राज किशोर मिश्र, रिटायर्ड चीफ जेनरल मैनेजर (ई), बी.एस.एन.एल.(मुख्यालय), दिल्ली,गाम- अरेर डीह, पो. अरेर हाट, मधुबनी
मातृभूमि
जे भू-भा ग हृदय मे बसल,
अछि मो न मे जे सदि खन सजल,
जन्मभूमि भा रत हमर,
सभ सँ नमहर इएह भा ग्य भेटल।
वसुधा पर जँ अछि स्वर्ग कतहु,
ओ देश भा रतवर्ष अछि ,
को न वैभव अछि जगत् मे,
एतए नहि जकर उत्कर्ष अछि ?
एहि देशक धरती पर जरल छल,
सभ्यता क पहि ल बा ती ,
एहि ठा मक पूज्या संस्कृति ,
आदरणी या , जगत् मे, भा रती ।
जे सुकून अछि एहि मा टि मे,
पा ओल ने जा इत अछि ,आन ठा म,
तेँ तऽ कए रहलहुँ, बेर-बेर,
अछि , मा तृभूमि के हम प्रणा म।
ऊँच -ऊँच ,हि मनग सभ ठा ढ़,
उच्छल सरि ता क उद्गम पहा ड़।
झी ल, तड़ा ग, सुन्दर का नन,
गमकि रहल वन मे चा नन।
मरुभूमि सेहो अछि नेनुआगर,
ती न दि स सँ ओगरने ,अछि सा गर।
शां ति -सुकून के प्रती क भा रत,
भवि ष्य -जो ति , इएह मा टि , बा रत।
ज्ञा न ओ वि ज्ञा न, सभ मे आगू,गू
एहि महा न रा ष्ट्र केँ, गो र ला गू।
जग जनैछ ,हि नक पौ रुषता -ज्वा ल,
शत्रु के लेल, भा रत अछि का ल।
शां ति क सभ सँ पैघ पक्षधर,
वि श्व करैत अछि तेँ तऽ आदर।
भू पर नहि अछि एहि सँ सुन्दर देश,
जे, वि श्वक हटबैत अछि ,द्वन्द्व -कुहेस।
जे हवा अबैछ ,आन देश सँ,
गलि जा इत अछि ओकर वि षा द,
बनि उदा र ,बहैत अछि ओ पुनि ,
छलैक जा हि मे भरल फसा द।
धन -धा न्य सँ भरल -पूरल,
भा रत सँ, मंगल -या न उड़ल।
सा मंजस, समता , सहजी बि ता ,
मूलमंत्र अछि ,सहि ष्णुता ।
ता कि आउ सगर धरती पर,
जी वन मे ने कतहु, ई सुन्दरता ,
सर्वतो भद्र भा व सँ भरल,
भा रतक हका र ,के नहि पुरता ?
नव -पुरा न, वि ज्ञा न -ज्ञा न,
प्रगति ,शां ति लेल ,नि ष्ठा ,भक्ति ,
जय हो भा रतवर्ष हमर!
वसुधा पर अछि ई महा शक्ति ।
लि प्सा नहि अछि स्वर्ग के,
आ', ने चा ही अपवर्ग,
हर जनम भा रत मा तृभूमि ,
जँ, घुरि -घुरि आबी सर्ग।
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