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अमरेश
कुमार
चौधरी
२ टा बीहनि कथा
१
व्यथा
- कत गेलहुं
- आबैत छी
- सभटा समान ,राखि देलियै
- हं दस जोड़ी मौजा , पांचटा दस्ताना , दु दर्जन रूमाल आ बीसटा छोटकी गमछी बड़का झोड़ामे राखि देलहुं-
कने सबेरे एबै ने , बौआके जन्म दिन छै
- हमरा पता अछि।
- कहैत छल पप्पाके कहिए केक आनिद लेल.पड़ोसमे छसातटा दोस्तके भोरेभोरे कहि एलैया .कपड़ा लऽ लेबै
- हं हं। सभटा लऽ लेबै।
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- लेट भऽ गेल
-.हां
- एना मोन किया मसुआएल अछि .
- बौआ कतऽ गेल
- बाहरि बच्चा सभ संगे खेलैत अछि
- किछु पाई अहां लग अछि कि
- नहि , किछो नहि बिकल.
-- एक सप्ताहसं लोककतेहन आन्दोलन चलि रहल छै जे पुलिस चारियो घनटा निक सं बैसए नहि दैत छै . ३०० टकाके बिकलै. के के २५० टकाके भेलै ५०टकाके जिलेबी लऽ लेलियै.
- पैरे एलिए एतेक दुरसं
- हां. तै देर भऽ गेलै.
- कपड़ा नै हेतै एहि बेर बौआके--
आंखि पोछति साड़ीसं बाजए लगली – लोकके कि फरक पड़ैत छै- करैत रहौ आन्दोलन पाईबला सभ –हमरे सभ लेल एहने दिन भगवान देने छथिन।
२
अबोध
- सुखेसर
- जी मालिक
-एम्हर आबह। बौआके अंगनामे मोनेने लगैत छै, कने दलान दिश लऽ जाह। दलानपर बच्चा सबके देखि मोन लगतै।
-हं मालिक
-कने रूकु। बड ठंड छै, स्वेटर पहिरा दैत छियै।----
-- ल जइयौ
-- सोगरथा ,रे सोगरथा
- कि बाबू
- ट्युसन गेल रही
- हं हौ
- एकरा सने खेलीहने।
-बडहावा उठि गेलै, पहिने अंगना जो मलकाइनसं एकर टोपी नेने आबिह
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- लऽ।
- कने हम पहिर कऽ देखियै
- मारबौ कि सार। दुटा बुसट पहिरने छी ने रे।
- हमरा तऽ ने टोपी दैत छह आ ने स्वेटर। खाली बड़के लोकके जार लागैत छै कि – कहैत आंखि के नीच्चा कऽ लेलकै।
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