
परमानन्द लाल कर्ण
एक नव सफर
घरक सव कोना मे आँखि दौड़ावैत प्रमिलाक आँखि नोर सँ सराबोर छल । आधा सँ बेसी जिनगी निकलि गेल छल । ओ अपन जीवनक कठिन फैसला लेवऽ सोचि रहल छलीह । हुनका दिल आ दिमाग मे जेना तूफ़ान मचि रहल छल । जखन विआह भेल छल तखन तऽ ओ सपनो मे नहि सोचने छलीह जे एहन फैसलाक नौबत आयत । प्रमिलाक आँखि मे पिछला बरखक यादि कोनो फिल्मक दृश्य जकाँ सबटा परिदृश्य दौड़ैत छल । हुनका यादि आयल ओ लम्हा जे लाल जोड़ा मे लिपटल केहन दृश्य छल । प्रमिला लाल जोड़ा में रानी लागैत छलीह हुनका गोर हाथ मे रचल मेहंदीक लाली कतेक नीक लागि रहल छल । नव साड़ी पहिरने ऐना मे अपनाक देखैत किस्मत पर नाज करैत छलीह । सासुर आयल दु दिन बीतल छल तखनहि भनसा घर मे बर्तन गिरबाक जोर सँ आवाज आयल - एना लागि रहल छल जे कोनो जानि बुझि के बरतन पटकि रहल हो । आवाज आयल जे चतुर्थी सँ पहिले भाभी कोना भनसा घर मे एतीह । चतुर्थीक बाद ओ बरतन छुथिन ता धरि तऽ हमरा सबके काम करऽ पड़त । चतुर्थीक बाद प्रमिलाक सास कहलखिन- कनिया ! आई सँ अहाँ घर सम्भालू । आब अहाँक जिम्मेवारी अछि जे घरक भनसा भात कोना होयत । हुनका चेहरा पर नहि तऽ कोनो प्यार छल आ नहि मुस्कान । प्रमिला हँसि के कहलखिन - हाँ माँ जी ! मोहनक संग जखन प्रमिलाक रिश्ता तय भेल छल तऽ हुनकर चेहरा सौम्य आ शांत छल । मोहनक चेहरा देखि प्रमिला मोहित भऽ गेल छलीह । हुनक माय बाबुजी बड्ड धुमधाम सँ हुनकर विआह केने छलखिन । ओ सोचने छलीह जे नव कनियाक खुशी मे सासुर मे नीक रश्म करथीन । शगुनक तौर पर कोनो मीठगर पकवान बनाओल जायत , जेना आस पड़ोस मे देखने छलहुँ । मुदा एहि ठाम तऽ सव किछु विपरीत छल । जाहि दिन सँ प्रमिला भनसा घर मे ठाढ़ भेलीह सासु माँ हुनका सव काम बता देलखिन । भिनसरक चाय सँ लऽ के राति धरिक काम आव प्रमिला पर आवि गेल । प्रमिला एतेक काम कहियो नहि करैत छलीह मुदा ओ हिम्मत नहि हारलीह । भिनसर मे चाय बना कऽ सासु माँ के देलखिन । सासु माँ चायक चुसकी लैत कहलखिन - कनिया ! नैहर मे एहिना चाय बनवैत छलहुँ की ? एहि मे चाय पत्ती आओर देवाक चाही । कनि आओर पानि खौलऽ देवाक चाही । चीनी सेहो ठीक नहि अछि । कोनो दाई एहि सँ नीक चाय बनावैत अछि। प्रमिला मुस्कुराकऽ कहलखिन - माँ जी ! फेर सँ चाय बना दी ? एहि पर सासु माँ कहलखिन नहि रहऽ दीअ ! हम एहन चाय नहि पियव । मुँहक स्वाद बदलि गेल । अहाँक माय चाय बनेनाई नहि सिखेलथि की ? ई कहि कप राखि देलखिन । सासुमाँक