लालदेव कामत
एवमस्तके
निहितार्थ/
अहर्निश मैथिली साहित्य सेवक डॉ०तारानंद वियोगी
१
एवमस्तके निहितार्थ
साहित्यकार श्री रामेश्वर प्रसाद मंडल जीक ९ गोट कथाके संग्रह 'एवमस्त'
मैथिली भाषा मेँ पोथी आयल अछि। एहि १२१ पृष्ठक पोथी'क मूल्य ३९९ टाका
निर्धारित छैक ,जाहिक आकर्षक छपाय निरमलीक पल्लवी प्रकाशन सँ भेलैक हेन।
कथाकार रामेश्वर बाबू'क सद्यप्रकाशित पोथीमे वरेण्य साहित्यकार श्री नन्द
विलास राय जीके आमुख पाठककेँ कथा प्रति अभिरुचि जगबैत छन्हि। श्रीमान
मंडलजी जिला प्रगतिशील लेखक संघ सँ जुटल छथि आ स्थानीय प्रगतिशील बौध्दिक
समाज'क प्रमुख संचालक सेहो छथि। हिनक बौकी उपन्यास,बगवार - पद्य उपन्यास आ
चिख' नाटक' खूब चर्चा म आयल रहय। साहित्य अकादमी द्वारा पुरस्कृत "पंगू"
केर मैथिली संग हिंदी अनुवाद आ जगदीश प्रसाद मंडल - एक (बायोग्राफी) जीवनी
केँ मैथिली सँ हिन्दी भाषान्तर कार्य बहुत प्रशंसनीय रहल अछि। हिंदी आ
मैथिलीमे अनेको कथाक रचना पूर्वमे कयने छैथ। एवमस्त पोथी अभिरुचि पूर्वक
पढलहुँ,से बहुत नीक लागल हेन। ताहि संदर्भमे अपन पाठकीय प्रतिक्रिया अहाँ
सभक बीच प्रस्तुत कऽ रहल छी।
पहिल पाठके शिर्षक थीक - पति परमेश्वर। ऐ कथाके नायक सुधीरक'क गामेक नाम
बढ़ उर्जावान राखल गेल य- संस्कार पुर। ठीक ताहिक विपरीत नायिका शकलीके
गामक नाम छियै - मंदपुर। शिक्षित वर केँ एक अनपढ़ कन्या सँ वियाहक प्रतिफल
देखौनाई लेखकक अभिष्ट रहल छन्हि। देहाती क्षेत्रमे दू दशक पूर्वधरि बालिका
शिक्षाक प्रचार - प्रसार कमे रहैक आ ताहि सँ पहिले तँ मात्रे धनिक वर्गमे
महिला साक्षरता भेल रहय। आजुक समाज एहि। पुरनका दर्रा पर आधारित कथा पढयमे
विशेष रूचि नहिं करैत अछि। समय आब तीव्र गति सँ वैचारिक प्रगति केलक
अछि,तेँ पाठककेँ लेल नव विषय श्री मण्डल जीकेँ लिखबाक चाहैत रहनि। ओना
कथामे कतेको ठाम माधुर्य गीतक प्रविष्टि करने छथि। टीशन पर दुल्हिन सँ
नवोदित दुल्हाक' तिरष्कार बावत मोसाफीर खानाके स्त्रीगण कहैत छथि नवकनियाँ
पूरी- जिलेबी कियाक फेकलौं! पति तँ परमेश्वर होईछ,हुनक बात सोलहो आना
मानूं।
पाठ-२ शिर्षक - हमरो बहिन अछि कथा माध्यम सँ ग्रामीण क्षेत्रक आचार विचार
पर एक छोट विद्यार्थी केँ सौन मासके राखी पाबैन पर एक अन्वेषणकर्ता रूपेँ
स्थापित कय समाजमे अनोखा संदेश पसारबाक चेष्टा कयलाह अछि। मुसहरु नामके एक
दम्पतिके एकलौता पुत्र प्रेमनाथ रहैछ,तकरा ओ मिडिल स्कूलमे पढबैमे लागल
देखाईछ। नामक अनूकूल ओहि छौरामे प्रयाप्त प्रेमक भाव रहैछ। ओकर सहपाठी
