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प्रो दमन कुमार झा

नेपालमे मैथिली नाटकक विकास आ परिणाम

भारतमे जखन मुसलमानक आक्रमण भेलै तँ एहि ठामक लोक अपन संस्कृति एवं साहित्य केँ रक्षार्थ ठाम ठाम भाग' लगलाह , जाहिमे नेपाल , मिथिलासँ लग रहलाक कारणे प्रमुख स्थान छल। सुरक्षाक दृष्टिऐं ओ हिंदू राष्ट्र छल। एहिठाम पहिनहुँ सँ अबरजात छल।रक्त सम्बन्धक डोर छल।मिथिलाक लेल तीर्थ छल। एहिपर- ओहिपर जायब टोल टपब सन छल। ने बोली वाणी मे कोनो अन्तर , आ ने रहन सहनेमे कोनो भिन्नता। सभ अपने सन बुझाइत लोक ओतहु अपने सन अनुभव करैत छल। ने ओत कोनो आक्रमणक डर ,आ ने ओत हिन्दू संस्कृतिक क्षतिक कोनो भय छलै।
ओहिठामक राजा कला - संस्कृति - साहित्य अनुरागी छलाह। ओ एहिठामक विद्वान लोकनिकेँ खूब आदर करैत छलाह। एहिठामक विद्वान लोकनि ओत अपना केँ ग्लानिक अनुभव नहि करैत छलाह। अपितु हुनका लोकनि केँ राज दरबारमे स्थान देल जाइत छलनि। आर की चाहियनि ? ओत हिनकालोकनिकेँ अपन संस्कृतिक रक्षा, साहित्यक सम्मान आ ओहिठामक समाजक स्वीकार्यता भेटलनि। जखन ई तीनू भेटि गेलनि ,तँ हुनक प्रतिभा ओहू ठाम पल्लवित पुष्पित हुअ लगलनि।

ओहिठाम हिनका लोकनि केँ तेहन ने उचित परिवेश भेटलनि जे ई लोकनि अपन ज्ञानसँ साहित्यक बखारी केँ भरबामे लागि गेलाह। ओ लोकनि तते ने लिखलनि जे बक्सा पेटी के कहय सन्दूक सन्दूकचीमे अम्बार लगा देलथिन। जँ आइयो ओहिमे कियो हाथ देथिन तँ एक सँ एक साहित्यिक मणि पड़ि लागि जेतनि। जे मैथिली साहित्यक इतिहासक एक नव पन्ना केँ उघारि देत।

नेपालमे मैथिली भाषाक प्रचार- प्रसारक मुख्य कारण छल मिथिलाक विद्वान लोकनिक ओहिठाम प्रवेश। एहि क्रममे 1324 ई मे यवन सँ पराजित भ पञ्जिक प्रसिद्ध बीजी पुरुष म.म. हरिसिंह देव नेपालक जंगल मे शरणागत भेलाह। हुनका संग हुनक आश्रित पण्डित विद्वान लोकनि सेहो पांडुलिपिक संग नेपाल आबि गेलाह। आ ओतय भातगाँवक समीप अपन राज्यक स्थापना कयलनि आ मैथिली भाषाकेँ तीव्र गति सँ आगू बढ़ेलनि। एहिठामक अनुकूल परिस्थिति पाबि ओ लोकनिक साहित्य सृजन मे लागि गेलाह। मल्लवंशीय शासक लोकनि स्वयं साहित्य प्रेमी छलाह। ओ लोकनि मिथिलासँ विद्वान सभ केँ आमंत्रण कय आश्रय सेहो दैत छलाह। तकर मुख्य कारण छल विद्यापतिक गीतक माधुर्यता। हुनक गीतक माधुर्यतासँ बंगाल आ असम सेहो ओहिना प्रभावित छल। नेपालक राजालोकनि जे स्वयं संगीत मर्मज्ञ छलाह , मैथिली भाषाकेँ माधुर्यताक कारणे पूर्ण सत्कार कयलनि।विद्यापतिक काव्य प्रतिभाक प्रेरणा स्वरूप स्वतंत्र रूपसँ मैथिली कविता ओ संगीतक विकास भेल। अभिनयप्रिय नरपति लोकनि नाटकक रचना तथा ओकर विभिन्न अवसर पर अभिनयक व्यवस्था सेहो करबाओल। जकर सम्पूर्ण श्रेय नेपाल उपत्यकाक मल्लवंशीय शासक लोकनिकेँ जाइत छनि। एहिठाम मैथिल विद्वान कवि - साहित्यकार अपन कला एवं प्रतिभाक खूब प्रदर्शन कयलनि। "मैथिली भाषाकेँ राजकीय प्रश्रय भेटि गेलासँ विकासमे आओर तीव्रता आयल। पाछू अभिनय प्रिय नरपति लोकनि नाटकक रचना तथा विभिन्न अवसर पर तकर प्रदर्शनक व्यवस्था सेहो कराओल। एहि दृष्टिऐं काठमांडू उपत्यका - भातगांव , पाटन ओ कान्तिपुर शाखाक राजा लोकनिक दरबार मैथिली नाटकक केंद्र बनि गेल।"

