प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका

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अंक ४२३ पर टिप्पणी

प्रणव कुमार झा

डॉ. वी. एन. झा द्वारा लिखित "इसरो-स्पेसX के एक्सिओम-४ मिशन पर तकनीकी विश्लेषण" शीर्षक लेख स्वागतयोग्य, बौद्धिक आ वैज्ञानिक दृष्टि सँ समृद्ध प्रयास अछि। एहि लेख में जतेक सूक्ष्मता सँ भारत तथा विश्वक समकालीन अंतरिक्ष गतिविधिकेँ विश्लेषण कएल गेल अछि, से पाठकक जिज्ञासा केँ चंद्रमा सँ छलांग मारि मंगल तक लऽ जाइत छैक।

ऐ प्रकार के लेख द्वारा लेखक वैज्ञानिक सोच केँ जनसामान्य धरि पहुँचेबाक दायित्व निभा रहल छथि। मैथिली पत्र-पत्रिका सभ मे एहन लेखक प्रकाशन एक नव परंपरा के आगा बढ़ा रहल अछि जतऽ साहित्य संग विज्ञानक संगम होइत रहय।

डॉ. वी. एन. झा पहिने सेहो विदेह पत्रिका मे अपन एकटा लेख सँ पाठकक ध्यान खींचने छलाह। ओ अपन लेखनी सँ पाठक केँ ई बुझा दैत छथि जे विज्ञान के लोकभाषा मे गूंथि कऽ परोसल जा सकैत अछि।

डॉ. झा अपन लेखनी केँ निरंतर गतिशील राखू खास कऽ अपन विषय स्पेस टेक्नोलॉजी आ मेडिकल साइंस सन तकनीकी विषय पर मैथिली मे लेखन करब भाषा आ चेतना दुनु के समृद्ध करय बला छैक।

परमानंद कर्ण लिखित कथा ‘आत्मसम्मान’ पढ़ि मन में कै टा पातर-पातर लहरि उठल — कखनहुं सवाल बनि क’ माथा ठोकलक, त’ कखनहुं उत्तर बनि क’। ई कथा समयक बदलैत रफ्तार, महंगाईक बढ़ैत बोझ आ संस्कारक सूखैत कुसुम के बीच, वृद्धजनक आत्मसम्मान पर पड़ैत चोट केँ सजीव ढंग सँ उजागर करैत अछि। साहित्य मे एहन कथा सभक निरंतरता ई संकेत दैत अछि जे समाजक गाछी मे बूढ़ भेल डारि सभ पर अब उपेक्षाक पछुआ बहे लगल अछि। जीवनशैलीक उथल-पुथल, आर्थिकीक अस्थिरता आ मूल्यक पतन – सब किछु मानवीय गरिमा के भँवर मे ढकेल रहल अछि। खास कऽ वृद्ध अवस्था मे आर्थिक स्वतंत्रता मात्र विकल्प नहि, वरन् आत्मगौरवक मूलाधार बनि गेल अछि। एहि विषय पर हम स्वयं "एनपीएस" शीर्षक सँ एक लघुकथा पूर्व मे लिखने रही (https://pranawjha.blogspot.com/2019/06/nps.html) । परमानंद कर्ण जीक कथा संगत रूप सँ ओहि चिंतन केँ आगाँ बढ़बैत अछि। ई कथा से बुझाइत अछि जे सम्मान मात्र स्नेह सँ नहि, स्वतंत्रता सँ बनैत अछि, नहि त बुजुर्गक जीवन, भीख माँगैत आत्मा जेकाँ कँपैत रहि जायत।

एकटा समय छलइक जखन चिट्ठी-पत्री के संवादात्मक आ भावनात्मक रूप से बड्ड महत्व छल। छोट रही त हिन्दी उर्दू मैथिली साहित्य-गीत-नाद मे एकर खूब बखान रहय। “पत्र अहाँ के लिखि रहल छी”, “प्रिय पराननाथ सादर प्रणाम” ‘डांरे पर घैला भसकि गेल”, “के पतिया लय जायत” आदि कतेक रास गीत....... तकनीकि जखन कि आब चिट्ठी के ओब्सिलिट क देलक तखन ऐ पर कविता-गीत-गजल लिखेनाई सेहो बंद भ गेल। ताहि बीच मे राम शंकर झा "मैथिल" के कविता स्मृति शेष (अहाँक चिट्ठी) ऐ विषय पर बड्ड दिन बाद एकटा कविता देखना गेल

 

 

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