संतोष कुमार राय 'बटोही'
कथा - वध
भोरहारी मे जीवछ काका केर छोट लड़िका गुजरि गेलाह । हुनका किछु नहि होयत
छलन्हि । किछु दिन सँ बेमार छलाह । बेमार पड़लाह आओर गुजैर गेलाह । जखन हम
मॉर्निंग वाक करैत छलहुँ, तँ हुनका देखैत छलहुँ । मुइला सँ पाँच-छह दिन
पहिने पुछनहुँ छलियैन्ह जे भैय्या ठीक छी ने ? तँ वो जवाब देने रहैत जे ठीक
छी । जइ दिन गुजैर गेलाह तँ पता लागल जे वो करीब बीस दिन सँ बेमार छलाह ।
बुखार लागैत छलैन्ह । 'सुगर' बढ़ि गेल छलैन्ह से केकरो पता नहि छलैह । सभ
कियो कहैत छलथिन्ह जे अंधरा के डागडर हुनका कहने छलैन्ह जे बुखार दिमाग मे
चढ़ि गेल छन्हि । हुनका दरिभंगा मे देखा दियौन्ह । हुनकर कनिया अतेक लुरिगर
नहि भेलैन्ह। करजो लऽकऽ बेमार घर वाला केँ डागडर लग दरिभंगा देखेवाक जै केँ
छल । लोक सभ कहि रहल छै ई घरवाली नहि डायन छियैय । घरवाला के खा गेलै ।
हरखु भैय्या के दुटा लड़िका आओर एकटा लड़कि छलैन्ह । बेटीक शादी भऽ गेल
छन्हि । आओर जेठ बेटाक शादी ऐ बेर केलैन्ह अछि । इलाज लेल बेटा सभ सँ टाका
मंगने छलथिन्ह । परञ्च वो सभ नहि भेजलकैन्ह । किछु जमीनो छलैन्ह सेहो
बेचिकऽ इलाज करेबाक चाही छलैन्ह नहि, तँ करजा लक इलाज करेवाक छलैन्ह ।
हुनका मने मति मारि देने छलैन्ह ताहि दुआरे अपनो जीवित रहवाक लेल किछु
कोशिश नहि केलाथि ।
सैंतालीस-अड़तालीस के उमेर भेल हेतैन्ह । इ कुनहु बेसी उमेर नहि कहल जा
सकैए । गाड़िक ड्रायवर सेहो छलाह । ठीक भेला पर गाड़ी चला कऽ अपनो करजा सधा
सकैत छलाह। करजा कियो नहि देलकैन्ह गाम मे , तँ चंदा भेट जैत छै । चंदा कके
बेमारी केँ इलाज करेवाक छलैन्ह । हुनकर मुइनै गाम मे पचि नहि रहल अछि जखनकि
आइ-काल्हि गाम मे चंदा लऽकऽ कतेक आदमी इलाज करौलाथि ।
जै दिन हरखू भैय्या केँ मुइलाक खबर भेटल छल, ओहि दिन विहंसरे मॉर्निंग वाक
पर दुर्गास्थान मे छलहुँ । वीरेंदर अपन फटफटिया पर आयल । ओई गाड़ी पर सँ
मनोज एकटा जनीजाति केँ भरि पाँज पकड़ने कौशल केँ हाक दैत उतरलाह । आवाज़
सुनिक किछु आओर लोक जमा भ गेलाह । सभ कियो हाऊँ-हाऊँ करऽ लगलाह । किछु मिनट
बाद आवाज़ सुनिकऽ कौशल आओर हुनकर अंगनाक तीन-चारिटा लोग सेहो बाहर निकललाह
। हमहुं सहैट कऽ करीब गेलहुँ । कौशल नब्ज चेक करऽ लगलाह । वो आला लगा कऽ
देखलथिहीन । साँस नहि चलि रहल छलैक । ई निश्चित भ गेल जे वो आब नहि रहलीह ।
तबो आटो मंगौल गेलै आओर ओई पर लैद कऽ मनोज आओर किछु अड़ोसी-पड़ोसी बौका माय
केँ अंधरा ल जेबाक लेल तैयार भेलै । शिवा चौक दिस सँ शोभन सेहो साइकिल पर
आबि रह छलाह । दुर्गास्थान आबि कऽ हुनका पता लागि गेलैन्ह जे हमरे कनिया
छियैय । ओ साइकिल समुदाय भवन दिस फेकलाह आओर ओई आटो पर पीछा सँ चढ़ि गेलाह
। उ आटो चलै लेल तैयार भऽ चुकल छेलैक । शोभन कहैत रहैत छलाथि जे हम कहैत
छेलियै किछु ई दुनू कके छोड़तै ।
हमरा बुझना मे देर नहि भेल जे महिनवार वाली काकी आब अई दुनिया मे नहि रहलीह
। हम गाम दिस विदा भेलहुँ । रस्ता मे पता लागल जे हुनकर पूतोहु हुनका मारि
देलकैन्ह । काल्हिए हुनकर पुतोहु झगड़ा केँ दरम्यान कहने छलैय जे सौतिन
तोहर अदिनता लिखल छौ । तोहर जान लक हम छोड़बौ । आइ ई जान लक छोड़लकै । एक
घंटा बाद पता चलल जे डागडर हुनका मृत घोषित केलाह । आओर हुनकर मृत शरीर केँ
गाम पर लौल गेलै । पूरा गाम मे अइ मामला लक के हड़कंप मचि गेलै । फोन पर
माय- दाय सभ अपन-अपन नैहरा बता देलकिहीन । गामक लोकनि सभ केँ काने-काने पता
लागि गेलैन्ह । महिनवार वाली काकी केँ अंतिम दरशन लेल सभ कियो आबि रहलाह
अछि ।
पूरा गाम केँ लोक अचरज मे अछि जे ई घटना कोना भ गेलै । पुतोहु सासु केँ गला
