक मिहनत नतीजा अछि । मुदा मन मसोरि  के  रहि  गेलाह।सुमनजी सोचि चुप रहि गेलाह कि बेटाक आबैत पुतोहु आसमान माथ पर उठा लेताह । बेटा मोहन सेहो बिना बुझने घरवालीक पक्ष लऽ लैत छथि । दूनु प्राणी सदिखन वृद्धाश्रम मे छोडवाक धमकी दैत रहैत छथि । मोहन अपना घरवालीक बात सुनैत छथिन आँखि से  तऽ किछु नहि देखैत छथिन । भरल मन सँ काँपैत हाथ सुमनजी अपन खाट उठा कऽ अपना कमरा मे लऽ गेलखिन ।खाट पर अपन बिछौना ठीक कऽ बैसि गेलाह । खाट पर बैसि अपन अतीतक पन्ना पलटऽ लगलाह । हुनका मन पड़ऽ लागल जे कतेक मिन्नत केलाक बाद भगवान एकटा बालक भेल छल ।सपना देखने छलहुँ जे बेटा पैघ होयत तहन बुढ़ापाक लाठी बनत आ सहारा मिलत । तखन ओ नहि जानैत छलाह जे आगु ई लाठी हमरे पर पड़त । ओ अपना बेटाक लालन पालन मे कोनो कसरि  बाकी नहि राखलाथि । शहरक नीक प्राइवेट स्कूल मे हुनका पढ़ाओल गेल। हुनकर हर जिद्द पूरा केने छलहुँ । मोहन जखन कॉलेज मे गेलाह तखन मोटरसाइकिलक माँग केने छलाह । पाईक अभाव रहितहुँ हुनका मोटरसाइकिल खरीद देने छलहुँ । हम सोचैत छलहुँ जे एकटा बेटा अछि, हिनकर सव शौक आ पसंद पूरा होवाक चाही। सरस्वतीजी टोका टोकी सेहो करैत रहैत छलखिन जे अहाँ मोहन के माथ पर चढ़ा लैत छी ।अहाँ के हुनका अपन परिस्थिति सँ अवगत कराव’क  चाही । मुदा सुमन जी ओहि बात के टालि दैत छलखिन । मोहन बाबू आव सोचैत छथिन जे ओ हमर पैघ भूल छल । मोहन के कॉलेजक पढ़ाई समाप्त भेला पर अपन कारोबारक एक-एक टा बात सिखेलखिन । कोना हिसाब-किताब राखल जाय ? कोना गहकी सँ बात कएल जाय ? एहि सवहक हुनर हुनका देलखिन । सुमन बाबू एक छोट-छीन दुकान सँ अपन कारोबार शुरू केने छलाह,अपना दम पर ओकर बाजारक पैघ शोरूम मे तब्दील कऽ देने छलाह । आलीशान मकान बनेने छलाह । मोहनक विआह हुनकर मनपसंद लड़की सँ करा देने  छलहुँ जे सुखी सम्पन्न आ पढ़ल-लिखल छलीह ।

सरस्वती जखन धरि जिंदा छलीह तखन धरि सव किछु नीक छल। ई घर स्वर्ग छल । सुमन बाबू  घरक मुखिया छलथि आ हुनकर एक-एक शब्द कानून छल। बेटा मोहन आ हुनकर कनिया मान-सम्मान दैत छलथि । सास पुतोहु मिल के घर सम्भालैत छलीह । बाहरक सव काम सुमन बाबू करैत छलाह । मुदा ईश्वर के ई मंजूर नहि छलनि। सरस्वती अचानक बीमार पड़ि गेलीह जाहिमे सुमन बाबू पाई पानि जकाँ बहा देने छलथि, मुदा ओ दुनिया छोड़ि एहि संसार सँ विदा भऽ गेलीह ।