रबीन्द्र नारायण मिश्र
मातृभूमि (उपन्यास)- धारावाहिक
खेप ३१-३५
३१
"बाबा दणडवत़"-बैदजी नागबाबाकेँ प्रणाम कए हुनके पांजरमे बैसि जाइत छथि । कनीके कालमे गोविंद, माधव किछु आओर युवक संगे पहुँचलाह । ओहि समय बैदजी शीलाक समाचार पुछि रहल छलाह।
"जयन्तसँ भेंट भेल रहए । ओएह शीलाक बारेमे किछु-किछु कहैत रहथि ।"
"की कहलथि?"
"की कहू?"-से कहि नागबाबा चुप रहि गेलाह । ओना बैदजीकेँ तँ सभबात बुझले रहनि । ओ गलती कए गेल रहथि । आब पछताइए कए की हेतनि? केहन हँसैत-बजैत शीलाक भविष्यकेँ अंधकारमय कए देलाह,से सोचि-सोचि ओ दुखित भए गेल रहथि । कतबो केओ कहनि कोनो दबाइ नहि खाथि । कोनो डाक्टर-बैद लग नहि जाथि । अपन एकमात्र संतानक दुखसँ भीतरिआ कष्ट रहनि जकर कोनो समाधान हुनका नहि बुझाइन । एहन स्थितिमे नागबाबाक आगमनक समाचर सुनि ओ जेना-तेना हुनका लग पहुँचल रहथि।
"शीलाक आब ओहिठाम रहबाक कोनो लाभ नहि छैक। दिन-प्रतिदिन ओकर स्थिति खरापे भेल जा रहल अछि । तेँ हमरा हिसाबे तँ ओकरा गामे लए आनू ।-नागबाबा कहैत छथि । शीलाक खिस्सा सौंसे गाममे पसरि गेल रहैक । मुदा केओ की करैत? बिआह भए गेलाक बाद बेटीक स्थिति माता-पिताक वशमे नहि रहि जाइत छैक । कानून जतेक समाधान नहि दैत अछि ताहिसँ बेसी समस्या उतपन्न कए दैत अछि । पश्चिमक संस्कृतिक अनुकरण कए लोक बिआह विच्छेद कए लिअ । मुदा समाज ओकरा डेग-डेगपर प्रताड़ित करबासँ बाम नहि होइत अछि । जएह-सएह वक्र दृष्टिसँ देखए लगैत अछि । जँ ओ नैहरमे वापस आबिओ गेलथि तँ अपने परिवारमे पाहुन भए जाइत छथि। कानून द्वारा प्रद्त्त पैतृक संपत्तिक अधिकार कागजेमे समेटल रहि गेल अछि । सएह सभ सोचि लोक चाहैत अछि जे बेटी जेना-तेना सासुरेमे रहए ।
मुदा शीला संगे तँ बहुत पैघ धोखा भए गेल रहैक। ओकरा संगे तँ ओकर घरोबला नहि रहैक । ओ पहिनहिसँ विधर्मीसँ बिआह कए लेने रहैक । बैदजीक मोनमे अपराधबोध तँ होइते रहनि ,मुदा ताहिसँ की होएत? नागबाबाक हावभाव देखि हुनका बुझबामे कसरि नहि रहलनि जे असलियत की अछि । तैओ मोनमे कतहु उम्मीद रहनि जे की पता किछु नीक भए गेल होइक ?तेँ ओ बहुत आशासँ नागबाबाक अएबाक समाचार सुनितहि हुनका लग आएल रहथि । लग-पासमे बैसल युवकसभकेँ सेहो शीलाक खिस्सा बूझल रहनि । ओ संभ सेहो चाहथि जे शीलाक मदति कएल जाए। मुदा से कोना कएल जाए? नागबाबा मुँहे शीलाक कोनो स्पष्ट समाचार नहि सुनलाक बाद हुनकर सभक चिंता आओर बढ़ि गेलनि ।
"हमरा तँ मोन होइत अछि जे अखने जानकीधाम जा कए शीलाक ससुर आ ओकर पतिकेँ जहलमे बंद करबा दी ।"- गोविंद बजलाह ।
"मुदा ताहिसँ होएत की? - माधव कहलखिन।
" तँ की हमसभ मूकदर्शक बनल रही आ एकटा निर्दोष स्त्री अन्याय सहैत रहि जाए ।"
"तोहरसभक हिसाबे की कएल जाए?"-बैदजी बजलाह ।
" हमसभ पाठशालाक समस्याक समाधानक हेतु जयन्तसँ भेंट करबाक हेतु जानकीधाम जाएब । एहि हेतु काल्हि बैसार होएत । ओही बैसारमे शीलाक समस्याक बारेमे सेहो चर्चा कएल जाए आ तकरबाद सभगोटे चलब । ओतहि सोझा-सोझी बात फरिछा जेतैक । एकटा स्त्री संगे एतेक अन्याय कए ओ निचैन नहि रहि सकैत छथि ।"
"बात तँ तूँ सभ वाजिब कए रहल छह। मुदा बैदजी क सहमतिएसँ किछु कएल जएबाक चाही । " -नागबाबा बजलाह ।
"हम समाजसँ बाहर थोड़े छी । जे सभक विचार, सएह हमरो विचार ।"
साँझमे होबएबला बैसारक हकार देबाक भार टुनटुनकेँ देल गेलनि । टुनटुन स्कूटरपर चढ़ि कए एकटा छौंड़ाक संगे चिकर-चिकरि कए कहलथि -"सुनैत जाउ,आइ साँझमे मंदिरपर बैसार अछि । नागबाबा सेहो रहताह । सभगोटे अवश्य आएब ।"
केओ -केओ पुछलकैक -"कथीक बैसार छैक?"
