रबीन्द्र नारायण मिश्र
सरिसवबाली काकी
हम जहिआसँ मोन पाड़ैत छी,सरिसवबाली काकीकेँ ओहिना देखलिअनि । उज्जर चक-चक नुआ पहिरने माथ झपने,बहुत नहू-नहू बजैत अपन बात कहितथि । अन्हरोखेमे अपन दियादिनी बरमाबाली काकीक संगे नवका पोखरिपर स्नान-पूजा करबाक हेतु जइतथि । रस्तामे एकाधगोटे आओर संग भए जइतथिन । सभगोटे घाटपर स्नान करैत घर-बाहरक गप्प-सप्प करितथि , महादेवकेँ जल ढारितथि आ वापस घर जखन आबि रहल होइतथि तखन गामक लोकसभ ओछाओन छोड़बाक उपक्रममे रहैत । जाड़क मास रहैत तँ अधिकांश लोक घूरक सेवन करैत रहैत। भोरे-भोर चाह पीबाक चलनि ओहि समय गामसभमे नहि रहैक । मुदा केओ-केओ चाह पीबैत छलाह,से सभ अड़ेरचौकपर पहुँचि जइतथि । किसानसभ जन अढ़बए चलि जइतथि । जँ अगहनक मास अछि तँ दरबजे-दरबजे दाउन होबए लगैत। क्रमशः मौसम बदलैत,लोकक दिनचर्या तदनुकूल बदलि जाइत । मुदा सरिसवबाली काकीकेँ नित्य ओहिना देखिअनि । माघोमासमे हुनका ओढ़ना ओढ़ने नहि देखिअनि । स्नान-पूजा कए लौटैत काल जाड़क मासमे थर-थर कपैत किछु-किछु मंत्र पढ़ैत ओ वापस अपन घर आबि जइतथि ।
हमसभ नेना रही, जबान भेलहुँ । मुदा सरिसवबाली काकी ओहिनाक-ओहिना रहथि । हुनका कहिओ भरिमोन हँसैत नहि देखलिअनि । जखन कखनो हुनकर आङन जाइ तँ ओ कोनो -ने -कोनो काजमे बाझल रहतथि। हुनकर हाथक बनाओल भोजनक प्रशंसा जतेक करी ततेक कम । कैकबेर हमरा हुनका ओहिठामसँ नोत होइत छल। आब सोचैत छी तँ सोचिते रहि जाइत छी । कतेक मनोयोगपूर्वक ओ भोजन बनबैत छलीह । आङनमे जाइते लगैत जेना कोनो बहुत पवित्र स्थानपर आबि गेल छी । सौंसे आङनमे एकटा खढ़ नहि देखाइत । सदिखन चमचम करैत रहैत छलनि हुनकर आङन ।
ओहि आङनमे गेलाक बाद एकटा अद्भुत शांतिपूर्ण वातावरण रहैत छल । कुलमिला कए चारिगोटे ओहिघरमे रहथि। भाइजी(स्वर्गीय अनुग्रह नारायण झा),सरिसवबाली काकी,बरमाबाली काकी, आ कामदेव भाइ। यद्यपि संबंधमे ओ काका लगितथि तथापि हमसभ नेनेसँ हुनका भाइजी कहैत छलिअनि । ओ काशीसँ संस्कृत पढ़ने छलाह । ज्योतिष रहथि । हमर गामक मुखिआ सेहो निर्विरोध चुनल गेल रहथि । भूदान आंदोलनमे विनोबा भावे संगे बहुत सक्रिय छलाह । एकबेर तँ ओ अपनसभटा जमीन भूदान आंदोलनमे दान कए देने रहथि। हुनका लोकनिक ओएह जमीनसँ जीविका चलैत छलनि । तेँ लगैत अछि जे भवावेशमे ओ ई काज कए देने रहथि बादमे बरमा बाली काकीक प्रयाससँ ओ जमीनसभ वापस भेल छल ।
हमर प्रपितामह स्वर्गीय गुमानी मिश्र बहुत संपन्न लोक रहथि । हुनका छओटा पुत्र आ दूटा पुत्री रहथिन । एकटापुत्र बिआहक बाद कमे बएसमे मरि गेलखिन । एकटाकेँ कोनो संतान नहि भेलनि। चारिटाकेँ संतानसभ भेलनि । एकटा कन्याक बिआह वभनगामा(जनकपुर लग ,नेपालमे} रहनि । दोसर कन्याकेँ बिआहक बाद गामे बसाओल गेलनि । ओहि समयमे बेटीकेँ बसेनाइ,गाममे भगिनमानकेँ राखब, गौरवक बात बूझल जाइत छल । हुनका जमीन,कलम,पोखरि सभचीजमे हिस्सा देल गेल रहनि । हुनका तीनटा पुत्र भेलनि। ओहिमेसँ एकटा रहथि भाइजी। दोसर रहथि-स्वर्गीय जगदीश झा । ओ वाटसन इसकूल मधुबनीमे पढ़ैत रहथि । गेनखेलीमे नाम केने रहथि । मुदा कमे बएसमे टीबी बिमारीसँ हुनकर मृत्यु भए गेलनि। हुनके पत्नीकेँ हमसभ बरमा बाली काकी कहिअनि । (बरमा बेतिआ लग कोनो गाम छैक ।) हमसभ नेनामे हुनकर एकटा ग्रूपफोटो देखने रही जे हुनकर परिवार लगमे हुनकर एकटा निसान छल । गेनखेलीमे ओ बहुत रास तगमासभ जितने रहथि। सेहो हमसभ नेनामे देखने रही। बरमाबाली काकी बहुत जोगा कए ई दुनू बस्तु रखने रहथि । हुनका एकटा पुत्र छथि कामदेव भाइ । बाबाक बहिनक नाम रहनि दुर्गा दाइ । दुर्गा दाइक तेसर पुत्रक बिआह सरिसवबाली काकीसँ रहनि। हम कहिओ हुनका नहि देखलिअनि । लोकसभ कहैत जे ओ बिआहक किछुए दिनक बाद टीबी बिमारीसँ मरि गेलथि । तकरबाद सरिसवबाली काकी विधवा भए गेलीह । हुनकर सौंसे जीवन ओहिना उजरा सारी पहिरने बीति गेलनि।
हम जखन कखनो ओहि आङन जाइ,सरिसवबाली काकीकेँ काजे करैत देखिअनि । घरक काजसँ जखन फुरसति होनि तँ चरखा काटथि । ओहि समयमे चरखा चलेबाक एकटा हवा बहल रहैक । हमरसभक गामेमे खादी भंडार रहैक । ओहि माध्यमसँ कतेको गरीब महिलासभक गुजर होइत छलैक । महिला कत्तिनसभ महीन सँ महीन ताग काटथि । जतेक महीन ताग तकर ततेक बेसी दाम भेटितैक । ताग कतेक महीन भेल तकर निर्णय खादी भंडारक कार्यकर्ता करैत छलाह । चरखासभ सेहो कैक प्रकारक होइत छलैक । सभसँ पैघ चरखाकेँ अंबर चरखा कहल जाइक । ओहि चरखामे एकहि संगे कैकटा सूत निकलैत छल । ओकरा चलबएमे बेसी परिश्रम जरूर होइत छल मुदा सूतक उत्पादन सेहो कैक गुना बेसी होइत छल । कत्तिनसभ अपन-अपन सूत खादी भंडारमे जमा कए देथि आ तकरा बदलामे बेसीकाल खादी कपड़ा देल जाइत छल । टाका कमे काल दैत छल । एहि तरहसँ कठोर परिश्रम कए ओ सभ अपन देह झपैत छलीह आ पेटो भरैत छलीह । सरिसवबाली काकी आ बरमा बाली काकी दुनूगोटे अंबरक चरखा चलबैत छलि ।
सरिसवबाली काकीक स्वरमे अद्भुत मधुरता रहनि । भगवतीक गीत,बिआहक समयक गीत ,वरक परिछन आ बेटीक जेबा काल समदाउन ओ ततेक मधुर गबैत छलीह जकर वर्णन करब मोसकिल अछि ।
हुनकामे सामाजिक काजमे मदति करबाक जबरदस्त प्रबृति छलनि । ककरो घरमे बिआह,उपनायन होइत तँ ओ दिन-राति एक कए दितथि । उपनयनक मरबामे लिखिआ-पढ़िआ करबामे हुनका महारत छल । सौंसे मरबामे तरह-तरहक चित्रसभ हाथसँ बनबैत छलीह । आजुक समय रहैत तँ हुनकर एहि प्रतिभासभकेँ समाजमे प्रचार होइत ,हुनका किछु आर्थिक लाभो होइतनि । मुदा ओहि समयमे से सभ तँ नहि रहैक । मधुबनी चित्रकलाक प्रचार-प्रसार भेलैक जरूर मुदा बहुत देरीसँ । ताबे हुनका सन-सन कतेको मौलिक कलाकारसभ साधना करैत-करैत एहि संसारकेँ छोड़ि देलथि।
गाममे ककरो बेटीक बिआह होइतैक तँ मधुश्रावणीमे कनिआकेँ खिस्सा कहबाक हेतु ओ जाइत छलीह । हुनका सभकिछु कंठाग्र रहनि । लग-पासक महिलासभ बैसितथि,कनिआ बैसितथि , जँ वर आएल छथि तँ ओहो बैसितथि आ सभगोटे नियमपूर्वक हुनकर खिस्सा सुनितथि ।