तकर बाद तऽ सुमन बाबुक दुनिया उजरि गेल । आव ओ  बेटा पुतोहुक  लेल बोझ बनि के रही गेल छलथि। मोहन कारोबार अपना कब्जा मे लऽ लेने छलाह। आव एकटा छोट कमरा हुनकर दुनिया छलनि । खून पसीना बहा कऽ एतेक पैघ मकान बनेने छलाह ,मुदा आव ओ कतहु नहि जा सकैत छथि । सरस्वतीजीक शोक मे सुमनजी बीमार पड़ि गेल छलाह, तखन दुकान संभालक जिम्मेवारी मोहन के देल गेल छल । सुमनजीक  ठीक भेला पर मोहन कहलनि जे बाबुजी अहाँ कमजोर भऽ गेलहुँ अछि, उमिर सेहो अधिक भऽ गेल अछि । अहाँ घर पर रहु हम दुकान सम्भालि रहल छी । सुमनजी सोचैत छलाह जे हम अखन नीक जकाँ दुकान सम्भालि सकैत छी, मोहन हमरा मना कऽ अपने दुकान पर जायत छथि । अखन जौं दुकान पर रहितहुँ तऽ अपना मन सँ जे खर्चा होयत से करतहुँ । आव एक दिश बेटा दुकान पर कब्जा कऽ लेलक तऽ दोसर दिश एहि ठाम कनिया ठीक सँ खाना दैत छथि। ई सोचैत सोचैत हुनका आँखि सँ ढ़व-ढ़व नोर गिरऽ लागल । थोड़े देरक बाद सुमनजी के पिआस लागलनि तऽ भनसा घर मे पानि पिवाक लेल गेलाह ।गिलास मे पानि लेलथि मुदा पानि भरल गिलास हुनका हाथ सँ छूटि  गेल । पानि  फर्श पर बिखरि गेल । गिलासक आवाज सुनि मोहन दूनु प्राणी दौड़ि भनसा घर मे आवि मोहनक कनिया  सुमनजी सँ कहलखिन जे अहाँक कतेक मना करैत छी जे अहाँ भनसा घर मे नहि आवू मुदा अहाँ तऽ कोनो बात मनवाक तैयार नहि रहैत छी । पूरा भनसा घर मे पानि फैल गेल अछि,अखन दाई सेहो आओत ई  पानि आव कोना साफ होयत । मोहन कहऽ लागलखिन बाबुजी आव अहाँ ठीक सँ नहि  देख पावैत छी । बिना मतलव भनसा घर मे आवि जायत छी । ई  सुनी सुमनजी टूटि गेलाह । नोर सँ भरल आँखि नजरि झुका कऽ अपना कमरा मे चलि गेलाह आ किवाड़ बंद कऽ लेलनि । खाट पर बैसि अपना भाग्य पर सोचऽ लगलाह । एक दिश खाना नहि मिलल दोसरा दिश पानि सेहो नहि पीव सकलहुँ ।पियास अलगलाक कारण फेर हिम्मत कऽ ओ किवाड़ खोलि बाहर आवि अपन बालक मोहन सँ कहलखिन “ बौआ मोहन ! किछु खाना बनल अछि तऽ हमरा दऽ दिअ  नहि तऽ एक गिलास पानि दिअ।” मोहन एकटा बिस्कुटक पैकेट आ एक गिलास पानि देलखिन । पानि पीव ओ खाट पर बैसि गेलाह ।

खाट पर बैसल सुमन बाबूक ध्यान सोझा मे टाँगल सरस्वतीजीक फोटो पर आ ओकर नीचा मे पेटी पर गेल । ओ समय कटवाक उद्देश्य सँ पेटी मे सँ एलबम निकालैथि । एलबम निकालि फोटो देखऽ लगलाह । फोटो देख पेटी मे एलबम राखलथि । पेटी मे नुआ सव समेट  रहल छलाह तऽ देखलखिन जे सरस्वतीजीक पर्स राखल अछि । पर्स खोललथि जे देखलखिन जे ओहि मे पाँच-पाँच सौ आ सौ-सौ टकाक किछु नोट छलनि।