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नित नवल सुशील (लेखक गजेन्द्र ठाकुर)

सुशीलक रचना संसार: हुनकर रचना संसार छन्हि- घराड़ी (उपन्यास) (१९७३), गामबाली (उपन्यास) (१९८२), भामती (नाटक) (पहिल मंचन १९९१, प्रकाशन २०१३) आ अस्मिता (लघुकथा संग्रह) (२०१६) आ ई चारू पोथी हुनकर अनुमतिसँ विदेह पेटारमे उपलब्ध अछि लिंक www.videha.co.in/pothi.htm पर।

कमलानन्द झाक पोथी "मैथिली उपन्यास: समय समाज आ सवाल" (२०२१) मे लिखै छथि- "मैथिली उपन्यास-यात्राक लगभग सय वर्षक बाद मैथिल अन्तरजातीय विवाहक सपना, संघर्ष आ विडम्बना पर गरिमायुक्त उपन्यास लिखबाक श्रेय गौरीनाथकेँ जाइत छनि।" तँ की कमलानन्द झा सुशीलसँ ई श्रेय छीनि लेलनि? चलू अहाँकेँ लऽ चली कमलानन्द झा केर स्वार्थी दुनियाँसँ दूर, छल-छद्मसँ दूर सुशीलक जादूबला साहित्यक निश्छल दुनियाँमे।

घराड़ी (उपन्यास) (१९७३)

ई उपन्यास अखिल भारतीय मिथिला संघ (बाबू साहेब चौधरी) द्वारा छापल गेल छल। बाबू साहेब चौधरीक समस्या नामसँ आमुख सेहो छन्हि। आ सुशील ई उपन्यास अपन मायकेँ समर्पित करै छथि। छोट-छीन लेखकीय वक्तव्यमे ओ अहाँकेँ मरुभूमिक यात्रा लेल चलैले कहै छथि, मुदा मरुद्यान सेहो छै, खजूर पानि जतऽ भेटै छै।

पाठक जीक दलानपर उपन्यास प्रारम्भ होइत अछि, दूटा सन्दूक एकटा चौकी, दूटा लगहरि महींस, एकटा गाय, आ एक जोड़ा बड़द। बाँझी घूरमे झिंगुड़ा दैत अछि, सुखायल जाड़निसँ बेशी ई सजीव बाँझी जड़ै छै, प्रकृतिक लीला!

आ उपन्यासकार सभटा सरंजाम केलाक बाद रतनक प्रवेश उपन्यासमे करबै छथि। मिलिट्रीमैन रतन।

एतऽ भाषायी शिक्षा सेहो भेटत। अनावश्यक '' '' केर प्रयोग सुशील १९७३ मे सेहो नै करै छला, पी.डी.एफ.मे जतऽ शुरूमे ई आयल छै तकरा ओ पेनसँ काटि देने छथि, बादक फर्मा ठीक छै। ऐ उपन्यासमे मलाहक लड़की आ ब्राह्मणक बेटाक प्रेम सम्बन्ध सेहो भेटत। तँ की ई सिद्ध होइए जे, जे भाषायी रूपसँ फरिच्छ अछि ओ आगाँक सेहो सोचैए, ओकर विषय-वस्तु सेहो आगाँ दिसुका सोच लेने होइ छै। मूलधारामे ई दुनू निपत्ता भेटत। से दुल्हा गामक उदयचन्द्र झा 'विनोद' जे कि मेडियोकर छथि आ प्रतिक्रियावादी विचारधाराक छथि (विदेहक शरदिन्द् चौधरी विशेषांक आ प्रेमलता मिश्र 'प्रेम' विशेषांक दुनूमे हुनकर छल-छद्म शरदिन्दु आ प्रेमलता जी अभिलेखित केने छथि), से मूलधारामे स्वीकृत भेलथि मुदा ओही दुल्हा गामक सुशील जे भाषा, विचार, रचनाक विषय आ रचनाक स्तर सभमे हुनकासँ बहुत आगाँ छथि, हुनके जातिक छथि से कतिआ देल गेला, मूलधारामे ओ अस्वीकृत केना नै होइतथि्? छद्म समीक्षक सभकेँ तँ हुनकर नामो नै सुनल छन्हि बा ओ सभ ऐ तरहक स्वांग करै छथि। 

