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डॉआभा झा

चयनित -कथाक मादें किछु गप

आदरणीय शिवशंकर श्री निवासजी गद्य, पद्य दूहू विधामे रचना करैत छथि, स्तरीय आलोचनात्मक निबंधादि लिखने छथि, मुदा सर्वाधिक ख्याति अर्जित कएने छथि वरेण्य कथाकारक रूपमे। हिनकर साहित्यमे रमणीक बंकिम भ्रू-भंगिमाक वर्णन कम्मे अछि, कल्पनाक मधुर मनोहर उड़ानो बेशी नहि, ओ मजगूतीसॅं ठाढ़ अछि यथार्थक कटु कठोर आधार पर। लेखक मात्र मनोरंजन लेल साहित्य सृजन नहि करैत छथि, एकटा जिम्मेदार नागरिक जकाँ समाजकेँ उचित अनुचितक बोध करयबा लेल, उचित पथ पर चलबा लेल पाथेय दैत छथि। मुदा उपदेश सुनबाक धैर्य ककरा छैक? के सुनतनि हिनक गप? मुदा ओ उपदेशो कत' दैत छथिन, ओ त' खिस्सा सुनबैत छथिन। खिस्सामे मनोरंजन त' होइते छैक, हिनकहु कथामे आनन्दतत्त्व छैक अवश्य, मुदा अन्तस् मे समेटने छैक एकटा विचार, एकटा स्पष्ट दृष्टिकोण, समाजमे विद्यमान विभिन्न समस्या आ संगमे कथाकारक संवेदनाक मलहम। कथा सभ एकटा विशिष्ट उद्देश्यक संग बढ़ैत अछि आ अंत तक अबैत- अबैत निन्नसॅं जगा दैत अछि। सहृदय आ साकांक्ष पाठक खिस्सा पढ़ि चिहुँकि उठैत अछि, भक्क द' आँखि फोलि दैत अछि। हॅं, सप्रयोजन रचल कथा सभमे स्वाभाविक बहावक गति कतौ कतौ सायास कम-बेशी कएल जाइत छैक, कथाकार सेहो कएने छथि, मुदा एहिसॅं कथाक रोचकतामे कत्तहु कोनो प्रकारक न्यूनताक अनुभव नहि होइत अछि।

हिनक कथा सभ मात्र फैंटेसी नहि, सत्यक आधारभूमि पर काल्पनिकताक गिलेबासॅं ठाढ़ कएल कथा-भवन थिक जाहिमे प्रवेश आदर्श समाजक रचनाक क्रियाशीलताक अपेक्षा रखैछ। एहि तरहेँ कथाकार साहित्य सृजन लेल पारंपरिक प्रयोजनकेँ "व्यवहारविदे आ कान्तासम्मिततयोपदेशयुजे" स्वीकारि ओकरा मूर्त रुप दैत छथि। साहित्यिक कृतिक उद्देश्यो यैह होयबाक चाही, से कल्याण-पथक निर्देश हिनक कथा सभमे अप्रत्यक्ष रूपसॅं विद्यमान अछि। बहुत हद तक पंचतंत्रक परम्पराक पालन करैत लोक-समाजक मूनल आँखि फोलबाक प्रयोजन मनमे राखि गाम-घरक परिवेशसॅं तादात्म्य स्थापित करैत समसामयिक कथावस्तु पर रचल खिस्सा सभ कौखन गामघरक स्थिति दिशि ध्यान आकृष्ट करैत अछि त' कौखन अमरलत्ती जकाँ पसरैत बाजारवाद आ ओहि चकचोन्हीसॅं उचित-अनुचित-विवेकदृष्टिक लोप सावधान करैत अछि। उपेक्षित वृद्धावस्था, नगर दिशि पलायन, स्त्री-शिक्षा, समानता आदि अनेक समसामयिक विषय कथाकारक दायित्व- बोध आ गंभीरताकेँ स्पष्टत: रूपायित करैत अछि।