सुमन बाबू ओहि रुपया जेबी मे लऽ के घर सँ बाहर निकललाह । तखन मोहन बाबू दूनु प्राणी बैसल छलथि । दूनु मे सँ केओ नहि टोकलखिन जे अहाँ कतऽ जा रहल छी ? पहिल बेर मोहन बाबूक एहसास भेलनि जे आब हम आजाद छी ।ओ सोचैत छलाह जे आव घूरि के नहि जायव । सुमनजी के भूख लागल छलनि तें सबसँ पहिले एक ढ़ावा पर बैसि खाना खेलथि । तकर बाद ओ सोचलथि जे खाना खाय मे ई पाई सव खत्म भऽ जायत तें कोनो कारोबार कएल जाय । ओ बस पकड़ि शहरक थोक बाजार गेलाह । जाहि ठाम सँ चिप्स,नमकीन आ बिस्कुटक  पैकेट खरीदलथि । रेलवे स्टेशन पर एकटा चटाई खरीद कऽ बैसि गेलाह ।  स्टेशन पर धीरे-धीरे ओकर बिक्री होमय लागल । भरि दिन बेचला पर साँझ धरि एक सए टकाक मुनाफा भेलनि । हुनका मन मे शांति मिललैन आ सोचैत छलाह जे आव हमर दिन नीक सँ कटि जायत ।साँझ मे होटल मे खाना खा कऽ स्टेशनक  रैन बसेरा मे सुतवाक लेल चलि गेलाह । भिनसरे सुलभ शौचालय मे दैनिक दिनचर्या सँ निवृत्त भऽ सामान जे वांचल छल ओकर बेचि नाश्ताक  लेल चलि गेलाह । नाश्ता करलाक उपरांत फेर थोक बाजार सँ सामान खरीद आनलथि आ अपन निश्चित स्थान पर बैसि सामान बेचऽ लगलाह । आव सुमनजीक ई  दिनचर्या भऽ गेल । सव दिन नाश्ता, दुपहरियाक खाना, रातिक खाना खा कऽ सामान समेटि रैन बसेरा मे सुतवाक लेल चलि जायत छलाह।हुनक विनम्र स्वभाव आ ईमानदारी सँ लोकनि आकर्षित होयत छल । धीरे-धीरे बिक्री मे वृद्धि होमय लागल जाहि सँ आमदनी मे बढ़ोत्तरी भेला पर एकटा गुमटी खरीद कऽ गुमटी मे पानि आ फल सेहो राखऽ लागलथि । आब हुनकर दुकान नीक सँ चलऽ लागल ।दोसर दिश मोहन दूनु प्राणी बेखबर भऽ कखनहु हुनकर खोज बीन नहि केलखिन ।

सुमनजीक पोता रोहन विदेश मे पढ़ाई कऽ रहल छलाह । पढ़ाई पूरा कऽ ओहि ठाम नौकरी करैत छलाह । हुनका दादा-दादी सँ बड्ड लगाव छलनि । दादा-दादी सँ मिलवाक इच्छा होयत छलैन  मुदा छुट्टीक अभाव मे ओ गाम नहि आवैत छलाह । फोन पर माय-बाबुजी सँ दादा-दादीक हाल-चाल जानि लैत छलाह । दादीक  देहावसान पर ओ गाम आयल छलाह । तकर बाद ओ फेर अपना काम पर चलि गेल छलाह । नेनपन  मे दादा सदिखन हुनका कहैत छलखिन- “वौआ अहाँ पैघ आदमी बनू मुदा अपन माटि नहि भुलायव ।” रोहन के अपन दादाजीक  यादि आवैत छल । किछु महीना सँ रोहन माय सँ फोन कऽ दादाजीक हाल जानऽ चाहैत छलाह तऽ माय लाथ लगा दैत छलखिन । कखनहु कहैत छलखिन जे दादाजी सुतल छथि तऽ कखनहु कहैत छलखिन जे दादाजी कोनो संगीक घर गेल छथि ।