रतनक घराड़ी जोति लेल गेल छै, लालबाबू जोति लेने छथिन्ह। ओकर छोटका भाय अपने हिस्सा ने लिखत, रतनक हिस्सा कोना लालबाबू लिखबा लेलन्हि? लालबाबू बदलेन करैले तैयार छथि (आगाँ जा कऽ कारण रतन केस कऽ देने छै) मुदा रतनकेँ वएह घराड़ी चाही, दोसर ठाम उपटि कऽ किए जायत? मुदा ई सूचना औपन्यासिक विस्तारमे आगाँ जा कऽ खुजैए। ईहो जे रतन, पिताक मृत्युक बाद, मिलिट्रीमे चलि गेल आ गामसँ निपत्ता भऽ गेल जखन आ सेहो जखन ओ पन्द्रह बर्खक रहय। देह दशा बीस बर्खक लागै, से ओ अपन उमेर बीस बर्ख बतेलकै, से मिलिट्री भर्ती लऽ लेलकै। पन्द्रह साल कोनो पते नै। ओकर भाय महादेव कोहुना लालबाबूक कृपापर अछि, पेट पोसि रहल अछि। माय आ कोरपोछुआ बहीन बाढ़िमे बहि गेलै। ओकर रोष स्वाभाविक। मुदा पाठकजी केँ अपन गोटी खेलेबाक छन्हि, अभिराम झा कने फरिछायल गप कहै छथि। बुच्चन, पाठक जीक बड़का बेटा। बुच्चन सरओं खेलाइत अछि, सोझमतिया अछि, कोन बाँसक दाहा बनतै से आब लालबाबू बुझथिन्ह, से बजैए। पाठक जी जकाँ गोटी सेट करय नै अबै छै, से पाठकजीसँ मतान्तर सेहो छै। पाठकजीक पौत्री कुमकुमक प्रवेश करबै छथि उपन्यासकार। कुमकुमक बड्ड पैघ रोल आगाँ आबैबला छै, अखन तँ ओ कानि रहल अछि, ओकर टेरलिनक फ्राकमे आगि धऽ लेलकै, पाकि गेल। पाठक जी बिदा होइ छथि अस्पताल। पहिल खण्ड समाप्त।

बागमती कातक अस्पताल, लालबाबू (ललितेश्वर चौधरी)क प्रतापे, पाँच बीघा सोनक टुकड़ी हुनके देल। पाठको जीक योगदान, पाइसँ नै देहसँ। बुच्चुन आ ओकर युवा सेना धुनि कऽ श्रमदान देलक । आ ऐ परोपकारक कारण?  हुनकर बेटा ओइ काल दरभंगामे डाक्टरी पढ़ि रहल छला, आ ओ आब अही अस्पतालमे छथि। दूरक सोच! आ कुमकुम केँ पाठकजी लऽ जाइ छथि, अही अस्पताल जतऽ मलाह जातिक करुणा नर्स छै, आ लालबाबूक बेटा ब्राह्मण जातिक डॉ. बिनायक ओतऽ डाक्टर छै। आ लाल बाबू सेहो अस्पताल पहुँचि जाइ छथि। हुनका ऐ सभ गपमे मोन नै लगै छन्हि, हुनकर मोन टाङल छनि ओइ गपपर, रतन जे भोरमे गेल रहन्हि पाठकजीक ओइठाम। दोसर खण्ड समाप्त।