( मल्ल कालीन मैथिली नाटक ,डॉ चन्देश्वर शाह, प्रकाशन - नेपाल राजकीय प्रज्ञा प्रतिष्ठान , कमलादी, काठमांडू। पृष्ठ - 29-30)

एहिप्रसंग डॉ रामदेव झा जगज्ज्योतिर्मल नामक विनिबंधक पूर्व पीठिका मे लिखैत छथि ---"मिथिलाक सारस्वत धारा नेपालोन्मुख भ क अनवरत प्रवहमान होम लागल आ ओही संग आयल मैथिली भाषा, मैथिलीगीत- काव्य आ नाटक।मिथिलाक साहित्य ओ संगीत सँ मल्लवंशीय नेपाल उपत्यका जेना गुंजायमान भ उठल । मैथिलीक विद्यापति, विष्णुपुरी , अमृतकर, गोविन्द, कंसनारायन इत्यादि कविगणक कोमलकान्त पदावलीक गाने मात्र नहि होइत रहल, मिथिलामे रचित नाटकक अभिनये नहि होइत रहल अपितु गीत ओ नाटकक रूपमे मैथिलीक अजस्र साहित्यक सर्जना सेहो अठारहम शताब्दीक तृतीय चरण धरि अविराम गतिसँ होइत रहल।"

( जगगज्योतिर्मल , विनिब न्ध , रामदेव झा, साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली, 1995,पृ 10. )


म.म. हरिसिंह देवक मृत्युक बाद हुनक दू बालक मानसिंह देव आओर श्यामसिंह देव लगभग सताइस वर्ष धरि राज्य कयलनि। हुनका लोकनिक राज्य कालमे मैथिल विद्वान सभक सम्पर्क बनल रहल। श्यामसिंह देवक पुत्र नहि छलनि ओ अपन पुत्रीक विवाह नेपालक प्राचीन राज परिवारक एक सम्बन्धी जयभद्र मल्ल सँ करौलनि आ हुनका अपन उत्तराधिकारी सेहो बनौलनि।जयभद्रमल्लक पूर्वज नान्यदेवक आक्रमणक समय भागिक मिथिलामे बसि गेलाह। नान्यदेवक समयसँ श्यामसिंह देवक समय धरि मिथिलामे रहल जयभद्र मल्लक परिवार स्वाभाविक रूपसँ मैथिली भाषी भ गेल छल।एकदिस स्वयं मैथिली भाषी , दोसर दिस मैथिल महाराजक उत्तराधिकारी ,एहनमे मैथिली भाषाक प्रति अनुराग स्वाभाविक छल। एहि अनुरागक कारणे नेपालक राजदरबारमे मैथिलीक प्रतिष्ठा बढ़ैत गेलै।

