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अजित कुमार झा (संपर्क-9472834926)

शिवशंकर श्रीनिवास जीक: गामक लोक

विदेहक अहि श्रृंखला हेतु शिव शंकर श्रीनिवास जी केर नाम देखि हमरा लेल प्रसन्न भेनाइ स्वाभाविक छल किएक ' विभिन्न पत्र पत्रिका मे हिनका पढ़बाक सौभाग्य भेटैत रहल अछि। जाहि सूक्ष्म दृष्टि सँ कोनो कथा के मूर्तरूप दैत छथि से मात्र हमरे आकृष्ट करैत होएत से संभव नहि। विभिन्न पत्रिका सब मे छिड़िआयल कथा सब केँ एकठाम राखब पाठक वर्ग लेल सहूलियत भेल। समस्त पत्रिका एकठाम उपलब्ध होअए सेहो आमजन हेतु से ' संभव नहि। खैर हिनकर तेसर कथा संग्रह 'गामक लोक' सन् 2005 मे सुशील स्मृति, लोहना द्वारा प्रकाशित भेल छल तकरा पढ़बाक सौभाग्य भेटल निस्संदेह सुखद अनुभूति भेल। गाम नगर मे रहनिहार गामक लोक केँ समर्पित अहि मे कुल सत्रहटा कथा समाहित अछि। अहि कथा संग्रह केँ पढ़ैत काल सतत् इएह आभास होइत रहल जे हम अपना नजरि के सामने ओहि दृश्य सब केँ देखि रहल छी। कथा पढ़ि रहल छी से कनिको नहि लागल। एक्कहुटा कथा बनावटी नहि बुझायल। यथार्थक अतेक सजीव चित्रण अतेक सहजता सँ केनाइ कोनो सहज काज नहि।

