प्रमोद झा 'गोकुल'
नौक
भोरमे सुरुजक ललका चक्का निकलै से पहिनै राजाक निन्न टूटि जाइ छलै,से आइ
जखन दिनकरक ललकी किरिन खिरकी दने पू-झात खेलाय लगलै तखन जाके टुटलै।पजड़ाक
दुनू कात नव बिवाहिता पत्नीके तकलक ते ओ निपत्ता । मोन खौंझा उठलै। कहूते
इहो कविता हद्द छथि।अपने सङ हमरो उठा दितथि ते की होइतनि? चुप्पे चाप
गिरथैन बनैले ससरि गेली। घर से बहराइत देरी औझका ब्रेकिंग न्यूज ते हमहीं
बनब! तैसे हुनका की?
धरफराके राजा देह पर से ओढ़ना हटाके चारू कात निहारलक ते देखैए टेबुल पर
गिलासमे पानि आ कपमे छलियैल चाह अपन स्वभाव भफियैबोक छोड़ि चुकल अछि। आब की
करत ओ? उत्तर भेटलै चाहके बेसिनमे फेकिके पानि ढकोसू! फेर मोन कहलकै से ते
बड्ड बेस ।मुदा, भोरका चाह फेकनाइ कहुँ आजुक दिन खोचाह ने क'दिए ! आखिर करू
की? सरायल चाह घोंटलो ते नै जायत!फेकबहक कथीले ? कनियाँके जा के कहूनगे जे
यै कने गरमाके दिय! भीतरसे टोकार मारलकै -नै हौ बाबू! के बिढ़नीक खोताके
खोचारय? भैया आ बाबू अङनेमे हेताह!मम्मीके ते नै कोनो डर मुदा भैया आ बाबू
••••???
एतबा सोचैत देरी मोन फकसे रहि गेलै।जे हेतै से हेतै।सामना ते करैयेके
पड़तै।जँ आब कनियों विलम्ब केलौं ते आफद भ'जायत ।बाबू ते जे से भैया टाहि
मारिये देताह।हुनको बाबूक सामने हमरा सतबै मे खूब मजा अबै छैन।तेँ दरबज्जा
फोलि बाहर भैए जाइ सैह नीक।
जैह ओ सोचने छल सैह भेलै।ओसारा सँ निच्चाँ उतरैत देरी भैया इसारा करैत
बाबूसे कहलखीन -उठिते गेल अहाँक राजा बेटा बाबू!
- वाह!वाह !! गुलबिया निन्न टूटि गेलह की? हद्द करै छह तहूँ ! कहहते ई बेर
कहूंँ मनुखक उठै छियै?
-सुतली राति तक परहैत लिखैत रहैत हेतै ,तेँ भोरमे मोन असकता गेल
हेतै।प्रतियोगी परीक्षा पास केनाइ आइ कैल ऐ लोकक लेल कतेक कठिन भ' गेलैए से
नै बुझहै छियै! भैया हमर बचाब मे बजलाह।
- जँ से बात छै ते नै कोनो बात। मुदा, दिन मे ते कखनो पोथी उनटबैत नै देखै
छियै?
- अहाँ भैर दिन इस्कूल मे रहै छियै आ भैया आफीस मे,तखन कोना के देखब! मम्मी
से पूछि लियौ जे हम भरियो दिन की सब करैत रहै छी!राजा नम्र होइत बाजल।
-ओ ते तोरे पक्ष लेथून! गजोधर बाबू बजलाह।
- तखन हम अपन सफाइ मे की कहू!
- हौ बाबू! कहै सुनैक बात नै।ई आरक्षणक जवाना छियै।चालीस पचास बला बाजी
मारि लैत छै आ अस्सी नब्बे बला मूहँ तैकते रहि जाइत आछि।तेँ मेहनत जमिके
करह आ अपन सम्यक लक्ष्य पाबह! अन्यथा समय अछैते कोनो दोसर बाट धय लैह।
-एना नै उत्साह भंग करियौ बाबू! लगनसील अहिना रहतै ते कतौ ने कतौ बाजी
मारिये लेतै।जावत उमेर छै ताबत लागल रहय दियौ। बेसी चिंता जँ कपार पर लदबै
त ने अइ पार रहत आ ने ओइ पार।
-आन तरहक कथूक चिंता हम कहाँ दै छियै हौ! मात्र एतबे कहै छियै जे कोनो तरहे
बेरा पार कर! समय केहन दुरकाल जा रहल छै से नै देखै छहक! सुविधा बला ते
सरकारी नोकरीले लिल्लो लिल्लो भेल छै आ असुविधा बलाक लेल ते सगरो अन्हारे
अन्हार।
-हँ से ते ठीके कहै छियै।एखन ते अहाँ सोलहो कला ल' के छियै आ कतेक दिन
समहारबै। मुदा मुदा एखन से सब सोचक नै छै।मेहनतक फल भगवान देथीन।जो रौ बौवा
चाह पीबिके फ्रेस भ, जो! कनियाँ हाथमे कप लेने ठाढ़ि छथून।
मूड़ी उठाके राजा केश झटकारलक आ बिदा भ' गेल भनसा घरक ओसारा पर चाह पिबैले।
कनियाँक हाथसे चहक कप लैत उलहन भरल स्वरमे ओ बाजल -अपना सङे हमरो उठा दितौं
से नै! जे सूतिके उठैत देरी एतेक रमैन आ महाभारत हमरा सूनय पड़ल।
-से हम की करितौं ! रैतियो भैरते अहाँ पैढ़ते लिखते रहै छियै। भोरहरबमे
जाके सूतल छलौं,तखन हम कोनाके उठा दितौं!दोसर बात जँ अहाँक निन्न हम तोड़ि
दितौं ते हमहूँ तोरे समय पर बाहर निकैल पबितौं! ऐ पर राजा मुसकिया देलक।
--प्रमोद झा 'गोकुल', दीप,मधुवनी (विहार), फोन -9871779851
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