लोकनि राखी बावत खुब चिरौरी करैत रहला सँ ओ अपना माय- बाबू सँ एकटा बहिनक
अपेक्षा करैत छैक। माय पारोकेँ धीयापुता आब अपना नहिं होई छै,से बूटाक
प्रस्ताव पर एक बेटी गोदी लेबाक लेल छान मारैत छै। अथक परियास सँ एक दलित
परिवारक ५ बेटीक गरीब माय तेतरी अपन छोटकी बेटी सिनेह पूर्वक सदा पालन लेल
दैत उदारता देखेलनि अछि। आगू राखी पाबनिक दिन ओ बचीया ५ वर्खक बुधनी उर्फ
विद्या कुमारी जे स्कूलक छात्रा बनलीह से धर्मक भायके गटा पर निर्मली सँ
आनल राखी विधिवत बान्हि पुलकित होईत रहैछ। संगी साथी धरि प्रेमनाथके राखी
देखि लजाईत रहल।
तेसर पाठक शिर्षक ' अनमोल सहानुभूति ' पर कहब जे सहानुभूति शव्द अपने आपमे
पूर्ण छैक तँ अधिक शव्दक प्रयोग फ़ाज़ील भेल छै। जेना तरूण युवा लिखवा पर
होईछ। कियाक तँ युवा शव्द अपने आपमे तरुणाई समेटने छै। ऐ कथामे मण्डल जी
गरीबी सँ त्रस्त परिवार अपना बेटी रूणाकेँ बीए० धरि शिक्षित करैत पिता
कोरोना बेमारी सँ मरिखपि जाइछै। माय सेहो कुटौन - पिसाउन करैत रोगग्रस्त भ'
जाइछै। आब रूणा बेराम पड़ल मायके उपचार आ भरण- पोषण लेल एक हवेलीके
मोईलकानि सँ घरेलू कामकाज बाबत जुड़ैत छै। मुदा मालिक ओकर मायके ईलाज लेल
अगाऊ ५ हजार टाका किन्नहुँ नै दैत कठोर बनल देखाईछ। कननमुंह रूणाकेँ
मालकिनक सहानुभूति शव्द सुनि कोढ़ फटैत छै,कनिते बहराईत छै। वाटमे एक सज्जन
व्यक्ति कानबाक कारण पुछि - बुझि सान्तवना दैत छै। ओ टाका सेहो दैत छथिन आ
बेकारिक स्थितिमे अपना ओहिठाम काज पर राखि बिजनेस पार्टनर सेहो बना लैत
छथि। तेजस्वीता रूणाक परिश्रम आ ईमानदारी लेल ' फिल्ड अफसर' पुरस्कार दैत
आब अपन फैक्टरी'क मैनेजर पद पर पदोन्नति धरि करैत छैक। एकटा सुपरवाइजर'क
भर्ती लेल रिक्तिक विरूद्ध इन्टरव्यू देमय जे व्यक्ति पुरान मोइल वस्त्र
पहिरने आयल छै से वेटिंग रूममे रूणा केँ चिन्हैत अनर्गल प्रलाप करैछ।
कथाकार एतय हिन्दीमे वार्तालाप देखाबैत रोचकता आनबाक भाव प्रदर्शित कयलाह
अछि। कालवेल भेलापर ओयह व्यक्ति केर पहिल साक्षात्कार रूणा लैत ओकरा अपन
अस्तित्व रक्षार्थ कतिपय गप्पेमे झारैत छथिन। तकरा नोकड़ीपर धरि राखि एक
व्यक्ति केँ आत्महत्या करय सँ बचाबैत एक नव ट्रेण्डके कथा समक्ष आयल छै।
कलयुगी सुपरभाईजरके पत्नी धरि माली हलात देखि पहिलहि परा गेल छलैक। चारिम
पाठ कथा- देखते रहिए गेल म मण्डल जी धानुक जातिक समाजशास्त्रीय अध्ययन
प्रस्तुत कयलाह अछि। नवपुर गामक तिनू टोलमे सामाजिक संचालन लेल साबिके
जमाना सँ स्थापित मान्यतानुसारे तीनू टोल केर पृथक- पृथक मरड़ कायम छलैक।
