नित नवल दिनेश कुमार मिश्र (लेखक गजेन्द्र ठाकुर)
दिनेश कुमार मिश्र, मिथिलाक बाढ़ि, धार आ
ओइपर बनाओल छहर/ बान्ह, सन्दर्भ हुनकर बन्दिनी महानन्दा, बागमतीक सद्गति!,
दुइ पाटनक बीच.. (कोसी धारक कथा), ने घाट ने घर, बगावत पर मजबूर मिथिलाक
कमला धार, भुतही धार आ तकनीकी झाड़ा-फूंकी।
दिनेश क़ुमार मिश्रक सभटा पोथी आब हुनकर अनुमतिसँ उपलब्ध अछि विदेह
आर्काइवमेः
http://videha.co.in/pothi.htm
(साहित्य अकादेमीक मैथिली परामर्शदात्री
समितिक सदस्य पंकज झा पराशर द्वारा
दिनेश कुमार मिश्र जीक पोथी सभसँ पैराक पैरा
चोरा कऽ अपना नामे उपन्यास छपबाओल गेल अछि, जकरा छद्म समीक्षक कमलानन्द
झा ऐ चोर लेखक पंकज झा पराशरक रिसर्च कहै छथि! लिंक
http://videha.co.in/investigation.htm
पर स्क्रीनशॉट अपडेट कएल
गेल अछि।)
बन्दिनी महानन्दा- दिनेश कुमार मिश्र (पछिला अंकसँ आगाँ)
बाढ़ि आ ओकर ऐतिहासिक संदर्भ
गंगा बेसिनक निर्माणक प्रक्रिया समुद्रसँ समुद्रमे पानिक यात्रा आ नदीक मार्ग बदलबाक कारणकेँ बुझलाक बाद एकटा बात स्पष्ट रूपसँ सोझाँ अबैए जे पृथ्वीक विस्थापनकेँ रोकबाक कोनो आशा नै अछि। बरखा होइत रहत आ जखन ई पानि माटिपर खसत तखन कटाव हएत, नदी अपन रस्ता बदलत आ बाढ़ि अबैत रहत। मनुष्य अपन बौद्धिक कौशलसँ माटीक कटाव, नदीक मार्ग परिवर्तन आ बाढ़िसँ कनी बदलाव आनि सकैए। ओकर हैसियत अखन धरि ऐसँ नै अछि। एतऽ एकटा बात ध्यान देबऽ योग्य अछि जे उत्तर बिहार बा गंगा घाटीक पूरा मैदान एकटा उपजाऊ क्षेत्र अछि, जकर उपजाऊ शक्ति बाढ़िक समय नदीक पानिक संग आयल गादक कारण निश्चित रूपसँ बढ़ल अछि। प्राचीन कालसँ कृषि समृद्ध क्षेत्र रहबाक कारण ऐ क्षेत्रमे विभिन्न सभ्यताक विकास भेल। प्रकृति मुदा भिक्षा नै बाँटैत अछि। जँ गुलाब अछि तँ संग-संग काँट सेहो। जतऽ-जतऽ बरखाक रूपमे मीठ पानिक समृद्ध स्रोत अछि, नदीक जाल किछु दूर धरि पसरल अछि, ओतऽ बाढ़ि, कटाव आ नदीक मार्ग परिवर्तन बेसी सुनबामे अबैत अछि। नदी एकटा पैघ क्षेत्रमे थाल/ बालू पसारि कऽ ओकरा समुद्रमे पहुँचेबाक एकटा सशक्त साधन अछि, जे बाढ़िक समय अपन उत्पत्तिसँ समुद्र तक पहुँचैत अछि। असलमे ऐ तरहक जमीनक निर्माण नदीक स्वाभाविक गुण अछि। गंगा घाटीक ई क्षेत्र एक समयमे समुद्रक बालु आ नमकीन पानिक क्षेत्र रहल हएत। मुदा बरखाक कारण उत्तरमे हिमालयक काँच माटि नीचाँ बहय लागल जइ कारण जमीन उपजाऊ होबऽ लागल। हम जइ ठामक गप्प कऽ रहल छी ओकर भूमि दुनियाँक सभसँ उपजाऊ जमीनमे गानल जाइत अछि आ ऐ नदीकेँ जल संसाधनक एकमात्र