अहि कथा संग्रह केर पहिल कथा अछि 'सिनुरहार' जे पढ़ि मोन द्रवित ' उठैत अछि। अपना समाज मे अदौ काल सँ विधवाक जे करुण स्थिति छल ताहि सँ ' सबगोटे अवगत छी। समय बदललै कहय लेल सोच सेहो बदललै मुदा एखनहु बहुत किछु बदलबाक प्रयोजन अछि। ब्राह्मणक बेटी कल्याणी केँ विधवा वाला जीवन जीबैत देखनाइ ओकर माय बाप लेल कम कष्टकर नहि छल तैँ गाम सँ दूर हैदराबाद चलि जाइत छथि बेटीक पुनर्विवाह होइत छनि। कल्याणी केँ जीवन मे पुनः खुशी अबैत अछि। अपन बेटाक उपनयन मे रामभद्र झा हैदराबाद सँ सपरिवार गाम अबैत छथि। बेटी जमाय केँ सेहो संग मे आनैत छथि मुदा गाम अयलाक उपरांत अचानक कल्याणीक माँ कमजोर पड़ि जाइत छथि। हुनका मोन मे समाजक भय एवं बेटाक प्रति कोनो अपशकुन केर भाव उपजय लगैत छनि अपन बेटी कल्याणी हुनका अलच्छी बुझाय लगैत छनि। अहि कथा मे कल्याणी, ओकर माँ एवं पिता राम भद्र केर मनोदशाक विलक्षण चित्रण भेल अछि। कल्याणी केँ बुझाइत छैक जे स्त्रीगणे स्त्रीगणक शिकार करैत अछि मुदा अंत मे जे घटना घटैत अछि ताहि सँ बुझाइत अछि जे समाज बदलि रहल अछि। दोसर कथा अछि 'हरिजीक कृपा सँ' जाहि मे टुटैत पारिवारिक ताना बाना केर वर्तमान स्वरुपक चित्रण अछि। जिनका अपन पौरुष नहि छनि, हर ' पकड़ि लेलाह अछि मुदा पैर माटि पर नहि रोपि पाबि रहल छथि सभ किछु ढ़नमना गेलाक उपरांतो बभनौती सँ बाज नहि आयल पार लगैत छनि ओकरा पर हरिजीक कृपा कोना हेतनि? भाई- भाई मे मतभेदक पराकाष्ठा अहि उलहन सँ स्पष्ट झलकैत अछि- एकटा भाई दिल्ली जाय लगलथिन ' कलक डंटा छोड़ा ' राखि देलथिन दोसर भाई जे छथिन से छथिने। तेसर कथा अछि 'चक्का' स्वतंत्रता प्राप्तिक उपरांत जमींदारक डेओढ़ी मे कैद शिक्षा व्यवस्था केँ प्रत्येक वर्गक आम आदमी तक पहुँचेनाइ कोनो आसान काज नहि छल एहन काज केँ सफलतापूर्वक संपन्न करय वाला व्यक्ति सेहो असाधारणे रहल हेताह। आजादी केँ संग्राम मे भाग लेनिहार किछु लोग ' राजनीति मे आबि अपन समृद्धि लेल मार्ग प्रशस्त करय लगलाह किछु लोग प्रगति केर चक्का केँ सोझ राखय हेतु अपन जीवन खपा देलाह ओहन व्यक्ति केँ एत्तह बताहक उपाधि देल गेलन। समय केर पहिया सदैव गतिशील रहलैक अछि पुन: एकटा समय एलै जाहि मे सरकारक प्रमुखता मे छनि उदारीकरण। एहन मे सरकारी समस्त उपक्रम केँ निजीकरण करबाक प्रयास चलि रहल छैक। शिक्षा आखिर अहि सँ कोना बाँचल रहि सकैत अछि। ओना एखनहु किछु लोग छथि जे प्रगतिक चक्का सोझ राखय लेल बताह बनल छथि। चारिम कथा अछि 'जमुनियाँ धार' अहि मे स्त्रीक पीड़ा एवं ओकर मनो दशाक सजीव चित्रण अछि। लेखक केँ पत्नी कहैत छथिन्ह- "अहाँ मौगी नै ने छी ' अहाँ ओकर दुःख की बुझबै।" अपन पाँचम कथा 'पिजराक सुग्गा' मे सेहो नारी जीवनक पीड़ा केर अद्भुत चित्रण केने छथि। नारी जनमहि सँ पराधीन रहैत अछि सदैव ओकर एकटा गार्जियन रहैत छैक चाहे पिता होइथ, पति होइथ अथवा पुत्र। बेटी अपना मने कत्तहु नहि आबि जा सकैत अछि। बेटीके सासुर कि नैहर केओ बिदागरिये ' ' जाइ छै। पिजराक सुग्गा जँका नारी सेहो पिजरे मे कैद रहैत अछि। पटोर, एक सत् महतोक बहुरिया अहि तीनू कथा केँ सेहो नारी विमर्शक कथा कहल जा सकैत अछि। बड्ड अद्भुत कथा अछि सब, बेजाय एक्कहुटा नहि सब नारीक सामाजिक संवेदना सँ जुड़ल अछि।