एहन व्यवहार सँ प्रमिलाक आत्मा छलनी कऽ देलक । हुनक सास सख्त मिजाज महिला छलीह । हुनका लेल घरक बहुक मतलव छल - घरक काम करऽवाली मशीन । जे बिना कोनो शिकायत भरि दिन कर करैत रहे । कोनो एक गलती पर सासु माँक ताना सुननाई एक दिनचर्या भऽ गेल छल । ओ कहैत छलीह जे हमर तऽ भाग फुटि गेल जे एहन पुतोहु हमरा कपार मे सटि गेल ।पढ़ल -लिखल भेलाक बादहु एहि लड़की के किछु नहि आवैत अछि । हमर बौआ तऽ एहन लड़की सँ विआह कऽ बड़का गलती केलनि । एहन कतेको व्यंग सव दिन प्रमिला के सुनऽ पड़ैत छल । ननद जे प्रमिला सँ कम उमर के छलीह । ओहो कोनो कसरि नहि छोडैत छलीह । ओ सव बात के तोड़ि मरोड़ी के माय के बतावैत छलीह । सव दिन कोनो ने कोनो तमाशा अवश्य होयत छल ।
एक दिन पड़ोसन घर पर एलीह आ बातचित करैत कहलखिन आब नीक भऽ गेल अछि। बौआक विआह कऽ अपन आधा जिम्मेवारी पूरा कऽ लेलहुँ । आब बुच्चीक विआह कहिया करव । आव तऽ पुतोहु घर आवि गेलीह ,घर ख़ाली नहि रहत । एहि पर प्रमिला कहलखिन - हाँ चाची ! देख़ु ने कोनो नीक रिश्ता मिल जायत तऽ कऽ देल जायत । कोनो नीक लड़का नजरि मे होयत तऽ बतायव । प्रमिलाक ई बात सुनि हुनकर सासुमाँ कहलखिन - कनिया ! अहाँ ओकात मे रहु , हमर बेटीक विआह कखन होयत आ कखन नहि ई हमर जिम्मेवारी अछि । हम अखन जिन्दा छी , अहाँ कोनो फैसला एहि सम्बन्ध मे कोना लेव । ई सुनि प्रमिलाक आँखि मे नोर ढ़व ढ़वा गेल आ ओ चुप भऽ गेलीह । एहिना कोनो बात आवैत छल हुनका पर सासुमाँ कटाछ करैत छलीह । सबसँ बेसी दुःख तखन होयत छलैन जखन मोहन सेहो प्रमिलाक साथ नहि दैत छलाह । विआहक शुरुआती दिन मे ओ अपना पत्नीक संग नीक वर्ताव करैत छलखिन,मुदा धीरे-धीरे ओ अपन माय बहिनक बात मे आवि गेलाह । आव तऽ ओ प्रमिला के आदमी बुझैते नहि छलाह । हुनकर हर बात आदेशक लहजा मे छल । हुनका आँखि मे कोनो प्रेम नहि अपितु अधिकार छल आ अधिकार एहन जाहि मे सम्मानक कोनो जगह नहि छल । विआहक किछु दिन बीतल छल एक राति प्रमिला खाना बना कऽ मोहन के देलखिन, खाना एक बेर मुँह मे लेलाक बाद प्लेट सरका देलखिन आ कहलनि - अहाँ एतेक दिन सँ खाना बनावैत छी, मुदा अहाँ के अखन धरि एतेक अन्दाज़ नहि भेल अछि जे तरकारी मे नून कतेक देल जाय । आई तऽ लागैत अछि जे अहाँ अनोने तरकारी बनेलहुँ अछि । एहि पर प्रमिला कहलखिन जे रुकु तरकारी मे नून डालि के गरम कऽ दैत छी । तहन ठीक भऽ जायत । एहि पर मोहन जोर सँ कहलनि जे आब हम नहि खायव । प्रमिला सोचने छलीह जे घरवाला