मधुश्रावणीक समाप्तिपर जे विध-व्यवहार होइक से सभ ओ करबैत छलीह । बदलामे हुनका की भेटैत छलनि? जँ कनिआक सासुरसँ हुनको लेल नुआ आबि गेल तँ से हुनका भेटि जाइत छलनि नहि तँ फोकला । मुदा हुनका एहिसभसँ निर्लिप्त देखिअनि । जेना ओ एहि पृथ्वीपर चुपचाप सभकिछु सहि जेबाक हेतु आएल होथि । कहिओ ककरो कोनो तरहक प्रतिवाद नहि,आग्रह नहि,इच्छा-अभिलाषा नहि ।
कैकबेर पाबनिसभमे हुनका अपना ओहिठाम किछु-किछु बनबैत देखिअनि । जेना तिलासंक्रांतिमे चुरलाइ बनबएमे ओ हमर माएकेँ मदति करितथि । एहि काजमे तँ बरमाबाली काकी सेहो लागल देखिअनि । सभगोटे गप्प-सप्प करितथि आ चुरलाइओ बनबैत रहतथि । एहि तरहे छिट्टाक-छिट्टा चुरलाइ बनैत छल आ हमसभ तकरा कतेको दिन धरि खाइत रहैत छलहुँ ।
सरिसवबाली काकीकेँ अपन कोनो संतान नहि रहनि । भाइजीकेँ सेहो अपन कोनो संतान नहि रहनि । हुनकर पत्नी कहि नहि कहिआ शुरुएमे मरि गेलखिन । कहाँदनि हुनकासभकेँ एकटा पुत्र भेल रहनि जे दस वर्षक भए कए मरि गेलथि । बरमा बाली काकी सेहो शुरुएमे विधबा भए गेलथि । मुदा संयोगसँ हुनका एकटा पुत्र भेल रहथिन-कामदेव भाइ । तीनू फरिकेनमे ओएहटा संतान रहथि । साल भरि पहिने अस्सीसालक बएसमे हुनकर मृत्यु भए गेलनि । । हुनका भरल-पुरल परिवार छनि । सरिसवबाली सभदिन हुनके अपन संतान बूझि जीबि गेलीह । कहिओ ककरोसँ किछु अपेक्षा नहि। भगवान छोड़ि केओ मदति केनहार नहि । कहिओ काल हुनका माएक लग नोर पोछैत देखिअनि । साइत मोनमे गड़ल कष्ट असह्य भए जाइत होनि। कतहुँ तँ ओकरा अभिव्यक्ति चाहैत छलैक ।
नौकरीक क्रममे हम बाहर चलि गेलहुँ । एकदिन सुनलिऐक जे सरिसवबाली काकी नहि रहलीह । सदा-सर्वदाक लेल एकटा दुखी आत्मा एहि संसारकेँ छोड़ि गेलीह । बिना किछु कहने,बिना किछु मंगने ।
-रबीन्द्र नारायण मिश्र, पिताक नाम: स्वर्गीय सूर्य नारायण मिश्र, माताक नाम: स्वर्गीया दयाकाशी देवी, बएस: ६९ वर्ष, पैतृक ग्राम: अड़ेर डीह, मातृक: सिन्घिआ ड्योढ़ी, वृति: भारत सरकारक उप सचिव (सेवानिवृत्त), स्पेशल मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट, दिल्ली(सेवानिवृत्त), शिक्षा: चन्द्रधारी मिथिला महाविद्यालयसँ बी.एस-सी. भौतिक विज्ञानमे प्रतिष्ठा : दिल्ली विश्वविद्यालयसँ विधि स्नातक, प्रकाशित कृति: मैथिलीमे: प्रकाशन वर्षः२०१७ १.भोरसँ साँझ धरि (आत्म कथा),२. प्रसंगवश (निवंध), ३.स्वर्ग एतहि अछि (यात्रा प्रसंग); प्रकाशन वर्षः२०१८ ४. फसाद (कथा संग्रह) ५. नमस्तस्यै (उपन्यास) ६. विविध प्रसंग (निवंध) ७.महराज(उपन्यास) ८.लजकोटर(उपन्यास); प्रकाशन वर्षः२०१९ ९.सीमाक ओहि पार(उपन्यास)१०.समाधान(निवंध संग्रह) ११.मातृभूमि(उपन्यास) १२.स्वप्नलोक(उपन्यास); प्रकाशन वर्षः२०२० १३.शंखनाद(उपन्यास) १४.इएह थिक जीवन(संस्मरण)१५.ढहैत देबाल(उपन्यास); प्रकाशन वर्षः२०२१ १६.पाथेय(संस्मरण) १७.हम आबि रहल छी(उपन्यास) १८.प्रलयक परात(उपन्यास); प्रकाशन वर्षः२०२२ १९.बीति गेल समय(उपन्यास) २०.प्रतिबिम्ब(उपन्यास) २१.बदलि रहल अछि सभकिछु(उपन्यास) २२.राष्ट्र मंदिर(उपन्यास) २३.संयोग(कथा संग्रह) २४.नाचि रहल छलि वसुधा(उपन्यास) २५.दीप जरैत रहए (उपन्यास)।
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