तेसर खण्डक प्रारम्भ, ननु पोखड़िपर गप्प सड़क्का चलि रहल छै। पंचैती छै, रतन आ लालबाबूक बीच सुलह हेतै आकि नै? पाठक जीक छोटका बेटा मलय, वएह जे कुमकुमले टेरेलीनक फ्राक अनने रहै, आ लालबाबूक छोटका बेटा अजीत, दुनू बड़ा दिनक तातिलमे मुजफ्फरपुर कओलेजसँ गाम आयल छै, ओहो दुनू ओत्तऽ छै। विविध भारतीसँ बहीदा रहमान जयमाला प्रोग्राम प्रस्तुत कऽ रहल छथि। पी.डी.एफ.मे सुशील जी पेनसँ काटि कऽ अमीन सयानी केने छथि, मुदा अमीन सयानी बिनाका-सिबाका प्रोग्राम करै छला सीलोन रेडियोसँ, सैनिक भाइ लेल जयमाला विभिन्न कलाकार विविध भारतीपर होइए, अमीनो सयानी तकरा कऽ सकै छथि आ बहीदा रहमान सेहो, से हम प्रिण्टबला वर्सन लऽ कऽ चलि रहल छी। पंचैती धौत परीक्षा विजेता सुन्दर झा केर नामसँ स्थापित पुस्तकालयपर छै, ननु पोखड़िपर। लालबाबू बदलेन करैले तैयार छथि बरू दू कट्ठा बेसी देता मुदा रतनकेँ वएह घराड़ी चाही, ओ तमसा जाइए। आ खण्ड समाप्त।

चारिम खण्ड प्रारम्भ, रतनक छोटका भाइ महादेबक हत्या! रतनपर आरोप छै। ओ भागि जाइए। मुदा बुच्चन ओकरा पक्षमे थानामे बाजैए जे जखन ओ ४-५ दिनसँ गाममे रहबे नै करय तँ ओ हत्या केना करत? ओकरा संगे ४-५ टा छौड़ो छै, फेर १०-१५ टा। पाठकजी अवाक छथि। लाल बाबू सन्न छथि। आ बतहन बाबू सभक मुखाकृति देखि रहल छथि। बतहन बाबू रतनक पक्ष बुच्चनसँ सुनने रहथि, आ बतहन बाबूक कहला हिसाबे बुच्चन बयान दैत अछि। पेंचपर पेंच। खण्ड समाप्त।

पाँचम खण्ड। ब्राह्मण डॉ. बिनायक आ मलाह नर्स करुणा। करुणा कहैए, ई विवाह असम्भव अछि, ओ नीच जातिक अछि, मलाहक बेटी अछि आ बिनायक पैघ लोक। बिनायक नै मानैए। आ...

पाँचम खण्ड। ब्राह्मण डॉ. बिनायक आ मलाह नर्स करुणा। करुणा कहैए, ई विवाह असम्भव अछि, ओ नीच जातिक अछि, मलाहक बेटी अछि आ बिनायक पैघ लोक। बिनायक नै मानैए। आ कहैए जे ओ की करत जे करुणाक हृदयसँ डर भागतै। मुदा करुणा ओकरा थोपड़ा कऽ बिदा भऽ जाइए। मुदा सूतलमे उपन्यासकार ओकरा तंग करै छथिन्ह सपना सुना कऽ, से प्रेम तँ ओकरो छैहे। आ एम्हर बिनायक तामसे विखसँ सविख अछि। ओ करुणाकेँ कायर बुझैए। मुदा उपन्यासकार एकटा लाठी लेने बूढ़ाक प्रवेश ओकर स्वप्नमे करबै छथिन्ह- जे बिनायककेँ कहै छथि जे जकरा बिनायक सबला बुझि रहल छथि ओ समाजक गन्हायल परिपाटीक चलते अबला अछि, आ अपन चक्र सुदर्शन आ त्रिशूल हुनका देमय कहै छनि। साहसे टा नै, काजो कऽ कय देखबय कहै छन्हि, खाली झुट्ठेक प्रतिज्ञासँ की हएत? स्त्रीगण समाजकेँ विश्वास नै छै। मुदा बिनायक कहैए जे ओकर प्रतिज्ञा सत्य छै। ओ ई गप चिकरि कऽ कहैए जे ओ ई कइये कऽ रहत। आ ओकर भक खुजि जाइ छै। मलय आ अजीत बिनायक केँ घुरा लऽ जाइ छै।