साँझ मे एताह तऽ किछु बात करव, मुदा ओ कहाँ जानैत छलीह जे एना भऽ जायत । फेर अपना पतिदेव के मानवैत कहलखिन - ठीक अछि , आगु सँ हम एहि बात के ख्याल राखव , मुदा अखन हम खाना मे नून मिला दैत छी । खा लेतहुँ तहन ठीक रहत भरि दिनक भूखल अहाँ कोना रहव । घर मे केओ लोकनि नहि खेलैन अछि । एहि पर मोहन कहलखिन - अहाँ के तऽ सोचवाक चाही जे घरक लोकनि कोना खेथिन? एहि पर प्रमिला कहलनि - नून कम रहला सँ फेर सुधार भऽ सकैत अछि । अधिक रहितै तहन किछु दिक्कत छल । हम तरकारी एक बेर गरम कऽ लावि दैत छी । प्रमिला तरकारी मे नून दऽ के गरम कऽ देलखिन आ मोहन सँ कहनलखिन - सुनै छी ? हम तरकारी मे नून मिला देलहुँ अछि आ हम कनि खा के सेहो देख लेलहुँ अछि । आव ठीक भऽ गेल अछि । फेर सँ खाना लेने आवि ? एहि मोहन साफ इंकार कऽ देलखिन आ ओहिना सुति रहलाह । सास आ ननद के खाना खिला कऽ अपने ओहिना सुति रहलीह ।
धीरे- धीरे मोहनक व्यवहार मे परिवर्तन भऽ रहल छल । दिनानुदिन हुनकर रवैया प्रमिलाक प्रति कठोर भेल जा रहल छल । साँझ मे जखन ओ घर आवैत छलाह तऽ पहिले मायक कोठरी में जायत छलाह। ओहि ठाम दूनु माय-धी हुनकर कान फुकैत छलीह , जाहि सँ ओ प्रमिलाक प्रति मोहन के नीक भावना नहि रहैत छल । प्रमिला ई सव बात जानैत छलीह । एक दिनक बात अछि जे प्रमिला सोचलथि जे ओ मोहन सँ किछु गप्प करी, मुदा जखनहि ओ किछु कहऽ चाहलखिन तऽ उल्टे हुनका मोहन डाँटि देलखिन आ कहलनि - अहाँक कहवाक तात्पर्य अछि जे हमर माय आ बहिन गलत अछि । हमर कहव अछि जे अहाँ अपन गलती के सुधारु । हम अहाँक एकहु टा बात नहि सुनव । मोहन कड़क आवाज सुनि प्रमिला हैरान भऽ गेलीह आ बिछौना पर लेट गेलीह । राति भरि खूब कानलीह । आव तऽ प्रमिलाक लेल एक-एक दिन परीक्षा बनल जा रहल छल । धीरे-धीरे प्रमिला टूटि रहल छलीह । हँसैत खिलैत हुनक सपनाक दुनिया आव खामोश भऽ रहल छल । भिनसर सँ साँझ धरि घरक काम, सासु माँक फरमाइश सास ननदक चुगली आ घरवालाक उदासीनता ई सव प्रमिला के झकझोरि रहल छल । एक समयक बात अछि जे प्रमिलाक मन खराब भऽ गेल । हुनका बिछौना पर सँ उठवाक हिम्मत नहि छलनि । शरीर बोखार सँ तपि रहल छल । आँखि बोझिल छल । प्रमिला पलंग पर लेटल छलीह तखन सासु माँ ताना मारैत कहलखिन - महारानी जी ! कोन खुशी मे आई आराम फरमा रहल छी । एहि पर प्रमिला कहलखिन - माँ जी मन ठीक नहि लागैत अछि, बोखार सँ पुरा शरीर तोड़ि रहल अछि । हमरा उठवाक हिम्मत नहि अछि तैं हम लेटल छी । एहि पर सासु माँ कहलखिन - कनिया ! बोखार अछि तऽ ओ एक- दु दिन मे ठीक भऽ जायत । हम सव तऽ बोखारो मे घरक सव काम करैत छलहुँ । एहि पर प्रमिला किछु कहऽ चाहलखिन मुदा किछु नहि बाजि सकलीह । तखनहि मोहन घर एलाह मुदा बिना किछु पुछने ओहि ठाम ठाढ़ भऽ गेलाह आ मोबाईल देखऽ लगलाह ।