नेपाल उपत्यकाक तीनू शाखा भक्तपुर, पाटन आ काठमांडू , संगहि हिमालय तराइक तिरहुत क्षेत्र मोरंग, मकमानी, भगवतीपुर , सप्तरी आदि क्षेत्र में सोलहम, सत्रहम आ अठारहम शताब्दी धरि मैथिली साहित्यक खूब सर्जन भेल।खासक खूब नाटक लिखल गेल। संगहि मिथिला मे रचित नाटकक अभिनयसँ ओत मनोरंजनक अवसर प्रदान कयल गेल। नेपाल - भारतक ई सम्बन्ध मात्र कलाक क्षेत्रमे नहि भाषाक क्षेत्र मे सेहो एक भ गेल छल।

मल्लवंशीय राजा लोकनि स्वयं नाटकक रचना करैत छलाह।आ हुनक शासन कालमे सेहो विपुल मात्रा मे नाटक रचल गेल , जे मैथिलाक्षर आ नेवारी भाषामे उपलब्ध अछि। लगभग डेढ़ सय वर्ष धरि नेपालमे मैथिली नाटकक लेखन आ मंचन होइत रहल। नाटकक कथानक पौराणिक रहैत छल । मंचन विशेष अवसर पर नियमित रूपसँ कयल जाइत छल। एहि नाटक सभमे सम्वाद आ गीत मैथिलीमे रहैत छल ,आ मंचीय निर्देश नेवारीमे कहल जाइत छल।

नाटक मे गीत ,नृत्य आ संगीतक प्रधानता रहैत छल। अधिकांश नाटकमे ई देखल गेल अछि जे नाटककार कियो आ गीतकार कियो आन होइत छलाह। एकर प्रदर्शन दरबार मे होइत छल। जत राजा लोकनि सेहो अभिनय करैत छलाह। नाटक मात्र मनोरंजनक उद्देश्य सँ खेलाएल जाइत छल।

मल्ल नरेशक समयमे नेपाल मैथिली नाटकक स्वर्णिम काल छल। मुख्य रूपसँ तीन राज्य ( भक्तपुर वा भातगांव , कान्तिपुर वा काठमांडू आ ललितपुर आ पाटन) मे जे एकर विकास भेल ताहिपर संक्षेपमे प्रमुख नाटकक स्मरण क ली --

