अंक ४०९ पर टिप्पणी
डा. धनाकर ठाकुर
'गुरूत्वाकर्षण' डा
संस्कृति मिश्रा क नामक विपरीत एक अपसंस्कृतिक कृत्रिम कथा अछि जकर शीर्षक'
'गुर्वाकर्षण' होयबाक छल वा अधिक सटीक 'शिक्षकार्षण' शिक्षा क नव रूपमे
गुरुक अवमूल्यन भय चुकल अछि आओर ओ शिक्षकहूँ नहि सहयोगी रहि गेल अछि।
एक आई आई टीयनक बैंक मे नौकरी सेहो ऊंच पद पर नहि कारण दूकमरहिक मकान भेटल
ओ आगन्तुक शिक्षाक लेस गेस्ट हाउस नहि त होटलहूं नहि अपनहि डेरा जेना
कामातुरा लेल मौका जे हूनकहि दिशि सं दवाई छूटक बहाना लिखनाइ सत्य रहैत।
कथाक पूर्णता भय जाइत यदि गुरुमाय अपन पोल खोलैत ओहि शिक्षकक अपन ओकर
छात्रावस्थाक प्रेम प्रसंग पर प्रकाश दैत "यतिसौतिन" दूनू भय जइतथि।
अपन
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