जगदीश प्रसाद मण्डल
सिमानक झगड़ा
आजुक एहेन परिवेश बनि गेल अछि जे जेमहर ताकू तेमहर सीमानेक झगड़ा
उठि रहल अछि। से कहब जे अपने सभक बीच अछि आ दुनियाँक आन देशमे नहि अछि,
सेहो बात नहियेँ अछि। सभकेँ अछि। कबीर दास यएह ने कहने छैथ,
'दो पाटन
के बीचमे बाँकी बँचे ने कोइ।' जखने दूटा पाटन हएत तखने दुनूक अपन-अपन
ओकाइतिक सीमा हेबे करत। कहब जे शून्य सीमा विहीन अछि। मुदा कोनो शब्द
ओहिना नइ ने उठिकऽ ठाढ़ होइए, ओकरो आधार (वस्तु) चाही। जँ शून्य शून्य
होइत तँ शून्य शब्द केना बनैत। खाएर जे से, अखन शून्यक प्रश्न नहि, अखन
अंकक प्रश्न अछि।
चाहे अपना लगसँ दुनियाँकेँ देखू आकि दुनियाँक बीचसँ अपनाकेँ देखू, बात
बराबरे बुझि पड़त। ई तँ बुझल बात अछिए जे जैठाम अपने ठाढ़ छी तैठामसँ
पूब दिस तकैत-तकैत पच्छिम होइत लगमे पहुँच जाएब तहिना पच्छिमसँ
तकैत-तकैत पूब होइत पूबे-पूब होइत लगमे पहुँच जाएब। तहिना
उत्तरो-दच्छिनक बीच सेहो अछिए...।
दलानपर असगरे बैसल देवनाथक मन घोर-मट्ठा होइत रहइ। जहिना फरिच्छ पानिमे
दुनियाँक शकल साफ देख पड़ैत, तहिना घोर-मट्ठा पानिमे घोराएल-मटियाएल
देखाइये पड़ैए। एहेन घोराएल-मटियाएलमे अपनेकेँ देख लेब आकि आनेकेँ देख
लेब, ओते असान थोड़े अछि जेते बुझै छिऐ। एकर माने ईहो नहि जे नहियेँ
देख सकै छिऐ। तइले ओहन आँखिक इजोतक ने खगता अछि जे मटियाएलोकेँ फरिच्छ
आँखिये फरिछा सकइ। ओना, कहबी छै जे
'जखन जागी तखने भोर', मुदा एहनो तँ
सम्भव अछिए जे ओकरा बुझै-करैमे हजारो-लाखो बरख सेहो लगि सकैए। कहब जे
एहनो अकरहर केतौ भेल अछि.? हँ भेले नइ अछि सोझोमे अछि। बुझल बात अछिए
जे लाखो बरख पूर्व मनुक्ख ऐ धरतीपर आएल, सभ किछु लऽ कऽ आएल, माने
मनुक्खक सभ अंग-प्रत्यंग। तैठाम की ई फूसि अछि जे ने मनुक्ख अपन देहक
सभ अंग देख-बुझि सकल अछि आ ने दुखसँ निवृत्त हेबाक रोगेकेँ पकैड़ सकल
अछि। कहब जे शरीरक की रोग? जेकर अनुसन्धान अखनो विद्वज्जन माने डॉक्टर
सभ डॉक्टर भेला पछाइत पुन: अपनाकेँ शोधकर्ता बनि ताकि-ताकि अनै छैथ।
विचारक बोनमे देवनाथ असगरे राम-लक्ष्मण-सीता जकाँ बोने-बोन
वौआइत-ढहनाइत, मुदा ने बोनक ओर भेटइ आ ने छोड़ देखइ आ ने बनवासीएकेँ
केतौ देख पबइ। देखियो पेब केना सकैत, बनि कऽ बास करब आकि बास करिकऽ बनब।
ई प्रश्न तँ अछिए। सम्भवो आ सुलभो अछिए। सब देखते छी जे वएह
सीमेन्ट-बालु पुरुखोक रूप बना ठाढ़ करैए आ मौगियोक रूप बनैबते अछि। एकर
माने ई नइ बुझब जे पुरुखो मौगियाह होइए आ मौगियो पुरुखाह होइए। यएह
