प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका

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निर्मला कर्ण (१९६०- ), शिक्षा - एम. ए., नैहर- खराजपुर, दरभङ्गा, सासुर- गोढ़ियारी (बलहा), वर्त्तमान निवास- राँची, झारखण्ड। झारखंड सरकार महिला एवं बाल विकास सामाजिक सुरक्षा विभागमे बाल विकास परियोजना पदाधिकारी पदसँ सेवानिवृत्ति उपरान्त स्वतंत्र लेखन।
(अग्नि शिखा मूल हिन्दी- स्वर्गीय जितेन्द्र कुमार कर्ण, मैथिली अनुवाद- निर्मला कर्ण)
 

अग्निशिखा खेप -३७
पूर्व कथा
राजा पुरूरवा आ उर्वशी मेमना के आर्तनाद सुनि जागि जाइत छथि। देखैत छथि जे उर्वशी के दुनू मेमना के संग लs एकटा दस्यु भागि रहल अछि, ई देखि दुनू गोटे डेरा जाइत छथि।
 

आब आगू
राजा पुरूरवाक आँखि सs निन्न विलुप्त भs गेल छलनि,मुदा आलस्य किछु-किछु बाँचल छल।उर्वशी के चित्कार सुनि स्थितिक बोध होइतहि हुनकर ह्रदय काँपि गेलनि। ओ भयभीत भs गेलथि,कारण हुनका मेमना सभक संबंध मे उर्वशीक शर्त स्मरण भs गेलनि। हुनका लेल दुनू मेमना केँ ओहि दस्यु सभ सs बचा कs आपस आनब अत्यंत आवश्यक छलनि। मेमना के बचाबs के वास्ते अपन सुधि-बुधि विसारि ओ अपन हाथ में तलवार लs कs दौड़ल दस्यु के पाछू लागि गेलाह। घबड़ाहट में वस्त्र पहिरब सेहो मोन नहि पड़लनि हुनका ।
किछु आगू गेला पर ओ देखलथि जे दूटा दस्यु छल,दुनू गोटे एक-एक मेमना अपन हाथ में लs कs भागि रहल छल। राजाक हाथ में तलवार देखि ओ दुनू मेमना केँ जमीन पर राखि देल,तखन किछु क्षण ओ ओतहि ठमकि कs ठाढ़ भs गेल।
ताबत धरि उर्वशी सेहो लग में पहुँचि गेल छलथि।तखनहि अचक्के ओ असंभाव्य अलौकिक घटना घटित भs गेल।अन्हार के बेधैत चमकदार विद्युत प्रकाश ओहि एकांत वन के सम्पूर्ण क्षेत्र के जगमग रोशन कs देलक आ राजा के नग्न रूप उर्वशी के आँखि के समक्ष चमकि उठल छल ! बस किछु क्षण! तत्पश्चात पुनः सब किछु अन्हार में विलुप्त भs गेल।
ई सब अपन नेत्र के समक्ष होइत देखि उर्वशी के सर्वांग काँपि उठल।ओ अपन दुनू हाथ छाती पर राखि सिसकि उठलथि।
"हा दैव!"
ओ अपन दुनू हाथ सs हृदय केँ दृढ़ता सs दाबि रहल छलीह,हुनक प्रयास छलनि
,हुनक हृदय बाहर निकलि भूमि पर लोटि धूल-धूसरित नहि भs जानि । हुनक ज्ञान चक्षु खुजि गेल छलनि। संपूर्ण घटना के पाछु रचल गेल रहस्यक छद्म जाल हुनका बुझबा में आबि गेलनि। विश्वावसु! हुनक धर्म पिता के द्वारा हुनका संग छल भेल छलनि!ओ बूझि गेलथि! इन्द्र विश्वावसु के माध्यम सौं हुनका संग छल कs देलथि ! कारण ओ दुनू दस्यु केँ चीन्हि गेलथि । भला ओ अपन धर्मपिता के कोना नहि चिन्हितथि!ओ दुःखित भय राजा सँs बजलीह - .
"प्रियतम,ई दुनू दस्यु विश्वावसु आ हाहा छलथि! गंधर्व राज आ हुनकर सहायक ! दुनू गोटे अपना सभ संग योजना बना कs छल कयलथि। अहाँक आ हमर मात्र एतबहि दिनक संग-साथ छल संभवत:! आब हम जा रहल छी,अहाँ अपन ध्यान राखब प्रियतम!"