रोहन दादाजीक बात सदिखन यादि राखैत छलाह जे गाम नहि छोड़वाक चाही । छुट्टी मिलला पर ओ गाम अवश्य आवैत छलाह । दादीक देहावसानक बाद रोहन अपन संगीक संग गाम आवैत छलाह । फ्लाइट सँ दिल्ली एलाह तकर बाद गामक लेल रेलगाड़ी पकड़लथि । स्टेशन सँ बाहर भाड़ाक गाड़ी करवाक लेल जायत छलाह कि हुनकर संगी कहलखिन जे रोहन ! देखू ओ गुमटी पर अहाँक दादाजी सनक केओ पानिक बोतल बेच रहल अछि ।पियास सेहो लागल अछि । चलू ओहि ठाम सँ पानिक बोतल लऽ लैत छी ।रोहन गुमटी पर एलाह तऽ हुनकर दिल धक सँ रहि  गेल।समयक पहिया मानू रुकि गेल । रोहनक  आँखि फटल के फटल रहि  गेल । दौड़ के हुनका लग गेलाह आ गोर लागि कहलनि- “ दादू ! हमरा नहि पहचानहुँ, हम अहाँक “कच्चू” ।” सुमनजी कहलनि - आऊ ! आऊ  ! हमर कच्चू ! कहु गाम कहिया एलहुँ । रोहन कहलखिन जे दादू अखन हम गाम पर कहाँ गेलहुँ अछि । हम तऽ अखन गाड़ी सँ उतरलहुँ अछि । तऽ हमर संगी सुभाष कहलक जे हमरा अहाँक दादू जकाँ लागैत अछि। तहन हम एम्हर एलहुँ अछि ।सुमनजी कहलनि - अहाँ कुशल मंगल सँ छी ने ? रोहन कहलनि - हाँ  दादू , हम तऽ ठीक सँ छी मुदा अहाँ एहि उमिर मे एहि ठाम गुमटी पर किए दुकान खोलने छी ? अहाँक तऽ घर पर रहवाक चाही । अहाँक ई सव करवाक किए जरूरत भेल ? माय-बाबुजी कतऽ छथि ? ओ अहाँ के नहि रोकलथि ?  अपना पोताक मुँह सँ प्यार आ अपनापन भरल शब्द सुनि सुमनजीक  सब्रक  बांध टूटि गेल । ओ काँपेत आवाज मेअपना पर भेल एक-एक अत्याचारक कहानी हुनका कहलखिन । इ सुनि रोहनक पाइरक नीचाक जमीन खिसकि  गेल । हुनकर माथ घूमऽ लागल । ओ सोचि रहल छलाह जे जाहि माय-बाबुजी  के हम भगवानक  दर्जा देने छी हुनकर ई  करतूत हमरा समझ मे नहि आवि रहल अछि। आव रोहनक आँखि मे नोर नहि अपितु अंगार धधकि रहल छल ।रोहन ठानि लेलनि जे दादाजीक संग ओ सव एहन सलूक केलनि अछि ताहि लेल हुनका सवके सवक जरुर सिखायव । सवसँ पहिले ओ होटल मे एक कमरा बुक केलनि आ दादाजी सँ कहलखिन - दादू,अहाँ एहि ठाम रहु । हम तुरतहि लौट के आवि रहल छी ।आव अहाँ के अपमान नहि सहऽ पड़त ।रोहन स्टेशन पर किरायाक गाड़ी ठीक कऽ घर एलाह ।घर पहुँचला पर माय कहलखिन - अहाँ अचानक एलहुँ , हमरा सवके खबरि करितहुँ तऽ अपन गाड़ी भेज ​​देतहुँ ।रोहन कहलनि - माय ! हम जौं पहिले बता देतहुँ तऽ ई सव आई  हम नहि देख पवितहुँ जे हम अखन देख रहल छी ।रोहनक  माय किछु नहि बुझलखिन ।