अजय कुमार झा तिरहुतिया (संपर्क-9123062401)
मिथिला विकास परिषद: किछु सहेजल संस्मरण
It would be necessary to quote, not the history writing, but what I understood from my natural experience and contemplation, what I saw and what spontaneously came to my mind, because I have participated in many programs of the Mithila Vikas Parishad as an eyewitness (इतिहास लिखब नहि, बल्कि अपन अनुभव आ चिंतन सँ जे बुझलहुँ, जे देखलहुँ आ जे किछु सहज रूप सँ मोन पड़ल से उद्धृत करब आवश्यक होयत कारण मिथिला विकास परिषदक कतेको कार्यक्रम मे प्रत्यक्षदर्शीक रूप मे भाग लेने छी)।
समकालीन संस्था आ व्यक्तिक मूल्यांकन करब सहज कार्य नहि। निष्पक्ष रहब एक कठिन चुनौती होइत छै। अस्तु, लोक अही प्रकारक विवेचन सँ परहेज करैत अछि। कोनो संस्था सँ नहि जुड़ला वा कही सकै छी समस्त संस्था सँ समान सामीप्य वा दूरी बनेबाक कारण ई जोखिम किछु हद तक आसान होएत छै। समाज मे संस्थागत परिकल्पना अत्यंत प्राचीन जकर उद्देश्य समाजक विभिन्न समस्या के निदान होइत छै। मैथिली एक प्राचीन भाषा मात्र नहि, मैथिल समाज सेहो अति प्राचीन अछि। शासन आ समाजक विभिन्न स्वरूपक दर्शन प्राचीन साहित्य मे सर्वत्र विद्यमान। आधुनिक स्वरूप मे मैथिली समाज के संस्थागत स्वरूप आ तकर वाहक संस्था के रूप मे विभिन्न संस्थान मिथिले मे नहि वरन् मिथिलाक सीमा सँ इतर समस्त स्थान मे भेटत जहाँ मैथिल लोक जीवन-जीविका के क्रम मे प्रवासी के रूप मे स्थाई वा अस्थाई रूप स प्रवास करै छथि। एहि संदर्भ मे कोलकाताकेँ विशेष रूप सँ उल्लेख करब आवश्यक। जँ मिथिलाक बाहर मैथिली अस्मिताक खोज, सभ्यता आ संस्कृतिक तत्व, भाषा आ साहित्यक विकास स्थल के खोजल जाएत, त’ निःसंदेह कोलकाता के मिथिला संस्कृति के दोसर राजधानी मानल जाएत। विगत शताब्दीक आरंभ सँ कोलकाता मे मैथिली संस्था के विकास यात्रा निरंतर प्रवाहमान अछि। जकर उद्देश्य साहित्यिक आ सांस्कृतिक छल। बहुत रास संस्था मुदा स्वरूप लगभग समान। एहि संदर्भ मे अष्टयाम मंडली सँ पंजीकृत साहित्यक संस्था धरि जे periodically विभिन्न कार्य केलनि आ प्रवासी मैथिल के मेल-मिलाप केंद्र के रूप अपन प्रमुख योगदान देलनि। बहुत रास ठोस साहित्य कार्य सेहो भेल। कालजयी साहित्यक रचना आ प्रकाशन, कोलकाताक योगदान के मैथिली भाषा आ साहित्य मे अविस्मरणीय बना देलक। लेकिन सामाजिक जड़ताक प्रभाव या जीवन-जीविका के व्यस्तता कोनो नव सिद्धांत गढ़लक से बात नहि। किछु भाषा आंदोलन राष्ट्रीय स्तर पर सेहो भेल जाहि मे पूर्व मैथिली मनस्वी लोकनिक त्याग स्तुत्य। मुदा लगभग सब संस्था व्यक्तिवादी गरिमा सँ पोषित आ अल्पजीवी साबित भेल। अल्पजीवी सँ तात्पर्य उत्कर्ष काल सीमित।
