डॉ किशन
कारीगर
मैथिल पेटपोसुआ के गोंधियागिरी
ई गोंधियागिरी करनाहर सब त मैथिली भाषा के खंड बिखंड मे बांटि सुडाह क
देलकै आ मिथिला मैथिली के नाम पर इ सब अपन पेट पोसै मे बेहाल रहल. परिणाम
की भेल मैथिली अपने मे बंटा गेल आ तेकरा बंटनाहर वैह पेटपोसुआ मैथिल सब छै
जे अपना फायदा दुआरे मैथिली के दफानने रहल आ मैथिली साहित्य के कहियो समाज
स नै जोड़लक आ नै तेकर कहियो बेगरता बुझलकै?
मैथिली भाषा के शुद्ध-अशुद्ध, पछिमाहा-दछिनाहा, मधेश-कोसिकन्हा,
बाभन-सोलकन, अगुआ-पिछलगुआ, पुरूस्कारी-होहकारी के लकड़पेंच मे बाँटि देलकै
आ आब भवडाह केहेन जे सबटा मैथिली छियै? आ लेखनी पुरूस्कार आयोजन बेर मे
मानक छोड़ि?
अनका राड़ सोलकन बना दुत्कारि दै छै किएक??
आस्ते आस्ते अंगिका, बज्जिका सब अलग भेल जा रहल अछि आ हैबो करब जरूरीए की
ने? केकरो बोली के ई पेटपोसुआ मैथिल मोजर नै देलकै? मात्र अकादमी
पुरूस्कार, मैथिली विभागक नोकरी लोभ, संयोजक पद दुआरे ई सब मैथिली मानक के
ओझरी लगा मैथिली भाषा के खंड पाखंड मे बँटैत गेल? आ सब दिन ई पेटपोसुआ सब
गोंधियागिरी खेला क भाषा साहित्य पर जबरदस्ती अप्पन कब्जा केने रहल? आ
मिथिलाक जन समाज मैथिली सँ दूर होइत गेल.
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