प्रमिला हुनका सँ कहलखिन-सुनै छी ! हमर तबीयत ठीक नहि लागि रहल अछि । बोखार सँ देह टुटि रहल अछि । हमरा डाक्टर सँ देखा देतहुँ तहन ठीक भऽ जायत । किएक तऽ हम बोखारक दवाई लेलहुँ अछि, मुदा ठीक नहि भऽ रहल अछि । एहि पर मोहन कहलखिन - अखन तऽ ऑफिसक लेट भऽ जायत, ओना मौसमी बोखार अछि एक दुई दिन मे ठीक भऽ जायत । हमरा नाश्ता बना देतहुँ ,ऑफिस जयवा मे लेट भऽ रहल अछि । ई सुनि प्रमिलाक मन मे जे बचल- खुचल उम्मीद छल ओ खत्म भऽ गेल । केहुना बिछौना पर सँ उठि ओ भनसा घर गेलीह, मुदा माथ घूमि रहल छल । धीरे- धीरे मोहनक लेल नाश्ता बना कऽ फेर बिछौना पर लेट गेलीह आ आँखि सँ ढ़व -ढ़व नोर गिर रहल छल । ताहि दिन सँ कोनो बात मोहन के नहि कहैत छलीह । जेना तेना होयत छलैन ओ घरक काम करैत छलीह ।
एक दिनक बात अछि मोहन अपना माय आ बहिनक संग कोनो रिश्तेदारक कार्यक्रम मे गेल छलाह । प्रमिला घर मे असगरे छलीह । तखन ओ अपना माय के फोन केलखिन । फोन घंटी बाजल तऽ प्रमिलाक माय बड्ड खुश भेलीह । बहुत दिन सँ फोन नहि आयल छल । प्रमिलाक माय पूछलखिन - अहाँ सव कुशल मंगल सँ छी ने ? एहि पर प्रमिला कहलखिन - माय ! हम तऽ एहि ठाम बड्ड परेशान छी । केओ हमरा आदमी बुझैते नहि अछि । मानु एहि घर मे एकटा कामवाली दाई आवि गेल अछि । हमर स्थान तऽ अहु सँ नीचा भऽ गेल अछि । कखनो केओ डाँटि दैत छथि । हम एहि ठाम घुटि -घुटि मरि रहल छी ।एहि पर हुनकर माय कहलखिन - बुच्ची ! विआहक जिनगी आसान नहि होयत छैक । मुदा एक बात अछि जे बच्चा भऽ गेला पर जिनगी बदलि जायत । जखन अहाँ माय बनि जायव तहन अहाँक घरक लोकनिकक मन सेहो बदलि जायत आ सासुरक लोकनि सेहो कदर करत । अपन मायक बात पर विश्वास करैत प्रमिला सोचलथि जे भऽ सकैत अछि किछु दिन मे ठीक भऽ जाय । विआहक दुई बरखक बाद प्रमिला के पुत्र रत्नक प्राप्ति भेल । पुत्रक नाम गोपाल राखल गेल । आव प्रमिला बच्चा के देखभाल करैत घरक सव काम करैत छलीह । गोपालक जन्मक बादहु मोहनक स्वभाव मे कोनो परिवर्तन नहि भेल ।कोनो राति मे जखन गोपाल कानैत छल तऽ मोहन गुस्सा सँ कहैत छलखिन जे बच्चा के चुप किएक नहि करैत छी हमरा भिनसरे ऑफिस जयवाक अछि ।प्रमिला चुपचाप बच्चा के कोरा मे लऽ के सुतेवाक प्रयास करैत छलीह। कोनो -कोनो राति तऽ एहन भऽ जायत छल जे प्रमिला बच्चा के लऽ के जागले रहि जायत छलीह ।
