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पूनम
झा
२ टा बीहनि कथा
१
"काकी
बजलीह"
--
"काकी
गोर लगै छी ।" अंगना अबैत विष्णु ( दियोर क बेटा ) बाजल ।
"नीके
रह बौआ । कहिया एलां
?"भनसा
घर सं काकी बजलीह
।
"काल्हि
एलौं काकी । कक्का कत छथीन
?"
"अहिठाम
छथीन।
अहिठाम आबै आ बैस ।"
"काकी
! कक्का सं आब भानस करबै छियैन्ह
?"
"बौआ!
जखन बाल-बच्चा अपना में व्यस्त रहतै त माय-बाप सेहो एक दोसर के नै
देखतै
?"
२
'परवाह'
"आई
अहां सेब काटि क हमरा नै देलौं न
?"
घरवाली दूध क बरतन चुल्हा पर चढाबैत बजलीह।
"हैया
लिय पहिने सेब खा लिय ।" घरबला सेब काटि क दैत बजलाह ।
"हूंउउ..
हैया खाय छी ।"
"पूरा
द दिय की
?"
"नै
नै आधा सं बेसी हम नहि खा पबै छियै,
से अहां के बूझल अछि न
?"
"हमरा
सेब नीक नै लगै अछि मुदा अहां के दुआरे ई आधा सेब हमरा खाय पड़ैत अछि
।" घरबला सेब क टुकड़ा चबाबैत बजलाह।
घरबाली मोनेमोन बुदबुदेली
'हमरे
कोन नीक लगैत अछि,
मुदा अहांके सेब खुएबाक कोनो दोसर तरीका हमरा नै अबैत अछि।'
--पूनम
झा
कोटा,राजस्थान
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