प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका

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परमानन्द लाल कर्ण

तीर्थक्षेत्रक माहात्म्य- 9 (पद्म पुराण उत्तर खंड) (गतांक सँ आगु ……..)



महादेवजी आगु कहलनि - साभ्रमती नदीक तट पर खंगधार नाम सँ विख्यात परम पावन तीर्थ स्थल अछि, जे अखन गुप्त भs गेल अछि आ प्रसंगवश एहि ठाम कखनहु स्नान आ जलपान करला सँ लोकनि सव पाप सँ मुक्त भs रुद्रलोक मे प्रतिष्ठित होयत छथि । साभ्रमती नदी पाताल दिस जायत देखैत रुद्र अपना जटा मे धारण कs लेलनि आ खंगधार नाम सँ विख्यात भs ओहि ठाम निवास करs लगलाह । ओहि ठाम स्नान करला सँ पापी सेहो स्वर्गलोक जायत छथि । पार्वती ! माघ मास, वैशाख मास आ विशेषतः कातिक मासक पूर्णिमा मे जे केओ ओहि ठाम स्नान करैत छथि, ओ पाप मुक्त भs जायत छथि । वसिष्ठ, वामदेव, भारद्वाज आ गौतम आदि ऋषि ओहि ठाम स्नानक लेल आ भगवान शिवक दर्शनक लेल आवैत छलाह । जे केओ एहि स्थान पर आवि विशेषरूप सँ हमर पूजन करैत छथि तहन हुनक सव पाप तत्काल नष्ट भs जायत अछि । जे केओ एहि तीर्थ मे माटि सँ हमर मूर्ति बना कs पूजैत छथि, ओ हमर परमधाम मे निवास करैत छथि । हमर विग्रह कलियुग मे खंगधारेश्वर नाम सँ विख्यात होयत अछि । सत्ययुग मे ‘मंदिर’ कहावैत छी त्रेता में ‘गौरव’ । द्वापर मे हमर ‘विश्वविख्यात’ नाम होयत अछि आ कलियुग मे ‘खंगेश्वर’ व ‘खंगधारेश्वर’ । एहि तीर्थ स्थलक दक्षिणबारी कात हमर स्थान अछि- ई जानि जे विद्वान लोकनि हमर मूर्ति बना कs सव दिन पूजा करैत छथि, हुनका मनोवांछित फल मिलैत छैन । ओ धर्म, अर्थ, काम आ मोक्ष - चारु पुरुषार्थ पावि लैत छथि ।

खंगधार तीर्थ सँ दक्षिण दिस परम पावन दुग्धेश्वर तीर्थ स्थल वताओल गेल अछि, जे सव पापक नाशक अछि । एहि तीर्थ में स्नान कs दुग्धेश्वर शिवक दर्शन करला सँ लोकनि पाप जनित दुःख सँ तुरतहि छूटकारा पावि लैत छथि । साभ्रमतीक तट पर जाहि ठाम परम पावन चंद्रभागा नदी मिललथि अछि, महर्षि दधीचि ओहि ठाम घोर तपस्या केने छलथि । ओहि ठाम कएल गेल स्नान, दान,पूजा आ तप आदि सव शुभ काम दुग्धतीर्थक प्रभाव सँ अक्षय भs जायत अछि ।

