अंक ४१८ पर टिप्पणी
प्रणव कुमार झा
आशीष अनचिन्हार के ग़ज़ल में "सदा सोहागिन" के प्रतीक द्वारा समाज में व्याप्त किछु विरोधाभासी सच्चाइ पर सटीक व्यंग्य कैल गेल अछि। आशीष जी के जीवनी के अंश पहिनेहो पढ़ने रही। पाठकीय दृष्टिकोण सँ ई लेख एकटा आत्मीय, व्यंग्यात्मक आ गहिर सामाजिक विश्लेषण प्रस्तुत करबाक प्रयास बुझाना जाय अछि। लेखक गामक भूगोल आ जातीय संरचना केर माध्यम सँ मानव स्वभाव, गौरवबोध आ स्थानीय राजनीति के देखेबाक प्रयास क रहल छैथ। "कोनो स्थानक नाम उल्टा कऽ देब ओकर ऐतिहासिक दृष्टिकोणसँ खून करब छै।" लेखक के दृष्टि मे ई कोना छै से लेखक के फरिछा के कहबाक दरकार छै। शेक्सपियर कहने छलाह जे नाम मे की छै, त नाम उल्टा के रखनाइ एकटा फैशन/एकटा शैली सेहो त होइत छैक जेना थाना-बीहपुर, चक-मकरंद, चक-सिकंदर, ग्राम खरिका आदि।
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