गौंवासभसँ सबाल-जबाब करब ओकर काज नहि रहैक । ओ तँ मात्र हकार देबाक हेतु गेल रहए । हकार देलाक बाद ओ वापस होइत रहए की सुधाकर भेटि गेलखिन । इसारा दए रुकबाक हेतु कहलखिन । स्कूटरक आगूमे ठाढ़ भए गेलथि । चारूकात सुधाकरक लठैतसभ घेरि लेलक । हारिकए ओकरासभकेँ स्कूटरसँ उतरए पड़लैक ।
"कथीक बैसार छैक?"-सुधाकर पुछलखिन ।
"पाठशालाक पुनर्निर्माण करबाक चर्चा हेतैक ।"
"हमर डीह-डाबरपर पाठशाला बनबए चललाह अछि । हरगिज नहि होबए देबह । जकरा जानक काज नहि होइक सएह ओहि बैसारमे जाए ।"-सुधाकर चिकरि-चिकरि कए सौंसेगामकेँ ई बात सुना देलखिन।
दोसर दिन साँझमे आरतीक बाद उतरबारिटोलक मंदिरक परिसरमे बैसार शुरु भेल । बैसारमे उतरबारिटोल उमड़ि गेल छल। मुदा दछिनबारिटोलक मात्र दुइए गोटे अएलाह ,मधुकान्त बैदजी आ सुधाकरक वयोवृद्ध पिता देवीकान्त ।
नागबाबा सामान्यतः शांत रहैत छलाह । मुदा कहि नहि ओहि दिन बैसारमे ओ एकाएक बहुत उग्र भए गेलाह । भेलैक ई जे बैसार शुरु होइतहि सुधाकर सदल-बल पहुँचि गेल । ओकर लठैतसभ चारूकातसँ मंदिर परिसरकेँ घेरि लेलक । ओना लठैतसभ तँ सुधाकरक संगे रहिते छलनि मुदा ओहि दिन किछु बेसिए गोटे अनने रहथि ।
"सभगोटे कान खोलि कए सुनि लिअ । आइ नौ-छौ भइए कए रहत । रोज-रोजक ई झंझटिसँ मुक्ति जरूरी अछि। अन्यायोक एकटा सीमा होइत अछि । हमर पूर्वजक देल घराड़ीकेँ ई सभ पाठशाला बनाबए हेतु अमादा छथि। ई कतक न्याय थिक ।”
"हमहु एही गामक छी । एहिठाम पाठशाल कोनो आजुक नहि अछि । हमसभ नेने रही तखनो एतए पाठशाला छल आ हमरसभक बाबा जखन नेना छलाह तखनो छल । अहाँक घराड़ी ई कोना भए गेल?"- नागबाबा बजलाह ।”
"तोहर बुद्धि सठिआ गेलह अछि । जमीन-जायदादक निर्णय कागजसँ होइत अछि, चिचिएलासँ नहि। ई जमीन बाबा हमरासभक नामे लिखि गेल छथि । एहिपर ककरो कोनो अधिकार नहि अछि ।"-से कहि ओ अपन जेबीसँ एकटा कागज निकालि कहैत छथि-
"जकरा देखबाक होने से देखथु । ई पाठशालाक जमीनक रजिष्ट्रीक कागज अछि । तथापि यदि केओ झंझट करबापर अड़ल होथि तँ तकरो इलाज हम तैयार रखने छी ।” -सुधाकर ई बजले छलाह कि लठैतसभ लाठी भाँजए लागल ।
"एहन अन्याय नहि करह । जयन्त सन विद्वान एतए पाठशाला चलबए चाहैत छथि । ओ विद्वान छथि । समाजक उपकार कए सकैत छथि । हुनकर आग्रह मानबाक चाही ।"- सुधाकरक पिता देवीकान्त बजलाह ।
“एह! विद्वान छथि । हमरा सभटा पता अछि । जानकीधाममे शीलाक संगे...।" -ओ एतबे बाजल होएताह कि बैदजी चिकरलाह-
"खबरदार! पाजी नहितन । शीला...।" किछु आओर बजितथि ताहिसँ पहिनहि हुनकर आबाज अवरुद्ध भए गेल । ओ धराम दए खसलाह । चारूकातसँ लोकसभ हुनका घेरि लेलक । लठैतसभ कात भए गेल।
"बैदजी नहि रहलाह।"-गोविंद बाजल । बैदजीकेँ हृदयाघात भए गेलनि । चारूकात हाहाकार मचि गेल । परिस्थिति हाथसँ बाहर होइत देखि सुधाकर लठैतक संगे भागल।
३२
गाममे भेल बैसार आ ओहि कारणसँ शीलाक पिता बैदजीक आकस्मिक निधनक समाचार जयन्त धरि पहुँचल । समाचार सुनितहि हुनका ठकबिदोर लागि गेलनि।
"आब की होएत? शीलाकेँ ई दुखद समाचार केना देल जाएत? "-जयन्त नागबाबाक चेलाक संगे बैसल बतिआ रहल छलाह। ओएह गामसँ समाद लए कए आएल छलाह।
"नागबाबा कतए छथि?"
