राज किशोर मिश्र
श्मशानक फूल
ओ तँ सुंदर फूल छै,
हँसब, मुसुका एब ओकर स्वभा व,
मसा न ओकर जन्म-स्था न ,मुदा
अघो री सन नहि छै मनो भा व ?
चि ता क चि रि ङ बसा त लऽ ,
सुकुमा र पँखुड़ी पर धऽ सैँतल,
नि शा भा ग रा ति मे धधकैत
श्मशा न-अग्नि क धा ह ऐँठऐँल।
हँसमुख पुष्प अछि ,प्रत्यक्षदर्शी ,
नश्वर जी वक देहक अंत,
जगतमो ह मे लो क सम्मो हि त ,
कपटी , धूर्त, ज्ञा नी , धनमंत।
देहक छा उर केँ एक्कहि रंग,
भस्म भऽ गेल सभटा अलङ।
श्मशा न मे नि त्य जरैत अछि ,
अभि मा न ,कहि ओ धन-सेआख,
सुंदर सुकुमा र ला वण्य रूप,
कहि ओ हथकंडा , रुतबा , धा ख।
वि धि करी सन कठि आरी सभ,
मृत देहक करथि औपचा रि कता ,
मो हक टुटैत जमल आवरण,
अखरैत कि नको मृतक-रि क्तता ।
ओ कुसुम, हँसअओ
कि मना बअओ शो क?
कऽ की रहल अछि ,
अपेक्षा लो क?
नि त्य हो इत अछि एक्कहि बा त,
जगतक अछि जे असल यथा र्थ ,
देखि रहल अछि श्मशा नक फूल,
जि नगी क जे सद्यः फलि ता र्थ।
अचि आक छा उर आ चि रा इन गंध,
ओ फूल आब भऽ गेल बैरा गी ,
सुख-दुः ख के सम भा ओ मो न मे,
भुवन मे ककरो कि ओ नहि भा गी ।
ओही फूलक बन्धु-बा न्धव सभ,
अछि जे सभ उगल को नो आन ठा म,
मो हि नी -मा ला , को नो भा षण-मंच पर,
को नो सभा गा र, को नो बा बा धा म।
श्मशा नक फूल भऽ कऽ ,
हँसब नहि ओ छो ड़लक,
कहि ओ सुनैछ झौ हरि ,कहि ओ
समदा ओन संग ढो लक।
ओ ने तां त्रि क, ओ ने अघो री ,
श्मशा न सँ ओकरा नहि को नो स्वा र्थ ,
बि हुँसैत फूल , भऽ गेल अछि ज्ञा नी ,
देखि -देखि मर्त्य लो कक यथा र्थ।
देखि रहल अछि , ओतय सत्य केँ ओहि ना घूमैत,
लो कक मो न केँ पवि त्र हो इत , छै जकर अपैत।
उड़ि आइत मा या ,देह-छा उर संग,
नि ठुर सत्य प्रत्यक्ष,
ओत्तक फूल केँ को न दुवि धा !
खुजि गेल छै ज्ञा नक अक्ष ।
मसा न मे कुसुमि त ओ फूल !
सि खि लेलक अछि जि नगी क री ति ,
नि र्वि का र भऽ बि हुँसैत रहैछ,
आ' ओत्तहु परसैत रहैत अछि प्री ति ।
ओ ,मृत्यु-घा ट पर ,जि नगी क फूल,
हँसैत -बि हुँसैत आ' मि टबैत शूल।
कुसुमक नेत्र कतेक सुंदर छै ?
बि हुँसल मुखक ला वण्य,
मरघट मे उदा सी क प्रभा ओ त'
ओकरा पर छैक नगण्य।
ओ तँ ओना अछि जगतसौं दर्यक प्रति नि धि ,
देखि रहल अछि जि नगी क अन्ति म परि धि ।
नि त मृत्यु देखैत मसा नक फूल,
हँसैत अछि ,मुसुका इत अछि ,
जि जी वि षा छै तेहेन ओकरा मे,
जि नगी लेल औना इत अछि ।
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