प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका

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डा. आभा झा

भावुकताक आख्यान-पेपरवेट सन जिनगी

संवेदना मानवक सहज गुण थिक आ कविता लेल  भावनाक सामान्यीकरण एकटा आवश्यक तत्त्व। समाजमे नीक- बेजाय सभ तरहक परिस्थिति देखना जाइत छैक,भल-कुभल घटना घटिते रहैत छैक। सामान्य लोक घटनासॅं प्रभावित तहोइत अछि, मुदा भाग्यक सुफल वा दोष कहि कात भए जाइत अछि। मुदा कवि- हृदय लोक ओकर तह धरि जाइत अछि, सुखद स्थितिकेॅं सुन्दर शब्दक माला पहिरा,कल्पनाक मधुर-मोहक चाशनीमे बोरि,कमनीय रूप दैत अछि,कौखन अभिधो मे बात कहि पाठकक मोनकेॅं सन्तृप्त करैत अछि आ कौखन लक्षणा आ व्यंजनाक मदतिसॅं  चमत्कारिक प्रभाव छोड़ैत अछि। साहित्यक(कविता,कथा,नाटक) एकटा विशेषता इहो अछि जे पाठक पढ़ैत काल बिसरि जाय जे ओ कोनो  आन व्यक्तिक (लेखकक ) रचना पढ़ि रहल अछि। जॅं ओकरा लिखित भावसॅं तादात्म्य स्थापित भए जाय तई जीवन्त लेखनक निशानी मानल जाइत छैक।

आइ हमर हाथमे अछि नव कवयित्री मनीषा झा मृडाणीक पहिल कविता-संग्रह  ‘पेपरवेटक फूल सन जिनगी। पोथीक नामकरण कविक अधिकार होइत छैक,ठीक ओहिना जेना एकटा मायक अपन संतानक नामकरणक।तेॅं ओहि पर कोनो गप नहि । हॅं, तत्सम्बद्ध चर्चा जरूर होयत, मुदा बादमे।एखन देखैत छी कविक ओ दृष्टि जे विषय-वैविध्यसॅं पहिलहि पोथीमे चमत्कृत करैत छथि।ओ जलसंकट, गाछ-वृच्छ(बड़क डारि),फुलबारी,हरियरी ,पुष्पगुच्छक मनोदशा आदि पर लिखैत छथि जे आजुक समयक जरूरति अछि। मनीषा जी मिथिला-वर्णनक क्रममे मनोनुकूल ग्रामीण गुण नहि पाबि व्यथित होइत छथि ।एहि क्रममे ओ दू टा कवितामे बाबा यात्रीकेॅं मोन पाड़ैत छथि जे नवीन प्रयोग सन मुदित करैत अछि।ओ वन्ध्याक दुर्दशाक वर्णन करैत छथि (जे किछु समय पूर्वक स्थितिक वर्णन सन बुझाइत अछि)आइ वी एफ पर सेहो कलम चलबैत छथि,ओ स्त्रीक खराब स्थितिक वर्णन जरूर करैत छथि,मुदा पिताकेॅं ईश्वर आ मायकेॅं आशक डिबिया कहैत छथि( ई फराक गप जे ओही मायकेॅं अपना पर विश्वास करबा लेल कन्विंस करैत छथि )।अपन कवितामे ओ प्रेमक विविध रूपक वर्णन  करैत छथि -कतहु एकनिष्ठ समर्पणक गाथा अछि तकतहु सामाजिक ओ पारम्परिक ओझराहटिमे फॅंसल असफल प्रेमक।

जे कि ई युवा कवयित्रीक पहिल कविता- संग्रह थिकनि, एक्कहि बेर बहुत परिपक्वताक अपेक्षा करब आ आलोचनाक तीक्ष्ण तरुआरि लप्रहार करब उचित नहि।एहि युगमे किताब छपायब एकटा सरल प्रक्रिया थिक । कविता कथा आदि लिखनिहारक कविक रूपमे अपन नाम देखबा- सुनबाक लिलसा सेहो स्वाभाविके ! परिणामत: ‘पेपरवेटक फूल सन जिनगीपाठकक सोझाॅं अछि। पाठक कविता सभक आनन्द उठाबथि आ अपन पाठकीय प्रतिक्रिया देथि तसहजहिॅं लेखकक मनोबल बढ़बाक संग गन्तव्यक फरीछ दिशा सेहो भेटतै।

