प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका

विदेह नूतन अंक
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चंदना दत्त

श्री शिवशंकर श्रीनिवास

श्री शिवशंकर श्रीनिवास मैथिली साहित्यमे ग्रामीण परिवेशकक कथा-कहानी केर अद्वितीय शिल्पी छथि। हिनकर कथा पाठककेँ मानसिक रूपें ओहि स्थान पर लऽ जा कऽ राखि दैत अछि। मैथिली साहित्यमे हिनकर कथा एकटा नव इजोत दिस लऽ जायत अछि। हमरा हिनकर कथा हिनके सँ सुनबाक सौभाग्य मधुबनीमे भेटल। कथा छल "गामक लोक" ओहि कथामे ततेक विस्तार सँ ओ आजुक परिवेशमे जे अफसर पुत्रक महा अफसरानी पुतोहक मनोवृत्ति आ ताहिमे माय कतेक महीन भावें अपन नीक मनोवृत्ति केर वर्णन कयने छथि जे पाठकके ई बुझबामे अबैत अछि जे हम अपने टोल पड़ोसक खिस्सा पढ़ि-सुनि रहल छी। एकदम वास्तविक लय-ताल। एकहक आखर सत्य, जे माय कतेक कष्ट काटि अपन करेजक टुकड़ा के पढ़ौनी करा अफसर बनौलनि से वैह बुझय छथि आ हुनकर सभटा तपस्या केर मोल बुझनिहार कियो नहि, तखन ओ चुप्पेचाप ओहि बस्तीमे जाय छथिन्ह जतय हुनकर मार्गदर्शन केर आवश्यकता अखनो छन्हि आ ओ सभ हिनकर सम्मान करैत छथिन्ह। ई बात क्लब संस्कृति वाली पुतोहके अनर्गल बुझाइत छैन्ह। ई हुनक समाजसेवा पर धयले चाट चुप्पेचाप दऽ जाय छथिन्ह। साँचे समाजिक परिस्थिति केर ऐना देखेनाय

जे साहित्यकार को दायित्व छन्हि से हिनक सभ रचनामे झलकै छन्हि। हम त हिनके सभक रचना सँ सीखि रहल छी  आ भविष्यमे हिनके सभक आशीर्वाद सँ सीखैत-लिखैत रहब।

 

 

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