अही संदर्भ मे मिथिला विकास परिषद एक नव मानक प्रस्तुत केलक। व्यक्तिवाचक संदर्भ मे स्थापित ई संस्था 1980 के दशक मे स्थापित भेल आ अनवरत रूपे मैथिली आंदोलन मे सहयोगी रहल। संभवतः मिथिला-मैथिलीक चेतना सँ संबंधित मिथिला-मैथिलीक प्रथम संस्था जे कोलकाता मे भाषा-साहित्य आ सांस्कृतिक आंदोलन के राजनीतिक चेतना प्रदान केलक। एहि परिप्रेक्ष्य मे संस्थाक सर्वकालिक अध्यक्ष श्री अशोक झाक व्यक्तिगत राजनीतिक जीवन विशेष सहायक सिद्ध भेल। संस्थाक मूल्यांकन मे हुनका द्वारा कैल कार्य, कार्ययोजना के मुखर रूपे प्रस्तुति आ जनसमर्थन मुख्य होइ छै। मिथिला विकास परिषद, मैथिली बजनिहार समस्त लोक के मैथिल मानैत हुनक संस्था मे प्रवेश कराओल। एहि सँ संस्था के विकास संगहि व्यापक जनसमर्थन, व्यवस्था (राजनीतिक ओ सामाजिक दुनु) के लेल pressure Group (दबाव समूह) के रूप मे काज करै छै। परिषद द्वारा आयोजित कलश यात्रा जे ऊपरी तौर पर एक धार्मिक आयोजन लेकिन ई महाराष्ट्र मे लोकमान्य तिलक के गणपति उत्सवक समान कोलकाता के स्थानीय समाज ओ राजनीति मे महत्व राखै छै। आयोजन मे उमड़ल भीड़ प्रत्यक्ष वा परोक्ष रूप मे मैथिली उपस्थिति के एक राजनीतिक आधार प्रदान करै छै। संस्था के वार्षिक आयोजन अपन भव्यता नहि वरन् जन-उपस्थिति के कारण अद्वितीय।
कोलकाता मे सांस्कृतिक प्रतीक प्रहरी गिरीश पार्क मे विद्यापति के प्रस्तर प्रतिमा, सियालदह फ्लाई ओवर के नामकरण विद्यापति सेतु आ एहि सँ सलंग्न विद्यापतिक प्रतिमा, तारा सुंदरी पार्क मे नागार्जुन के प्रस्तर प्रतिमा, भूतनाथ मंदिर के समीप मुख्य सड़क पर विद्यापति के प्रतिमाक अनावरण सामान्य उपलब्धि नहि। अनवरत मैथिली भाषा आ समाज के मिथिला सँ बाहर कोलकाता मे परिचिति प्रदान करै छै। राजनीतिक उठा-पटक के बीच किछु बात संस्था मे अवश्य छै जे अतीतक वामपंथी शासन आ वर्तमान तृणमूल सरकार के समय मे सहो मैथिलीक स्मारक स्थापित करा लैत अछि जकर श्रेय संस्था सँ अधिक अशोक जी के देनाए अनुचित नहि। "मिथिला विकास परिषद माने अशोक झा आ अशोक झा माने मिथिला विकास परिषद"- ई कोलकाता के गैर-मिथिला भाषी के मानब।
मैथिली समाजक छोट-छोट समस्या के समय-समय पर मुखर रूप सँ परिषद द्वारा उठाओल गेल। कोलकाता सँ मिथिला जेबाक वास्ते ट्रेन सेवा लेल आंदोलन, पत्राचार, धरना सभमे परिषद अग्रणी रहल। केवल मिथिले विकास परिषद नहि, आनो संस्था सभ सेहो प्रयास केलक लेकिन समय के साथ आन-आन व्यक्ति वा संस्था शांत भ’ गेला लेकिन अशोक झा लगाम धेने रहला। संस्था के कार्यसूची मे ताबत धरि रखला जाबत सफल नहि भ’ गेल। ई बात संस्था के दोसर संस्था सँ फ़राक बना दैत छै। किछु लोक के कहब जे अशोक जी काजक Credit लेब’ जानै छथि। हम एहि के हुनक सबसँ पैघ गुण मानै छी, कारण Credit केर बहन्ने सही काजक प्रति तत्परता राखै छथि। एहि संदर्भ मे गंगासागर एक्सप्रेस, मिथिलांचल एक्सप्रेस, कोलकाता जयनगर एक्सप्रेस, हावड़ा रक्सौल एक्सप्रेस आदि अन्य-अन्य रेल परिचालन उल्लेखनीय अछि।