आब अबै छी पोथीक शीर्षक पर!‘पेपरवेटक फूल सन जिनगीअर्थात्  बाहरसॅं देखाइत सुंदर दृश्य मात्र,जाहिमे ने जान-प्राण हो आ ने वास्तविक सौंदर्य आ ने सुगन्धि।एहि नामसॅं संग्रहमे कोनो कविता तनहि अछि मुदा ई वाक्यांशचुटकी भरि सेनुरकवितामे वर्णित  अछि जाहिमे विवाहक बाद स्त्रीक अस्तित्व विहीन स्थितिक वर्णन अछि।

पेपरवेटक भितरका

बनल छी सभरंगा फूल हम

हमरो बाबूजीएक खेत सन राखए पड़ल भरना

अपन अस्तित्वक !

यद्यपि आब विवाहिता स्त्रीक स्थिति पहिने जकाॅं अस्तित्व विहीन नहि देखना जाइत अछि, तखन आर्थिक परावलम्बनक कारण कत्तहु- कत्तहु ई स्थिति देखबामे अबैत हो,सेहो असंभव तनहिए । मुदा आजुक समाजमे सामान्यत: जॅं कोनो पुरुष वा हुनक परिवार एहि तरहक दुस्साहस करैत छथि तस्त्रीक विरोधी स्वर रहरहाॅं सुनबामे अबिते अछि । कन्याक माता- पिता सेहो पहिलुक माता-पिता जकाॅं कन्यादानक संग वैतरणी पार करबाक भ्रम नहि पालैत अछि।तथापि किछुओ प्रतिशत जॅं एहि तरहक स्थिति देखबामे अबैत छै तओ चिन्ताक कारण अबस्से छै आ ओ स्थिति देखि कवि हृदयक विचलित होयब सेहो स्वाभाविके।

एहि संग्रहक कइएक टा कवितामे एहनाहे सन स्थितिक वर्णन देखि कनेक असहज होइत छी। स्त्री आ पुरुषक प्रकृति भिन्न होइत छैक आ प्रेमाभिव्यक्तिक तरीका सेहो फराक! मुदा प्रेम-संबंध बनबै बला आ वैवाहिक जीवन ईमानदारीसॅं स्वीकार करै बला पुरुष सेहो आन्तरिक प्रेम करैत अछि,पत्नीक मान- सम्मान करैत अछि आ ओहि बलेॅं सामंजस्यसॅं जीवन जिबैत अछि।दैहिक आकर्षण सेहो उभयपक्षीय होइत छैक। मुदा आजुक युगक युवा कविक एहि तरहक दृष्टि देखि विस्मित होइत छी -

अहाँक ऑंखिमे हम तकैत रहलहुँ नेह आ

अहाँक चाह छल हमर देह

 प्रेमवश क' देलहुँ हम सर्वस्व समर्पित

बाउग करय चाहैत छलहुँ अहुँक हियमे

अपने सन अनमन बाकुट भरि प्रेमक बीया

 मुदा हम कियेक बिसरि गेलियै

 उस्सर खेतमे नहि जनमैत अछि एकहुटा दूभि

(प्रेम-2)

तहिनाउमेदशीर्षक कवितामे पत्नी अपना दिस पतिक भरिपोख दृष्टि लेल प्रतीक्षिते रहैत छथि-

किछु बेसी त' नहि करैत छलहुँ हम उमेद अहाँसँ

बस एतबे ने कि कनेक मान आ थोड़-बहुत अधिकार

 ' पबितहुँ कोनो निर्णय अपनो लेल

बोध मनुक्खक आइ धरि नहि भेल

अहिनाअपराधशीर्षक कवितामे सेहो स्त्रीक उपेक्षित स्थितिक करुण वर्णन भेटैत अछि -

ओहि मकान रूपी घरक भीतर

अस्तित्वक लेल सिसकैत तोड़ैत दम

नहि जाइत अछि देबालक पार मिसियो भरि आवाज

होइत अछि एकटा एहनो गप जे नहिए छपैत अछि

 कहियो कोनो टा अखबारमे

प्रशंसाशीर्षक कविता मे सेहो ओएह शोषण, घरेलू हिंसा आ परमुखापेक्षिता विस्तारसॅं वर्णित भेल अछि

किछु एहने सन भाव छैदूभिशीर्षक कविताक,बस अंतर एतबहि अछि एतय जे दृष्टि आशावादी अछि -

मुदा की ओहिसॅं ओ मानि लैत अछि हारि

 नहि किन्नहुँ नहि

ओ पुनि उठिकहोइत अछि ठाढ़

 नहि मेटदैत अछि अपन अस्तित्व

जोगौने रहैत अछि कतहु तअपन सिर

धयने जिद आ विश्वास...

