नवीन कुमार झा ‘शरद’ (9955089655/ (W) 6200015746)
मिथिलाक माटि-पानिक कथाकार : शिवशंकर श्रीनिवास
मैथिली कथा साहित्यक इतिहासमे एक्कैसम शताब्दीक दोसर दशकक महत्वपूर्ण कथाकार छथि शिवशंकर श्रीनिवास। गामक अस्तित्व, विकास आ प्रतिष्ठाक लेल संघर्षरत, कृषक संस्कृतिमे रमल, बदलैत सामाजिक परिस्थिति ओ जनचेतनामे मुक्तिक छटपटाहटिकेँ स्वर देनिहार शिवशंकर श्रीनिवासजी अपन कथामे मिथिलाक माटि-पानि, आमलोक, विकाससँ दूर अनभुआर होइत गाम तथा मानव ह्रदयक रागात्मक सम्बन्धकेँमनोविश्लेषणात्मकरूपसँ जगजियार करैत, पाठककेँ सहजहिँ आकर्षित ओ प्रभावित करैत छथि।
हिनक प्रारम्भिक शिक्षा मध्य विद्यालय, लोहनामे भेलनि। लक्ष्मीश्वर एकेडमी, सरिसब-पाहीसँ 1970 ई. मे मैट्रिक परीक्षा उत्तीर्ण भेलाह। लक्ष्मीश्वरसिंह महाविद्यालय, सरिसब-पाहीसँ 1972 मे आई.ए. तथा 1976 ई. मे मैथिली विषयसँ बी.ए. प्रतिष्ठा उत्तीर्ण कएल। ल.ना.मिथिला विश्वविद्यालय, दरभंगासँ 1979ई. मे मैथिलीसँ एम.ए. तथा बी.पी.मंडल विश्वविद्यालय, मधेपुरासँ 1991ई. मे हिन्दी विषयसँ एम.ए. केर परीक्षा उत्तीर्ण कएल। 1993 ई.मे ल.ना.मिथिला विश्वविद्यालय, दरभंगासँ पी.एच.डीक उपाधि प्राप्त कएल। हिनक शोधक विषय छल –‘मैथिली कथामे मिथिलाक सामाजिक जीवनक चित्रण।’शोध निर्देशक छलाह डा. भीमनाथ झा।
कर्ममय जीवन -श्रीनिवासजी 1972 ई.मे आई.ए. केर परीक्षाक पश्चात् चारि माह तक रोजगारक खोजमे गुवाहाटीमे छलाह। 1976-77 ई.मे सकरी पब्लिक स्कूलमे सहायक शिक्षकक पद पर कार्य सेहो केलनि । 01 फरवरी 1980 ई. केँ हिनक नियुक्ति उमेश संस्कृत महाविद्यालय, तरौनीमे मैथिलीक व्याख्याताक पद पर भेल। 1999 ई.मे कल्याणी मिथिला संस्कृत महाविद्यालय, दीप, मधुबनीमे मैथिलीक व्याख्याता नियुक्त भेलाह आ ओतहिसँ 31 जुलाई 2018 ई. केँ उपाचार्य सह प्रभारी प्रधानाचार्य पदसँ सेवानिवृत्त भेलाह।
मैथिली साहित्यमे रचना -सरिसब-पाही परिसर सदासँ साहित्य आ सांस्कृतिक रूपेँ समृद्ध रहल अछि। किरणजी द्वारा शुरू कएल गेल ‘विद्यापति गोष्ठी’ क प्रसादात मैथिली भाषा-साहित्यक प्रचार-प्रसारक संग-संग एकर विकासक बाट प्रशस्त भेल छल। एहि गोष्ठीक क्रिया-कलाप परिसरक नव-नव साहित्यकार केँ दिशा निर्देशित कए उत्साहित करैत रहल। श्रीनिवासजी अपन एहि परिवेशीय वातावरणसँ प्रभावित भए मैथिली भाषामे लेखन दिस प्रेरित भेलाह।