छअम खण्ड- महादेवक हत्याक बाद ओकर श्राद्धक भोज लालबाबू नीक जकाँ केलन्हि। मुदा बतहन बाबू आ पाठक जी ऐ गुलंञ्जरक कारणसँ अपरिचित नै छथि। महादेवक हत्याक पाछाँ कोन व्यक्तिक हाथ छै, से बुझबामे हुनका सभकेँ कोनो भाङठ नै छन्हि। मुदा खुलि कऽ विरोध करबाक साधांश नै छन्हि। आ ओम्हर लालबाबू सेहो हिनका दुनूकेँ मिला कऽ राखऽ चाहै छथि आ बतहन बाबूसँ सेहो सौजनियाँ जोड़ि लै छथि। उकबा उठल छै जे संतराजक बेटा रतन राति कऽ बुच्चनसँ भेँट करऽ अबै छै। परगासक बाप सरयू मण्डलक दू साल पहिने मृत्यु भऽ गेलै, श्राद्ध सभक सभटा खर्चा लालेबाबू देने रथिन्ह। से परगासक खानदान नूनक सैरियत दइ छै। परगास मैट्रिक पास कएने छल, लाल बाबू फीस माफ करबा देने रहथिन्ह। ओ बैकवर्ड क्लासक अनुदान लेल पैरबी केने रहय मुदा लाल बाबू उल्टा-पुल्टा बुझा कऽ ओकरा अपना लग राखि लेलखिन्ह, तीन बीघा खेत देलखिन्ह मुदा तकर कोनो लिखा-पढ़ी नै भेल छै। आ अन्तमे किछु हास्य बतहन बाबूक समधिक स्वागतमे- चाह हुनका गिलासमे देल गेलन्हि, बेसी दुआरे, मुदा हुनका भेलन्हि शरबत छिऐ, छटपटाय लगला जव्वह कएल मुर्गा जकाँ।छअम खण्ड समाप्त।

ओम्हर रतन अपन मित्र शंकर भगवानक भक्त अवधेशक ताकिमे अछि। अवधेश कपिलेश्वर स्थान चोरा कऽ भागि जाइ छल, आ मिडिल पास केलाक बाद भगवान शंकरसँ सभ दिन भेँट होय तँय कपिलेश्वर हाइ स्कूलमे नाओं लिखेने छल। रतन निमतल्ला घाटमे भूतनाथ मन्दिरमे शंकर भगवानक शरणमे जाइत अछि। आ अवधेश भेट जाइ छै, भूपेन बोश एवेन्यूमे ओ पत्नी सुनीता संगे रहैए। कंगाली वेशमे रतन! पैघ अफसर अवधेश कङ्गालीकेँ पकड़ने सीढ़ीपर ठाढ़ अछि। सातम खण्ड समाप्त।

मोती कुकुड़ संगे खढ़िआक शिकार रतन आ अवधेश मिलि कऽ करय। रतनपर वारंट छै। ओकरा जमानत चाही। मुदा एकटा चिट्ठी अबै छै, अवधेशक भायक। डॉ. बिनायकक बियाह ओ सभ अपन बहीन प्रेमासँ करबाबय चाहै छला, लाल बाबूकेँ सेहो पसिन्न छन्हि। मुदा आब अवधेशकेँ सोचय पड़तै। बिनायक तँ बिनायके अछि, मुदा लालबाबू? रतन कहैए जे बियाह तँ लड़कासँ ने हेतै। मुदा परिवारो देखऽ पड़ै छै। चिट्ठीमे लिखल छै जे लालबाबू जल्दीसँ काज भऽ जाय से चाहै छथि। से शंका उत्पन्न करैए। पहिने तँ ओ रुप्पैयाक लोभमे कहियो खुलि कऽ गप्प नै केलनि। आठम खण्ड समाप्त।