ओ सुमनजी के जोर सँ कहलखिन - सुनै छी ! रोहन आयल अछि । सुमनजी खुशी सँ एलाह आ रोहन सँ कहालखिन - कुशल मंगल सँ छी ने ? रोहन कहलनि - हाँ  बाबुजी ! रोहन माय सँ पूछलखिन - माय ! दादू कहाँ छथिन हुनका नहि देख रहल छी ।ओ सुतल छथि की ? एहि पर हुनकर माय कहलनि - दादाजी शहर कोनो संगीक घर गेल छथि । घर पर सुतल-सुतल बोर भऽ रहल छलथि तऽ हमहि कहलहुँ जे बाबुजी कनि बाहर घूमि आवु तहन मन बहिल जाओत । राति मे फेर माय सँ पूछलखिन जे दादू नहि एलखिन तहन माय कहलखिन जे ओ संगीक घर पर रुकि गेल हेताह । भिनसरे रोहन उठि शहर गेलथि आ दादाजीक  संग नाश्ता कऽ कहलखिन - दादू! घर पर चलु । सुमन जी कहलखिन - अहाँ जाऊ  ! आव हम घर नहि जा चाहैत छी। एहि ठाम समय नीक सँ कटि जायत अछि । एहि रोहन कहलखिन - दादू ! अहाँ कतेक खून-पसीना बहा कऽ घर बनेने छी आ अहाँ घर छोड़ि  देव । हमरा अछैत अहाँ गुमटी मे रहव, ई  नहि भऽ सकैत अछि । चलु अहाँक  संग हम चलैत छी । रोहन दादू के लऽ के पहिले थाना गेलथि, ओहि ठाम अपना माय -बाबुजीक विरुद्ध एकटा शिकायती पत्र दऽ घर आवि गेलाह । घर पर सुमनजी के देखि मोहन दूनु प्राणी अकचका गेलथि आ रोहन सँ कहलखिन - दादाजी अहाँक  कोन ठाम मिललाह । रोहन गुस्सा सँ कहलखिन - माय-बाबुजी  तऽ भगवानक  रूप होयत अछि । मुदा अहाँ सव तऽ हैवानक रूप भऽ गेलहुँ अछि ।दादू के अहाँ सव एतेक कष्ट देलहुँ जे ओ गुमटी मे अपन समय काटि रहल छलाह । अहाँ सवहक जीवन पर लानत अछि । भगवान कखनहु अहाँ सव के माफ नहि कतराताह ।

थोड़ेक देर मे थाना सँ पुलिस आवि गेल। पुलिस देख मोहन दूनु प्राणी काँपऽ लगलाह । पुलिस हुनका सँ कहलखिन जे अहाँ सवहक विरूद्ध एक शिकायती पत्र मिलल अछि,जेकर अनुसार अहाँ सव अपना बाबुजी के प्रताड़ित कऽ रहल छी । अहाँ सवहक लेल गिरफ्तारी वारंट आयल अछि । ई  सुनि दूनु प्राणी अचंभित रहि  गेलाह । मोहन बाबू सुमनजीक  पाइर पर खसैत कहलखिन - बाबुजी, अहाँ अपन शिकायती पत्र वापस लऽ लिअ । अहाँ के कोनो तरहक दिक्कत नहि होयत जौं अहाँ अपन शिकायती पत्र वापस नहि लेव तहन हम कोनो गली में नहि रहव । सुमन बाबू बेटा-पुतोहुक आश्वासन पर अपन शिकायती पत्र वापस लैत पुलिस सँ कहलखिन जे ई  दूनु प्राणी सुधरि जेताह तहन शिकायतक  आवश्यकता अछि । एक मौका हिनका सवके देल जाऊ ।एहि पुलिस चेतावनी दैत कहलखिन - ठीक अछि, दोसर बेर जौं शिकायत मिलत तऽ ओ वापस नहि होयत । तकर बाद सुमनजी बेटा-पुतोहुक संग आराम सँ जीवन यापन करऽ लगलाह ।

         

अपन मंतव्य editorial.staff.videha@zohomail.in पर पठाउ।