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हितनाथ झा

मैथिली साहित्यमे तारानाथ झा एवं हुनक परिवारक योगदान-
 

स्वतंत्रता आंदोलनमे प्रभातक साहित्यिक अवदान

"प्रभात" मासिक पत्रिकामे अनेक कथा-निबन्ध ब्रिटिश साम्राज्यक विरुद्ध लिखल गेल आ स्वतंत्रता आन्दोलनमे तत्कालीन किछु युवक लोकनि भाग सेहो लेलनि जाहिमे प. दामोदर मिश्र (स्वदेशी आंदोलन, खादी वस्त्रक प्रचार आ खादी भण्डार कोइलखमे 1932मे खोलब, एहि प्रसंगक समाचार प्रभातमे प्रमुखता सँ अयलैक।) प. श्रीकान्त ठाकुर विद्यालंकार, प. हरिनाथ मिश्र आदि। खादी भण्डार खुजलाक बाद प्रभातमे जे छपल रहैक ओ समाचार एतय अविकल प्रस्तुत कयल जा रहल अछि-

मोतीपुरमे मधुबनी खादी भण्डारक शाखा श्री दामोदर मिश्रक संरक्षणमे खुजलै। एहि दुकानमे मधुबनीक दरसँ खद्धर विक्री भय रहल अछि। अतएव खद्धर एवं देशी कपड़ा खरीदय वलाकेँ एहि दुकानसँ अत्यन्त लाभ भेलन्हि अछि। आशा कयल जाइछ जे जाहिसँ ई दुकान चिरस्थायी रहि सकय, तेकर यत्न करबामे कोइलख तथा कोइलखक समीपस्थ गामक खद्धरप्रेमी वृन्द तिल मात्रो पैर पाछु नहि करताह।” (सन्दर्भ: कोइलख: हितनाथ झा, पृष्ठ-111)

देशप्रेमक भावनासँ ओतप्रोत अनेक निबन्ध आ किछु कथो प्रभातमे प्रकाशित भेल छलैक जे ब्रिटिश सरकारक विरुद्ध कतेक स्पष्टता आओर निर्भीकतासँ जनमानसकेँ विद्रोह करबाक प्रेरणा दैत रहल जाहिमे एक निबन्ध रमानाथ झाक लेखदरिद्रता और ओकर कारण’ आ दोसर कथा भवनाथ मिश्रक’अद्भुत देशानुराग’ युवकक साहस आ लेखनीक कुशलताक स्पष्ट दर्शन होइत अछि।

रमानाथ झाक लेखमे तत्कालीन समयक शासकक क्रूरता आ पक्षपातक एक-एक डेटाक संग लिखल गेल अछि। रमानाथ झा युवक संघक सभापति प्रसिद्ध इंजीनियर उमानाथ झाक अनुज एवं बिहार सरकारसँ सचिव पदसँ सेवानिवृत्त भेलाह। ओहि समयक रचनाकारमे हिनक बेस ख्याति छलनि। मिथिला मोद मे हिनक अनेक रचना प्रकाशित छनि। रमानाथ बाबू बिहार सरकारक ट्रांसपोर्ट विभागक सचिव पदसँ सेवानिवृत्त भेलाह।

दरिद्रता औऱ ओकर कारण

रमानाथ झा (कोइलख)

प्राकृतिक नियम सभ ठाम एके रंग कार्य करैत अछि। जाहि सम्पत्तिक कारणक जे फल यूरोपमे होइत छैक, ओकर ओहने फल भारतोमे हैब अनिवार्य अछि। स्थानांतर भेदसँ सामाजिक अवस्था-व्यवस्थाक कारणे कोनो कुफल वा सुफलमे तारतम्य भ' सकैछ, किन्तु कोनो नैसर्गिक कारणक फलमे अन्तर नहि भ' सकैछ।

जाबत भारतवर्षमे जमीन्दारी प्रथा नहि छल और राजस्व द्रव्यक रूपमे नहि, किन्तु पैदावारक रूपमे लेल जाइत छल, तावत गृहस्थ केँ ओहि विपत्तिक सामना नहि कर' पड़ैत छलनि,जे आइ कर’ पड़ैत छनि। प्राचीन कालमे खेत-खरिहान आदिक पैदावारक दशांश अथवा कोनो स्थितिमे चतुर्थांश वा षष्ठांश राजा केँ राज्यमे सुप्रबन्ध रखबाक हेतु देल जाइत छलैन्ह। एहेन कहियो नहि होइत छल जे खेतमे पैदावार चाहे दस मोन हो अथवा सय मन, किन्तु गृहस्थ अपन’कर’ चानी वा सोनाक एक निश्चित परिमाणमे अवश्य देथि। ई तँ एक प्रकारक जूआ थीक। क्यो नहि कहि सकैछ जे कोन खेतमे केहेन पैदावार हैत और कोन साल केहेन वर्षा वा रौदी हैत। इहो क्यो नहि कहि सकैछ जे कोनो खास खेतमे फलाँ उपज बराबरि होइते रहत। बाजारक दर सभ दिन एके रंग नहि रहैछ।जखन पैदावार सभ साल समान हैब असम्भव अछि, तखन राजस्व-कर प्रति वर्ष एक समान लेब और बीच-बीचमे बढ़बितो जैब--एक एहन अनुचित और घृणित कार्यवाही थीक,जकर जतेक निन्दा कैल जायत-थोड़े थीक।

