नन्द विलास राय
घसवहिनी
छजना-मझौरा रानीगढ़ी परतीसँ पूब सड़कक कातमे एकटा बेस झमटगर कदमक गाछ अछि।
बैशाख मासक भोरुका उखराहा। दिनक दस बजैत। टहटहौआ रौद। एकटा बीस-बाइस बर्खक
घसवहिनी ओइ कदमक गाछ तर बैसल छेली। घसवहिनी बेस सुन्नरि छेली। गौर वर्ण,
छड़हरा शरीर, गोल आ सुडौल मुँह, नमहर-नमहर आंठिया केश। कारी-कारी आ पैघ-पैघ
दुनू आँखि। समतोलाक फाड़ासन ठोर। पूआ जकाँ फूलल-फूलल आ सेब सन लाल-लाल गाल।
चारिटा कौलेजिया लड़का साइकिलसँ ओइ सड़कसँ जा रहल छल। जखन कदमक गाछसँ एक
लग्गा पाछूए रहए तँ ओइमे सँ एकटा कौलेजिया लड़काक नजैर ओइ घसवहिनीपर पड़ल।
कौलेजिया लड़का तँ कौलेजिये लड़का होइए। बेसी लफुआ आ उच्छृंखल। ओ लड़का
जेकर नजैर घसवहिनीपर पड़ल रहए, बाजल-
“रौ भाय, कनी अपनो सभ ऐ गाछतर जिरा ले।”
ताबेतमे दोसर, तेसर आ चारिमो लड़काक नजैर घसवहिनीपर पड़ल। दोसर लड़का बाजल-
“हँ, हँ, बड़ रौद छै, कनी गाछतर ठंढा ले।”
चारू लड़का अपन-अपन साइकिल खड़ा केलक आ कदमक गाछतर आबि बैस गेल। तेसर लड़का
घसवहिनी दिस तकैत बाजल- “मोस्ट ब्यूटीफूल गर्ल।”
तैपर घसवहिनी बजली-
“नइ यौ विद्यार्थी द मोस्ट ब्यूटीफूल गर्ल।”
चारिम लड़का फुसफुसा कऽ बाजल-
“भाग बहिं घसवहिनी बेस पढ़ल-लिखल बुझाइ छौ।”
चारू लड़का साइकिलपर चढ़ल आ विदा भऽ गेल। लड़का सभकेँ जाइत देखि घसवहिनी
मुस्किया लगली।
अपन
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