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कल्पना झा

मैथिली साहित्यमे उपेन्द्र नाथ झा 'व्यास' एवं हुनक परिवारक योगदान-२

नानीक हठ : उपेन्द्र नाथ झा 'व्यास' लेल वरदान



हरिपुर 'बख्शी' टोल निवासी एकटा अत्यन्त निर्धन दंपतिक पाँच-छओ टा संतान लगातार जन्मक उपरान्त मृत्यु प्राप्त करैत गेलनि। अन्ततः कुल तेरह गोट संतान मे सँ मात्र दूटा पुत्र देवता-पितरक कृपा आ जोग-टोनक बदौलति कहुना बचलाह आ कि कबुला-पातीक बदौलति बचाओल गेलाह, भगवान जानथि। जे-से.....ओहि दंपतिक ज्येष्ठ बालक जखन पाँच बरखक भेलाह, तखन अक्षरारम्भ संस्कार पिताक हाथेँ कराओल गेलनि। गाम मे एकटा छोटछीन लोअर प्राइमरी स्कूल छलैक। ओही प्राइमरी स्कूल मे प्राथमिक शिक्षाक लेल जाए लगलाह ओ बालक। तदुपरान्त गाम सँ एक किलोमीटर दूरी पर अवस्थित अपर प्रइमरी स्कूल, कलुआही मे शिक्षा ग्रहण कएलनि ओ बालक। जेहने देखैत सुन्दर, भगवानक देल भव्य मुख-मण्डल, तेहने प्रतिभाशाली। संस्कृत, गणित, भूगोल, सभ विषय मे हिनक प्रतिभाक लोहा मानल जाए लागल, विद्यालय मे। बस अंग्रेजी कनि कमजोर रहनि । मिडिल स्कूल मे, जिला भरि मे छठम स्थान प्राप्त कएलनि।

मुदा मेधावी रहने की होइतनि। पिता लग बालक केँ आगाँ पढ़एबाक उपाए नहि छलनि। पढ़ाएब तँ बादक बात, भरि पेट भोजनक व्यवस्था करब सेहो पिताक लेल दुष्कर भऽ रहल छलनि। पिताक विपन्नता...पूजा पाठ मे लीन रहब, ओहि बालकक भविष्य केँ गर्त मे डुबा देबाक संयोग बना रहल छलए। मुदा भावी प्रबल होइछ। से सत्ते !

"जकरा प्रारब्ध मे जे रहैत छैक से भेटितहि छैक" एहि बातक प्रमाण अछि हरिपुर 'बख्शी' टोल मे जनमल एहि नेनाक जीवन। केओ ने केओ माध्यम बनि जाइत छैक आ क्षणहि मे सभ किछु कोना बदलि जाइत छैक, तकर प्रमाण सेहो अछि एहि नेनाक जीवन-यात्रा। आ से माध्यम बनलथिन एहि नेनाक नानी।

बनैली राज जकरा गढ़बनैली राजक नाम सँ सेहो जानल जाइत अछि। बिहार राज्यक पूर्णियाँ जिला मे स्थित एकटा जमींदारी एस्टेट छलए। बनैली एस्टेटक स्वामित्व ब्राह्मणे सभ लग छलनि। ओ सभ मिथिला क्षेत्रक शासक राजवंशहि केँ मानल जाइत छलाह। एस्टेटक नाम तत्कालीन पूर्णियाँ जिलाक एकटा गाम 'बनैली' सँ संबद्ध अछि प्रायः। भऽ सकैत अछि ओहिठामक राजमहलक निर्माण मे अधिकांश राजमिस्त्री आ मजदूर बनैली गामक रहल होइक किंवा ओहिठाम राखल गेल अन्य कर्मचारी (जेना-भनसिया, माली वा अन्य सफाई कर्मचारी) मे सँ बेसी संख्या बनैली गाम सँ आएल होइथ। जे-से।‌

गढ़बनैली राजक एकटा भनसियाक टीम हरिपुर 'बख्शी' टोल आएल छलए। कोन अवसर पर आएल छलथि ई भनसिया सभ, से स्पष्ट जनतब नहि भेटि सकल हमरा। बस एतबा बूझल अछि जे ओही भनसिया सभक संग ओ विपन्न पिता, अपन विपन्नता सँ मुक्त करबाक उद्देश्य सँ अपन 'करेजक टुकड़ी' अपन बालक केँ गढ़बनैली राजक एस्टेट पठएबाक निर्णय लऽ लेने छलाह। एकदम फाइनल डिसीजन। कारण गाम पर जमीन-जथा अत्यल्पे सन रहने खेबा-पीबाक असौकर्य बला स्थिति छलनि। पिताक मोन मे अएलनि, एही भनसिया सभक संग टहल करबालेल, संग लगा दैत छी बच्चा केँ। बर्तन-बासन माँजि लेल करत आ तकर परिणाम स्वरूप दुनू साँझ भरि पेट खाए लेल भेटि जेतैक बच्चा केँ। एहिठाम तँ एहन स्थिति, जे आइ खाएत, काल्हि की बनतैक तकर ठेकान नहि। एकटा पिता केँ एहन निर्णय लेबालेल अपन करेज केँ पाथर बना लेबा मे केहन पीड़ा भेल हेतनि से बूझल जा सकैछ। आ इएह कारण रहल होएत, जे पिताक प्रति सम्मान राखैत ओ बालक आजीवन एहि भनसिया बला प्रकरण केर चर्चा कत्तहु नहि कएलनि।

