अंक ३९१ पर टिप्पणी
मुन्ना जी
पेपरमेशी कलाक पर्याय ऐछ-' मैथिली आलोचना '- साहित्यिक रचना - सामाजिक
विडंवनाक व्याख्या थिक।जाहि मे समाधाक संभावना सेहो निहितार्थ ।
आलोचना-रचनाक शिथिलताक दिग्दर्शनक पर्याय बुझू। विगत १दशक मे प्रकाशित
मैथिली आलोचनाक पोथी पढ़लोपरान्त इ विश्वस्त क' सकै छी जे- एक भगाह ऐछ।
मैथिलीक बेसी आलोचना प्राय: चाटुकारिता मे लिप्त वा ओलि सधेबाक सूत्र सन
लागत। तीन दशक सं धुरझार विश्लेषित/व्याख्यायित होइत मैथिलीक अपन एक मात्र
विधा- " बीहनि कथा " पूर्णत: व्यवस्थित भ' स्थापित भ' चुकल ऐछ।मुदा आलोचकक
दृष्टि फरीछ नै,एकरा प्रति दृष्टिहीन सन! माने आलोचक लिखै त' छथि 21म सदी
मे मुदा सोच आ विषय वस्तु 19म सदीक। जहन कि साहित्यिक रचना सदति किछु दशक/सदीक
आगां धरि प्रासंगिकताक संग स्थापित करबाक मानदण्ड रखैछ। मैथिलीक एहेन
एकभगाह आलोचक/कृति कें आलोचनाक श्रेणी मे जगह देल जा सकैछ ? आकि एहेन लेखन
कें उठल्लू बुझि ढ़ठिया/कतिया राखब कोनो बेजए?
विदेह पेटार: गजेन्द्र ठाकुरक सहस्रबाढ़नि (पहिल मैथिली ग्राफिक उपन्यास) पर टिप्पणी
लक्ष्मण झा सागर
ई त तहलका मचा देत मैथिली साहित्यक इतिहासमे यौ गजेन्द्र बाबू! एहेन
व्यस्त जीवनमे कखन आ कोना एत्ते लीखि लैत छी सेहो कंप्यूटर पर? अहाँक ई
कृति अहाँक साहित्यिक यात्राक अवधिक सर्वोत्तम आ अनुपम काज अछि! हमर बधाइक
संग अनन्त शुभकामना!!
श्यामानन्द चौधरी
ऐ नूतन सनेस लेल आभार।
दीपक गुप्ता, सम्पादक, नेशनल बुक ट्रस्ट
नब प्रयोग, स्वागत।
निर्मला कर्ण
बहुत नीक उपन्यास बनल अछि हार्दिक बधाई अपने के।
अपन मंतव्य editorial.staff.videha@gmail.com पर पठाउ।