जगदीश चंद्र ठाकुर 'अनिल' (संपर्क-9570635372)
किए हँसै छथि गोपीनाथ
श्री शिवशंकर श्रीनिवास जीक कथा संग्रह गुणकथाक पहिल कथा थिक 'साहूकारी'।
हमरा लेल ई कथा श्रेष्ठ कथाक श्रेणीमे अछि। ई कथा पढलाक बाद हमरा सोझाँ उपस्थित भ गेल एकटा विराट संसार, जाहिमे हम सभ गोटे रहैत छी, जाहिमे पवित्रता जीवनक प्राथमिकतामे नहि रहि गेल अछि। एहि वातावरणमे सभ ठाम सभ क्षेत्रमे नैतिकता अनिवार्य नहि, एच्छिक भ गेल अछि। सभ ठाम आत्मबलक कमी भ' गेल अछि। आत्मबलक अभावमे लोक अपनाकें असुरक्षित मानैत अछि आ सुरक्षाक लेल अहिंसा, सत्य, आस्तेय, बह्मचर्य, अपरिग्रह अथवा शौच, संतोष, तप, स्वाध्याय आ ईश्वर प्राणिधानसँ बहुत दूर होइत चल गेल अछि। गोपीनाथ सन किछुए लोक सभ ठाम छथि जे एकटा स्वस्थ जीवन जिबैत अपन कर्मसँ पित्रृऋण, देवऋण आ ऋषिऋणसँ मुक्त हेबाक आदर्शकें अपन जीवनक लक्ष्य मानैत छथि।
एहि कथाक अन्तमे अछि जे मास्टर गोपीनाथकेँ मोन पडलनि नेवालाल बनियाँ जकराद' लोक कहै जे नेवालाल अपन घरवालीकें तखने टोकै छै जखन ओकरासँ आमदनी बुझाइ छै, गोपीनाथकेँ हँसी लागि गेलनि, गोपीनाथ हँस लगलाह, ठहक्का मारिक' हँस लगलाह। गोपीनाथकें किए मोन पडलखिन नेवालाल, आइ तँ अपन नेनपनक संगी अमरनाथ रस्तामे भेटल छलखिन, से किए नहि मोन पडलखिन, आइ त छोट पुत्रसँ सेहो फोनपर गप भेल छलनि, ओ किए नहि मोन पडलखिन, पत्नी किए नहि मोन पडलखिन, नेवालाल किए!
की ओ नेनपनक संगी अमरनाथमे, अपन छोट पुत्र आ अपन पत्नी सभमे नेवालाल बनियाँक सोचकेँ अनुभव करबाक कारणें ठहक्का मारिक हँस लगलाह? की नेवालालक सोच आइ सम्पूर्ण समाजक सोच बनि गेल अछि?
मास्टर गोपीनाथक ठहक्का स्वस्थ चिन्तनक लेल एकटा गम्भीर प्रश्न ठाढ करबामे सफल भेल अछि,, 'एहन सोचक संग मानवता कतय पहुँचत, अन्हारसँ इजोतदिस आकि इजोतसँ अन्हार दिस?'
एहि उत्कृष्ट कथाक लेल कथाकारकें बहुत-बहुत धन्यवाद।
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