हिनका द्वारा लिखल पाँच टा कथासंग्रह प्रकाशित आ पाठकक सिनेहसॅं अभिसिंचित भेल अछि। एखन ओहि खिस्सा सभमेसॅं चयनित कथा मात्र पर विचार करब एतय अभीष्ट अछि, जकर संपादन श्री उज्ज्वल कुमार झा कएने छथि आ जे सिद्धिरस्तु प्रकाशन सॅं छपि क' आयल अछि। पोथीक विस्तृत भूमिकाक प्रारंभमे प्रो.देवशंकर नवीनजी हुनका 'निसभेर निन्नमे सूतल समाजक पहरू कथाकार' कहने छथिन। समाजमे पोर-पोरमे व्याप्त भौतिकता ओ बाह्याडंबर आ तकर परिणामस्वरूप ढहैत ढनमनाइत नैतिकता चिन्तन आ परिमार्जनक खगता देखबैत अछि, आन्हर भए कतेक दौड़ब कनेक थम्हू, विचार करू, बेमारीक उपचार करू। बढ़ैत धार्मिक सामाजिक असहिष्णुता, उपेक्षित वृद्धावस्था, सामाजिक समरसताक विखंडन, खेती-बारी, कुटीर- उद्योग आदिक उपेक्षा, स्त्री-जीवनक विसंगति आदि अनेक विचारणीय विषय सोझाँ आनि कथाकार पाठकक संवेदना जगबैत छथि आ एहि तरहेँ लेखकीय दायित्वक निर्वहण करैत छथि।

कथाकारक सभसॅं पैघ चिंता छनि गामसॅं पलायन आ फलस्वरूप कृषि-भूमिक उपेक्षा, गाछ-पातक उपेक्षा, गाममे अदौसॅं चलि अबैत हस्त-कौशलक अवमानना। एहि चिंताकेँ अभिव्यक्ति दैत छथि ओ चिन्ता, मित्र, अद्भुत, चिड़ै नहि मनुक्ख थिक आदि कथामे। किछु उद्धरण द्रष्टव्य अछि-

चिन्ता कथा सहजहिॅं एकटा जिम्मेदार नागरिकक स्वाभाविक चिन्ताकेँ सोझ सपाट भाषामे व्यक्त करैत अछि। 'माता भूमि: पुत्रोSहं पृथिव्या:' एहि भावकेँ कथाक प्रसंगवश ओ कहै छथिन,

'धरती माता थिकीह। हरियरी हुनक प्रसन्नता छियनि। विभिन्न धार हुनक वादन आ हुनक उर्वरा थिकनि मातृत्व जाहि पाबि कऽ जीव एहि धरा पर जीबैए, मुदा सैह आइ हुनक पुत्र सभ हुनका नाश करैमे लागल अछि। एनामे धरतीक बिगड़ि जेतीह। संसार नष्ट भऽ जायत। '

"सम्हरतौ तँ सम्हरि जाइ जो, जंगल कटि रहलौ तकरा रोक, जंगल लगा। गंगा दूषित भऽ कराहि रहलीहे। उद्योग-धन्धाक धुंआ हरियरी नष्ट कऽ रहलौए। बचा धरतीके। गामसँ लोग उपटि रहलैए तकरा रोक। '

फर्क कथा शिक्षित समुदायक शारीरिक श्रमकेँ न्यून बुझबाक प्रवृत्ति पर प्रहार करैत अछि। जखन बेटा हुनकर डोरी बाँटबकेँ नाक कटायब कहैत छनि त' ओ विक्षुब्ध भए कहैत छथि-

"देखह, हम डोरी नहि बॅंटै छी, हम अपन जीवन जीबै छी, ताहि ठाम जे तोहर माथ नहि जाइत छह तॅं बूझह जे तोरामे आ हमरामे यैह फर्क छह। हमर अपन लूरि आइयो विकास-मानि अछि। "

एहने सन भाव गुणकथामे देखाओल गेल अछि जतए इंजीनियर पुत्र आ तथाकथित समाजसेविका पुतौहुकेँ सासुक निर्धन बस्तीमे जाक' शिक्षाक ज्योति देखायब, पेंटिंग सिखायब किंवा गरीब-गुरबाक मदति करब प्रतिष्ठाक अवमूल्यन लगैत छनि। कथाकार मात्र समस्या सोझाँ नहि रखैत छथि, समाधान सेहो देखबैत छथि-

