कुमार मनोज कश्यप
लघुकथा- यथावत
चारिये साल के उमर सs ओ कूड़ा बीछs लागल रहै .... भरि दिन लोकक घरक आगू,
गली-कुची, सड़क कात, कूड़ा-कचड़ा के ढ़ेर मे सs काजक चीज जेना बोतल, धातुक
टूटल-फूटल सामान, पॉलीथिन आदि बिछि कs ओकरा साफ करै आ कबाड़ी हाथे बेचि आबै।
भरि दिन मे बड्ड बेसी तs पचास-साठि रूपया होई जे ओ अपन माय के साँझ मे
सौंपि दई। ओकर पूरा परिवार .... माय, बाप, भाय, बहिन .... सभ एहि खानदानी
पेशा मे लागल! ओकर अल्प वयस, जट्टा सन केश, बहैत नाक, मैल सs कारी भेल
हाथ-मुँह, मैल-किट्ट फाटल वस्त्र आ ठिठुरैत जाड़ मे कूड़ा के ढ़ेर के छिड़िया
कs किछु ताकैत खोजी आँखि-हाथ .... कोनो विदेशी फोटोग्राफर के लेल एकटा विषय
बनि गेलै!
सुनै छियै ओकरा ओहि फोटो लेल अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार सेहो भेटलै। आ जे सब
सs पैघ बात भेलै से छलै पश्चिमी मीडिया मे भारत मे व्याप्त बाल-श्रम,
बाल-अधिकार, अशिक्षा, गरीबी, भूखमरी आदि विषय पर गर्मागरम बहस के एक बेर
फेर सुनगा देब।
ओ छौंड़ी एहि सभ सs अनभिज्ञ एखनो ओहिना कूड़ा बिछिते छै।
-कुमार मनोज कश्यप सम्प्रति: भारत सरकारक उप-सचिव, संपर्क: सी-11, टावर-4,
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