1972 ई. मे सोमदेव केर संपादकत्वमे प्रकाशित पोथी ‘अग्नि संकलन’ मे हिनक पहिल कविता ‘काँट कटि रहल अछि’ प्रकाशित भेल।कलकत्तासँ बाबू साहेब चौधरी केर संपादकत्व प्रकाशित ‘मैथिली दर्शन’पत्रिकामे हिनक पहिल कथा ‘इजोत’1973 ई. मे प्रकाशित भेल छल। श्रीनिवासजी कथाक अतिरिक्त कविता, गीत आ समालोचना सेहो लिखैत छथि, जे समय-समय पर विभिन्न पत्र-पत्रिकामे प्रकाशित होइत रहल अछि। किरण साहित्य पर सेहो हिनक कार्य उल्लेखनीय अछि। मैथिली साहित्यमे श्रीनिवासजीक पाँच गोट कथा-संग्रह, तीन गोट समालोचनाक पोथी एवं चारि गोट संपादित पोथी प्रकाशित पोथी अछि।
मौलिक प्रकाशित पोथीक संक्षिप्त परिचय -
(1) त्रिकोण (सहयोगी कथा–संग्रह)– उर्वशी प्रकाशन, पटनासँ 1986 ई. मे प्रकाशित ई पोथी साझी कथा-संग्रह थिक। एहिमे एकहि गाम लोहनाक तीन कथाकार अशोक,शिवशंकर श्रीनिवासक ओ शैलेन्द्र आनंद द्वारा लिखल कुल पन्द्रह गोट कथा प्रकाशित अछि।
एहि पोथीमे श्रीनिवासजीक पाँच गोट कथा प्रकाशित अछि – दक्षिणा, अपन बुत्ता, धार आ मनुक्ख, परिस्थिति आ एकटा डेग लैत जिनगी। संग्रहक एहि कथा सभमे मिथिला केर जन-जीवनमे होइत सामाजिक, आर्थिक ओ राजनीतिक परिवर्त्तनक चित्रण कएल गेल अछि।
(2) अदहन (कथा–संग्रह)-भाषा प्रकाशन, श्रीराम भवन, पटनासँ1991ई. मे प्रकाशित एहि पोथीमे कुल पन्द्रह गोट कथा संकलित अछि। कथाक शीर्षक अछि- परिवर्त्तन, बताहि, आदंक, इजोत, सीतापुरक सुनैना, अवामबला, नाङट, अपन परार, अपना लेल, बसातमे उड़िआइत लोक, जागल गामक लोक, दृष्टि भेद, बाँट – बखरा, पनिडुब्बी, आ धरती।
श्रीनिवासजीक कथा ओ शिल्प पर विचार प्रकट करैत प्रसिद्द साहित्यकार जीवकान्तजी एकर भूमिका मे लिखने छथि –“हिनक कथा सभमे कहबाक जे ढंग अछि, से उत्सुकता जगबैत अछि। एहि दृष्टिएँ ओ बंगलाक कथाकार सभ जकाँ पाठक पर अपन पकड़ बनओने रखबामे सिद्धहस्त छथि...। कमला आ बागमती कछेरक मैथिली ई खूब सुन्नर लिखैत छथि। सामान्य लोकक दैनन्दिन भाषाक किछु अद्भुत शब्द सभ ई जीवनसँ सोझे उठा कए देलनि अछि। एहू तरहें ओ भाषा आ साहित्यकेँ संपन्न कए रहलाह अछि।”
श्रीनिवासजी एहि पोथीक कथा सभमे कृषकसँ मजूर बनबाक व्यथा, पाखण्ड चरित्र एवं अवसरवादिताक उदघाटन, स्त्रीगणक दुरवस्था एवं शोषण, पारिवारिक मतभिन्नता, घरक बूढ़-बुढानुसक मानसिक पीड़ा, लोकक बीच आपसमे अविश्वास आदिक सटीक चित्रण कएल अछि।
(3) गामक लोक (कथा–संग्रह)– सुशील–स्मृति, लोहना, सरिसब-पाही, मधुबनी द्वारा 2005 ई.मे प्रकाशित एहि पोथीमे कुल सत्रह गोट कथा संकलित अछि।कथाक शीर्षक अछि-सिनुरहार, हरिजीक कृपासँ, चक्का, जमुनिया धार, पिंजराक सुग्गा, पटोर, एक सत, महतोक बहुरिया, अपन घर, गाछ-पात, इछाइन, हेल्पर, लड़ाई, दिशा, फर्क, चिंता, चिडै नहि मनुक्ख थिक।