क्षण भरि लेल एकटा तेज ज्योतिपुंज आकाश में चहुँ दिशि पसरल आ किछु क्षण चम-चम चमकि विलुप्त भs गेल संगहि विलुप्त भेली राजाक प्राणप्रिया हुनक धर्म संगिनी! प्राण संगिनी उर्वशी !
घबराहट मे पुरुरवा अपन प्रियतमा केँ अंतिम विदाई तक नहि दs सकलाह ! ओ चकित आ दिग्भ्रमित भs कs ठाढ़ रहि गेलथि। किछु क्षण धरि हुनकर इन्द्रिय शून्य भs गेलनि जेना। फेर ओ चिहुँकि उठलथि! जेना स्वप्न भंग भs गेल होनि, अचक्के ओ पीड़ा भरल स्वर में क्रंदन करs लगलथि - "प्रिये,हमरा छोड़ि नहि जाऊ! एतेक निष्ठुर नहि
बनु! एतेक क्रूर व्यवहार नहि करु! हमरा छोड़ि कs नहि जाउ...हमरा छोड़ि कs नहि जाउ... उर्वशी... उर्वशी..."
कहि-कहि उच्च स्वर में विलाप कs ओ भूमि पर बिलखति खसि पड़लथि । हुनकर चेतना विलुप्त भs गेल छलनि। बहुत काल धरि ओ अचेतावस्था में भूमि पर परल रहलथि।
पुनः जखन पुरूरवाक चेतना आपस आबि गेलनि,आ ओ आँखि खोललथि तखन भुवन भास्कर धरतीक सतह के चुम्बन लs रहल छलथि। सघन वन्य प्रांत में सूर्यक प्रकाश आ छायाक बीच लुका-छिपीक खेल चलि रहल छलनि। राजा विकल विह्वल भेल उठि कs बैसि छलाह। तखन ओ अपना के नग्न देखि आश्चर्यचकित भs गेलथि ।ओ अपन अधोवस्त्र के तलाश करय लागलथि । हुनका अपन वस्त्र पाषाण शिला के लग में राखल भेटलनि,ओ पहिर लेलथि।ओ मोन पाड़बाक प्रयास करय लागलथि जे कोना ओ एहि वन में पहुंचल छलथि। तखन देखलथि जे एकटा मुद्रिका भूमि पर पड़ल अछि,ओ ओकरा उठा लेलथि। उठा कऽ ध्यान सौं देखलथि।ओहि पर राजाक अपन नाम उकेरल छल।राजा मुद्रिका देखि आश्चर्यचकित भs गेलाह -
'ई मुद्रिका ? ओ प्रेम सँ अपन प्रिया उर्वशी केँ स्वर्ग में दs देने छलथि प्रणय चिन्ह के रूप में! एतय कोना खसि पड़ल अछि ?
मन मे विद्युत तरंग लहरा गेलनि,रातिक घटना चलचित्र सन् आँखिक सोझाँ चमकय लगलनि,ओ दर्द आ दुःख सँ विचलित भs गेलथि,हाथ सँs अपन छाती दबाओल आ पुनः क्रंदन कs उठलाह -
"उर्वशी... उर्वशी... प्रियतमे! हमरा छोड़ि किएक चलि गेलहुँ! नहि! अहाँ हमरा छोड़ि नहि सकैत छी!अहाँ एतेक क्रूर कोना भ
' सकैत छी!"
ओ बिलखि-बिलखि कs कानि-कानि उर्वशी केँ आवाज दs रहल छलथि। कानैत-कानैत अचक्के ओ विक्षिप्त सन् हँसs लगलथि । हुनक हँसीक ओ आवाज! अत्यंत भयंकर आवाजक गूँज! बुझाइत छल जेना सुखायल-फाटल बाँस सँs भs कs जाइत होय आवाज! ओ आवाज शून्य वन क्षेत्र मे गूँजि उठल। पुरूरवा विचलित भs गेलथि ।ओ क्रोधित भs कs चिचिया उठलथि ।-ओ माथक केश जोर-जोर सँs नोचय लगलथि ।ओ माथक केश शक्ति लगा कs नोचि उखाड़बाक असफल प्रयास करय लागलथि ।ओ केश नोचैत रहलथि, चिचियाइत रहलथि,आ पुनः चेतना विलुप्त भs गेलनि।आ ओ चेतनाहीन भs भू-लुंठित भय गेलथि किछु-किछु विक्षिप्त सन!