एक समयक बात अछि जे गोपालक मन खराब भऽ गेल । प्रमिला रोहन सँ कहलखिन- सुनै छी ! बौआक तबीयत खराब भऽ गेल अछि, ओ खाना सेहो नहि खा रहल अछि, कनि डाक्टर सँ देखा देतहुँ । एहि पर मोहन कहलनि - आई हमरा ऑफिस में एकटा महत्वपूर्ण मीटिंग अछि तैं आई हम नहि जा सकैत छी । प्रमिला कहलखिन - हमरा संग मे पाई नहि अछि, किछु पाई दऽ दिअ ताकि हम डाक्टर सँ देखा सकी। एहि पर मोहन कहलनि - अहाँ माय सँ पाई माँगि लेव हम सव पाई माय के दऽ दैत छी । बगले मे नीक डाक्टर अछि जा के देखा लेव । प्रमिला अपना सासु माँ सँ कहलखिन - माँ जी ! बौआक मन खराब अछि । एहि पर हुनक सासु माँ कहलनि - बौआक की भेल अछि ?
प्रमिला कहलखिन - सर्दी भऽ गेल अछि आ देह सेहो तपि रहल अछि । काल्हि सँ किछु नहि खा पी रहल अछि । एना मे कमजोर भऽ जायत । आई-काल्हि सर्दी-बुखार बिना डाक्टर सँ देखेने नहि छूटैत अछि । एहि पर तपाक सँ ओ कहलनि - कनिया ! हमहुँ सव बच्चा पालने छी । घरेलू नुख्सा सँ हम सव सर्दी बुखार ठीक कऽ लैत छलहुँ । एहि मे पाई खर्च केनाई फालतु अछि । पाईक अभाव मे प्रमिला ओहि दिन डाक्टर सँ नहि देखा सकलीह । राति मे फेर मोहन सँ प्रमिला ई बात कहलखिन मुदा मोहन किछु नहि कहलखिन । दोसर दिन प्रमिला अपन हाथक अंगूठी बाजार मे बेच कऽ बच्चा के डाक्टर सँ देखेलखिन । ईलाजक बाद गोपालक मन ठीक भेल मुदा बड्ड दुब्बर भऽ गेल छल । प्रमिला सोचलथि जे एहि ठाम नहि तऽ हम ठीक सँ रहैत छी आ नहि बच्चा ठीक सँ रहि पावैत अछि । एक दिन अपना नैहर फोन कऽ अपना माय सँ कहलखिन - माय ! हम गाम आवऽ चाहैत छी से अहाँ कनि एहि ठाम बात करितहुँ । हमरा कहने तऽ ई सव नहि आवऽ देताह अहाँ कहितहुँ तऽ हम चलि अवितहुँ । एहि पर प्रमिलाक माय कहलखिन - हाँ बुच्ची ! नाति के नहि देखलहुँ अछि । हमरो मन होयत अछि नातिक देखवाक लेल। हम समधिन सँ बात करैत छी । समधिन बात करलाक बाद मोहन प्रमिला सँ कहलखिन - अहाँक माय नैहर बुलावैत छथि जायव की ? एहि पर प्रमिला कहलखिन - माय कहैत छलीह जे बौआक देखवाक इच्छा अछि । ताहि पर हम कहने छलहुँ जे एहि ठाम अहाँ सव सँ बात कऽ लीअ । भऽ सकैत अछि जे माँ जी के फोन केने हेथिन ।