श्रीनिवासजीक कथाक प्रसंग एहि पोथीक भूमिकामे प्रसिद्द कथाकार अशोक लिखैत छथि –“ शिवशंकर अपन कथा सभक माध्यमे सुन्दर जीवनक एक प्रारूप प्रस्तुत केलनि अछि। एहि क्रममे जे किछु कुरूप अछि, व्यक्तित्वक विकासमे बाधक अछि, जीवन लेल अवांछित अछि, तकर निषेधो केलनि अछि। एहन कतेको प्रारूप आर भए सकैत अछि। एहि सभ मादे श्रीनिवासक अपन एक ख़ास दृष्टि छनि, से दृष्टि एकदम स्पष्ट छनि। ओ जनैत छथि जे जीवनमे संघर्ष वैह लोक क’ सकैत अछि जे सुन्दर ओ व्यापक रूपें जीवन जीब’ चाहैत अछि।”
श्रीनिवासजी गाममे रहनिहार आम लोकक कथाकार छथि। अपन माटि-पानिसँ हिनका अटूट स्नेह छनि। ‘गामक लोक’ संग्रहक कथा सभमे शोषण मुक्त समाजक कल्पना करैत, ओकर मानवीय पक्षकेँ उद्घाटित करबामे कथाकार पूर्ण सफल भेलाह अछि।
(4) गुण-कथा (कथा–संग्रह)- नवारम्भ प्रकाशन, पटनासँ 2014 ई. मे प्रकाशित एहि पोथीमे कुल तेरह गोट कथा संकलित अछि। कथाक शीर्षक अछि- साहुकारी, सहरजमीन, सतभैया, गुण-कथा, रुमाल, दबाई, उग्रह, रसक अर्थ, अनुराग, आयास, पितामही, धार नहि मजरलै, मनुक्ख नदी थिक।
एहि पोथीमे संकलित कथा सभमे श्रीनिवासजी स्वार्थ पर आश्रित संबंध, बाजारवाद, वर्ग संघर्ष,पारंपरिक पारिवारिक रूढिवादिता पर प्रहार, दाम्पत्य संबंधक मनोविश्लेषणात्मक चित्रण, एकल परिवारमे वृद्ध जनक उपेक्षा, रोजगारक खोजमे अपन माटि-पानि छोड़बाक विवशता, दाही-जड़तीक प्रभावसँ कराहैत सामान्य जन आदि विषय-वस्तुकेँसहज भाषामे प्रस्तुत केलनि अछि।
(5) माटि (कथा संग्रह)-नवारम्भ प्रकाशन,मधुबनीसँ एहि पोथीक प्रकाशन 2021 ई.मे भेल अछि। शिवशंकर श्रीनिवासक ई पाँचम कथा –संग्रह थिक। एहि पोथीमे सोलह गोट कथा संकलित अछि। कथाक शीर्षक अछि – माटि, बदलैत रूप, बेगरता, पसाही, शुभ इच्छा, अखण्ड दीप, जाकर टांग तकर आम, जिनगी, अद्भुत, अंतर, जड़ी, मित्र, पुतोहु –बेटी, निजदेश, पिरीत, संवेदना।
एहि संग्रहक कथा सभमे कथाकार शोषित –पीड़ित-वंचित समाजक संघर्षपूर्ण जीवनक चित्रण करैत मानवताक बाट पर डेग बढाओल अछि। कथाकार स्वयं आमलोक छथि आ सदिखन अपन माटि-पानीसँ जुड़ल रहलाह अछि। आमलोकक बुत्ता पर हिनका अटूट विश्वास छनि। अपन अस्तित्व, विकास आ प्रतिष्ठाक लेल संघर्षरत चरित्रक सृजन कए, कथाक माध्यमसँ पाठकक समक्ष प्रस्तुत करबामे श्रीनिवासजी पूर्ण सफल भेलाह अछि।
