कल्पना झा
मैथिली साहित्यमे उपेन्द्र नाथ झा 'व्यास' एवं हुनक परिवारक योगदान-६
आदर्शोन्मुखी कथाकार उपेन्द्रनाथ झा 'व्यास'
'सन्यासी' खण्ड-काव्य आ 'कुमार' उपन्यासक प्रकाशनक उपरान्त १९५२ ई. मे
उपेन्द्रनाथ झा ‘व्यास’ जीक पहिल कथा-संग्रह 'विडम्बना' प्रकाशित भेलनि।
जे सात गोट उत्कृष्ट कथाक संग्रह अछि। ओना एही पोथी 'विडम्बना'क भूमिका
लिखैत रमानाथ झा पोथी मे संकलित कथा सभ केँ 'गप्प' कहलनि अछि। रमानाथ
जीक कहब छनि जे 'व्यास' जीक प्रतिभा विशेष रूप सँ 'गप्प' काव्य मे
निखरैत अछि। हिनका सँ जे केओ परिचित छथि, जे केओ हिनका संग गप्प कएने
छथि, सभ स्वीकार करताह जे गप्प करबाक हिनका मे एक गोट अद्भुत छटा छनि।
अपन हृदयक भाव केँ प्रच्छन्न राखि हिनका गप्प करए नहि आबैत छलनि। हिनकर
गप्प सँ हिनक स्वभाव, हिनक आचार, हिनक संस्कार, सभ कथूक जेना अभिव्यंजन
होइत रहए। तेहने हिनक लिखलो 'गप्प' सभ छनि। हिनक लिखल 'गप्प' मे जँ
हिनकर नाम नहिओ रहतनि तथापि हिनका सँ जे केओ नीक जकाँ परिचित छथि से
बूझि जेताह जे ई हिनके रचना थिकनि। एनमेन कहबहिक अनुरूप 'गप्प' लिखबाक
हिनक आत्माभिव्यंजनक संग मीलि हिनक रचना केँ रोचक ओ विलक्षण बनाए दैत
अछि। ओ विषय किछु रहौक हिनक 'गप्प' मात्र सुपाठ्य होइत अछि, पाठकक
चित्त केँ बिनु आकृष्ट कएने नहि रहि सकैत अछि।
खैर जे-से। कथाक संग्रह होइक वा 'गप्प'क, अछि धरि सातो के सातो सनगर। एहन सनगर जे कथाक विकास-धारा मे नब मोड़ अनलक। विविध पृष्ठभूमिक कथानक सँ युक्त एहि कथा-संग्रह केँ पढ़ि लेखकक हृदयक कोमलता सँ लोक सहजहि परिचित भ' जाएत। मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण सँ कोनो घटनाक अवलोकन/चित्रण करब पसिन कएल गेल पाठक वर्ग द्वारा। युवावस्था मे 'संन्यासी' आ 'कुमार' सन कृतिक प्रकाशन लोक केँ भ्रम मे ध' देने हेतनि जे 'व्यास' जीक हृदय सांसारिक सुख सँ विरक्त सन तँ ने छनि। युवावस्था मे एहि तरहक विषय पर लिखबाक पाछाँ वैराग्य सन मानसिकताक अनुमान सेहो लगा लेल गेल होएत बहुत लोक द्वारा। अपन मैथिल समाज अनुमान लगएबा मे सभदिनाँ उस्ताद रहल अछि। से मुदा कथा-संग्रहक प्रकाशन एहि तरहक अनुमान पर विराम लगएबा मे निश्चित सहायक रहल होएत, से हमर अनुमान अछि (छी तँ हमहूँ मैथिले ने....अनुमान लगा लेलहुँ हमहूँ)
सांसारिक सामाजिक जीवनक छोट-छोट सुख-दुखक संग अन्तर्मनक द्वंद्व केँ उजागर करैत अछि 'व्यास' जीक कथा सभ। कथा लिखैत काल एकटा नीक कथाकार अपन हृदय उपछि क' राखि दैत अछि। आ से स्पष्ट परिलक्षित होइत अछि 'व्यास' जीक लिखल कथा सभ पढ़ि क'।