'अपन घर' एक अलग तरहक कथा अछि। मास्टर साहेब नाना जंजाल मे पड़ि अपन पत्नी केँ कहियो अपना संगे नहि राखि सकलाह जखन रिटायर ' ' गाम अयलाह तखन हुनक पत्नी अपन बेटी जमाय केर संग रहय लगलाह। मास्टर साहेब अकेले अपन घर मे औनाइत रहैत छथि। बेटा केँ पास जखन जाइत छथि मास्टर साहेब तखन हुनका अपन समधि केँ बात सँ अपन घरक परिधि बुझना जाइत छनि। अगिला कथा 'गाछ पात' मे बुढ़हीक बेटा हुनका अपना संग ' जाय लेल सपरिवार आयल छथि मुदा अपन पतिक हाथ सँ लगाओल बगानक एक-एकटा गाछ पात मे हुनका अपन संतान नजरि अबैत छन बूढ़ा केँ नहि रहने ओहि गाछ पात केँ प्रति ममत्व बढ़ि जाइत छनि। बेटाक संग जयबाक इच्छा नहि होइत छनि मोन पड़ैत छनि एकटा फकरा- "बापक राज राज, साँयक राज महाराज बेटाक राज मुँहतक्की।" 'इछाइन' कथा कलियुगी सोच पर आधारित अछि। सब मतलब केँ यार हिन्दी सिनेमाक एकटा प्रसिद्ध गीत छल- मतलब निकल गया तो पहचानते नहीं। हलाँकि अहि कथा मे लेखक जाहि उद्देश्य सँ राँची जाइत छथि सेहो गलत अछि। अगर सही अछि ' फेर हिनकर अगिला कथा 'हेल्पर' लिखबाक कोन प्रयोजन। हेल्पर वाला कल्चर ' आब समस्त परीक्षा मे देखल जाइत अछि। संगठित गिरोह चलाओल जा रहल अछि अहि काज लेल। एकरा रोकय लेल उपयुक्त कदम नहि उठाओल जा सकल अछि एखनधरि। तखन पहिने मैट्रिक इन्टरक परीक्षा सब मे हेल्पर के जे मेला लगैत छल से निस्संदेह शर्मनाक गप्प छल मुदा आब तेहन स्थिति नहि अछि। मेधावी छात्र जे अपन काबलियत पर नीँक नम्बर सँ उत्तीर्ण होइत छलथि हुनको लोग ओही नजरि सँ देखैत छलन। बदनामी के बात ' पुछु नहि। माता पिता स्वयं हेल्पर बनि अथवा आन ककरो हेल्पर केँ रूप मे पठा अपन बच्चा केँ कुसंस्कारी एवं रीढ़ विहीन बनाबय लेल उताहुल रहैत छलथि। हँ एहन मे मास्टर साहेब त्रिलोकबाबू जखन अपन पत्नी केँ दवाब सँ व्यथित छलाह ठीक तखने हुनकर पुत्र आबि ' अपन माय सँ कहलकनि- माय, हम भुसकौल नै छी जे हमरा संगे केओ हेल्पर जायत।

हँ जरुरत पड़ला पर लड़बाक चाही लड़ाइ मुदा कखनो ' रणछोड़ बनय सँ लाभ होइत छैक। कृष्ण जी केँ सेहो रणछोड़ कहल जाइत छनि। परिस्थिति के देखैत लोग केँ निर्णय लेबाक चाही। सबहक भविष्य दाव पर लगा ' लड़नाइ बुद्धिमानी नहि कहल जा सकैत अछि। लड़ाइ अन्तिम उपाय छैक मुदा ओहि सँ कहाँ ककरो समस्याक समाधान भेलैया। राधे पासवान सेहो लड़ाइ ठानि सकैत छल मुदा बच्चा सबहक भविष्य लेल लड़ाइ केँ टालि जीवन मे आगू बढ़ि गेलाह। शिक्षाप्रद कथा अछि 'लड़ाइ' एक सत्य केँ नुकाबय लेल एक सौ झूठ बाजय पड़ैत छैक सत्य सँ पड़ा ' लोग कतह जयताह। सत्य केर सामना ' करहे पड़त। शिक्षा जगत मे व्याप्त भ्रष्टाचार ट्रांसफर पोस्टिंग मे पैसा केर खेल कोनो ' गप्प नहि। सरयू राय हिम्मत देखौलनि इच्छित ट्रांसफर लेल घूस नहि देलाह मुदा ' स्थान पर जातिगत समीकरण केँ देखैत झूठ बाजि गेलाह फेर लगातार झूठक सहारा लेबय पड़लनि। खैर आब उपयुक्त समय आबि गेल छन अपन झूठ पर सँ पर्दा उठाबय केँ। मोनक भीतर चलैत अन्तर्द्वन्द सँ पार पाबय लेल कोन दिशा मे चलताह तकरे सजीव चित्रण अछि कथा 'दिशा' 'फर्क' कथा मे एकटा कलाकारक मनः स्थिति केँ चित्रण भेल अछि। साधना केँ बल पर कोनो भी कलाकार अपन क्षेत्र मे एकटा विशिष्ट स्थान बनबैत अछि मुदा जखन ओकर अपन परिवारक लोग ओहि काज केँ हीन भावना सँ देखैत छैक तखन ओहि कलाकार केँ दुःख होइत छैक फेर ओहि कला केँ विलुप्त होबय सँ आखिर कोना बचायल जा सकैत अछि?