दक्षिण टोलके मरड़ किशन जी के करतुत विरुद्ध उत्तर टोलके मरड़ आ मध्य टोलके
भलचर मड़रके आचरण समाजमे विपरीत छै। बिचला टोलके मरड़क खेत सँ दलित समाजके
एक सीयान छौरी उखियार खाय ले एक छरिया शीलतोरू गमि तोरि भुख मिटबैत रहय, से
ओकरा एसगर देखि पोनै पर धांय सटका खींचैत छै। बिचला टोलके मरड़'के हरबाहा
भुल्ला खबाश पर सब तरहेँ शोषण- दोहण करैक नियत ओकर उजागर भेलैक हेन।
ताहिठाम ओकरा बेरपरक मदैतगार साबित होइत किशन मरड़ ठाढ भऽ बेटीके वियाह'क
सब तत्कालीन संकट दूर करैत समर्थ भेलैक। जहनकि भुल्ला'क बेटी फूल'क वियाह
लेल गच्छल सहायता ओकर मालिक समय पर नै केलकै। आ ओकरा बेटी उपर कुत्सित भाव
सेहो राखै। उत्तर टोलक मरोड़ सँ मिलीभगत कय वरके बाप छठूबाबू केँ धरि
जबुरिया सिखा- बुध्दि करैत छै,जे एक भरि सोना ,लालइमली साल आ १० हजार टाका
नगद बिनु लेने सिनुरदान नै हुअ दियौक। दुल्हाक पिता सँ अराकेँ तीलक चुकबैत
छै। उ दूनू मरड़ जतय लोकक बकरी-खस्सी चोरा लैक,माइरपिट करय आ आनों गाम
हंसेरीमे लुटय जाइक, गरीब लोककेँ चन् तरहेँ सताबैक ततय किशन मरड़ गामक मान
प्रतिष्ठा पर बट्टा नै लाग' दैथ। परसामा गामके हरिदेव किशन मरड़के मित्र
धरि समय पर मदैतमे आगू आयल रहथि। देखते रहि गेल से दूनू मड़रके चारू नेत्र
पालकी (महफ्फा)। बेटी विदाई काल जे लाउडस्पीकर सँ गीत ..…. "धीरे-धीरे चलू
रे कहारा - सूरुज डूबे रहे नदिया।" ई पाँति एहि पोथीक आनो पाठमे श्री
मंडलजी दोहरौने छथि। सन् १९६५ सँ पूर्व खवाश कहाबैत लोकक धियापुताके ई
सरनेम (टाईटिल) शपथपत्र अनुसारे मिथिला सँ हंटि गेलासन्ता ई प्रयोग इतिहास
बोध करौने धरि छैक।
पाँचम कथा - भाग्य विधाता छी,एहिमे कथाकार मंडल जी ग्राम्य अंचलके धनीक
वर्गक हिकारत भावके प्रदर्शित कयलाह अछि। मुदा सामंत शव्द आधुनिक समाजमे
नहिं चलैत छैक। भवनाथजी सन तीन व्यक्ति'क परिवारक प्रति मदनपुरक समंगगर
परिवार सब हीन-भावना रखैत छैक। ईमानदार रहैत ओकरा बेइमान कहल जायक, काबिल
-बुधियार रहलोपरान्त बुड़ि आ ढहलेल कहि तिरष्कृत कयल जाए। भवनाथजी'क बेटाके
तुरिया वयक्रमके एक सामन्त हुनका मरूआ खेतमे अजरा जवर्दस्ती महीस चराबैत
देखाईत छैक। मनो कयलापर ओ हुनका माथेपर एक पेना मारैत बजैछ- तों हमरा
महिसबार कहबेँ! भवनाथजीक पत्नी समक्ष अबैत छथिन ; हुनको दू- तीन पेना
सटाकऽऽऽ...... तराक ऽऽऽ खींचैत छैक। दूनू प्राणीके पटाकऽऽऽ बूहोस मरूआ ढेर
जकां पड़ल देखि गस्ती बाला पुलिस जीप गाड़ीमे उठा अस्पताल ल' जाइछ। इलाजक
वाद मीसपिटरके व्यानमे बतेलखिन तँ ओ सब पकड़ाकेँ हाजत जाइछ। पैरवी संग
