प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका

विदेह नूतन अंक
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कुमार मनोज कश्यप

लघुकथा- आसक फूल

 

घरक ई रेवाजे बनि गेल छलै जे दूध के औंट कs पहिने ओकरा गोईठा-चिपड़ी के आँच पर पझायल जाई ....  छाल्ही तs भेटै नुनू के आ बाँचल दूध मे हिस्सा भेटै आन सभ बच्चा के! आर बच्चा सभ तs आब कने चेष्टगर भs गेल छै तs बुझै छै; मुदा छोटकी बुधिया तs छाल्ही लेल घेनौना पसारि दै …… भुंईंयां मे ओंघराय लागै…… कनैत-कनैत अप्सियाँत भs जाई मुदा तैयो छाल्ही नहिंये भेटै ओकरा। हँ! जौं कहियो नुनू नहिं खाई जी ओकियाबs लागै तखन ओ ऐंठ भेट जाई ओकरा। ओई दिन भनसा घर खुजल आ सून पाबि बुधिया नहुँएँ-नहुँएँ पझाईत दूधक लोहिया दिस गेल। लोहिया सs छाल्ही नोचैयेवला छल कि मैयाँ पाछूये सs ओकर गट्टा पकड़ि लेलकै - 'गै चोरनी! बजरखस्सी!! लुत्ती लs s जी दागि लेबैं से ने होई छौ! भरि दिन ठुसि-ठुसि कs भोकना बिलाड़ि भेल जाईत छैथ आ तैयो चाहियैन छाल्ही! ……गे पेट मे बज्जर नहिं खसा होई छौ!' 

 

 मैयाँ सभटा छाल्ही भात मे सानि नुनू के सुग्गा-मेना बना परतारि कs खुएबाक चेष्टा करैत रहलीह ....  नुनू मैयाँ के कोरा सs भागय के आयास करैत कनैत रहल। ओतहि ठाढ़ बुधिया के मुँह मैयाँ के प्रत्येक कौर लs s उठैत हाथक संग अनायास यंत्रवत फुजैत आ बन्न होईत रहलै!

-कुमार मनोज कश्यप, सम्प्रति: भारत सरकारक उप-सचिव, संपर्क: सी-11, टावर-4, टाइप-5, किदवई नगर पूर्व (दिल्ली हाट के सामने), नई दिल्ली-110023; # 9810811850; ईमेल: writetokmanoj@gmail.com

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