कुमार मनोज कश्यप
लघुकथा- छगुन्ता
हमर आ हमर पड़ोसी राजेश के घरक दरवाजा लगभग सटले बुझू। आ तैं जँ केबाड़ फुजल हो तs आपसी वार्तालाप के स्वर कनेक ऊँच हो तs एक दोसरा के घर मे सुनबा जाईत छै। तहिना ओहि दिन भेलै । राजेश अपन कनियाँ सs बाइक मे पेट्रोल भरेबाक लेल टाका माँगि रहल छलै आ कनियाँ सवाल पर सवाल कs रहल छलै जे एतबे रूपया के पेट्रोल मे अखन तक भरि महिना चलि जाईत छल; अई महिना बिच्चे मे कोना खतम भs गेल जखन की ऑफिस छोड़ि आन ठाम कतहु गेबो ने केलहुँ। सुनि अचंभित सं भेलहुँ जे पेट्रोलक के खपत आब माइलेज मे नहिं नापि कs दिन मे नापल जाय लगलै! तत्क्षण यथार्थ-बोध धरातल पर आनि पटकलक .... निम्न मध्यम-वर्गक जीवन गानल-गुथल किछु रूपया संग असीमित खगता के बीच तारतम्य बैसबैत बीति जाईत छै; काल्हि के स्थिति मे अप्रत्याशित सुधार हेबाक आश बन्हने .......!
-कुमार मनोज कश्यप, सम्प्रति: भारत सरकारक उप-सचिव, संपर्क: सी-11, टावर-4, टाइप-5, किदवई नगर पूर्व (दिल्ली हाट के सामने), नई दिल्ली-110023; # 9810811850; ईमेल: writetokmanoj@gmail.com
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