सम्राट अकबरक शासन कालसँ सोना आ रुपैयाक रूपमे एक निश्चित कर लेबाक प्रथा चलल। तहिये सँ गृहस्थक सन्तापक विषवृक्ष आरोपित भेल। किन्तु एतबा कहि देब आवश्यक जे अकबर वा हुनक उत्तराधिकारी देशी छलाह और हुनक हित और अहित, हुनक जीवन और मरण देशक हिताहित पर अवलम्बित छलैन्ह। तैं हुनका लोकनि प्रजा पर’कर'क वसूलीमे ओहि तरहक अत्याचार नहि करैत छलाह जे आइ विदेशी शासन कालमे देख'मे अबैये।

दोसर बात जे लेखक केर ध्यानमे अनैये ओ थीक-सामाजिक और व्यक्तिगत अपव्यय। किछु लोक एहेन छथि जे सामर्थ्यसँ बाहर खर्च करबाक हेतु ऋण लैत छथि। कतेक लोक मदिरापान, व्यभिचार और शौकीनीमे अपन सम्पूर्ण आमदनी खर्च क' दैत छथि। कतेक लोक सामाजिक रीति ओ प्रथासँ एतेक बाध्य भ' जाइत छथि जे हुनका खर्च करय पड़ैत छैन्ह। और यदि नहि करैत छथि त' समाजमे हुनक निन्दा होमय लगैत छैन्ह। यदि क्यो लोक अपन पिता वा माइक श्राद्ध, बेटाक उपनयन- विवाहादि अन्य संस्कार खूब धूम-धामसँ नहि करैत छथि,यथेष्ट ब्राह्मण भोजन नहि करबैत छथि,तँ समाज हुनका पर हँसैये और हुनका एक प्रकारक कलंकक टीका व्यर्थ लागि जाइत छनि। एही प्रकारक अन्यान्य सहस्रो फजूल खर्ची अछि,जाहिसँ लोक दरिद्रताक दारुण दुख भोगैत छथि।

गरीबीक तेसर कारण अनावश्यक टैक्स थीक। कोनो देशमे सरकारी कर्मचारीकेँ एतेक वेतन नहि भेटैत छनि जतबा भारतमे। इंग्लैण्डक सभसँ पैघ कर्मचारी प्रधानमंत्रीकेँ छौ हजार मासिक भेटैत छनि, किन्तु एतुका वाइसरायकेँ एकैस हजार रुपैया और छोटा लाटकेँ दस हजार रुपैया मासिक भेटैत छनि। किन्तु ध्यान देबाक बात थीक-- जतय भारतक प्रति मनुष्यक दैनिक आय सात पैसा अछि ततय इंग्लैण्ड केर प्रति मनुष्यक दैनिक आय प्रायः अढ़ाइ रुपैया अछि,तखन ई उनटा न्याय कहाँ तक युक्तिसंगत थीक से विचार करू।

फौजमे साठि करोड़ रुपैयाक खर्च छैक। एहिमे लगभग तीस करोड़ रुपैया पचास हजार गोरा मे खर्च होइये और अवशिष्ट तीस करोड़ दू लाखक लगभग हिन्दुस्तानी फौज पर खर्च होइये। ई सभ रुपैया टैक्स द्वारा अबैत छैक, जाहिमे अधिकांश गृहस्थकेँ देबय पड़ैत छैन्ह।

एहि सभक अतिरिक्त हमरा लोकनिक दरिद्रताक कारण वैज्ञानिक आविष्कारक प्रचार थीक। हम देखै छी जे प्राचीन कालक सड़कक किनारमे जतेक सराय,आबादी और दोकान छल, ओ सभ आइ उजड़ल पड़ल अछि। जाहिसँ लाखो दोकानदार, अगणित मजदूर, कारीगर, गाड़ी-घोड़ा वला....आदि परिपालित होइत छल ओ सम्पूर्ण साधन रेलगाड़ीक प्रसादात माँटिमे मिलि गेल।