दुग्धेश्वर तीर्थ सँ पूव दिस एक टा परम पावन तीर्थ अछि, जाहि ठाम साभ्रमती मे चंद्रभागा नदी मिलैत अछि । ओहि ठाम पुण्यदाता चंद्रेश्वर नाम सँ महादेव सव दिन विराजमान रहैत छथि । जे सव लोकनिकक सुखदायी, परम महान आ सर्वव्यापी छथि । एहि तीर्थ स्थल पर चंद्रमा कतेको बरख तप केने छलाह आ वएह चंद्रेश्वर नाम सँ महादेवक स्थापना केने छलाह । ओहि ठाम स्नान, ध्यान आ शिवक पूजा करला सँ लोकनि धर्म आ अर्थ पावैत छथि । जे केओ ओहि ठाम विशेषरूप सँ वृषोत्सर्ग आदि काम करैत छथि, ओ पहिले स्वर्ग भोगि शिव धाम जायत छथि । जे केओ दोसर दिस जा के चन्देश्वर नाम सँ शिवक अर्चना करैत छथि आ रुद्र मंत्रक जाप करैत छथि, हुनका शिवरूप समझवाक चाही । जे केओ एहि ठाम सव दिन स्नान करैत छथि, हुनका निःसंदेह विष्णु स्वरूप समझवाक चाही । जे तिलपिण्ड सँ एहि ठाम श्राद्ध करैत छथि, ओ सहो एहि प्रभाव सँ विष्णुधाम जायत छथि । एहि ठाम विधि विधान सँ स्नान आ दान करला सँ ब्रह्महत्या आदि पाप सँ सेहो छुटकारा पावि लैत छथि । जे केओ एहि तट पर विशेषरूप सँ वटक गाछ लगावैत छथि, ओ देहान्तोपरांत शिव पद पावैत छथि ।

दुग्धेश्वर तीर्थ लग एक टा अति पावन आ रमणीय तीर्थ स्थल अछि, जे एहि पृथ्वी पर पिप्पलाद नाम सँ प्रसिद्ध अछि । देवेश्वरी ! ओहि ठाम स्नान-ध्यान आ खान- पान करला सँ ब्रह्महत्याक पाप दूर भs जायत अछि । साभ्रमतीक तट पर पिप्पलाद तीर्थ गुप्त अछि । ओहि ठाम स्नान करला सँ लोकनि मोक्षक भागी होयत छथि । ओहि ठाम विधि विधान सँ पीपरक गाछ लगावsक चाही । एना करला सँ लोकनि कर्म बंधन सँ मुक्त भs जायत छथि । पिप्पलाद तीर्थ सँ आगु साभ्रमतीक तट पर निम्बार्क नाम सँ नीक तीर्थ स्थल अछि, जे व्याधि आ दुर्गंधक नाश करैत अछि । पूर्वकाल मे कोलाहल दैत्यक संग युद्ध मे दानव सँ परास्त भs देवता लोकिन सूक्ष्म शरीर धारण कs गाछ मे समा गेल छलाह । ओहि ठाम गेला पर विशेष रूप सँ भगवान सुरजक पूजन करवाक चाही । सुरजक पूजन सँ मनोवांछित फल मिलैत अछि । जे केओ एहि तीर्थ स्थल पर सुरजक बारह टा नामक पाठ करैत छथि, ओ जीवन भरि पुण्यात्मा बनल रहैत छथि । जे केओ बारह नामक ( आदित्य,भास्कर, भानु, रवि,विश्वप्रकाशक, तीक्ष्णांशु, मार्तण्ड, सूर्य,प्रभाकर, विभावसु, सहस्राक्ष आ पुषा) पाठ करैत छथि, ओ धन,पुत्र आ पौत्र पावैत छथि । जे केओ एहि मे सँ एक- एक टाक नामक उच्चारण कs सूर्यदेवक पूजन करैत छथि, बाभन सात जन्म धरि धनाढ्य आ वेदक पारगामी होयत छथि । क्षत्रिय राज्य, वैश्य धन आ शुद्र भक्ति पावैत छथि ।