छुटैत फेरो थकुचाएल साँपसन कनाइर ओकरा पर राखय साम्यवादी सोचके लोकसभा।
भवनाथजीक बी,एससी पास बेटा मोहन 'मधु' गामक राजनीति सँ अलग रहि बिहार लोक
सेवा आयोग'क पीटी. कयने रहैक मुदा मेन्सक तैयारी पटना शहरमे करैत छैक।
माय-बाबू गहना-गुड़िया सब बोहा आर्थिक आरो ओरियान लेल अपन घर सेहो बन्हकी
लगाकय बेटाक पढौनीमे सहायक रहैत छथि। मायके द्वारा भनक लगला सँ बीडीओ बनय
बाला प्रतियोगगिक मोन विचलित होइत छैक। होटलक खेनाई खाइतघरि किछु लोकक गप्प
अकानैत ओ सहयोग लेमय गजेन्द्र सेठक ओहिठाम जुमैत छैक। चन्दनपुर मोहल्लामे
मित्तल निवासपर स्वयं सेठजी बातचीत पक्का कय एगारह हजार टाकाक ठीकामे लोहा
लक्कर आ गीटिकेँ उठेबाक आ शरण स्थलक गलीमे सैंतबाक रहैक,से टीनमे भरि-भरि
हार्डवर्कमे अपना तन्दरूस्तीक हुबा सँ काजमे लागि जाइछ। मोहनके परिश्रम आ
ईमनदारी सँ सेठजी बाप-बेटी प्रभावित होईछ। मोहनी सेठजीक बेटी बीए
इन्टरनेशनल पालिटिकल साइंस आनर्सक परीक्षा द'कें विलायत सँ आयले रहैछ। ऐ
युवक श्रमिक केँ जलखै करबैतकाल आपसमे शिष्टाचार वार्ता सेहो होई छैक। सेठजी
४० कोटरिक कोठामे विधुर जीवन बितबैत शहरके नामी कारोबारी आ ४ कारखानाके
मालिक रहथि। से स्वयं बेराम रहय लागल रहला सँ बेटी बियाहक चिन्ता मोनमे
आबैन। बेटी सं आ मोहन सँ फराक-फराक विचार लैत अपन निर्णयानुसार हाथ धरौलनि
तँ मोहन हुनका संवेदीत भऽ कहैत छैन- "अहीं हमर भाग्य विधाता छी।" कथाकेँ
प्रेरक बनाबयमे धरि 'वगवार' उपन्यास नायिकाके रातिमे पढैत देखेबाक यथेष्ट
चेष्टा कयलन्हि अछि।
छठम पाठ- सागक महिमा दीर्घ कथा छी। ई कथा २८ पृष्ठ म समाएल छैक,जे
केन्द्रीय कथा - एवमस्त 'क पृष्ठ सं आध दर्जन बेसी पन्नामे य। एहि कथामे
सागके सम्पूर्ण इतिहास पाठक बूझि समैझ सकैत छी। साग कतेक गुणकारी आ कोना
सागपातमे केहन गुण छैक,तकर विशद् चर्चा ऐ पाठमे कथाकार रामेश्वर बाबू कयलाह
अछि। सागक उत्पादक रूपेँ वादमे तरकारी खेती देखाएल गेल जे बजारमे बेचि धन
उपार्जन सँ बेटाकेँ बाहर पढबै छैक। कथाक आरम्भ बोझिल रहला सँ ' प्रथमे
ग्रासे मच्छिका पात्रे " कहि सकैत छी। संगहि दूनू बहिनमे छियैन, देतहीन,
लेतहिन शव्द मिथिला'क कोनू गाममे दू सहोदर बहीन बीच कथमपि नहिं बाजल जाइत
छैक। एहन शव्दक टोनके' कुकुर मांर पिबैत छथिन' सन वाक्य अटपटा लगैत छैक
।प्राय: सबटा पाठमे मुद्रण त्रूटि सेहो अछि,जे पढि समान्य पाठककेँ खिस्सा
सँ भटका दैत छैक। सुधा - रतन दूनू प्राणी पथलतोर श्रमके बलेँ एकमेव पुत्र
शंकरकेँ नालन्दामे डाकदरी पढ़ाकय समाजमे कृतिमान स्थापित करैत छैक। ओना
