प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका

विदेह नूतन अंक
वि दे ह विदेह Videha বিদেহ http://www.videha.co.in विदेह प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका Videha Ist Maithili Fortnightly ejournal विदेह प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका नव अंक देखबाक लेल पृष्ठ सभकेँ रिफ्रेश कए देखू। Always refresh the pages for viewing new issue of VIDEHA.

कुमार मनोज कश्यप

लघुकथा- अछिंजल

एम्हर स्कूल के छुट्टी के घंटी की बाजल; सभ बच्चा अपन-अपन वस्ता समेटैत बेछोह घर दिस पड़ायल। चौड़ तक पहुँचिते एका-एक पैघ-पैघ बुन्नी संग टिक्कर बरिसब शुरू! भिजबा सs बचबा लेल सभ आओर जोड़ सs दौड़ैत-दौड़ैत एकटा घर लग जा क्षणिक विरमल तs मुदा अछोपक घर जानि फेर सs पड़ाइते रहल। अस्थमा पीड़ित ओकर साँस फूलs लगलगलै आ तैं आगू दौड़बा मे अक्षम .... विवश ओतहि ठाढ़ रहि गेल ओ। गामक बाहर ई अछोप के घर छै आ मैयाँ कहै छै जे ओकर छाँहों सs लोक छुआईत छै प्राण-रक्षाक वा धर्म-रक्षा ...... एक दिस पोखरि दोसर दिस ईनार ...... महान धर्म-संकट अनायासे ओ मूसलाधार बरखा बुन्न सs अपना के आर बचेबाक प्रयास मे दाबा पर चढ़ि भीतक देवाल मे सटि गेल। ताबते आँगन सs एकटा स्त्रीगण के सूप ओढ़ने अपना दिस अबैत देखि ओ डsरे थड़-थड़ कापय लागल। लगलै ओ गंजन करतै जे हमर दाबा ढ़हि जैत आ एतs s बैला देत। ओ डेराईत-डेराईत दाबा सs स्वयं निचा उतरिते रहै कि ओ स्त्री बजलै - 'बाऊ! बलू अँगना मे असोरा पर आ जाऊ.... हियाँ नईं बाँचब .... बोदरि भs जैब। डेराऊ नईं ....... अपना घर जा के गंगा-जल छीटि पवित्र हो जैब! जान बचल तs लाख उपाय! आहाँ आऊर सुकुमार लोक भीजब तs बेराम भs जैब।' ओ बिनु किछु बजने ओहि स्त्री के देल सूप ओढ़ि झटकारैत ओकर पाछू-पाछू ओसारा पर चढ़ि मोख पजिया कs ठाढ़ भs गेल। बाहर झहरैत बरखाक बून्न आ अंतस मे हौंड़ैत मैयाँ के कथन .... निर्विकार ओ अपलक शून्य मे ताकैत रहि गेल!

 

अपन मंतव्य editorial.staff.videha@gmail.com पर पठाउ।