बिजलीक पंखा कतेक मजदूरकेँ बेकार कयलक ? बिजलीक रोशनी कतेक तेलीक सत्यानाश कयलक ? मील सभ कतेक जोलाहाक घर ध्वंश कयलक ?-- कतेक विधवाक मुँहक रोटी छिनलक एकर कोनो हिसाब हैब असम्भव अछि। ई त' किछुए बात देखाओल गेल-- यदि विस्तारसँ सभ बातक विवरण देल जाय त' हमरा लोकनिक दुखक गाथा बहुत बढ़ि जायत।

मनुष्यजातिमे विज्ञानक वृद्धि हैब,कला-कौशलक विकास हैब-- एहि सभकेँ क्यो समझदार आदमी खराब नहि कहि सकैत अछि। किन्तु ई तखने सम्भव थीक जखन ओ विकास मनुष्य जाति मात्रक लेल हितकारी हो। जाहि विज्ञानक फल किछु व्यक्तिकेँ लाभ पहुँचयबाक हेतुएँ व्यवहार हो और शेष जनता ओहि लाभसँ वंचित रहय, बल्कि अपन पूर्वोक सुखकेँ नाश क' बैसय तँ ओ अज्ञानपूर्ण ज्ञान कहियो संसारक हेतु हितकारी नहि भ' सकैछ।

एही लेल मनुष्यभक्त विद्वान लोकनि तेहेन मार्ग कहैत छथि जकर अनुसरण कयला उत्तर संसार मनुष्य मात्रक लेल शान्तिमय जीवनक पवित्र स्थल भ' जाय और मनुष्यजातिमे कुकुर जकाँ एक टुकड़ी रोटी लय लड़ब बन्द भ' जाय। ओ उपाय यैह थीक जे- देशक छोट-छोट सुविधाजनक स्वतन्त्र खण्ड हो, प्रत्येक खण्ड अपन पैदावारकेँ सम्मिलित सम्पत्तिक रूपमे एकत्र करय और प्रत्येक नर-नारी केँ ओकर उपभोग एवं रक्षामे समान अधिकार हो।

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{सन्दर्भ: प्रभात, वर्ष-2, अंक-1, जनवरी-1934),संख्या-01)

 

दोसर एक कथा जकर लेखक भवनाथ मिश्र तहिया मात्र 14- 15 वर्षक छलाह,जहिया हिनक निम्नलिखित देशप्रेमसँ ओतप्रोत कथा’अद्भुद्देशानुराग’ कोइलखसँ प्रकाशित मासिक पत्रिका प्रभातक नवम्बर 1934क अंकमे हनकहि लिखल अक्षरक संग प्रकाशित भेल रहनि। स्वाधीनता आन्दोलनमे मैथिली पत्रिका’प्रभात’क अवदानक मात्र ई एक दृष्टान्त प्रस्तुत अछि।

कोइलखक भवनाथ मिश्र,जे चिकित्सकक रूपमे अपार यश अर्जित कयलनि। ई विद्वान परिवारक छलाह,स्वयं विद्वान छलाह, सहृदय छलाह, साहित्यिक रुचि छलनि, संगीतप्रेमी रहथि, राजनीति-रसिक रहथि, स्त्रीशिक्षाक प्रबल समर्थक रहथि। ई महान विद्वान प0 बबुआजी मिश्र (कलकत्ता विश्वविद्यालयक प्रोफेसर)क सुपुत्र रहथि। केन्द्रीय मंत्री एवं बिहार विधानसभाक अध्यक्ष प0 हरिनाथ मिश्र,महान शिक्षाविद प्रो0 जयदेव मिश्र, विख्यात अभियन्ता अनिरुद्ध मिश्रक अनुज रहथि।

1978मे दरभंगा मेडिकल कॉलेज & हॉस्पिटल,लहेरियासरायसँ मेडिसिन विभागाध्यक्ष पदसँ सेवानिवृत्तक उपरान्त साहित्यमे रमि गेल छलाह। प्रो0 हरिमोहन झा, 0 चन्द्रनाथ मिश्र’अमर', विद्याकर कवि, प्रो. शंकर कुमार झाक संग आकाशवाणीसँ हास्यवार्ता प्रसारित होइत छलनि।

अद्भुद्देशानुराग

लेखक-- श्री भवनाथ मिश्र

आबहुँ माफी माँगि ले। किछु वेशी नहि, एतवा कहि दे कि आइ तारीखसँ हम एहि झंझटमे नहि पड़ब

कोन झंझट

यैह झंझट, जाहिमे कार्य्य कयलाक कारण तों पकड़ल छें ओ आगू की हयतौक तकर ठेकान नहि। यैह खद्दर पहिरव कोनदन गीत .....अरे .....

'वन्दे मातरम’ गाएब तोरा सत्यानाश करतौक। गामपर रहितें, केहेन आनन्दसँ अपन परिवार ओ दश इष्ट मित्रक संग तोहर दिन कटितौक ?