बेस ! निश्चित भेल जे ओ बच्चा भनसिया सभक संग गढ़बनैली राज लेल प्रस्थान करताह। माए कानैत-खिजैत, नोर पोछैत, जएह किछु कपड़ा-लत्ता छलनि बच्चाक, तकर मोटरी बान्हए लगलीह। ई दृश्य देखि बालकक नानी, जे बख्शीए टोल मे रहैत छलीह, पेटकान लाधि देलनि। "बच्चा एत्तहि रहताह, हमर बच्चा आगाँ पढ़ताह, ओ बर्तन-बासन नहि मजताह" एहि सभ माँगक संग अट्ठा-बज्जर खसा देलथिन। एहि बच्चाक नानी आ बड़ी राजमाता, समवयस्क। राजमाता साहिबाक प्रपितामह आ हिनकर नानीक पितामह सहोदर... यैह सम्बन्ध रहइक। दुनू बाल्यकालहि सँ संगी। दुनूक बीच "बहिना" लागल छलनि। आब बेटी जमाए लग कोनो उपाए नहि छलनि। जाहि बच्चा केँ भोरे भनसिया सभक संग गढ़बनैली राज जेबाक छलनि, से भोरे विदा भेलाह दरभंगा राजदरबार लेल। वास्तव मे "भावी" कतेक बड़ प्रबल होइछ, ओह....बेर बेर मोन मे आबि रहलए।

नानी सिखा कऽ विदा कएलथिन दरभंगा लेल, जे राजमाता सँ भेंट कऽ कहबनि,"हम हुनकर नाति छी; हमरा आगाँ पढ़बाक अछि।" बेस ! राजमाता सँ मददि केर आस लऽ बच्चा 'बख्शी' टोल सँ दरभंगा लेल प्रस्थान कएलनि। किछु गौँआक संग। पैरे-पैरे। एक भोर विदा भेलाह गाम सँ, से मुन्हारि साँझ भऽ गेलनि दरभंगा पहुँचैत। राति कऽ केओ राजदरबार मे प्रवेश करए देत कि नहि, से सोचि एकटा मन्दिर मे शरण लेलनि। मन्दिरक लगीच एकटा पोखरि देखि, भूख-प्यास सँ लोहछल ओ बच्चा, ओतहि हाथ-पैर धोलनि आ चुरुके-चुरुके कनि पानि पीबि अपन तृष्णा मेटओलनि। पानि पीबि मन्दिरक ओसारा धरि अबितहि मुर्छित भऽ गेलाह। भरि दिनक थकान सुकुमार बच्चा केँ बेहोश कऽ देलकनि। लोक सभ पानि छीटैत गेलाह। होश मे अएलाह, तखन नाम - गाम पुछलथिन मन्दिरक पुजारी। कहलथिन , " हम पंडित विश्वनाथ झाक बालक उपेन्द्र थिकहुँ।" संयोग वश ओहि मन्दिरक, ओ पुजारी 'बख्शी'ए टोलक मूल निवासी छलाह। राति ओतहि विश्राम कएलनि। प्रातः काल पुजारी जी केँ कहलथिन, "बड़ी राजमाता सँ भेंट करबाक अछि हमरा।"

संयोग कोना-कोना बनैत गेलनि, से ध्यान देबाक बात अछि। राजदरबारक कोनो कर्मचारी सँ मन्दिरक पुजारी केँ परिचय छलनि। ओ राजमाता धरि ई सूचना पहुँचबा देलथिन, जे हरिपुर 'बख्शी' टोल सँ एकटा बालक अहाँ सँ भेंट करबाक इच्छाक संग एहिठाम आएल छथि। राजमाताक आज्ञा भेलनि, आ बालक उपेन्द्र हुनका सोझाँ उपस्थित भेलाह। नानीक सिखाएल बात कहलथिन। राजमाताक हृदय ममता सँ भरि गेलनि, पुछलथिन "किछु खएलहुँ अछि भोर सँ ?"
बालक उपेन्द्र चुप्प! किछु नहि बजलाह। राजमाता केँ बुझबा मे आबि गेलनि, बच्चा भूखल अछि। राजमाताक आदेश पर भरि थारी पूड़ी-पकवान-मधुर आनल गेल बालकक सोझाँ। ओ "भूख" आ ओ "आतिथ्य" कहियो नहि बिसरलाह उपेन्द्र नाथ झा 'व्यास'।

अस्तु ! राजमाताक आदेश सँ राजनगरक हाइस्कूल मे नामांकन कराओल गेलनि बालक उपेन्द्रक। दया बाबूक सहयोग सँ राजमाता साहिबा सँ नियमित प्रतिमास पाँच रु.क छात्रवृत्ति प्राप्त होमए लगलनि। एहि तरहेँ आगाँ शिक्षा ग्रहण करबाक बाट प्रशस्त भेलनि। इंजीनियरिंग कॉलेज धरि पहुँचैत, समय-समय पर अनेक उदारमना गणमान्यक सहयोग भेटैत रहलनि।

ई घटना, माने नानीक हठ बालक उपेन्द्रक जीवन केँ दिशे बदलि देलकनि। हुनका लेल वरदान सिद्ध भेलनि नानीक हठ। एहि घटना सँ हमरा आजुक महिला सशक्तिकरणक नारा लगओनिहारि, आन्दोलनी महिला सभ पर 'दयाभाव' आबैत अछि। महिला, सभ दिन सँ सशक्त रहल छथि, एहिलेल कोनो नारेबाजी, कोनो आन्दोलनक बेगरता नहि छैक। अपन स्वभाव सँ केओ सशक्त वा अशक्त होइत अछि। चाहे ओ पुरुष होइथ कि महिला। हमर एहन सोचब अछि।

 

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