दबा क मारि देलकै ? पूरा गामक लोक शोभन काका केँ आंगन मे भरऽ लगलाथि । अपन
गाम लोकक संग शिवा, गोनौली, नवटोली, सहुरिया , घोंघरड़िया, पस्टन कें लोक
सभ महिनवार वाली काकी के देखवाक लेल आब लगलै । कोलकाता, दिल्ली, मुंबई ,
गुरुग्राम, पानीपत, लखनऊ, दरभंगा वगैरह सँ गाम पर फोन आब लगलै जे ई कोना भ
गेलै । कियो अंगना मे नहि छेलै ? झगड़ा छोड़ा दैतै तँ ई घटना नहि घटतैक ।
सभ कियो अपन अपन दुख व्यक्त कर लगलाह । आँइ यौ ई घोर कलियुग आबि गेलैक ।
सासु केँ पुतोहु मारि देतै ? ओ आंगन मे अखनो धरि छेबे करै । फेर पता लागल
जे शोभन केँ समधि ऐल रहैत । कनिया सासु केँ मारि कऽ पड़ा गेलीह ।
कारी ठाकुर केँ दोकान पर एकटा चानन केनिहार पुरूख जनानी सभ केँ बीच पुतोह
केँ बड़ खिंधौस कऽ रहल छलाह । किछु देर हम हुनकर गप्प सुनलहुँ । हुनकर ढेर
रास उपदेश सुनलाक बाद हम कलहियैन्ह , " ई गप्प तँ बड़ नीक अछि जे सासु केँ
पुतोह कोना मारि देलकै ? परञ्च दुनु हाथ सँ ताली बजैत छै । सासु केँ जखन
पता लागि गेलैक जे हमर पुतोहु बड़ नटिन अछि, तँ अपने दम धरक चाही । सीना
जोरी नहि करक चाही । दोसर , गप्प जे आब पहिलुका समय नहि रहलै जे सासु
पुतोहु पर शासन करतीह । समय बदैल रहल छै ।"
ओ चानन वाला बजलाथि , " हँ, बउवा अहाँ तँ ठीके कहैत छियैय । आब ओ समय नहि
रहलै । समय बदलि रहल छै । आब सासु पर पतोह शासन कऽ रहल छै । बुढ़ाड़ी मे
दुर्गा नहि बनक चाही । कुंजी आओर ताला पतोह केँ हाथ मे दके रामनाम जपवाक
चाही ।"
हमहु अंगना दिस चलि गेलहुँ । ई घटना हमरा मोन मे खलबली मचा देलक । भरि राति
नीन नहि भेल । धियापुता केँ परवरिश लऽकऽ चिनतित भेलहुँ जे कम-कम ओहन परवरिश
संतान केँ नहि दियैय जे ओ केकरो मुआ देतैक । राति मे दोसर दिन भने हमर
मँझली बहिन फोन केलक जे अपना गाम मे केकरा मारि देलकै । हमरा माथ पर बल
पड़ि गेल । हम सफाई दैत बहिन केँ अई घटना के बारे मे सभ किछु कहि देलियै ।
बहिन संतुष्ट भेलीह जे हम पूरा घटना हुनका कहि देलियैन्ह । हमर कनिया अपन
माय केँ रुचि ललके कहलथिन्ह जे माय मंगरौना मे पतोह सासु केँ मारि देलकै
वगैरह वगैरह ।
आई देखलियै आंगन मे कियो न्यौता देवाक लेल आयल छथि । ओ प्रदीप काका केँ
न्यौता दके चलि गेलाह । ग्यारह दुना बाइस जन केँ नत दके हुनकर श्राद्ध करनै
नीक रहतै, परञ्च ओ थान तर देखलियै पूरा भरल छै भोज खेनिहार सभ । हरेजी केँ
दुरा पर बड़का कराह चढ़ल छै । भोज खेनिहार सभ मोंछ पिजौने छथि । सभ पाँति
मे पत्ता पड़ि रहल छै । भात-दालि, तरकारी, पापड़, अदौरी, बरी, चटनी,
दही-चीनी सभ पत्ता पर पड़लै । बौका मायक भोज थै-थै भ गेलै । नेतहारी सभ
शोभन काकाजी केँ खूब जश देलखिहीन । नेतहारी सभ अपन अपन घर दिस जैत जैत बाजि
रहल छलाह जे भेलियै से भेलियै शोभन श्राद्ध कर्म आओर भोज करवा मे कोनहु कमी
नहि केलाथि । बौका माय के जरूर सदगति भेटतै । भगवान अपना सिरे दोख नहि लैत
छथिन्ह। महिनवार वाली के अतबे औरदा छेलै, तैं ओतबे दिन जीलीह । पतोह केँ
हाथे मुइनै लिखल छलै , तैं ओ ओकरा हाथे मुआ गेलीह । भगवान केँ लीला कियो
नहि बुझि सकैत छथि।
हरखू भैय्या केँ कोनहु असाध्य रोग नहि छलैन्ह । सुगर छलैन्ह, अतेक नहि बढ़ल
छलैन्ह। किडनी सेहो औखन दुरूस्त छलैन्ह । बुखार सँ टाइफाइड भऽ गेल छलैन्ह ।
बेटा सभ परदेश मे कमा रहल छलैथ, परञ्च अतबे उमेर मे चलि गेलाह । बौका माय
बेबहार सँ नीक छलीह, परञ्च ओई दिन हुनका मुइनै लिखल छलैन्ह । अंगना मे कियो
धररहिया नहि छेलैह, तैं ओ अइ लोक केँ छोड़ि कऽ ओ चलि गेलीह ।
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