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कल्पना झा

मैथिली साहित्यमे उपेन्द्र नाथ झा 'व्यास' एवं हुनक परिवारक योगदान-10

अग्रज 'व्यास' जीक परम भक्त: महेन्द्र झा

 

उपेन्द्र नाथ झा 'व्यास' जीक आत्मा निश्चित असन्तुष्ट रहि जेतनि जँ "मैथिली साहित्यमे उपेन्द्र नाथ झा 'व्यास' एवं हुनक परिवारक योगदान" श्रृंखला मे एक अध्याय हुनकर अनुज महेन्द्र जीक लेल नहि समर्पित करी हम। तँ सएह 'व्यास' जीक आत्माक सन्तुष्टि लेल ई अध्याय नानाजी महेन्द्र झाक नामेँ समर्पित छनि।

हरिपुर 'बख्शी टोल'क लोक हुनका 'कन्हाइ' नाम सँ चिन्हैत छलथिन। ज्येष्ठ भाए चुल्हाइ आ छोट कन्हाइ। वास्तविक नाम छलनि महेन्द्र झा। पूजा-पाठ बेसी करथि तँ पंडित महेन्द्र झाक नाम सँ सेहो जानल जाइत रहलाह समाज मे। वयस्क भेलाक उपरान्त दीर्घकाल धरि सहस्त्र गायत्री जप आ बाद मे तेरहो अध्याय दुर्गा सप्तशतीक पाठ, सालक तीन सए पैंसठियो दिन करथि। चारि- चारि घंटा पूजा पर बैसथि। बड़ धर्मात्मा लोक। से दुनू भाइ। 'व्यास' जी सेहो सरकारी सेवा मे रहितहु पूजा-पाठ लेल समय निकालिए लैत छलाह। कर्मकाण्डक अनुसरण ओहि घरक परम्परा रहल सभदिन।

उपेन्द्र नाथ झा 'व्यास' जी सँ आठ बरखक छोट छलाह महेन्द्र झा। सन् 1925 मे जन्म भेल छलनि महेन्द्र झाक। पढ़बा-लिखबा मे बुधियार महेन्द्र जीक शिक्षा-दीक्षा प्राइमरी स्कूल कलुआही सँ शुरु होइत, हाइ स्कूल लोहा आ तत्पश्चात सी एम कॉलेज सँ ग्रेजुएशन धरि भेलनि। ग्रेजुएशनक बाद लॉ के पढ़ाइ सेहो केलनि, सी एम कॉलेज सँ। शुरुआती पढ़ाइ लेल 'व्यास' जी जकाँ महेन्द्र जी केँ सेहो राजमाता सँ सहयोग राशि भेटैत रहलनि। आ जखन 'व्यास' जी इंजीनियरिंग क' कार्यरत भ' गेलाह, तखन ओ स्वयं अनुजक पढ़ाइ-लिखाइ केर जिम्मेदारीक निर्वहन केलनि।

उपेन्द्र आ महेन्द्र, दुनू भाएक बीचक स्नेह केर चर्चा कतए सँ शुरु कएल जाए, असमंजस मे छी। असले त्रेता युग सन दृश्य देखल अछि हमरा अपन नानीगाम मे। माने उपेन्द्र नाथ असले राम जीक अवतार आ महेन्द्र लक्ष्मणे जीक अवतार बुझू। ओना कइअक बेर अग्रजक लेल हुनकर भक्ति, रामभक्त हनुमान सन सेहो बुझना जाइत छलए। अग्रजक जेहने आज्ञाकारी, तेहने भक्त छलाह महेन्द्र झा जी। हुनका लेल अपन पत्नी आ धिया-पूता सँ बेसी महत्वपूर्ण रहलथिन अग्रज। माने अग्रजक इच्छा-अनिच्छाक ध्यान राखब हुनका लेल सर्वोपरि रहलनि सभदिन। आ से कोनो देखावटी नहि छलनि, हृदय सँ स्नेह छलनि, सम्मान भाव छलनि।

हमसभ गर्मी छुट्टी मे हरेक साल हजारीबाग (झारखण्ड) सँ गाम जाइते टा छलहुँ। चूँकि अपन गाम देवपुरा मे गाछी कम छलए; तँ अपन गाम दसे दिन रहल करी आ नानीगाम बीस-बाइस दिन निश्चिते रहैत छलहुँ। कारण नानीगाम मे बहुत वेराइटीक आमक गाछ सभ छलए, चाहे ओ कलमी आमक वेराइटी हुअए कि सरही (बिज्जू)। भिन्न भिन्न स्वाद आ भिन्न-भिन्न आकारक आम सँ युक्त दू-दू टा 'कलम' छलए नानीगाम मे। कटहरबना अलग सँ।