पढौनीमे शंकरके मावशी परोक्षरूपे सहायता केलीह अछि। आ हुनके सुझेलापर शंकर
अपना डाक्दर मित्र आनन्द 'क सहयोग सँ बसुआरामे " सागेश्वर अस्पताल " बनाकय
दीन-दुखियाक सफल उपचार करैत छैक। पढल- लिखल प्रायः सब क्षेत्रके यशस्वी
मेधाक पलायन शहर आ विदेश धरि होइए, ताहिठाम कथाकार शंकर के माध्यम सँ एक
नीक संदेश कथामे देलाह हेन,जे देहाती क्षेत्रमे अस्पताल 'क स्थापना कयल गेल
छैक।
पाठ ७मे क्षणमे छनाक भेल लघुकथा एक एहन निर्धन विधवाक विषयमजे अछि जे अपन
बपटुअर ४ बरखक नेनाक पालन- पोषण अपन चन्द्रपुर गाममे आनक घरेलू काज करैत
मसोमाती जीवन बितबैत छैक। पारिवारिक उन्नतिक खिस्सा एहिमे कहल गेल छैक। ओ
टेल्हू हिरबाके इसकूलो पठबैत य,मुदा छौंड़ा पढलकै नहिं। धरि बेदरे सँ गमैया
लुरि सीख काज करैत समरथो भऽ जाइत छैक। ओकर माय खजनी अपना बेटाक बियाह
कराबैत छै एक मयटुगर गुणबती कन्या सँ। पूतौह डेबैत ओई सिध्दी कनियां केर
काजुल आ व्यवहारिक पक्ष मजगूत पबैत छथिन। हीरबा अधिक उपार्जन लेल पलायन कऽ
मोरंग चलि जाई छैक। ओतय सँ ओ कनियाँके चिट्ठी पठबैत छै जे एक बेंगबा नवजुबक
आबि भाउज हाथमे देलक। अछि। ओहि तत्कालीन समय संवाद केर माध्यम पत्रे होईक।
कनियाँ केँ श्रृंगार पेटार करैत सजैत- धजैत देखि सासु अचरजमे पड़ैत प्रश्न
करैत छैक। तँ केम्हरो सँ ओ जाउथ बेंगबा आबि चिठ्ठी केर खेरहा कहैत छैक काकी
सँ। कनियाकेँ खोपरी सँ परिवर्तित कोठरी म बाकसके चाभी नहिं देखाईत रहने
ओन्ही -पथारी दैतकाल दियोर टोइन दैछ- "क्षणमे छनाक भेल ।" ग्रामोफोन पर गीत
बाजय लगलैक- क्षणमे छनाक भेल दाय गेल; गेल पेंटिके कुन्जी हेराय गे...।
नियत समय पर नैकी कन्या बियौहति साड़ी आ गहना धराऊं सँ बहार कय पहिरैक
मनसुवा मोनमे नियारैत रहैक।
पाठ ८ चकबिदोर दू मित्रक' समर्पणके खिस्सा थीक। एहि कथाक माध्यम स्कूलक
संगीके जीवनपर्यंत सामाजिक भेदभाव'क विरूद्ध अश्पृश्यता निवारण केर संदेश
पसारबाक सफल चेष्टा कयल गेल छैक। कुबेर नामक दूगोट छात्र मल्लिकपुर कस्वामे
रहैत छै। ओ लोकनि अपना- अपना टोल सँ लोअर प्राईमरी पासकय बैरिया ही मध्य
विद्यालयमे नामांकित होईछ। वर्गक उपस्थिति घंटीमे एक छात्र कुबेर ' ए' तँ
दोसर कुबेर " बी" नामे चर्चित भऽ जाइछ। कुबेर ' ए' मध्यवृत्त परिवार सँ तँ
कुबेर "बी" निठाहे गरीब घरक रहैक। दूनू चटियामू नीक मैत्रीभाव निमहलैक।
स्कूलक एके ब्रींचपर संग -संग बैस पढय-लिखय,ऐ तरहेँ दिनचर्या सँ सबहक
नजैरमे आकर्षणक केन्द्र बुझाय। टीपीनकाल दूनू एक दोसरक खेनाई खाई,पनिचला