श्रीनिवासजीक कथाक प्रसंग प्रसिद्द कथाकार अशोक अपन आलेख –‘कथाकार शिवशंकर श्रीनिवास’ मे लिखने छथि –“ कथाकारक काज होइत छै जे ओ वास्तविक संसारसँ पृथक अपन मनोरथक अनुकूल एक फराक कथा-संसार रचय। जन-जीवनसँ उठा कए एहन चित्र सभ उपस्थित करए जे एक फूट संसार रचबाक विन्याससँ सुसज्जित हो। ओकर आँखिमे बसल हो। से मनोरथक संसारकेँ श्रीनिवासक कथा – संसारमे देखल जा सकैत अछि।”
(6) बदलैत स्वर (समालोचना)-नवारम्भ प्रकाशन, पटनासँ 2011ई. मे प्रकाशित एहि पोथीमे मैथिली कथाक आलोचनात्मक अध्ययन प्रस्तुत कएल गेल अछि।एहिमेश्रीनिवासजी स्वतंत्रतापूर्व, स्वातंत्रोत्तर एवं समकालीन कथा साहित्यक विशद वर्णनक संग-संग मैथिली कथाक समकालीन स्वरकेँ प्रभावी रूपसँ व्यक्त करैत निम्नलिखित कथाकारक समुचित समालोचना प्रस्तुत केलनि अछि–भुवनेश्वर सिंह ‘भुवन’, कांचीनाथ झा ‘किरण’,हरिमोहन झा, मनमोहन झा,धीरेश्वर झा ‘धीरेन्द्र’, रामदेव झा,मायानंद मिश्र, राजकमल चौधरी, प्रभास कुमार चौधरी अओर जीवकान्त। मैथिली साहित्यक अध्येता ओ शोधार्थीक लेल ई पोथी बहुत उपयोगी अछि।
(7) मैथिली उपन्यासक आलोचना– शेखर प्रकाशन,पटनासँ एहि पोथीक प्रकाशन 2021 ई.मे भेल अछि। शिवशंकर श्रीनिवास द्वारा एहि पोथीमे डा.कांचीनाथ झा ‘किरण’क अभिमानिनी, प्रो० हरिमोहन झाक ‘कन्यादान’, डा.शैलेन्द्र मोहन झाक ‘प्रतिमा’ ओ ‘मधुश्रावणी’, यात्रीजीक ‘बलचनमा’ ओ ‘नवतुरिया’, ललितक ‘पृथ्वीपुत्र’, डा.धीरेश्वर झा ‘धीरेन्द्र’क ‘भोरुकवा’, ‘कादो आ कोयला’,‘ठुमुकि बहु कमला’, श्रीमती लिली रेक ‘मरीचिका’ तथा दिलीप कुमार झाक ‘दू धाप आगाँ’ उपन्यासक विस्तृत आलोचनाक संग-संग उपन्यासक संरचना ओ शिल्प पर आलेख तथा उपन्यासक आलोचना सम्बन्धी दू गोट पोथी मोहनभारद्वाजक ‘बलचनमा : पृष्भूमि आ प्रस्थान’ तथा अशोकक ‘कथा उपन्यास : उपन्यासक कथा’ पर आलोचनात्मक दृष्टिएँ विशद रूपसँ विवेचन ओ विश्लेषण कएल गेल अछि।
(8) विश्लेषण (आलोचनात्मक निबंध संग्रह)– सिद्धिरस्तु प्रकाशन, नई दिल्लीसँ एहि पोथीक प्रकाशन 2022 ई. मे कएल गेल अछि। मैथिली साहित्यक आलोचनासँ सम्बंधित श्रीनिवासजीक ई तेसर पोथी थिक।
एहि पोथीमे शिवशंकर श्रीनिवास द्वारा लिखित साहित्यिक विविध विधा आ साहित्यकार पर सत्रह गोट आलोचनात्मक आलेख आओर तीन गोट आत्मीय संस्मरण संकलित अछि। ई आलेख सभ 1989 ई.सँ 2020 ई. क मध्य लिखल गेल अछि आर विभिन्न पत्रिका ओ पोथीक भूमिकाक रूपमे पूर्व प्रकाशित अछि।