अशोक झा स्वयं एक रंगकर्मी, नाट्य लेखक आ निर्देशक। साहित्य के आन-आन विद्या मे सेहो अपन उपस्थिति दर्ज करेने छथि। समय-समय पर संस्था द्वारा विभिन्न साहित्यिक गतिविधि के सफल आयोजन तकर प्रमाण। मैथिली भाषा आ साहित्य के भारत आ कोलकाता के आन भाषा और साहित्य के संग प्रतिस्थापित करबाक उद्देश्य सँ बहुभाषी साहित्य गोष्ठीक आयोजन सेहो संस्थाक सराहनीय प्रयास। पूर्व मे भारतीय भाषा परिषद आ मैथिली अकादमी द्वारा जोरदार आवाज मुखरित करब अशोक झाक विलक्षणता आ संस्थाक उपलब्धि मानल जा सकैछ।
This does not mean that it is unique or cannot be done by anyone else, but what is seen in its natural form is praiseworthy and important in the context of the time. (एकर तात्पर्य ई नहि लेल जाए कि ओ विशिष्ट छथि, केकरो दोसर द्वारा ई नै कैल जा सकैत अछि, लेकिन जे अपन सहज स्वाभाविक रूप मे देखाइ दै छै, ओ समकालीन संदर्भ मे प्रशंसनीय आ महत्वपूर्ण अछि।)
वर्तमान मे पश्चिम बंगाल हिंदी अकादमीक सदस्यक रूप मे मैथिलीक मुखर आवाज आ अकादमीक कार्यक्रम मे मैथिली भाषाक स्थान भेटब, अशोक जी के इच्छाशक्तिक कार्य रूप मे परिणति। व्यक्तिगत विरोध फराक मुदा, हम स्वयं संस्था के बहुत रास बात आ अशोक जी के कार्यशैली सँ वैचारिक रूपे पूर्ण सहमति नहि जता पाबै छी। मुदा एहि कारणे किनको योगदान के, श्रेय के, उपलब्धि के सकारात्मक आलोचना वा सराहना सँ वंचित करब कि बौद्धिक परिपक्वता मानल जा सकै छै? समग्र आ सतत विकास जे सामाजिक मानदंड पर सकारात्मक प्रतिबिंब प्रस्तुत करै, ओ ईर्ष्या द्वेष के परिधि स बाहर भ' जाएत अछि। निश्चित रूपे आन-आन संस्था के मिथिला विकास परिषद वा अशोक झा सँ द्वेष हेबाक चाही ताकि ओ अपन पैघ डरीर खीचि समाजक विकास यात्रा मे सहयोगी बनि सकता। लेकिन केवल विरोध लेल, हमरा ओ नीक नहि लागै छथि, हमर जश नहि होब’ देता अही कारणे कोनो व्यक्ति आ संस्था के एक दोसरा सँ सौतिनिया डाह राखी समाजक विकास यात्रा मे बाधक नहि हेबाक चाही। ई बात चाहे मिथिला विकास परिषद हो वा कोनो अन्य संस्था समान रूपे विचारणीय। समाज के विकास के जिम्मेदारी सबहक, संस्था एक समूह के रूप मे एकर अधिक प्रभावी निष्पादन क' सकता तै हुनका सँ अनुरोधो बेसी।
