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ज्ञानवर्द्धन कंठ
दूटा बीहनि कथा
१
दाबा
लखनकाका बड्ड खिसियायल रहथिन।कहलथिन- "आँय यौ बुचकुन?हमर दाबा पर अहाँक कोन दाबा?कोदारिक छौ सँ हमर दाबा ढाहिक' अहाँ अपन डाबा टाँगि देलियैक,तँ अहींक दाबी भ' गेल? एक्के दाबि अपन दबिया ल' क' अहाँ अनकर हक कपचि लेबैक,से नहि हैत!कथी पर एतेक दाबा अछि यौ?जोरगर छी,तँ कमजोरकेँ दाबि देबैक?चलू,पंचायतमे! दबाड़ पड़त, त' सभटा दाबी घोसरि जायत।चलू,अहाँक दबाइ करबै छी हम!"पंचायतमे दबदबाबला दबंग सभ अयलाह।हिनके पर दबाव पड़ि गेलनि,दाबी छोड़बाक लेल।दाब सँ दबि ओतय सँ विदा भेलाह।साँझमे देखलनि- पंच लोकनि बुचकुनक दोकान पर मधुर दबाक' दाबि रहल छलाह।
२
पराश्रित
-"आँय यै, आइ अपन बुच्ची कंपनीमे काजो करय लागलि।कोना दिन बीति गेलैक, से पते नहि चलल।आब तँ नीक बर-घर ताकि....."
-"से त' छैके!"
-"अपन घर चलि जायत बुच्ची।नञ यै?अपना सभक लेल त' ओ पाहुने भ' जायत!आब अहीं अपने सँ मिलान क' क' देखू।अहाँ कतेक दिन अपन माय-बाप लग रहि सेवा करैत छियनि?हुनका लोकनिकेँ कतेक आर्थिक मदति क' पबैत छियनि?तहिना त' अपनो बुच्ची किने?"
-"किएक?ओ कोनो हमरे जकाँ पराश्रित छैक?"
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