भक्तपुर वा भातगांव
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मैथिली साहित्य ओ साहित्यकार केँ संरक्षण देनिहार नेपालक ई प्रमुख राज्य थिक। एहिठाम पहिल मैथिली नाटक विद्याविलाप विश्वमल्ल क आदेश सँ रचल गेल ,जकर अभिनय राजसभाक समक्ष भेल छल। एहि समय धरि संस्कृत - प्राकृति भाषा आमजन सँ दूर भ रहल छल। संस्कृत- प्राकृति लोक केँ बुझय मे कठिन भ गेल छलैक।आन जनभाषा केँ साहित्यिक मर्यादा प्राप्त नहि भेल छलैक। परिणामतः मैथिली निर्बाध रूपेँ बढ़ैत गेल।
ओकर बाद मैथिलीक महान उन्नायक भेलाह राजा जगज्ज्योतिर्मल। हिनक लिखल आ समयक प्रमुख नाटक थिक - हरगौरीविवाह नाटक, मुदितकुवलयाश्व नाटक, कुंजविहार नाटक।
एकर बाद हिनक पौत्र मैथिलीक सर्वाधिक सेवा कयलनि। हिनक लिखल छओ गोट नाटक प्रभावतीहरण नाटक, नलीय नाटक, मलयगंधिनी नाटक, उषाहरण नाटक ,पारिजातहरण नाटक, मूलदेव शशिदेवोपाख्यान नाटक नेपालक राष्ट्रीय अभिलेखागार मे सुरक्षित अछि।
हिनक पश्चात जितामित्र मल्लक समयमे छओ गोट नाटक लिखल गेल। मदालसाहरण नाटक, बरूथिनीहरण नाटक, कालीय मथनोपाख्यान नाटक, महाभारत नाटक, रामायण नाटक, आ जैमिनि भारत नाटकम।
हिनक पश्चात भूपतीन्द्र मल्ल मैथिलीक पूर्ण अनुरागी छलाह।हिनक लिखल भाषा नाटक, गौरीविवाह नाटक, माधवानल नाटक, रूक्मिणीहरण नाटक, उषाहरण नाटक, कंसवध वा कृष्णचरित नाटक, गोपिचन्द्रोपाख्यान नाटक, सम्बरासुरवधोपाख्यान नाटक, जालंधरोपाख्यान नाटक, मूलदेव शशिदेवोपाख्यान नाटक, जैमिनी भारत नाटकम , मुदावतीहरण नाटक, विक्रमचरित नाटक, श्रीखण्डचरित नाटक, पद्मावती नाटक, पशुपति प्रादुर्भाव नाटक, विद्याविलाप नाटक, उपलब्ध होइत अछि।
एहि राज्यक अन्तिम राजा रंजिनमल्लक लिखल अनेक नाटक प्राप्त होइत अछि । हिनक प्रमुख नाटक थिक - उषाहरण नाटक, इन्द्रविजय नाटक, मानधान्यूपाख्यान नाटक, कोलासुरवधोपाख्यान नाटक, अन्धकासुरवधोपाख्यान नाटक, जलशायिविश्नवादी सृष्ट्युपाख्यान वा मच्छावतार नाटक, खटवासुरवधोपाख्यान नाटक, वाल्मीकि रामायण नाटक, रुक्मिणीहरण नाटक, कृष्णचरित नाटक, रामायण नाटक, कृष्णकैलासत्रोपाख्यान नाटक, । एकर अतिरिक्त नओ गोट आओर नाटकक चर्चा अछि। ई नाटक सभ राष्ट्रीय अभिलेखागार , काठमांडू मे राखल पुस्तक सूचीक प्रथम भागमे भेटैत अछि।
अतः कहल जा सकैत अछि जे भातगांवक राजा लोकनिक मैथिली नाटकक विकासमे अविस्मरणीय योगदान अछि।

कान्तिपुर वा काठमांडू
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नरेंद्रमल्लक समयमे रामायण नाटक ओ महाभारत नाटक लिखल गेल। प्रतापमल्लक कालमे नलचरित एवं जगज्जयमल्लक समयमे अभिनय प्रबोध चन्द्रोदयनाटकक रचना भेल। हिनके समयमे लिखल वंशमणिक गीत दिगम्बर नाटक खूब ख्याति पौलक।

ललितपुर वा पाटन
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एहिठाम हरिश्चंद्रनृत्यम नाटक लिखल गेल, जकर प्रकाशन सन्त अगस्टस कोनरेडी जर्मनिसँ 1891 ई मे प्रकाशित करबाओल।

एहितरहेँ कहि सकैत छी जे नेपालमे मैथिली नाटक ओ गीतक अजस्र भण्डार राष्ट्रीय अभिलेखागार , काठमांडू मे सुरक्षित अछि।


जखन मल्लवंशक पतन भेलैक आ राजा पृथ्वीनारायण शाह विजयी भेलाह तँ स्थिति प्रतिकूल भ गेलै। मिथिलासँ सम्पर्क टुटि गेलै। एहिठामक नाटक आ नाटककार केँ नेपाल जायब बंद क देल गेलैक। "वर्तमान राजा शाह एलान क देलनि जे मोगलान अर्थात ( मुगल वंशक शासन रहबाक कारणे भारत केँ मोगलान कहैत छल। मिथिलाक अधिकाँश भाग मोगलानमे पड़ैत छलैक बाँकी नेपालमे) शेष मिथिला सँ जे नटुआ अबैत अछि ओकरा बंद कयल जाय। किएक तँ ओ एहिठामसँ अर्थ आ देशक भेद दुनू ल जाइत अछि। संगहि ओ इहो कहलनि जे नेपालक नेवारी नाचके देखल जाय।ओकरा लोकनि के जे हम देबै ओ देशेमे रहत।"

