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विदेह नूतन अंक
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संतोष कुमार राय 'बटोही'

'पार्वती केर शपथ' (धारावाहिक नाटक)

 

                         तेसर दृश्य

 

 

( विष्णुलोक। विष्णुजी सर्पशय्या पर लेटल छथि आओर माय लक्ष्मी हुनकर पैर दबा रहल छथिन्ह।  नारदजी केर आगमन।)

 

नारदजी : नारायण...नारायण...नारायण....सृष्टि केँ पालनकर्त्ता भगवान विष्णुजी आओर माय लक्ष्मीजी केँ प्रणाम !

 

विष्णुदेव : आउ नारद !  अहाँ केँ की खबर अछि ? बड़ दिन बाद दिखाई देलहुँ अहाँ। सब ठीक-ठाक छथि ने ?

 

लक्ष्मीजी : सचहौं मे,  अहाँ विष्णुलोक एनै छोडि देने छेलियै की ? कतऽ नुकायल रहैत छी अहाँ ? माय सरस्वती आओर ब्रह्मदेव कुशल छथि ने ?

 

नारदजी : माय लक्ष्मी, ब्रह्मलोक मे सब ठीक छथि। पिताजी आबि रहल छथि। ओ विशेष गप्प करताह। रस्ता मे माय पार्वती सेहो आबैत होयतीह।

 

विष्णुजी : सब कियो केँ ऐ लोक मे स्वागत छन्हि। आबऽ दियौन्ह सब कियो केँ । लक्ष्मी, किछु जलपान केँ बेवस्था केल जाउ।

 

लक्ष्मी : सब कियो केँ आबऽ दियौन्ह। कतेक आदमी आबि रहल अछि से पता लागत तब न ?

 

विष्णुजी : हँ, ठीक छै।हमर पाएर दबैनै बन्न करू।काज बेर मे पाएर दबौनै उचित नहि थिक।

 

लक्ष्मी : हमरा तँ किछु काज रहैत नहि अछि, तँ की करू अहुँ के पाएर दबा कऽ चिनिया बेमारी केँ अपना सँ दूर भगाबी ने ?

 

विष्णुजी : (ठहाका मारि कऽ हँसैत बजलाहा) नीक करैत छी। अहाँ अपन परयोजने हमरा जाँतैत छी।

 

नारदजी : नारायण...नारायण....माय लक्ष्मी आओर सृष्टि के पालन केनिहार भगवान विष्णु केँ बीच नोंक- झोंक बड नीक लागि रहल अछि। नारायण...नारायण....। माते ! अहाँ बसैल जाउ, हम कोन बेर काज आयब ? हम सभ कियो केँ सेवा लेल बेवस्था कऽ दैत छियैन्ह।

हमरा बहिर्गमन लेल आज्ञा देल जाउ भगवन !

 

 

विष्णुजी : हँ, नारदजी ! अहाँ इ बेवस्था करवा मे सक्षम छी। केल जाउ बेवस्था। ठीक छै अहाँ बेवस्था लेल जा सकैत छी। हम लक्ष्मी संग मिलि केँ अतिथि केँ इंतजार क रहल छी।

 

( नारदजी अतिथि केँ सेवा लेल बेवस्था मे लागि गेलाह । अनअ भगवान विष्णु आओर माय लक्ष्मी दुनू गोटे अतिथि केँ स्वागत लेल बैसल छथि। नारदजी पहिनै परदा केँ पीछा आज्ञा लक चलि गेलाह।)

-संतोष कुमार राय 'बटोही', मंगरौना

 

 

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