मुखाग्निशीर्षक कवितामे माता-पिताक संतानक उपेक्षाजन्य पीड़ाक भावुक कवयित्री कारुणिक वर्णन कएने छथि।

हॅं,’पापनाशिनी गंगाशीर्षक कविता कवयित्रीक अति भावुकताक अव्यावहारिक सन गप अछि। कोनो गामक कोनो सम्मत व्यक्ति एहि तरहक गप नहि बजैत छल आ ने बजैत अछि -

' रहल अछि ओरियान गामक लोक

कहलखिन अछि क' आउ गंगा स्नान

 बड़ पैघ लागल अछि दाग

 पड़ि गेल अछि बलात्कारी नाम

अपूर्ण अरिपनशीर्षक कवितामेप्रियलेलप्रियेशब्दक प्रयोग तीन बेर भेल अछि,जे सुधारक अपेक्षा रखैछ।हम बहुत लेखकक रचनामे ई प्रयोग देखैत ठहकैत रहलहुॅं अछि। वस्तुतः पुरुष लेल सम्बोधनमे प्रिय! आ स्त्री लेल प्रिये! शब्दक प्रयोग होयबाक चाही (मूल शब्द प्रिय, स्त्रीलिंगमे प्रिया,प्रियाक सम्बोधनमे प्रिये! )

एकटाअपवित्रशीर्षक कविता जे मासिक धर्मक विषयमे लिखल अछि,ओहो आजुक समयमे बहुत प्रासंगिक नहि अछि।आइ सभ बालिका वा स्त्री ओहि समय सभ काज करैत छथि, विद्यालय जाइत छथि,खेल कूदमे भाग लैत छथि, कार्यालय जाइत छथि,मजूर वर्ग स्त्री खेत खरिहानमे काज करैत छथि। हॅं पूजादि काज अवश्य एखनहुॅं अधिकांश घरमे वर्जित अछि,तकर कारण रक्तस्रावक कारण विचलित सन भेल मनोदशा सेहो भए सकैछ। अस्तु।

अंतमे हमर कथ्य एतबहि जे मनीषाजीकेॅं कविता लिखबाक एप्रोच पर कने मेहनति करबाक खगता छनि।हम अतीतक उल्लेख ओहिसॅं सीख लेबा लेल करैत छी,अतीतजीवी होयबा लेल नहि।जे कवयित्री मंदिरमे दूधक अपव्यय आ भूखल शिशुक लालसा भरल दृष्टि लिखि सकैत छथि,जे जातिगत विभेदक तार्किक विरोध कए सकैत छथि खून चढ़ैबाक उपमा द’ ,ओ अपन लेखनशक्तिक उपयोग अधिकतर अन्हार पक्षक वर्णनमे करथि तकनेक निराशा होइत छैक। स्त्रीक हाथमे कलम हो आ ओ अपन अनंत सामर्थ्यक वर्णन नहि करैत,समाजकेॅं आदर्श रूप देबाक संकल्प नहि दोहरबैत रोदना मात्र पसारय ई अभीष्ट नहि।आइयो जखन हम ई लेख लिखि रहल छी तसीबीएसईक बारहवीं कक्षाक परीक्षाफलक वर्णनक्रममे सुनि रहल छी जेलड़कियों ने मारी बाजी।आ ई मात्र उच्च वर्गक गप नहि,श्रमिक वर्गक धी बेटी सेहो शिक्षित भए रहल अछि। हमर कथ्यक तात्पर्य ई नहि जे एहि दिशामे काज करबाक बेगरता नहि छैक,ओ छैक मुदा दोसर रूपमे। बहुत रास दोसर तरहक समस्या आजुक समयमे छै,जे कवि दृष्टिक अपेक्षा रखैत छैक। हमरा व्यक्तिगत रूपसॅं युवा लेखक- लेखिकाक  रचनामे आशावादी दृष्टि आ नवोन्मेष नीक लगैत अछि आ ई कामना हम हिनको लेल अवश्य करबनि।

मनीषाजीकेॅं एहि पोथी लेल बहुत बहुत बधाई आ हुनक लेखनक क्रमशः परिपक्वताक कामना।

आभा झा

13.5.2025

 

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