संपादित पोथीक विवरण-शिवशंकर श्रीनिवास द्वारा संपादित पोथीक विवरण एहि प्रकारेँ अछि –
(1) परिचय शतक– चिनगी प्रकाशन, लहेरियासराय, दरभंगासँ ‘परिचय शतक’ केर प्रकाशन 1988 ई. मे भेल अछि। शिवशंकर श्रीनिवास द्वारा संपादित एहि पोथीमे कविचूड़ामणि काशीकांत मिश्र ‘मधुप’ जीक एक सय पद्य संकलित अछि। ज्ञातव्य जे राजदरभंगाक मैनेजर पं. हरिश्चन्द्रक मिश्रक प्रेरणासँ,1941 ई मे दरभंगामे, एक मोदीक दोकान पर,एकहि रातिमे टिमटिमाइत डिबियाक इजोतमे, मधुपजी द्वारा एकर रचना कएल गेल छल। मधुपजीक ‘प्रेरणा पुंज’ कविता संग्रहमे एहि प्रसंगसँ सम्बंधित कविता देखल जा सकैत अछि।
‘परिचय शतक’ केर भूमिकामे पोथीक प्रसंग श्रीनिवासजी लिखने छथि – “कविक परिचय काव्य होइत अछि आ काव्य ओहि काल, युग, समाज ओ परिस्थितिक होइत छै। आ एहि भावकेँ राखि कवि अपन अर्थात् व्यक्तिक रूपमे परिचय नहि लिखि काव्यक जे व्यापकताकस्वरूप ओकर जनित विभिन्न स्थिति जे युगक समाज, तकर परिचय लिखलनि अछि। सैह अछि ई परिचय शतक “ एहि पोथीमे मधुपजी द्वारा तत्कालीन मिथिलाक सामाजिक समस्या यथा –बाल-विवाह, दहेज प्रथा, स्त्री शिक्षाक उपेक्षा, राजदरबारक चाटुकारिता, छूआछूत, जाति प्रथा, तथा विद्यापति, शंकराचार्यकेँ पराजित कएनिहारि भारती आदिक चर्चा एक-एक मुक्तकमे कएल गेल अछि।
(2) कथा किरण–भाषा प्रकाशन, पटनासँ एहि पोथीक प्रकाशन 1988 ई.मे भेल अछि। एकर द्वितीय परिवर्धित संस्करण,किरण मैथिली शोध संस्थान, धर्मपुर, दरभंगासँ 2019 ई. मे प्रकाशित भेल अछि।
श्रीनिवासजी द्वारा संपादित एकर पहिल संस्करणक पोथीमे कांचीनाथ झा ‘किरण’ द्वारा लिखित पंद्रह गोट कथा संकलित अछि। एहिमे ग्यारह गोट कथा 1937 ई.सँ 1965 ई. क मध्य किरणजी द्वारा लिखल गेल अछि। चारि गोट कथा –चनरा, जाति-पाँजिक जादू, अभिनव उत्तर तथा रूपा 1988 ई. क लिखल अछि। ई चारू कथा श्रीनिवासजी हुनकासँ मौखिक सुनि- सुनि लिपिबद्ध कएने छलाह।
2019 ई. मे प्रकाशित एकर दोसर संस्करणमे किरणजीक अप्रकाशित छओ कथा – पतराक शुभ दिन, प्रभात, अनुभव, खानदानी संस्कार, कस्मै नम:, एक सत्य कथा तथा एक अनुदित कथा – चित्रकार कुल 21 मौलिक ओ एक अनुदित कथा प्रकाशित अछि। दोसर संस्करणक सम्पादकमे शिवशंकर श्रीनिवासक संग-संग डा. सतीरमण झा सेहो छथि।