से देखल अछि आमक मास मे, अग्रजक अबाइ केर प्रतीक्षा मे ओहि सभ आम केँ जोगा क' राखथि, नहि तोड़ाबथि अनुज महेन्द्र जी। 'भाइ औथिन तखन टुटतै ओहि गाछक आम' से कहि राखल जाइत रहए। 'भाइ' के गाम आगमन, भगवानक आगमन सँ कम नहि छलनि हुनका लेल। 'भाइ' कहैत छलथिन अग्रज केँ। भाइ लेल ओ शबरी सेहो बनि जाए चाहैत छलाह। सभ बस्तुक बेस्ट क्वालिटी अग्रजक लेल राखल जाए, से भाव। तेहने सिनेह अनुजक लेल 'व्यास' जीक हृदय मे सेहो छलनि आ रहलनि जीवनक अन्तिम साँस धरि। अग्रजक देहावसानक उपरान्त महेन्द्र जी पटना डेरा माने श्री भवन नहिए अएलाह। जखन कि 'व्यास' जीक देहावसानक बारह बर्खक उपरान्त महेन्द्र जी देह-त्यागनि।

अच्छा...आब मोन पड़ल, नानी माँ अमरावती देवीक दिवंगत भेला पर दू दिन लेल आएल छलाह, हुनकर काज मे सन् 2011 मे।

'व्यास' जीक उपस्थिति मे अनन्त पूजा मे नियम छलनि पटना आएब महेन्द्र झाक। कारण खूब धूम-धाम सँ श्री भवन मे अनन्त पूजाक आयोजन होइत छलए, हरेक साल। खूब श्रद्धा-भाव सँ, नियम-निष्ठा सँ। पूड़ी-पकमान बनबैत छलीह मामी सभ। मुहल्लाक आरो लोक सभ अनन्तक संग अपन-अपन डलिया मे फूल-नैवेद्य ल' क' जुटैत छलीह।

अनन्त पूजाक अतिरिक्त जँ कोनो साल आमक मास मे अग्रज 'व्यास' जी गाम नहि आबि सकलाह तँ महेन्द्र जी कार्टून मे वा बोरा मे किंवा काठक पट्टी सँ बनल बक्सा मे, जेना सुतरनि तेना आम ल' क' खबासक संग स्वयं पटना आबैत छलाह कतेक बेर। आ कतेक बेर अपन कोनो बालक द्वारा 'व्यास' जीक पसिनक आम सभ पठा देल करथि। आमक अतिरिक्त गामक सेहन्ता बला बस्तु सभ (जेना अमोट-अचार) सेहो पटना पहुँचए, ताहिलेल महेन्द्र झा स्वयं तत्पर रहैत छलाह।

'व्यास' जीक इच्छाक मान राखैत, आजीवन महेन्द्र जी गाम धएने रहलाह। गामक जमीन-जथा, गाछी-कलम आ ताहू सँ बढ़ि क' भगवतीक ओगरबाही, पूजन, अर्चन लेल अपन लॉ के डिग्री ताख पर राखि देलनि। जखन अपन संतान सभ होशगर भ' गेलथिन, माने हमर मामा सभ कखनो काल कटाक्ष करथिन पिता पर, "ई कोन बुधियारी केलहुँ, पढ़ि-लिखि गाम पर बैसि रहलहुँ..." मुदा हुनका स्वयं कहियो एहि बातक अफसोस नहि रहलनि। ओ अग्रजक मोन राखि कृतकृत्य छलाह। हुनका अपन जीवनक सार्थकता बुझेलनि एहन करबा मे।

आ अग्रज 'व्यास' जी सेहो, सभटा जिम्मेदारी अपना कान्ह पर लेब्बे टा नहि केलनि; निष्ठापूर्वक निभएबो केलनि। सहर्ष निभेलाह सभटा जिम्मेदारी। माने बोझ नहि बुझेलनि हुनका ओ जिम्मेदारी। दुनू भाए मे छओ-छओ, कुल बारह टा धिया-पूता जे भेलथिन, से सभक पढ़ाइ-लिखाइ, विवाह-दान, सभ किछु केर जिम्मेदारी 'व्यास' जीक माथ पर छलनि। हरिपुर 'बख्शी टोल'क निवासी दुनू भाएक प्रेमक गवाह रहलाह हरिपुर 'बख्शी टोल'क निवासी। परोपट्टा मे एहेन सुखमय गृहस्थाश्रम विरले देखबा लेल भेटैत छलनि लोक केँ। दुनू भाएक बीच तँ खैर बाल्यकालहि सँ एकटा विशेष बॉन्डिंग बनले छलनि, दुनू भाएक विवाहोपरान्त दू गाम सँ आएलि दुनू दिआदनीक बीच सेहो ओहिना प्रेम-भाव रहलनि सभदिन, से आश्चर्यजक गप्प छलैक लोक लेल!