दुनियाँक रीति ने प्रीत, बेपीरित, कुरीत, सुरीत सभ बनबैए। बुझल बात
अछिए जे सीमेन्ट-बालु निरजीव अछि मुदा केहेन निर्माता अछि जे सजीवोकेँ
निरजीव बना दइए आ निरजीवोकेँ सजीव। जेना विचारक बोनमे विचारीक सहयोग
भेटने बनक विचारक बाट भेटैए, तहिना एक-दोसराक सहयोगक खगता आ ओकर पूर्ति
भेला पछातिक पूर्ति, केना आ केहेन होइए से तँ वएह बुझै छैथ, जे पेलैन
अछि।
घोराएल-मटियाएल-नोनियाएल-बोनाएल आ सुखाएल विचारक वनमे देवनाथक मन एते
उदिग्न भऽ गेलै जे एकाएक उठिकऽ विचारक कबुला करैत श्यामलाल काका ऐठाम
विदा भेल। रस्तामे केतए कटारि-मटारि छल आकि खढ़-पात जमल छल आकि
चलैत-चलैत जे चिक्कन बाट बनि जाइए, से छल, से सभ देवनाथ किछु ने बुझलक।
श्यामलाल कक्काक समय प्रश्नोत्तरीक रहैन। प्रश्नोत्तरीक समयक माने भेल
विचार-विमर्शक बीच, अहाँक प्रश्न आ श्यामलाल कक्काक उत्तर। एकर माने ई
नइ भेल जे जँ अहाँक प्रश्न कोनो घटना-विशेषसँ अछि तँ ओइ घटनाक जीवन्त
गवाह भेला। जीवन्त घटनाक गवाह ओ हेता जे आँखिसँ देखलैन। घटनाक प्रवाह
अछि, जे केतौ-केतौ पाछूसँ अबैत ओकर विकसित रूप होइए तँ केतौ-केतौ
वर्तमानक स्वरूप सेहो होइए। ओना, कल्पना स्वरूप भविष्योक अनुमान
लगौनिहारक कमी सेहो नहियेँ अछि। सभ अपन-अपन अनुकूल भविष्य वक्ता सेहो
अछिए। बुझल बात अछि जे अहाँ पान साए एकावन रूपैआक एकटा ताबीज कीनि
डोराडोरिमे पहीरि लिअ, सरस्वती माता अहाँकेँ दहीन भऽ जेती, अखन बाम छैथ।
खाएर जे अछि, जाबे तक भेड़ियाह बुधि रहत ताबे तक अहिना भेड़िया धसान
होइते रहत।
श्यामलाल काका आ रघुवीर भाय दरबज्जापर बैसल ठहाका मारि हँसि रहल छला।
दुनूक हँसी देख देवनाथक मनमे सेहो दुनू रंगक विचार उठि गेलइ। पहिल उठलै
जे हमरे देख दुनू गोरे हँसि रहला अछि। दोसर उठलै जे जँ कहीं गप-सप्पक
क्रममे ओइ सीमानपर पहुँच हँसल होथि, जे हँसै-जोकर होइन। ओना,
हँसबो-हँसबमे भेद अछिए। एकटा होइए तृप्तिक खुशीसँ हँसब आ दोसर होइए
मजैक कऽ मजाक रूपमे हँसब। आधार दुनूक अपन-अपन अछिए। तँए आधारहीन नहियेँ
कहल जा सकैए।
देवनाथकेँ संयोग भेटलै। संयोग ई भेटलै जे तैबीच चाह आबि गेलइ। बुझल बात
अछिए जे जैठाम देशक उत्थान-पतन सन समस्या रहैए, तहूठाम चाह देखते
समाधानकर्ता चाह देखते अपन विचारकेँ रोकि पहिने चाह पीबिते छैथ। मुदा
जहिना चाह-पानक दोकान परहक गप-सप्पक मोजर नइ अछि तहिना चाह-पान बेरमे
दुआरो-दरबज्जाक गति तेहने अछिए। चाहे पीबैक क्रममे रघुवीर भाय बजला-
"काका, अजीब गति दुनियोँक अछि.!"
