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डॉ. कैलाश कुमार मिश्र 

सिनुरहारशिवशंकर श्रीनिवासक कथा

शिवशंकर श्रीनिवास'क एक कथा "सिनुरहार" जे हिनक कथा संकलनक पोथी "गामक लोक" मे छनि, आइ भोरे-भोर पढ़लहुँ। कथा अनेक दृष्टिकोण सँ नीक लागल। पोथी त' ई सोचि पढ़नाइ प्रारम्भ कएने रही जे सब कथा पढ़ि अगर किछु बात नीक-अधलाह लागत त' ओहि पर अपन विचार राखब, मुदा पहिल कथा ततेक प्रभावित कएलक जे भेल कि पहिने एहि कथाक विवेचना करी।

उच्च जाति, मुख्य रूप सँ ब्राह्मण, ताहू मे मैथिल ब्राह्मण मे वैधव्य एक श्राप थिक। ई लोकक नारीक प्रति अपराध आ कुंठाक भाव प्रदर्शित करैत अछि। ई पुरुख़क ढकोसला केँ उजागर करैत अछि। असमय मृत्यु चाहे पुरुख़क हो अथवा स्त्रीगणक, एक वज्रपात अछि। लेकिन ई वज्रपात सेहो प्रजातान्त्रिक अछि। असामयिक मृत्यु ककरो, कखनो कतौ भ सकैत अछि - की पुरुख आ की स्त्री। अगर एकर सूत्र अतेक सार्वभौमिक अछि त फेरो स्त्री आ पुरुख़क मृत्यु मे विशेष समाजक विशेष जाति अनरगल अंतर आ सीमारेखा (लक्ष्मण-रेखा ) कथीलेल खिचैत अछि? दूनूक लेल अलग-अलग मापदण्ड कथी लेल गढ़ैत अछि? पत्नी मरला पर पुरुख कखनो विवाह क' सकैत अछि, किछु खा सकैत अछि, ओकरा कोनो अनुष्ठान, सामाजिक शुभ कार्य आदि सँ नहि बारल जाइत छैक; सब रंगक वस्त्र पहिरक आज़ादी, सब भोजनक आज़ादी छैक, वैह समाज पतिक मृत्युक बाद स्त्रीगण अर्थात ओकर विधवा लेल अतेक कठोर-निर्दय कियैक भ जाइत अछि?

ख़ैर, ई त भेल व्यवस्था आ ओहि व्यवस्थाक लेख आ संरचना मे जे शिक्षा आ समाजक बढ़ैत परिदृश्य मे परिवर्तन भ रहल अछि। विधबा विवाह आ विवाहक बाद समाजक अस्वीकृति-आ स्वीकृतिक द्वन्द कोना चलैत अछि, पुरुख विधवाक पिताक रूप मे अपना केँ केना देखैत अछि, परम्परा आ बेटीक जीवन एहि दूनूक बीचक उभयवृत्तता मे कोना एक माय फँसल रहैत अछि, आदिक बहुत सजीव वर्णन एहि कथाक कथाकार शिवशंकर श्रीनिवास कएने छथि।

कथा के अगर संक्षेप मे कही त रामभद्र झाक बेटी कल्याणी विवाहक चारि मासक भीतर विधवा भ जाइत छथिन। कल्याणीक माता-पिता कल्याणी केँ लेने हैदराबाद चलि जाइत छथि। कल्याणी ओतय फेरो सँ पढै लगैत अछि। किछु दिनक बाद कल्याणीक एक सहेली अपन भाई सँ जे की उत्तर प्रदेशक ब्राह्मण छैक आ बहुत पहिने हैदराबाद मे बसि गेल छैक, ओकरा सबलेल जाति-पाति कोनो खास वस्तु नहि छैक, कल्याणीक विवाहक प्रस्ताव रखैत छैक। लड़का केँ कल्याणीक सम्बन्ध मे सब जानकारी छैक तकर वादो ओ विवाह लेल तैयार छैक। कल्याणीक माता-पिता थोड़ेक उधेर-बुनक बाद विवाह लेल हाँ क दैत छथिन। कल्याणी अपन पति संग सुखमय जीवन जीबैत अछि। रामभद्र झाक गाम मे लोक नाना तरहक बात बनबैत छैक। किछु लोक यद्यपि एहनो छैक जे विधवा विवाहक स्वीकृति दैत छैक। कथा मे मोड़ तखन अबैत छैक जखन रामभद्र झा अपन पुत्रक उपनयन मे हैदराबाद सँ गाम जयबाक योजना बनबैत छथि। दूनू पति-पत्नी मे पहिने ई विवाद होइत छनि जे कल्याणी के ल जाई अथवा नहि। जखन निर्णय भ जाइत छनि जे कल्याणी केँ ल जेताह त बात कल्याणीक वर पर अबैत छैक। अन्तिम निर्णय लैत छथि जे कल्याणी दूनू प्राणी गाम जेतीह