अहि कथा संग्रह केर अगिला कथा अछि 'चिन्ता' मुदा ओहि संबंध मे बाद मे। पहिने अंतिम कथा 'चिड़ै नहि मनुक्ख थिक' हँ बहुत साल पहिने एकटा नाटक देखने रही 'बुड़िबक बेटा टके काबिल' ओतेक ' मोन नहि अछि तखन एकटा बात ' सत्य अछि जे अपन गाम समाज मे आइ ओकरे काबिल बुझल जाइत छैक जकरा पास टका छैक। जकरा पास टका नहि टकसाल छैक तकरा आगू लोग पमरिया जँका हाँजी-हाँजी करैत रहैया। मुदा एखनो किछु लोग छथि जे अहि सब सँ उन्मुक्त छथि अपन जीवन अपना ढ़ंग सँ जीबैत छथि जेना कि अहि कथा मे वामदेव छथि। हुनकर भीतर केर मनुक्ख एखनो जीवित छनि। नीँक कथा अछि। आब पुनः वापस चलैत छी हिनकर कथा 'चिन्ता' मे। मेहीं कामति चिन्तित छथि निस्संदेह अपना सबहक लेल चिन्ताक विषय अछि। अपन खेती मजूरी छोड़ि गाम घर सँ दूर कोनो आन राज्य मे पलायन एक गंभीर समस्या अछि। पलायन थमबाक नाम नहि ' रहल अछि। पर्यावरण केँ ' ' मात्र मेहीं कामति केँ चिन्ता कयला सँ हेतैक? अहि केँ लेल ' सबकेँ आगू आबय पड़तैक। पानी सेहो पीबय वाला कोनो छोट छिन चिन्ताक विषय नहि अछि। अहि कथा सँ सबहक आँखि खोलबाक प्रयास भेल अछि। सपने मे सही मेहीं कामति अपन गाम खोजि रहल छथि जे कि हुनका भेटि नहि रहल छनि डेरा जाइत छथि। खैर जागैत छथि ' शांति भेटैत छनि। उम्मीद छनि जे हुनकर बेटा अन्य नवयुवक सब सेहो एक दिन घर अवश्य घुरत अपनो सबहक ओहिठाम खुशहाली हेतैक। शिवशंकर श्रीनिवास जी केर कथा संग्रह अनुपम अछि। निरन्तर लिखैत छथि पढ़बाक सौभाग्य भेटैत अछि। हिनकर कथा सब मे सूक्ष्म सँ सूक्ष्म तथ्य केँ मनोवैज्ञानिक विश्लेषण हिनका विशिष्ट बनबैत छनि। हमरा अपन एकटा घटना मोन पड़ि गेल हिनकर कथा 'चिन्ता' पढ़ि ' अपन नौकरी केर क्रम मे आठ साल हम मुजफ्फरपुर सँ समस्तीपुर ट्रेन सँ डेली पसेंजरी कयलहुँ। बहुत तरहक लोग नित्य भेटैत रहलाह नहि जानि कतेको विषय पर विमर्श होइत रहल। एक दिन अहिना गाम घरक चर्च शुरु ' गेल। सब अपन अपन मंतव्य व्यक्त ' रहल छलाह। हमर बगल मे एक बुजुर्ग बैसल छलथि जे कि पूसा एग्रीकल्चर मे कृषि वैज्ञानिक पद सँ सेवा निवृत्त छलाह बाजि उठलाह - 'अहा गामक बात किछु आओर छैक। गाम मे जे मजा छैक से अन्य कत्तहु कहाँ?' हँ बात ' ठीके कहलनि मुदा हमरा मुँह सँ अनायास निकलि गेल - सर बुरा नहि मानी ' एकटा प्रश्न पुछु? गाम मे कि आब गाम बाँचल अछि? गामक गाम वीरान नजर अबैत अछि। एकर शहरीकरण बड्ड तेजी सँ ' रहल अछि से मात्र इन्फ्रास्ट्रक्चरे मे नहि, हमर सबहक सोच मे सेहो। किछु देर मौन रहि कहलनि- हँ से सत्ते। शिवशंकर श्रीनिवास जी अहिना धुरझार लिखैत रहथि इएह शुभकामना अछि।

 

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