स्रोत मानल जाइत अछि। भौतिकवादी मान्यताक अलाबे हमरा सभक लेल नदीक महत्व एकटा जीवनदायी शक्ति सन रहल अछि। भारतक संस्कृतिक आधार नदी रहल अछि। एतेक सभ्यता ऐ नदी सभक कातमे अनादि कालसँ विकसित भेल अछि आ समयक संग प्रकृतिक कोखमे लीन भऽ गेल अछि, मुदा ऐ नदी सभक संग हमर सभक संबंध सदिखन शुद्ध आ प्रेम मातृशक्ति आ ओकर उपासक सन रहल अछि। जतऽ महर्षि वेद व्यास महाभारतमे नदी सभक प्रति अपन श्रद्धा व्यक्त केने छथि ओ 'विश्वस्य मातरः' अर्थात लोकमाता कहै छथि। कौटिल्य सन विद्वान एहन स्थानकेँ निवासक लेल वर्जित मानने छथि, जतऽ कोनो सुन्दर नदी निरंतर नै बहैत अछि। ओ नदीक महत्वकेँ रेखांकित केलनि 'न तत्र दिवसम् वसेत'- एहन स्थानपर एक्को दिन लेल नै रहबाक चाही। अपन सभक शुभ संस्कारमे भारतीय लोकनि देवता आ पूर्वजक संग-संग नदीक आह्वान करब कहियो नै बिसरै छथि। गंगा, यमुना, गोदावरी, सरस्वती, नर्मदा, सिन्धु आ कावेरीक स्मरणक बिना हमर सबहक कोनो शुभ कर्म पूर्ण नै होइत अछि। पवित्रताक उदाहरण देबऽ लेल नर्मदाकेँ मोन पाड़ै छी आ गंगाक संतान कहल जायमे गर्वित होइ छी। 'मृत्युपर गंगा प्राप्त करबाक' इच्छा कबीर सन साधकमे मात्र ऐ लेल नै भेल जे ओ अपन जीवनक अधिकांश समय गंगा तटपर बितेने छला। कोनो नदीकेँ भावसँ गंगा कहबाक परंपरा अखनो हमरा लोकनिक मोनमे जीवित अछि। भगवान श्रीकृष्णक चर्चा 'कालिन्दि कूल कदम्ब की डारन' केने बिना अपूर्ण रहि जाइए, तँ कतेक बेर वाल्मीकि भगवान रामकेँ सरयूक सोझाँ प्रणाम करैत देखलनि। क्षिप्रा कालिदासक लेखनकेँ लालित्य देलनि। तीर्थक अवधारणा (तीर्थक शाब्दिक अर्थ नदीक कात थिक) नदीक महिमाक मान्यताकेँ अभिव्यक्ति देलक अछि। एहन विशेष अवसरपर नदीमे स्नान करबाक हमरा लोकनिक अलग परंपरा अछि। गंगा दशहरा, माघ पूर्णिमा, कार्तिक पूर्णिमा, संक्रांति आदि बहुत रास एहन अवसर अछि जखन हमरा लोकनिक पूर्वज लोकनि लोककेँ नदीक समीप अनबाक व्यवस्था केने छला। नदीक शुद्धताक निर्वाहक लेल उत्सर्जन आदिक विरुद्ध शास्त्रमे सख्त दिशा निर्देश छल। बिहारक छठि पर्व सूर्य पूजाक संग-संग नदीक प्रति हमर सबहक श्रद्धाक उत्कृष्ट उदाहरण अछि। हमर ई समृद्ध धरोहरक एगो छोट कड़ी अछि उत्तर बिहार, किशनगंज, पूर्णिया आ कटिहार क पूर्वी जिलासँ बहयवाली महानंदा नदी। महाभारतमे कौशिकी (कोसी) नदीक समीप बहैत दूटा नदी नन्द आ ऊपरी नन्दक उल्लेख अछि, जतऽ पाण्डव लोकनि निर्वासन कालमे ऐल छला। मानल जाइए जे महाभारत कालक ऊपरी नन्द वर्तमानक महानन्दा अछि। महानन्दाक सहायक नदी कंकाईक वर्णन सेहो महाभारतमे ऐल अछि जतऽ एकरा कंकानन्द कहल गेल अछि। सभ साल कटिहार जिलाक दुर्गापुर आ कल्याणीमे माघ पूर्णिमाक दिन मेला लगा कऽ महानन्दाक प्रति श्रद्धा व्यक्त कएल जाइत अछि। ऐ दिन ऐ इलाकामे काढ़ा गोला लग गंगाक कातमे मेला सेहो लगैत अछि ।