श्यामलाल काका बजला-
"रघुवीर, अखुनका अप्पन समय तँ प्रश्नोत्तरीक अछि, मुदा बीचमे जाबे चाह
चलैए तइ बीच किछु कहि दइ छिअ।"
रघुवीर भाइक प्रश्नमे सह लगबैत देवनाथ बाजल-
"चाहे-पान बेरक जखन प्रश्न छी तखन तँ चाहे-पानक बीच ने जवाबो भऽ जेबा
चाही।"
प्रश्नक दवाब देख श्यामलाल काका बजला-
"की अजीव अछि रघुवीर। अजीवोकेँ सजीव आ सजीवोकेँ अजीव बनौले जाइए। तइ
बीचमे तोरा की अजीब बुझि पड़ै छह? जखन अजीबे छी तखन अजीब-अजीब ढंगसँ
लोक बुझबे करत।"
मने-मन देवनाथो अपन विचारकेँ ठिकिया नेने छल जे जखने विचारक बेग चलत तइ
बिच्चेमे अपनो विचार घोंसिया चुप-चाप अपन प्रश्नक जवाब टोहकीक माछ जकाँ
टोहिया लेब।
रघुवीर भाय बजला-
"काका, चाह-पानक तँ समय उसैर गेल, तँए ऐ विचारकेँ एतइ छोड़ि अपन
रूटिंगमे अबियौ। घरसँ बहार धरि एक्के झगड़ा सबतैर पसैर गेल अछि।"
रघुवीर भाय झाँपले-तोपल प्रश्न उठौने छला मुदा श्यामलाल काका कृष्णक
विराट रूप जकाँ प्रश्नकेँ बुझलैन। तँए प्रश्नकेँ सुपारीक टूक जकाँ
बनबैत बजला- "की झगड़ा रघुवीर?"
रघुवीरक मनमे प्रश्न जेना सरिया कऽ रखले छेलैन तहिना बजला-
"सीमानक झगड़ा, काका।"
चाहक पछातिक खेलहा पानक सिट्ठी मुहसँ फेक श्यामलाल काका बजला-
"बौआ, सीमानक झगड़ाक विराट रूप अछि। तँए एक-एक प्रश्नक उत्तर, एक दिनक
बैसारमे देब सम्भव नइ अछि।"
बिच्चेमे देवनाथ बाजल-
"काका, एहनो तँ देखबे करै छी जे एकटा शब्द माने शीर्षकक शब्द,
रामायण-महाभारत सन मोट-मोट ग्रन्थक सभ बात कहि सकैए तखन सीमानक विचार
कोन भारी भेल।"
श्यामलाल काका बुझि गेला जे देवनाथक प्रश्न अबूझ मनक उपज छी, नहि कि
सबूझ विचारक, तँए महत्व रहितो महत्वहीन अछिए। बजला-
"रघुवीर अपना जगहपर आबह।"
रघुवीर भाय बजला-
"काका, पोरो सागक लत्ती जकाँ मनक विचार बिनु सिरेक छुछुआएल घुरैए मुदा
आन लत्ती तँ से नहि अछि। ओकरा गिरह-गिरहमे सिर निकलै छै, तँए विचारक
प्रश्न एहेन सिरबेधू होइए, तैठाम धाँइ-दे किछु बाजि देब आ किछु छोड़ि
देब, तखन बुझनिहार बुझत की। बुझब तँ भेल जे ओइ शब्दक वस्तुक स्वरूप बुझि
सकइ।"
श्यामलाल काका बजला-
"हँ।"
बीचमे बैसल देवनाथ अकबका गेल। अकबकाइक कारण भेलै जे रघुवीर भाय की बजला
आ श्यामलाल काका की जवाब देलखिन। ई बुझल रहितै जे
'हँ' आ 'नइ' कोनो
प्रश्नक सभसँ पैघ जवाब होइए तखन ने, से तँ बुझल नइ रहइ। मनमे ईहो उठइ
जे जखन तीनू गोरे समकश छी माने समकक्ष, तखन तीनूक विचारकेँ ने समतूल
करब नीक हएत। फेर अपने मनमे उठलै जे जखन रघुवीर भाय आ श्यामलाल कक्काक
बीचक प्रश्न-उत्तर चलि रहल अछि तखन बीचमे टोक-टाक करब, अनका जे होउ,
मुदा अपन मन कहैए जे ई केतौसँ उचित नहि हएत। तँए, चुप्पे रहब सभसँ नीक।
नीको केना ने, अनके गाइयक दूध मंगनीए भेटत।