संग्रहक पहिल कथा बुत्ता दोसरासॅं उमेदक बैशाखीकेँ नकारैत अछि, अपन ताकति पर भरोस करबाक प्रेरणा दैत अछि आ कोनो काजकेँ छोट बुझबाक हीनग्रन्थिसॅं मुक्ति दिया आत्मविश्वास, आत्मसम्मान आ कर्मठताक त्रिवेणीसॅं आप्लावित करैत अछि।

डेग लैत एकटा ज़िनगी विपरीततमो परिस्थितिमे एकजुटताक संग संघर्ष, मनुष्यताक रक्षा आ अन्याययक सोझाँ ठेहुन नहि रोपबाक संदेश कतेक सहज रूपमे दैत अछि-

"मोहन! मनुक्खकेँ अपन स्वभाव नहीं छोड़बाक चाही। कियै त' एहि बिना एकर मौलिकता नष्ट भ' जेतै आ मौलिकतासॅं अलग होएब कठिन छै। तैं संघर्ष करबाक स्वभावकेँ बिसरी नहि। अपन मनुक्खकेँ जियौने रही, एकरा बेची नै। "

समाधान त' ओ देखबैत छथि जिनगी, पितामही, बदलैत रूप, जकर टांङ तकर आम आदि कथामे सेहो। अपन जीवन, अपन रुचि-प्रवृत्ति महत्वपूर्ण होइत अछि, जकर आदर स्वयं करबाक चाही।

जीवनमूल्यक ह्रास दिशि इंगित करैत कथाकारक पीड़ा हुनक पात्र सभमे जीवन्त भेल अछि। किछु उदाहरण सोझाँ अनैत छी-

बताहि कथा महानगरक चकाचौंधमे भोतिआयल युवा दम्पतीक स्वार्थान्ध व्यवहार आ पिता जकाँ पालन-पोषण कयनिहार जेठ भाइक पीड़ाक सजीव वर्णन करैत अछि, मुदा एत' कथाकार छोट भाइक अमानुष व्यवहारक तह तक पहुंचैत छथि, ऊपरसॅं कृतघ्न जकाँ बुझाइत हृदयक दुखाइत रग धरि जा कहबैत छथिन- "नहि, शहर आब हमरा गाम नहि रहय देत। हम बियाह कयलहुँ आ परास्त भ' गेलहुँ। "

घटना घटैत सामान्यो लोक देखैत छैक, परञ्च लेखक ओकर कारण सेहो अकानैत छैक, विवशता सेहो बूझैत छैक आ एकटा इशारा द' आगू बढ़ि जाइत छैक। अपन परार धनक मृगतृष्णामे हेराइत संबंध- बंधक पीड़ादायक कथा अछि, मुदा सत्य ई जे आब प्रायः अधिकांश परिवार स्वार्थक दंश भोगबा लेल अभिशप्त अछि।

विवाह-मात्र स्त्री-जीवनक प्रत्येक क्रियाकलापक आधार नहि, ई संदेश दैत कथाकार प्रत्येक बालक- बालिकाक स्वतंत्र व्यक्तित्व निर्माणक प्रेरणा दैत छथि अपना लेल कथामे। एहि मादें ओ प्रत्येक माता पिताकेँ धियापुताक पालन पोषणमे सावधान रहबाक आवश्यकता बुझबैत छथिन।

बांट बखरा कथामे पिताक मृत्युक उपरांत मायक मनोदशाक उपेक्षा, बिनु पुछने भिन्न- भिनाउज आ मायक स्थिति पेंडुलम जकाँ करब कतेक पैघ मानसिक अत्याचार अछि, एकरा रेखांकित करैत बूढ़ीक साहस देखा एक दिशि स्वार्थी संतानकेँ ऐना देखबैत छथिन आ दोसर दिशि स्त्रीक मुंह पर पड़ल जाबी हटबैत छथि। ई संवाद कतेक मार्मिक अछि से देखल जा सकैछ-

मायक नोरायल आँखि देखि चारू चौंकि गेलाह। जेठ जन पुछलथिन -

"की भेलौ माय? केओ किछु कहलकैए?”