मिथिला विकास परिषद 1983 सँ अशोक झाक नेतृत्व मे अपन कार्यक्षेत्र प्रवासी मैथिल धरि सीमित नहि राखैत एकरा राष्ट्रीय स्वरूप मे परिणत कैल। मैथिली भाषा के भारतीय संविधान के आठम अनुसूची मे पंजीकृत लेल दीर्घ आंदोलन संपूर्ण मिथिला आ मिथिला के बाहर आन-आन संस्था द्वारा कैल गेल लेकिन मिथिला विकास परिषदक आवाज सर्वाधिक मुखर आ योगदान सर्वोपरि रहल अछि। एहि संदर्भ मे संस्थाक अध्यक्ष अशोक जीक राजनीतिक सक्रियता विशेष सहयोगी साबित भेल। मिथिला के मास्को नाम सँ परिचित मधुबनी जिला क’ बरहा गाम के पर्याय कामरेड भोगेंद्र झा (भोगी भगवान) के भातिज आ आरंभिक काल मे बंगाल मे वामपंथी शासन रहितहुँ अशोक जी कांग्रेसी विचारधाराक’ पोषक। छात्र जीवन मे युवा कांग्रेस के प्रखर आवाज आ युवा वयस सँ कांग्रेस बाद मे तृणमूल कांग्रेस केलनि। सांसद सुदीप बंदोपाध्यायक सानिध्य के लाभ उठाबैत ओ अटल बिहारी बाजपेयी के शासनकाल मे एहि मुद्दा के संसद मे उठौलनि आ कामरेड भोगेंद्र झा सेहो एकर प्रखर आवाज छला। अंततः मैथिली भारतीय संविधान के मान्यता प्राप्त भाषा के रूप मे मान्य भेल। एकर लाभ एक फराक विषय लेकिन संस्था एहि तिथि के प्रतिवर्ष अधिकार दिवस के रूप मे पालन करैत अछि। आन व्यक्ति वा संस्था के महत्व नकारल नहि जा सकै छै मुदा क्रेडिट लेबाक भीड़ मे मिथिला विकास परिषद के कतिऔल नहि जा सकैछ।
What are his expectations from politics, how much he is accepted or rejected in his personal life, how relevant he is and to whom, these may be a different issue but as the carrying power of any institution, he is exemplary and his work in the interest of society has a positive background in the human definition. (राजनीति मे हुनक की अपेक्षा छनि, व्यक्तिगत जीवन मे कत’ कतेक स्वीकृत वा अस्वीकृत छथि, किनका लेल कतेक प्रासंगिक छथि, ई एकटा अलग मुद्दा भ’ सकैत अछि, मुदा कोनों संस्थाक चालक शक्तिक रूप मे ओ अनुकरणीय छथि आ हुनकर काज मानवीय परिभाषा मे समाज हित मे सकारात्मक पृष्ठभूमि लेने अछि)।
आइ दरभंगा, मधुबनी, सीतामढ़ी सहित एक पैघ रेलवे नेटवर्कक परिधीय स्टेशन पर मैथिली मे सूचनाक प्रसारण हर्ष प्रदान करैछ, लेकिन ई यात्रा सहज नहि छल। धरना, प्रदर्शन सभ भेलै, अखिल भारतीय मैथिली आंदोलन मे मिथिला विकास परिषदक भूमिका अग्रिम श्रेणी मे छल। स्वयं अशोक जी अपन सहयोगीक संगे कोलकाता सँ मधुबनी, समस्तीपुर, दरभंगा, सीतामढ़ी सर्वत्र आंदोलनी भीड़क हिस्सा रहल छथि। विभिन्न शहर सँ मिथिलागामी ट्रेन मे साफ-सफाई, बुनियादी सुविधा, स्टेशन परिसर के विकास हेतु रेल मंत्रालय के बेर-बेर पत्र लिखलनि, प्रतिनिधि मंडल संगे विभिन्न कार्यालयी पदाधिकारी सँ मेल-जोल, ज्ञापन प्रेषित आदि बहुत रास प्रयास करैत रहला जे निश्चित रूपे समालोचनात्मक नजरि सँ देखबाक चाही ताकि हुनका प्रोत्साहन भेटतनि आ भविष्य मे मिथिला-मैथिली वास्ते नव ऊर्जाशक्ति सँ किछु आर मुखर भ’ समाजोत्थान के वाहक बनता। मिथिला विकास परिषदक नेतृत्व करैत अशोक जी मिथिला-मैथिली लेल किछु जिद्दी, सनकी तेवर अख्तियार सेहो करै छथि। मिथिलाक विभूतिक स्मरण के जेना ओ अवसर