निम्बार्क तीर्थ स्थलक वाद तीर्थराज नाम सँ एक टा उत्तम तीर्थ स्थल अछि, जाहि ठाम सात टा नदी बहैत अछि । दोसर तीर्थक अपेक्षा एहि ठाम स्नान करला सँ सऔ गुणा पुण्य मिलैत अछि । एहि ठाम साक्षात् भगवान वामन विराजमान छथि । जे केओ एहि ठाम माघ मास मे तिलकी धेनुक दान करैत छथि, ओ सव पाप सँ मुक्त भs अपन सोऔ पीढ़ी केर उद्धार करैत छथि ।जौ एहि ठाम शुद्ध चित्त सँ तिलमिश्रित जल पितर के अर्पित कएल जाय, तहन कोटि बरख धरि श्राद्ध कर्म सम्पन्न भs जायत अछि । जे केओ एहि तीर्थ स्थल पर ब्राह्मण के गुड़ आ खीरक भोजन करावैत छथि, एक बाभन भोजन करेला पर हुनका सहस्र बाभन भोजनक फल मिलैत अछि ।

तदनन्तर , साभ्रमतीक तट पर गुप्त रूप सँ स्थित सोमतीर्थक यात्रा करवाक चाही, जाहि ठाम कालग्निस्वरूप भगवान शिव पाताल सँ प्रकट भेल छलाह । सोमतीर्थ मे स्नान कs सोमेश्वर शिवक दर्शन करला सँ निःसंदेह सोमपानक फल मिलैत अछि ।
जे केओ सोम दिन भगवान सोमेश्वरक मंदिर में दर्शनक लेल जायत छथि, ओ सोमलिंगक कृपा सँ मनोवांछित फल पावैत छथि । जे उज्जर फूल, कनेरक फूल आ पारिजातक प्रसून सँ पिनाकधारी श्रीमहादेवक पूजा करैत छथि, ओ परम उत्तम शिवधाम पावैत छथि ।

ओहि ठाम सँ कापोतिक तीर्थक यात्रा करवाक चाही, जाहि ठाम साभ्रमती पश्चिम दिस बहैत छथिन । जे केओ वैशाखक पूर्णिमा मे एहि तीर्थ स्थान पर स्नान कs पियर सरसों सँ परम उत्तम प्राचिनेश्वर नाम सँ शिवक पूजा करैत छथि, ओ अपनेक तs तरि जायते छथि संगहि संग पितर आ पितामह के सेहो उद्धार कs दैत छथि । ई वएह स्थान अछि, जाहि ठाम कबूतर अपन अतिथि केर प्रसन्नताक लेल अपन शरीर दs देने छलथि आ विमान पर बैसि समस्त देवताक मुख सँ अपन प्रशंसा सुनैत स्वर्गलोक चलि गेल छलथि।तखन सँ ओ तीर्थ कपोत तीर्थ सँ विख्यात भेल। ओहि ठाम सँ स्नान- ध्यान आ खान-पान करला सँ लोकनि ब्रह्महत्याक पाप सँ मुक्त भs जायत छथि ।

ओहि ठाम सँ आगु काश्यप ह्रद लग गोतीर्थ अछि, जे सव तीर्थ मे श्रेष्ठ आ महापातकक नाशक अछि । गोतीर्थ मे स्नान करला सँ ब्रह्महत्या एहन पाप सेहो कटि जायत अछि , ताहि मे कोनो संदेह नहि । जे केओ ओहि ठाम स्नान कs गाय के एक दिनक भोजन करावैत छथि, गो माताक प्रसाद सँ ओ मातृ ऋण सँ मुक्त भs जायत छथि । जे केओ गोतीर्थ मे स्नान कs श्रेष्ठ बाभन के दुधारू गायक दान करैत छथि, ओ ब्रह्मपद पावैत छथि ।

