लाल देव कामत
गुलाबक हर्ष - विस्मय (लघु कथा)/ गार्ड साहेब (लघुकथा)
१
गुलाबक हर्ष - विस्मय (लघु कथा)
एकटा गाममे एक समय लाल टुहटुह बालकक जनम भेल,जकर मम्हरमे छठिहारी नाम पड़ल गुलाब। गुलाब चौथाधरि पढ़ल रहय। अपना वर्गक मेधावी विद्यार्थी छलय। बालपनमे घरके असगर दुलरूआ नेना देखनुक,तेँ जोगबनी सँ बाबा'क आनल सन्तोला - नशपाति आओर आनों पाकर - काँच फल खूब खाय। ओ लगहैर गाय- महिसक खुटापरक शजबी दुध , मक्खन,छाल्हि आ नीक डाढ़ी पर पलल - बढल रहैय। अपना तुरिया सँ डेढ़हा - दोबरकेँ अखारा पर कुश्तीमे पटैक दैक। साँझकेँ ओस्ताद बौआजी बाबा लग मालीभरि करूआतेल मेहनति सँ सौंसे देहमे पचा लिअ। देहातक मुख्य काज खेती-किसानीमे सेहो खूब शनगर सँ फसिल जजात लगाबैक। तहिना शिकारो खेलैमे सेहो अगुआएल रहय। लुकरीबाला बन्शी सँ ल' क' लहको आ घिरनी बनशी मरना कोसी धारमे चहटी - भंगी पीपरधरि पाथय। पहटा गांज आ टाईप लेल चर्चित युवकमे गिनाते रहय । पंचभैंया सँ ओकर बाबू जहन अलग भेलैक तँ सबटा गामक काजभार ओ डेबि लेने रहय। एकदिन मकइके चहटगर मखानीमे लुंगी मरचाय ततेक ने खेलकै जे कव्जियत आ पेट दर्द सँ छटपटाइत ईलाज लेल लहेरियासराय म भर्ती हुअ पड़लैक । पछाति गुलाब अपना बाबुजी लग कोलकाता ड्राइवरी सिखय गेल तँ रोग बेसाहने गाम आयल छल। आब दाम्पत्य जीवन कृषि पर आधारित रहल। ओ शान्तिप्रिय लोकमे शुमार होई छलैई। से महाकान्त छोटका कका द्वारा अपन नीजी एक कट्ठा डीह जमीन बेचबा सँ अति हर्ष होईक तँ सुभक लाल बड़का कका केर कुर्थी दाइल पौध बटेदारी खेती सँ बढ़ विसमय देखल गेलैक। एक दुपहरिया केँ मैनहीं सीमाकात केर केवाला किनल खेत सँ घसबाहिणी द्वारा उखारल गेल कुरथी केँ मादे बोईन नँय देबाक जैरियाएल गप्प सँ ओ खिन्न भ' उठलैक। चट द' बाजलैक बड़का कका यौ! कने बिड़ि धराबय ले सलाय दिन तँ । जखने हाथमे सलाय आयल, झट दया ओ लिसि,पजारि देलक कुरथीक पुरे जाकमे। आ बाजल हे लिअ जन गिरहत आ बटैया सब भ' जाए खकसियाह। झूनाएल सुखल कुरथी गाछ लगले पछिया हवाके सह पाबि सुड्डाह भ' गेल । बांध सँ गामपर आबि सुभग लाल सबकें कहने फिरै हौ! एहन नै देखल हर्ख - विस्मय केर अकरहर।
२
गार्ड साहेब (लघुकथा)
भीआरएस लेलाक पछाति गार्ड साहेब दरभंगा सँ आब गामे रहैत छैथ। हुनका एक दिन लाल बाबु वाचमैन सँ गप्पक पछरा पड़लनि। गार्ड साहेब अपन चास बास आ भवन देखाबैत स्वंयके प्रशंसा पबय चाहथि। लाल बाबू हुनका सँ कहलनि हम हूं मुम्बई मेँ गार्ड पद पर सर्विस करैत छी। आ अहाँ सँ बेसिये समाजमे प्रतिष्ठा बढ़ेलौँ हन्। ओ ताहि पर ओ कहलकनि तों तँ थर्ड डिवीजन सँ मैट्रिक हमरे संगे केलह ,गरीबीक कारणेँ पूबपछिम जायबालाके पछोर धरैत कमाय लेल गेल छलहे से बूझले अछि। गार्ड माने तँतोँ बुझितो नहिं हेबहक। बाहर रहय बाला सभ तोरे जेकां घरेलू काज करै य आ अपना केँ हरिया मिसपीटर गामबलाके बतबैत रहैत छैक। ताहि पर लालबाबू निशाना साधैत बाल यौ! अहाँ जे रेलक गार्ड भेलौं तँ अनैतिक रूपेँ कमाईत रहलहुँ । लौकहा लाईनमे जाधरि कोयला ईंजन चलैत रहल ताधरि खुबे कोयला बेचलौं। डिजल ईंजन बाला ट्रेन में सेहो खुबे चोरि सँ सितामढी आ बरौनी धरि रमल रहलौं। सब किओ अहाँक करतूत पर होंसैत य। अहाँ नीक - नीक लोककेँ अपना बले पंटना सँ दिल्ली धरि फ्रीमे खुअबैत ल' जाइत - अबैत रही। छुटभैया जातीय नेता आ धनिक लोककेँ बेहरी - चंदा अवश्ये देने छी। हमारा तँ अबैध कमाय नै य, तेँ अपनामे लागल रहैत थिकहुँ। बातकेँ बदलैत गार्ड साहेब खुशमिजाज भ' बाजल लाल - पियर धोती कमीज समधियाने म भेटलह की? हौ! दान - दहेजके माँग व्यवस्था तोरा नहिं लेला सँ कि दहेज प्रथा उठि जेतई ? एहि प्रश्नक जा उत्तर दैत लालबाबू ता गार्ड साहेब फेर सबाल आगू रखैत बजलाह- पुरे रेलयात्री आ ड्राइवर संगहि इंजनक' ईन्चार्य हम रहलहुँ। टीन पर चाहभेण्डर'क स्टाल सँ आगू वा पाछुए ट्रेन रोकि ओकर आमदनी बढ़य सँ बाधा कयल। पुनश्च बड़बराय लगलाह - कियो जे अपना लगक टीशन जाए ट्रेन पकड़ैत अछि से कतेक स्पिडक रेलगाड़ी होईछ तकर निठाह आंकड़ा बुझैत छैक? आगू बात झौंकैत कहलाह- हम एहन तेज गार्ड रहलौं जे अपन तेजस्वीताक बले अगूढ़ काज सब चुटकी बजाकय कए लैत छलौं।लोहियाक पेनीसन हमर बेटी छैक, तकरार लेल चानसन वर सेहो बैंक मैनेजर टेबिल शान-शौकत सँ वियाह करेलौं। से संभव कोना भेल हेतैक कहू ? लाल साहब जबाब दैत बाजल - जुड़वनकेँ के टालत! तँ फेर फटकारैत आ अवाच्य सुरे गार्ड साहेब तरैंग गेलाह। आपे सँ बाहर होइत बजलाह तों महामूर्ख छह,जे बिनु नगदी नारायणके बेटाकेँ बियाहलै। हमरा की बताह बुझै छ जे - लड़का केँ बोराबन्दी टाका सँ तौल लेलियैक। आखिर असली गार्ड साहेब कहबैत छी भौर परगनामे किनै!
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