(मैथिली लोकनाट्यक विस्तृत अध्ययन एवं विश्लेषण , महेंद्र मलंगिया पृ 57।)

हुनक एहि कृत्य सँ दुनू देशक सम्बन्ध केँ जोरगर झटका लगलैक। जे दूध पानि संग मीलि गेल छल , से एकाएक फाटि गेल।
एकर बाद वीर शमशेर राणाक शासन आयल।हिनक शासन कालमे पुनः सांस्कृतिक छटा छिटक' लगल। हिनक दरबारमे भरतीय नाटक आ नृत्यक प्रभाव बढ़ लागल। गीत, संगीत ,नृत्य आ नाटकक विकास भेल।हिनक समयमे नेपालमे पैघ संगीत सम्मेलन भेल, जे संगीतक संग संग नाटकक क्षेत्रमे पैघ हलचल उत्पन्न कयलक। लगभग सभ दरबार नाच गान आ नाटकक अभिनय स्थल भ गेल।बड़ी हसीना आ छोटी हसीना ,जे भारतीय छलीह से ओहिठाम खूब यश प्रतिष्ठा अर्जित कयलनि।

हिनके समयमे भरतीय रंगकर्मी केँ प्रशिक्षण देबाक काज सेहो शुरूह भेल। जनरल डम्बर शमशेर राणा ,जे जनरलक पद त्यागि प्रशिक्षण प्राप्त कयलनि, से पश्चात रंगमंचक विकासमे लागि गेलाह।तहिना माणिकमणि तुलाधर कलकत्ता मे नाट्य प्रशिक्षण पाबि डबली ( आकाशतर) नाटक करबाक श्रीगणेश कयलनि। बादमे गोपी शमशेर सेहो भारतमे प्रशिक्षित भेलाह। किछु और प्रशिक्षक लोकनि छलाह , जेना - नानक मिश्र, नूरुद्दीन, बाला प्रसाद आदि , जे नेपालमे अभिनयक प्रशिक्षण देलनि , आ कालांतरमे राजा आ राणा दरबारक थियेटर इंचार्ज सेहो बनाओल गेलाह।

राणा कालक बाद नेपालमे पंचायती व्यवस्था आयल। एहि कालमे एकटा आर समस्या उत्पन्न भ गेलै। नाटक प्रदर्शन एवं प्रकाशन सँ पूर्व सरकारी अनुमति लेब आवश्यक भ गेलै। प्रदर्शन सँ पूर्व सरकारी तंत्र केँ सूचित कयल जाइत छलै । अभिनय स्थल पर पुलिस चौकी सँ पुलिस पठाओल जाइत छलै। कहल जाइत छलै जे ई शान्ति सुरक्षाक लेल पठाओल जा रहल अछि । मुदा ओकर तहमे किछु और बात रहैत छलैक। ओकर मुख्य काज छलैक नाटकक सम्वाद केँ निरीक्षण करब , जाहिसँ राजा आ व्यवस्था पर कोनो अनर्गल बात नहि कहल जाय। जाहिसँ नाटकक विस्तारमे कमी अयलैक। भारतसँ जे नाटकक दल जाइत छल , से कम भ गेलै। महिला कलाकार सेहो अपना केँ असुरक्षित अनुभव कर लागल। एहिसँ पुनः एकबेर भारत- नेपालक बीच नाटकक सम्बन्ध विच्छेद भ गेलै। एहितरहेँ कहि सकैत छी जे नेपालक सत्ताक संग मैथिली साहित्य-संस्कृतिक उत्थान पतन होइत रहल।