जेकां। मुदा समाजक नजैरमे कुबेर 'बी' अछूत परिवार सँ मानल- जानल जाइत रहैक।
सामाजिक व्यवस्था अनुसारे घर आंगनमे छूआछूत घृणा प्रथा रूपेँ पसरल रहैक।
दूनू छात्र संविधान द्वारा स्वीकृत राष्ट्रीय लक्ष्य - समाजवाद अन्य दिश
डेंग बढौने रहैक। गामक मुख्य पूरुख आ मान्यजन केर फरमान जारी होयते रघुनी
जी अपन ५ बिगहा खेत में सँ तीन बिगहा बेचकय भोज देलकै। तैयो ओसरा पर बैसाकय
खुएबा सँ नै बरजलै। रघुनी जी दुखित पड़तहि हुनक बेटा जे मैट्रिक आ इन्टर
कोने तरहेँ पास केने रहैछ,से कैंचा कमाबय शहर जाए दालि फैक्टरीमे काज करैत
छैक। ओकर मित्र नीक लव्धांक सँ मैट्रिक आ पटना जाए विज्ञान विषयमे अस्नातक
करैत प्रतियोगी परीक्षा द'कें हाकीम भऽ जाईछ। दाइल कारखानामे बोरा उघैत
कुबेर"ए" खसि पड़ैत छैक,जाहि सँ माथे फुटि गेने शोणित बहुत बहि जाइछ।
राहगीर ओ दृश्य देखि वाट बदलि लैत छैक। अधमिरीत हालमे ओहि बाटे इन्दौरके
जिला पदाधिकारी'क नेमप्लेट लागल गाड़ी बहराइत ओतय ठमकैत छै आ बेहोश घायल
मरीजके होस्पीटल ईलाज करबय जाईछ। डॉक्टर जाँचमे ओ पोजेटीव खून चढाबय लेल
कहैत छै जे कलक्टर साहेब स्वंय दैछ आ अपने रक्त अल्पताक शिकार भऽ उठैछ। ओहि
ठाम परिस्थिति समान्य भेलासन्ता दूनू मित्रगण बीच जानपहिचान होइत छन्हि। ऐ
तरहें कृष्ण सुदामा सन मिलन देखि सब चकित होईछ। हुनका माय- बाबू दुआरिधरि
ओहि गाड़ी सं पहुंच सब केओ आशिष प्राप्त करैत देखाएल हेन। सब वृतांत बुझि
रघुनीजीक सहानुभूति सँ चकविदोर लगैत सब गछत जे सुखान्त कथा एक नव संदेश
संचार केलक अछि। एवमस्त आखरि पाठ ऐ पोथी 'क केन्द्रीय कथा छी जे एक गुरूजीक
सदैत कृपा कयला सँ अधिगम स्तर सँ नीचाके छात्रकेँ पराकाष्ठा धरि पुंगेलनि
अछि। प्रेमपुर गाममे डेनमार्क जेकाँ दुधक नदि बहय। ओतय दूध- दही, अखराहा
कुश्ती, राजनीतिक पक्ष- विपक्ष दलक समर्थक आ हिन्नू- मुसलमान आवादिक दोस्ती
सब रहैछ। पढल- लिखल लोकमे बीडीओ, एसडीओ, इंजिनियर -डाकदर , प्रोफेसर सं लऽ
कऽ फोरग्रेड सं फस्टग्रेड धरिकेँ सरकारी नोकरीमे ग्रामीण रहैछ। से एहन
सुन्दर सन गामकेँ कोसी 'क विनाश लीला आ भुतही बलान नदीके प्रलंयकारी भीषण
वाढ़ि त्रस्त कयने रहैक। सन् १९८७ आ २००४ केर बाढि त्रासदी सँ पैघ-पैघ
हसामी डोलि गेलैक। गामक स्मृतिमे आब पोखैर ,ईनार , नलकूप आ तीन फसिला खेत
,पान माछ मखान आम कलमके चेन्हासी धरि पतनुकान लेने छै। मधुबनी जिलाक लोक
वाढ़ि सह जीवन केर मातहत अंगेज लेने रहय आ मगन भ' निशन्न कण्ठ सँ गाबि रहल
छलैथ-: उमरल छै कोसी आ बिगरल छै कमला
उनटल छै बिहुल बलान गे माय
जिनगी के नै छै ठेकान ........