खोजि कार्यक्रम निर्धारित करै छथि। समकालीन के महत्व सेहो, सहयोगी के सेहो सम्मान लेकिन व्यक्तिगत अनुभव सँ लागल जे ओ सुच्चा स्वाभिमानी आ तै किनको धारे झा नहि मानै छथि। शायद जीवनक पैघ भाग बंगाल आ ओहो बड़ाबाजार के रवीद्रनाथ ठाकुर के जन्मस्थली जोड़ासांको सँ सटल तैं ओ हारे को हरिनाम के अनुयायी नहि बल्कि "जदी तोर डाक सुने केओ ना आसे तबे एकला चलो रे" के अनुगामी। वर्तमान मे महाराज दरभंगा कामेश्वर सिंह के प्रतिमा के अनावरण आ सौंदर्यीकरण ओहो कोलकाता के हृदयथली डलहौसी के लालदिघी मे राइटर्स बिल्डिंग के सामने, हुनक नव जिद्द। एहि क्रम मे ओ कार्यालय आ नेता, मंत्री स्तर पर जे प्रयास केलनि तकर चरम जे पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री ममता बनर्जी सँ सेहो एहि प्रसंग मे ओ पत्राचार, व्यक्तिगत मुलाकात, प्रतिनिधिमंडल द्वारा ज्ञापन आदि बहुत किछु क’ चुकला आ आगामी दिन मे सफलता अवश्य भेटनि से उम्मीद कैल जा सकैत अछि।
व्यक्तिवाचक लेखन हेतु लेखकीय वस्तुनिष्ठता अपेक्षित, अन्यथा ओ चारण प्रवृतिक आ ऐतिहासिकता सँ दूर होमय लागैत छै। मिथिला विकास परिषदक कार्य सकारात्मक ऊर्जा संपन्न लेकिन निश्चित रूपे सहज मानव स्वभाव के अनुरूप नकारात्मक ऊर्जाक समावेशिता संभव। लेकिन कोनो व्यक्ति आ संस्था के मूल्यांकन केवल सकारात्मक बा नकारात्मक टिप्पणी के संग एकतरफा नहि कैल जा सकैछ। सकारात्मकता आ नकारात्मकता के दुनू पलड़ा पर राखि जँ विवेचना करी त संस्था एक सार्थक उपस्थिति दर्ज करेबा मे सक्षम। हमर व्यक्तिगत विचार जे- "वर्तमान मे व्यक्ति गरिमाक पतन संस्थाक चरित्र के सेहो अक्षुण्ण नहि राखि पाबै अछि संक्रमण के एहि काल मे अस्तित्व संरक्षण एक पैघ चुनौती लेकिन मिथिला विकास परिषद एहि विषम युगबोध के धरातल पर अपना के दोसरा सँ फराक करैछ जाहि मे कोनो द्विघा नहि। एहन कर्मठता, दीर्घजीवी, निरंतर प्रवाहमान संस्थाक सामाजिक कार्यक प्रति उत्कट जिजीविषा वर्तमान मे सहज नहि भेटत। निकट भविष्य मे अशोक जी आ मिथिला विकास परिषदक किछु नव संकल्प के रूप लैत देखबाक उत्कंठा के संगहि प्रतीक्षारत!" (At present, the decline of individual dignity cannot keep the character of the institutional intact. Survival preservation is a major challenge in this period of transition but Mithila Vikas Parishad distinguishes itself from others on the ground of this odd era. No doubt, such hardworking, long-lived, continuously flowing passion for social work will not be easily found in the present. Looking forward to seeing some new resolutions of the Ashokjee and Mihila Vikas Parishad take shape in future.
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