कुमकुमक संग करुणा पाठक जीक आंगन जाइत अबैत रहैए, हेम-छेम बढ़ि गेल छै। लालबाबू करुणासँ बदली भऽ दोसर ठाम जेबा लेल कहै छथि, ओ दर्खास्तपर हस्ताक्षर कऽ दइए। लालबाबू जाइ छथि। करुणा कनैए, ओकरा देखि कुमकुम सेहो कानैए। पाठक जी अबै छथि। कुमकुमसँ कनबाक कारण पुछै छथि आ ओ भेद खोलैए, लालबाबू करुणापर तमसायल छलखिन्ह, कोनो कागचपर हस्ताक्षर लेलखिन्ह। खण्ड नौ समाप्त।

करुणा आ बिनायकक गपशप। करुणाक नजरि लालबाबूक फोटो दिस जाइए। बिनायक दृढ़ अछि। दसम खण्ड समाप्त।

पाठकजी आ बतहन बाबूक गपशप। पाठकजीकेँ कोनो गप बुझल छन्हि। लालबाबू करुणाकेँ नोकरी दिएबासँ पहिने मलहासँ कोनो शर्त मंजूरीक गप करै छला। पुछलापर नठि गेला, डिगरसारि पोखरिमे जीरा देमय चाहैए से कहि देलनि। मुदा कोनो पोखरि जीरा लेल नै देने छलखिन मलहाकेँ लालबाबू। तखन कोन एहेन गप छै जे मलहा आ लालबाबूए टा केँ बूझल छन्हि। करुणाक पढ़ाइ मुजफ्फरपुरमे 'कैथोलिक चर्च स्कूल' 'चैपमेन गर्ल्स स्कूल'सँ भेलै। पाठकजीकेँ कुमकुम पुछने छलन्हि जे करुणा दीदी ककर बेटी छथिन, दीदी बाबूकेँ ओ कहै छलखिन जे ओ तोहल बेटी छियौ आ रुपैय्या सेहो देलखिन। करुणा कथीपर हस्ताक्षर केलक? कुमकुमसँ पाठक जी बिनायककेँ कहबा देथिन्ह। बिनायक करुणासँ पूछत आ ओ मना नै कऽ सकत। आ फेर बिनायक आ करुणाक गपशप, बिनायक समाठक चोट करुणापर नै बजरऽ देता। एगारहम खण्ड समाप्त।

अवधेशक पैरवीपर रतन कलकत्तामे सेक्युरिटी एडवाइजर अछि। मामिलाक तारीखपर मुजफ्फरपुर जाइए मुदा गाम नै जाइए। अवधेश संगे शेफालीसँ भेँट होइ छै। गपक क्रममे शेफाली कहै छथि जे अवधेश कतेक मैथिल सभकेँ नोकरी दियेलथिन मुदा वएह सभ हिनकर निन्दा करैत रहै छन्हि। शेफाली कहै छथिन जे शेफालीक मामा वकील छथिन्ह, ओ कहै छथिन्ह जे रतनक जीत हेतै मुदा असली हत्याराक पता सेहो लगबऽ पड़त। रतनकेँ विश्वास छै जे असली हत्यारा लालबाबूक जिरतिया परगा छै। अवधेश एकटा आर चिट्ठीक गप रतनकेँ कहै छै, बिनायककेँ करुणा संग लभ भऽ गेल छै, ओ ओकरासँ बियाह करऽ चाहैए। शेफालीक पिता रतनक सेक्युरिटी ऑफिसर, शेफालीक मामा कमल सरकार छथि वकील। शेफीलीक पिता राय जी मैथिल आ माता बंगाली। शेफाली मैथिलीमे कइएकटा पोथी सेहो लिखने छथि। शेफाली आ रतनक घटकैती! खण्ड बारह समाप्त।

