प्रमोद झा 'गोकुल'
हमर कि ओकर? (बीहैन कथा)
तीन महीनासे बिन अन्न पानिके देह काँट काँट आ कनैत कनैत आँखि फूलिके
अल्लू सन भै गेलौए तोरा दुनू गोटेके गै माय ! चल उठ ,लागि जो पहिनहिं जकाँ
अपन दिन दुनियाँमे ! आ हँ ,तहूँ हौ बाबू ! घेंट उठाके आ सीना तानिके रहह
!! तोहर बेटीक इज्जैत नै गेलह ।इज्जैत गेलै ओइ वलात्कारीके जे हमरा संग
दिग्दानिस बलात्कार केलक । सेहो आन कोइ नै ,जकरा कैल तक हम चचाजी कहै छलियै
से ।
तोरा आरूके चिंता होइ छह जे हमर माङमे सिंदूर के भरत ? ते सुनि लै जाइ जाह
- हमर माङ सब दिन अहिना दप दप रहत । हमर कोखिमे बलजोरी जे बीज छिटलक से पलि
रहल अछि । ओकरा हम जन्म देबै ।ओ जहिया हमरासँ पूछत जे हमर बाप के ? हम ओकरा
देखा आ बुझा देबै जे तोहर बाप ऐ गामक नामी गिरामी सबसे पैघ लोक फल्लाँ
बाबूक बेटा फल्लाँ छियौ ।तखन ककर इज्जत जेतै ? हमर कि ओकर ?? बेटीक बात
सुनि दुनू परानी अबाक भै गेल।
-प्रमोद झा 'गोकुल', दीप,मधुवनी (विहार)
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