रघुवीर भाय बजला-
"काका, जखन प्रश्नक विराट रूप अछि, तखन बाट-घाटक चर्चा कऽ दियौ, बाँकी
सरोवर-झील, पोखैर धार-धुर टपला पछाइत कहबै।"
रघुवीर भाइक विचार सुनि श्यामलाल कक्काक मन बिहुसलैन। बिहुसैक कारण
भेलैन जे कम-सँ-कम एको गोरे तँ विचारक संगी भेट रहल अछि। श्यामलाल काका
बजला-
"जहिना चैतन्य स्वरूप जीव-जन्तुसँ लऽ कऽ महामानव धरि अछि, जे प्रवाहित
अछि, तहिना अपन मनसँ लऽ कऽ दुनियाँक मनक बीच सेहो अछि। तँए, सीमानक झगड़ा
हेबे करत किने।"
-जगदीश प्रसाद मण्डलजीक जन्म मधुबनी जिलाक बेरमा गाममे 5 जुलाई 1947 इस्वीमे भेलैन। मण्डलजी हिन्दी एवं राजनीति शास्त्रमे एम.ए.क अहर्ता पाबि जीविकोपार्जन हेतु कृषि कार्यमे संलग्न भऽ रूचि पूर्वक समाज सेवामे लागि गेला। समाजमे व्याप्त रूढ़िवादी एवं सामन्ती व्यवहार सामाजिक विकासमे हिनका वाधक बुझि पड़लैन। फलत: जमीन्दार, सामन्तक संग गाममे पुरजोर लड़ाइ ठाढ़ भऽ गेलैन। फलत: मण्डलजी अपन जीवनक अधिकांश समय केस-मोकदमा, जहल यात्रादिमे व्यतीत केलाह। 2001 इस्वीक पछाइत साहित्य लेखन-क्षेत्रमे एला। 2008 इस्वीसँ विभिन्न पत्र-पत्रिकादिमे हिनक रचना प्रकाशित हुअ लगलैन। गीत, काव्य, नाटक, एकांकी, कथा, उपन्यास इत्यादि साहित्यक मौलिक विधामे हिनक अनवरत लेखन अद्वितीय सिद्ध भऽ रहलैन अछि। अखन धरि दर्जन भरि नाटक/एकांकी, पाँच साएसँ ऊपर गीत/काव्य, उन्नैस गोट उपन्यास आ साढ़े आठसाए कथा-कहानीक संग किछु महत्वपूर्ण विषयक शोधालेख आदिक पुस्तकाकार, साएसँ ऊपर ग्रन्थमे प्रकाशित छैन।
मिथिला-मैथिलीक विकासमे श्री जगदीश प्रसाद मण्डलजीक योगदान अविस्मरणीय छैन। ई अपन सतत क्रियाशीलता ओ रचना धर्मिताक लेल विभिन्न संस्थासभक द्वारा सम्मानित/पुरस्कृत होइत रहला अछि, यथा- विदेह सम्पादक मण्डल द्वारा गामक जिनगी' लघु कथा संग्रह लेल 'विदेह सम्मान- 2011', 'गामक जिनगी व समग्र योगदान हेतु साहित्य अकादेमी द्वारा- 'टैगोर लिटिरेचर एवार्ड- 2011', मिथिला मैथिलीक उन्नयन लेल साक्षर दरभंगा द्वारा- 'वैदेह सम्मान- 2012', विदेह सम्पादक मण्डल द्वारा 'नै धारैए' उपन्यास लेल 'विदेह बाल साहित्य पुरस्कार- 2014', साहित्यमे समग्र योदान लेल एस.एन.एस. ग्लोबल सेमिनरी द्वारा 'कौशिकी साहित्य सम्मान- 2015', मिथिला-मैथिलीक विकास लेल सतत क्रियाशील रहबाक हेतु अखिल भारतीय मिथिला संघ द्वारा- 'वैद्यनाथ मिश्र 'यात्री' सम्मान- 2016', रचना धर्मिताक क्षेत्रमे अमूल्य योगदान हेतु ज्योत्स्ना-मण्डल द्वारा- 'कौमुदी सम्मान- 2017', मिथिला-मैथिलीक संग अन्य उत्कृष्ट सेवा लेल अखिल भारतीय मिथिला संघ द्वारा 'स्व. बाबू साहेव चौधरी सम्मान- 2018', चेतना समिति, पटनाक प्रसिद्ध 'यात्री चेतना पुरस्कार- 2020', मैथिली साहित्यक अहर्निश सेवा आ सृजन हेतु मिथिला सांस्कृतिक समन्वय समिति, गुवाहाटी-असम द्वारा 'राजकमल चौधरी साहित्य सम्मान- 2020', भारत सरकार द्वारा 'साहित्य अकादेमी पुरस्कार- 2021' तथा साहित्य ओ संस्कृतिमे महत्वपूर्ण अवदान लेल अमर शहीद रामफल मंडल विचार मंच द्वारा 'अमर शहीद रामफल मंडल राष्ट्रीय पुरस्कार- 2022'