महानन्दा नदी
महानन्दा उत्तर बिहारक एकटा मुख्य नदी अछि। ऐ नदीक उद्गम पश्चिम बंगालक दार्जिलिंग जिलाक करसेओंगसँ ६ किमी उत्तरमे हिमालयक चिमले अछि, जतऽ सँ ई २०६२ मी. ऊँचसँ गंगा ल्ल ३७६ किमी.क यात्रा प्रारम्भ करैत अछि। कनकाईक संगमक बाद महानन्दा बागझोर लग बड़ही-गुवाहाटी राष्ट्रीय राजमार्ग ३१ (राष्ट्रीय राजमार्ग ३१) पार कऽ बागडोब पहुंचैए जतऽ ओकर धारा दू भागमे बँटैत अछि। बगडोबमे लगभग सीधा दक्षिण दिस बहयबला धाराकेँ झौआ शाखा कहल जाइ छै आ महानंदाक अधिकांश जल प्रवाह आइ-काल्हि ऐ धारासँ गुजरैत अछि। झौआ शाखा स्वयं आगू बढ़ैत पनार नदीक दहिना कात एकरा संग मिलैत अछि। ई शाखा आगू झौआक पास कटिहार-बरसोई रेल लाइन आ लाभा लग कटिहार-मालदा रेल लाइनकेँ पार करैत अछि। महानन्दाक झौआ शाखाक एकटा आर सहायक नदी घासिया एकरा लाभाक नीचाँ जोड़ैत अछि। एतऽसँ महानन्दाक झौआ शाखा पश्चिम बंगालक मालदा जिलामे प्रवेश करैत सुरमरा लग गंगा नदीमे मिलैत अछि। बगडोबमे महानन्दाक एगो आर शाखा जे दक्षिण-पूर्व दिशामे बहै छै, बरसोई लग कटिहार-बरसोई रेल लाइन पार करैए। बरसोईक नीचाँ ई धार सेहो दू भागमे बँटैत अछि। ऐमे सँ पूर्व दिस बहयबला धारा बेसी सक्रिय अछि, पश्चिम दिस बहय बला धारा उनटा-पुनटा भऽ गेल अछि आ ऐ मे गाद-बालूक जमाव अछि। ई धारा पुनः सुबरनापुर लग मुख्य धारामे जुड़ैए। आब ई संयुक्त धारा बांग्लादेशक गोदागिरी घाट लग गंगा संग मिलैत अछि। महानन्दाक कुल जलग्रहण क्षेत्र २४,७५३ वर्ग किलोमीटर छै, जइमेसँ ५२९३ वर्ग किलोमीटर नेपालमे, ६६७७ वर्ग किलोमीटर पश्चिम बंगाल मे, ७९५७ वर्ग किलोमीटर बिहारमे आ बाकी बांग्लादेशमे पड़ै छै। डेंगरा घाटक उत्तरमे ऐ नदीक तलहटीक ढलान अपेक्षाकृत अधिक छै, जे धनगरा घाटक नीचाँ आस्ते-आस्ते कम होइत जाइ छै, जइ कारण नदीक प्रवाह क्षमता धीरे-धीरे कम होइत जाइ छै, आ नदीक उपयोग अक्सर एकर किनारपर उमड़ि जाइ छै। निचला भागमे झौआ शाखाक बेड स्लोप ०.०९९ मीटर प्रति किलोमीटर अछि जखन कि बरसोई शाखाक बेड स्लोप ०.