हिनकर दोसर कथा-संग्रह 'भजना-भजले' प्रकाशित भेलनि १९८९ ई. मे। दुनू कथा संग्रह मिला क' मात्र सतरह गोट कथाक सृजन कएलनि उपेन्द्र नाथ झा 'व्यास' जी। जे हिनक विराट व्यक्तित्वक (साहित्यिक ओ सामाजिक, दुनू तरहेँ) अनुरूपेँ झुझुआन लगैत अछि। महान साहित्यकार रूप मे जानल जाइत रहल छथि। स्कुलिए जीवन मे 'व्यास' बनि गेल छलाह, उपनामक संगे वैचारिकता मे सेहो.....तखन कथाक संख्या कम होएब एहि बातक द्योतक अछि जे 'व्यास'जीक सर्जनात्मक अभिव्यक्तिक मूलविधा कथा नहि छलनि। ओना जँ 'व्यास'जीक रचनात्मक जीवनक सम्पूर्ण उपलब्धि केँ एकठाम राखि क' देखल जाए, तँ ई स्वतः स्पष्ट भए जाइछ जे हुनक रचनात्मक जीवन मे निरन्तरता अछि। ओ निरन्तरता कथाक अतिरिक्त उपन्यास, कविता, यात्रा-साहित्यक संग अनुवाद साहित्य केँ सेहो पुष्ट करैत भेटत। ओहुना लेखकक साहित्यिक उत्कर्षक मानदण्ड 'मात्रा' नहि, रचना मे अन्तर्निहित 'गुणवत्ता' मानल जएबाक चाही। ढाकीक ढाकी लिखलो पर जँ कोनो जीवन-मूल्य स्वीकृत नहि भए सकल अथवा रचनाकारक पाँती मे पृथक व्यक्तित्व नहि झलकैत देखा पड़ल तँ भरिगर गत्ताक अछैतो जीवन कालहि मे ओ रचनाकार अप्रासंगिक घोषित भए जाइत अछि।
हिनक कथा सभ कल्पितो हो, तथापि कहबाक छटा तेहन चमत्कारी, भाषा तेहन
प्राकृतिक, परिस्थितिक वर्णन तेहन स्वाभाविक आ चरित्रक चित्रण तेहन
सहानुभूतिपू्र्ण रहैत अछि जे बुझा पड़त सभटा सत्ये गप्प अछि। ताहू मे
उत्तम पुरुष मे कहल गप्प वा कथा सभ मे वक्ताक स्वभाव ओ संस्कार मे
लेखकक स्वभाव ओ संस्कारक ततेक साम्यता भेटैत अछि जे संदेह नहि विश्वास
भ' जाइत छनि पाठक केँ जे सभटा घटना लेखककक संग घटल छनि। माने अपन भोगल
घटनाक साहित्यिक वर्णन कएलनि अछि लेखक। जेना हिनक सुप्रसिद्ध कथा 'रुसल
जमाए' आ 'एकादशी महात्म्य' अप्पन अनुभव सन बुझा पड़त।
'व्यास' जी गप्प करबाक छटा मात्र सँ नहि एक दोसरो कारण सँ विशिष्टताक परिचय दैत रहलाह अछि अपन लेखनी मे। काव्य हो, कथा हो वा उपन्यास, सभ तरहक कृत्य मे हिनक मैथिलत्वक झलक स्पष्ट देखा पड़त। मैथिल परिवारक, मैथिल समाजक एहन वास्तविक, स्वाभाविक आ सुरुचिपूर्ण चित्रण बहुत कम रचनाकारक रचना मे देखबा लेल भेटत। अपना केँ मैथिल कहबा मे हिनका संकोच नहि होइत छनि। ने अपन समाजक उपहास वा कुचेष्टा कए अन्य समाज मे प्रतिष्ठा लाभ हिनक अभीष्ट रहलनि। मैथिलक जे पुरान संस्कृति छैक, ताहि पर गौरव छनि हिनका। मुदा कालक्रमेण अपना समाज मे जे त्रुटि सभ आबि गेल अछि ताहि दिशि आँखि मूनि केवल प्राचीनताक पक्ष धरब सेहो हिनक उद्देश्य नहि रहलनि। प्रत्युत वर्तमान समय मे नवीन परिस्थितिक माध्यमे अपना समाज मे जे सुधार आवश्यक छैक तकरो महत्व ई नीक जकाँ बुझैत छथि। प्राचीनताक पथ धएने जीवनक कठिन संघर्ष मे जाहि साधना सँ समाज अपन प्राचीन महत्व अक्षुण्ण राखि सकत ताही रूपक हिनक चित्रण अछि आ ताहि मे नवीनताक जे सामंजस्य अछि से हिनक भावुक हृदयक परिचय दैत अछि। दुष्टहुक चरित्र मे गुण देखाए ओकरा मानव बनाए दैत छथि। नर पिशाचक चित्रण 'व्यास' जीक रचना मे कतहु नहि भेटत।