"ओ अखन गामेमे छथि ।”
“गामक की हाल छैक?"
“गाममे बहुत तनाव अछि । उतरबारिटोलक लोकसभकेँ नागबाबा रोकि देलखिन नहि तँ ओहीदिन बहुत किछु भए गेल रहैत । "
"एहनमे हमरा लोकनिक ओहिठाम गेनाइ संभव होएत?"
"मुदा नहिओ गेनाइ तँ समाधान नहि अछि ।"
"तखन की कएल जाए?"
"हमरा हिसाबे तँ कालीकान्तकेँ सभबात कहल जाए । ओएह किछु समाधान कए सकैत छथि ।"
"बात तँ सही कहि रहल छी । मुदा कालीकान्तकेँ ई सभ कहबामे हमरा बहुत संकोच भए रहल अछि ।"
"अहाँ अपने किएक कहबनि । आचार्यजीकेँ पठा देल जाए । ओ सम्हारि सकैत छथि।"
"सही कहलहुँ । मुदा शीलाकेँ कोना ई समाचार देल जाएत? ओ तँ पहिनेसँ बहुत परेसान छथि ।"
"मुदा हुनका जानकारी देनाइ तँ अनिवार्य अछि । गाममे हुनकर पिताक लास हुनकर प्रतीक्षा कए रहल अछि।"- से कहि नागबाबाक चेला अपन आश्रम चलि गेल ।
जयन्त आचार्यजीसँ भेंट करबाक हेतु बिदा भेलाह । आचार्यजी आश्रमक गेटेपर भेंट भए गेलखिन ।
“की बात छैक? अहाँ बहुत परेसान लागि रहल छी?"
जयन्त आचार्यजीकेँ सभबात कहलखिन ।
"हमरा लोकनिकेँ कालीकान्त लग चलक चाही । हुनका सभ बात कहबनि । ओएह रस्ता निकालताह।"
"ठीक छैक । मुदा शीलाकेँ कोना सूचित कएल जाएत?"
"कालीकान्त लग चलू ने । सभ भए जेतैक ।"
जयन्त आचार्यजीक संगे कालीकान्तक ओहिठाम बिदा भेलाह ।
३३
आचार्यजीक संगे जयन्त कालीकान्त लग पहुँचलाह । कालीकान्त अपन ओसारापर बैसल चाह पीबि रहल छलाह । गौरी सेहो ओहीठाम बैसल छलीह । भोरुका अखबार आबि गेल रहैक। ओहि अखबारक मुख्यपृष्ठपर लखनपुरमे भेल कांडक समाचार छपल छल । कालीकान्त ई समाचार पढ़िए रहल छलाह कि आचार्यजीक संगे जयन्तकेँ देखलकिन ।
"बहुत सही समयपर आबि गेलहुँ । "
"की बात भेलैक?"
"अखबारमे जयन्तक गामक घटनासभक समाचार छपल छैक। सएह पढ़िकए चिंतामे पड़ि गेल छी ।"
"ओही विषयमे अपनेसँ चर्चा करए आएल रही । सुनबामे आएल जे शीलाक पिताक देहावसान भए गेलनि आ गाममे लोकसभ शीलाक प्रतीक्षा कए रहल छथि ।"
"ओ तँ ज्योतिषीजीक संगे भोरे निकलि गेलीह । सुधाकरक मारफत हुनका समाचार भेटि गेल रहनि ।"
"जयन्त सेहो जाए चाहैत छथि ।"
" ओहिठामक माहौल तँ बहुत खराब छैक । कहीं किछु अनिष्ट ने भए जाए?"
