अंक ३९७ पर टिप्पणी
प्रणव कुमार झा
विदेह ३९७म अंक पढ़ल। प्रमोद झा 'गोकुल' केर 'रनियाँ' (कथा) एकटा सामान्य कथा अछि मुदा ऐ तरहक कथा पाठक के सामने बेरमबेर एनए मानवीय संवेदना केर पुनरसंचार होइत छईक। प्रेमशंकर झा पवन के आलेख “सभ गुणक खान- फलक राजा आम” पढ़ि मोन मधुरमय भ गेल। बच्चा रही त अपन गामक गाछी मे आ ब्रहमोत्तरा-सागरपुर आमक गाछी मे , सुग्गा दीदी के आमक गाछी, जलधारी कलम, मे कतेको कतेक आमक भेरायटी देखइत छलीयई। कलमी आ सरही दुनु प्रकार के।आब कहाँ ओ नामो सब याद रहल। महानगरीय जिनगी मे त आब 5-7 टा किस्म देख लेल सैह बहुत छईक। मुदा ऐ आलेख माध्यम से कतेको आमक नाम फेर से जिह पर चढ़ल। लेख मे आमक भोज्य गुण केर सेहो बखान छईक। ई भेल त निक गप्प, मुदा हमर मानब अछि जे ऐ प्रकार के भोज्य या चिकित्सकीय गुण यदि लेख मे देल जा रहल होय त संग मे लेखक केर संक्षिप्त परिचय हेबाक चाहिए (यदि ओ चिकित्सा या भोजन विज्ञान से जुड़ल व्यक्ति छईथ) अन्यथा शोध के रेफेरेंस देबाक चाहिए जेकरा आधार पर भोज्य या चिकित्सकीय गुण के वर्णन कैल गेल, जै से लेख बेसी औथेंटिक होय। विजय कुमार मिश्र "श्री विमल" के कविता कहलन्हि शकुनी मामा आ मुन्ना जी के गजल गुदगुदाबs बला छल।
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