१४६ मीटर प्रति किलोमीटर अछि। साठिक दशक आ आगूक सरकारी रिपोर्टक अनुसार ऐ ढलानक अभावक परिणामस्वरूप महानन्दाक निचला भागमे करीब एक सप्ताह जल-भराब रहै छल, जकर परिणामस्वरूप तत्कालीन पूर्णिया (नवगठित कटिहार) क दक्षिणी भागक विनाश भेल। ऐ सभ रिपोर्टक अनुसार कटिहारक ऐ दुर्दशामे महानंदे नै वरन् कारी कोसी आ गंगा नदीक सेहो काफी योगदान छल। महानन्दाक सहायक नदीक विशेषता रहल अछि जे ओकर कोर्स बदलैत रहैत अछि, संगहि ओकर नाम सेहो ओहिना बदलैत रहैत अछि। जेना पनार नदीक अनेक नाम अछि जेना पनार, परमान, परमौन, कडवा, रीगा, कंकर, फुलहर बा गंगाजुरी। जेना-जेना जगह बदलैत अछि, नदीक नाम सेहो बदलैत रहैत अछि। तहिना बकरा नदीक नाम अलग-अलग स्थान पर बकरा, कटुआ धार वा देवनी भऽ जाइत अछि। एकर जलग्रहण क्षेत्रमे कनकाईक बहुत रास नव-पुरान धारा छिड़िआयल अछि। मेची, दाउक, रमजान, कुलिक, सुधानी आ नगर नदीक स्थिति सेहो लगभग एहने अछि। ऐ नदी सभक धार बँटैत रहैत अछि, ऐ मे बहैत पानिक मात्रामे परिवर्तन होइत रहैत अछि आ तहिना एकर महत्व सेहो बढ़ैत बा घटैत रहैत अछि। ऐ क्षेत्रक सर्वेक्षण पहिल बेर १७७९ मे ब्रिटिश शासनक स्थापनाक बाद जेम्स रेनेल नामक सैन्य अभियंता द्वारा कएल गेल छल। ओइ समयक महानन्दाक प्रवाह मार्गक आधिकारिक वर्णन रेनेलक नक्शासँ भेटैत अछि। तकर बाद डॉ. फ्रांसिस बुकानन हैमिल्टन (१८०९-१०), रॉबर्ट मॉन्टगोमरी मार्टिन (१८३८), आ डॉ. डब्ल्यू.डब्ल्यू.हंटर (१८७७) सेहो ऐ नदीक क्रमक विवरण देने छथि। महानन्दाक विषयमे ई कहल जाइ छै जे ई आर्य प्रभावक अंतिम पूर्वी छोड़ तँ छहिये, ऐ क्षेत्रक इतिहास पश्चिमसँ आबैबला आक्रमणकारी आ मूल निवासीक बीचक संघर्षक सेहो रहल छै। इम्पीरियल गजेटियर ऑफ इन्डिया (भारतीय शाही) राजपत्रक अनुसार 'महानन्दा पश्चिमक हिन्दी भाषी क्षेत्र आ पूर्वक बंगाली भाषी क्षेत्रक बीचक सीमाक काज करै छै। जनसंख्याक आंकड़ाक अनुसार हिन्दी भाषी आबादी ९४.६ प्रतिशत जखन कि मात्र ५ प्रतिशत बंगाली भाषी छै। मुदा डॉ. ग्रियर्सनक अनुमान छलन्हि जे लगभग एक तिहाइ लोक बांग्ला बजैबला हेतै आ ई बात सही लगैत अछि। महानन्दा सीमा रेखाक रूपमे सेहो काज करैत अछि। पूर्णिया जिलामे पूबमे दू तिहाइ आबादी मुसलमान छल, जखन कि पश्चिममे एक तिहाइसँ कम। मुदा महानन्दाक बिना कोसीक वर्णनक अपूर्ण रहत। कोसी नेपाल आ बिहारक एकटा बहुत महत्वपूर्ण नदी अछि, जे ५४०० मीटरक ऊँचाइपर हिमालय पर्वतक मुख्य श्रृंखलासँ निकलैत अछि, तिब्बत, नेपाल आ उत्तर बिहार होइत लगभग ७२५ किमी यात्रा केलाक बाद ई कुर्सेला (कटिहार) लग गंगामे मिलैत अछि। बिहारमे ऐ नदीक लम्बाइ २५४ किमी अछि जखन कि मैदानमे ऐ नदीक कुल लंबाई ३०७ किमी अछि। तीन धारा अर्थात सूर्य