अथरीक बड़की नानीमाँ अमरावती देवी, आ रुपौलीक छोटकी नानीमाँ फूल दाइक बीच दू सहोदर बहिनिओ सँ बेसी प्रेमक धार बहैत छलनि, बहैत रहलनि जीवन भरि। कहियो केओ ककरो अवाच्य कथा कहने होएथिन, एहन नहि भेल।

एखनुक समय मे ई आश्चर्यजक गप्प लागि सकैत अछि, उपेन्द्र नाथ आ महेन्द्र झाक बीच कहियो जमीन-जायदाद, गाछी-कलम, कथूक बँटवारा नहि भेलनि। दुनू नानाजीक दिवंगत भेलाक उपरान्त सेहो बहुत सालक बाद एमहर आबि क' भेल अछि बँटवारा आठो मामाक बीच।

 

लॉ के डिग्रीधारी महेन्द्र झा जा धरि सक्षम रहलाह, ता धरि कृषि कार्य मे लागल रहलाह (जौन-बोनिहारक सहयोग लैत)। माने जखन धरि शारीरिक दुर्बलता बाधा नहि बनलनि, तखन धरि। अँगनाक दुरुखा मे हऽर राखल रहैत छलए, से ओहिना मोन अछि हमरा। आ दरबज्जा पर बऽरद। बऽरदक सोझाँ मे नादि। नादि मे देल जाइत माँड़, आमक खोंइचा सभ। संगहि अन्यान्य उगरल खाद्य सामग्री (भात-रोटी)। कुट्टी काटए बला मशीन सेहो नानीए गाम मे देखल अछि हमरा सभ भाइ-बहिनि केँ। अपना गाम मे सभदिन बटिदारेक हवाले रहल खेत सभ।

नानी गामक ओ टहलू छौँड़ा जकर नाम छलै "फुसियाहा" ओकरा कुट्टी काटैत देखब, "अर्जुनमा" नामक परमानेंट जॉन द्वारा कनहा पर हऽर उठा क' खेत दिस विदा होएब, आ पाछांँ-पाछाँ महेन्द्र झा। हमरा सभ भाइ-बहिनिक बालसुलभ मन मे एकटा कौतूहल उत्पन्न करैत छलए, ई सभ दृश्य। नानाजी कतए जा रहल छथि...ई की क' रहल छथि "फुसियाहा"....ई कनहा पर हऽर ल' क' कतए जा रहल छथिन.... एकर की हेतैक (काटल कुट्टी देखि)...... तहिना दस-एगारह बाजैत-बाजैत जॉन लेल आँगन सँ गमछी मे बान्हि क' रोटी नून तेल जाएब, पिआजु मिरचाइक संग। सभटा कौतूहलक विषय छलए। फेर साँझ मे ओहि जौन केँ बोनि रूप मे धान/गहूम वा चाउर भेटब, जॉन द्वारा ओहि बोनि केँ गमछी मे बान्हि क' अपना घर ल' जाएब, ई सभ दृश्य चलचित्र जकाँ चलाएमान भ' रहल अछि एखनहुँ। लाबा-दुआ मे पाँच-दस टा आम द' देल करथिन नानी हमर। जौन-बोनिहारक आत्मा तिरपित !

ओहि कृषक बला जीवन मे परेशानी तँ छलनि महेन्द्र झा-फूल दाइ, दुनू गोटे केँ मुदा आनन्दक संग करैत छलाह ओ सभ। माने कतहु शहर मे रहि वकालत करितथि, तँ निश्चिते भौतिक संसाधन सँ परिपूर्ण, सुखमय शहरी जीवन जीबि सकैत छलाह महेन्द्र झा आ हुनक परिवार। रौद मे मुह लाल क' कृषि कार्य कराएब वास्तव मे कष्टकर तँ छैके। मुदा महेन्द्र झाक मुह रौद सँ भले लाल होइत रहलनि, मोन मलिन कखनो नहि केलनि ओ।

अग्रजक प्रति एहि तरहक श्रद्धा-भाव, नानाजी महेन्द्र झाक प्रति श्रद्धा-भाव उत्पन्न करैत अछि हमरा मोन मे। हमरे टा नहि समाजक लोक सेहो बहुत सम्मान भाव राखैत रहलनि हुनका प्रति, सभ दिन। माने हुनका जिबितहु आ हुनका मृत्युपरान्त सेहो। सन् 2014 मे महेन्द्र झा सेहो दिवंगत भ' गेलाह। आब ओहि घर मे द्वापरयुग आ कलयुग, दुनूक झलक देखा रहल छनि समाजक लोक केँ। जेना सभ घर मे देखाइत छै। घर-घर देखा एक्के लेखा बला परि।

 

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