लालबाबू करुणाक बदलीक चिट्ठी पठबा दइ छथि, मुदा बिनायक करुणाकेँ छुट्टीपर पठबा दइ छथिन्ह आ पोस्टमैन नॉट अवलेबल लिखि कऽ चिट्ठी घुरा दइए। पोस्टमेन नवयुवक अछि आ बिनायक ओकरा नोकरी लगेबामे बहुत प्रयास केने रहथि। लालबाबू परगासक माध्यमसँ करुणाकेँ निपत्ता करबा देता मुदा हुनकर पत्नीकेँ सुनल दूटा शब्द 'देखिहें बचाकऽ' उद्वेलित कऽ दइ छन्हि। गर्मी तातिलमे मलय आ अजीत गामेपर अछि। परगास चारि गोटेसँ गेल मुदा करुणा दाँत काटि कऽ अपनाकेँ छोड़ा लेलक। आ ओकर चिचिऐब सुनि मलय, अजीत आ ड्रेसर सीरीचरण आबि गेलै। करुणा ओइ चारूमे सँ परगासकेँ चीन्हि गेलै। खण्ड तेरह समाप्त।

करुणाक बदलीक चिट्ठी एकबेर ने घुरलै, आब फेर लालबाबू कोनो ब्योँत लगा रहल छथि, देखै छथि ओइ छुतहरियाकेँ आब के रखतै। रतन बरी भऽ जेत्तै, से वकील कहलकन्हि। करुणा आ परगासक बियाह करा देता आ मामिले खतम। घर घुरै छथि। पत्नी बिनायकक बियाहमे देरी हुनका द्वारा मांगल जायबला पूरेसूर तीस हजार रुपैय्या आ ऊपरसँ मोटरकेँ मानै छथि। खण्ड चौदह समाप्त।

मिस्टर राय सभक बदौलत रतनकेँ नोकरीयो भेटलै आ जमानतो। लालबाबूक पत्नीकेँ भनक लागि गेलन्हि जे करुणा रतनक बहीन छिऐ मुनियाँ, ओकरा पहुँचीपर चिन्ह छै जइपर ओ घड़ी बान्हैत अछि, परगासक मायसँ किछु बजा गेल रहै। लालबाबू पछताइ छथि जे किए पाइ लेल अड़ि गेला, भने अवधेशक बहीनक संग बिनायकक बियाह करा दैतथि। बाताबाती होइए, पत्नी बिनायक आ करुणाक बियाह भऽ कऽ रहत से कहै छथि, लालबाबू धकेल दइ छथिन्ह, बिनायक बीचमे आबि जाइए, लाल बाबू तीतल बिलाड़ि सन पाछू हटि जाइ छथि। खण्ड पन्द्रह समाप्त।

बिनायक संगे माय स्टाफ क्वार्टर चलि गेला। बतहन बाबू, पाठक जी आ मनसूर नदाफ लालबाबूकेँ मनबै लेल गेला। परगास बुच्चनक कहियो चेले छल, मुदा आब कहाँ जाइए। करुणाक बदलीक चिट्ठी फेर अबै छै, स्पेशल मेसेंजर द्वारा। करुणा चिट्ठी रिसीव कऽ लेलक। बिनायक तमसा जाइए, ओकरा नीच, बदमाश कहैए, कहैए जे जाति धर्म कतऽ जेतै! कहैए जे स्त्री नीच होइते अछि। कहैए नीच! कुलटा! मुदा 'प्राणेश' शब्द सुनिते बिनायक पिघलि जाइए। करुणा एकटा मोड़ल कागच बिनायकक हाथमे दैत अछि। बिनायक ओ पढ़ि लज्जित भऽ जाइए, क्षमा मांगैए। करुणा रिजाइन कऽ देलक ई गप सौंसे पसरि जाइए। लालबाबू खेनाइ-पिनाइ शुरू कऽ देलन्हि, जँ बिनायक घर आओत तँ ओ घर छोड़ि देता, एते धरि लालबाबू आंट कऽ देलनि। परगासकेँ लालबाबू अन्तिम नाटक खेलेबा लेल कहै छथिन्ह। खण्ड सोलह समाप्त।