बुढ़ही कहलथिन–‘“हमरा केओ किछु ने कहलक 'ए, मुदा हमरा बहुत किछु भऽ गेलऽए। हमर पैर टूटि गेलऽए। हमरा होइए जेना हम अपन ठठरीमे ओइ घरसँ ओइ घर गुड़कि रहल होइ। हम प्रेत भऽ गेल छी प्रेत "कहैत-कहैत बुढ़ी दृढ़ भऽ उठलीह-"हम दसोदिसिया जीवन नहि जीब। पछबरिया घर हमर भेल। हमर अन्न-पानि फुटका दै जाह। हमर खेती-पथार बाँटि दै जाह। हम अपन जीवन अपने चलायब। .... "

संतानक स्नेह एक दिशि, मुदा आत्मगौरवक रक्षा सेहो जरूरी। एहि तरहक साहसक शिक्षा जॅं प्रत्येक माता पिता ल' सकथि, त' कोनो संतान माइक जिनगी अछैत भिन्न-भिनाउजक कथा सोचिओ सकत?

बदलैत रूप सेहो पुत्रक कृतघ्नताक कथा सुनबैत अछि, मुदा ओत्तहि निराशा त्यागि अपन परिश्रमक ब'ल पर आत्मसम्मान पूर्ण जिनगीक बाट तकबाक, ओहि बाट पर चलबाक रोशनी सेहो दैत छैक।

गुणकथा त' बाजारवादक नग्न रूप देखा रहल अछि पारिवारिक संबंधक आ नैतिकताक क्षरणक मादें। बेटा-पुतहुकेँ मायक नीको काज अधलाह लगैत छनि आ पोता त' स्नेहक स्थान पर लाभक प्रत्याशामे पितामहीकेँ रोकबाक सुझाव दैत छनि। स्वाभाविक छैक जेहने संस्कार देल जेतै, ओहने व्यक्तित्व बनतै!जेहने बीआ तेहने त' वृक्ष!

किछु एहने सन साहुकारी कथा समाजमे जड़ि बैसौने वणिकवृति पर चोट दैत अछि। प्रत्येक व्यक्तिक मनमे शिक्षा-ग्रहणक उद्देश्य मात्र पाइ कमायब आ बाहरी ताम झाम पसारब रहि गेल अछि, जे चिंतनीय अछि।

स्त्रीक सामाजिक स्थिति, हुनक परवरिशमे कमतर हयबाक भाव भरब कथाकारकेँ अभीष्ट नहि रहलनि, ने ओ विवाहकेँ जीवनक प्रमुखतम लक्ष्य मानै छथि आ ने पुत्रीक परिवारक भार उठायब खराप। हॅं स्त्रीक स्वयं केर ग्रन्थि सेहो ओ देखि ओहि दिशि देखबा लेल पाठककेँ प्रेरित करैत छथि। किछु निदर्शन देखल जा सकैत छैक-

बेटीक परिवारक कर्णधार बनब, लीकसॅं हटिक' जीविकाक साधन चुनब आ रसातलमे जाइत परिवारक भविष्य सम्हारब धरती ऊपर उठि गेलीए कथाक प्रेष्य संदेश अछि।

सिनुरहार कथा स्त्री-स्वभावक अन्तर्द्वन्द्व, अनप्रेडिक्टेबल चिन्तन आ व्यवहार, सामाजिक नियम- कानूनक अव्यक्त भय आ सभसॅं बढ़ि कए ओहिसभमे जकड़ल मानस- तन्तुक सजीव चित्रण करैत अछि आ ओहि जालसॅं बहरैबा पर आश्वस्तिक अनुभूति करबैत अछि।

पिजराक सुग्गा कथामे सेहो समाजक संग स्त्री- म'नक निस्सहायता आ परावलम्बिताक आख्यान अछि। जे स्त्री बेटाक विह्वलता देखि ओकरा सांत्वना दैत मजगूतीसॅं कहैत अछि -

"अधीर नहि होअ'। बाप ने चल गेलथुन, हम त छियहे। तोरा' कथीक चिन्ता?"