कोसी, तामा कोसी आ अरुण कोसीक संगमसँ बनल कोसी नदीक कुल जलग्रहण क्षेत्र ५८,५९४ वर्ग किलोमीटर छै जइमे ५,७०४ वर्ग किलोमीटर ग्लेशियर छै। पौराणिक लेख, किंवदंती, लोककथा आ लोकगीतक अलाबे कोसीक विषयमे लिखित जानकारी अंग्रेज लोकनि द्वारा तैयार कएल गेल छल। हुनकर सबक यात्रा-वृत्तांत आ सर्वेक्षण रिपोर्टमे ऐ नदी सभक विषयमे बहुत चर्चा भेल, ओना हुनकर मुख्य उद्देश्य छल ऐ क्षेत्रक प्राकृतिक संसाधनक दोहन कऽ राजस्व वसूली कएल जाय। फ्रांसिस बुकानन (१९०९-१०) आ रॉबर्ट मॉन्टगोमरी मार्टिन (१८३८) क यात्रा-वृत्तांत आ हंटरक "स्टैटिस्टिकल अकाउन्ट्स ऑफ बंगाल" (१८७७) मे ऐ नदीक विषयमे बहुत लिखल गेल छै। ऐ रिकॉर्डसँ पता चलै छै जे कोसी बहुत दिनसँ चैनल बदलै लेल बदनाम अछि, जकर कारण छै एकर अधिक गाद। १७३६ सँ १९५५ क बीच उपलब्ध अभिलेखसँ अनुमान अछि जे ऐ कालखंडमे ई नदी पूर्णियासँ पूर्व बहैत छल, से आब ११० किमी पश्चिम दिस शिफ्ट भऽ गेल अछि आ सुपौल, मधुबनी, सहरसा, खगड़िया जिलासँ गुजरैत अछि आ गंगासँ मिलैत अछि। स्थानीय लोकक कहब छनि जे कोसी कहियो मालदा (पश्चिम बंगाल) होइत बहैत छल आ बुकानन हैमिल्टनक अनुसार ई नदी मालदासँ पूब सेहो बहल हएत। बुकानन लिखै छथि- "कोसीक कातमे रहनिहार स्थानीय विद्वान बा पंडित लोकनि एते धरि कहै छथि जे प्राचीन कालमे कोसी दक्षिण पूर्व दिशामे ताजपुर धरि बहै छल। जकर बाद ई पूब दिस बहै छल आ अंततः ब्रह्मपुत्रसँ मिलै छल आ एकर गंगासँ कोनो संबंध नै छल। हमरा नै बुझल अछि जे ऐ कथनक आधार की अछि, लोककथा बा किंवदंती। जँ ई किंवदंती अछि तँ ई कनी बेसी विश्वास करय योग्य भऽ जाइत अछि, मुदा ई हएब एकदम संभव बुझाइत अछि। संभव अछि जे मालदाक पूर्व आ उत्तरमे अवस्थित पैघ-पैघ सरोवर कहियो कोसी आ महानन्दाक अवशेष छल। ... उपरोक्त परिवर्तनमे कोसीमे कमसँ कम कंपनीक सीमामे कोनो नदी बाम कात नै मिलैत अछि, मुदा ऐसँ कइएकटा धार जन्मैत अछि। उत्तरक पहाड़सँ आबयबला बहुत रास नदी आब महानंदासँ मिलैत अछि आ ई एकदम संभव अछि जे ई नदी पहिने कोसीसँ मिलैत छल जखन कि एकर धार पूर्वोत्तर दिस छल....।" हंटर (१८७७) मुदा बुकाननक विचारसँ सहमत नै छला आ कहलनि जे "डॉ. बुकानन हैमिल्टनक ई सुझाव जे कोसी ब्रह्मपुत्रसँ मिलै हेतै, हुनकर बाकी सिद्धांतक तुलनामे कनी कम संभावित लगैत अछि। लगैत अछि जे पूर्वमे ब्रह्मपुत्रक मार्ग मेमन सिंहक पूब छल। कोसी अपन पूब दिसक मार्गपर, पहिने करतुआ सँ मिलत, जे स्वयं एकटा नदी अछि, जे आत्रेयी आ तीस्ताक पानिसँ पुष्ट अछि। हम