गाम गेलाक बाद लोक कल्याणीक सम्बन्ध मे बहुत तरहक बात करैत अछि। गैर ब्राह्मण जातिक स्त्रीगण जकरा मे विधवा विवाहक प्रचलन छैक तकरा सबकेँ कनि आश्चर्य लागि रहल छैक। खैर! जखन ई निर्णय होइत छैक जे किछु सोहागिन सब भगवती केँ सिनुरहार देतैक त परम्परा मातृत्व पर भारी पड़ि जाइत छैक आ अनिष्टक आशंका सँ कल्याणीक माय कल्याणीक नाम सोहागिन महिलाक सूची मे नहि रखैत छथि। एहि विषय पर हुनक अपन पति संग बहस होइत छनि जकरा टाटक दोगे कल्याणी सुनि लैत छैक। कल्याणीकेँ ग्लानि आ अपमानक अनुभूति होइत छैक। ओ किंकर्तव्यविमूढ भ जाइत अछि। जखन सिनुरहारक बेर अबैत छैक त ओ हिम्मत करैत जाइत अछि सेनुर स्त्रीगण सबहक सीथ मे लेप दैत छैक।

कथाक ताना-बाना बहुत सुन्दर आ मनोवैज्ञानिक ढंग सँ रचल गेल छैक। कथा मे समाजक बदलैत रुख पर सेहो ध्यान देल गेल छैक। ई कथा लीक सँ अलग अहुलेल कहल जा सकैत अछि जे अहि मे अन्धविश्वास आ नारी शोषण केँ समाज खुलि क सहयोग नहि क रहल छैक। समाज केँ मौन भ गेनाई, केवल काना-फुस्सी केनाई, कल्याणी केँ माता-पिता केँ समाज सँ बहिष्कृत नहि केनाई किछु एहेन डेग छैक जे ई सिम्पटम देखबैत छैक जे समाज परिवर्तन लेल तैयार छैक। कथा मे कखनो कल्याणीक माता त कखनो पिताकेँ परम्परा आ यथार्थक बीच उभयवृतताक अवस्था देखेनाई लेखक केँ समाज सँ कतेक गहीर संबंध छनि ताहि बातक प्रमाण छैक। कल्याणीक मायक मनोदशा जाहि रुपे वर्णित छैक से ई कहबा लेल पर्याप्त छैक जे कथाकार जखन कथाक निर्माण करैत छथि त ओ तटस्थ भेल करैत छथि, नारी मनोदशा केँ तह मे घुसबाक हिम्मत रखैत छथि। हम एहि कथा केँ एक पाठक सँ अधिक एक मानव आ समाजशास्त्रक विद्यार्थीक रूप मे पढ़लौ। कथा अर्थपूर्ण लागल।

एक प्रसंग आरो स्मरण आबि गेल। अहि बेर दिल्लीक अंतर्राष्ट्रीय मैथिली लिटरेचर फेस्टिवल मे शिवशंकर श्रीनिवास केर रचना पर एक सत्र छल। सत्रक दू साहित्यकार हुनका पर बजैत रहैथ। आश्चर्य तखन लागल जखन दूनू ई बजला जे ओ सब अहि साहित्यकार केँ नीक सँ नहि पढ़ने छथि। हम एक दर्शक आ आयोजक मण्डलक सदस्य होब केँ नाते अपन आपत्ति दर्ज करौने रही। बाद मे शिवशंकर श्रीनिवास जी स्वयं सबहक शंकाक समाधान केलाह।

ई कथा पढ़ि लागल, अगर एहेन साहित्यकार केँ हम सब नहि पढ़ैत छी त फेर कथी लेल मैथिली-मैथिली करैत छी???? एखन अतबे। फेर जखन हिनक पोथी गामक लोक केर सब कथा पढ़ि लेब त किछु लिखबाक प्रयत्न करब।

 

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