" जयन्तक गेनाइ जरूरी छनि । शीलाक परिवारसँ हिनका लोकनिक बहुत घनिष्टता रहलनि अछि ।"
ई सभ गप्प-सप्प भइए रहल छल कि गौरी आ चंद्रिका सेहो आबि गेलीह ।
चंद्रिका अड़ि गेलीह जे ओहो जयन्तक संगे जेतीह । कालीकान्तकेँ बुझेबे नहि करनि जे हुनका कोना मनाओल जाए? कारण एहि माहौलमे हुनका लखनपुर गेनाइ कोनो तरहे उचित नहि बुझाइनि । जखन चंद्रिका नहिए मानलखिन तँ तय भेल जे सभगोटे संगे जेताह। मुदा जयन्त मना कए देलखिन ।
" अहाँ अखन किछु दिन रुकि जाउ । श्राद्ध होबए दिऔक । तकरबाद आबि जाएब । "
"जयन्तक बात सही बुझाइत अछि । हमरा लोकनिक अखन ओहिठाम गेलासँ परेसानी बढ़ि सकैत अछि।"-कालीकान्त बजलाह ।
दोसरदिन अहल भोरे जयन्त आचार्यजीक संगे लखनपुर बिदा भेलाह । रस्ताभरि हुनकर मोन भकुआएल रहनि ।
"जयन्त एतेक किएक सोचैत छी? अहाँ तँ विद्वान छी । जीवन-मरण तँ चलिते रहैत अछि । एकरा स्वीकार केनहि कुशल थिक।"-आचार्य बजलाह ।
"सबाल जीवन-मृत्युक नहि अछि । जाहि तरहें हिनकर मृत्यु भेलनि से बहुत दुखदायी अछि । एकटा लफङ्गा सभकेँ परेसान केने अछि आ सभ मुँह ताकि रहल अछि ।"
"सभ चीजक समय होइत छैक । ओकरो जबाब भेटतैक आ भेटबे करतैक ।"
"से तँ ठीक अछि । मुदा हमरो लोकनिक किछु कर्तव्य बनैत अछि कि नहि? की हमसभ मात्र नियतिकेँ दोख दए समय काटैत रहि जाएब । समस्याक जड़ि ओ पाठशालक जमीन थिक जाहिपर जबरदस्ती सुधाकर कब्जा कए लेने अछि । ओही विषयपर चर्चा करबाक हेतु बैसार भेल छल । मुदा की सँ की भए गेल ।"
"आब तँ आगूएक सोचबामे फएदा अछि । कोनो समाधान तखने भए सकैत अछि ।"
"तकर माने जे सुधाकर जकरा चाहए मारि दैक, परेसान करैत रहैक आ हमसभ भाग्यक पलटी लेबाक प्रतीक्षा करैत रही ।"
"फिलहाल श्राद्ध होबए दिऔक । तकरबाद कालीकान्त सेहो अएबे करताह । हुनका सामनेमे विमर्श कएल जाएत। सुधाकर कतबो बलगर होथि, मुदा कालीकान्तक आगू ओकर एकटा नहि चलतैक। जखन एतेक दिन धैर्य रखबे केलहुँ तँ थोड़ेक दिन आओर सही । पाठशालाक समाधान सेहो हेबे करतैक। "
दुनूगोटे गप्प-सप्प करैत लखनपुरक सीमामे प्रवेश कए रहल छलाह । धारक कातमे बैदजीक चिताक आगि मिझा गेल छल । शीलाक लखनपुर पहुँचएमे विलंब भेलनि । लोकसभ गाममे लासकेँ बेसी काल रखनाइ उचित नहि बुझलक । बैदजीक संस्कार शीलाक गाम पहुँचबासँ पहिनहि गौंवासभ कए देलखिन। ज्योतिषीजी शीलाकेँ लखनपुर पहुँचा कए चोट्टे अपन गाम चलि गेलाह । ई समाचार हुनका धारक कातेमे टुनटुन देलखिन । टुनटुन संगे ओ सभ बैदजीक दरबाजापर पहुँचलाह। ओहिठामक दृश्य बहुत दुखद छल। ओसारापर एकसरि बैसलि शीला कनैत-कनैत बेहाल छलीह । जेना-तेना बैदजीक श्राद्ध संपन्न भेल ।
सुधाकर तँ ओहि दिनक घटनाक बाद जे निपत्ता भेलाह से घुरि नहि अएलाह । थानासँ पुलिस हुनकर पता लगबैत कैक दिन आएल । मुदा सुधाकरक किछु पता नहि चललैक । संभवतः ओहोसभ खानापुरिए कए रहल छल। गाममे सभकेँ एहि बातसँ आश्चर्य लगैक जे शीलाक घरबला ससुरक श्राद्धोमे नहि अएलाह। लखनपुरसँ अपन गाम वापस होइत काल ज्यतिषीजीकेँ की भेलनि की नहि तकर किछु पता नहि चलि सकल। मुदा ओ महिपुर नहि पहुँचि सकलाह। रस्तेमे रहि गेलाह । लोकसभ बाजए जे लखनपुरक चओरमे हुनका जिन गछारि लेलकनि।
गोविंद जयन्तसँ भेंट करए आएल रहथिन । संगमे माधव आ उतरबारिटोलक किछु युवकसभ रहथि। आचार्यजी सेहो ओतहि छलाह । नागबाबा सेहो रहथि । सभकेँ एकठाम बैसल देखि शीला सेहो ओतहि आबि गेलीह।
