प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका

विदेह नूतन अंक
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प्रदीप कुमार मंडल "पबड़ा"
मैथिली मानक सऽ मैथिली के चुनौती



मैथिली भाषा के पहिले पहिल मैथिली १८०१ ई० श्रीमान कॉलब्रुक साहेब कहथिन । ओहि सऽ पहिले मैथिली भाषाक की नाओं छल से तऽ नहि मालूम, मुदा हमरा अनुमाने शाइत इ तिरहुतिया भाषा छल । कियेक तऽ मैथिली में चौदहमी शताब्दी सऽ पहिलियो के रचना मिलैत अछि । जेना- सिद्ध सरहपाक रचना, एगाहरम शताब्दीक बाबा विद्यापतिक (विधापति) रचना । मैथिली में संस्कृत निष्ठ रचना तऽ बारहमी शताब्दी सऽ वर्णरत्नाकर सऽ मिलैत अछि ।

कहबाक अभिप्राय इ जे जखन रचना मिलैत अछि, तऽ भाषाक किछु नाओं तऽ होइत ।

नाओं जे होइ, रचना के हिसाबे मैथिली प्राकृत भाषा अछि । इ किनको धी नहि छी । विभिन्न विद्वानक आलेखक हिसाबे पहिल नाओं श्रद्धेय कॉलब्रुक साहेब देलक अछि । सन १९०१ ई० में प्रसिद्ध भाषा वैज्ञानिक श्रद्धेय जॉर्ज ग्रियर्सन साहेब सर्वे कऽ नेपालक सात जिला आ भारत के वर्तमान नेपाल सीमा सऽ देवघर-जामतारा अर्थात संथाल के सीमा धरि के सब बोली मैथिली घोषित कइने छलाह । मुदा मैथिल सभा जे दरिभंगा महाराज के अध्यक्षता में सन १८१० ई० में गठित भेल, से मैथिली के एकगोट जातिक बोली के मानक घोषित कऽ देलक छल । अहि बोली में मैथिली भाषा में मिथिला मिहिर नाओंक पत्रिका सेहो छपऽ लागल । जाहि लेखनी के अखनों मैथिली विद्वान लोकनि मानक मानै छथि । आ सिद्ध पुरुषक रचना आ एगारहम शताब्दीक बाबा विद्यापति (विधापति) आ चौदहम शताब्दीक बाबा विद्यापतिक रचना के मानक के ठेट्ठी कहि टारि देलक, वो आजु/आइ काल (विनाशक एक रुप) बनि गेल । अर्थात अंगिका बनि गेल, आ मैथिली सऽ अलग भऽ हिंदी के बोली में असथापित भऽ गेल । इ खेल बिहार सरकार २०१५ ई० में अंगिका अकादमी बना कऽ खेलौलाह । परिणाम अंगिका भाषा में एम ए के पढ़ौनी शुरु भऽ गेल अछि । आब हमर बिहार सरकार आ वर्तमान भाषा वैज्ञानिक जे मैथिली सऽ अलग अंगिका के ठाढ़ करौलन्हि, तनिका सऽ प्रश्न:-
हमरा बोली अर्थात नेपालक सीमा सऽ गंगा कात धरिक बोली के क्रियापद में छै, छैक्का/छिक्का, छिक्की, होलै, होलो खुब बाजल जाइत अछि । हम दरिभंगा के छी हमरा ओहिठाम बोलै के शैली अछि -
हौ कतऽ जाइ छोहो ?
हैय्या आबै छियौ/छिहो ।
काका खैलहो, तूं गेलहो, हरै एम्हर अइलही । हौ सोनार हमर काम होल्लै/भेल्लै ? मालिक परसुये होल्लै ।
दोस अहां रुक्कू, हम दस मिनट में आबै छिक्की ।
घड़ी ओतऽ रख्खल छैक्का ।

आब प्रश्न इ उठैत अछि जे, की हम अंगिका बाजै छी ? नहि हम मैथिली बाजै छी । तखन भाषा वैज्ञानिक कोन आधार पर हमरा सोलकनक बोली जे नेपालक सीमा सऽ देवघर धरि बाजल जाइ अछि, तेकरा अंगिका कहि हमरा मायक बोली के अपमान कइलक अछि ।

आब प्रश्न उठैत अछि, जे भाषा वैज्ञानिक कागतक लेखनीये देख भाषा के निर्माण के काज करैत छथि ? तखन वो भाषा वैज्ञानिक नहि भाषाक षड्यंत्रकारी छथि ।

चुनौती:- जाहि प्रकारे मैथिली के तोड़हि के काज चलि रहल अछि । ओहि सऽ मैथिली भाषी विद्वान के मानक में सुधार के जरुरी अछि । मैथिली के लेखनी में संस्कृतक शब्द के कम सऽ कम प्रयोग कऽ, मैथिली माटिक खांटी शब्दक अधिक सऽ अधिक प्रयोग करबाक चुनौती अछि । मैथिली रचना में सब बोली के शब्द आ क्रियापद के समाहित कऽ मैथिली के बचैबाक चुनौती अछि ।

-मो. ९७७१२४५६७६

 

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