स्थिति सुधरलै आ नेपालमे सत्ता जखन जनताक हाथमे आयल , तँ रंगमंच अपन रंगमे आबि गेल। जीवनाथ झा एहन कवि भेलाह जे सम्पूर्ण नेपाल केँ अपन समसामयिक काव्य धारा संग जोड़लनि। ई कहू जे ओत ई केवल स्वयं साहित्यक प्रणयन नहि कयलनि अपितु आनो आन विद्वान केँ एहि दिस अग्रसर करबामे लागि गेलाह।तकरे परिणाम थिक जे वर्तमान कालमे डॉ धीरेश्वर झा धीरेन्द , प्रो भोलानाथ झा धूमकेतु, प्रो प्रफुल्ल कुमार सिंह मौन , श्री महेंद्र मलंगिया आदि अपन कर्मक्षेत्र नेपाले के बनओलनि। आ पुनः मैथिली साहित्यिक गतिविधि जोड़ पकड़लक। एकरे परिणाम भेल जे नेपालीय साहित्यकार लोकनि जेना- श्री रामभरोस कापड़ि भ्रमर, प्रो राजेन्द्र विमल, रमेश रंजन, पमेश्वर कापड़ि आदि मैथिली दिस प्रवृति भेलाह जे आइ मैथिलीक प्रतिष्ठित साहित्यकारमे परिगणित छथि।

भारत आ नेपाल मे एकटा अनिवार्य नाम थिक महेंद्र मलंगियाक, जिनकर प्रचुर नाट्यकृति केँ देखला उत्तर सहजे विश्वास करब कठिन भ जाइत अछि जे ओ एतेक नाटक कोना लिखलनि । हुनक अधिकांश नाट्यकृतिक रचना-स्थल नेपाले थिक ।ओ लिखबे टा नहि कयलनि लिखबयबो कयलनि , मंचनो कयलनि आ करबेबो कयलनि एवं निर्देशनो कयलनि। हुनक किछु प्रमुख नाट्य कृति थिक-- ओकरा आँगनक बारहमासा, जुआयल कंकनी, गाम नञि सुतय, काठक लोक, ओरिजनल काम, राजा सलहेस, कमला कातक राम, लक्ष्मण आ सीता, लक्ष्मण रेखा खण्डित, एक कमल नोरमे, पूष जाड़ कि माघ जाड़, खिच्चड़ि, छुतहा घैल, ओ खाली मुँह देखै छै। ई सभटा कैक बेर आ कैक ठाम खेलाएल गेल अछि। एकाङ्की: टूटल तागक एकटा ओर, लेवराह आन्हरमे एकटा इजोत, गोनूक गबाह, हमरो जे साम्ब भैया, "बिरजू, बिलटू आओर बाबू", मामा सावधान, देहपर कोठी खसा दिअ, नसबन्दी, आलूक बोरी, भूतहा घर, प्रेत चाहे असौच, फोनक करामात, एकटा बताहि आयल छलय, मालिक सभ चल गेलाह, भाषणक दोकान, फगुआ आयोजन आ भाषण, भूत, एक टुकड़ा पाप, मुहक कात, प्राण बचाबह सीता राम, ओ खाली घैल फोड़य छै। ई सभटा मंचित भऽ चुकल अछि। २५ टा चौबटिया नाटक: चक्रव्युह, लटर पटर अहाँ बन्द करू, बाढ़ि फेर औतय, एक घर कानन एक घर गीत, सेर पर सवा सेर, ई गुर खेने कान छेदेने, आब कहू मन केहेन लगैए, नव घर, हमर बौआ स्कूल जेतए, बेचना गेलए बीतमोहना गबए गीत, मोड़ पर, ककर लाल आदि। ई सभटा चौबटिया वीथीपर खेलायल गेल अछि। ११ टा रेडियो नाटक: आलूक बोरी, ई जनम हम व्यर्थ गमाओल, नाकक पूरा, फटफटिया काका आदि। ई सभटा टा पटना, दरभंगा आ नेपालक रेडियो स्टेशनसँ प्रसारित भेल छनि।
एकर बाद एहि क्षेत्रमे अपन किछु नाट्यकृति ल क उपस्थित भेलाह रामभरोस कापड़ि भ्रमर , हिनक रानी चन्द्रावती , एकटा आओर बसन्त , महिषासुर मुर्दाबाद आदि प्रसिद्ध नाटक प्रकाशित अछि। रमेश रंजनक नाटक थिक - मुर्दा, डोमकच्छ आदि तँ परमेश्वर कापड़िक टटकाल दर्शन आ बाल नाटक चौआरि बेस ख्यात पौलक। एहि नाटकक सभक प्रदर्शन विभिन्न अवसर पर विभिन्न संस्था द्वारा समय समय पर कयल जाइत रहल। ई जे झमटगर गाछ अछि तकर सीर नेपालेमे अछि।