वाढ़िक दुष्परिणाम सँ मातबर ओ मड़रशारि सब ढहि ढनमनाके ,सय बिगहा जोतक
मालिक केर पलिवारमे गोटेक ५ बिघा खेतीमे समटा गेल रहैक। कथाकार एहि
परिस्थितिक दिग्दर्शन पाठक बीच संस्कृतके श्लोक -:
विभुक्षित: किम न करोति पापम
क्षीणा नरा निश्करूणा भवति आदि सँ ठाठ-ठाम दैत पाठकेँ रोचक बनेबाक परियास
कयलाह अछि। टुटल घरक करपरदार रूपें एक पात्र काशीनाथ बाबू छथि। ओ अपन बेटा
रविके पढ़ाया लेल झखैत छैक। सातमा वर्गमे पढय छै, अभिप्राय ई जे कहुना घीच
घाइचके मैट्रिक पास भ' जाय। ज्ञानेश्वर गुरूजी लग सँ पुर्ण आश्वासन भेटैछ
जे एवमस्त! आ फर्स्ट डिवीजन सँ पास करय लेल अजस्र ऊर्जा झौंकैत साबित करैत
अभिभावक आ छात्र दूनेके हृदयमे जगह जमेला हेन। रवि पटना सँ बायलोजी विषय
पढि डॉ० बनय चाहैत य। से ओकर छोट भाय कवि एकटा पत्र आनि पारिवारिक खुशी जेठ
भाय बावत पसारलक । प्रशन्नता लेल गुरुवर महोदय सँ प्रगतिक चर्चा करैत पुन:
पुनः एवमस्त आशिष पाबैत छै। पोथीमे मैथिलीक शव्दके जगह बिदेशज शव्द आ
हिन्दी केर प्रयोग भेल छैक से मैथिली भाषा आ साहित्य लेल अधलाह बात छी।
२
अहर्निश मैथिली साहित्य सेवक डॉ०तारानंद वियोगी
नकारात्मक परिस्थिति सँ उबरय ले साहित्यकार लोकनिक सतत् जोगदान होईत रहल
अछि, जाहिकेँ परेख अँखिगर संस्था - समिति कार्य क्षमतानुसारे कोनू लेखक -
लेखिकाकेँ मंच सँ पुरस्कृत करैत छैक। ओहि कड़िमे प्रसिद्ध ' शकुन्तला -
भुवनेश्वर ' पुरस्कार 'क घोषणा मिथिलांचल सँ बाहर तेलंगाना सँ मुख्य न्यासी
आ देसिल बयना ( मैथिली साहित्य मंच - सिकन्दरावाद ) केर मुख्य सम्पादक श्री
सी एम् कर्णजी दिश सँ एहिबेर सहरसाक श्री वियोगी जी आ भारती मंडन मैथिली
पत्रिका केर सम्पादन सहयोगी श्रीमती सुष्मिता पाठक जीके संयुक्त रुपेँ
देबाक चर्चा सँ लेखकीय समाजमे अतिशय प्रशन्नता पसरल हेन। बाबा वैद्यनाथ
मिश्र 'यात्री' जीक मैन्टर रूपेँ जगजियार डॉ० तारानंद वियोगी जीक जन्म सन्
१९६६ में सहर्षाक नामीगाम महिषीमे भेलनि। हिनका संस्कारमे संस्कृत भाषा
ततेक ने गहीरपन सँ व्याप्त छैन जे कोनू ग्रन्थ यथा - " मंजील और कितनी दुर
" प्रकाशन सँ पूर्व श्लोकक शुद्धता हिनके सँ पाण्डुलिपि जँचाएल गेल रहैक।
श्री वियोगी जीके पहिल मैथिली पोथी ग़ज़ल विधामे ' अपन युद्धक साक्ष्य '
बहराएल रहनि। तारा नन्द बाबूक आनो पोथी सब प्रकाशित भेल छन्हि जे खूब
चर्चित भेलनि। यथा- हस्तक्षेप,प्रलय रहस्य, दुनिया घर मेहमान,साखी -
धारासायी हेबाक समय (कविता संग्रह), बिटवीन द टू डैम्स,बुध्द का दुख और
मेरा; जैसे अंधेरे में चाँद (मैथिली कविताक हिन्दी आ अंग्रेजी मे अनुवाद),
अतिक्रमण,छियानत ( कथा संग्रह) , शिलालेख (लघु कथा संग्रह),
कर्मधारय,रामकथा आ मैथिली रामायण ' बहुवचन, धूमकेतु, महाप्रकाश, मंडन मिश्र