" यद्यपि बैदजीक मृत्यु आकस्मिक भेल, मुदा तकर पाछू की छल? एही अत्याचारीक दुर्व्यवहारसँ ओ बहुत दुखी भए गेलाह आ हुनका हृदयाघात भए गेलनि । पुलिसमे प्राथमिकी लिखाओल गेल । आइ कैक दिन भए गेल । केओ पकड़ल नहि गेल । पुलिस-थाना मात्र खानापुरी कए रहल अछि । कोनो ठोस कारबाइ नहि भए सकल।”-गोविंद बजलाह ।
“शीला एकसरि छथि । सभसँ पहिने हिनकर सोचल जाए । तकरबादे आगू बढ़नाइ उचित होएत ।"- माधव बजलाह ।
" आब तँ जे हेबाक छलैक से भइए गेल । मुदा तकरा पकड़ि कए बैसल तँ नहि रहल जा सकैत अछि । अहाँसभ हमरा लेल चिंता नहि करू । हमर भविष्य तय भए चुकल अछि । हम आब कतहु नहि जाएब । ई हमरो गाम अछि आ हमरो किछु करबाक हक अछि । पाठशालाक काज आगू करू । हमहु ओहीमे जे संभव होएत योगदान करब ।”- -शीला बजलीह ।
" हमरा लोकनि आइ साँझमे मंदिरपर बैसार करब आ ओतहि आगूक रस्ता तय होएत ।"-गोविंद बजलाह ।
३४
दोसर दिन बैसारसँ पहिने मंदिर लग झमटि कए कीर्तन भेल। ओना ओहिठाम कीर्तन होइते रहैत छल। मंगल दिन रहबाक कारणे विशेष आयोजन भेल रहैक । सौंसे उतरबारिटोलक जबान,बूढ़,नेनासभ एकठ्ठा रहए। कीर्तन समाप्त भेलाक बाद प्रसाद वितरण भेल । लोक तकरबाद चलि जाइत । मुदा कीर्तन शुरु होबएसँ पहिने गोविंद कहि देने रहैक जे कीर्तनक बाद बैसार हेतैक आ सभगोटे ओहिमे सामिल होएत । लोकक अस्मितासँ जुड़ल बहुत रास बातसभ रहैक ।
आब ओ समय नहि रहि गेल रहैक जे लोक अनेरे सहैत रहतैक । देशमे लोकतंत्रक बिहाड़ि बहि रहल छैक । समाजमे तकर प्रभाव स्पष्ट देखा रहल छैक । गेलैक ओ समय जे गरीब-गुरबाकेँ खानदानी कर्जक एबजमे भरि जिनगी बेगार करए पड़ैत छलैक । आब तँ बोनिओ देलापर जन नहि भेटैत छैक । किएक भेटौक? सभक स्थिति सुधरलैक । सभक बाल-बच्चा देश-विदेश काजपर चलि गेलैक । दिल्ली,पंजाब आ कतए-कतए नहि पसरि गेलैक । किछुगोटे तँ देसक सीमानोकेँ तरपि गेल। अरब चलि गेल, किछुगोटे तँ पढ़ि लिखि कए अमेरिका,जर्मनी धरि अपन पैठ बना लेलक । ताहिठाम आब सुधाकर सन लोक लठैत बलें कतेक दिन टिकि सकैत अछि? ई बात उतरबारिटोलक लोकसभ नीकसँ बुझैक जे जँ ओ सभ लागि पड़तैक तँ सुधाकरकेँ कहए,केहनो बदमासकेँ ओ सभ लाइनपर आनि देतैक । मुदा ओहोसभ बेसी फसाद नहि करए चाहलक । सोचलक जे समयसँ सभ ठीक भए जेतैक, मुदा से कहाँ भेलैक? सुधाकरक मोन बढ़ैत गेलैक । जयन्त सन सरल ओ विद्वान व्यक्तिकेँ तबाह करए पर लागि गेल ।
कहबी छैक जे ‘विद्वान सर्वत्र पूज्यते’ । जयन्तमे ततेक विद्या छनि जे जखन जतए चाहथि अपन जगह बना सकैत छलाह। कालीकान्त हुनका अपना संगे रखबाक हेतु कतेको बेर कहि चुकल रहथि । मुदा मतृभूमिक सिनेह कही,मोह कही जे कही ओ एहि संकटसँ गुजरि रहल छथि । हुनका तँ दुपहर रातिमे लठैतसभ साफे कए देने रहैत । मुदा धन कही उतरबारिटोलक रखबारसभकेँ जे जानपर खेपि कए ओहन खराब मौसममे हुनका बचओलक ।
ई बात सभ लोकसभक मोनमे छलैहे,हाल-हालमे नव घटना सेहो भेलैक। शीलाक पिता बैदजीकेँ सभक सामनेमे बैज्जत कएल गेलनि जकरा ओ नहि सकलाह आ ठामहि रहि गेलाह। शीला आब निठ्ठाह एसगरि भए गेलीह । यद्यपि ओ बिआहल अछि,ओकर पति जीवित छथि । पहिने ऐकटा बिआह केने छलाह,ओहो विधर्मीक संगे,तखन एकर जिनगी बरबाद करबाक कोन औचित्य छल? मुदा ओ सएह केलाह। शीला आब तय कए लेलक अछि जे गामेमे रहत आ जयन्तक काजमे सहयोग देत,समाजक सेवा करत जाहिसँ भविष्यमे ककरो संगे एहन घटना नहि होइक ।