अपन पोथी अकाउन्ट ऑफ डिस्ट्रिक्ट बोगरा (खण्ड VIII पृ० १३९, १४२, १६२) मे हिन्दू कालक प्रारम्भसँ ऐ नदीक आकार आ महत्वक आधारपर महत्वकेँ रेखांकित केने छी आ कहने छी जे ई नदी स्पष्ट रूपसँ मानव प्रजातिक सीमा रेखाक काज करैत अछि जे आइयो देखबामे अबैत अछि। जँ ई मानी जे पहिने करतुआमे कोसी आ महानन्दाक भेंट होइ छल तखन पूर्व कालमे करतुआक पैघ आकारक कारण बुझि सकै छी आ तखन राजशाही जिलाक बरिन्द्रक जंगल आ मेमन सिंहक मधुपुरक बीचक रेतक मैदानक कारणा स्हो बुझि सकै छी। ऐ शताब्दीक प्रारंभमे जइ क्षेत्रमे ब्रह्मपुत्र बहै छल ओकर तर्क सेहो स्पष्ट भऽ जायत। असलमे पूर्णिया आ दरभंगाक बीच एक इंच जमीन एहन नै अछि जतऽ कोसीक धार कहियो नै बहल हुअय। एकर विभिन्न धाराक अनेक नाम छै- सौरा, बरंडी, करिकोसी, मराकोसी, तिलावे धार, हैयाधर, बोचाहा धार, मझरी धार, धेमुरा धार, मिर्चैया धार, लगुनिया धार आदि-आदि। जइ धारमे कोसीक मुख्य धार बहै छल से कोसी बनि गेल। ऐ तरहें कोसी आ महानन्दाक बीचक क्षेत्र सदिखन बाढ़ि आ जल कटावक क्षेत्र रहल अछि, जकर बहुत श्रेय कोसीकेँ जाइ छै। मुदा जतऽ धरि बाढ़िक प्रश्नक गप्प अछि, महानन्दाक शोर कोसीक शोरमे कखनो-काल सुनबामे अबैत अछि।" घनघोर जंगल, दुर्गम सड़क आ कम दूरीपर नदीक उपस्थिति- संभवतः ऐ सभ कारणसँ पाण्डव लोकनि अपन निर्वासन लेल ऐ क्षेत्रकेँ चुनने हेता जे पौराणिक कथामे बहुत महत्वपूर्ण स्थान रखैत अछि। कहल जाइत अछि जे महाभारत कालमे ई क्षेत्र कर्णक अधीन छल। कुर्सेला, जतऽ कोसी गंगासँ मिलैत अछि, कौरव राज्यमे पड़ल आ तखन कुरुशिलाक नामसँ जानल जाइ छल। एक समय मनिहारी (कटिहार) क मूल नाम मणिहारन छल जतऽ भगवान श्री कृष्णक औंठीक रत्न हेरा गेल छल। सिमल जंगल जतऽ अर्जुन अज्ञात निवासमे अपन हथियार नुका देने छला ओ वर्तमान सेमापुर अछि जे कटिहार-बरौनी सड़कपर एकटा रेलवे स्टेशन अछि। तहिना किशनगंज जिलाक ठाकुर गंज शहरक विषयमे एकटा किंवदंती अछि जे ई राजा विराटक राज्यक हिस्सा छल आ एत्तै भीम अपन निर्वासनमे भनसिया(ठाकुर) क रूपमे बितेने छला। ऐ टोलमे भटधला आ सगधला नामक दू टा पोखरि अछि, जइमे भीम चाउर आ साग राखैत छला। ठाकुरगंजसँ कनेक दूर ओ स्थान अछि जतऽ भीम कीचककेँ मारि देने छला। ऐ जिलासँ बाहर निकलयबलाक तुलनामे बाहर जेबाक परंपरा उल्लेखनीय अछि। पूर्णियाक लोक खेतमे मेहनतिसँ बचै छथि आ रोजी-रोटीक तलाशमे जिलासँ बाहर जेनाइ नीक नै लगै छनि। क्षेत्रफलकेँ देखैत जनसंख्या कम अछि, जमीन आसानीसँ उपलब्ध अछि आ श्रम कम। ई किछु