: मिथक आ यथार्थ् (आलोचना) ,जीवन क्या जिया (संस्मरण), युगों का यात्री (
यात्री नागार्जुनक जीवनी) , राजकमल चौधरीक कथाकृति ' एकटा चम्पाकली एकटा
विषधर, देसिल बयना ( स्वातंत्र्योत्तर मैथिली कथा) संकलन- सम्पादन । मैथिली
भाषा मेँ पोथी हिनक " तुमि चिर सारथी" ९५ पृष्टक नवम्बर १९९९ ई० मे यात्री
जीके पहिल बरखीक अवसर पर प्रकाशित भेल रहय, जकर दाम २० टाका छैक। कामाख्या
झिंगुर साहित्य परिषद् ,मलाढ़- थरबिट्टा (सुपौल) सँ प्रकाशित ई पोथी बढ़
विशेख छैक,से हमरा पढ़ल अछि। मैथिली रचना जगतमे डॉ० तारा बाबूक संलग्नता
कमाल के रहैत छैन,जहनकि ओ शासकीय सेवामे व्यस्त रहैत छथि। सम्प्रति एखन ई
परिवहन मंत्री बिहार सरकार केर आप्त सचिव पद पर कार्यरत छथि। यात्रीजी
हिंदी क्षेत्रमे नागार्जुन नामे जानल जाइत छलाह। ओ मिथिला सँ बाहरो
घुमक्कड़ रहथि। फणीश्वर नाथ रेणु केँ धनरोपनी करैत फोटो सेशनके अवसर
हुनकेखेत पर देने छलाह। साम्यवाद लेखक रूपेँ आ बौध भिक्षु सन परिचय हुनक
बनल रहनि। त्यागी आचरण केर एहन सिध्द पुरूखक संगति वियोगी जीकें भेटलनि ,जे
मैथिली साहित्य आन्दोलन मेँ हिनका स्वत: स्फूर्त देखल जाइत य। नौकड़िपेशा
पेशा सँ जुटल समस्त मैथिली सेवीकेँ ओ शनिचरा हस्ताक्षर कहैत रहथि। आओर जतेक
शनिचरा हस्ताक्षर रचनाकार छथि वा रहथि से मैथिली साहित्य केर अक्षय भंडार
केँ अपना कृति सँ भरलनि। ई संतोखक गप्प जे कृषक - श्रमिक वर्गके भीड़ सँ
सेहो बहुत लोक आगू अयलाह जे अपन मैथिली पोथी सँ साहित्य जगतमे एक पैघ
चेन्हासीक डांरि पारलनि हेन। यात्री जी अपना अमलदारीमे जाहि नवतुरिया केर
बीच कहलनि - हमर पेट जरय लागल तँ मैथिली सँ हिन्दीमे आबि कैंचा कमाय करियै!
से सब ओहि समयके नवजुबक तँ आब स्वयं वृद्धावस्थामे बाबा बनल छथि, मुदा
अखनके युवावर्ग जे यात्री जीक देखौंश कय मैथिली सँ विमुख भ' हिन्दी झारैत
छथि से तँ मातृभाषाक' विकासके पांछा करैवला मानल जाएत। मैथिली आ हिन्दी
दूनू भाषामे लिखब एक नव फैशन बुझैत ' यात्री 'क राह बताओल पर चलनिहार
कहाबैछ। मैथिली लेल दिनराति काज कयनिहार रचनाकारमे एक श्रेष्ठ नाम श्रद्धेय
डॉ० तारानंद वियोगी जीक छन्हि ।हिनक बाबा यात्रीजी संग परिचय प्रगाढ़ करयमे
नव तुरिया बीच सूचना संचार 'तुमि चिर सारथी ' माध्यमे बढलनि से हमर मोन
गच्छैत य।
वियोगी जीक वाक पटुता संभाषण, कतेको सेमीनार मेँ सुस्पष्ट वक्तव्य आ आलेख
लेखन ओ समालोचना रुपेँ यशोगान जनमानस बीच बढ़ल छन्हि। हिनक पोथी साहित्य
अकादेमी मैथिली बाल साहित्य पुरस्कार -२०१० ' ई भेटल तँ की भेटल' लेल देल
गेल रहनि। यात्री - चेतना पुरस्कार -२०१० आ ई- विदेह सम्मान - २०१३ सेहो
भेटल छन्हि। सहरसा' के लाल आरो खूब नाम कमाबथि से लालसा रहत।
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