*****


सूर्यक तप्त किरण अपन तीक्ष्ण गरम स्पर्श सs पृथ्वी केँ उद्वीप्त करय लागल छल। मुदा उर्वशी आ राजा पुरूरवा एखन धरि राजमहल आपस नहि पहुँचल छलाह। राज कर्मचारी गण के चिन्ता बढ़य लागल छल। महामात्य राजाक अनुपस्थिति सँ अत्यंत चिंतित छलाह। एकर कारण छल! एक महीना सs बेसी काल सs राजा राजमहल में छलाह,ओ कतहु बाहर नहि गेल छलथि। आ काल्हि अचक्के रथ लs भ्रमण हेतु महारानी संग निकसि गेल छलाह। कतय जा रहल छथि आ कखन आपस अओताह,एकर कोनो जानकारी किनको नहि छल।
राजधानी के निकटस्थ सब प्रसिद्ध वनस्थली जतह सम्राट के जयवाक कनेको संभावना छल ओ सेनापति के नेतृत्व में सेना के अनेक टुकड़ी सम्राट अथवा महारानी के अन्वेषण हेतु पठा देलखिन। किनको किछु ज्ञात नहि छल जे सम्राट राति में कोन वन में गेल छलथि। सब निराश भs कs आपस आबि गेल। जेना-जेना सैनिक सब आपस आबि रहल छल आ सम्राट एवं महारानी के नहि भेटवाक संबंध मे हुनका लोकनि सँ सूचना भेटि रहल छलनि, महामत्यक व्यग्रता आ चिन्ता बढ़ल जा रहल छलनि। दिवस ढललाक उपरान्त कुमार वन दिस जे रथ गेल छल से स्वयं सेनापति केँ लs कs आपस आबि गेल। सब के बुझायल राजा एवं महारानी ओम्हरहु नहि भेटलथि,सेनापति निराश भय आपस आयल छथि,मुदा जखन रथ राजमहल लग रुकि गेल,सब आश्चर्यचकित भs गेलथि रथ में देखि कs। किएक तs हुनका लोकनिक राजा ओहि रथ मे बैसल छलाह। मुदा महाराजक ई दुर्दशा कोना भेलनि! हुनक ई हाल कोन कारण सौं भेलनि! कोन एहेन मानुस अथवा कोनो देव-दैत्य छल जेकरा कारण हुनकर ई हाल भेल छनि?
राजा पुरूरवाक हाल अत्यंत करुण छल,हुनक हालत देखि सबहक आँखि में नोर भरि गेल छलनि। ओ बताह सन् भs गेल बुझाइत छलथि!मुदा किएक? एहि प्रश्नक उत्तर किनको लग नहि छल। महारानी गेल रहलथि संगे,मुदा एखनि नहि छथि राजाक संगे।महारानीक संग कतs छूटि गेलनि! ओ संग किएक नहि छथि! अंत:पुर में महारानीक अन्वेषण कएल गेल मुदा रानी ओतहु नहि भेटलीह।
सब कियो अत्यंत चिंतित भs गेल छलथि। की रानीक अनुपस्थिति राजाक मानसिक अवस्थाक कारण छल? मुदा ओ कतय चलि गेलीह? काल्हि दुनू गोटे एक संग बाहर निकलल छलथि,राजाक स्थिति एहन कोना भ' गेलनि ? की रानी राजा केँ छोड़ि स्वर्ग चलि गेलीह? एहन अनेकों प्रश्न सबके हृदय में उठि रहल छलनि मुदा एहि सब प्रकार के कोनो प्रश्नक उत्तर ककरो लग नहि छल।रानी के अनुपस्थिति आ राजा के दयनीय स्थिति देखि सब कियो अत्यंत दु:खी भs गेलाथि।
अवचेतन अवस्था में राजा केँ देखि महामत्य ओहि रथ मे आबि रहल सेनापति सँ पुछलथि
-

"महाराज के एहन हालत कोना भs गेलनि ?"
"हमरा सेहो किछु नहि बुझल अछि महामत्य! हम हिनका कुमार वन में अचेत अवस्था में भूमि पर पड़ल देखलहुँ,तखन हिनका रथ में एकटा सैनिक के मददि सs बैसा कs कोनहुना आपस अनलहुँ।"
एकर बाद कियो किछु नहि कहि सकल,कारण राजा एहि हालत में कोना आबि गेलाह आ रानी कतय चलि गेलीह से किनको नहि बुझल छलनि। सब गोटे राजा पर ध्यान देब नीक बुझलथि।राज वैद्य के बजाओल गेल आ राजा के चिकित्सा प्रारंभ भs गेल।मुदा कोनो चिकित्सा के किछुओ उपयुक्त प्रभाव राजा पर नहि देखा रहल छल,हुनकर हालत में कनिको सुधार नहि भs रहल छल।
राज वैद्य कहलथि - "किछु गंभीर आघात के कारण महाराज के मोन विक्षिप्त सन भs गेल अछि, ओ संसार आ स्वयं अपना प्रति निर्लिप्त भs गेल छथि हुनका आब कियो स्वस्थ नहि बना सकैत अछि |"
सब उदास भs गेलथि।एतेक पराक्रमी आ महान राजा के ई हाल? आब की होयत! जँs एहन महान चक्रवर्ती सम्राट के हाल नहि सुधरतनि! की राजा आब कहियो ठीक भs सकैत छथि ! की पृथ्वी केँ कहियो पूर्व सम्राट पुरूरवाक शासन पुनः भेटि सकैत अछि ? सब प्रश्न अनुत्तरित रहल! किनको एहि में एको प्रश्नक उत्तर ज्ञात नहि छल! मात्र समय ओकर उत्तर दs सकैत अछि!

क्रमशः

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