एहन बात अछि जे पूर्णेयाक लोककेँ बाहर निकलैसँ रोकैत अछि। एत संख्यामे लोक खेतीक मौसममे अस्थायी रूपसँ बाहरसँ आबै छथि। ई बात १९६३ मे कहल गेल। ट्रेनक छतपर बैसलासँ एहन दुर्घटना होइत अछि जइमे लोकक मृत्यु भऽ जाइत अछि आ ऐ तरहक घटनामे कोसी, महानन्दा दोआबक लोकक मृत्यु भेल अछि। भवन ढहलासँ सेहो मरला आ खाड़कुसक हाथसँ सेहो। १९६३ सँ १९९३ क बीच किछु एहन निश्चित रूपसँ भेल जे पूर्णियाक खेतमे मेहनतिसँ बचयबला लोक आ रोजी-रोटीक तलाशमे जिलासँ बाहर जेनाइ पसिन नै करय बला लोक जानक कीमत चुका बाहर जा कऽ दोसराक खेतमे मेहनत करबा लेल मजबूर भेला। जखन कि कहियो स्थिति एहन छल जे कटाइक समय आ जखन असमक चाहक बगानमे मजदूरक जरूरत पड़ैत छल तँ कटिहार आ ओइसँ आगू जायबला ट्रेनमे उत्तर प्रदेश आ बिहारक अलग-अलग हिस्साक मजदूरक भीड़ रहै छल..। असलमे जँ एहन मजदूर कटनीक समय पूर्णिया नै जाइत तखन फसल खास कऽ जूटक कटाइ एकदम संभव नै होइतै। समृद्धिसँ दुर्दशा दिसक ई यात्रा पिछला तीस वर्षमे भेल। पछिला चारि दशकमे विकासक प्रभाव ऐ तरहेँ स्पष्ट रूपसँ देखबामे आबि रहल अछि। कोसी-महानन्दा दोआबक ई क्षेत्र अचानक मजदूरक मामलामे सरप्लस केना भऽ गेल? एकर एगो कारण छै जे ऐ क्षेत्रमे बाढ़िक कारणसँ बेशी जमीन बहुत दिन धरि पानीमे डूमल रहै छै आ खेती-बारी संभव नै छै। ओना ऐ सभ लेल खाली बाढ़ि एकमात्र कारण नै अछि, कारण आइ जँ उत्तर बिहारमे बाढ़ि आबि गेल अछि तँ दक्षिण बिहारमे रौदी अछि, मुदा ओतुक्का लोककेँ विकासक लगभग ओहिना खराप परिणाम भेटैत रहल अछि जतेक उत्तर बिहारक लोककेँ। ओतऽ बाढ़ि नै अछि, तैयो ई किए भऽ रहल अछि? ओतऽ सेहो बच्चा सभ स्कूल नै जाइत अछि, ओतऽ सेहो लोक मजदूरीक खोजमे निकलैत अछि।' मुदा संगे हमरा सभ लेल ई पचायब मुश्किल अछि जे ई सभटा जनसंख्या बढ़लाक कारण अछि। कृषि एहन क्षेत्र अछि जइमे रोजगारक अधिकतम संभावना अछि। तेँ जँ कोनो तरहेँ खेती-बाड़ी ठीक भऽ जाय तँ कतेको लोक जमीनसँ जुड़ि जायत आ ट्रेनक छतपर भीड़ कनेक कम भऽ जायत। महानन्दा नै, मुदा कोसीक बाढ़िपर चर्चा पछिला शताब्दीक उत्तरार्धसँ चलि रहल अछि। भारतक अन्य भागमे कोसीक उदाहरण बाढ़ आनैबला नदीक देल जाइत अछि आ ई नदी कोनो बाढ़िक चर्चाक केंद्रमे बनल रहैत अछि। स्वतंत्रताक बाद ऐ नदीपर नियंत्रण करबाक प्रयास भेल, आ ऐ संग लगभग पूरा गंगा आ ब्रह्मपुत्र घाटीमे नदीपर नियंत्रण करबाक प्रयास भेल आ ऐ क्रममे महानन्दाक सेहो आबि गेल।
(अगिला अंकमे जारी)
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