‘कथा किरण’ किरणजीक एक मात्र कथा – संग्रह थिक। एहि पोथीमे संगृहीत कथा सभमे किरणजी सामाजिक कुसंस्कार, सामंती वर्ग द्वारा दलित-पीड़ितक शोषण, समाजमे अनैतिकता,अत्याचारक गठजोड़, स्त्री-पुरुषक स्नेह आ निश्छल प्रेम, गरीबीक आँचमे जरैत सामान्य जनक प्रति सहानुभूति, जातीय भेद-भाव, समतामूलक समाजक प्रतिष्ठापन, सामान्य वर्गक ह्रदयमे उठैत क्रांतिक हिलोरक चित्रण करैत प्रगतिशीलताक बाट देखाओल अछि। हिनक कथा साहित्यमे सामाजिक चेतना आ विद्रोहक स्वर प्रमुख अछि।
(3) कतेक दिन बाद–किरण मैथिली शोध संस्थान, धर्मपुर, दरभंगासँ एहि पोथीक प्रकाशन 1989 ई. मे भेल अछि।शिवशंकर श्रीनिवास द्वारा संपादित एहि पोथीमे काँचीनाथ झा ‘किरण’ द्वारा रचित 38 गोट कविता आ 7 गोट गीत संकलित अछि।
एहि संग्रहक कविता सभमे मिथिलाक समसामयिक समस्या, उपेक्षित, उत्पीडित लोकक आर्तनादक प्रति संवेदनाक चित्रण करैत कवि द्वारा आधुनिक मानव मूल्यसँ प्रेरित परम्पराक, संवेदना – चक्षुसँ अवलोकन कएल गेल अछि। ‘‘सभकेँ भेटे वस्त्र भरि देह, सभकेँ भरै अन्नसँ गाल” –भावनासँ अनुप्राणित किरणजी अपन मनोभावना कविताक माध्यमे प्रकट केलनि अछि।
(4) मैथिली कथा संचयन– नेशनल बुक ट्रस्ट, नई दिल्लीसँ एहि पोथीक प्रकाशन 2007 ई.मे भेल अछि। श्रीनिवासजी द्वारा संपादित एहि पोथीमे विभिन्न कथाकारक 38 गोट कथा संकलित अछि।
(5) चयनित कथा-सिद्धिरस्तु प्रकाशन, नई दिल्लीसँ 2022 ई. मेश्री उज्जवल कुमार झाक संपादकत्वमे शिवशंकर श्रीनिवास द्वारा लिखित 25 गोट कथाक संकलन ‘चयनित कथा’क नामसँ प्रकाशित भेल अछि।
अस्तु, एहि प्रकारेँ श्रीनिवासजीक समग्र कथा पर विचार करैत कहल जा सकैत अछि जे हिनक कथा सभमे युगक धाप पूर्ण रूपसँ सुनल जा सकैछ। गाम-घरक विपन्न जन केर दीनताक संग परम्पराक बान्ह छेकक बन्हनकेँ काटि विकासक बाट धरैत लोक आ समाजक यथार्थ चित्र प्रस्तुत करबामे श्रीनिवासजीपूर्ण सफल भेलाह अछि।श्रीनिवासजीक कथा आर शिल्प पर विचार करैत प्रसिद्द कथाकार विभूति आनंद लिखैत छथि – “ माटिपानिक कथाकार छथि शिवशंकर, गाममे रहैत छथि, अर्थात् माटि पर रहैत विश्वक चिंतनकेँ अपन कथा सभक आधार बनबैत छथि। अलगसँ ई जे ओ कथा –कहन शैलीमे आधुनिक शिल्पक अद्भुत सामंजस्य बैसबैत छथि।”मैथिली कथा साहित्यक क्षेत्रमे हिनक अवदान एक महत्वपूर्ण उपस्थितिक बोध करबैत अछि। वर्त्तमान समयमे शिवशंकर श्रीनिवास अपन गाम लोहनामे घरहि पर रहि माँ मैथिलीक सेवा हेतु साहित्य-सागरमे रचना -पुष्प अर्पित करबामे लीन छथि।
संपादकीय टिप्पणी- एहि आलेख केर बहुत रास सूचना परिचय बला खंडमे साभार समाहित कऽ लेल गेल अछि आ दोहरावसँ बचबाक लेल एहि लेखसँ हटा देल गेल अछि।
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