अन्तिम खण्ड अछि खण्ड सत्रह। दुर्गा भसानक दिन। दुर्गापूजामे तीनटा नाटक मंचस्थ कएल जाइए, दूटा मैथिली आ एकटा हिन्दी। आइ मैथिली नाटक छै- 'कुहेस', बिनायक रामकुमारक पार्ट अस्वीकार केलक, ओ डाक्टरक पार्ट खेलत। अजित रामकुमारक आ मलय उच्च शिक्षित युवक शंकरक पार्ट खेलत। बुच्चन वरक बाप सुवंश बनैत अछि। पार्ट खेलेलासँ लोक ओहने नै भऽ जाइए, बुच्चन सभकेँ रबाड़ि दैत अछि। मामिलाक तारीखक बाद रतन सेहो अवधेश आ बुच्चनक आग्रहपर दुर्गापूजा देखै लेल गाम आयल अछि। गाममे गुलंञ्जर छै जे करुणा मलाहक बेटी नै छिऐ, रतन करुणासँ दू-तीन बेर गप केलक, ओ अन्दाज करैए जे हो न हो करुणा ओकरे बहीन मुनियेँ ने हुअय। स्त्रीगणक गप ओकरा मोन पड़ै छै जे रतने सन एनमेन छै ई छौड़ी। रतन बुच्चन ओइठाम रहैए। चारि बजैबला छै, नाटक समाप्त होइबला छै, भसानक कारण देरी भेलै। करुणा अपन पिताकेँ सभ साल बजा लैत अछि, ओ अपनो मोने आबि जाइ छथि, अहू बेर आयल छथिन्ह। परगास रतनक पछोर धेने अछि। नवगछुलीक अन्तमे धूर छै, गाछक पाछाँ ओ धपायल अछि। मुदा छह धोखामे लालबाबूपर पड़ल, रतन पाछुए छल। फरीछ भऽ गेलै, लालबाबू अस्पताल एला। आ फेर रहस्योद्घाटन आ पश्चाताप। आ बिजयादशमीक नाटक समाप्त।

गामबाली (उपन्यास) (१९८२)

सभक आँखिक काँट गामबाली आइ ओ बबूर सेहो कटि गेल!

ओकरा चाहऽ बला, नै चाहऽ बला आ कात रहनिहार, तीनू तरहक लोक खुश अछि। ओकर अन्तिम संस्कार के करतै? जादव समाज आकि ब्राह्मण समाज। जादव समाज आ ब्राह्मण समाजक लोक पहुँचै छथि मालिक माने सोनमनि झा लग, ओ छथि पाउ-पाउ करैत, मसलनमे ओङठल।

गामबालीक संस्कार जादव समाज मिलि कऽ करतै।

गोअर टोलीक लोक ओकरा गामबाली कहब शुरू केलकै आ फेर बभनटोली, कैथटोली, जोलहा टोलीक लोक सेहो ओकरा गामबाली कहऽ लगलै।

गामबालीक वर बूढ़, ओ तेसर बहु छली, पहिलसँ बच्चा नै भेलै तँ दोसर बियाह आ फेर दोसरोमे बच्चा आ पहिलोमे। आ फेर तेसर बियाह सौख लेल। बाबू पैरुखक गप छै, के कत्ते बहु डेबि सकैए।

ज्ञानचन यादव माने ज्ञनचनमाकेँ लोक मरखाह बना देलकै, अपने बलजोरी ओकरा घरो कऽ दऽ जाइ गेलै आ तहन लाहेब मचा दइ गेलै गाममे।

सभक आँखिक काँट गामबाली आइ ओ बबूर सेहो कटि गेल!