एतबे नहि , नेपाल राजकीय प्रज्ञा प्रतिष्ठानक स्थापनाक बाद नियमित रूपेँ नाट्य समारोह होइत रहैत छल।जाहिमे मैथिलीओ क नाटक होइत छल। महेन्द्र मलंगिया सेहो मिथिला नाट्यकला परिषद, जनकपुरधाम सँ अपन टीमक संगे बराबरि जाइत रहलाह अछि।आ वाह वाही लूटैत रहलाह।

जखन भारतमे अरिपन , पटना द्वारा अंतरराष्ट्रीय नाट्य प्रतियोगिता , आयोजित भेल तँ एहू ठाम नेपालक प्रतिनिधित्व देखल गेल। छठम- सातम अंतरराष्ट्रीय नाट्य प्रतियोगितामे सेहो दुनू देशक नाट्य संस्था भाग लेलक।

2000 ई मे एन. आइ. बी. ( नेपाल, इण्डिया, बंग्लादेश) संयुक्त रूपेँ आइ.टी. आइ. ( इंटरनेशनल थियेटर इंस्टीट्यूट ) क स्थापना कयलक। UNESCO द्वारा सम्पोषित एहि संस्थाक काज छैक थियेटर सँ संबंधित विभिन्न देशसँ संवाद स्थापित करब,आ सेमिनार एवं नाट्य समारोह आयोजित कराएब आ नाटकक विकास करब। एही क्रममे पहिलबेर ई संस्था भारत - नेपालमे समान रूपेँ सक्रिय मैथिली नाटकक स्तम्भ महेन्द्र मलंगिया केँ सम्मानित कयलक, जे दुनू देशक हेतु गरिमाक बात थिक। ई संस्था रंगकर्मक माध्यमे दुनू देशकेँ एक सूत्रमे बंधने अछि।
तहिना 2004 मे रमानंद युवा क्लब , जनकपुर नाट्य समारोहक आयोजन कयलक, जाहिमे कलकत्ता, दिल्लीक संग मिथिलाक नाट्य संस्था सभ भाग लेने छल।एहन कतेको उदाहरण अछि ,जेना युनाप ( नेपाल) जमघट, (मधुबनी) ,जाहिमे दुनू देशक नाट्य दल सम्मलित भेल।

2012 ई मे मैथिली लोकरंग ( मैलोरंग) , दिल्ली मे महेंद्र मलंगिया नाट्य महोत्सव कयने छल ,ताहूमे नेपालक नाट्य दल भाग लेने छल।
एहि महोत्सवक विशिष्ट अतिथि नेपालक राष्ट्रपति डॉ रामवरण यादव छलाह जे अपन वक्तव्यमे कहने छलाह जे भारत - नेपालक जे सम्बन्ध अछि तकर केन्द्रमे दुनू देशक रंगकर्मे अछि।

एहितरहें कहि सकैत छी जे नेपालमे मध्य कालमे जे नाटकक न्यों पड़ल से वर्तमान काल धरि ओहि पर नाटकक महल बनाओल जा रहल अछि। एखनो कतोक विद्वान नाटक लेखन मे सक्रिय छथि। दुनू ठामक लेखक अपन लेखन सक्रियतासँ नाटकक विकासक पाथेय बनल छथि। एकर परिणाम संतोषप्रद अछि से तँ कहले जा सकैत अछि।

-प्रो दमन कुमार झा, प्रोफेसर एवं अध्यक्ष, विश्वविद्यालय मैथिली विभाग, ल. ना. मिथिला विश्वविद्यालय, दरभंगा।
मो.-- 7004760408.
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