एहि पर मोहन कहलनि - हाँ ! माय कहैत छलखिन । ठीक अछि अहाँ असगरे चलि जाउ हमरा छुट्टी नहि अछि । प्रमिला बच्चा के लऽ के अकेले नैहर चलि एलीह । एहि ठाम एला पर सव कहानी प्रमिला अपना माय सँ कहलखिन । तकर बाद प्रमिला कहलनि - माय हम मरि जायव मुदा ओहि परिवार मे हम नहि जायव । घुटि -घुटि के मरनाई सँ बढ़िया एक बेर मरनाई नीक होयत अछि । हम अपन जीवन लीला समाप्त कऽ लने रहितहुँ मुदा अहाँ कहने छलहुँ जे बच्चा भेलाक बाद सवहक नजरिया बदलि जायत अछि तैं हम इंतजार करैत छलहुँ । गोपालक जन्मक बादहुँ हुनका सव पर कोनो असर नहि पड़ल । ई कहानी जखन हुनकर बाबुजी सुनलखिन तऽ प्रमिला के कहलनि - अहाँ एतेक परेशान छलहुँ तऽ हमरा किएक नहि कहलहुँ । जौं आव सासुर नहि जाय चाहैत छी तहन अहाँक तालाक लिअ पड़त । एहि पर प्रमिला कहलनि - हाँ बाबुजी ! हम सासुर नहि जायव । हम तालाक लेव आ हम अपन जिनगी अपने हिसाव सँ जीअव । अपना नैहर मे प्रमिला एक प्राइवेट स्कूल ज्वाइन कऽ लेलीह । हुनकर पढ़ाव’क तरीका देखि बच्चा सव बड्ड खुश रहैत छल । धीरे- धीरे स्कूल मे प्रमिलाक ख्याति फैल गेल । प्रमिला स्कूलक बाद प्राइवेट ट्यूशन सेहो करऽ लागलीह । ट्यूशन नीक चलऽ लागल जाहि मे हिनका नीक आमदनी होयत छल । गोपाल सेहो पैघ भऽ रहल छल । स्कूली शिक्षाक उपरांत गोपाल कालेज मे एडमिशन लेलथि । प्रमिलाक इच्छा छल जे साइंस विषय सँ कालेज मे नाम लिखावैथि, मुदा गोपाल मना कऽ देलथि । गोपाल माय सँ कहलनि - माय हम आगु कोनो आर्ट्स विषय राखव आ यूपीएससीक तैयारी करव । प्रमिला कहलनि ठीक अछि । कोनो विषय खराव नहि होयत अछि, अहाँ तन मन सँ पढ़ाई करु । अहाँ जे करऽ चाहैत छी ओ करु मुदा मन लगा कऽ करु । अहाँ के पढ़ाई मे जे खर्च लागत से हम देव तकर अहाँ चिंता नहि करु । गोपाल स्नातकक परीक्षा पास करलाक बाद यूपीएससीक तैयारी करऽ लगलाह । पहिल चांस मे हुनका सफलता नहि मिललैन तहन ओ निराश भऽ गेलाह । प्रमिला हुनका सँ कहलखिन - बौआ ! अहाँ उदास नहि होऊ । असफलताक मतलव ई नहि अछि जे अहाँ नहि कऽ सकैत छी। अहाँ फेर कोचिंग करु आ नव सिरा सँ तैयारी करु । सफल अवशय होयव । अहाँ हिम्मत नहि हारु । मायक विश्वास आ अपन दृढ़ प्रतिज्ञाक फलस्वरूप गोपाल दोसर चांस मे परीक्षा मे पहिल स्थान आयल । गोपालक नाम अखबार छपल जाहि मे मोट हेडिंग छल मायक विश्वास आ पुत्रक परिश्रमक फलस्वरूप बिना पिताक सहयोग सँ सफल भेल छात्र । पेपेर जखन मोहन देखलथि तऽ दंग रहि गेलथि । प्रमिला आ गोपाल दूनु माय पूत अपन खुशी जीवन व्यतीत करऽ लगलाह ।
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