रचना संसार : 1. इन्द्रधनुषी अकास, 2. राति-दिन, 3. तीन जेठ एगारहम माघ, 4. सरिता, 5. गीतांजलि, 6. सुखाएल पोखरिक जाइठ, 7. सतबेध, 8. चुनौती, 9. रहसा चौरी, 10. कामधेनु, 11. मन मथन, 12. अकास गंगा - कविता संग्रह। 13. पंचवटी- एकांकी संचयन। 14. मिथिलाक बेटी, 15. कम्प्रोमाइज, 16. झमेलिया बिआह, 17. रत्नाकर डकैत, 18. स्वयंवर- नाटक। 19. मौलाइल गाछक फूल, 20. उत्थान-पतन, 21. जिनगीक जीत, 22. जीवन-मरण, 23. जीवन संघर्ष, 24. नै धाड़ैए, 25. बड़की बहिन, 26. भादवक आठ अन्हार, 27. सधवा-विधवा, 28. ठूठ गाछ, 29. इज्जत गमा इज्जत बँचेलौं, 30. लहसन, 31. पंगु, 32. आमक गाछी, 33. सुचिता, 34. मोड़पर, 35. संकल्प, 36. अन्तिम क्षण, 37. कुण्ठा- उपन्यास। 38. पयस्विनी- प्रबन्ध-निबन्ध-समालोचना। 39. कल्याणी, 40. सतमाए, 41. समझौता, 42. तामक तमघैल, 43. बीरांगना- एकांकी। 44. तरेगन, 45. बजन्ता-बुझन्ता- बीहैन कथा संग्रह। 46. शंभुदास, 47. रटनी खढ़- दीर्घ कथा संग्रह। 48. गामक जिनगी, 49. अर्द्धांगिनी, 50. सतभैंया पोखैर, 51. गामक शकल-सूरत, 52. अपन मन अपन धन, 53. समरथाइक भूत, 54. अप्पन-बीरान, 55. बाल गोपाल, 56. भकमोड़, 57. उलबा चाउर, 58. पतझाड़, 59. गढ़ैनगर हाथ, 60. लजबिजी, 61. उकड़ू समय, 62. मधुमाछी, 63. पसेनाक धरम, 64. गुड़ा-खुद्दीक रोटी, 65. फलहार, 66. खसैत गाछ, 67. एगच्छा आमक गाछ, 68. शुभचिन्तक, 69. गाछपर सँ खसला, 70. डभियाएल गाम, 71. गुलेती दास, 72. मुड़ियाएल घर, 73. बीरांगना, 74. स्मृति शेष, 75. बेटीक पैरुख, 76. क्रान्तियोग, 77. त्रिकालदर्शी, 78. पैंतीस साल पछुआ गेलौं, 79. दोहरी हाक, 80. सुभिमानी जिनगी, 81. देखल दिन, 82. गपक पियाहुल लोक, 83. दिवालीक दीप, 84. अप्पन गाम, 85. खिलतोड़ भूमि, 86. चितवनक शिकार, 87. चौरस खेतक चौरस उपज, 88. समयसँ पहिने चेत किसान, 89. भौक, 90. गामक आशा टुटि गेल, 91. पसेनाक मोल, 92. कृषियोग, 93. हारल चेहरा जीतल रूप, 94. रहै जोकर परिवार, 95. कर्ताक रंग कर्मक संग, 96. गामक सूरत बदैल गेल, 97. अन्तिम परीक्षा, 98. घरक खर्च, 99. नीक ठकान ठकेलौं, 100. जीवनक कर्म जीवनक मर्म, 101. संचरण, 102. भरि मन काज, 103. आएल आशा चलि गेल, 104. जीवन दान तथा 105. अप्पन साती- लघु कथा संग्रह।
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