सर्वविदित अछि जे समाज मे सभ तरहक लोक होइत अछि, चोर-उचक्का, दुराचारी-व्याभिचारी सँ लए केँ त्यागी, परोपकारी एवं सद्वृत्तिक लोकधरि। परंच, 'व्यास'जी ओहन प्रवृत्ति अथवा प्रकृतिक लोक केँ अपन कथाक चरित्र नहि बनओलाह। जाहि सँ सामाजिक जीवन किंवा व्यक्तिगते जीवन मे मूल्यहीनताक स्थिति आबए, ओकर विजय होइक, दुष्टता बढ़ैक।
वेदव्यासक प्रसंग कहल जाइत अछि, अठारह पुराण मे मूलतः दुइएटा तथ्य लिखल अति - परोपकार थिक पुण्य आ परपीड़न थिक पाप। जीवनक इएह आदर्श कथाकार 'व्यास' जीक कथाक नायक/नायिकाक जीवन मे परिलक्षित होइत अछि। ई आदर्शवादी आस्थावादी दृष्टि जीवन मूल्य केँ सामाजिकता प्रदान करैत अछि। मुदा 'व्यास' जीक आस्थावाद व्यक्ति आधारित नहि अछि, व्यक्ति आत्मबल केँ प्रकट नहि करैत अछि। जीवनक आ जीवनक प्रति व्यक्त एहि आस्थाक जड़ि अछि परोक्षसत्ता मे। धर्मनिष्ठ व्यक्तिक प्रत्येक आचारणक परिणति अथवा कर्मक फल केँ ईश्वराधीन मानबा लेल प्रतिबद्ध रहैत अछि, से हिनक लेखनी मे यत्र-तत्र परिलक्षित होएत।
'व्यास' जीक कथा सभ मे समाज मे व्याप्त विकृति आ रूढ़ि पर प्रहार भेल अछि। आचरणक शुद्धताक संगे विचारक शुद्धता आ उच्चता पर विशेष बल देल गेल अछि। कहबाक माने समाज मे एक टा आदर्श स्थापित करबाक प्रयास करैत सन। मूलतः आदर्शोन्मुखी साहित्यकार छलाह 'व्यास' जी।
स्तरीय कथानक ओ कथ्यक संग हिनक कथाक एकटा पैघ विशेषता रहलनि रोचकता।
संगहि भाषाक विशुद्धता सेहो विलक्षण। आ तैँ मैथिली कथा साहित्यक विकास
मे 'व्यास' जीक कथाक छवि सभ सँ भिन्न अछि। समकालीन अथवा परवर्तीकालक
कथाकारक संरचना सँ सर्वथा भिन्न स्वाद हिनक कथा दैत अछि। 'व्यास' जीक
कथा समसामयिक जीवन सँ विशेष प्रभावित नहि होइत अछि आ परिवर्तित होइत
युग-जीवन आओर विकृति आ विडम्बना सँ अप्रभावित रहैत अछि। जे 'व्यास' जीक
कथाक स्वाद आ प्रभाव केँ बासि-तेबासि होमए नहि दैत अछि। टटका बनल रहल
सभदिन। जेना पात्रक निर्दुष्टता आ सच्चरित्रता 'व्यास'जीक कथाक
वैशिष्ट्य थिकनि, ओहिना भाषाक शुद्धताक रक्षा करैत मनोरंजक शैली मे अपन
बात कहि देब 'व्यास' जीक कथाक आकर्षण ओ विशेषता थिकनि।
संपादकीय सूचना-एहि सिरीजक पुरान क्रम एहि लिंकपर जा कऽ पढ़ि सकैत छी-
मैथिली साहित्यमे उपेन्द्र नाथ झा 'व्यास' एवं हुनक परिवारक योगदान-1
मैथिली साहित्यमे उपेन्द्र नाथ झा 'व्यास' एवं हुनक परिवारक योगदान-2
मैथिली साहित्यमे उपेन्द्र नाथ झा 'व्यास' एवं हुनक परिवारक योगदान-3
मैथिली साहित्यमे उपेन्द्र नाथ झा 'व्यास' एवं हुनक परिवारक योगदान-4
मैथिली साहित्यमे उपेन्द्र नाथ झा 'व्यास' एवं हुनक परिवारक योगदान-5
अपन मंतव्य editorial.staff.videha@gmail.com पर पठाउ।