ओएह स्त्री नैहर जयबाक गप पर कहैत अछि-

"पुछबै नै?बेटा थिक तें की? माउग-मेहरि भ' क' जुति चलायब?"

संभवतः कथाकार कथाक माध्यमसॅं युग- युगसॅं चलि रहल पराधीनताक पाशक म'न पर पड़ल गहीर प्रभावक दिशि ध्यान आकृष्ट कए जागरूक करए चाहैत छथि।

रूमाल कथा ऊपरसॅं हल्लुक- फल्लुक लगैत अछि, मुदा सुखी गार्हस्थ्यक मूल मंत्र दै मे सफल अछि। पति-पत्नीक मात्र संग रहब नहि, अपितु एकात्मता, दु:ख- सुखक अनुभूति, रुचि- प्रवृत्तिक आदर- मान वैवाहिक संस्थाक आधारशिला होइछ। से जॅं नहि, जीवन बालूक ढेरी पर बान्हल घ'र जकाँ व्यर्थे!

माटि कथामे कथाकारक पात्रविशेषक मनोवैज्ञानिक विश्लेषण प्रभावित करैछ। मोहक ताग कोना विरक्त ओ उद्भ्रान्त मनुक्खोकेँ जीयब सिखा दैत छैक, सकारात्मक बना दैत छैक, तकर जीवन्त उदाहरण थिक ई कथा।

जकर टाङ तकर आम कथाक कथ्यवस्तु प्रभावी अछि, उपस्थापन सेहो सहज आ रमणगर, सतत निष्काम कर्मशीलताक संदेश सेहो ग्राह्य, मुदा शीर्षक बहुत प्रासंगिक नहि बुझना गेल।

मित्र, बदलैत रूप, अद्भुत, ज़िनगी, पसाही आदि सभ कथा रोचक अछि। ई संग्रह पढ़लाक बाद कहल जा सकैछ जे शिवशंकर श्री निवासजी माँजल कथाकार छथि। गामघरक परिवेशसॅं उठाओल कथा-वस्तु सहजहिॅं पाठककेँ एकाकार कए लैत छैक। प्रस्तुतीकरणक ललित-मनोहर ढंग पाठककेँ बान्हिक' रखबामे पूर्णतः सक्षम अछि। संगहिं कथामे उठाओल गेल समस्या जागरूक मनुक्खकेँ किछु समाधान तकबा लेल प्रेरित करैत छैक, गामघ'रक स्थिति सुधारबाक आह्वान करैत छैक, धार्मिक वैमनस्यक जहरसॅं बचबाक नेहोरा करैत छैक, माता-पिताक सम्मान करबाक सीख दैत छैक, स्त्रीक शिक्षा, स्वतंत्रता आ स्वावलंबनक ध्यान रखबाक ओकालति करैत छैक आ पलायन छाड़ि गामेमे रोजगार सृजित करबाक आवश्यकता पर जोर दैत छैक। एकटा संग्रह, मात्र पच्चीस गोट कथा आ एतेक रास उपलब्धि! गागरमे सागर कहबी चरितार्थ भए रहल अछि एतय।

हॅं, 'मनुक्ख नदी थिक' कथामे पौत्रक पत्नी लेल नतिन पुतौहु शब्दक प्रयोग पाठकवर्गकेँ भाषिक भ्रमक स्थितिमे आनि सकैत छैक। 'डेग लैत एकटा ज़िनगी' कथामे मनुष्यताक स्थान पर 'मनुक्ख' शब्दक प्रयोग सेहो कनेक अखरैत छैक(अपन मनुक्खकेँ जिऔने रही)। तथापि संभवतः प्रचलनमे हयबाक कारण प्रयुक्त भेल हयतै।

लेखकक कथा-सागरसॅं पच्चीस गोट महत्त्वपूर्ण कथाक चयन कए ओकरा एक ठाम पाठक लेल उपस्थित करबाक महनीय काज करबा लेल श्री उज्ज्वल कुमार झा बधाइक पात्र छथि। महनीय लेखककेँ सप्रणाम अभिनन्दन आ युवा संपादक उज्ज्वलजीकेँ निरन्तर सकारात्मक सृजनशीलताक शुभकामना।

 

इतिशम्।
 

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