राज किशोर मिश्र
सुन्दरता
सुन्दरता अछि आमक मज्जर मे,
बि अहुती अंगना क धमगज्जर मे।
भा गवत कथा क भा व मे,
शि ष्ट कन्या क स्वभा व मे।
सूर्य-कि रि नक स्वर्णा भ मे,
सन्मा र्ग सँ अरजल ला भ मे ।
प्रेम सँ उचरल बो ल मे,
संघर्षक गर्दम घो ल मे।
रञ्जक मि झा इत आगि मे,
सज्जन लो कक ला गि मे।
सुहबा मा ङक सि नुर मे,
शि शि र का लक घूर मे।मे
उत्था न के शंखना द मे,
शां ति क को नो संवा द मे।
वसुन्धरा क हरि अर पटो र मे,
घमैत अन्हा र अहलभो र मे।
ऐँठऐँलक टुटैत घमंड मे,
अपरा धी क कठो र दंड मे।
प्रलय-जल पर उगि रहल
सृष्टि -ना भि -कमल मे,
जन-कल्या णक यो जना
बनि रहल रा ज-महल मे।
वि पत्ति का लक प्रस्था न मे,
यो ग्य लो कनि क सम्मा न मे।
नेना के मुहक नि श्छलता मे,
को सि स आ' तकर सफलता मे।
दी नक अङना चुल्हा पर
बरकैत भा तक अदहन मे,
कुजैत चि ड़ै सभ गा छ पर,
वि चरैत वन्य पशु बन मे।
नेढ़न-बा ढ़न केँ दुला र मे,
वंचि तक कएल उपका र मे।
पा प-प्रा यश्चि तक नो र मे,
शुभ-उत्सवक सङो र मे।
स्वा र्थ रहि त अनुरा ग मे,
वि दुर जी घरक सा ग मे।
मदमत्त भेल मधुमा स मे,
अन्या यक सत्या ना श मे,
इजो त मे ,सृष्टि -सि रजन मे ,
अपसंस्कृति क वि सर्जन मे।
सत्य मे ,जय मे ,वि जय मे,
क्षि ति ज पर अरुण-उदय मे।
धा तुक सि रजल सौं दर्य मे,
नहि बसल अछि असल सिं गा र,
दुखि त मो न मे तन पर सा जल,
ओ उनटे लगैत अछि भा र।
आभूषण नहि ,नहि सुंदर पटो र,
नहि देहक सुंदरता चा म गो र।
सुंदरता सुचा लि ,चरि त्र मे,
पि री ति क रुचि र चि त्र मे।
सुंदरता नहि अछि सो न मे,
सुन्दरता सुंदर मो न मे ।
अपन
मंतव्य
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