नागबाबा,आचार्यजी,जयन्त,शीला,गोविंद,माधव मंचपर रहथि। आश्चर्यक बात रहैक जे दछिनबारिटोलक एक आदमी नहि आएल रहैक । बैसार शुरु होइतहि सुधाकर अपन लठैतक संगे दन-दन करैत हाजिर भए गेलाह । सभ अकचका गेल । ई कतएसँ आबि गेलाह?सुधाकरक पाछू-पाछू एक दर्जन सिपाही सेहो अएलैक । ओहिमेसँ सेसर सिपाही आगू बढ़ल आ नागबाबा दिस हथकड़ी बढ़बैत कहलकैक-
"अहाँकेँ गिरफ्तार कएल जाइत अछि ।"
केओ किछु बुझैत,किछु सबाल-जबाब करैत ताहिसँ पहिनहि हुनकर हाथमे हथकड़ी लागि चुकल छल। स्वयं ओहो छगुन्तामे छलाह । नागबाबाक ई हाल देखि उतरबारिटोलक युवकसभ छरपल । ओकरासभकेँ अंदाज लागि गेलैक जे एहिमे सुधाकरक कुचक्र अछि। तनाव बढ़ैत देखि पुलिसबला माइकपर घोषणा केलक-
"खबरदार! जँ केओ पुलिसक काजमे बाधा करब तँ जहल जाएब ।'
-से सभ बजैत पुलिस नागबाबाकेँ पुलिस जीपमे बैसा लेलक आ लेने चलि गेल । सुधाकर आ ओकर लठैतसभसेहो पाछू-पाछू चलि गेल । लोकसभ देखिते रहि गेल ।
एहि तरहें नागबाबापर पुलिसक आक्रमणसँ उतरबारिटोलक लोकसभ बहुत उत्तेजित रहथि । गोविंद आ माधव आगू फनलाह । हुनका पाछू-पाछू बीस-पचीसटा युवक फानल। ककरो हाथ मे लाठी ,ककरो हाथमे बरछी तँ ककरो हाथमे भाला छलैक । सभ सुधाकरकेँ पछोड़ करबाक हेतु छटपटा रहल छल । हालात काबूसँ बाहर होइत देखि जयन्त उठलाह आ माइकपर कहैत छथि-
"हम आइसँ आमरण अनसन प्रारंभ कए रहल छी । जाधरि नागबाबा बाइज्जत बरी नहि हेताह, जाधरि पाठशाला अपन पूर्वस्थानपर नहि बनि जाएत ताबे हम अन्न-जल ग्रहण नहि करब।"
जयन्तक एतेक बजितहि सभ सन्न भए गेल । युवकसभ थकमका गेलाह । सभ एक-दोसर दिस देखए लागल। ककरो किछु फुरेबे नहि करैक जे आब की कएल जाए ? सभकेँ एहि तरहें परेसान देखि आचार्यजी माइक धेलनि -
“मानलहुँ जे सुधाकर आ हुनकर समर्थक बहुत अत्याचार कए रहल छथि आ पुलिस-प्रशासनक लोक सेहो हुनके संगे ठाढ़ बुझाइत छथि, तथापि हमरा लोकनिकेँ धैर्य बनओने राखक चाही कारण हमसभ एतए ज्ञान वितरित करबाक सरंजाम स्थापित करए अएलहुँ अछि ने कि हिंसावादकेँ प्रश्रय देबाक हेतु । नागबाबाकेँ पुलिस पकड़ि कए लए गेलनि । मुदा ई सभ कतेक दिनधरि चलत? नहि चलि सकत , न्याय हेबे करतैक । अस्तु,हमर प्रार्थना अछि जे अहाँसभ कानून अपना हाथमे नहि ली । "
"एकतरफा सहनशीलताक लोक गलत अर्थ लगबैत अछि, आचार्यवर! ई तँ हमसभ सद्यः देखिए रहल छी । कहिआसँ जयन्त पाठशालाक हेतु प्रयत्नशील छथि । मुदा भेल की? हुनकर पैतृक हककेँ पचा लेबाक भरिसक प्रयत्न सुधाकर करैत रहलाह आ पाठशालाक जगहपर अपन व्यक्तिगत घर बना लेलाह आ हमसभ मूकदर्शक भेल छी । ऊपरसँ नागबाबाकेँ पुलिस पकड़ि लेलक ।"-गामक युवकसभ बाजल ।
"आचार्यजीक कहब अपना हिसाबे ठीके छनि । तेँ हम शांतिपूर्ण प्रयास कए रहल छी । हमर अनशन करबाक निर्णय अटल अछि। अहाँसभ कृपया शांत रहू आ शांतिपूर्ण आंदोलनमे सहयोग करू।"-जयन्त बजलाह ।
आचार्यजीक आग्रह आ जयन्तक आमरण अनशनक घोषणाक बाद युवक लोकनि अपन-अपन हाथसँ हथिआर फेकि देलाह । गोविंद आ माधव किछु आओर युवकसभक संगे थाना बिदा भेलाह। नागबाबा थानामे नहि रहथि । हुनका पुलिस जिला मुख्यालय लेने चलि गेल कारण ओहिठाम रखबामे अशांतिक संभावना बुझेलैक । स्थानीय पुलिससभसँ पता लगलैक जे बीसो साल पूर्व एकटा हत्याक मामलामे नागबाबाकेँ पकड़ल गेलनि अछि।