ओकरा चाहऽ बला, नै चाहऽ बला आ कात रहनिहार, तीनू तरहक लोक खुश अछि। ओकर अन्तिम संस्कार के करतै? जादव समाज आकि ब्राह्मण समाज। जादव समाज आ ब्राह्मण समाजक लोक पहुँचै छथि मालिक माने सोनमनि झा लग, ओ छथि पाउ-पाउ करैत, मसलनमे ओङठल।

गामबालीक संस्कार जादव समाज मिलि कऽ करतै।

गोअर टोलीक लोक ओकरा गामबाली कहब शुरू केलकै आ फेर बभनटोली, कैथटोली, जोलहा टोलीक लोक सेहो ओकरा गामबाली कहऽ लगलै।

गामबालीक वर बूढ़, ओ तेसर बहु छली, पहिलसँ बच्चा नै भेलै तँ दोसर बियाह आ फेर दोसरोमे बच्चा आ पहिलोमे। आ फेर तेसर बियाह सौख लेल। बाबू पैरुखक गप छै, के कत्ते बहु डेबि सकैए।

ज्ञानचन यादव माने ज्ञनचनमाकेँ लोक मरखाह बना देलकै, अपने बलजोरी ओकरा घरो कऽ दऽ जाइ गेलै आ तहन लाहेब मचा दइ गेलै गाममे।

गामबाली जीवित रहलि, ओकर जिजीविषा आर प्रबल भऽ गेलै बादमे। बड़े शानसँ आवाजाही करैत रहलि, कोनो अरचन नै एलै। आमिल पिनहार समाङ लेल धनसन, कुलटा बुझिनिहार लेल कत्तौ किछु नै। जे ओकरा संगे भौजीक सम्बन्धे हँसी ठट्ठा करै तकर ओ जवाब दै हँसि कऽ। गुअरटोलीसँ ओकरा गामबाली कहबाक प्रचार भेलै आ सौंसे गाम पसरि गेलै।

मुदा गामबालीक कोनो सम्बन्ध अपन ऐ गामक अपन पुरान सासुरक परिवारसँ नै रहलै। मुदा खान-पान, लेब देब सौंसे बाभन-गच्छसँ छूटल रहलै।

आइ ओकर मृत्युक बाद ओकर प्रशंसक कम नै छै, शानसँ आयलि आ शानसँ चलि गेलि।

धनक ऐंठल बूढ़ संगे गामबालीक बियाह भेल रहै, पतिक तेसर पत्नी। सखा-पात लेल बूढ़ दोसर बियाह केलनि फेर दोसरो आ पहिलोसँ बच्चा भेलनि। तेसर पत्नी सख लेल, लौल लेल केलन्हि।

छिनरबा मनसा सभ ओकरा दूरि करऽ चाहलकै आ ज्ञानचनमाकेँ मरखाह बना देलकै।

आ उपन्यासकार शुरू करै छथि ज्ञानचन यादवक खिस्सा।

ओ पैघकेँ बाबा, काका, भाइ आ छोटकेँ बौआ, बच्चा आ नूनू कहय। कोनो आंगन नै रहै जतऽ ओकर प्रवेश नै रहै। दाइ, काकी, बहिन, बचियासँ ओकर मुँह टूटै। मुदा कनियाँ-पुतराक अंगनामे हठ दऽ जाइत साइते कियो देखने हेतै। बूढ़ि-पुरैनियाँक हठ केलोपर भावहुक अंगना ओ धखाइते जाइ छल। बाबी, माय आ पिउस श्रेणीक स्त्री कहितथिन- एहेन लजकोटर भऽ कऽ बैदगिरी केना करै छह।

(अगिला अंकमे जारी)

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