एहि ठाम एक दोसर महान तीर्थ स्थल सेहो अछि,जे काश्यप कुण्डक नाम सँ विख्यात अछि । ओहि ठाम कुशेश्वर नाम सँ महादेव विराजमान छथि । ओहि ठाम कश्यप जी सँ वनाओल गेल नीक कुण्ड अछि । एहि मे स्नान करला सँ लोकनि नरक मे नहि जायत छथि । एहि तट पर सव दिन अग्निहोत्र करs वाला आ वेदक स्वाध्याय मे लागल कतेको शास्त्रक ज्ञाता निवास करैत छथि । जे काशीक माहात्म्य अछि, वएह माहात्म्य ऋषि निर्मित एहि नगरीक अछि कलियुग में ई तीर्थ स्थल महापातकक नाश करs वाला अछि । ओहि ठाम सँ भूतलाय तीर्थ स्थल दिस गमन करवाक चाही, जे पापहारी उत्तम तीर्थ स्थल अछि । ओहि ठाम भूतक
निवासभूत वटक गाछ अछि जाहि ठाम पूव दिस चंदना नदी बहैत अछि । भुतालय मे स्नान कs जे केओ वटक गाछ केर दर्शन करैत छथि, भगवान भूतेश्वरक कृपा सँ हुनका कोनो भय नहि होयत छैन । ओहि सँ आगु घटेश्वर नाम सँ तीर्थ स्थल अछि जाहि ठाम स्नान आ दर्शन करला सँ लोकनि निश्चय मोक्षक भागी होयत छथि । ओहि ठाम जे केओ विशेष रूप सँ पाकरिक पूजा करैत छथि, ओ एहि पृथ्वी पर मनोवांछित फल पावैत छथि ।

तत्पश्चात वैद्यनाथ नाम सँ तीर्थक यात्रा करी । एहि ठाम स्नान कs विधि-विधान सँ शिवजीक पूजा करी । एहि ठाम पितरक तर्पण करला सँ समस्त यज्ञक फल मिलैत अछि । एहि ठाम देवता सँ प्रकट भेल विजय तीर्थ अछि, जेकरा दर्शन सँ लोकनि मनोवांछित फल पावैत छथि ।वैद्यनाथ तीर्थ सँ आगु उत्तम देवतीर्थ अछि, जे समस्त सिद्धि प्रदाता अछि । एहि ठाम धर्मराज युधिष्ठिर राक्षसराज विभीषण सँ कर लs के राजसूय यज्ञ केने छलाह । नकुल दक्षिण मे विजयी भेलाक उपरांत साभ्रमती नदीक तट पर भक्ति भाव सँ पाण्डुरार्य्या नाम सँ विख्यात देवीक स्थापना केने छलाह, जे भोग आ मोक्ष प्रदायनी अछि । साभ्रमतीक जल में स्नान कs पाण्डुरार्य्या केर नमन करs वाला लोकनि अणिमा आदि आठू सिद्धि आ मेधाशक्ति पावैत छथि । जे केओ शुद्ध भाव सँ पाण्डुरार्य्याक नमन करैत छथि , मानु हुनक एक बरखक पूजा सम्पन्न भs गेल अछि । जे केओ एहि ठाम मरैत छथि, ओ कैलाश शिखर पर पहुँच भगवान चंद्रेश्वरक गण होयत छथि ।

एहि तीर्थ स्थल सँ आगु चण्डेश नाम सँ उत्तम तीर्थ स्थल अछि, जाहि ठाम ऐश्वर्य प्रदायी भगवान चण्डेश्वर सव दिन निवास करैत छथि । हिनक दर्शन सँ लोकनि सव पाप सँ मुक्त भs जायत छथि । सव देवगण मिल एक नगरक निर्माण केने छलाह, जे भगवान चण्डेश्वर नाम सँ विख्यात अछि । ओहि ठाम सँ आगु गणपति तीर्थ अछि , ओहि ठाम स्नान करला सँ लोकनि निःसंदेह मुक्त भs जायत छथि । एहि प्रकार साभ्रमतीक पावन तट पर लोक कल्याणक कामना सँ पृथ्वीक सव तीर्थ केर परित्याग कs जे केओ भगवान रुद्र मे भक्ति राखैत जितेंद्रिय भाव सँ श्राद्ध करैत छथि ,ओ शुद्ध चित्त भs सव यज्ञक फल पावैत छथि।


 

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