भेल ई रहैक जे अपन युवावस्थामे नागबाबा समाजमे परिवर्तनक हेतु अग्रसर रहैत छलाह। ताहि हेतु गाम-गाम घुमि कए गरीब,असहाय लोकसभक संगठन बनओने छलाह । ओकरासभकेँ अपन अधिकार हेतु निरंतर जागरुक रहबाक हेतु प्रेरित करैत छलाह । समाजक समृद्ध लोकसभकेँ ई कतहु नीक लगैक? ओसभ हिनका खिलाफ षड़यंत्र केलक ।
नागबाबा एकदिन अहल भोरे अपन खेतमे कुसिआर काटए गेल रहथि । ओहिमे पहिनेसँ ककरो हत्या कए फेकि देल गेल छल । नागबाबा लास देखितहि चिकरए लगलाह । चारूकातसँ बदमाससभ मौकाक ताकमे छलहे,ओहिठाम जमा भए हिनके नाम लगा देलक । पुलिसमे हिनकर नाम लिखा गेल । बादमे जाँच-पड़तालमे हिनकर खिलाफ किछु सबूत नहि भेटलैक । पता नहि एतेक दिनक बाद कोना ओहि मामलाकेँ सुधाकर जगा देलक जाहि कारणसँ हुनका तंग कएल जा रहल अछि ।
उतरबारिटोलक हेतु तँ नागबाबा भगवाने छलाह । समस्त जीवन ओ हुनका लोकनि सामाजिक,आर्थिक विकासक हेतु प्रयत्नशील रहलाह । सन्यासी रहितहुँ ओ अपन गाम-घरसँ संपर्क बनओने रहलथि । धनकेँ नागबाबा जे जयन्तक जान बाँचल आ ओ शारदाकुंज पहुँचि एतेक शिक्षा ग्रहण केलथि । सुधाकर एहूबातसँ हुनकासँ तमसाएल रहैत छल । "ने नागबाबा रहैत ने ई दुष्ट जीबैत ।"-कखनो काल सुधाकर ई बात बजबो करए।
सभक मोनमे आक्रोश भरल छल । ऊपरसँ जयन्तक अनशनक घोषणासँ संपूर्ण समाजमे जबरदस्त प्रतिक्रिया भेल । दोसर दिन अखबारसभक मुखपृष्ठमे ई समाचार छपल । चारूकातसँ फोन आबए लागल । पुलिसक करमान लागि गेल ।
सभ केँ प्रयास रहैक जे जयन्त अनशन तोड़ि देथि ,मुदा ओ किछु बजबे नहि करथि,मौन भए गेलथि। उतरबारिटोलक युवकसभ दिन-राति जयन्तक रक्षामे लागल रहैत छलाह । पुलिस तँ पहरा दैते छल। लोकक आबा-जाही लागले रहैत छल । जयन्तक अनशनक दस दिन भए गेल। हुनकर स्वस्थ्य गड़बड़ेबाक भयसँ प्रशासनक अधिकारी लोकनि बहुत चिंतित रहथि । मुदा जयन्त अपन निर्णयपर अडिग छलाह।
“चाहे जान रहए की जाए । मुदा अपन निर्णयसँ हम नहि हटब।” ओ ई बात बेरि-बेरि स्पष्ट कए देलाह ।
जयन्तक अनशन आ एहिसँ जुड़ल घटनाक्रमसँ अखबारक पन्ना भरल रहैत छल । कालीकान्तकेँ सेहो पता लगलनि। ओ सपरिवार लखनपुर पहुँचि गेलाह । हुनका संगे सएसँ बेसी लठैतसभ सेहो आएल । कालीकान्त ई सुनने रहथि जे कैक पुस्त पहिने हुनकर पूर्वज लखनपुरेमे रहैत छलाह । हुनको पूर्वजसभ जयन्तक पूर्वज द्वारा स्थापित पाठशालामे पढ़ल रहथि । आइ सद्यः ओ लखनपुर गाममे छलाह । अपन पूर्वजक गाममे गजबक आनंद लागि रहल छलनि ,मुदा गामक माहौलसँ ओ ततबे दुखी छलाह । जयन्तक प्राण संकटमे देखि हुनकर समस्त परिवार आ मित्र मंडली परेसान छलाह । चंद्रिका कैकबेर जयन्तसँ गप करबाक प्रयस केलीह मुदा ओ मौनमे रहबाक कारणसँ किछु नहि बाजथि । चारू कात चिंता पसरि गेल छल । सरकारी महकमा सेहो परेसान छल । सभ समस्याक जड़ि सुधाकर बुझाइत छल । सभकेँ इच्छा रहैक जे हुनका पकड़ल जाए आ नौ-छौ कएल जाए। मुदा सुधाकर कहि नहि कतए निपत्ता भए गेल छल ।
जयन्तक अनशनक समाचार गाम-गाम पसरि गेल । पाठशालासँ पढ़ल विद्वानसभ समस्त प्रांतमे पसरल छलाह । काने-कान ई घटनाक समाचार सभठाम पसरि गेल । नित्यप्रति गाम-गामसँ लोकसभ लखनपुर मंदिरक लग-पास जमा होइत गेल । सभक मुँहमे एतबे बात रहैक-"आब की होएत? जयन्तक जान बचि सकत की ओ अनशन करिते चलि जेताह?