परन्तु एहि कार्य्य कै कयला सँ कोन-कोन देशक अन्नपानि ओ ककरा-ककरा हाथेँ मारि खयबें तकर कोन ठेकान ?

वेश एक वेरि जे कयलें से कयलें, आव फेरि क’ एहना कुकर्म्म मे नहि पड़ी।

 

ककरा ? खद्दर पहिरव ओ’ वन्दे मातरम’ गीत गैव कै अपने कुकर्म्म कहैत छिऐक ? तथा अपन रक्त चुसनिहारक अपना भाइ पर घोर अत्याचार करबामे अपन सहायता कै सुकर्म्म ? छि:, छि:, अपने जन्मधारण कय अपन मातृभूमि’ भारतमाता’ क कोन उपकार कयलिऐन्ह जे अपनेक शारीरक भार ओ एखनहुँ अपना छाती पर वहन करैत छथि ?

सुनले होएत--

जिसको न निज गौरव तथा निज देश का अभिमान है, वह नर नहीं नर ...."

चुप वदमाश ! बेहाया !! यहाँ आकर पाण्डित्य छाँटने लगा है।

(बेंत ल'' खूब जोर स मारिकय) आवहु माँफी मंगवे कि नहि ? शैतान, पाजी, उल्लू कहाँके। आवहुँ वजैत छें कि नहि ?

 महाशयजी ! आव की भेलैक जे हम माँफी माँगि लिय ? अपने केँ बूझि पड़ल जे बूट सँ मारिकय हमरा सँ अपना इच्छानुसार कहा लेव ?

ई अपनेक भ्रम छल। देशक प्रति जकरा वास्तविक प्रेम छैक तकरा मृत्युक डर त' होइतहि नै छैक, बेंतक चोट के ओ कतेक परवाहि करत ?

कोइ है ? पिस्तौल ले आ। (हाथ मे ल' ') आव ? की करवें? आखिरी वात, बाज-- एक ...दू...की ?

" कनेक थमि जाउ , ई कमीजो धरि अपनेक गोली कै अयबा में कनेक बाधा कियैक देत ? (कमीज खोलि कय) होउ, लगाउ।।

वेश , एक ...दू...रन..." भारत   मा...ता ...की...जय।

आकाशवाणी           

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कमलाकान्त- हौ दीना ! कतौ स रोदनक आवाज अबैत अछि।

दीना-- (सूनिकय) सैह, एतेक रातिक' ककरा कोन विपत्ति पड़लैक ?

कमला- चल त’ देखियैक, स्वयंसेवकक की कर्त्तव्य थिकैक से त' जनले छहु। एखन कोन ? ठनका खसैत रहतैक तैयो जाय पड़तहु।

दीना- हम कि से नहि कहैत छी ?

(दुनू गोटाक प्रस्थान)

(एक उजड़ल घर लग आविकय एक वृद्धाक प्रति)

कमला- काकी ! अहाँ कनैत कियैक छी ? अहाँक वालक कि चोरी-डकैती कय कुल मे कलङ्क लगवलक अछि ? स्वदेशक हेतु प्राण देलक। मातृभूमिक हेतु प्राण देवा सँ मानव जीवनक वेशी मूल्य की छैक ?    

आशीर्वाद दिय जे हमरहु दुहू गोटा कै (दीना दिशि इशारा करैत) एतवे कियैक, गाम भरिक नवयुवक लोकनि केँ स्वदेशक हेतु जीवन दान करक सुअवसर प्राप्त होइन्हि

वृद्धा---( चुम्वन करैत) बेटा ! हम अपना वालकक स्वदेशक हेतु मृत्यु भ' जयबाक कारण नहि कनैत छी। छाती एहि लै फटैत अछि जे हमर एके टा बेटा स्वदेशक हेतु जीवन दान करक सुअवसर प्राप्त कयलक। धन्य साहस ! धन्य त्याग !!धन्य देश भक्ति !!!

(वर्तनी अविकल रखबाक प्रयास कैल अछि।)

(सन्दर्भ: प्रभात: वर्ष 2, अंक-11, नवम्बर-1934)

प्रसिद्ध आलोचक मोहन भारद्वाज प्रभातक विषयमे लिखने छथि-

" मैथिली पत्र-पत्रिकाक इतिहासमे प्रभातक अवदान महत्वपूर्ण अछि। तत्कालीन समाजक स्थिति आ सोच-विचारक दस्तावेज तँ अछिए,साहित्यिक अलबम सेहो थिक। एकर महत्व आओर बढ़ि जाइत अछि जखन एकर हस्तलिखित स्वरूपपर ध्यान दैत छी।” (सन्दर्भ: एकल पाठ-मोहन भारद्वाज)



संपादकीय सूचना-
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