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जयन्तक अनशनक समाचार नागबाबाकेँ जहलमे पता चललनि । से सुनि ओहो अनशन शुरु कए देलनि । जेलर बाबू सहित तमाम आला अधिकारी हुनका बुझेबाक प्रयास केलक मुदा ओ एकहि बात कहथि-“जहिआ जयन्त अनशन तोड़ताह,तहिए हमहु अनशन तोड़ब । अहाँसभ हुनकासँ गप्प करू । हमरा किछु कहलासँ कोनो फएदा नहि होएत।”
जेलक अधिकारीसभक परेसानी बढ़ि गेलैक मुदा किछु करब ओकरासभक हाथमे नहि रहैक । सभकेँ एतबे छगुन्ता रहैक जे नान्हिटा आदमी सुधाकर एतेक शक्तिशाली केना भए गेल जे थानासँ लए कए ऊपरधरिसभ ओकरे बात सुनैत अछि? जँ से नहि होइत तँ स्थिति एतेक खराब नहि भेल रहैत । सुधाकरक सामर्थ्यक रहस्य बुझब ककरो वशमे नहि रहि गेल छलैक । एतेक दिनसँ लखनपुरमे घमाचौकरी भए रहल अछि मुदा सुधाकरक किछु नहि बिगड़ल । ओ लापता अछि,से अछि आ जखन मोन हेतैक लठैतसभक संगे लाठी भजैत हाजिर भए जाएत । बाहरे प्रशासन! लगैत अछि जे बहुत ऊपरधरि सुधाकरक घालमेल चलि रहल अछि। ई बात दछिनबारिटोलक लोकसभकेँ किछु-किछु अंदाज रहैक । तेँ ओ सभ चुप रहैत छल । सुधाकरक इलाज तँ उतरबारिटोलक युवकसभ करएबला छल,ओ सभ हथिआर पकड़ि लेने छल मुदा जयन्त अड़ि गेलाह। ओ अनशनपर बैसि गेलाह । कहि नहि शांतिपूर्ण समाधानक हुनकर ई प्रयास कतए धरि पहुँचत?
ओमहर जहलमे नागबाबाक स्थिति नित्यप्रति खरापे होइत गेलनि । जेलरबाबू कतबो प्रयास केलक ओ अनशन करिते रहि गेलाह । हुनका अस्पतालमे लए जएबाक विमर्श भए रहल छल । संभवतः दोसर दिन प्रातभेने ओ सभ ओहि प्रयासमे लागि जाथि। ऊपर अधिकारीसभक आदेशक प्रतीक्षा भए रहल छल। मुदा से समय नहि आएल । ओही राति अचानक हुनका हृदयाघात भेलनि। कनीकाल ओ घीं-घीं केलाह आ सभ खतम । रातुक बात रहैक,सभ सुति रहल छल । ककरो ध्यान नहि गेलैक । नागबाबा एहि दुनिआसँ बिदा भए गेलाह । भोर भेने जेलक सिपाही हुनका पड़ल देखि उठाबक प्रयास केलक ।
मुदा ओ रहितथि तखन ने ..। सौंसे जेलमे फसाद भए गेल । नागबाबा नहि रहलाह । अखबार,रेडिओ सभपर समाचार आबए लागल । कनीकेकालमे ई समाचार लखनपुरधरि सेहो पहुँचि गेल।
-रबीन्द्र नारायण
मिश्र, पिताक नाम: स्वर्गीय सूर्य नारायण मिश्र, माताक नाम: स्वर्गीया
दयाकाशी देवी, बएस: ६९ वर्ष, पैतृक ग्राम: अड़ेर डीह, मातृक: सिन्घिआ ड्योढ़ी,
वृति: भारत सरकारक उप सचिव (सेवानिवृत्त), स्पेशल मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट,
दिल्ली(सेवानिवृत्त), शिक्षा: चन्द्रधारी मिथिला महाविद्यालयसँ बी.एस-सी.
भौतिक विज्ञानमे प्रतिष्ठा : दिल्ली विश्वविद्यालयसँ विधि स्नातक, प्रकाशित कृति: मैथिलीमे: प्रकाशन वर्षः२०१७ १.भोरसँ साँझ धरि (आत्म कथा),२.
प्रसंगवश (निवंध), ३.स्वर्ग एतहि अछि (यात्रा प्रसंग); प्रकाशन वर्षः२०१८
४. फसाद (कथा संग्रह) ५. नमस्तस्यै (उपन्यास) ६. विविध प्रसंग (निवंध) ७.महराज(उपन्यास)
८.लजकोटर(उपन्यास); प्रकाशन वर्षः२०१९ ९.सीमाक ओहि
पार(उपन्यास)१०.समाधान(निवंध संग्रह) ११.मातृभूमि(उपन्यास) १२.स्वप्नलोक(उपन्यास);
प्रकाशन वर्षः२०२० १३.शंखनाद(उपन्यास) १४.इएह थिक जीवन(संस्मरण)१५.ढहैत
देबाल(उपन्यास); प्रकाशन वर्षः२०२१ १६.पाथेय(संस्मरण) १७.हम आबि रहल
छी(उपन्यास) १८.प्रलयक परात(उपन्यास); प्रकाशन वर्षः२०२२ १९.बीति गेल
समय(उपन्यास) २०.प्रतिबिम्ब(उपन्यास) २१.बदलि रहल अछि सभकिछु(उपन्यास) २२.राष्ट्र
मंदिर(उपन्यास) २३.संयोग(कथा संग्रह) २४.नाचि रहल छलि वसुधा(उपन्यास)
२५.दीप जरैत रहए (उपन्यास)।
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